Tuesday, November 26, 2024
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फुल एक्शन में योगी और उनकी बुलेट ट्रेन से घबराए विरोधी

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के 33 सीटों पर सिमट जाने के बाद से ही ऐसा प्रतीत होने लगा था कि प्रदेश में समाजवादी समर्थक गुंडे एक बार फिर एक्टिव हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अराजकतावादी अपराधी, सपा के प्रति सहानुभूति रखने वाले भ्रष्टाचार में संलिप्त कुछ अफसर व पुलिसकर्मी समाजवादी पार्टी की जीत के जश्न में यह भूल गए थे कि उत्तर प्रदेश में अभी भी योगी जी का ही राज है । जगह- जगह हिंसा व डर का वातावरण पैदा कर यह दिखाने का प्रयास किया जा रहा था कि अब तो योगी जी उप्र से जाने ही वाले हैं क्योंकि वह चुनावों में पराजित हो चुके हैं और बीजेपी आलाकमान उन्हें हटाने जा रहा है। अब यही जश्न अराजक समाजवादी तत्वों के लिए परेशानी का सबब बनने जा रहा है।

बीते दिनों मोहर्रम के अवसर पर कइ जगह जुलूसों में जय फिलीस्तीन का नारा लगाते हुए उसका झंडा फहराकर प्रदेश में तनाव पैदा करने का असफल प्रयास किया गया। प्रदेश के शासकीय विद्यालयों में शिक्षकों की डिजिटल उपस्थिति को लेकर प्रदेशभर में हंगामा किया गया। मीडिया पर उनको हटाए जाने के भ्रामक समाचार चलाए गए किन्तु मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरी ताकत के साथ सकारात्मक भाव से इनका सामना करते रहे ।

विपक्ष यह दिखाने का असफल प्रयास करता रहा कि योगी आदित्यनाथ एक मुख्यमंत्री के रूप में अपनी लोकप्रियता खो रहे हैं जबकि वास्तकिता यह है कि योगी आदित्यनाथ कभी भी कमजोर नहीं हुए थे अपितु वह प्रदेश में पनप रहे नकारात्मक वातावरण को दूर करने के के लिए अवसर खोज रहे थे और वह उन्हें मिल भी गया है। कुछ राजनैतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि यूपी में अब योगी का बुलडोजर थम जाएगा किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ अपराधियों व अवैध अतिक्रमण पर योगी का बुलडोज़र लगातार चल रहा है ।

दो अपराधिक घटनाओं – लखनऊ में लफंगों द्वारा बारिश के पानी में महिला को गिराने तथा अयोध्या में एक नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार की घटना में आरोपित समाजवादी पार्टी के नेता मोईद खान पर योगी जी की बुलेट ट्रेन चलनी आरम्भ हो गई है । दोनों ही घटनाओं में सख्त एक्शन लिया जा रहा है । अयोध्या व लखनऊ की घटना पर कड़ी कार्यवाही की बात करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा सत्र में, “अब इन लोगों के लिए सद्भावना ट्रेन नहीं बुलेट ट्रेन ही चलेगी” कहकर प्रदेश की जनता का दिल जीत लिया है।

अयोध्या गैंगरेप सहित लखनऊ व अन्य कई जिलो में घटी घटनाओं के तार समाजवादियों के साथ जुड़ने के कारण समाजवादी दल व उनके नेता तनाव में आ गये हैं और अब खुलकर अपराधियों का बचाव कर रहे हैं विशेषकर अयोध्या के बलात्कार के आरोपित मोईद खान का क्योंकि उनके वोट बैंक का मामला है।

समाजवादी नेता अखिलेश यादव अयोध्या की बालिका के प्रत्यक्ष अपराधी सपा नेता मोईद खान का डीएनए कराने की मांग कर रहे हैं। स्वाभाविक है डीएनए टेस्ट में सामूहिक बलात्कार का एक ही अपराधी पकड़ा जाएगा और बाकी छूट जायेंगे । वहीं चाचा शिवपाल यादव दो कदम आगे बढ़कर नार्को टेस्ट करवाने की मांग करके मुस्लिम वोट बैंक को साध रहे हैं ।

अयोध्या व लखनऊ की घटना ने समाजवादियों के पीडीए और कांग्रेस की मोहब्बत की दूकान की पोल खोल कर रख दी है। साथ ही, “लड़की हूं और लड़ सकती हूं” डायलॉग वाली प्रियंका भी लड़ने के फ्रेम में नजर नहीं आ रही हैं।आज उन लोगो ने अयोध्या की गैंगरेप की घटना से दूरी बना ली है जिन्होंने हाथरस व उन्नाव की घटना पर छाती पीटी थी। हाथरस की घटना पर संपूर्ण विपक्ष मजमा लगाने हाथरस पहुंच रहा था आज मुंह छिपाकर बैठ गया है।

अयोध्या की घटना पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष को उसी की भाषा में जवाब देने का मन बनाया और वह विधानसभा सत्र समाप्त होते ही पीड़ित परिवार से मिले और अपराधियों पर कड़ी कार्यवाही करने का भरोसा दिया। उसके बाद भाजपा व गठबंधन में शामिल सहयोगी नेताओं का भी पीड़ित परिवार के घर पहुंचना प्रारम्भ हो गया। प्रदेश सरकार के कई मंत्री व सांसदों का प्रतिनिधमंडल भी उनके घर पहुंचा और अपनी संवेदना प्रकट की। जबकि समाजवादी पार्टी जिसने पीडीए का नारा दिया उसे केवल ए याद रह गया है और वह वोट बैंक के आधार पर अपराधी का बचाव करती दिख रही है। पीड़िता की मां का कहना है कि सपा के स्थानीय नेता उसके परिवार को लगातार धमकी दे रहे हैं।

अयोध्या का सपा नेता मोईद खान अपराधी प्रवृत्ति का रहा है।भदरसा में वर्ष 2012 में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दिन उपद्रव हुआ था जिसमें दुर्गा प्रसाद गुप्त की हत्या कर दी गई थी इस प्रकरण में 13 नामजद अपराधियों के साथ उसका नाम भी शामिल है। अब मोईद खान और उसके सहयोगी राजू के खिलाफ गैंगस्टर की तैयारी चल रही है। दुष्कर्म आरोपित मोईद खान का 200 वर्ग मीटर शमशान भूमि पर भी अवैध कब्जा है और बेकरी जिस पर बुलडोजर चलाया गया है वह भी सरकारी जमीन पर ही थी। भदरवा के सपा नेता मोईद खान की पीडीए सांसद अवधेश प्रसाद सिंह की तस्वीरें साफ हैं तथा वह उनके अगल -बगल बैठा दिखाई पड़ रहा है। इतनी शर्मनाक घटना के बाद भी सांसद अवधेश प्रसाद सिंह, कुछ पता ही नहीं होने की बात कह रहे हैं। ये बात भी महत्वपूर्ण है कि मोईद खान की राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से हुयी थी ।

घिर तो गया है सपा का पीडीए- अयोध्या की घटना के बाद अब सैफई के राजा अखिलेश यादव और अयोध्या के राजा अवधेश प्रसाद सिंह अपने ही बुने खेल में बुरी तरह से घिर गये हैं। समाजवादी पार्टी जिस फैजाबाद सीट से जीत कर उठी थी अब वहीं से वह फंसती नजर आ रही है । अयोध्या के भदरसा में पिछड़ी जाति की 12 साल की किशोरी के साथ गैंगरेप के मामले को लेकर घमासान मचा है । समाजवादी पार्टी तिलमिलाई हुई है क्योंकि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर संदेश स्पष्ट है।

