Wednesday, April 9, 2025
spot_img
Home Blog Page 40

मराठी लेखक डॉ. ज्ञानेश्वर मुले को नीलिमारनी साहित्य सम्मान

 भुवनेश्वर।   कीट कंवेशन सेंटर पर कादम्बिनी साहित्य महोत्सव 2025 का शानदार आयोजन हुआ  जिसमें विख्यात मराठी लेखक और राजनयिक डॉ. ज्ञानेश्वर मुले को प्रतिष्ठित नीलिमारनी साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान में डॉ. मुले को 10 लाख रुपये नकद, एक रजत प्रतीक और एक प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया। यह सम्मान डॉ. मुले के भारतीय साहित्य में अमूल्य योगदान और सांस्कृतिक समृद्धि के प्रति उनके आजीवन समर्पण सेवा हेतु प्रदान किया गया।पुरस्कार प्राप्त करते हुए, डॉ. मुले ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य का सार स्वतंत्रता, समानता और न्याय को बढ़ावा देने में निहित है। साहित्य भाषाओं, संस्कृतियों, क्षेत्रों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से व्यक्तियों के बीच एक सेतु का काम करता है।
डॉ. मुले ने पिछले 25 वर्षों से कादम्बिनी की समर्पित सेवा के लिए उनका आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम के आरंभ में कीट-कीस के संस्थापक तथा कादंबिनी –कुनी कथा के मुख्य संरक्षक महान् शिक्षाविद् प्रो. अच्युत सामंत ने स्वागत भाषण दिया जिसमें उन्होंने मंतस्थ सभी आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों का संक्षिप्त परिचय प्रदान करते हुए उनका स्वागत कादंबिनी मीडिया परिवार की ओर से किया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात लेखक प्रो. कैलाश पटनायक ने की जबकि आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी समारोह के मुख्य अतिथि थे।अवसर पर प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक श्री चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने सिनेमा और साहित्य के अंतर्संबंध पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की।
सुश्री बनजा देवी,प्रमुख ओडिया लेखिका, डॉ. नीना वर्मा, प्रसिद्ध लेखिका और ब्लॉगर और ख्यातिप्राप्त टेलीविजन धारावाहिक रामायण के रावण की भूमिका निङानेवाले  अदाकार श्री अखिलेंद्र मिश्रा जैसी नामचीन हस्तियों ने इस आयोजन की बौद्धिक श्रीवृद्धि की।आयोजन का मुख्य आकर्ष रहा प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी कादम्बिनी पत्रिका हाट। गौरतलब है कि भारत का एकमात्र यह पत्रिका मेला है  जो प्रकाशकों, संपादकों और पाठकों को बातचीत करने और विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक जीवंत मंच प्रदान करता है।अपने भाषण में सम्मानित अतिथि डॉ. जोशी ने कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों के भविष्य के इतिहास में कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर शीर्ष पांच विश्वविद्यालयों में गिना जाएगा। उन्होंने इस उपलब्धि के लिए संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रो.अच्युत सामंत का आभार व्यक्त किया।
डॉ. जोशी ने यह भी कहा कि जहां ओड़िया के अलावा अन्य भाषाओं में पत्रिकाओं का प्रकाशन कम हो रहा है, वहीं कादम्बिनी ने 500 से अधिक पत्रिका प्रदर्शनियों का आयोजन करके एक इतिहास रच दिया है। इससे पत्रिकाएं प्रकाशित करने की प्रेरणा मिली है। सम्मानित अतिथि श्री द्विवेदी ने कहा कि साहित्य वहीं मिलता है, जहां दुख और पीड़ा है। जो लोग इस दुख और पीड़ा को शब्दों से जोड़ पाते हैं वे लेखक माने जाते हैं। कुछ लेखक अपने निजी दर्द को व्यक्त कर सकते हैं जो लोग पूरे विश्व के दर्द को व्यक्त करने में सक्षम होते हैं वे महान कवि माने जाते हैं।
रामायण टेलीविजन धारावाहिक में रावण की भूमिका निभानेवाले श्री अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा कि साहित्य ऋग्वेद का एक मूलभूत पहलू है और इसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति माना जाता है। उन्होंने पुस्तकों को पढ़ने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि पुस्तक को छूने से एक विशेष भावना पैदा होती है। उनका मानना था कि साहित्य जीवन के लिए आवश्यक है क्योंकि यह विचारों और अंतर्दृष्टि का खजाना प्रदान करता है। कविता पढ़ने से, विशेष रूप से, जीवन की लय को समझने में मदद मिलती है।उन्होंने जोर देकर यह संदेश दिया कि जो भी ओड़िशा प्रदेश के पुरी,कोणार्क परिभ्रमण के लिए आता है उसे प्रो अच्युत सामंत के स्मार्ट गांव कलराबंक अवश्य जाना चाहिए जहां पर भारत की आत्मा निवास करती है। उनके अनुसार कीट तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में जहां पूर्वी भारत गौरव है वहीं कीस वास्तविक शांतिनिकेतन है  जिसके लिए संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रो अच्युत सामंत वास्तविक बधाई के हकदार हैं।कादंबिनी की संपादिका डॉ. इतिरानी सामंत ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

गोपाल दास नीरज पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

कोटा ।  समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत के संस्थापक एवं संचालक डॉ. मुकेश कुमार व्यास ‘स्नेहिल’ जी के सानिध्य में एवं ड.विजय प्रताप सिंह जी की अध्यक्षता में ख्यातनाम साहित्यकार और कवि गोपाल दास नीरज जी के सम्मान मे “जन्म दिवस विशेष” एवं मासिक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। सविता धर धनबाद जी के सुरीले कंठ से मां सरस्वती की वंदना “जयति जय जय मां सरस्वती” के साथ काव्य गोष्ठी का आगाज हुआ।
   समरस संस्थान की भिन्न-भिन्न इकाइयों से साहित्यिक मनीषियों ने काव्य गोष्ठी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बृज सुंदर जी सोनी, भीलवाड़ा, नन्द किशोर बहुखंडी, प्रेम नारायण जी, बी पी मिश्र बेधड़क गोला खीरी ,सविता धर धनवाद, डॉ. विजय प्रताप सिंह जी अहमदाबाद,प्रेम प्रसून धौलपुर,दिनेश सेंगर ‘दिनेश’ मुरैना,डॉ शशि जैन कोटा,राजेंद्र कुमार जैन कोटा,रजनी शर्मा “मृदुल”धौलपुर,संतोष द्विवेदी बिगुल वीर भूमि महोबा,प्रिया शुक्ला धौलपुर, ईश्वर चन्द्र जी जायसवाल संत कबीरनगर,कांता तिवारी गढ़चिरौली,हरेंद्र ‘ हर्ष ‘  धौलपुर,गोविन्द गुरुजी  धौलपुर, अनुसुइया शर्मा धौलपुर, दशरथ सिंह दबंग बनेड़ा भीलवाड़ा, समरस संस्थान के महामंत्री आनंद कुमार जैन ‘अकेला’ कटनी मध्य प्रदेश, किरण मोर कटनी,  रुखसाना जेबा भोपाल आदि साहित्यकारों ने गोपाल दास नीरज की रचनाएं सुनाकर मंत्र मुग्ध कर दिया। काव्य गोष्ठी के अंत में समरस संस्थान की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शशि जैन ने उपस्थित सभी साहित्यिक मनीषियों का  आभार व्यक्त किया।

अपने दर्द की पीड़ा से दूसरों के लिए राहत लेकर आई अमरीका में रह रही अस्मिता सूद

भारत में रहने वाले लोग जिन्हें भविष्य में चिकित्सकीय इलाज की ज़रूरत होगी, उन्हें आज जो कुछ भी काम अस्मिता सूद कर रही हैं, उससे फायदा हो सकता है।

