Thursday, April 10, 2025
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कश्मीरी पंडितों का पर्व ‘खेचरी-मावस’

कश्मीरी पंडितों के लिए कई त्यौहार और पूजा-अनुष्ठान विशिष्ट हैं, जिनमें से कुछ प्राचीन काल से चले आ रहे हैं।ऐसा ही एक विशिष्ट कश्मीरी त्यौहार ‘खेचरी-मावस’ या यक्ष-अमावस्या है जो पौष (दिसंबर-जनवरी) के कृष्णपक्ष की अमावस्या के दिन मनाया जाता है । प्रागैतिहासिक कश्मीर में विभिन्न जातियों और जातीय समूहों के एक साथ रहने और सह-मिलन की स्मृति में, इस दिन कुबेर को बलि के रूप में खिचड़ी चढ़ाई जाती है जो दर्शाता है कि यक्ष का पंथ बहुत पहले से ही कश्मीर में  मौजूद था। खेचरी-मावास एक लोक-धार्मिक त्यौहार प्रतीत होता है। इस शाम एक मूसल या कोई भी पत्थर (अगर मूसल उपलब्ध न हो) तो उसे धोकर चंदन और सिंदूर से अभिषेक किया जाता है और इसे कुबेर की छवि मानकर पूजा की जाती है। खिचड़ी के  नैवेद्य को मंत्रों के साथ कुबेर को अर्पित किया जाता है और इसका एक हिस्सा पूजक द्वारा अपने घर की बाहरी दीवार पर इस विश्वास के साथ रखा जाता है कि यक्ष इसे खाने आएंगे।

खेचरी-मावास न केवल कश्मीरी पंडितों के धार्मिक-सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि इसमें कश्मीर के पौराणिक इतिहास का भी समावेश है। यह पर्व यक्षों के ऐतिहासिक अस्तित्व को प्रमाणित और स्थापित करता है। यक्ष कश्मीर के प्राचीन मूल निवासियों में से एक जनजाति थे, जो हिमालय के ऊपरी पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे। उनका विस्तार वर्तमान उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश से लेकर कश्मीर तक था।  हिंदू शास्त्रों ने यक्षों को गंधर्वों, किन्नरों, किरातों और राक्षसों के साथ अर्ध देवताओं का दर्जा दिया है। यक्ष भी कश्मीरी हिंदुओं की तरह देवों के देव महादेव भगवान शिव के कट्टर उपासक थे। यक्षपति भगवान कुबेर भगवान शिव के घनिष्ठ मित्र भी माने जाते हैं। भगवान कुबेर धन के स्वामी हैं और पौराणिक नगर अलकापुरी में निवास करते हैं, जो पर्वत मेरु की एक शाखा पर स्थित है। पर्वत मेरु भगवान शिव का निवास स्थान है। यक्षों के राजा भगवान कुबेर को धनपति, नर-राजा, राज-राजा और रक्षेंद्र भी कहा जाता है। वे सोने, चांदी, हीरे और अन्य बहुमूल्य रत्नों के स्वामी हैं। इसके अतिरिक्त वे उत्तर दिशा के अधिष्ठाता देवता भी माने जाते हैं। उनके भक्त और प्रजाजन, जिन्हें यक्ष/पिशाच कहा जाता है, असाधारण शक्तियों के धनी माने जाते हैं। प्राचीन समय में, यक्ष कश्मीर के विशाल पर्वत श्रृंखलाओं में निवास करते थे और शीतकालीन महीनों में कश्मीर की घाटियों में उतरते थे। कश्मीर के नाग निवासियों द्वारा उनका आतिथ्य खिचड़ी जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों से किया जाता था।

जैसा कि कहा गया है खिचड़ी-अमावस्या की संध्या पर चावल, हल्दी और मूंग दाल मिलाकर खिचड़ी पकाई जाती है। यह खिचड़ी कभी-कभी मांस या पनीर के साथ भी तैयार की जाती है, जो परिवार की रीत पर निर्भर करती है। खिचड़ी को श्रद्धा के साथ तैयार किया जाता है और इसे ताजे मिट्टी के पात्र (टोक), घास से बनी गोल आकृति (अरी) या थाली पर रखा जाता है, यह भी परिवार की रीति पर निर्भर करता है। इसके बगल में एक मूसल (काजवठ) को घास से बनी गोलाकार/आरी पर सीधा खड़ा करके रखा जाता है। इसे तिलक लगाया जाता है और फिर पूजा की जाती है। इसके बाद खिचड़ी का एक भाग घर की आंगन की दीवार पर रखा जाता है।

इसके पश्चात इसे मूली और गांठ गोभी के अचार के साथ नैवेद्य के रूप में ग्रहण किया जाता है। मूसल भगवान कुबेर और उनके भक्त यक्षों के पर्वतीय निवास का  प्रतिनिधित्व करता है। यक्षों की ऐतिहासिक उपस्थिति को उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के मध्य और उत्तरी जिलों में उनके नाम पर बसे गांवों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है। यहां तक कि श्रीनगर में भी यक्षों के नाम पर आधारित एक बस्ती है, जिसे “यछपोरा” कहा जाता है, जो पुराने शहर में स्थित है।

विस्थापन के बाद भी जो कश्मीरी पंडित जहाँ पर भी बसे हैं, अपने प्राचीन सभी त्योहारों को श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं क्योंकि ये धार्मिक अनुष्ठान उनकी गहरी और अटूट आस्था को व्यक्त करते हैं। खिचड़ी अमावस्या भी इन्हीं में से एक है।

पाठविधि के कारण वेद में मिलावट संभव ही नहीं

वेदों की रक्षा के लिए जिस विधि का विधान किया गया, वह अष्टविकृतियुक्त वेदपाठविधि कहलाती है। इस प्रयास के कारण ही वेद वर्तमान में अविकल रूप में उपलब्ध हैं और उसमें एक अक्षर की भी मिलावट करना संभव नहीं हो सका। इस अष्टविकृतियुक्त वेदपाठविधि में वेद के प्रत्येक पद का उच्चारण अनुलोम तथा विलोम विधि से किया जाता है, जिससे उसके रूपज्ञान में किसी प्रकार की त्रुटि की संभावना नहीं रहती है।

सभी विद्याओं का मूल वेद है। इसमें संसार के आदिकाल में ईश्वर ने मनुष्यों को जीवन जीने की कला की उपदेश दी है। hindu dharm ved भारत देश की चेतना है। हमारे प्राणों की ऊर्जा है। वेद हमारा सर्वस्व है। भारतीय संस्कृति एवं परंपरा में वेदों को वही स्थान प्राप्त है, जो शरीर में आत्मा का है। जिस प्रकार आत्मारहित शरीर शव होती है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति से वेद को अलग कर देने पर यह संस्कृति प्राणविहीन होकर निर्जीव हो जाती है। जब कभी मनुष्य भयंकर विपत्ति में होता है, और उसे ऐसा प्रतीत होता है कि अब शायद कुछ भी न बचे, उस समय वह जिसको सबसे अधिक चाहता है, उसकी रक्षा करने का भरसक यत्न भी करता है। ऐसा ही हमारे देश के इतिहास में हुआ।

भारतीय संस्कृति पर विदेशी आक्रांताओं का संकट

महाभारतयुद्ध के पश्चात एक ऐसा समय आया, जब लगता था कि मानो हमारे देश से वीरता रूठ गई हो। इस काल में देश को रौंदते हुए अनेक विदेशी आततायी आक्रांता आए, और हम भारतीय असहाय होकर उनके दमन चक्र को सहते रहे। देश में आए आक्रांता ऐसे क्रूर और निर्दयी स्वभाव के थे कि अपने मार्ग में आने वाले सभी वस्तुओं को आग के हवाले कर दिया। इस हमले में न जाने कितने भारतीय साहित्य आग की भेंट चढ़ गए, जो आज प्राप्य नहीं हैं।

वैदिक विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 101, सामवेद की 1000और अथर्ववेद की 9 शाखाएँ हुआ करती थीं। इनमें से बहुत थोड़ी-सी शाखाएं आज प्राप्य हैं, शेष उन दुष्टों के क्रोध का शिकार होकर विलुप्त हो गई हैं। यह सब सिर्फ संपति को लूटने की हवश नहीं थी, बल्कि यह भारतीय सभ्यता- संस्कृति को समाप्त करने का एक कुटिल और भयानक षड्यन्त्र था। जिस प्रकार अरब और यूनान की सभ्यताएं समाप्त हो गयीं, उनका नाम लेने वाला भी आज कोई नहीं है, उसी प्रकार इस देश की अस्मिता और अस्तित्व को कुचलने का नहीं, जड़ से उन्मूलन करने का प्रयास विदेशियों द्वारा किया जा रहा था। hindu dharm ved

उस समय इस देश के मनस्वी विद्वानों अर्थात ब्राह्मणों ने अपना जीवन नहीं वरन पीढ़ियों के जीवन को इस वेदज्ञान राशि की रक्षा में अर्पित कर दिया। यह एक ऐसा अभिनव प्रयास था, जिसकी समता विश्वसाहित्य की रक्षा में किसी अन्य प्रयास से नहीं की जा सकती। यह उत्सर्ग सीमा पर कठोर यन्त्रणाएं सहकर प्राण विसर्जन करने वाले वीरों की बलिदान गाथा से कहीं बढ़कर है। hindu dharm ved

वेदपाठ की अष्टविकृतियुक्त विधि और उसका महत्व
वेदों की रक्षा के लिए जिस विधि का विधान किया गया, वह अष्टविकृतियुक्त वेदपाठविधि कहलाती है। इस प्रयास के कारण ही hindu dharm ved वर्तमान में अविकल रूप में उपलब्ध हैं और उसमें एक अक्षर की भी मिलावट करना संभव नहीं हो सका। इस अष्टविकृतियुक्त वेदपाठविधि में वेद के प्रत्येक पद का उच्चारण अनुलोम तथा विलोम विधि से किया जाता है, जिससे उसके रूपज्ञान में किसी प्रकार की त्रुटि की संभावना नहीं रहती है। शैशिरीय समाम्नाय में महर्षि व्याडि ने जटा आदि आठ विकृतियों के लक्षण बतलाये हैं-

शैशिरीये समाम्नाये व्याडिनैव महर्षिणा।

जटाद्या विकृतीरष्टौ लक्ष्यन्ते नातिविस्तरम्।।

जटा माला शिखा रेखा ध्वजो दण्डो रथो घनः।

अष्टौ विकृतयः प्रोक्ताः त्रमपूर्वा महर्षिभिः।।- शैशिरीय समाम्नाय 1, 2।।

क्रम पाठपूर्वक महर्षियों ने आठ जटा आदि विकृतियाँ के लक्षण प्रतिपादित किए हैं- जटा, माला, शिखा, रेखा, ध्वज, दण्ड, रथ, घन। मंत्रों का प्रकृत उपलब्ध पाठ संहितापाठ कहलाता है। पाणिनीय सूत्र 1/4/109 में संहिता का लक्षण करते हुए पाणिनी कहते हैं- परः सन्निकर्षः संहिता। वर्णों की अत्यन्त समीपता का नाम संहिता है। ऋग्वेद 10/97/22 के अनुसार संहिता पाठ के प्रत्येक पद विच्छेद पूर्वक पाठ करना पदपाठ कहलाता है। पदपाठ में पद तो वे ही रहते हैं, परन्तु पदपाठ में स्वर में बहुत अन्तर आ जाता है। संहितापाठ में जहाँ स्वर संहितापाठ की दृष्टि से लगे होते हैं, वहीं पदपाठ में स्वरों का आधार पद होता है। क्रम से दो पदों का पाठ क्रमपाठ कहलाता है। ऋषि कात्यायन के अनुसार भी क्रम पूर्वक दो पदों का पाठ क्रमपाठ है।