अयोध्या की घटना पर सत्ता पक्ष का हमलावर होना सही भी है क्योंकि समाजवादी पार्टी ने जब से फैजाबाद संसदीय सीट जीती है तब से वह अवधेश प्रसाद सिंह को ट्राफी की तरह लेकर घूम रही है। संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सपा नेता अखिलेश यादव के मध्य में उन्हें बताया जा रहा है। अभी सपा नेता अपने सांसदों के साथ मुंबई गये वहां पर मातोश्री में में अवधेश प्रसाद सिंह का भव्य स्वागत किया गया, इसी प्रकार अखिलेश यादव अवधेश प्रसाद सिंह को कोलकाता भी लेकर गये । कांग्रेस और सपा फैजाबाद की जीत को हिंदुत्व की हार बता रहे हैं । गुजरात यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने भी फैजाबाद में सपा की जीत का जश्न मनाते हुए कहा था कि उन्होंने फैजाबाद में आडवाणी जी के मुद्दे को धूल चटा दी है।

अब मोईद खान का प्रकरण सामने आने के बाद समाजवादियों के पीडीए का सच भी सामने आ गया है। यही कारण है कि अब सपा नेता अयोध्या गैंगरेप की घटना को पीडीए के खिलाफ भाजपा की साजिश बता रहे है किंतु अब सच्चाई सामने आ चुकी है। अब सपा नेताओं के बयानों से केवल यह सिद्ध हो रहा है कि सपा अपराधियों की संरक्षक पार्टी है।

पीड़िता को अच्छे इलाज के लिए कड़ी सुरक्षा के बीच लखरनऊ रेफर करने सहित, धमकीबाज सपा नेताओं पर एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद अयोध्या की राजनीतिक बयार भी अब बदल रही है, स्थानीय स्तर पर भी हिंदू सक्रिय हो चुके हैं तथा सपा के गुंडाराज के खिलाफ वातावरण बन रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फुल एक्शन मोड में हैं। विधानसभा सत्र में भी उन्होंने वही बोला था जिस्की उत्तर प्रदेश की जनता उनसे अपेक्षा करती है और कर भी वही रहे हैं जो जनता अपेक्षा करती है।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित

फोन नं. – 9198571540

एक अध्यात्मिक जीवन जीते हैं मुख्य न्यायाधीश श्री चन्द्रचूड़

मुख्य न्यायाधीश श्री डी वाई चंद्रचूड़ चमड़े का पर्स, बेल्ट या चमड़े से बनी किसी और चीज को हाथ तक नहीं लगाते. उनकी पत्नी भी चमड़े के उत्पादों का प्रयोग नहीं करते। दिल्ली हाई कोर्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने यह खुलासा किया. उन्होंने बताया कि बेटियों के कहने पर उन्होंने वीगन लाइफस्टाइल अपना ली.
श्री चन्द्रचूड़ की गोद ली हुई दो बेटियां हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे, तब उन्होंने दो स्पेशल बच्चियों को गोद लिया था. बड़ी बेटी का नाम प्रियंका तो छोटी का माही है. जस्टिस चंद्रचूड़ जब दिल्ली आए तो बच्चियों को अपने साथ ले आए. दोनों बच्चियां मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली हैं. द वीक को दिए एक इंटरव्यू में सीजेआई ने बताया था कि इलाहाबाद में बच्चियों के लिए कोई ढंग का स्कूल नहीं था, इसलिए उनके पढ़ने-लिखने की व्यवस्था घर पर ही की गई थी. दिल्ली आया तो यहां ‘तमन्ना’ नाम के स्कूल में दाखिला करा दिया.

उनकी बेटियां बहुत तेज दिमाग की हैं और और अपने बूते संस्कृति स्कूल में दाखिला लिया. बकौल सीजेआई उनकी दोनों बेटियां अक्सर उनके फोन में नए-नए गाने डाउनलोड करती रहती हैं. वह कोर्ट के रास्ते इन गानों को सुना करते हैं.

वे कहते हैं कि कुछ महीने पहले मैंने और मेरी पत्नी ने वीगन डाइट और लाइफस्टाइल अपना लिया, क्योंकि बेटियों ने कहा कि हमें क्रूरता मुक्त जीवन जीना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वीगन लाइफस्टाइल अपनाने के बाद अब मैं सिल्क या लेदर से बना कोई भी समान नहीं खरीदता. मेरी पत्नी भी सिल्क और लेदर प्रोडक्ट नहीं खरीदतीं

आप ने वर्ष 1979 में सेंट स्टीफन कॉलेज नई दिल्ली से अर्थशास्त्र और गणित विषय के साथ स्नातक ( ऑनर्स ) की उपाधि प्राप्त की। ऑनर्स की सूची में दिल्ली विश्वविद्यालय में आप ने सर्वोच्च स्थान पाया। वर्ष 1982 में आप ने दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1983 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से एल. एल. एम. की उपाधि प्राप्त की।] वर्ष 1986 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2015 में डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ ने एल. एल. डी. की मानद उपाधि दी।

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री डी वाई चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था। इनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भारत के सुप्रीम कोर्ट के 16वें और सबसे लंबे समय तक सेवारत मुख्य न्यायाधीश थे। इनकी माता प्रभा शास्त्रीय संगीतज्ञ हैं।

चंद्रचूड़ ने बंबई उच्च न्यायालय में वकील के रूप में अभ्यास किया तथा संवैधानिक कानून और सार्वजनिक कानून में विशेष रूचि ली। वर्ष (1998-2000) में चंद्रचूड़ एडिशनल सोलिस्टर जनरल ऑफ इंडिया नियुक्त हुए। 29 मार्च 2000 को बम्बई हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज नियुयक्त हुए। 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद पर आसीन हुए। 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के जज बने।

जस्टिस चंद्रचूड़ की पहली पत्नी का साल 2007 में कैंसर के चलते निधन हो गया था. पहली पत्नी से उनके दो बेटे अभिनव और चिंतन चंद्रचूड़ हैं. साल 2008 में उन्होंने कल्पना दास चंद्रचूड़ से दूसरी शादी की.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आया तो हिन्दी सुनाई नहीं पड़ती थी

नामवर सिंह की जयंती पर राजकमल ब्लॉग में सुमन केशरी द्वारा सम्पादित किताब ‘जेएनयू में नामवर सिंह’ का एक अंश जिसमें नामवर सिंह ने जेएनयू में भारतीय भाषा विभाग की शुरूआत से जुड़ें कुछ संस्मरण साझा किए गए हैं।

…तब हिन्दी-उर्दू के हम सिर्फ चार अध्यापक थे और छात्र भी छह, वे भी हिन्दी के। एक नया सेन्टर इसी पूँजी से शुरू हुआ था। आज उस सेन्टर में हिन्दी-उर्दू के बारह अध्यापक हैं। छात्रों की संख्या भी साठ से ऊपर ही होगी। आँकड़े के हिसाब से यह तीन गुनी बल्कि और ज्यादा तरक्की कही जाएगी। लेकिन जो सपना था, जो विज़न था उसको देखते हुए शायद यह बहुत सन्तोषप्रद न हो। प्रो. अनिल भट्टी को स्मरण होगा और प्रो. प्रमोद तालगिरी को भी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में आने से पहले ‘स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज’ की ओर से एक सेमिनार किया गया था।

उस सेमिनार की चर्चा का मुख्य विषय था कि भारतीय भाषाओं का जो सेन्टर बनेगा या बनना चाहिए उसका रूप क्या होगा? और मुझे उसमें भाग लेने के लिए जोधपुर से बुलाया गया था। उस सेमिनार ने मेरे सामने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का जो रूप रखा वह मेरे लिए एक आकर्षण और चुनौती की चीज थी। इन अठारह वर्षों में जो कुछ किया, जो कुछ हुआ, जो कुछ लिखा; उसमें साल भर की सबेटिकल छुट्टी के दौरान लिखी हुई ‘दूसरी परम्परा की खोज’ मेरे लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की सबसे बड़ी उपलब्धि है। उस किताब के लिए मैं विश्वविद्यालय का ऋणी हूँ।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आने से पहले ‘मुक्तिबोध’ की चार पंक्तियाँ मेरे दिमाग में बराबर गूँजती रहती थीं। आज भी मेरे साथ हैं और आगे भी रहेंगी। और वह सवाल था कि “अब तक क्या किया/जीवन क्या जिया/ज्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कम/मर गया देश, अरे, जीवित रह गए तुम!!” यह एक चुनौती थी। हमने इस समाज से, इस देश से कितना लिया है! आज इनसान से एक दर्जा नीचे रहनेवालों की तादाद हमारे देश में नब्बे फीसदी से ज्यादा है। हम अध्यापक और विद्यार्थी उनकी तुलना में कितनी सुविधाओं से सम्पन्न हैं?