अस्मिता सूद, कैलिफ़ोर्निया में स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से बायोमेडिकल डेटा साइंस में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें प्रतिष्ठित क्वाड ़फेलोशिप मिली है जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की सरकारों द्वारा समर्थित एक फेलोशिप प्रोग्राम है। इसे इन देशों में वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों की अगली पीढ़ी के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया है। हालांकि सूद ने अंडरग्रेजुएट डिग्री और इंटर्नशिप कंप्यूटर साइंस में की है, लेकिन बाद में उन्होंने हेल्थ केयर तकनीक के क्षेत्र पर फोकस करना शुरू कर दिया। इसके पीछे उनके बचपन से जुड़ी एक मुश्किल घटना है।

उस घटना को याद करते हुए वह कहती हैं, ‘‘शायद मैं तब 11 साल की थी, जब मुझे पेट में बहुत भयंकर दर्द हुआ और वह कई दिनों तक चलता रहा। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है। मुझे पेट में संक्रमण की दवा दी गई, लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ। यह लंबे समय तक चलता रहा और कभी-कभी तो यह इतना भयावह होता था कि मैं अपनी परीक्षा देने के लिए भी अपने बिस्तर से नहीं उठ पाती थी।’’ वह बताती हैं, ‘‘मुझे याद है कि मेरी मां मेरी साइंस की किताब को जोर-जोर से पढ़ती थीं ताकि मैं उसे सुन कर उसे समझ सकू्ं। यह सब कुछ सालों तक जारी रहा, और उसके 8 साल बाद 2020 में हालात बहुत खराब हो गए और मुझे इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। मुझे फिर से पेट में संक्रमण की दवा दी गई लेकिन किसी ने भी आगे जांच कराने की सलाह नहीं दी। वह मेरी मां ही थीं जिन्होंने कहा कि इसकी अल्ट्रासाउंड जांच की ज़रूरत है।’’

अल्ट्रासाउंड करने से पता चला कि सूद को पित्ताशय में 90 पथरियां थीं। वह बताती हैं, ‘‘यह असहनीय था। लंबे समय से संक्रमण के कारण यह मेरी आंतों तक फैल चुका था। डॉक्टरों ने उसे ठीक नहीं बताया। उन्हें शक था कि यह कैंसर हो सकता है।’’

उस समय, उनके गृहनगर में डॉक्टरों के पास उनकी आंतों की जांच करने के लिए केवल एक पीईटी (पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी) स्कैन मशीन उपलब्ध थी, जो विस्तृत त्रिआयामी तस्वीर दिखाती है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण सूद जांच के लिए स्थानीय अस्पताल तक नहीं जा सकीं। वह याद करती हैं, ‘‘हमें स्कैन के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा। किस्मत से, स्कैन से पता चला कि उनकी स्थिति को गाल ब्लैडर निकालने की सर्जरी और दवाओं से काबू किया जा सकता है।’’

यह एक महत्वपूर्ण बिंदु था जहां सूद ने फैसला किया कि वह सॉ़फ्टवेयर विकास पर नहीं बल्कि विशेष रूप से चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगी।

उनका कहना है, ‘‘मैं काफी कुछ और करना चाहती थी, कुछ ऐसा जहां मैं स्वास्थ्यकर्मियों के बेहतर जांच निर्णयों में कंप्यूटर साइंस की अपनी पृष्ठभूमि का इस्तेमाल कर सकूं।’’

सूद अभी मौजूदा समय में पैथोलॉजी इमेज पर काम कर रही हैं और एक सर्च एवं रिट्रीवल डेटाबेस को तैयार कर रही हैं। वह कहती हैं, ‘‘लक्ष्य यह है कि जब कोई नया मरीज़ आता है तो उसकी स्लाइड की तुलना पिछले मरीजों और उनकी स्लाइड के साथ करते हुए उनके निदान से की जा सके। यह पैटर्न का पता लगाने, रोग की ज्यादा सटीक पहचान और रोगियों के लिए बेहतर नतीजों में मदद कर सकता है।’’

उन्होंने मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) जैसी जांच तकनीकों में सुधार पर भी काम किया ताकि रेडियोग्राफर जांच रिपोर्ट का जल्द विश्लेषण सके। एक महत्वपूर्ण सफलता में एमआरआई इमेज का विश्लेषण करने के लिए कंप्यूटर को प्रशिक्षित करना शामिल था।

वह बताती हैं, ‘‘हमने ब्रेन ट्यूमर पर ध्यान केंद्रित कि या है ताकि एमआरआई को देख कर पता लगा सके कि ट्यूमर कहां स्थित और कौनसे उपक्षेत्र हैं।’’ वह इस बात पर जोर देती हैं कि कंप्यूटर मॉडल का उद्देश्य चिकित्सकों की मदद करना है न कि उनकी जगह लेना।

सूद, उन्नत स्वास्थ्य देखभाल को और अधिक सुलभ बनाने के लिए कंप्यूटर विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित का संयोजन कर रही हैं। उन्होंने स्टैनफ़र्ड के वातावरण को बेहद प्रेरणादायक और सहयोगी पाया।

वह कहती हैं, ‘‘मुझे यह पसंद है कि हर कोई अपने शोध को लेकर जुनूनी है और आप किसी से भी मिल सकते हैं, उनसे बात कर सकते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। यह बहुत दिलचस्प है।’’ वह कहती हैं, ‘‘यह अमेरिका में मेरा पहला मौका है और मैं यहां के माहौल का आनंद ले रही हूं। यहां हर कोई उन अद्भुत चीजों के बारे में बात करने के लिए कितना इच्छुक है, जिन पर वे काम कर रहे हैं। यह एक सहयोगात्मक माहौल है और यही मुझे वास्तव में पसंद है।’’

सूद को क्वाड ़फेलोशिप के बारे में अपने एक दोस्त से पता चला और उन्होंने आवेदन करने का निर्णय किया। वह कहती हैं, ‘‘यह देखना प्रेरक लगा कि ़फेलोशिप के जरिए किस तरह से शोध, नीति और औद्योगिक क्षेत्र के लोग एक साथ आ रहे हैं। सभी का साझा लक्ष्य हमारे ज्ञान का लोगों की भलाई को लिए इस्तेमाल है। यही तो मैं अपनी डिग्री के साथ करना चाहती हूं।’’

सूद की योजना पीएच.डी. करने की है जिसका मकसद अपने ज्ञान का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल में सुधार करना है, जहां वह पली-बढ़ी हैं। वह कहती हैं, ‘‘मैं भारत वापस जाना चाहती हूं। मेरा लक्ष्य स्टैनफर्ड में काम और शोध करने वाले इतने सारे लोगों के बीच सर्वश्रेष्ठ से सीखना है।’’ वह कहती हैं, ‘‘मैं उन अत्याधुनिक तकनीकों को उन जगहों तक ले जाना चाहती हूं जहां लोगों की उन तक पहुंच नहीं है। मैं व्यक्तिपरक चिकित्सा के क्षेत्र में भी काम करना चाहती हूं जहां निदान और उपचार उनकी खास ज़रूरतों के अनुरूप हो।’’

स्टीव फ़ॉक्स एक स्वतंत्र लेखक, पूर्व अखबार प्रकाशक और रिपोर्टर हैं। वह वेंचुरा, कैलिफ़ोर्निया में रहते हैं।