वेदपाठ की विभिन्न विधियाँ: जटा, शिखा और माला पाठ

इस क्रमपाठ का प्रयोजन स्मृति माना गया है। अनुलोम तथा विलोम प्रकार से जहाँ क्रम तीन बार पढ़ा जाता है, उसे जटा पाठ कहते हैं। अनुलोम तथा विलोम प्रकार से मन्त्र में क्रम से आये दो पदों का तीन बार पाठ करना चाहिए। विलोम में पद के समान संधि होती है, जबकि अनुलोम में क्रम के समान। जटा पाठ में प्रथम सीधा क्रम, तदन्तर विपरीत क्रम, पुनः उसी सीधे क्रम का पाठ किया जाता है। गणितीय भाषा में इसको1, 2, 1कहा जा सकता है। जब जटापाठ में अगला पद जोड़ दिया जाता है, तब वह शिखापाठ कहलता है। शिखापाठ प्रथमपद, तदनन्तर द्वितीय पद, पुनः वही प्रथम पद और उसके पश्चात तृतीय पद का ग्रहण किया जाता है। अगली पंक्ति में तृतीय एव चतुर्थ पद का अनुलोम, विलोम, पुनः अनुलोम करने के पश्चात पंचम पद का पाठ किया जाता है।

इसी प्रकार यह क्रम चलता रहता है। माला पाठ दो प्रकार का होता है- पुष्पमाला और क्रम माला। क्रममालापाठ के आधी ऋचा के प्रारम्भ के दो पद तथा अन्त का एक पद, तदनन्तर प्रारम्भ से द्वितीय एवं तृतीय पद तथा अन्त की ओर से षष्ठ एवं पञ्चम पद, पुनः प्रारम्भ से तृतीय एवं चतुर्थ पद और अन्त की ओर से पंचम एवं चतुर्थ पद। इसी प्रकार आधी ऋचा के मध्य से आदि और अन्त की ओर बढ़ते हुए चले जाते हैं और पुनः जहाँ से चले थे वहाँ पहुँच जाते हैं। रेखा पाठ में दो, तीन, चार या पाँच पदों का क्रमशः पाठ किया जाता है। इस पाठ में प्रथम अनुलोम पाठ किया जाता है, तदनन्तर विलोम, पुनः अनुलोम पाठ किया जाता है।

वेदपाठ की विशेष विधियाँ: ध्वज, दण्ड, रथ और घनपाठ

ध्वजपाठ में क्रम से प्राप्त होने वाले दो पदों का पाठ करते हुए आदिक्रम में अनुलोम से प्रारम्भ होकर अन्त तक तथा अन्तक्रम में विलोम से प्रारम्भ होकर आदि तक पहुँचा जाता है। दण्डपाठ में प्रथम अनुलोम पुनः विलोम पाठ करते हुए मन्त्र के सभी पदों का पाठ किया जाता है।

यह पाठ इस प्रकार का होता है कि प्रथम दो पदों का अनुलोम-विलोम करते हुए त्रमशः उसमें एक-एक पद की वृद्धि की जाती है। रथ पाठ तीन प्रकार का होता है- द्विचक्ररथ, त्रिचक्ररथ, चतुश्चक्ररथ। घनपाठ में क्रम को अन्त से प्रारम्भ करके आदि पर्यन्त और आदि से प्रारम्भ करके अन्त तक ले जाया जाता है। इस घनपाठ के अनेक भेद हैं। घनपाठ अन्य वेदपाठों की तुलना में अधिक कठिन माना जाता है। वैदिक विद्वानों के अनुसार  यह मेधाशक्ति की पराकाष्ठा तथा उत्कर्ष है कि ऐसे विषम पाठ को हमारे वेदपाठी शुद्ध स्वर से अनायास ही पाठ करते हैं।

सामवेद की रक्षा करने के लिए ऋषियों ने उपर्युक्त से भिन्न प्रक्रिया अपनायी है। सामवेद की रक्षा की दृष्टि से स्वरगणना का माध्यम अपनाया गया है। यह स्वरगणना अत्यन्त समीचीन है और ऐसी गणना अन्य वेदों के मंत्रों में नहीं पायी जाती है। सामवेद के ऋचाओं पर उदात्तादि तीनों स्वरों के विशिष्ट चिह्न अंकित किये गये हैं। सामवेद में उदात्त के ऊपर1 का अंक, स्वरित पर 2 का तथा अनुदात्त पर 3 का अंक लगाया जाता है। स्वरों की विशेष गणना की व्यवस्था सामवेद में की गयी है।

वेदों की रक्षा: वेदपाठविधि और इसके अभेद्य सुरक्षा उपाय

वैदिक विद्वानों के अनुसार इस वेदपाठविधि के विधान के कारण ही वाममार्गी और जैनियों ने जो इस देश के साहित्य को प्रदूषित करने का कुचत्र चला रखा था, वह प्रदूषण वेदों को संत्रमित नहीं कर पाया। महाभारत युद्ध के पश्चात जहाँ एक ओर भारत देश वीरों और विद्वानों से शून्य हो गया था, वहीं दूसरी ओर स्वार्थी तत्त्वों ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए समग्र भारतीय साहित्य को नाना प्रकार से संदूषित करने की प्रक्रिया चला रखी थी।

उनका यह प्रयास बहुत अधिक सफल भी रहा, परंतु वे वेद में एक भी अक्षर की मिलावट करने में सफल नहीं हो सके। जिसके कारण hindu dharm ved का उच्चारण जिस प्रकार प्राचीन काल में हुआ करता था, आज भी इस वेदपाठविधि के कारण उसी रूप में सुना जा सकता है। यह व्यवस्था वेद की रक्षा के लिए एक अभेद्य दुर्ग का निर्माण करती है। यही कारण है कि वर्तमान में वेद उसी शुद्ध और प्रामाणिक रूप में उपलब्ध हो रहा है।

( लेखक सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता हैं। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर शोधपूर्ण लेखन करते हैं )
साभार- https://www.nayaindia.com/ से

रंगबिरंगी तितली रानी : बाल मन को प्रफुल्लित करती कविताएं

अपने करतबों से हंसता, बहलाता जोकर, छुक- छुक करती रेल की सवारी का आनंद, पेड़,बगीचे,नदियां,बादल, बरसात प्रकृति और पर्यावरण से जोड़ती, बंदर,हाथी, भालू, घोड़े, मुर्गा,कुत्ता,बिल्ली , कोयल पशु – पक्षी का महत्व समझाती, प्यार लुटाती माँ, मदारी का कौतुक लिए कविताओं का संग्रह ” रंगबिरंगी तितली रानी ” बाल मन को रोमांचित करता है। योगिराज योगी की छोटी –  छोटी बाल कविताओं का यह ऐसा  अनूठा  संग्रह है जिसमें नन्हें -मुन्नों के लिए भरपूर मनोरंजन है, कौतुक है, जानकारियां है, रोचकता है, और सामान्य जान से भरपूर हैं।
कविताएं बच्चों की जिज्ञासाओं को भी पूरा करने में सहायक हैं। जिनके प्रति बच्चों को लगाव होता है वह कविताओं में समाया है। भाषा  और शब्दों का चयन इतनी सहज, सरल,तरल है की सीधे दिल और दिमाग को छू लेती है। मनोरंजन का पुट भरपूर होने से इन्हें गुनगुनाने लगते हैं। मुख्य विशेषता यह भी है कि बाल कविताओं में पारंपरिक विषयों के साथ – साथ अधुनातन का भी मेल भी देखने को मिलता है।
” मेरी मम्मी” कविता में जब बच्चा कहता है, ” रोटी गरम खिलाती मम्मी, मुझ पर प्यार लुटाती मम्मी” तो इससे मॉ का उसके प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। ऐसे ही नानी के वात्सल्य भाव को बताते हुए बालक ” नानी का घर ” कविता में कहता है, ‘ नानी रखती पूरा ध्यान, हो कर आता मैं बलवान।’
किसी को मुस्कराहट देने से बड़ा कोई काम नहीं है। आपके किसी काम से कोई मुस्कराए इस से बड़ी दूसरी कोई बात नहीं हो सकती। इस संदेश को बहुत ही प्रभावी तरीके से बच्चों को दिया है ” जोकर ” कविता में, ” जोकर सर्कस की जान, नाटा कद इस की पहचान/ टॉप लगता अपने सर पर, खूब हंसता हमको जम कर/ नए नए करतब दिखाता, हँसा हँसा
कर मन बहलाता/ बड़ा कठिन है खुशी लूटना, जोकर से सीखो मुस्काना ।
 आकाश में तारे खूब चमकते हैं, टिम टिमाते हैं, प्रकाशित होते हैं – इस पर लिखी कविता ” तारे” में ध्रुव तारे की जानकारी मनोरंजन के साथ यूं दे दी है, ” ध्रुव नाम का एक तारा, चमचम करता लगता प्यारा।” ” बिल्ली ” कविता में इसके स्वभाव से परिचय कराते हुए लिखते हैं, ” आँखें घूर डराती बिल्ली, कुत्तों से घबराती बिल्ली।” इसी तरह ” मोर ” कविता में मोर का स्वभाव बताया गया है, ” नाच दिखाता पंख खोल कर, दाना चुगने आता घर पर/ मिर्ची बेज चाव से खाता, इसे देख सांप छिप जाता।”
जीवन में फुर्ती का और चौकस अर्थात सजग रहने के महत्व पर ” हिरन ” कविता में उसके इन्हीं गुणों को बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास किया है, ” आँखें इसकी सुंदर, फुर्ती में बड़ा धुरंधर/ चौकस रह कर चरता है, सदा झुंड में रहता है।” उड़ती, फूलों पर मंडराती तितली बच्चों को कितना भाती है,कवि इस कविता में कहता है, ” चार पंख होते छः पैर, उपवन उपवन करती सैर/ बच्चें दौड़ लगते पीछे, तितली से इनका मन रीझे।” सड़क कविता में बच्चों को दुर्घटना से बचने का उपयोगी संदेश दिया है, ” इस पर बाईं ओर है चलना, दुर्घटना से बच कर रहना।” संग्रह की अंतिम कविता ” बादल” बरसात के फायदे के बारे में जागरूक करती है, ” खेतों खेतों में खड़े किसान, खुशहाली के गाते गान।”
मनोहारी सभी चालीस बाल कविताओं का यह इंद्रधनुष बच्चों के मन को खूब भाएगा। कवि के लेखन की यही सार्थकता है। साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘ ने अपने मन को कविताओं से जोड़ते हुए  ” रंगबिरंगी तितली रानी और मेरा पाठक मन* प्रेरक भूमिका लिखी है। प्रकाशकीय साहित्यकार कीर्ति श्रीवास्तव ने लिखा है। और यूं हुआ बाल कविताओं का सृजन में लेखक ने सहयोगियों का आभार जताते हुए भविष्य में बाल लेखन करते रहे का संकल्प लेते हुए यह कृति बच्चों को पसंद आने की कामना की है। हरे और गुलाबी आभा लिए फूलों और तितलियों से सज्जित आवरण पृष्ठ आकर्षक है।
पुस्तक : रंगबिरंगी तितली रानी
लेखक : योगिराज योगी, कोटा
प्रकाशक : बौद्धि प्रकाशन, जयपुर
प्रथम प्रकाशन  : 2022
कवर : पेपर बैक
पृष्ठ : 52
साइज : ए फॉर
मूल्य : 220 ₹
(लेखक कोटा में रहते हैं और साहित्यिक व सांस्कृतिक व पर्यटन से जुड़े ऐतिहासिक विषयों पर  लेखन करते रहते हैं)
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