एक ओर यह सब कुछ तो देश की जनता से ही मिला है, पैसा मिला है, सारी सुविधाएँ मिली हैं। उसकी तुलना में अगर हम देखें तो हमने क्या दिया है उन लोगों को? यह मेरे मन में बार-बार सवाल उमड़ता था और चूँकि हमारा साधन, हमारा माध्यम साहित्य है और साहित्य में भी जिसके बारे में हम कुछ थोड़ा-सा जानते हैं, वह एक भाषा का साहित्य है। उसके माध्यम से हम क्या कर सकते हैं? ये कुछ सपने थे, कुछ बेचैनियाँ थीं हमारे मन में, जिन्हें लेकर, जिनके लिए एक सही जगह की तलाश थी मेरे मन में। सच पूछें तो ख्याल थे कुछ, कुछ आइडियाज़ थे और उस नाटककार या उस ‘एक्टर’ की तरह से मुझे ‘थियेटर’ की तलाश थी, जहाँ मैं कम-से-कम वो ‘थियेटर ऑफ आइडियाज़’ कह लीजिए, ‘व्यूज’ कह लीजिए जहाँ मैं उस रंगमंच को भरे-पूरे रूप में प्राप्त करके कुछ कर दिखाऊँ। ज़ाहिर है, उसके लिए सहयोगियों की ज़रूरत थी और ऐसे कुछ सहयोगी मिले भी। एक ऐसा थियेटर भी मिला जो विचारों में उन्मुक्त था, खुला हुआ था, मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूँ कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वह सब मिला।

यह कुँवारी धरती थी, हर तरह से कुँवारी थी। मैं तो चार साल बाद आया। पर वे भाग्यशाली लोग हैं जिन्होंने सन् 1970 से इस जमीन को तोड़कर यहाँ एक नई दुनिया बनाने की कोशिश की थी। लेकिन देखते-देखते… मुझे… अगर एक पोढ़ी-पकी, बनी-बनाई हुई यूनिवर्सिटी मिली होती तो शायद मैं या हम लोग वह नहीं कर पाते जो कर सके। इसलिए हमने तो कोरी पटिया से शुरू की। कोरी स्लेट से शुरू किया था और एक हद तक यह हमारे लिए सौभाग्य की बात थी और विश्वविद्यालय भी ऐसा मिला जो लगभग एक ‘लीजेंड’ उस समय बना हुआ था। धीरे-धीरे वह ‘लीजेंड’ अब तो टूट रहा है।

उस नए दौर में आने पर, इस नई दुनिया में आने पर मेरे भीतर एक नया इनसान बना और पैदा हुआ, जिसका एहसास इन अठारह वर्षों में तो नहीं हुआ, लेकिन अब इस विश्वविद्यालय को छोड़ते हुए महसूस करता हूँ। यहाँ विद्यार्थियों से, छात्रों से जो बौद्धिक चुनौतियाँ मिलीं, अगर वे नहीं मिलतीं तो हम लोग भी उसी तरह से एक खास तरह की ‘स्मॅगनेस’ के शिकार हो गए होते। रोजमर्रा जो चुनौतियाँ हमें विद्यार्थियों से कक्षाओं के बाहर होस्टल में, सड़कों पर, सेमिनार में मिलीं और उसके साथ ही मैं बहुत भाग्यशाली हूँ… किसी दूसरे विश्वविद्यालय में शायद वह अवसर न मिलता जहाँ मुझसे बेहतर, मुझसे ज्यादा अच्छे दूसरे शास्त्रों में, दूसरी विधाओं में, चाहे वह सामाजिक विज्ञान हो चाहे वह अन्तर्राष्ट्रीय विद्या संस्थान हो या विज्ञान के लोग हों, उन लोगों से मिलने, जानने और सीखने का मुझे अवसर मिला।

एक ऐसी ‘लाइब्रेरी’ मिली और उस दौर के एक ऐसे ‘लाइब्रेरियन’ मिले… मेरी ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की ‘लाइब्रेरी’ है। अगर कोई हाजिरी की किताब रहती तो पता चलता कि वहाँ जानेवालों में शायद सबसे नियमित यही आदमी था। कभी-कभी उन घड़ियों में भी, जब जानेवाले थोड़े लोग होते थे। बहुत पाया है मैंने उससे, बहुत सीखा है। इसका पूरा एहसास है मुझे। बाहरी आचार-विचार को देखनेवाले लोग नहीं जानते कि किसी आदमी के शरीर के अन्दर दौड़नेवाली वो हजारों नसें हैं, जो खून और खुराक पहुँचाती हैं। वो अदृश्य दान इस विश्वविद्यालय का मेरे लिए रहा है। कहीं पढ़ा था कि दत्तात्रेय के चौबीस गुरु थे। चौबीस तो खैर कहने के लिए थे। मशहूर यह था कि वे जहाँ भी जाते, वहाँ कुछ-न-कुछ सीखने के लिए मिल जाता। जैसे ओखली में मूसर चलानेवाली, धान कूटनेवाली औरत हो और उसकी चूड़ी झनझना रही हो, तो उससे भी दत्तात्रेय को कोई एक ज्ञान मिल जाया करता था। ऐसा जिज्ञासु होने का दावा तो मैं नहीं कर सकता, लेकिन मैंने कोशिश की है कि यहाँ के प्रवास में जितने लोगों से सम्भव है, ज्ञान बटोर लूँ। वह बटोरी हुई पूँजी इस कदर मेरे मानस का हिस्सा बन चुकी है कि उसके मूल स्रोतों के नाम भी आज याद नहीं रहे।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आया तो हिन्दी सुनाई नहीं पड़ती थी। हिन्दी बोलनेवाले लड़के थे लेकिन उन्हें संकोच होता था। एक खास तरह की आधुनिकता थी। उसे मैं अंग्रेजियत नहीं कहूँगा। उसमें कुछ ‘बोहेमियन’ तत्त्व मिला हुआ था। लेकिन जिसे कहें कि एक गरीबी का भी गर्व हुआ करता है, एक गँवारपन का भी स्वाभिमान हुआ करता है, उस स्वाभिमान के साथ इस पूरे विश्वविद्यालय में यह गँवार आदमी धोती-कुर्ता पहने हुए खड़ा रह सका। यह ताकत मुझे अपने गाँव के लोगों से, बनारस से मिली थी। मुझे लगता था कि यह देसीपन इस विश्वविद्यालय के लिए बहुत ज़रूरी है। ये विश्वविद्यालय उस विदेशी हवा-पानी के खुराक से जवाहरलाल नेहरू के नाम को सार्थक नहीं कर पाएगा। ये देसीपन अपने आप इस विश्वविद्यालय में जुड़कर एक नई ताकत, एक नई शक्ति बना। जो मुझे बल देता रहा है।

मित्रों ने जिक्र किया कि हिन्दी की जो ‘स्टीरियो टाइप’ एक तस्वीर बनी थी, उसे मैं तोड़ना चाहता था और उस तस्वीर को तोड़ने के लिए ज़रूरी था कि हिन्दी केवल अपनी पहचान अकेले दम पर, केवल हिन्दी को लेकर नहीं बना सकती। इसके लिए सगी बहन उर्दू का साथ जरूरी है। स्कूल बोर्ड की अपनी पहली बैठक में सेन्टर का पाठ्यक्रम प्रस्तुत करते हुए मैंने प्रस्तावना के रूप में कहा था और विश्वविद्यालयों में उर्दू और हिन्दी के विभाग जो जी चाहे करें, हम तो जेएनयू में, हमारा सेन्टर ऐसा बने जहाँ कि गंगा जमुनी संगम चाहते हैं। बड़ा फर्क पड़ेगा इससे। प्रस्ताव का स्वागत करनेवालों में एन. के. वी. मूर्ति पहले सदस्य थे, जो इस विश्वविद्यालय के प्रथम रजिस्ट्रार रह चुके थे।