साभार-   https://spanmag.state.gov/hi/ से 

राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह का दो दिवसीय आयोजन

कोटा/  सार्थक बाल साहित्य विमर्श, 24 कृतियों का विमोचन, 82 साहित्यकारों , कलाकारों, चिकित्सकों के सम्मान के साथ नाथद्वारा में रविवार से प्रारंभ हुए भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति एवं राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह का दो दिवसीय आयोजन संपन्न हुआ। कोटा की तीन साहित्यकार महेश पंचोली,विजय शर्मा और विष्णु शर्मा हरिहर को भी सम्मानित किया गया। साहित्य मंडल द्वारा आयोजित समारोह का संचालन संस्था के पदाधिकारी श्याम प्रकाश देवपुरा ने किया और अंजीव ने सम्मानित साहित्यकारों का गद्य और पद्य में कृतित्व प्रस्तुत किया।
भगवती प्रसाद देवपुरा की स्मृति में उनके साहित्यिक योगदान और कार्यों पर डॉ. अमर सिंह बधान चंडीगढ़ द्वारा  देवपुरा : मैंने जैसे देखे समझे , डॉ. राहुल दिल्ली द्वारा  देवपुरा का सृजन एवं चिंतन, डॉ. ज्ञान प्रकाश पियूष सिरसा द्वारा  देवपुरा: अनुशासन के पूरक व्यक्तित्व , डॉ. रक्षा गोदावत उदयपुर द्वारा  देवपुरा  : कृष्ण भक्ति साहित्य के पोषक संरक्षक और उन्नयाक विषयों  के साथ – साथ उनके  पर  कोटा से रामेश्वर शर्मा रामू भैया , बंशीलाल लड्ढा कपासन, श्रीमती रेखा लोढ़ा भीलवाड़ा, डॉ अंजीव रावत और कोटा से जितेंद्र निर्मोही ने विचार व्यक्त किए।
 बाल साहित्य विमर्श में सत्यनारायण सत्य रायपुर राजस्थान द्वारा दादी नानी की कहानियों से दूर होते बालक, डॉ ज्ञान प्रकाश पियूष सिरसा हरियाणा द्वारा बाल साहित्य आज की आवश्यकता , डॉ नागेंद्र कुमार मेहता भाव श्रीनाथ द्वारा द्वारा वर्तमान समय में बालक बाल साहित्य और नैतिक मूल्य , श्री कृष्ण बिहारी पाठक हिंडौन सिटी राजस्थान द्वारा परी जादूगर रक्षा राजा रानी :बाल साहित्य में कितने आवश्यक, श्री नरेंद्र निर्मल भरतपुर द्वारा बाल साहित्य में पशु पक्षियों का संसार , श्रीमती रेखा लोढ़ा स्मित भीलवाड़ा द्वारा बाल कहानियों में राष्ट्रीय प्रेम एक महती आवश्यकता, श्रीमती विमला नागला केकड़ी द्वारा लोरियों के लोक में बालक एवं श्रीमती रिचा रावत राया उत्तर प्रदेश द्वारा बाल कविताओं में सूरज चंदा और तारे विषय पर  अपने शोध परक आलेखों का वचन किया।
समारोह में  विख्यात साहित्यकार सुश्री सफलता त्रिपाठी लखनऊ को श्रीमती कमला देवी अग्निहोत्री स्मृति सम्मान, डॉ. वाई. एन. वर्मा उदयपुर, डॉ. एस. एस. पुरोहित श्रीनाथ द्वारा, डॉ. एम.के. सिरोहियां श्रीनाथ द्वारा एवं डॉ. विशाल लाहोटी श्रीनाथ द्वारा को चिकित्सा सेवा रत्न मानद उपाधि से अलंकृत किया गया।
 प्रसिद्ध मांड गायक  हिदायत खान चूई नागौर को डॉ ताराचंद भंडारी स्मृति सम्मान एवं लोक कला मर्मज्ञ की मानक उपाधि से सम्मानित किया गया। प्रोफेसर प्रफुल्ल चंद्र ठाकुर रोसड़ा समस्तीपुर बिहार को भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति सम्मान, आनंद प्रजापति मिर्जापुर उत्तर प्रदेश को डॉ. आर.के. रमन स्मृति सम्मान , डॉ रागिनी भूषण जमशेदपुर झारखंड को श्रीमती राजपति देवी उपाध्याय स्मृति सम्मान, डॉ संगीता पाल कच्छ गुजरात को श्री अवध नारायण उपाध्याय स्मृति सम्मान, सुश्री एंजेल गांधी ऊंचाहार रायबरेली एवं कुमारी सृष्टि राज मिर्जापुर उत्तर प्रदेश को श्रीमती गीता देवी काबरा स्मृति बाल श्री सम्मान से पुरस्कृत किया किया गया।
 बाल साहित्य भूषण की मानद उपाधि के साथ डॉ.अजय जनमेजय बिजनौर उत्तर प्रदेश, डॉ. दयाराम मौर्य रत्न प्रतापगढ़  अरविंद कुमार साहू ऊंचाहार रायबरेली , गौतम चंद्र अरोड़ा सरस वाराणसी उत्तर प्रदेश को पुण्य श्लोक स्वामी भूमानंद तीर्थ जी महाराज स्मृति सम्मान, श्रीमती विमला रस्तोगी दिल्ली को श्रीमती केसर देवी जानी स्मृति सम्मान, अनिल कुमार जायसवाल दिल्ली भारत को श्री श्याम सुंदर बागला स्मृति सम्मान, डॉ. सतीश चंद्र भगत बनौली दरभंगा बिहार को बालकृष्ण अग्रवाल स्मृति सम्मान, डॉ. मीरा सिंह मीरा  डुमराव बक्सर बिहार को श्रीमती उर्मिला देवी अग्रवाल स्मृति सम्मान, श्रीमती शशि पुरवार नागपुर महाराष्ट्र को श्रीमती श्याम लता शर्मा स्मृति सम्मान , डॉ. शैलजा माहेश्वरी अमलनेर महाराष्ट्र को श्रीमती कमला देवी पुरोहित स्मृति सम्मान ,  बलदाऊ राम साहू दुर्ग छत्तीसगढ़ एवं श्री कन्हैया साहू अमित भाटापारा छत्तीसगढ़ को  रविंद्र गुर्जर अप्पू स्मृति सम्मान, डॉ. श्याम पलट पांडे अहमदाबाद गुजरात को श्रीमती तारा दीक्षित स्मृति सम्मान,  गोविंद भारद्वाज अजमेर को श्री शिवचंद ओझा स्मृति सम्मान और डॉ. फकीरचंद शुक्ला लुधियाना पंजाब एवं डॉ. बंशीधर तातेड़ बाड़मेर राजस्थान को श्रीमती पुष्पा देवी दुग्गल स्मृति सम्मान, विजय बेशर्म गाडरवारा नरसिंहपुर मध्य प्रदेश को श्री चमन लाल सिंघल स्मृति सम्मान, श्रीमती वंदना सोनी विनम्र जबलपुर मध्य प्रदेश को श्रीमती सुमन लता स्मृति सम्मान, कालिका प्रसाद सेमवाल रूद्रप्रयाग उत्तराखंड को श्री विट्ठल शुक्ल स्मृति सम्मान , विमल ईनाणी श्रीनाथद्वारा को श्री सज्जन सिंह साथी स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया।
 डॉ. शारदा प्रसाद दुबे मुंबई महाराष्ट्र एवं श्री हरि वाणी कानपुर को साहित्य कुसुमाकर की मानद उपाधि, डॉ. चांद कौर जोशी जोधपुर, डॉ रक्षा गोदावत उदयपुर , सुरेश कुमार श्रीचंदानी अजमेर को साहित्य सौरभ की मानद उपाधि, डॉ. सरोज गुप्ता जयपुर, श्री मुकेश कुमार ऋषि आगरा,  अमर सिंह यादव ग्वालियर, श्री पूर्णिमा मित्र बीकानेर,  शांतिलाल दाधीच शून्य भीलवाड़ा को काव्य कौस्तुभ की मानद उपाधि, जय बजाज इंदौर मध्य प्रदेश, श्रीमती शिखा अग्रवाल भीलवाड़ा एवं श्रीमती मंजू शर्मा जांगिड़ मनी जोधपुर को काव्य कुसुम की उपाधि एवं  उमाशंकर व्यास बीकानेर एवं श्री राजेश वर्मा उदयपुर को पत्रकार श्री की उपाधि से सम्मानित किया गया।
     समारोह में भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतो से आए बाल साहित्य रचनाकारों को भी बाल साहित्य भूषण मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। इसमें डॉ. ज्ञान प्रकाश पीयूष सिरसा,  श्याम सुंदर श्रीवास्तव भिंड मध्य प्रदेश, श्रीमती बसंती पवार जोधपुर ,डॉ. जेवा रशीद जैबुन्निशा जोधपुर, श्रीमती मधु माहेश्वरी सलूंबर , डॉ.नीना छिब्बर जोधपुर, श्रीमती विमला नागला केकड़ी, श्रीमती हेमलता दाधीच उदयपुर, श्रीमती सीमा जोशी मूथा जोधपुर, डॉ तृप्ति गोस्वामी जोधपुर, डॉ.विमल महरिया मौज लक्ष्मणगढ़, श्रीमती मीनाक्षी पारीक जयपुर,  पारस चंद जैन देवली, विष्णु शर्मा हरिहर कोटा, श्री नरेंद्र निर्मल भरतपुर,  कृष्ण बिहारी पाठक हिंडौन सिटी,  भारत दोषी बांसवाड़ा, डॉ. विनोद कुमार शर्मा जयपुर,  विजय कुमार शर्मा कोटा,  पुनीत रंगा बीकानेर,  महेश पंचोली कोटा,  यशपाल शर्मा यशस्वी पहुना, श्रीदेवी प्रसाद गौड मथुरा, डॉ. अरविंद कुमार दुबे लखनऊ,  हरिलाल मिलन कानपुर, डॉ. उदय नारायण उदय कानपुर,  प्रदीप अवस्थी कानपुर,  राजकुमार सचिन कानपुर, कर्नल प्रवीण शंकर त्रिपाठी नोएडा, श्रीमती मीनू त्रिपाठी नोएडा ,  रजनीकांत शुक्ल गाजियाबाद, महेश कुमार मधुकर बरेली, श्री कमरेंद्र कुमार कालपी जालौन , श्याम मोहन मिश्रा गोला गोकर्णनाथ को बाल साहित्य भूषण की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।