अरब सागर में जहाज डूबने के बाद भारतीय तटरक्षक बल ने चालक दल के नौ सदस्यों को बचाया

भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) ने 26 दिसंबर, 2024 को पाकिस्तान के खोज और बचाव क्षेत्र (उत्तरी अरब सागर) में गुजरात के पोरबंदर से लगभग 311 किलोमीटर पश्चिम में स्थित एक डूब चुके हुए जहाज एमएसवी ताज धारे हरम से नौ भारतीय चालक दल के सदस्यों को सफलतापूर्वक बचा लिया। चुनौतीपूर्ण समुद्री परिस्थितियों में चलाए गए खोज और बचाव मिशन ने मुंबई और कराची, पाकिस्तान के समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (एमआरसीसी) के बीच असाधारण सहयोग को प्रदर्शित किया।

गुजरात के मुंद्रा से रवाना होकर यमन के सोकोत्रा की ओर जाने वाला यह जहाज समुद्र की लहरों और जहाज पर बाढ़ की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुआ। नियमित निगरानी उड़ान के दौरान आईसीजी डोर्नियर विमान को संकट की सूचना का पता लगा, जिसके बाद एमआरसीसी, मुंबई और गांधीनगर में आईसीजी क्षेत्रीय मुख्यालय (उत्तर पश्चिम) ने तुरंत कार्रवाई की। पहले से ही नजदीक में गश्त कर रहे आईसीजीएस शूर को घटनास्थल पर तेज़ रफ्तार से भेजा गया, जबकि एमआरसीसी पाकिस्तान ने इलाके में मौजूद जहाजों को सतर्क कर दिया। गहन खोज के बाद, चालक दल के सदस्यों को एक लाइफ राफ्ट (जीवन रक्षक बेड़े) पर पाया गया, जो जहाज को छोड़कर शरण ले रहे थे।

बचाव अभियान जहाज के पूरी तरह डूबने से पहले, शाम करीब 4 बजे पूरा हुआ। सभी चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित रूप से आईसीजीएस शूर पर लाया गया, जहां उन्हें चिकित्सा सहायता प्रदान की गई और उन्हें स्वस्थ घोषित किया गया। नाविक अब पोरबंदर बंदरगाह के लिए रवाना हो गए हैं।

मीठा मीठा मीडिया, कुनैन है पत्रकारिता

मैं किस्म किस्म के गीत बेचता हूं, बोलो जी कौन सा खरीदोगे, गीत की यह पंक्तियां जब पढ़ते थे तो हंसा करते थे। तब मालूम ना था कि यह गीत की यह दो पंक्तियां भविष्य की मीडिया की कहानी का सच बन कर सामने खड़ा कर दिया जाएगा। आज यही सच है कि मीडिया का कारोबार बढ़ रहा है और सरोकार की पत्रकारिता हाशिए पर है। या यूं कहें कि अब साम्राज्य मीडिया का ही रहेगा तो कुछ गलत नहीं है। नई पीढ़ी संभावनाओं से लबरेज़ है, वह जानना और समझना चाहती है। वह पत्रकारिता करना चाहती है लेकिन हम ही उन्हें मीडिया का हिस्सा बना देते हैं। एक जवान को जिंदगी में हम जैसी तंगहाली थोड़े चाहिए। उसे थोड़े समय में आसमां छू लेना है। एयरकंडीशन केबिन, बड़ी गाड़ी और ज्ञान के नाम पर कान में फूंके गए मंत्र के बूते रातों रात स्टार बन जाते हैं। आज की पत्रकारिता का सच यही है।
अब जब इस राह से गुजरना हो तो कुछ अपने अनुभव पुराने और नए साथियों के अनुभव को साझा करना ज़रूरी हो जाता है। उम्र के 6 दशक में इतना तो पा लिया कि सम्मान के साथ अपनी बात कह सकने का साहस रखूं। हां, एक बात से हमेशा भी खाता हूं कि कोई नया साथी मुझे गुरु संबोधित करे। मैं इस शब्द से बेजार ही रहना चाहता हूं और अब तक यक़ीन है। खैर, मुद्दा यह है कि मीडिया का नए वर्ष में क्या स्वरूप होगा? यक़ीन के साथ कह सकता हूं कि मीडिया का स्वरूप पहले से बेहतर होगा और होना भी चाहिए। आज का नौजवान लाखों खर्च कर जब पढ़ाई पूरी करता है तो उसे इसका भी हकदार मानने में कोई हर्ज नहीं। खर्च किया है तो वापस लेगा भी। मीडिया की यही खासियत उसे दिनों दिन आगे बढ़ा रही है। इसलिए मुझे निजी तौर पर लगता है कि सब ठीक है। व्यापार की समझ ना पहले थी और अब क्या होगी। हां लिखने का जो सुख मिलता है, वह मेरी अपनी पूंजी है।
मीडिया शब्द ही आरम्भ से मेरे लिए एक पहेली बना रहा। संभव है कि जानकार इसके व्यापक प्रकार से परिचित हों और मैं ग़ाफ़िल। यह शब्द भारतीय हिंदी पत्रकारिता का तो ना है और ना होगा। हम गांधी बाबा की पत्रकारिता से जुड़े हैं। हमारे पुरुखों में शान से पराड़कर, विद्यार्थी और अनेक नाम हैं, जिन्हें पढ़ कर हमने दो शब्द लिखना सीखा है। इस थाती को मीडिया के नाम करने का कोई इरादा नहीं। हां, इक इल्तज़ा नए साथियों से ज़रूर रहती है कि मीडिया में भविष्य ज़रूर बनाएं लेकिन आत्मा में हमारे पुरुखों को भी सहेज कर रख लें। जब आप बीमार होते हैं तब रसोगुल्ला ठीक नहीं करता, वैसे ही मीडिया की चकाचौंध से ऊब जाने पर पुरखा पत्रकार आपको स्ट्रेस से बचा सकते हैं।
मीडिया और पत्रकारिता के बीच एक महीन सी दरार है और यह सहमति है कि दोनों के रास्ते जुदा जुदा हैं। मीडिया कहता है कि राजा ने कहा रात है, मंत्री ने कहा रात है, सबने कहा रात है, यह सुबह सुबह की बात है। पत्रकारिता की रीत इससे उलटी है। वह हां में हां करने और लिखने से अलग रखता है। मेहनत कम, मॉल में दम मीडिया के लिए कारगर संबोधन है। अब फ्यूचर मीडिया का ही होगा, कोई शक नहीं। अब हम बाज़ार हैं, उपभोक्ता हैं और हमारा मूल्य मीडिया चुकाता है।
बरबस मुझे अपने बचपन के उन दिनों की याद आ जाती है जब पूरे अख़बार को धूप में फ़ैला कर हिज्जा कर अपनी हिंदी ठीक करते थे। पांच पैसों का उस दौर में क्या मोल था, मेरे अपने दौर के दोस्त जानते हैं। अब जरूरत हिंदी की नहीं, हिंदी को हाशिए पर रख देने की है और वह बाज़ार के इशारे पर हो रहा है। आपके मेरे बच्चे अंग्रेजी स्कूलों से शिक्षित हैं और अपना भविष्य अंग्रेज़ी में तलाशते हैं तो इसमें उनकी नहीं, हमारी गलती है। इन सब के बीच हमने क्या खोया, इसकी मीमांसा करने बैठ गए तो लज्जा से ख़ुद का चेहरा भी आईना में देख नहीं पाएंगे। एक दूसरे की पीड़ा, रिश्तों की गर्माहट अब सिक्कों की खनक में दबा दिया गया। मीडिया सुविधा देता है और पत्रकारिता सुकून। तय नौजवान पीढ़ी को करना है कि उसे क्या चुनना है। मेरी समझ में सुकून के ऊपर सुविधा बैठेगी।
अब अख़बारों को भी ताज़ा चेहरा चाहिए। अगर ठीक हूं तो 35 पार के लिए कपाट बंद है। यह भी बाजार की रणनीति है। लेकिन ठीक उलट टेलीविजन की दुनियां है जहां उम्रदराज लोगों की बड़ी टीम का जमावड़ा है। इस विरोधाभास को भी समझने की कोशिश कर रहा हूं। यकीनन यह भी बाजार की ही रणनीति होगी लेकिन समझना होगा कि इसके बाद भी कारगर कौन है?
आख़िर जिस दौर में हम यह तय कर रहे हैं कि कौन सा अखबार किस वर्ग का होगा, उस दौर में यह सब बेमानी है। मुद्दा यह है कि वक्त अभी बीता नहीं कि हम लालटेन बन कर रास्ता ना दिखा सकें। पत्रकारिता के बाद एक शिक्षक के नाते पूरा भरोसा है कि एक लालटेन की रोशनी पूरा खेल बदल देगी। आपको उनकी भाषा, बोली में बात करना सीखना होगा। कितने को याद है कि शशिकपूर अभिनीत न्यू डेल्ही टाइम्स नाम की कोई फिल्म आई थी। ऐसे अनेक उदाहरण है जिसे लालटेन की महीन रोशनी से उन भावनाओं को ज़िंदा रखा जा सकता है, जिसकी हमारे पास शिकायतों का अंबार है। हां, ध्यान रखिए किसी को सिखाने के पहले ख़ुद को शिक्षित करना होगा।
(एम सी यू में एकजंट प्रोफेसर रहे वरिष्ठ पत्रकार कम्युनिटी रेडियो के जानकार हैं। मध्य प्रदेश शासन में 8 कम्युनिटी एवं रेडियो कर्मवीर की स्थापना के पहले रेडियो सलाहकार भी रहे। दस अन्य किताबों के साथ हिंदी में कम्युनिटी रेडियो पर किताब भी है। 25 वर्ष से नियमित प्रकाशित रिसर्च जर्नल “समागम” के संपादक हैं)

एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी

श्रीनारायण चतुर्वेदी का नाम सुनते ही उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में जन्मे महान कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेेखक का स्वरूप आंखों के सामने आ जाता है जिनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी अपने समय के संस्कृत भाषा के नामी विद्वान थे। उनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से हुई थी। जो स्वतंत्रता से पूर्व उन्होंने सन् 1926 से 1930 तक जिनेवा में भारतीय शैक्षिक समिति के प्रमुख तथा कई वर्षो तक उत्तर प्रदेश सरकार के शैक्षिक विभाग के भी प्रमुख रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उन्होंने आल इंन्डिया रेडियो के उप महानिदेशक (भाषा) के रूप में तैनात रहकर हिंदी भाषा विज्ञान के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुये सेवानिवृत हुए थे।

उनके अलावा एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के मलौली गाँव में प्रसिद्ध साहित्यिक कुल में भी हुआ था जिसमें अभी तक ज्ञात सात उच्च कोटि के छंदकार अवतरित हुए हैं। इस पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी का जन्म कार्तिक कृष्ण 15,संवत् 1938 विक्रमी को दीपावली के दिन हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ था । जो अब नवगठित नगर पंचायत हैसर बाजार-धनघटा के वार्ड नंबर 6 में आता है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचो बीच है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है ।

श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था।  जिनके छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। ये सभी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ के भाई थे। श्री नारायण बचपन में बड़े प्रतिभाशाली थे। अपने छः भाइयों में श्रीनारायण इतने कुशाग्र थे कि कोई भी भाई इनसे तर्क वितर्क नहीं कर पाता था। संस्कृत, फारसी, आयुर्वेद और ज्योतिष पर इनका पूर्ण नियंत्रण था। वे महीनों सरयू नदी और गंगा नदी के तट पर कल्प वास किया करते थे।

पदमाकर जी के गंगा लहरी की भांति श्री नारायण जी ने 109 छंदों की सरयू लहरी लिखा था जो दुर्भाग्य बस गायब हो गया। इससे पहले महाकवि सूरदास ने साहित्य लहरी नामक 118 पदों की एक लघु रचना लिखी है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया गया है। इसी प्रकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने प्रेम लहरी, जम्मू के जाने-माने साहित्यकार प्रियतम चंद्र शास्त्री की शृंगार लहरी रचना है। बद्री नारायण प्रेमधन की लालित्य लहरी आदि लहरी रचनाएँ रही हैं। मूलतः लहरियों में धारा प्रवाह या भाव प्रभाव रचनाओं की अभिव्यंजना मिलती है। इसी तरह

भारतेंदु हरिश्चंद्र’ ने भी “सरयूपार की यात्रा” नामक एक यात्रा वृतांत लिखा है है। जिसका रचनाकाल 1871 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

श्रीनारायण चतुर्वेदी रीतिशास्त्र के ज्ञाता थे। उन्होंने देव बिहारी और चिन्तामणि के छंदों को कंठस्थ कर लिया था। लोग घण्टों उनके पास बैठ कर श्रृंगार परक रचना का रसास्वादन किया करते थे। उन्हें भाषा ब्रज, छंद मनहरन और सवैया प्रिय था। उनका श्रृंगार रस का एक छंद (डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ कृत ‘बस्ती के छंदकार’ भाग 1, पृष्ठ 13 – 14 के अनुसार ) द्रष्टव्य है –

कंज अरुणाई दृग देखत लजाई खंग

समता न पायी चपलायी में दृगन की।

वानी सरसायी दीन धुनिको लजायी

पिक,

समता न पायी वास किन्हीं लाजवन की।

जंघ चिकनाई रम्भा खम्भ हू न पायी

नाभि,

भ्रमरी भुलाई मन नीके मुनिजन की।

बुद्धि गुरुवायी श्री नारायण की जाती फंसि ,

देखि गुरुवायी बाल उरज सूतन की।।

एक अन्य छंद भी द्रष्टव्य है –

बाल छबीली तियान के बीच सो बैठी प्रकाश करै अलगै।

चंद विकास सो हांसी हरौ उपमा कुच कंच कलीन लगै।

दृग की सुधराई कटाछन में श्रीनारायण खंज अली बनगै।

मृदु गोल कपोलन की सुषमा त्रिवली भ्रमरी ते मनोज जगै।

श्रीनारायण कवि का यह छंद शृंगार की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। ये मलौली के कवि परम्परा के प्रथम चरण के अंतिम कवि थे।

 

लेखक परिचय

 

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

पाँच सौ साल पहले हमारे पूर्वजों ने पिन-होल कैमरे के रहस्य का पता लगा लिया था

हममे से अनेकोंने बचपन मे, ‘पिन होल कैमरा’ के तकनीक का उपयोग करते हुए घर के अंधेरे कमरे में, किसी प्रकाशित वस्तू की प्रतिमा देखी होगी। जब किसी अंधेरे कमरे मे छोटासा झरोखा होता है, तब उस झरोखे से, बाहर की प्रकाशमान वस्तू या वास्तु की प्रतिमा, उस अंधेरे कमरे मे उलटी दिखती है। बिलकुल सिनेमा जैसी। इसी को ‘पिन होल कैमरा तत्व’ कहते है। इस सिद्धांत पर आधारित, विश्व के प्रथम पिन होल कैमरा की संकल्पना, भारत मे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ होने केवल एक वर्ष पूर्व, अर्थात 1856 मे, एक स्कॉटिश वैज्ञानिक ने रखी। डेव्हिड बुस्टर नाम के इस वैज्ञानिक ने ‘द स्टिरिओस्कोप’ नाम की एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमे यह संकल्पना विस्तार से लिखी थी। इसमे बूस्टर ने इस कैमरा का वर्णन, ‘एक लेन्स रहित कैमरा जिसमे केवल एक पिन होल होता है’ ऐसा किया है।

यही पिन होल कैमरा की संकल्पना प्रत्यक्ष रूप से दिखती है, पांच सौ वर्ष पुराने मंदिर मे। विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हंपी का विरुपाक्ष मंदिर। तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा हुआ यह मंदिर, वर्ष 1509 मे पूर्ण हुआ। विरुपाक्ष का अर्थ, विरूप+अक्ष ऐसा होता है। अर्थात विशेष आखों के भगवान का मंदिर। यह मंदिर भगवान शंकर का है। इसे ‘प्रसन्न विरुपाक्ष मंदिर’ ऐसा भी कहते है। इसका अन्य एक नाम पंपापती ऐसा भी है।

यह मंदिर प्राचीन है। इसमे नौवी और दसवी शताब्दी के भगवान शंकर से संबंधित शिलालेख मिले है। सन 1509 मे अपने राज्याभिषेक के समय, राजा कृष्णदेवरायने इस मंदिर का भव्य रूप मे पुननिर्माण किया, और उसके साथ निर्माण किया पचास मीटर उंचा गोपूर। यह गोपूर सात स्तरों का बना है। सबसे नीचे वाला स्तर यह प्रस्तरों का अर्थात पत्थरोंका बना हुआ है। उसके उपर के छह स्तर, चूने से जोडी गई ईटों के बने है।

इस मंदिर में, गर्भगृह के बाजू मे (गर्भगृह की और देखते हुए खडे होने पर, अपने दाहीने हाथ में) एक कमरा है। इस कमरे मे प्रकाश कम आता है। जैसे डार्क रूम होती है, लगभग वैसे ही यह कमरा है।  इस कमरे मे एक बहुत छोटासा झरोखा है। इस झरोखे से लगभग 300 मीटर दूरी पर, वह विशाल गोपुरम हैं। अगर हम उस कमरे के दरवाजे को पूरा बंद करते हैं, अर्थात, डार्क रुम जैसा वातावरण तैयार करते है, तो पचास मीटर उंचाई के उस गोपुरम की उलटी प्रतिमा, उस कैमरे मे तैयार होती है। बिलकुल वैसे ही, जैसे हम सिनेमा मे देखते है। अगर हम उस झरोखे मे अपना हाथ हिलायेंगे, तो वह प्रतिमा जैसे झूम होती है और हिलती भी है।

इसी का अर्थ, पांच सौ से अधिक वर्ष पूर्व, यह पिन होल कॅमेरा की तकनीक अपने मंदिरों के वास्तुविदों को पता थी। यह अद्भुत है।

पिन होल कैमरा का सिद्धांत इसके पूर्व भी पता था। इसके संदर्भ कही – कही मिलते है। आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व, ‘मोझी’ इस प्राचीन चिनी लिपी मे इस सिद्धांत की अस्पष्ट सी जानकारी मिलती है।

‘इब्न अल् हेथम’ (Ibnal Haytham सन 965 -1040) यह एक अरबी शोधकर्ता थे। उन्हे पदार्थ विज्ञान मे रुची थी। विज्ञान की बहुत सी बाते उनको पता थी, ऐसा उनका मानना था। इसीलिए, उस समय के (दसवी शताब्दी के) बगदाद के खलिफा ने उन्हे बुला लिया। इब्न अल् हेथम बगदाद गये। खलिफा ने, नाईल नदी मे नित्य आने वाली बाढ का प्रतिबंध करने के लिए उन्हे कुछ उपाय करने के लिए कहा। वें, ‘नाईल नदी पर मैं बांध बनाकर बाढ को रोकुंगा’ ऐसी बडी – बडी बाते करके वापस आए। लेकिन वापस आने के बाद उन्हे लगने लगा की ‘बहुत बडी गडबड हुई है। यह काम अपने बस का नही है’। उन्होने जाकर खलिफा को बताया। खलिफा नाराज हुआ और हेथमको कैद किया। इस दौरान हेथम को उस कारागार की कोठरीमे पिन होल कैमरा का सिद्धांत समझ मे आया, ऐसा मानते है। आगे चलकर हेथम ने अरबी भाषा मे ‘बुक ऑफ ऑप्टिक्स’ लिखी।

या पुस्तक सन 1572 मे फ्रेडरिक राईजनयर ने जर्मन भाषा मे प्रकाशित की। अब बात यह है कि भारतीयों को यह ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ? निश्चित रूप से तो नही बता सकते। परंतु इब्न अल् हेथम के माध्यम से भारत मे आया, इसका कोई प्रमाण नही मिलता। यह ज्ञान भारत मे उसके पूर्व से था। परंतु पिन होल कैमरा तकनीक से दूर की वस्तू, अंधेरे कमरेमे उलटी देख सकते है, इसमे कोई बडा वैज्ञानिक तत्व छुपा हैं, ऐसे हमारे प्राचीन शोधकर्ताओं को और वास्तुविदों को नही लगा होगा। क्योंकि इससे भी क्लिष्ट और विस्मयकारी रचनाएं इन वास्तुविदोने भारत मे की है।

*प्रकाश क्या होता है? प्रकाश का पृथःकरण कैसे होता हैं, यह हमारे पूर्वजों को बहुत पहले से ही ज्ञात था। ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। ऋग्वेद के प्रथम मंडल में, सुक्त 587 से 599 में, भगवान सूर्य के महत्व का वर्णन किया है। सुक्त 594 और 595 मे स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि –

सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य ।
शोचिष्केशं विचक्षण ॥८॥ सूक्त – 594
अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्यः ।
ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः ॥९॥ सूक्त – 595

अर्थात, हे सर्व द्रष्टा सूर्य देव, आप तेजस्वी ज्वालाओंसे युक्त ऐसे दिव्यत्व को धारण करते हुए, सप्तवर्णी किरणों रुपी अश्वों के रथमे सुशोभित लग रहे है। पवित्रता प्रदान करने वाले, ज्ञानसंपन्न ऐसे सूर्यदेव, आपका सात रंगों का अश्वरथ आपको शोभा देता है।

सूर्यकिरणोंका पृथःक्करण करने पर ‘बैजानीहपीनाल’ (VIBGYOR) ऐसे सात रंगों के किरण तयार होते है, इसकी जानकारी पाश्चात्त्य जगत को अभी कुछ सौ वर्ष पहले ही पता लगी थी। हमारे पुरखे इसे कुछ हजार वर्षों से जानते थे !