और अब भी यह अकेला विश्वविद्यालय है जहाँ हिन्दी के विद्यार्थी को उर्दू पढ़ना और उर्दू के विद्यार्थी को हिन्दी पढ़ना अनिवार्य है। दूसरे विश्वविद्यालयों में जहाँ दोनों भाषाएँ पढ़ाने और पढ़नेवाले एक-दूसरे से लड़ने के लिए बदनाम हैं, हमारे छात्रों ने, हमारे सहयोगियों ने दोस्ती की एक मिसाल पेश की है।… प्रेमचन्द के ‘गोदान’ उपन्यास में होरी की आखिरी बात याद आती है। होरी कहता है, “जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा उसी के दुखों का नाम तो मोह है। पाले हुए कर्तव्यों और निपटाए हुए कामों का क्या मोह! मोह तो उन्हें छोड़ जाने का है जिनके साथ हम अपना कर्तव्य निभा नहीं सके, उन अधूरे मनसूबों में है, जिन्हें हम पूरा नहीं कर सके।”

इस क्षण जबकि हर तरह के मोह से आदमी को मुक्त होना चाहिए, अजीब बात है कि इनसान होने के नाते उस मोह से, जो अधूरे मनसूबे हैं, उनसे मुक्त होना बड़ा कठिन लगता है। एक सपना था कि हिन्दी-उर्दू के साथ कम-से-कम दक्षिण की एक भाषा हो, पश्चिम की एक भाषा हो, पूरब की एक भाषा हो और आधार रूप में संस्कृत हो। इन्हें मिलाकर कम-से-कम एक ऐसे भारतीय साहित्य, तुलनात्मक साहित्य की तस्वीर रखी जाए, जहाँ हर भाषा अपनी पहचान कायम रखते हुए भारतीय साहित्य की व्यापकता का आभास दे। फिर, ‘स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़’ से बड़ा विदेशी भाषाओं के अध्ययन का कोई संस्थान इस देश में नहीं है। रूसी, जर्मन, फ्रेंच, स्पैनिश, चीनी, जापानी के साथ ही अरबी, फ़ारसी इत्यादि भाषाओं की सर्वोच्च पढ़ाई यहीं होती है।

ऐसे वातावरण में तुलनात्मक अनुशीलन की पद्धति अपनाकर भारतीय साहित्य क्या शक्ल ले सकता है, यह सोचते ही “तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुत हरे:। विस्मयो मे महान्यजन् हृष्यामिच पुन: पुन:।” रोमांच हो आता है इसकी कल्पना करके। यह सपना हमारा रहा है और मैं समझता हूँ कि सपना देखना छोड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि कभी-कभी सपना देखने का अधिकार भी छिन जाता है। तब हकीकत भी मुरझा जाती है और मर जाती है। मुझे उम्मीद है कि भारतीय भाषा केन्द्र आगे आनेवाले समय में, और विश्वविद्यालय का इस ओर ध्यान जाएगा, सही मायने में भारतीय भाषाओं के साहित्य का मरकज़ और केन्द्र बन सकेगा।

साभार https://rajkamalprakashan.com/blog से

शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू पद पादशाही:

क्या हिन्दू इतिहास केवल हार और असफलता का इतिहास है? क्या हिन्दूओं ने संघर्ष न करके आत्मसर्मपण किया है? हिन्दू आत्मगौरव और आत्मग्लानि का ऐतिहासिक सत्य क्या है? हिन्दू शासन, सत्ता और वीरता का ऐसा इतिहास जो पाठ्यक्रम (Syllabus) में छुपा दिया गया। उस इतिहास को बताने वाली 2 पुस्तकें।

इस्लामिक शासक तलवार के बाल पर पूरे हिंदू समाज को मुस्लिम बनाना चाहते थे। अधिकतर बड़े—छोटे हिंदू राजाओं को तलवार के ज़ोर पर या लालच दे कर अपने साथ मिला चुके थे। ऐसे में ये कल्पना भी करना कि कोई उस इस्लामी ताक़त के ख़िलाफ़ अपना राज्य खड़ा करेगा कल्पनातीत माना जाता। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू पद पादशाही वीर सावरकर ने लिखा है।

शिवाजी महाराज के साथ ही एक नए युग की शुरुआत हुई। अपने जीवन में छत्रपति शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास ने एक ऐसे राज्य की नींव रखी जो वास्तव में “सुशासन” था। परंतु इस “सुशासन” समझना आसान नहीं है, तो भी जिन परिस्थितियों में हिंदू पद पादशाही तथा इस सुशासन की स्थापना हुई वह प्रशंसनीय तथा उल्लेखनीय है। पिछले लगभग 900 साल से भारत छोटे छोटे राज्यों बँटा रहा या कोई न कोई विदेशी शक्ति भारत पर शासन करती रही।

ऐसे में ये कल्पना भी करना कि पूरे देश में राज करने वाले मुग़लों के विरुद्ध कोई हिंदू राजा नए सिरे से राज स्थापित करके उसे सुचारु रूप से चला लेगा अकल्पनीय था। सुशासन माने जवाबदेही, पारदर्शिता, पूर्वानुमान- क्षमता, सहभागिता, न्ययाचार। राम राज्य या जो संकल्पना भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाई वो सुशासन ही है अर्थात् सही ग़लत, न्याय-अन्याय, नैतिक-अनैतिक के बीच का अंतर जहां समझ आए वो सुशासन है। सुशासन की व्यवस्था के लिए अष्ट प्रधान (मंत्री मंडल) की कल्पना थी। राज्य संचालन को दो भागों में बाँटा गया एक सामान्य प्रशासन तथा दूसरा सैन्य शक्ति। शिवाजी ने कभी भी सैन्य शक्ति को लोक शासन या प्रशासन से ऊपर नहीं रखा बल्कि उसके आधीन ही रखा। अष्ट प्रधान व्यवस्था में प्रधान मंत्री या पेशवा, अमात्य या वित्तमंत्री, पन्त सचिव या सूरनवीस, मंत्री, सेनापति, सुमन्त, पंडितराव या धर्मस्व तथा न्यायाधीश थे। सबके काम,अधिकार क्षेत्र, तथा मानदेय भी तय थे।

संभाजी की गिरफ़्तारी तथा उसके बाद निर्मम हत्या इतिहास में दर्ज है। उसे मुसलमान बनने को कहा गया। मना करने पर पहले आँखें निकली गयीं, फिर जीभ काटी गयी और अंत में शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। इससे पूरे महाराष्ट्र मंडल में दुःख और क्षोभ का वातावरण बन गया। जिस प्रकार संभाजी का बलिदान हुआ, उसने एक क्रांति को जन्म दिया। तदुपरांत शिवाजी के दूसरे पुत्र राजा राम का राज्याभिषेक किया गया। खंडो बलाल उसके पालक नियुक्त हुए। छत्रपति शिवाजी के विषय में तो फिर भी सही या ग़लत कुछ तो हमारी पाठ्यपुस्तकों में बताया—पढ़ाया जाता है, परंतु उसके बाद जिस प्रकार उत्तर की मुग़लिया सल्तनत, बुंदेलखंड के आस पास नजीबजंग, दक्षिण में आदिलशाह और निज़ामशाही से मराठों ने चौथ या सरदेसाई वसूली की वह जनमानस की जानकारी में ही नहीं है। शिवाजी के राज्याभिषेक के समय अधिकार क्षेत्र में केवल एक प्रांत था, परंतु उनके उत्तराधिकारी राघोबा दादाजी के आधिपत्य में पंजाब की राजधानी लाहौर में धूमधाम से मराठे प्रविष्ट हुए और उस से आगे सिंध के किनारे तक पहुंचे।