बस्तर क्षेत्र में पर्यटन विकास को मिली गतिःकेशकाल घाटी और टाटामारी में बढ़ रही पर्यटकों की रौनक

रायपुर।  मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के सुशासन में बस्तर क्षेत्र में विकास की रफ्तार तेज हो गई है और इसका ताजा उदाहरण नेशनल हाईवे 30 पर स्थित केशकाल घाटी है। केशकाल घाटी को बस्तर की लाइफ लाइन के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस घाटी से ही होकर बस्तर संभाग के अलग-अलग जिलों एवं ओड़िसा, आंध्रप्रदेश सहित तेलंगाना तक पहुँचा जाता है। नेशनल हाईवे पर स्थित केशकाल घाटी प्रमुख मार्ग होने के साथ साथ बस्तर क्षेत्र के व्यवसायिक विकास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। आज से दो महीने पहले यह घाटी जर्जर स्थिति में थी इस कारण यहाँ से गुजरने वाले लोग धुल एवं लम्बी जाम से परेशान थे। इसे ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने घाटी की कायाकल्प के लिए कार्य योजना तैयार किया, फलस्वरूप आज घाटी पूरी तरह से बन कर तैयार है और गाड़ियाँ घाटी से फर्राटे भर रही हैं। केशकाल घाट में मरम्मत कार्य पूरा होने के बाद बीते शुक्रवार को सुबह सभी प्रकार के वाहनों के आवाजाही बहाल हो गई है। घाटी के नवीनीकरण से यातयात में सुगमता आएगी, साथ ही इससे क्षेत्र के पर्यटन स्थलों को भी बढ़ावा मिलेगा।

केशकाल घाटी मरम्मत कार्य के साथ-साथ घाटी के दीवारों पर बस्तर की संस्कृति, कला, पर्यटन को चित्रित किया गया है, जिससे घाटी आकर्षण का केंद्र बन गया है। घाटी को अब लोग फूलों की घाटी के नाम के साथ-साथ अब खुबसूरत वॉल पेंटिंग के लिए भी जाना जाएगा। बस्तर में कई खुबसूरत पर्यटन स्थल है और कांकेर जिले के पर्यटन स्थलों को निहारने के बाद पर्यटक घाटी के रास्ते ही आगे की सफ़र तय करते हैं, ऐसे में जब घाटी में बने सुंदर पेंटिंग से उन्हें बस्तर की प्रमुख पर्यटन स्थलों की जानकारी के साथ जिले के शिल्पियों द्वारा बनाए कलाकृति बेलमेटल एवं आदिवासी कला व संस्कृति की महक से पर्यटक रुबरु हो पाएंगे।

घाटी के दाहिने ओर स्थित टाटामारी हिल स्टेशन अपने खूबसूरत प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है। आप जब घुमावदार मोड़ों वाली घाटी से यात्रा के बाद टाटामारी पहुंचेंगे तब आपकी थोड़ी बढ़ी हुई धड़कने शांत और आँखों को राहत मिलेगी। यहाँ की खुबसूरत नज़ारे देख कर पर्यटकों के मन में काश ये वक्त यही ठहर जाए यह बात आ ही जाती है। और हर कोई यहाँ के नाजरों को अपने मोबाईल में कैद करने से रह नहीं पाते। यही वजह है की इस नूतन वर्ष में पर्यटक दूर-दूर से यहां की नैसर्गिक सुंदरता को निहारने के लिए पहुंच रहे हैं। यहाँ हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। वर्ष 2020 में 20 हजार 950 पर्यटकों की संख्या थी जो अब बढ़कर 01 लाख 76 हजार 682 हो गई है। यहाँ पर्यटकों के रुकने के लिए यहाँ पर उचित व्यवस्था की गई है ताकि पर्यटक टाटामारी के साथ-साथ आस पास के अन्य पर्यटन स्थलों तक भी पहुँच सकें। टाटामारी में स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल भी रहा है। साथ ही स्व सहायता समूह की महिलाएं यहाँ पर्यटकों को गाँव के पारंपरिक पकवान और भोजन परोसते हैं।

कलेक्टर श्री कुणाल दुदावत ने बताया कि टाटामारी में एडवेंचर्स स्पोर्ट्स की काफी संभावनाएं हैं, जिसे ध्यान में रखते हुए यहां एडवेंचर्स गतिविधियों के आयोजन के लिए जिला प्रशासन द्वारा कार्य योजना बनाई जा रही है। साथ ही पर्यटकों के सुविधाओं की दृष्टि से व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए व्यूव पॉइंट, पाथ वे और वुडन कॉटेज के सुदृढ़ीकरण किया जाएगा और किड्स प्ले गार्डन में सुविधा बढ़ाई जाएगी। साथ ही नए कॉटेज का भी निर्माण किया जाएगा।

देश के युवाओं को द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के वृहद अध्ययन की जरूरत-श्री कृष्ण कुमार यादव

अहमदाबाद। युवाओं की सशक्त और सजग भागीदारी ही समाज और राष्ट्र को समृद्ध बना सकती है। महान कर्मयोगी भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में इसीलिए कर्म के भाव को ही अपनाने पर जोर दिया। ऐसे में युवाओं की महती जिम्मेदारी है कि वे अपनी इस भूमिका को पहचानें और इस दिशा में सकारात्मक पहल करते हुए नए आयाम रचें। उक्त उद्गार ख़्यात साहित्यकार व ब्लॉगर एवं उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने यादव सेवा समाज-समग्र भारत‘ के वस्त्रालअहमदाबाद में आयोजित 13वें वार्षिक सम्मेलन व स्नेह मिलन कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। उन्होंने अपने उद्बोधन में युवाओं में शिक्षाकौशल विकास और देश निर्माण में उनकी बढ़ती महती भूमिका की चर्चा करते हुये समाज में उनके नये कर्तव्य निर्माण की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि गुजरात की धरती द्वारकाधीश के लिए जानी जाती है। द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभासम्पन्न राजनीतिवेत्ता ही नहींएक महान कर्मयोगी और दार्शनिक प्राप्त हुआजिनका गीता-ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है। आज देश के युवाओं को श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के वृहद अध्ययन की जरूरत है। श्री यादव ने कहा कि श्रीकृष्ण ने कभी कोई निषेध नहीं किया। उन्होंने पूरे जीवन को समग्रता के साथ स्वीकारा है। संसार के बीच रहते हुये भी उससे तटस्थ रहकर वे पूर्ण पुरुष कहलाए। यही कारण है कि उनकी स्तुति लगभग सारी दुनिया में किसी न किसी रूप में की जाती है।