सुश्रुत आद्य शल्य चिकित्सक थे, यह अब विश्व मानने लगा है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में, ‘रॉयल ऑस्ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जन्स’ की भव्य इमारत मे प्रवेश करतेही, सामने के हॉल मे, सुश्रुत की एक बडी प्रतिमा रखी है। उस पर ‘आद्य शल्य चिकित्सक’ लिखा है। ईसा से पहले 800 वर्ष, यह उनका कालखंड है। सुश्रुत ने ‘सुश्रुत संहिता’ मे आंखों के लैंस के संदर्भ मे लिखा है, ‘प्रकाश किरण जब आंखो के रेटिना पर पडती हैं, तब व्यक्ति को दिखने लगता है’ इसका विस्तार से वर्णन उन्होने किया है।

हमारे पूर्वजों को प्रकाश किरणोंका, प्रकाश किरण के गुण-विशेषणोंका, प्रकाश किरणों के प्रभाव का ज्ञान सहज, स्वाभाविक रूप से था। अब न्यायशास्त्र और प्रकाश के सिद्धांत का क्या संबंध है? कोई संबंध नही है। परंतु चौथी शताब्दि मे, ‘अक्षपद गौतम’ द्वारा लिखे हुए ‘न्याय दर्शन’ इस ग्रंथ मे ‘ऑप्टिक्स के सिद्धांत’ का उल्लेख है। इस ग्रंथ मे तिसरे अध्याय के 43 से 47 सुक्तोंमे इस प्रकाश परावर्तन के सिद्धांत का वर्णन किया है।

नक्तंचर नयनरश्मि दर्शनाच्य
अप्राप्यग्रहणं काचाभ्रपटल स्फटिकान्तरितोपलब्धे: I
कुड्यांतरितानुपलब्धेर प्रतिषेध:
आदित्यरश्मेः स्फटिकान्तरेsपि दाह्येsविघातात II

सारांश, सामान्य आंखो से जो सूक्ष्म चीजे  नही दिखती, वह कांच, अभ्रपटल (Mica) और स्फटिक (Crystal) के सहायता से हम देख सकते है।

जरा समझने का प्रयास करे, चौथे शताब्दि का यह  ‘न्यायशास्त्र ग्रंथ’, हमे लेन्स के विषय में बता रहा है..!

अक्षपद गौतम के सौ वर्षं के बाद, वराहमिहिर ने (वर्ष 510 से 587) ‘बृहत्संहिता’ इस प्रसिद्ध ग्रंथ मे इंद्रधनुष्य के निर्माण का सिद्धांत लिखा है। 35 वे अध्याय में वराहमिहिर लिखते है –

सूर्यस्य विविधवर्णाः पवनेन विघत्तीः कराः साभ्रे।
व्यति धनुः संस्था ये दृश्यन्ते तदिन्द्रधनुः ॥

अर्थात, ‘जब सूरज की किरणे हवा से, बादल भरे आकाश मे फैलती है, अर्थात विघटित होती हैं, तब उनके रंग अलग – अलग होते है, और उनकी एक पट्टिका तयार होती है। इसे ही इंद्रधनुष कहते है’।

वराहमिहीर के कुछ वर्ष पश्चात, आदी शंकराचार्यजीने (वर्ष 788 से 820) ‘अपरोक्षानभूती’ नामक एक छोटा ग्रंथ लिखा है। उसमे 81वा श्लोक हैं –

सूक्ष्मत्वे सर्व वस्तूनां स्थूलत्वं चोपनेत्रतः I
तद्वदात्मनि देवत्व पश्यत्यज्ञानयोगतः II

अर्थात, ‘जब हम लेंस के माध्यम से (चोपनेत्रतः) छोटी वस्तूएं देखते हैं, तब वह बडी दिखने लगती है। उसी प्रकार से, ज्ञान चक्षु के माध्यम से ज्ञान विस्तृत दिखने लगता है’।

यहां प्रकाश के सिद्धांत की चर्चा करते समय आदि शंकराचार्य चष्मे (चोपनेत्र) की संकल्पना स्पष्ट कर रहे है। यह चष्मे की संकल्पना प्राचीन भारत मे अनेक जगह मिलती है। श्रीलंका के गंपोला प्रान्त का भुवनाईका बहु (चौथा) राजा था। सन 1344 से 1354, ऐसे दस वर्ष तक उसका राज चल रहा था। राजा ‘क्वार्टझ क्रिस्टल’ का चष्मा पहनता था, ऐसे समकालीन इतिहासकारोंने लिखकर रखा है। (संदर्भ – श्रीलंका के ‘भंडारनायके सेंटर फॉर इंटरनॅशनल स्टडीज’ के समन्वयक जेनिफर पालन गुणवर्धने ने फेब्रुवारी 2018 के ‘Explore Sri Lanka’ इस पोर्टल पर एक आलेख लिखा है। इसका शीर्षक हैं, ‘Crystal Glasses That King Once Wore’).

इस राजा को चष्मा किसने दिया?
भुवनाईका बहू (चौथा) के राज्य काल मे उसने गदाला देनिया मे एक बडे बुद्ध मंदिर का निर्माण प्रारंभ किया। राजा को यह मंदिर, विजयनगर साम्राज्य के मंदिरों जैसा चाहिये था। उन दिनों, विजयनगर साम्राज्य, नया – नया स्थापन हुआ था। इसलिये राजा ने इस मंदिर के लिये विजयनगर के मुख्य वास्तुकार देव नारायण को अपने यहा बुला लिया। इसी देव नारायण ने राजा को क्रिस्टल का चष्मा दिया। इसका अर्थ स्पष्ट है, कि उस समय विजयनगर साम्राज्य मे, अर्थात दक्षिण भारत मे, चष्मा बनाने की कला प्रचलित थी। विजयनगर साम्राज्य मे राजा कृष्णदेवराय के कार्यकाल मे उनके राजगुरू थे व्यास राजा (व्यासा रायरु)। सन 1447 से 1539 यह उनका कालखंड था। उनका जीवन वृत्तांत, उनके समकालीन संस्कृत कवी सोमनाथ द्वारा लिखा गया है। इस ग्रंथ मे उल्लेख है की ‘उम्र के 73 वे वर्ष मे, सन 1520 मे, गुरु व्यास राजा कृष्णदेवराय के दरबार में चष्मा लगाकर ग्रंथ का वाचन कर रहे थे’। आगे चलकर 1771 मे जब अंग्रेजोंने तंजावुर जीत लिया, तब उन्हे क्वार्टझ क्रिस्टल से चष्मे की कांच (लेन्स) बनाने के छोटे कारखाने मिले। बाद मे ऑपर्ट ने 1807 मे लिखकर रखा है कि दक्षिण भारत मे लेन्स बनाने के कारखाने प्राचीन समय से थे।

यह सब इतने विस्तार से इसलिये लिखा है, कि प्रकाश के सभी भौतिक सिद्धांतों की जानकारी भारतीयों को पहले से ही थी। इसलिये पिन होल कॅमेरा की संकल्पना विरुपाक्ष मंदिर मे उपयोग मे लाते समय उन्होने यह बाहर से उधार नही ली थी! यह ज्ञान, (या यूं कहे, इससे भी प्रगत ज्ञान) भारत मे पूर्व से ही था, यह निश्चित!

अब पट्टडकल के विरूपाक्ष मंदिर का उदाहरण लीजिए। यह विरूपाक्ष मंदिर अलग है। इस संदर्भ मे शोध करने वाले अनेक शोधार्थी और अभ्यासक, इन दो विरुपाक्ष मंदिरो के बारे में भ्रमित होते है। गडबड करते है। दोनो मंदिरो मे बहुत सी समानताएं है। दोनो ही भगवान शंकर जी के मंदिर है। दोनो का नाम विरूपाक्ष ही है। दोनो मंदिर कर्नाटक मे ही एक दुसरे से केवल 136 किलोमीटर दूरी पर है। दोनो को युनेस्कोने वैश्विक धरोहर स्थल के रुप में संरक्षित किया है। हम्पी का विरूपाक्ष मंदिर विजयनगर (पहले का बेल्लारी) जिले मे आता है, तो पट्टडकल का विरूपाक्ष मंदिर, बागलकोट जिले मे आता है।

पट्टडकल का विरूपाक्ष मंदिर मलप्रभा नदी के किनारे स्थापित है। बदामी और ऐहोले के पास। आठवी शताब्दि मे चालुक्य राजा विक्रमादित्यने पल्लवों पर बडा विजय प्राप्त किया। उस विजय की स्मृति मे, विक्रमादित्य की पत्नी, रानी लोक महादेवी ने सन 739 – 740 मे इस मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर के पास एक विजयस्तंभ भी है। इस स्तंभ पर देवनागरी और कन्नड लिपी मे, विक्रमादित्य (द्वितीय) के पल्लवों पर विजय के संदर्भ में जानकारी लिखी है।

विक्रमादित्य (द्वितीय) ने  जब पल्लवोंको परास्त किया तब पल्लवों की राजधानी थी कांचीपुरम। इस कांचीपुरम के कैलास नाथ मंदिर, एकांबरेश्वर मंदिर जैसे अनेक मंदिरों का राजा विक्रमादित्य (द्वितीय) को आकर्षण था। विशेष रूप से कुछ ही वर्ष पूर्व, बनाया गया कैलास नाथ मंदिर। ऐसा मंदिर, राजा विक्रमादित्य को बनाना था। इसलिये पल्लव राज्य के ‘सर्व सिद्धीचारी’ और ‘गुंडा अनिवेदिता चारी’, इन दो प्रमुख वास्तुकारों को राजाने मंदिर निर्माण के लिए बुलाया। इन वास्तुकारोने, यह मंदिर एकदम सटीक रुप से, पूर्व – पश्चिम अक्षांश पर बनवाया है। इसके अठारह खंबों पर, रामायण, महाभारत और पंचतंत्र के प्रसंग उकेरे है। गर्भगृह के पहले ही कक्ष में, उपर छत पर विशाल सूर्य रचना का निर्माण किया है। सात घोडों के रथमे बैठे सूर्यदेव और दिन / रात की रचना..! सब भव्य रूप मे और पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धतीसे !