शिवाजी के द्वारा स्थापित राज्य को एक के बाद एक शूरवीर सरदार मिलते रहे और इसकी एक अखंड परंपरा पानीपत की तीसरी लड़ाई बाद तक चलती रही। खंडो बलाल, धाना जी, संताजी, बाला जी, बाज़ीराव भाऊ, मल्हार राव, दत्ताजी शिंदे, माधव राव, परशुराम पन्त और बापू जी जैसे महान व्यक्तित्व क्रमशः अपने आपको इस राष्ट्र तथा धर्म की बलिवेदी पर चढ़ाते रहे। वास्तव में हिंदू पद पादशाही का इतिहास शिवाजी के देह त्याग के बाद एक नए स्वरूप में प्रारम्भ होता है।

औरंगज़ेब की सशक्त, सुसंगठित तथा सुसज्जित सेना के आगे मराठों की शक्ति तुच्छ थी तो भी उन्होंने अद्भुत युद्ध कला जिसे “गानिमि काबा” कहते हैं ईजाद की और इस युद्ध कला से मुग़लों को खूब छकाया और युद्ध कौशल के कारण मुग़लों को ही जगह से दुम दबा कर भागना पड़ा। तीन लाख की सेना लेकर दक्षिण विजय को निकाले औरंगजेब का निराश हो कर 1707 में अहमद नगर में इंतकाल हो गया। मुग़लों से खानदेश, गोंडवाना, बरार, गुजरात के क्षेत्रों और दक्षिण के छह सूबों सहित मैसूर, त्रावणकोर आदि रियासतों को अपने आधिपत्य में लेकर हिंदू साम्राज्य स्थापित हुआ। इन सब को एक सूत्र में बांध कर महाराष्ट्र मंडल को वास्तविक हिंदू पद पादशाही बनाया।

1- हिन्दू पद पादशाही
2- हिन्दू इतिहास- वीरों की दास्तान।
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लव जेहाद में फंसी विधायक रुमी नाथ की दास्तान दिल दहला देगी

आज आपको असम की विधायक रूमी नाथ की कहानी बताते हैं साथ ही ये भी समझने की कोशिश कीजियेगा की जिस भी हिन्दू परिवार में मुसलमान बैठने लगेगा उस परिवार की महिलाओं का हश्र यही होता है

असम में एक बड़े प्रतिष्ठित डॉक्टर थे राकेश कुमार सिंह इलाके के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वह क्षमतानुसार सब की सहायता करते थे, डॉक्टर साहब की पत्नी थी रूमी नाथ जिससे उन्हें 2 वर्ष की बेटी थी,

उन दिनों असम के एक मंत्री अहमद सिद्दीकी कि डॉक्टर साहब से जान पहचान हुई और अहमद सिद्दीकी का डॉक्टर साहब के घर आना जाना शुरु हुआ, अहमद सिद्दीकी ने डॉक्टर साहब की प्रतिष्ठा का राजनितिक लाभ उठाने हेतु उनकी पत्नी रूमी नाथ को टिकट दिलवाकर विधायक का चुनाव लड़वाने का सुझाव दिया,

अहमद सिद्दीकी यह जानता था की महिला होने के कारण और डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा और सम्मान के कारण क्षेत्र के अधिकांश वोट डॉक्टर राकेश सिंह की पत्नी रूमी नाथ को ही मिलेंगे और महिला उम्मीदवार होने के नाते महिला वोट तो रूमी नाथ को मिलने ही थे, और जब चुनाव परिणाम आया तो आशानुरूप रूमी नाथ चुनाव जीत गई, अब इसके बाद अहमद सिद्दीकी का रूमी नाथ से प्रतिदिन से मिलना होता और धीरे धीरे अहमद सिद्दीकी ने रूमी नाथ का ब्रेनवाश करना शुरू किया,

अहमद सिद्दीकी ने रुमि का परिचय एक बांग्लादेशी मुस्लिम युवक जैकी ज़ाकिर से करवाया और उस युवक से रुमी को प्रेम जाल में फँसाने को कहा, और अब ज़ाकिर ने रोज़ रूमी से मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू किया, कुछ समय बाद रूमी नाथ पूरी तरह से अहमद सिद्दीकी और जैकी ज़ाकिर के लव जेहाद के जाल में फंस गई, इसके बाद अहमद सिद्दीकी ने एक दिन रूमी नाथ को अपने बंगले पर बुलाया और वहां उसका धर्म परिवर्तन करवा कर उसे इस्लाम कबूल करवाया और उसका नया नाम रखा गया रबिया सुल्ताना, और रूमी नाथ ने बिना डॉक्टर राकेश सिंह को कुछ बताये, बिना अपनी 2 वर्ष कि बेटी की चिंता किए, बिना डिवोर्स लिए उस बांग्लादेशी युवक ज़ाकिर से निकाह कर लिया,

अहमद सिद्दीकी जानता था कि मामला संवेदनशील है अतः उसने रूमी नाथ और और उस बांग्लादेशी युवक ज़ाकिर को बांग्लादेश भिजवा दिया,

रूमी नाथ के पिता और पति दोनों प्रतिष्ठित व्यक्ति थे उन्होंने इस विषय को उठाया भी किंतु रूमी नाथ खुद एक विधायक थी, अतः कुछ ना हो सका, रूमीनाथ के पिता और उसके पति डॉ राकेश सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अहमद सिद्दीकी का नाम लिया और लोगों से अपने बच्चों बहु बेटियों को जिहादियों से दूर रखने को कहा,

कुछ दिनों बाद अहमद सिद्दीकी ने बांग्लादेश स्थित भारतीय दूतावास को चिट्ठी लिखकर जैकी जाकिर को वीजा देने को कहा, जिसके बाद रूमीनाथ से रुबिया सुल्ताना बनी रूमी अपने नए मुस्लिम बंगलादेशी शौहर को साथ लेकर वापस भारत आ गई और अपने क्षेत्र में अलग घर लेकर रहने लगी,

डॉ राकेश सिंह इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और अपनी 2 साल की बच्ची को लेकर उत्तर प्रदेश चले गए, और रूमी नाथ के घर वालों ने उससे सारे संबंध तोड़ लिए,

रूमीनाथ और जाकिर 2 साल तक साथ रहे जिससे रूमी को एक लड़की हुई, और फिर जैसा कि हमेशा से होता है शांतिदूत जाकीर ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया, रुमी के साथ रोज मार पिटाई होती, उसे प्रताड़ित किया जाता और जाकिर उससे उसके सारे पैसे छीन लेता, जिससे त्रस्त होकर रूमी नाथ ने ज़ाकिर के खिलाफ पुलिस में शिकायत कीऔर उसके बाद वो जाकिर से अलग हो गई,

अब रुमी को अपनी विधायकी और छवि का ख्याल आया और उसने इस्लाम को त्याग कर पुनः हिंदू धर्म स्वीकार किया, किंतु अब तक उसे जिहादियों की संगत में अपराध और गलत कामों की लत लग चुकी थी, और अब वो सीधी साधी ग्रहणी रुमिनाथ पूरे भारत में सक्रिय एक कार चोरी करने वाले रैकेट की एक्टिव सदस्य बन चुकी थी, जो पूरे भारत से चोरी की जा रही महंगी गाड़ियां को अवैध रूप से असम में बेचने का गोरख धंधा चलाती थी,