इस अवसर पर गुजरात के विभिन्न जिलों के कक्षा 10 और 12 सहित उच्चतर कक्षाओं में उत्कृष्ट स्थान प्रदान करने वाले यदुवंशी विद्यार्थियोंचिकित्साइंजीनियरिंग और विभिन्न सेवाओं में चयनित प्रतिभाओंसमाज सेवा में तत्पर महानुभावों को स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। नए सदस्यों और आजीवन सदस्यता ग्रहण करने वाले सदस्यों को भी सम्मानित किया गया।  

यादव सेवा समाज-समग्र भारत‘ के गुजरात अध्यक्ष श्री सत्यदेव यादव ने बताया कि देश के विभिन्न राज्यों से व्यवसाय और आजीविका के लिए यदुवंशी लोग गुजरात में आते हैं। उन सभी में समन्वय करते हुए उनमें मिलाप करानाउनकी सेवाओं को सम्मानित करनाहोनहार प्रतिभाओं को पुरस्कृत करनासामाजिक-सांस्कृतिक समारोहवैवाहिक परिचय कार्यक्रम एवं समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी समृद्ध भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयोजन से इस वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस दौरान सर्वश्री सत्यदेव यादवशिव मूर्ति यादवमुलायम सिंह यादवएडवोकेट अशोक यादवशिव शंकर यादवसुभाष चंद्र यादवरामाधार यादवमुकेश यादवभीम सिंह यादवराम बक्श यादवजितेंद्र यादव सहित तमाम लोगों ने अपनी सक्रिय भागीदारी से लोगों का हौसला बढ़ाया।

गुरु गोविन्द सिंह जी के प्रकाश उत्सव के अवसर पर हिन्दू समाज के लिए सन्देश

मुगल शासनकाल के दौरान बादशाह औरंगजेब का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। चारों और औरंगज़ेब की दमनकारी नीति के कारण हिन्दू जनता त्रस्त थी। सदियों से हिन्दू समाज मुस्लिम आक्रांताओं के झुंडों पर झुंडों का सामना करते हुए अपना आत्म विश्वास खो बैठा था। मगर अत्याचारी थमने का नाम भी नहीं ले रहे थे। जनता पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सिख पंथ के गुरु गोबिन्द सिंह ने आनन्दपुर साहिब के विशाल मैदान में अपनी  संगत को आमंत्रित किया। जहां गुरुजी के लिए एक तख्त बिछाया गया और तख्त के पीछे एक तम्बू लगाया गया।  गुरु गोबिन्द सिंह के दायें हाथ में नंगी तलवार चमक रही थी।
गोबिन्द सिंह नंगी तलवार लिए मंच पर पहुंचे और उन्होंने ऐलान किया- मुझे एक आदमी का सिर चाहिए। क्या आप में से कोई अपना सिर दे सकता है? यह सुनते ही वहां मौजूद सभी शिष्य आश्चर्यचकित रह गए और सन्नाटा छा गया। उसी समय  दयाराम नामक एक खत्री आगे आया जो लाहौर निवासी था और बोला- आप मेरा सिर ले सकते हैं। गुरुदेव उसे पास ही बनाए गए तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद तम्बू से खून की धारा निकलती दिखाई दी। तंबू से निकलते खून को देखकर पंडाल में सन्नाटा छा गया। गुरु गोबिन्द सिंह तंबू से बाहर आए, नंगी तलवार से ताजा खून टपक रहा था। उन्होंने फिर ऐलान किया- मुझे एक और सिर चाहिए। मेरी तलवार अभी भी प्यासी है। इस बार धर्मदास नामक जाट आगे आये जो सहारनपुर के जटवाडा गांव के निवासी थे। गुरुदेव उन्हें भी तम्बू में ले गए और पहले की तरह इस बार भी थोड़ी देर में खून की धारा बाहर निकलने लगी।
बाहर आकर गोबिन्द सिंह ने अपनी तलवार की प्यास बुझाने के लिए एक और व्यक्ति के सिर की मांग की। इस बार जगन्नाथ पुरी के हिम्मत राय झींवर (पानी भरने वाले) खड़े हुए। गुरुजी उन्हें भी तम्बू में ले गए और फिर से तम्बू से खून धारा बाहर आने लगी। गुरुदेव पुनः बाहर आए और एक और सिर की मांग की तब द्वारका के युवक मोहकम चन्द दर्जी आगे आए। इसी तरह पांचवी बार फिर गुरुदेव द्वारा सिर मांगने पर बीदर निवासी साहिब चन्द नाई सिर देने के लिए आगे आये। मैदान में इतने लोगों के होने के बाद भी वहां सन्नाटा पसर गया, सभी एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी तम्बू से गुरु गोबिन्द सिंह केसरिया बाना पहने पांचों  नौजवानों के साथ बाहर आए। पांचों नौजवान वहीं थे जिनके सिर काटने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह तम्बू में ले गए थे। गुरुदेव और पांचों नौजवान मंच पर आए, गुरुदेव तख्त पर बैठ गए। पांचों नौजवानों ने कहां गुरुदेव हमारे सिर काटने के लिए हमें तम्बू में नहीं ले गए थे बल्कि वह हमारी परीक्षा थी। तब गुरुदेव ने वहां उपस्थित सिक्खों से कहा आज से ये पांचों मेरे पंज प्यारे हैं। गुरु गोविन्द सिंह के महान संकल्प से खालसा की स्थापना हुई। हिन्दू समाज अत्याचार का सामना करने हेतु संगठित हुआ। इतिहास की यह घटना का मनोवैज्ञानिक पक्ष अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

पञ्च प्यारों में सभी जातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसका अर्थ यही था कि अत्याचार का सामना करने के लिए हिन्दू समाज को जात-पात मिटाकर संगठित होना होगा। तभी अपने से बलवान शत्रु का सामना किया जा सकेगा। खेद है की हिन्दुओं ने गुरु गोविन्द सिंह के सन्देश पर  अमल नहीं किया। जात-पात के नाम पर बटें हुए हिन्दू समाज में संगठन भावना शुन्य हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने स्पष्ट सन्देश दिया कि कायरता भूलकर, स्वबलिदान देना जब तक हम नहीं सीखेंगे तब तक देश, धर्म और जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे। अन्धविश्वास में अवतार की प्रतीक्षा करने से कोई लाभ नहीं होने वाला। अपने आपको समर्थ बनाना ही एक मात्र विकल्प है। धर्मानुकूल व्यवहार, सदाचारी जीवन, अध्यात्मिकता, वेदादि शास्त्रों का ज्ञान जीवन को सफल बनाने के एकमात्र विकल्प हैं।

1. आज हमारे देश में सेक्युलरता के नाम पर, अल्पसंख्यक के नाम पर, तुष्टिकरण के नाम पर अवैध बांग्लादेशियों को बसाया जा रहा हैं।
2. हज सब्सिडी दी जा रही है, मदरसों को अनुदान और मौलवियों को मासिक खर्च दिया जा रहा हैं, आगे आरक्षण देने की तैयारी हैं।
3. वेद, दर्शन, गीता के स्थान पर क़ुरान और बाइबिल को आज के लिए धर्म ग्रन्थ बताया जा रहा हैं।
4. हमारे अनुसरणीय राम-कृष्ण के स्थान पर साईं बाबा, ग़रीब नवाज, मदर टेरेसा को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।
5. ईसाईयों द्वारा हिन्दुओं के धर्मान्तरण को सही और उसका प्रतिरोध करने वालों को कट्टर बताया जाता रहा हैं।
6. गौरी-ग़जनी को महान और शिवाजी और प्रताप को भगोड़ा बताया जा रहा हैं।
7.1200 वर्षों के भयानक और निर्मम अत्याचारों कि अनदेखी कर बाबरी और गुजरात दंगों को चिल्ला चिल्ला कर भ्रमित किया जा रहा हैं।
8. हिन्दुओं के दाह संस्कार को प्रदुषण और जमीन में गाड़ने को सही ठहराया जा रहा हैं।
9. दीवाली-होली को प्रदुषण और बकर ईद को त्योहार बताया जा रहा हैं।
10. वन्दे मातरम, भारत माता की जय बोलने पर आपत्ति और कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताया जा रहा हैं।
11. विश्व इतिहास में किसी भी देश, पर हमला कर अत्याचार न करने वाली हिन्दू समाज को अत्याचारी और समस्ते विश्व में इस्लाम के नाम पर लड़कियों को गुलाम बनाकर बेचने वालों को शांतिप्रिय बताया जा रहा हैं।
12. संस्कृत भाषा को मृत और उसके स्थान पर उर्दू, अरबी, हिब्रू और जर्मन जैसी भाषाओँ को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।