इन दोनो वास्तुकारोंने मंदिर निर्माण के समय गणित की अनेक मजेदार रचनाएं बनाई हैं। आगे चलकर सन 1509 मे, हम्पी के विरूपाक्ष मंदिर के निर्माण के समय यहां की रचनाये वहां पर भी  है। गणितीय सूत्रों से कुछ पॅटर्न तयार होते है, उन्हे फ्रॅक्टल्स कहा जाता है। पट्टडकल के विरुपाक्ष मंदिर मे ऐसे फ्रॅक्टल्स तयार किये गये है। विशेष रूप से ईसा से 200 वर्ष पहले, महर्षी पिंगल शास्त्री ने गणितीय संख्या के विस्तार के सूत्र लिखे है। तेरहवी शताब्दी में इटालियन गणितज्ञ फायबोनेची ने उसी का उपयोग किया, और अब पूरा विश्व उसे ‘फाइबोनेची सिरीज’ नाम से जानता है।

 (भारतीय ज्ञान का खजाना, भाग – 1 मे ‘श्रीयंत्र का रहस्य’ इस आलेख में इसकी विस्तार से जानकारी दी है)। पिंगल शास्त्री के गणितीय सूत्रों का, अर्थात फाइबोनेची सिरीज का, इस विरुपाक्ष मंदिर मे कुशलता से उपयोग किया गया है। पट्टडकल विरूपाक्ष मंदिर की रचना पूर्णतः भूमितीय श्रेणी रचना पर आधारित है। मंदिर का प्रत्येक यूनिट, भूमितीय श्रेणी (Multiplying) पद्धति से बढते जाने वाला है। इसके कारण अनेक गणितीय अनुबंध तयार हुए है।

सनद रहे, पट्टडकल का विरुपाक्ष मंदिर यह वर्ष 740 मे पूर्ण रूप से तैयार हुआ। इस्लामी आक्रांता भारत मे आने से 300- 400 वर्ष पहले। इस कालखंड मे, अपने वास्तुकार, गणितीय संकल्पनाओंका उपयोग अपने वास्तु मे कर रहे थे। आज के आधुनिक काल मे भी, दिमाग को चौंकाने वाले शिल्पोंका निर्माण कर रहे थे। बहुत कुछ अद्भुत और आश्चर्यजनक निर्माण हो रहा था..!

 प्रशांत पोळ
(आगामी ‘भारतीय ज्ञान का खजाना – भाग 2’ इस पुस्तक के अंश)

चुनावों के दिलचस्प आँकड़े जो आपको चौंका देंगे

ईसीआई ने लोकसभा चुनाव 2024 और एक साथ सम्‍पन्‍न 4 राज्य विधानसभा चुनावों का विस्तृत डेटा जारी किया

यह विश्‍व भर के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, चुनाव पर्यवेक्षकों सहित हितधारकों के लिए एक खजाना है

भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए 42 सांख्यिकीय रिपोर्टों और चार राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में एक साथ सम्‍पन्‍न प्रत्येक विधानसभा चुनाव के लिए 14 सांख्यिकीय रिपोर्टों का एक विस्‍तृत डेटा सेट जारी किया है।

इस पहल का उद्देश्य जनता के विश्वास को बढ़ाना है, जो भारत की चुनावी प्रणाली का आधार है। विस्‍तृत डेटा सेट जारी करना आयोग का अधिकतम खुलासा, अधिक पारदर्शिता और शिक्षाविदों, शोध और आम जनता सहित सभी हितधारकों के लिए चुनाव संबंधी डेटा की सुलभता की नीति को आगे बढ़ाने के लिए भी है।

डेटा सेट में कई चर संख्‍याएं शामिल हैं, जैसे संसदीय क्षेत्र (पीसी)/विधानसभा क्षेत्र (एसी)/राज्यवार मतदाताओं का विवरण, मतदान केंद्रों की संख्या, राज्य/पीसीवार मतदाताओं द्वारा मतदान, पार्टीवार वोट शेयर, लिंग-आधारित मतदान व्यवहार, महिला मतदाताओं की राज्यवार भागीदारी, क्षेत्रीय विविधताएं, निर्वाचन क्षेत्र डेटा सारांश रिपोर्ट, राष्ट्रीय/राज्य दलों/आरयूपीपी का निष्‍पादन, जीतने वाले उम्मीदवारों का विश्लेषण, निर्वाचन क्षेत्रवार विस्तृत परिणाम इत्‍यादि। शोधकर्ता, नीति निर्माता और पत्रकार अब गहन अंतर्दृष्टि और विश्लेषण करने के लिए तैयार किए गए डेटा के इस खजाने का उपयोग कर सकते हैं।

पिछले चुनावों के समान मानदंडों पर रुझान पहले से ही आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, इसलिए ये रिपोर्ट चुनावी और राजनीतिक परिदृश्य में दीर्घकालिक दृष्टिकोण और बदलावों पर नजर रखने के लिए समय-श्रृंखला विश्लेषण को सक्षम करेंगी।

लोकसभा आम चुनाव 2024 से संबंधित 42 रिपोर्टों के कुछ मुख्य अंश नीचे सूचीबद्ध हैं:

लोकसभा के लिए: 2019 में 91,19,50,734 मतदाता की तुलना में 2024 में 97,97,51,847 मतदाता। 2019 की तुलना में 2024 में कुल मतदाताओं में 7.43 प्रतिशत की वृद्धि (प्रतिशत)।

2024 में 64.64 करोड़ वोट पड़े, जबकि 2019 में 61.4 करोड़ वोट पड़े थे
ईवीएम+पोस्टल वोट: 64,64,20,869
ईवीएम वोट: 64,21,39,275

पुरुष: 32,93,61,948
महिला: 31,27,64,269
ट्रांसजेंडर: 13,058
डाक मतपत्र: 42,81,594

सर्वाधिक मतदान वाला पी.सी.: 92.3प्रतिशत धुबरी (असम)
सबसे कम मतदान वाला पी.सी.: 38.7 प्रतिशत श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर), जबकि 2019 में यह 14.4 प्रतिशत था।
50 प्रतिशत से कम मतदान प्रतिशत वाले पी.सी. की संख्या: 11
2019 में 1.06 प्रतिशत की तुलना में 2024 में नोटा को 63,71,839 (0.99प्रतिशत) वोट मिले।
ट्रांसजेंडर मतदाताओं (थर्ड जेंडर) का 27.09 प्रतिशत मतदान

 मतदान केंद्र
2024 में 10,52,664 मतदान केंद्र, जबकि 2019 में 10,37,848 मतदान केंद्र थे।
2019 में 540 मतदान केंद्रों की तुलना में केवल 40 मतदान केंद्रों [कुल मतदान केंद्रों का 0.0038 प्रतिशत) पर पुनर्मतदान
मतदाताओं/मतदान केन्द्रों की औसत संख्या: 931
सर्वाधिक पीएस वाला राज्य: उत्तर प्रदेश (1,62,069 पीएस)
सबसे कम पीएसयू वाला राज्य/केंद्र शासित प्रदेश: लक्षद्वीप (55 पीएसयू)
1000 से कम संसदीय क्षेत्र वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या: 11
3000 से अधिक सांसदों वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या: 3
2019 की तुलना में 2024 में मतदान केंद्रों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि वाला राज्य: बिहार (4739 मतदान केंद्र), उसके बाद पश्चिम बंगाल (1731 मतदान केंद्र)।

नामांकन:
2024 में 12,459 नामांकन दाखिल किये गए, जबकि 2019 में 11692 नामांकन दाखिल किये गये थे।
सर्वाधिक नामांकन वाले पी.सी.: पी.सी.- मलकाजगिरी (तेलंगाना) में 114
सबसे कम नामांकन वाली संसदीय सीट (सूरत को छोड़कर): 3 संसदीय सीट – डिब्रूगढ़ (असम)
2024 के चुनावों में, देश भर में दाखिल कुल 12,459 नामांकनों में से नामांकन खारिज होने और नाम वापस लेने के बाद 8,360 उम्मीदवार चुनाव लड़ने के योग्य पाए गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या 8054 थी।

नारी शक्ति:
पंजीकृत मतदाता
2024 में 97,97,51,847 में से 47,63,11,240 महिला मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 438537911 थी।
2024 में 48.62 प्रतिशत महिला मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 48.09 प्रतिशत थी।
2024 में महिला मतदाताओं की सर्वाधिक प्रतिशत हिस्सेदारी वाला राज्य: पुडुचेरी (53.03 प्रतिशत), उसके बाद केरल (51.56 प्रतिशत)।
2024 में प्रति 1000 पुरुष मतदाताओं पर महिला मतदाताओं की संख्या 946, जबकि 2019 में यह 926 थी।

मतदान:
2024 में 65.78 प्रतिशत महिला मतदाता द्वारा मतदान (सूरत को छोड़कर)  करेंगी, जबकि पुरुष मतदाताओं का प्रतिशत 65.55 होगा।
2019 की तरह 2024 में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक; लोकसभा के लिए आम चुनावों के इतिहास में यह केवल दूसरी बार।
महिला मतदाताओं की सर्वाधिक वीटीआर वाला संसदीय निर्वाचन क्षेत्र: धुबरी (असम) जहां 92.17 प्रतिशत महिला मतदान हुआ, उसके बाद तामलुक (पश्चिम बंगाल) में 87.57 प्रतिशत महिलाओं द्वारा मतदान हुआ।

चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार:
चुनाव लड़ने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या 800 थी, जबकि 2019 में 726 महिला उम्मीदवार थीं।
चुनाव लड़ने वाली सबसे अधिक महिला उम्मीदवारों वाला राज्य: महाराष्ट्र [111] उसके बाद उत्तर प्रदेश [80] और तमिलनाडु [77]।
कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 152 निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ी।

समावेशी चुनाव:
2024 में 48,272 पंजीकृत ट्रांसजेंडर मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 39,075 थी। पांच वर्ष की अवधि में 23.5 प्रतिशत की वृद्धि।
पंजीकृत ट्रांसजेंडर मतदाताओं की सर्वाधिक संख्या वाला राज्य: तमिलनाडु (8,467)।
2024 में 90,28,696 पंजीकृत दिव्यांग मतदाता, जबकि 2019 में यह संख्या 61,67,482 थी
लोकसभा चुनाव-2024 में 27.09 प्रतिशत ट्रांसजेंडर मतदाताओं (थर्ड जेंडर) – लगभग दोगुना ने मतदान किया, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 14.64 प्रतिशत था।
2024 में 1,19,374 पंजीकृत विदेशी मतदाता [पुरुष: 1,06,411; महिला: 12,950; थर्ड जेंडर: 13] जबकि 2019 में 99,844 पंजीकृत विदेशी मतदाता थे।