इस सबके बीच चुनाव आए, और क्योंकि इस बार रूमी के साथ उसके पहले पति डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा नहीं थी, और अपने पहले पति और 2 वर्षीय बेटी को छोड़कर इस्लाम कुबूल करने, जाकिर से निकाह कर उसके साथ भागने के कारण जिन लोगों ने उसे पिछली बार वोट देकर उसे विजयी बनाया था, उन लोगों ने इस बार उससे अपना समर्थन वापस ले लिया और परिणाम स्वरुप रूमीनाथ बुरी तरह से चुनाव हार गई, रूमी नाथ अब ज़ाकिर से पैदा हुई अपनी बेटी को लेकर अपने पिता और घर वालों के पास गयी किंतु उन्होंने उसे स्वीकारने से मना कर दिया,

अब तक रुमी कार चोरी के रैकेट वाले केस में बुरी तरह से फंस चुकी थी, और उसके बाद उसे पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया गया, ये थी कहानी एक हिन्दू ग्रहणी रूमी नाथ की जो जिहादी अहमद सिद्दीकी के इशारे पर विधायक बनी, फिर अपने पिता, घरवालों, अपने पति अपनी 2 वर्षीय बेटी को बिना बताए बिना डिवोर्स दिए उन्हें त्यागकर, अवैध सम्बन्धों और लव जिहाद में अंधी होकर राबिया सुल्ताना बनी और शांतिदूत ज़ाकिर की बीवी बन अपने घरवालों को छोड़कर बंग्लादेश भाग गई, बाद में उसके उसी प्रेमी जाकिर ने रोज़ उससे उसके पैसे छीनने शुरू किये प्रतिदिन उसकी पिटाई-कुटाई चालु की, उसके बाद रूमी उससे अलग होकर अपराध की दुनिया में घुस कार चोरी के रैकेट की सदस्य बनी फिर चुनाव भी हारी, घरवालों ने मुंह फेर लिया और आज जेल में है।

इस लेख को सोशल मीडिया में हर हिन्दू इतना प्रचारित करे कि हिन्दू समाज की लड़कियों को सच्चाई का पता चले। उनके जीवन की रक्षा करना हर हिन्दू का कर्त्तव्य हैं।

(वर्तमान में शुद्धि ही आपकी आने वाली पुश्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं। याद रखें आपके धार्मिक अधिकार तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक आप बहुसंख्यक हैं। इसलिए अपने भविष्य की रक्षा के लिए शुद्धि कार्य को तन, मन, धन से सहयोग कीजिए। )
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कोटा पब्लिक लाईब्रेरी मे एक पेड़ माँ के नाम के तहत वृक्षारोपण

राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा मे भाषा एवं पुस्तकालय विभाग राजस्थान से प्राप्त निर्देशों की पालना मे हरियालों राजस्थान अभियान (एक पेड़ माँ के नाम ) के तहत वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत स्थानीय पुस्तकालय की वरिष्ठ पुस्तकालय अधिकारी डॉ शशि बाला जैन एवं बालिकाओ ने तीज की वेषभूषा धारण कर वृक्षारोपण किया | पारंपरिक परिधानों में सजकर वृक्षारोपण करते हुएन केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर किया।

इस अवसर परस्थानीय समुदाय और पुस्तकालय के अन्य सदस्य भी उपस्थित थेजिन्होंने वृक्षारोपण के महत्व पर विचार किया और इसे सफल बनाने में योगदान दिया। कार्यक्रम के अंत मेंडॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष ने सभी को हरियालों राजस्थान अभियान वृक्षारोपण के लाभ और पर्यावरण की रक्षा के महत्व के बारे में जागरूक किया और भविष्य में भी इस तरह के आयोजनों के लिए प्रेरित किया।

यह आयोजन हरियालों राजस्थान अभियान‘ की सफलता में एक महत्वपूर्ण कदम थाजो राज्य के वातावरण को हरा-भरा बनाने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित करने की दिशा में एक सकारात्मक योगदान है।

इस अवसर पर पुस्तकालय की लाड़ो अनीता भाट , श्यामा मीना , सुनीता जाटव , करुणा धाकड , प्रिया शर्मा , सोनिया मीना , कौसर नाज , लक्ष्मी , रामी मीना , सोना , फरहीन खान , अनामिका , उषा दाधीच , अंकिता सोनी , सोहा मीना , रुकमानी कुमारी इत्यादि समेत कई युवा पाठको ने हिस्सा लिया | कार्यक्रम प्रबंधन परामर्शदाता राम निवास धाकड़ ने किया |

Dr. D. K. Shrivastava
INELI South Asia Mentor
IFLA WALL OF FAME ACHIEVER
Divisional Librarian and Head
Govt. Divisional Public Library Kota (Rajasthan)-324009
Cell No.+91 96947 83261
 
Librarians Save lives by handling the right books at right time to a kid in need.

कोलगेट ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ महत्वपूर्ण साझेदारी की शुरुआत की

अलीगढ़। कोलगेट अगले कुछ वर्षों में राज्य भर में स्कूल जाने वाले 1.93 करोड़ बच्चों को मौखिक स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

  •  श्री संदीप सिंह जी, माननीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश पूरे राज्य में ओरल हेल्थ शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम और पुस्तकालयों में एकीकृत करने की अपनी मंशा व्यक्त करते हैं।

ओरल हेल्थ को बढ़ाने के अपने निरंतर प्रयासों में, कोलगेट ने अपने प्रमुख कार्यक्रम, कोलगेट ब्राइट स्माइल्सब्राइट फ्यूचर्स® (बीएसबीएफ) को पूरे राज्य के बच्चों तक पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के साथ एक एमओयू करार किया गया। इस सहयोग के तहत, कोलगेट का लक्ष्य 2 वर्षों में उत्तर प्रदेश के 50 लाख परिशिदिय छात्र-छात्रा तक पहुँचने के लिए प्रतिबद्ध है।

आज इस महत्वपूर्ण पहल का उद्घाटन किया गया, जिसके प्रथम चरण में 2026 तक 50 लाख बच्चों को लाभ मिलेगा। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षाराज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री संदीप सिंह, उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. एम.के. शनमुगा सुंदरम और कोलगेट-पामोलिव (इंडिया) लिमिटेड की एमडी एवं सीईओ श्रीमती प्रभा नरसिम्हन की गरिमामयी उपस्थिति रही।

कोलगेट का ब्राइट स्माइल्स, ब्राइट फ्यूचर्स, जिसका हिंदी में अर्थ है ‘उज्ज्वल मुस्कानउज्ज्वल भविष्य‘, एक विचारपूर्वक तैयार की गई पहल है, जो सही मौखिक स्वास्थ्य आदतों, तंबाकू रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाने, अच्छे पोषण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है. इस कार्यक्रम का लाभ ६ इ १६ वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों को मिलेगा।

यह कार्यक्रम पाँच महत्वपूर्ण उद्देश्यों पर केंद्रित है: ब्रश करने का सही तरीका, दिन में दो बार ब्रश करने का महत्व, हर तीन महीने में अपना टूथब्रश बदलना, तंबाकू के सेवन से परहेज़ करना और पौष्टिक भोजन का चुनाव करना। पूरक सामग्री जिसमें डेंटल किट्स, ब्रशिंग कैलेंडर, शिक्षक प्रशिक्षण मार्गदर्शिका और प्रमाणपत्र शामिल हैं, बच्चों और शिक्षकों को आवश्यक जीवनभर की जानकारी से लैस करेगी।

प्रमोचन समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के बेसि शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत् प्रभारश्री संदीप सिंह ने कहा, “मुझे आज श्रीमती प्रभा नरसिम्हन, कोलगेट टीम, शिक्षकों और छात्रों के साथ इस कार्यक्रम में शामिल होकर बहुत खुशी हो रही है, जो मौखिक स्वास्थ्य देखभाल के महत्वपूर्ण उद्देश्य पर केंद्रित है। हमारा मानना है कि यह समग्र स्वास्थ्य के लिए मौलिक है, और कोलगेट के साथ साझेदारी करके, हमारा लक्ष्य ओरल स्वास्थ्य शिक्षा पहुंचाना है छात्रों तक और हम राज्य भर के सभी स्कूलों में पाठ्यक्रम और पुस्तकालयों के माध्यम से मौखिक स्वास्थ्य के महत्व को विकसित करेंगे।