हमारे देश, हमारी आध्यात्मिकता, हमारी आस्था, हमारी श्रेष्ठता, हमारी विरासत, हमारी महानता, हमारे स्वर्णिम इतिहास सभी को मिटाने के लिए सुनियोजित षड़यंत्र चलाया जा रहा हैं। गुरु गोविन्द सिंह के पावन सन्देश- जातिवाद और कायरता का त्याग करने और संगठित होने मात्र से हिन्दू समाज का हित संभव हैं।

आईये  गुरु गोविन्द सिंह जी के प्रकाश उत्सव के अवसर पर एक बार फिर से देश, धर्म और जाति की रक्षा का संकल्प ले।

गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे. वह ब्रज भाषा, पंजाबी, संस्कृत और फारसी भी जानते थे. और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे. जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्र भाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा. इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी. यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है. इसमे कुल 134 शेर हैं. इस पत्र को “ज़फरनामा “कहा जाता है.
यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था. लेकिन इसमे जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं . इसमे औरंगजेब के आलावा मु सल मानों के बारे में जो लिखा गया है, वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं. इसीलिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है.
जफरनामासे विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं. ताकि लोगों को इस्लाम की हकीकत पता चल सके —
1 – शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना —
बनामे खुदावंद तेगो तबर, खुदावंद तीरों सिनानो सिपर.
खुदावंद मर्दाने जंग आजमा, ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा. 2 -3.
उस ईश्वर की वंदना करता हूँ, जो तलवार, छुरा, बाण, बरछा और ढाल का स्वामी है. और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है. जिनके पास पवन वेग से दौड़ने वाले घोड़े हैं.
2 – औरंगजेब के कुकर्म —
तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त, खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त.
वजा खानए खाम करदी बिना, बराए दरे दौलते खेश रा.
तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा, और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी. और अपना आलीशान महल तैयार किया.
3 – अल्लाह के नाम पर छल —
न दीगर गिरायम बनामे खुदात, कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात.
ब सौगंदे तो एतबारे न मांद, मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद.
तेरे खु-दा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा, क्योंकि तेरा खु-दा और उसका कलाम झूठे हैं. मुझे उनपर यकीन नहीं है . इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा.
4 – छोटे बच्चों की हत्या —
चि शुद शिगाले ब मकरो रिया, हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा.
चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार, कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार.
यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ. अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है. जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा.
5 – मु-सलमानों पर विश्वास नहीं —
मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त, कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त.
न कतरा मरा एतबारे बरूस्त, कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त.
कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार, हमा रोजे आखिर शवद खारो जार.
अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम, मारा एतबारे न यक जर्रे दम.
मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है. तेरी किताब (कु-रान) और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं. जो भी कु-रान पर विश्वास करेगा, वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा. अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए, तो उस पर यकीन नहीं करना चाहिए.
6 – दुष्टों का अंजाम —
कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह, कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह.
कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त, हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त.
सिकंदर कहाँ है, और शेरशाह कहाँ है, सब जिन्दा नहीं रहे. कोई भी अमर नहीं हैं, तैमूर, बाबर, हुमायूँ और अकबर कहाँ गए. सब का एकसा अंजाम हुआ.

7 – गुरूजी की प्रतिज्ञा —
कि हरगिज अजां चार दीवार शूम, निशानी न मानद बरीं पाक बूम.
चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें, जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें.
चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त, हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त.
हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे. मेरे शेर जब तक जिन्दा रहेंगे, बदला लेते रहेंगे. जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है.

8 – ईश्वर सत्य के साथ है —
इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद, अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद.
उदू दुश्मनी गर हजार आवरद, न यक मूए ऊरा न जरा आवरद.
यदि ईश्वर मित्र हो, तो दुश्मन क्या क़र सकेगा, चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले. यदि हजारों शत्रु हों, तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है. सदा ही धर्म की विजय होती है.

गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि अब भी शांतिप्रिय — सिखों से उलझाने से कतराते हैं. वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते . इसलिए उनसे दूर ही रहो.

इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आप लोग गुरु गोविन्द साहिब कि वाणी को आदर पूर्वक पढ़ें, और श्री गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चों के महान बलिदानों को हमेशा स्मरण रखें. और उनको अपना आदर्श मनाकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएँ. वर्ना यह सेकुलर और जिहा दी एक दिन हिन्दुओं को विलुप्त प्राणी बनाकर मानेंगे.
गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है

सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, बढे धर्म हिन्दू सकल भंड भागे

The Zafarnāma ਜ਼ਫ਼ਰਨਾਮਾ, ظفرنامہ‎, > Declaration of Victory was a spiritual victory letter sent by Guru Gobind Singh Ji in 1705 to the Mughal Emperor of India, Aurangzeb after the Battle of Chamkaur. The letter is written in Persian verse.
Share it

Source-Vedic Sikhism.

कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा की युगल रचनाधर्मिता पर केंद्रित ‘सरस्वती सुमन’ का संग्रहणीय विशेषांक

हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में आदिकाल से ही तमाम साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसी कवि, लेखक या साहित्यकार को अगर ऐसा जीवनसाथी मिल जाए जो खुद भी उसी क्षेत्र से जुड़ा हो तो यह सोने पर सुहागा जैसी बात होती है। एक तरीके से देखा जाए तो ऐसे लेखकों या लेखिकाओं को उनके घर में ही पहला श्रोता, प्रशंसक या आलोचक मिल जाता है। इसी कड़ी में देव भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के देहरादून से प्रकाशित ‘सरस्वती सुमन’ मासिक पत्रिका ने हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय युगल जोड़ी आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता पर केंद्रित 80 पेज का शानदार विशेषांक दिसंबर-2024 में प्रकाशित किया है। इसमें दोनों की चयनित कविताओं, लघुकथाओं, कहानियों, लेखों को सात खंडों में शामिल किया गया है, वहीं विभिन्न पन्नों पर उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटती तस्वीरों के माध्यम से इसे और भी रोचक बनाया गया है। कवर पेज पर इस युगल की खूबसरत तस्वीर पहली ही नज़र में आकृष्ट करती है।

अपने प्रकाशन के 23 वर्षों में ‘सरस्वती सुमन’ पत्रिका ने तमाम विषयों और व्यक्तित्वों पर आधारित विशेषांक प्रकाशित किये हैं, परंतु किसी साहित्यकार दंपति के युगल कृतित्व पर आधारित इस पत्रिका का पहला विशेषांक है। इसके लिए पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह और संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव हार्दिक साधुवाद के पात्र हैं। ‘वेद वाणी’ और ‘मेरी बात’ के तहत डॉ. आनंद सुमन सिंह ने साहित्य एवं संस्कृति के सारस्वत अभियान को आगे बढ़ाया है। अपने संपादकीय में डॉ. सिंह ने कृष्ण कुमार और आकांक्षा से अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में परिचय प्रगाढ़ता का भी जिक्र किया है।