परिणाम:
लोकसभा चुनाव- 2024 में 6 राष्ट्रीय दलों ने भाग लिया। इन 6 दलों का कुल वोट शेयर कुल वैध वोटों का 63.35 प्रतिशत था।
2019 में 6923 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई, जबकि 7190 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।
एक पीसी – सूरत (गुजरात) निर्विरोध था।
कुल 3921 स्वतंत्र उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और उनमें से केवल 7 ही निर्वाचित हुए। 3905 स्वतंत्र उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। स्वतंत्र उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त वोट शेयर (प्रतिशत) कुल वैध वोटों का 2.79 प्रतिशत था।
279 स्वतंत्र महिला उम्मीदवार थीं।

भारत में 2023 में 18.89 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आगमन हुआ

2023 के दौरान पर्यटन के माध्यम से विदेशी मुद्रा आय (एफईई) बढ़कर 231927 करोड़ रुपये हो गई

2023 के दौरान 2509 मिलियन घरेलू पर्यटक आए

23 राज्यों में वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास के लिए पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता (एस.ए.एस.सी.आई.) के तहत 3295.76 करोड़ रुपये की 40 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई

स्वदेश दर्शन 2.0 के तहत 793.20 करोड़ रुपये की 34 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई

भारतीय प्रवासियों को दुनिया भर में अपने गैर-भारतीय मित्रों को भारत दिखाने के लिए आमंत्रित करने के लिए ‘चलो इंडिया’ अभियान शुरू किया गया; अभियान के तहत भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए एक लाख निःशुल्क ई-वीज़ा

अतुल्य भारत विषय-वस्तु हब का अनावरण किया गया ताकि वैश्विक यात्रा और पर्यटन उद्योग को अतुल्य भारत पर विषय-वस्तु का एकीकृत स्रोत उपलब्ध कराया जा सके

‘पर्यटन मित्र और पर्यटन दीदी’ पहल की शुरुआत की गई ताकि प्रमुख पर्यटन स्थलों में स्थानीय लोगों को प्रतिनिधि के रूप में सशक्त बनाया जा सके ताकि वे रोजगार और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देते हुए पर्यटकों के अनुभवों को बढ़ा सकें

‘देखो अपना देश पीपुल्स च्वाइस 2024’ – सबसे पसंदीदा पर्यटक आकर्षणों की पहचान करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण शुरू किया गया

विकसित भारत@2047 के लिए पर्यटन क्षेत्र के लिए विचार की परिकल्‍पना करने और विचार-विमर्श करने के लिए चार क्षेत्रीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन आयोजित किए गए

सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता 2024 की 8 श्रेणियों में 36 गांवों को विजेता के रूप में मान्यता दी गई

केंद्रीय होटल प्रबंधन संस्थानों ने भारतीय आतिथ्य शिक्षा को वैश्विक बनाने और रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए आठ अग्रणी राष्ट्रीय और वैश्विक आतिथ्य समूहों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए

वर्ष 2024 के दौरान पर्यटन मंत्रालय की प्रमुख पहल और उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:

बुनियादी ढांचे का विकास

पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत 5287.90 करोड़ रुपये की कुल 76 परियोजनाओं को मंजूरी दी है जिनमें से 75 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।

फ्लोटिंग हट्स और इको रूम, उत्तराखंड

पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना को स्वदेश दर्शन 2.0 (एसडी 2.0) के रूप में नया रूप दिया है जिसका उद्देश्य पर्यटक और गंतव्य केंद्रित दृष्टिकोण के साथ सतत और जिम्मेदार गंतव्यों का विकास करना है। एसडी 2.0 के तहत 793.20 करोड़ रुपये की 34 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

पर्यटन मंत्रालय ने प्रशाद योजना के अंतर्गत 1646.99 करोड़ रुपये की कुल 48 परियोजनाओं को मंजूरी दी है जिनमें से 23 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।

केंद्रीय एजेंसियों को सहायता योजना के तहत 937.56 करोड़ रुपये की कुल 65 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है जिनमें से 38 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं।

पर्यटन मंत्रालय ने पर्यटक मूल्य श्रृंखला के सभी बिंदुओं पर पर्यटकों के अनुभव को बढ़ाने के लिए स्वदेश दर्शन 2.0 योजना की उप-योजना के रूप में ‘चुनौती आधारित गंतव्य विकास’ के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं। इस योजना के तहत, चार विषयगत श्रेणियों (i) आध्यात्मिक पर्यटन, (ii) संस्कृति और विरासत, (iii) जीवंत ग्राम कार्यक्रम, (iv) इकोटूरिज्म और अमृत धरोहर स्थलों के तहत प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। पर्यटन मंत्रालय ने इस योजना में विकास के लिए विभिन्न पर्यटन विषयों के तहत 42 स्थलों का चयन किया है।

बजट घोषणाओं 2024-25 के अनुसरण में, पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता (एस.एस.सी.आई) के अंतर्गत 23 राज्यों में 3295.76 करोड़ रुपये की राशि की कुल 40 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है ताकि इन राज्‍यों को 50 वर्ष की अवधि के लिए ब्‍याज मुक्‍त, दीर्घकालिक ऋण दिया जा सके ताकि ये राज्‍य वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों का विकास और वैश्विक स्तर पर उनकी ब्रांडिंग और विपणन कर सके।

पर्यटन मंत्रालय ने 23 से 31 जनवरी, 2024 तक गणतंत्र दिवस समारोह के हिस्से के रूप में दिल्ली के लाल किला मैदान में “भारत पर्व” कार्यक्रम का आयोजन किया। देश के विविध पर्यटक आकर्षणों को प्रदर्शित करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के विषयगत मंडप लगाए गए। विभिन्न क्षेत्रीय सांस्कृतिक संघों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम ने देश भर के स्थानीय कारीगरों की भागीदारी के माध्यम से अपने उत्पादों को प्रदर्शित करके और बेचकर वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा दिया।

भारत पर्व 2024

5 श्रेणियों के तहत सबसे पसंदीदा पर्यटक आकर्षणों की पहचान करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण-‘देखो अपना देश पीपुल्स च्वाइस 2024’ की शुरुआत की गई। यह मिशन मोड में विकास के लिए आकर्षण और स्थलों की पहचान करने का एक प्रयास भी है जो विकसित भारत@2047 की दिशा में भारत की यात्रा में योगदान देता है।

पर्यटन मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से केन्द्रीय विद्यालय (केवी) और नवोदय विद्यालय (एनवी) के लिए राष्ट्रव्यापी देखो अपना देश स्कूल प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। छात्रों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने जिले के पर्यटन आकर्षणों, गंतव्यों, अनुभवों और अन्य आकर्षण केंद्रों का विवरण लिखें। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को देश के प्रत्येक जिले में मौजूद पर्यटन आश्‍चर्यों और आकर्षणों के बारे में जागरूक करना है।

चलो इंडिया ग्लोबल डायस्पोरा अभियान भारतीय प्रवासियों को अतुल्य भारत का राजदूत बनाने के लिए शुरू किया गया था। यह अभियान अतुल्य और विकसित भारत के लिए जन भागीदारी की भावना से लागू किया गया है ताकि भारतीय प्रवासियों को हर साल अपने 5 गैर-भारतीय मित्रों को भारत की यात्रा के लिए आमंत्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। चालू वित्त वर्ष के शेष भाग के लिए ‘चलो इंडिया’ अभियान के तहत भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए एक लाख निःशुल्क ई-वीजा की घोषणा की गई है।

जुलाई 2024 में भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र के अवसर पर, प्रतिनिधियों के लिए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, सदियों पुरानी सभ्यता, भौगोलिक विविधता, पर्यटन में छिपे रत्नों के साथ-साथ आधुनिक विकास को प्रदर्शित करने के लिए भारत मंडपम में एक ‘अतुल्य भारत’ प्रदर्शनी लगाई गई थी। प्रदर्शनी में सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ-साथ 10 केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों ने अपनी प्रस्तुतियाँ प्रदर्शित कीं। इसके अलावा, मंत्रालय ने दिल्ली शहर में प्रतिनिधियों के लिए विरासत भ्रमण और पर्यटन की भी व्यवस्था की।

भारत प्रदर्शनी _ विश्व धरोहर समिति की बैठक
भारत के उपराष्ट्रपति ने 27 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली में पर्यटन मंत्रालय द्वारा आयोजित विश्व पर्यटन दिवस समारोह में भाग लिया। इस वर्ष के विश्व पर्यटन दिवस का विषय ‘पर्यटन और शांति’ था। इस कार्यक्रम में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री, पर्यटन, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री, भारत में विभिन्न विदेशी मिशनों के राजदूत, भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों, यात्रा व्यापार और आतिथ्य उद्योग के अधिकारी भी शामिल हुए।

अतुल्य भारत कंटेंट हब को दुनिया भर के यात्रा और पर्यटन उद्योग को उच्च गुणवत्ता वाली छवियों, वीडियो और अन्य सूचनाओं तक पहुँच प्रदान करने के लिए लॉन्च किया गया था जिनकी उन्हें अतुल्य भारत को बढ़ावा देने के लिए आवश्यकता हो सकती है।

पर्यटन मंत्रालय भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की पर्यटन क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मार्ट (आईटीएम) का आयोजन कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मार्ट (आईटीएम) का 12वां कार्यक्रम 26 से 29 नवंबर, 2024 तक काजीरंगा, असम में आयोजित किया गया।

पर्यटन मंत्रालय भारत के पर्यटन स्थलों और उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए विदेशी बाजारों में आयोजित यात्रा मेलों/प्रदर्शनियों में भाग लेता है। इस वर्ष के दौरान, पर्यटन मंत्रालय ने आईटीबी बर्लिन, एमआईटीटी मॉस्को, एफआईटीयूआर मैड्रिड, एटीएम दुबई, आईएमईएक्स फ्रैंकफर्ट, पीएटीए ट्रैवल मार्ट, जापान टूरिज्म एक्सपो, आई.एफ.टी.एम. टॉप रेसा, डब्ल्यू.टी.एम. लंदन आदि सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भाग लिया है।

पर्यटन संबंधी आंकड़ें
वर्ष 2023 के दौरान भारत में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आगमन (आईटीए) 18.89 मिलियन था।
वर्ष 2023 के दौरान भारत में विदेशी पर्यटकों का आगमन (एफटीए) 9.52 मिलियन था।
वर्ष 2023 के दौरान पर्यटन के माध्यम से विदेशी मुद्रा आय (एफईई) 231927 करोड़ रुपये थी।
वर्ष 2023 के दौरान भारत में घरेलू पर्यटकों की संख्‍या (डीटीवी) 2509 मिलियन थी।

बैठकें और सम्मेलन
पर्यटन मंत्रालय ने विकसित भारत@2047 के लिए पर्यटन क्षेत्र के लिए विचार की परिकल्‍पना करने और विचार-विमर्श करने के लिए 22 अगस्त, 2024 से 9 सितंबर, 2024 तक चंडीगढ़, गोवा, शिलांग और बैंगलोर में चार क्षेत्रीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पर्यटन मंत्रियों के सम्मेलन आयोजित किए।