साझेदारी को संबोधित करते हुए, कोलगेटपामोलिव (इंडियालिमिटेड की एमडी और सीईओ श्रीमती प्रभा नरसिम्हन ने कहा, “भारत में ओरल स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता और शिक्षा को बढ़ाने का हमारा लक्ष्य अटल है, जिसे वैज्ञानिक अनुसंधान में हमारी प्रगति का समर्थन प्राप्त है। हम उत्तर प्रदेश सरकार के साथ साझेदारी करके बहुत सम्मानित महसूस कर रहे हैं और राज्य के सभी 1.93 करोड़ बच्चों के साथ जुड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके साथ, हम इस क्षेत्र के बच्चों के लिए सार्थक, सकारात्मक बदलाव लाने के अपने मिशन को आगे बढ़ाएंगे। हमारा कोलगेट ब्राइट स्माइल्स, ब्राइट फ्यूचर्स® स्वस्थ मुस्कान को बढ़ावा देना जारी रखेगा।”

कोलगेट ब्राइट स्माइल्स, ब्राइट फ्यूचर्स® कार्यक्रम ने 1976 से पूरे भारत में 176 मिलियन से अधिक बच्चों को अच्छी मौखिक स्वास्थ्य आदतों के ज्ञान के साथ सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

अलीगढ़ में आयोजित उद्घाटन समारोह ने आधिकारिक तौर पर इस कार्यक्रम की शुरुआत को चिह्नित किया, और इसमें सुश्री शिल्पाश्री मुनीस्वाम्मा, निदेशक – ईएसजी और संचार, कोलगेट-पामोलिव (इंडिया) लिमिटेड, श्री रुचिर भटनागर, वरिष्ठ निदेशक – ग्राहक विकास, कोलगेट-पामोलिव (इंडिया) लिमिटेड, श्री भोमिक शाह, ट्रस्टी, भारत केयर्स, श्री विकास जी आईएएस, जिला मजिस्ट्रेट, श्री संजीव सुमन आईपीएस, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, श्री अनिल पाराशर, विधायक, श्री रवेंद्र पाल सिंह, विधायक, श्री राज कुमार सहयोगी विधायक, श्री मानवेंद्र प्रताप सिंह, एमएलसी, श्री कृष्णपाल सिंह, भाजपा अध्यक्ष, श्री प्रशांत सिंघल, मेयर, श्रीमती विजय सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष, श्री राकेश सिंह बेसिक शिक्षा अधिकारी, की गरिमामयी उपस्थिति देखी गई।

(चित्र में श्री संदीप सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और श्रीमती  प्रभा नरसिम्हन, एमडी और सीईओ, कोलगेट-पामोलिव (इंडिया) लिमिटेड)

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हमारी सरकार को उपद्रवी तत्वो को कड़ी चेतावनी जारी करना चाहिए: ख़्वाजा इफ्तिखार अहमद

नई दिल्ली। निर्दोष हिंदू अल्पसंख्यक सदस्यों की बिना किसी गलती के हत्या करना दोषियों की नैतिकता की निम्नतम भावना को दर्शाता है। यह वास्तव में उनके और उनके आकाओं के अंत में संयम और परिष्कार के गुणों के पतन को दर्शाता है जो कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं। किसी भी बहाने या आधार पर निर्दोष हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता!

डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद, अध्यक्ष , इंटर फेथ हार्मोनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा है कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की हालिया खबरें न केवल कड़े शब्दों में निंदनीय हैं, बल्कि नग्न बर्बरता के इन सबसे बदसूरत और शर्मनाक कृत्यों में गुमराह बांग्ला युवाओं द्वारा किए गए इस जघन्य अपराध का समर्थन करने के लिए कोई तर्क उपलब्ध नहीं है।

हमारी सरकार को उन लोगों को कड़ी चेतावनी जारी करनी चाहिए जो ढाका में शीर्ष पर हैं कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारा उनकी घरेलू राजनीतिक उथल-पुथल में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन भारत और वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ किए गए किसी भी चूक और कृत्य पर हमारे प्रतिष्ठान से उचित प्रतिक्रिया मिल सकती है।

हम बांग्लादेश को अपना मित्र और रणनीतिक सहयोगी मानते हैं। हाल के घटनाक्रमों से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका एक बड़ा एजेंडा है जिसे भारत विरोधी ताकतें बढ़ावा देना चाहती हैं। हमें उभरते राजनीतिक परिदृश्य पर कड़ी नजर रखनी होगी।

मुझे यकीन है कि हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व, सरकार और विदेश मंत्रालय को मामले की जानकारी है और उन्हें वहां स्थिति को सामान्य बनाने में गहराई से लगे रहना चाहिए। हमारा सीमा बल यह सुनिश्चित करेगा कि वहां अत्यधिक अस्थिर जमीनी स्थिति से कोई सुरक्षा या घुसपैठ का खतरा न हो।

सभी देशों, विशेषकर पड़ोसियों के साथ मित्रता और शांति की हमारी नीति के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमारा राजनयिक समुदाय जल्द ही उस पारंपरिक सद्भावना को बहाल करने में सफल होगा जो पड़ोसी बांग्लादेश के साथ हमारे संबंधों की पहचान रही है। एनएसए अजीत डोभाल की हसीना वाजेद से मुलाकात हमारी कूटनीति की योग्यता और कद को बयां करती है। मैं उनके साथ उनकी बातचीत का स्वागत करता हूं।’

भाषा, संस्कृति, इतिहास और सभ्यता में बांग्लादेशी लोगों के साथ हमारी बहुत समानता है। मैं फिर से वहां हमारी हिंदू बहनों और भाइयों के खिलाफ गुंडागर्दी और निर्दोष हत्या के कृत्यों की निंदा करता हूं।

डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद
अध्यक्ष
इंटर फेथ हार्मोनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया- नई दिल्ली

1500 डमरु के नाद से गूँज उठी महाकाल की नगरी

एक साथ लाखों दीपक प्रज्जवलन, मिट्टी की गणेश मूर्तियों का के निर्माण को विश्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने वाले शहर में एक और विश्व रिकॉर्ड बन गया है। सावन महीने का तीसरा सोमवार उज्जैन में नई आभा लेकर आया। श्रावण मास के तीसरे सोमवार भगवान महाकाल की सवारी के पहले  भस्मारती में  और सवारी के दौरान 1500  वादकों ने डमरू वादन कर विश्व कीर्तिमान रच दिया।
एस्सेल समूह के अध्यक्ष डॉ. सुभाष  चन्द्रा ने इस अभिनव अध्यात्मिक प्रयोग पर अपनी शुभकामना देते हुए कहा कि यह अलौकिक और अद्भुत तस्वीर रही। महाकाल की नगरी ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।

श्री महाकालेश्वर मंदिर के महाकाल लोक स्थित शक्ति पथ पर 1,500 डमरू वादकों ने मनमोहक लयबद्ध प्रस्तुति देकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। उज्जैन में 1,500 वादकों ने डमरू वादन कर फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन न्यूयॉर्क के 488 डमरू वादन का रिकार्ड तोड़ा।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर उज्जैन ने डमरू वादन का विश्व कीर्तिमान रचा। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के एडिटर ऋषिनाथ ने डमरू वादन के वर्ल्ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट प्रदान किया गया। सीएम यादव ने डमरू वादन के विश्व रिकॉर्ड के लिए उज्जैन को बधाई और शुभकामनाएं दीं।

25 दलों के 1,500 डमरू वादकों ने भस्म आरती की धुन पर डमरू वादन कर भगवान महाकाल की स्तुति की। गिनीज बुक विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए एक साथ 1,500 कलाकार भगवान शिव के प्रिय वाद्य डमरू, झांझ मंजीरे की सुरमयी मंगल ध्वनि आकर्षण का केंद्र बन गई।