सम्प्रति उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल पद पर कार्यरत, मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद निवासी श्री कृष्ण कुमार यादव जहाँ भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं, वहीं उनकी जीवनसंगिनी श्रीमती आकांक्षा यादव एक कॉलेज में प्रवक्ता रही हैं। पर सोने पर सुहागा यह कि दोनों ही जन साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में भी समान रूप से प्रवृत्त हैं। देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ ही इंटरनेट पर भी इस युगल की रचनाओं के बखूबी दर्शन होते हैं। विभिन्न विधाओं में श्री कृष्ण कुमार यादव की अब तक कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित हैं, वहीं श्रीमती आकांक्षा की 4 पुस्तकें प्रकाशित हैं।

प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह ने इस युगल विशेषांक के संबंध में लिखा है, ” यह युगल विगत लगभग 20 वर्षों से सरस्वती सुमन पत्रिका के साथ निरंतर जुड़ा है। इसलिए जब ‘युगल विशेषांक’ निकालने का विचार बना तो सबसे पहले उन्हीं से शुरुआत की जा रही है। अब तो इस युगल की दोनों पुत्रियाँ-अक्षिता और अपूर्वा भी लेखन क्षेत्र में पूरी निष्ठा के साथ जुटी हैं और अपनी शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ साहित्य सेवा में भी सक्रिय हैं। ‘युगल विशेषांक’ का उद्देश्य केवल एक साहित्यिक परिवार से साहित्य सेवियों को परिचित करवाना है और उनके लेखन की हर विधा को पाठकों के सम्मुख रखना है। अनुजवत कृष्ण कुमार यादव और उनकी सहधर्मिणी आकांक्षा यादव दोनों ही उच्च कोटि के साहित्यसेवी हैं और उनके विवाह की वर्षगांठ (28 नवंबर, 2024) पर यह अंक साहित्य प्रेमियों के लिए उपयोगी होगा ऐसी हमारी मान्यता है।“

देश-विदेश में तमाम सम्मानों से अलंकृत यादव दंपति पर प्रकाशित यह विशेषांक साहित्य प्रेमियों के लिए एक संग्रहणीय अंक है। साहित्य समाज का दर्पण है। इस दर्पण में पति-पत्नी के साहित्य को समाज के सामने लाकर ‘सरस्वती सुमन’ ने एक नया विमर्श भी खोला है। साहित्य का अनुराग होने के कारण इस तरह का एक प्रयास हमने भी अपने साहित्य लेखन के दौरान ‘सहचर मन’ (काव्य संग्रह, 2010) में कराया था, जिसमें आधी कविताएं मेरी और आधी कविताएं मेरे जीवन साथी प्रोफेसर अखिलेश चंद्र की हैं। आशा की जानी चाहिये कि अन्य पत्रिकाएँ भी इस तरह के युगल विशेषांक प्रकाशित करेंगी।  निश्चितत: इस तरह के प्रयास न केवल साहित्य में बल्कि दांपत्य जीवन में भी रचनात्मकता को और प्रगाढ़ करते हैं।

सांस्कृतिक विरासत और आयोजनों से भारत को दुनिया भर में मिली नई पहचान

आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की दृष्टि से भारत की अपनी विशेषताएं हैं, जो अन्य देशों में नहीं दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए भारत में आयोजित होने वाले धार्मिक आयोजनों एवं मेलों आदि में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं द्वारा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से इन मेलों/कार्यक्रमों में भाग लिया जाता है बल्कि इन श्रद्धालुओं द्वारा इन  स्थानों पर किये जाने वाले खर्च से स्थानीय स्तर पर व्यापार को बढ़ावा देने एवं रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित करने में भी अपना योगदान दिया जाता है। इसी प्रकार, धार्मिक पर्यटन भी केवल भारत की विशेषता है। प्रतिवर्ष करोड़ों परिवार धार्मिक स्थलों पर, विशेष महुरतों पर, पूजा अर्चना करने के लिए इकट्ठा होते है।
 जम्मू में माता वैष्णोदेवी मंदिर, वाराणसी में भगवान भोलेनाथ मंदिर, अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर, उज्जैन में बाबा महाकाल मंदिर, दक्षिण में तिरुपति बालाजी मंदिर आदि ऐसे श्रद्धास्थल है जहां पूरे वर्ष भर ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में भी करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। शीघ्र ही, 14 जनवरी 2025 से लेकर 26 फरवरी 2025 तक प्रयागराज में महाकुम्भ मेले का आयोजन किया जा रहा है। महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे। करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किया जाता है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलता ही है, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होती दिखाई देती है।

इसी प्रकार, भारत में विवाहों के मौसम में सम्पन्न होने वाले विवाहों पर किए जाने वाले भारी भरकम खर्च से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। वर्ष 2024 के, मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर के बीच, भारत में 50 लाख विवाह सम्पन्न हुए हैं। उक्त एक माह की अवधि के दौरान सम्पन्न हुए इन विवाहों पर भारतीय परिवारों द्वारा 7,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में सम्पन्न हुए विवाहों पर 5,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया था। उक्त वर्णित 50 लाख विवाहों पर औसतन प्रति विवाह 14,000 डॉलर, अर्थात लगभग 13 लाख रुपए की राशि का खर्च किया गया है एवं 50,000 विवाहों पर तो एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि का खर्च किया गया है।

भारत में प्रति विवाह होने वाला औसत खर्च, परिवार की औसत प्रतिवर्ष की कुल आय का तीन गुणा एवं देश में औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के 5 गुणा के बराबर रहता है। भारत में विवाहों पर पूरे वर्ष में कुल 13,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। चीन में प्रतिवर्ष विवाहों पर 17,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आगामी वर्ष में भारत, विवाहों पर किए जाने वाले खर्च की दृष्टि से, चीन को पीछे छोड़कर पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ विवाह सम्पन्न होते हैं। भारत में सर्दियों के मौसम को विवाहों का मौसम कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं क्योंकि पूरे वर्ष भर में सम्पन्न होने वाले विवाहों में से लगभग 50 प्रतिशत विवाह सर्दियों के मौसम में ही सम्पन्न होते हैं।

भारत में विवाहों पर होने वाले भारी भरकम राशि के कुल खर्च में से प्रीवेडिंग फोटोग्राफी, वेडिंग फोटोग्राफी, पोस्टवेडिंग फोटोग्राफी पर लगभग 10 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जाता है। विवाह के स्थान के चयन एवं साज सज्जा पर वर्ष 2023 में 18 प्रतिशत की राशि का खर्च किया गया था, जो वर्ष 2024 में बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया है क्योंकि भारतीय परिवारों द्वारा विवाह अब अन्य शहरों यथा गोवा, पुष्कर, उदयपुर एवं केरला जैसे स्थानों पर सम्पन्न किया जा रहे हैं। खानपान आदि पर कुल खर्च का लगभग 10 प्रतिशत भाग खर्च किया जा रहा है। म्यूजिक आदि पर लगभग 6 प्रतिशत की राशि का खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार, ज्वेलरी, ऑटो बाजार एवं सोशल मीडिया आदि पर भी अच्छी खासी राशि का खर्च  किया जाता है। इससे, उक्त समस्त क्षेत्रों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते हैं। अतः भारत में विवाहों के मौसम में होने वाले भारी भरकम राशि के खर्च से देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को तेज करने में सहायता मिलती है।

हाल ही में सम्पन्न हुए विवाहों के मौसम में भारतीय परिवारों द्वारा किए गए खर्च के चलते अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 की तृतीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को गति मिलेगी जो द्वितीय तिमाही में गिरकर 5.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई थी। विनिर्माण क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र में विकास दर अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। बंग्लादेश में राजनैतिक अस्थिरता के चलते रेडीमेड गार्मेंट्स के क्षेत्र में विनिर्माण इकाईयां बंद हो रही हैं एवं वैश्विक स्तर पर रेडीमेड गर्मेंट्स के क्षेत्र में कार्यरत सप्लाई चैन की इकाईयां बांग्लादेश के स्थान पर अब भारत से निर्यात को प्रोत्साहित कर रही हैं। जिससे भारत में रेडीमेड गर्मेंट्स एवं फूटवीयर उद्योग में कार्यरत इकाईयों को इन उत्पादों को अन्य देशों को निर्यात करने के ऑर्डर लगातार बढ़ रहे हैं।