सवारी में उत्साह और आकर्षण को और अधिक बढ़ाने के क्रम में जनजातीय कलाकारों की प्रस्तुति, 350 जवानों के पुलिस बैंड की प्रस्तुति के बाद अब सवारी में डमरू वादन की प्रस्तुति ने एक अलग रोमांच पैदा किया।
समूची उज्जैन नगरी डमरू की गूंज से गुंजायमान हो गई। महाकाल महालोक के सामने शक्ति पथ पर अद्भुत अनूठे आयोजन में भगवा वस्त्रों में डमरू वादक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुति ने सभी को भाव विभोर किया।

डमरू बजाने का यह विश्व कीर्तिमान उज्जैन में ऐसे ही हासिल नहीं कर लिया। इसके लिए पूरे प्रदेश भर से डमरू वादक पिछले तीन दिनों से शक्ति पद पर जमकर मेहनत कर रहे थे।

महाकालेश्वर मंदिर की जनसंपर्क प्रभारी गोरी जोशी ने बताया कि भोपाल के डमरू वादक संस्कृति विभाग और भस्म मैया भक्त मंडली के साथ ही भोपाल, सागर, खंडवा, खजुराहो और जबलपुर डमरू वादकों ने अपनी प्रस्तुति दी, जिसके कारण ही यह वर्ल्ड रिकॉर्ड बन सका।

मौन, शब्द से व्यापक अभिव्यक्ति है , मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता मौन का है!

मौन का विस्तार अनन्त है या यह भी कहा जा सकता हैं कि मौन की व्यापकता सीमा से परे होकर मौन पूर्णत:असीम हैं। मौन ध्वनि विहीन होते हुए भी सार्थक होकर, एक तरह से शब्दों की निराकार अभिव्यक्ति है। जैसे प्रकाश निशब्द होकर सतत कम ज्यादा तीव्रता से कालक्रमानुसार अभिव्यक्त होता ही रहता है वैसे ही मौन भी निरन्तर निःशब्द स्वरूप में सदैव अस्तित्व में बना ही रहता है। मौन असीम हैं तो शब्द ससीम हैं ऐसा माना जा सकता है। मौन धरती और आकाश में हर कहीं व्याप्त है तो शब्द का विस्तार हमारी मौन मुद्रा भंग से ही प्रारंभ होता है। मौन का अस्तित्व, समापन या भंग होते ही हमें शब्दों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। मौन में शब्द सुप्तावस्था या शून्य में समाधिस्थ हो जाते हैं,मौन में असंख्य शब्द सुप्तावस्था में समाये रहते हैं। शब्दों की अभिव्यक्ति मौन को शब्दों के स्वरूप अर्थात ध्वनि और अर्थ में प्रगट कर निराकार ब्रह्म यानी शब्दों को साकार स्वरूप में अस्तित्व प्रदान करते प्रतीत होते हैं। जड़ तत्व ध्वनि को उत्पन्न कर सकता है पर शब्दों की उत्पत्ति मानवीय चेतना का एकाधिकार है।जीवन और जीव दोनों ही मौन और शब्दों के स्वरूप को अपने जीवन में ऐसे एकाकार कर लेते हैं जिसे सामान्य रूप से पृथक-पृथक करना संभव नहीं है।न तो कोई आजीवन मौन हो सकता है और न ही कोई आजीवन बिना रुके या निरंतर शब्दों को ध्वनि या अभिव्यक्ति दे सकता है। शब्दों का उच्चारण नहीं करना मौन नहीं होता है। बिना बोले गुमसुम हो जाना या एकदम चुप और मौन हो जाना दोनों ही भिन्न भिन्न स्थिति है।

मौन हमेशा चुप रहना ही नहीं है मौन की मुखरता मारक,तारक और उद्धारक भी हो सकती है।मौन होना याने महज़ ध्वनि का शुद्ध अभाव मात्र ही नहीं होता वरन् शब्दों के जन्म से पहले की मनःस्थिति जैसा नैसर्गिक शांत स्वरूप भी माना जा सकता है। जैसे नकारात्मक विचारों की उथल-पुथल के थम जाने को कुछ हद तक मानसिक शांति का अहसास हम मानते या समझते हैं वैसी अवधारणा मौन को लेकर नहीं बनायी जा सकती है। मौन एक प्राकृतिक अवस्था है जिसमें शून्य से लेकर आकाश तक में समायी निस्तब्ध शांति या निसर्ग में समायी नीरवता से यदि प्रत्यक्ष साक्षात्कार हुआ हो तो ही मौन की मौलिकता को समझा जा सकता है। मौन को ध्वनि के अभाव या गूंगेपन या अबोलेपन या जानबूझकर ओढ़ी चुप्पी से नहीं समझा जा सकता है। मौन को गहराई से भी नहीं समझा जा सकता क्योंकि मौन का कोई आकार प्रकार या रूप स्वरूप नहीं है फिर भी मौन से सहमति असहमति दोनों की अभिव्यक्ति हो सकती है। यदि प्रकाश के अभाव,जीव जिसमें वनस्पति भी समाहित है की जीवन्त हलचल का अभाव और व्यापक निरवता का धनधोर सन्नाटा पसरा हुआ है तो मौन या निस्तब्ध शांति भयग्रस्त मानसिक तनाव और अकारण अशांति को उत्पन्न कर सकती हैं।इसके उलट पूर्णिमा के चन्द्रमा की शीतल चांदनी और शांति पूर्ण मनःस्थितिवाला मौन मनुष्य को आनन्द की अनुभूति का अनुभव सहजता से कराती हैं।

मौन मनुष्य जीवन का अनोखा अनुभव है, जिसमें कभी भी अभिव्यक्ति में अपूर्णता नहीं है। जैसे कहा गया है कि शून्य में से शून्य को यदि दे निकाल तो भी शेष तब भी शून्य ही रहता सदा। याने शून्य या मौन एक प्राकृतिक अवस्था है जो हमारे अंदर बाहर सदा सर्वदा मौजूद हैं। शब्द और ध्वनि मनुष्य या जीव की कृति है पर मौन और शून्यता जीवन और जीव की प्रकृति है। शब्द कृति है मौन प्रकृति है। जगत में प्रकृति का अस्तित्व सदा सर्वदा से है वैसे ही जीवन में या जीव में मौन की मौजूदगी जीवन की सनातन अभिव्यक्ति है। जीवन महज़ निरन्तर हलचल मात्र ही नहीं है। अनन्त शांति या मौन की मौजूदगी प्रकृति और जीवन की व्यापकता और मौलिकता को निशब्द समझाती प्रतीत होती है। यही मौन की मौजूदगी और मौलिकता की अभिव्यक्ति है जो अनुभूत तो होती है पर शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती है। मौन में शब्दों को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने के बजाय निःशब्दता को शब्दों से परे रहकर व्यापक रूप से व्यक्त किया जाता है। मौन की अभिव्यक्ति और अनुभूति सहजता से अनन्त को समझने की सबसे अच्छी प्राकृतिक अवस्था है। मौन प्रकृति है या प्रकृति ही मौन है। जगत में मनुष्यों को जीवन के अंतहीन प्रवाह में हर क्षण सोचने, समझने और अनुभूत करने का अवसर मिलता है। पर मनुष्य शब्दों से परे रहकर निशब्द मौन की व्यापकता को जानते हुए भी शब्दों के सानिध्य से दूर नहीं हो पाता इसलिए मौन प्राकृतिक अवस्था के बजाय मनुष्यों की साधना के रूप में विकसित हुआ प्रतीत होता है। मौन आकाश, प्रकाश और समय की तरह ही जीवन और प्रकृति का अभिन्न अंग है और इस तरह से हमारे जीवन, चिंतन और मनन में रचा बसा है जिसे शब्दों से परे रहकर निशब्द होकर ही जाना समझा और मानसिक रूप से अभिव्यक्त, अनुभूत और आत्मसात भी किया जा सकता है।

अनिल त्रिवेदी अभिभाषक, स्वतंत्र लेखक
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१५.६.२०२४..