उक्त कारकों के चलते भारत में परचेसिंग मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स नवम्बर 2024 माह के 58.6 से बढ़कर वर्तमान में 60.7 हो गया है। इस इंडेक्स के ऊपर जाने का आश्य यह है कि विनिर्माण के क्षेत्र में गतिविधियों में गति आ रही है। इसके साथ ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी 6.21 प्रतिशत से घटकर 5.48 प्रतिशत पर नीचे आ गया है, अर्थात, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर भी नियंत्रण में आ रही है। जिससे आगे आने वाले समय में नागरिकों की खर्च करने की क्षमता में वृद्धि होगी। हाल ही के वर्षों में विनिर्माण उद्योग, सेवा क्षेत्र एवं गिग अर्थव्यवस्था में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित हुए हैं और वर्ष 2005 के बाद से इस वर्ष विभिन्न कम्पनियों द्वारा सबसे अधिक नई भर्तियां, रिकार्ड स्तर पर, की गई हैं। इस सबके साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा फरवरी 2025 माह में मोनेटरी पॉलिसी में रेपो दर में कमी किए जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर अब नियंत्रण में आ रही है। इस वर्ष भारत में मानसून का मौसम भी बहुत अच्छा रहा है एवं विभिन्न फसलों की बुआई रिकार्ड स्तर पर हुई है जिससे इन फसलों की पैदावार भी रिकार्ड स्तर पर होने की सम्भावना है। किसानों के हाथों में अधिक पैसा आएगा एवं उनके द्वारा विभिन्न उत्पादों की खरीद पर भी अधिक राशि का खर्च किया जाएगा। कुल मिलाकर, इन समस्त कारकों का सकारात्मक प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर होने जा रहा है और वित्तीय वर्ष 2024-25 की तीसरी एवं चोथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के तेज रहने की प्रबल सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक,
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

लोकमंगल की कामना की भाषा है हिन्दी

10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस विशेष

भाषाएँ परस्पर संवाद और संचार की माध्यम होती हैं, जिनकी व्यापकता इस बात से सिद्ध होती है कि उनमें कितना सृजन लोकमंगल को समर्पित है। वैश्विक रूप से हिन्दी वर्तमान ही नहीं अपितु कालातीत रूप से सुदृढ़, सुस्थापित और सुनियोजित संपदा का बाहुल्य है। वर्षों से हिन्दी को हीनता बोधक दिखाने की यह कुदृष्टि वर्तमान में जाकर कमज़ोर हो रही है, जब अमेरिका या जापान का कोई व्यापारी हिन्दुस्तान में दुनिया का सबसे महँगा फ़ोन बेचना चाहता है तो उसका विज्ञापन हिन्दी में तैयार करवाता है, जब सोशल मीडिया की अलग दुनिया बसाई जाती है तो उसके भी भाषाई तरकश में हिन्दी का तूणीर अनिवार्यत: रखा जाता है।

सिलिकॉन वैली में बैठने वाले इंजीनियर भी हिन्दी भाषा के घटकों को एकत्रित करने के लिए प्रोग्रामिंग करते हैं और गूगल जैसा दुनिया का सबसे तेज़ सर्च इन्जन भी हिन्दी की महत्ता को स्वीकार करता है। यूएन अपनी मौलिक भाषाओं में हिन्दी को भी स्थान देता है ताकि विश्व के सबसे बड़े देश तक अपनी बात आसानी से पहुँचा सके, बीबीसी जैसी सर्वोच्च समाचार एजेंसी भी हिन्दी संस्करण बाज़ार में लाती है ताकि हिन्दुस्तान में जगह बना सके।

सैंकड़ों ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, फिर भी हिन्दुस्तानी शैक्षणिक मठाधीशों को कार्यव्यवहार में उसी गुलामी की भाषा अंग्रेज़ी स्वीकार है जिसने भारत को गिरमिटियों और सपेरों का देश साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज जब सरकारें और यूँ कहें कि सारा देश भारत की आज़ादी का अमृत महोत्सव मना कर अमृत काल की ओर बढ़ रहा है, देश से गुलामी के प्रतीकों को हटाया जा रहा है, ऐसे शहरों और स्थानों का नाम बदला जा रहा है जो गुलाम भारत की यादों को ताज़ा करते हैं, उस दौर में गुलामी की भाषा को कण्ठहार बनाना कौन-सी समझदारी है!

बहरहाल, यदि हिन्दी की वैश्विक स्थिति देखी जाए तो गर्व करने के सैंकड़ों अवसर उपलब्ध हैं, जैसे कि वर्तमान में हिन्दी, एशियाई भाषाओं से ज़्यादा एशिया की प्रतिनिधि भाषा है। साथ ही, भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ फ़िज़ी की भी राजभाषा है। मॉरिशस, त्रिनिदाद, गुयाना, और सूरीनाम में हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।

एथनोलॉग के मुताबिक, हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है और आँकड़ों पर नज़र दौड़ाई जाए तो 140 करोड़ लोगों की भाषा होने के कारण हिन्दी विश्व में अग्रणीय भाषा है। अमेरिका के 80 से ज़्यादा विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई की सुविधा है। हिन्दी का कथा साहित्य, फ़्रेंच, रूसी, और अंग्रेज़ी से अव्वल है।

भारत इस समय विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है, और सबसे बड़े बाज़ार की भाषा सबसे बड़ी होती है, उसके बावजूद भी भारतीय सरकार या कहें तथाकथित गुलामी से प्रेरित लोगों को आज भी अंग्रेज़ी में अपना भविष्य नज़र आता है जबकि अंग्रेज़ी विश्व बाज़ार में पाँचवें स्थान से भी नीचे है।

हिन्दी हेय की नहीं, बल्कि गर्व की भाषा है। समृद्ध साहित्य में वसुधैव कुटुंबकम् जैसी लोकमंगल की कामनाएँ विपुल हैं। किन्तु भारत के कई राज्यों में यहाँ तक कि कई हिन्दी भाषी राज्यों में भी अंग्रेज़ी विद्यालयों में बच्चों को हिन्दी बोल भर देने पर दंडित कर दिया जाता है, यह दुर्भाग्य है।

आज मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्यों में मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी अब हिन्दी में होने लग गई, लोकाचार की भाषा के रूप में हिन्दी की लोक स्वीकृति है।

समग्रता के झण्डे को थामे चलने वाली एकमात्र जनभाषा हिन्दी होने के बाद भी अपने ही देश में आज हिन्दी के साथ दुर्व्यवहार जारी है। अब जबकि विश्व ने भी भारतीय संस्कृति की पहचान और परिचय के रूप में हिन्दी को स्वीकृति दे ही दी है, फिर हमें क्या आवश्यकता है गुलामी के मुकुट को माथे पर धारण करने की?

अब तो तत्काल हिन्दी को स्वीकार कर भारतीय भाषाओं के वैभव को उन्नत करना चाहिए। अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, मैंडरिन, जर्मनी अथवा अन्य विदेशी भाषाओं को सीखना-सिखाना चाहिए किन्तु उन्हीं भाषाओं को सबकुछ मानकर अपनी जनभाषा से दूरी बनाना न तो तार्किक है और न ही न्यायोचित।

हिन्दी की वैश्विक स्थिति को और अधिक मज़बूत करने के लिए, विधि, विज्ञान, वाणिज्य, और नई तकनीक के क्षेत्र में पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराने की ज़रूरत है। इसके लिए सभी को मिलकर हिन्दी के विकास में योगदान देना होगा। साथ ही, गुलाम देश की तरह नहीं, बल्कि आज़ाद और विश्व गुरु देश की तरह व्यवहार करते हुए लोकमंगल की भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
पता: 204, अनु अपार्टमेंट, 21-22 शंकर नगर, इंदौर (म.प्र.)
संपर्क: 9893877455 | 9406653005

अणुडाक: arpan455@gmail.com

अंतरताना:www.arpanjain.com[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियानभाषा समन्वय आदि का संचालन  रहे हैं]