पर्यटन मंत्रालय ने सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता 2024 का दूसरा संस्करण शुरू किया जिसका उद्देश्य उन गांवों की पहचान करना है जो पर्यटन स्थल का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। यह प्रतियोगिता राज्यों, उद्योग और अन्य पर्यटन हितधारकों के साथ साझेदारी में आयोजित की गई थी। सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता 2024 की 8 श्रेणियों में 36 गांवों को विजेता के रूप में मान्यता दी गई।

पर्यटन मंत्रालय ने 27 सितंबर 2024 को विश्व पर्यटन दिवस पर ‘पर्यटन मित्र और पर्यटन दीदी’ नाम से एक राष्ट्रीय जिम्मेदार पर्यटन पहल शुरू की ताकि पर्यटन को सामाजिक समावेश, रोजगार और आर्थिक प्रगति के साधन के रूप में सक्षम बनाया जा सके और साथ ही गंतव्यों में पर्यटकों के लिए समग्र अनुभव को बेहतर बनाया जा सके जिससे उन्हें ‘पर्यटक-अनुकूल’ लोगों से मिलवाया जा सके जो उनके गंतव्य के लिए गर्वित राजदूत और कहानीकार हो।

पर्यटन मंत्रालय ने 8 प्रमुख आतिथ्य श्रृंखलाओं और 21 होटल प्रबंधन संस्थानों के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया। इस साझेदारी का उद्देश्य निजी होटल श्रृंखलाओं की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर छात्रों को उद्योग की सर्वोत्तम व्‍यवस्‍थाओं से परिचित कराना, उनकी रोजगार क्षमता को बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि भारत आने वाले पर्यटकों को उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएँ मिलें।

पर्यटन मंत्रालय ने पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र के लिए ‘उद्योग का दर्जा’ प्रदान करने और उसे लागू करने में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों का सहयोग करने के लिए चरण-दर-चरण मार्गदर्शन प्रदान करने वाली एक पुस्तिका लॉन्च की है जिसका उद्देश्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में इस क्षेत्र में अधिक से अधिक निवेश आकर्षित करना और रोजगार के अवसर पैदा करना है।

(चित्रः कुसुम सरोवर, गोवर्धन, उत्तर प्रदेश में रोशनी का दृश्य) 

सिर्फ़ लाल सलाम के भरोसे रचना और आलोचना के दिन हवा हो चुके हैं

दयानंद पांडेय से प्रदीप श्रीवास्तव की बातचीत

लेखक की आवाज़ को नक्कारखाने में तूती की आवाज़ मानने वाले दयानन्द पांडेय बावजूद इसके लिखते ही रहते हैं। वह अब तक हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं,विषयों  में पिचहत्तर से अधिक किताबें लिख चुके हैं। शीघ्र ही उन की कुछ और पुस्तकें भी प्रकाशित होने वाली हैं। वह एक सजग तेज़ तर्रार निर्भीक पत्रकार रहे हैं, उनके लम्बे पत्रकारीय जीवन,अनुभव की छाया स्वाभाविकता उनके साहित्य पर भी खूब पड़ती रहती है। बिना लागलपेट सीधे-सीधे बात कहने की प्रवृत्ति है इस लिए विवाद भी उनके साथ-साथ चलता है। हाईकोर्ट में कंटेम्प्ट का मुकदमा भी झेल चुके हैं। कोर्ट में माफ़ी नहीं मांगी। बेरोजगारी,भूख तमाम दुश्वारियों का सामना किया लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया , आगे बढ़ते रहे और अब तक हिंदी साहित्य के अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों से पुरस्कृत , सम्मानित हो चुके हैं। बीते दिनों उन से उनके समग्र व्यक्तित्व कृतित्व एवं अन्य विभिन्न बिंदुओं पर जो विस्तृत बातचीत की, वह प्रस्तुत है। जिस में संभवतः आप यह ध्वनि भी सुन लें कि कुछ बिंदु ऐसे हैं जिस पर वह भी कुछ लिखने बोलने कि अपेक्षा किनारे से निकल लेना श्रेयस्कर समझते हैं। आखिर सबकी अपनी-अपनी एक सीमा होती ही है, उनकी भी है।

  • नैतिकतावादियों के आरोप ही अश्लील हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि दुनिया में अश्लीलता नाम की कोई चीज़ नहीं है। हांअगर आप भ्रष्ट हैंशोषक हैं अत्याचारी हैं तो अश्लील हैं: दयानंद पांडेय

  • सूर्य प्रसाद दीक्षित आचार्यों के आचार्य हैं। उन का अध्ययन विशद है: दयानंद पांडेय

  • लखनऊ अब हमारी आदत में शुमार है। हमारी सांस में शुमार है: दयानंद पांडेय

  • यह वामपंथी न तो ख़ुद स्वस्थ ढंग से सोचते हैं न किसी को सोचने का अवकाश देते हैं: दयानंद पांडेय 

  • जीवन में बहुत कठिनाइयांअपमान और दुश्वारियां भुगती हैं। बेरोजगारी भुगती हैभूख और परेशानियां देखी हैं: दयानंद पांडेय

  • शिक्षा और चिकित्सा अब डकैती के अड्डे हैं: दयानंद पांडेय

  • ग़नीमत बस यही थी कि हम कभी पत्रकारिता में दलाली की आंधी में दलाल नहीं बने। चाटुकार नहीं बने। किसी सूरत नहीं बने: दयानंद पांडेय

  • फ़िल्में भी खेमेबाजी का शिकार हैं पर साहित्य में सिर्फ़ खेमेबाजी ही शेष रह गई है। सिनेमा से टकराने या सिनेमा के बरक्स साहित्य खड़ा होने की भी नहीं सोच सकता: दयानंद पांडेय 

  • पूरे मुग़लिया इतिहास में जोधाबाई नाम का कोई चरित्र नहीं है। पर कमाल अमरोही की क़लम ने गढ़ दिया। इतना कि जोधा अकबर नाम से दूसरी फिल्म बनी। फिर धारावाहिक भी: दयानंद पांडेय

  • हरिचरन प्रकाश बड़े कथाकार हैं। हरिचरन प्रकाश को लोगों ने अंडररेटेड लेखक बना कर रखा है: दयानंद पांडेय

  • अमिता दुबे तो जैसे कोई निर्मल नदी हैं। कल – कल बहती हुई। खुद को साफ़ करती हुई और सब को साथ ले कर चलती हुई: दयानंद पांडेय

  • अश्लीलता का आरोप अश्लील लोगों ने ही लगाया। अपनी खीझ और हताशा में: दयानंद पांडेय

  • ऐसे लेखकों और फिल्मकारों को भय लगा रहता है कि अगर वह इस्लामिक हिंसा के विरोध में खड़े हुए तो सांप्रदायिक घोषित हो जाएंगे : दयानंद पांडेय

    प्रश्न – आपकी बातचीत से लेकर लेखन तक में बैदौली गांवगोरखपुर शहर ऐसे समाए रहते हैं जैसे फूलों में खुश्बू,महानगरों में लोगशर्बत में मिठासभक्ति में भावजबकि शिक्षा-दीक्षा पूरी होते-होते आप लखनऊदिल्ली आदि शहरों में पहुंचे तो वहीं का होकर रह गए ,बैदौली छूट गयागोरखपुर छूट गया। क्या कारण रहेक्या शहरों की चकाचौंध से आप भी स्वयं को बचा नहीं पाए ?

    उत्तर – सच तो यही  है कि गांव ही नहीं छूटा हम से, शहरों की भूलभुलैया में हम ख़ुद ही कहीं छूट गए हैं। पर वास्तव में छूटता कहां कुछ है भला। कुछ भी कभी भी नहीं छूटता। फूल की ख़ुशबू एक शाश्वत सत्य है। जन्मभूमि है मेरी बैदौली। गोरखपुर मेरा शहर है। जो भी बना – बिगड़ा गोरखपुर में ही। आधार कहिए, बुनियाद कहिए सब कुछ वहीं तो है। परिस्थितियां हैं, सुविधाएं हैं, ज़रूरतें हैं जो लखनऊ, दिल्ली कर देती हैं। मेरा वश चले तो आज भी अपनी जन्मभूमि और अपने गांव बैदौली में रहूं। जैसे कि मेरे पड़ पितामह , पितामह और पिता रिटायर होने के बाद गांव में ही रहे। याद आता है कि पिता उस समय मेरे साथ नोएडा में थे। छोटे भाई के साथ लखनऊ लौटे। दो-चार दिन लखनऊ में रहने के बाद गांव जाने की ज़िद पर आ गए। भाई कहता रहा कि दो-तीन दिन बाद एक काम से चलना है, गोरखपुर तब चलिएगा। लेकिन पिता तो पिता। कहने लगे नहीं ले चलोगे, तो अकेले चला जाऊंगा। परेशान हो कर छोटे भाई ने मुझे फ़ोन किया। सारी बात बताई। कहा कि मैं समझा दूं। मैं जानता था कि वह समझाने से मानने वाले व्यक्ति नहीं हैं। इस लिए भाई से कहा कि जैसे भी हो आज उन्हें गांव ले जा कर छोड़ आएं। नहीं कहीं अकेले निकल गए तो बहुत मुश्किल हो जाएगी।

    एक तो उम्र हो गई थी दूसरे, वह कई बार चीज़ों को भूल जाते थे। ऐसे में कहीं खो गए तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। भाई उसी दिन पिता जी को गांव ले गया। आख़िर गांव पहुंचने के दूसरे ही दिन वह सर्वदा-सर्वदा के लिए खो गए। दुनिया को विदा कह गए। तो क्या वह अपनी जन्मभूमि पर ही प्राण छोड़ना चाहते थे ? आकुल – व्याकुल थे कि कैसे भी हो जन्मभूमि पर चलना है , गांव चलना है। उम्र के अलावा उस वक़्त कोई बीमारी नहीं थी। बात करते-करते विदा हो गए। रही बात शहरों की तो गोरखपुर से निकल कर पहला लक्ष्य मुंबई जाने का था। फ़िल्मी दुनिया में क़िस्मत आजमानी थी। लखनऊ तो कभी सोचा भी नहीं था। गया भी तो दिल्ली। कोई पांच साल रहा दिल्ली। ”सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट” और ”जनसत्ता” में रहा। फिर ”स्वतंत्र भारत”, लखनऊ आया था सिर्फ़ एक साल के लिए। लेकिन सरकारी घर मिल गया। भाइयों, पत्नी को नौकरी। बच्चों को अच्छा स्कूल। शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ का एक शेर है :

    इन दिनों गरचे दकन में है बड़ी क़द्र-ए-सुख़न

    कौन जाए ‘ज़ौक़’ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर

    तो यह शेर मेरे लिए लखनऊ के लिए बन गया। लखनऊ की गलियां छोड़ कर नहीं जा पाया। कई बार अवसर भी मिला। ”स्वतंत्र भारत” में कानपुर और ”राष्ट्रीय सहारा” में दिल्ली ट्रांसफर हुआ। बारी-बारी। दिल्ली में ”आज तक” में नौकरी की बात हुई। लेकिन लौट – लौट आया। बात वही कि कौन जाए पर लखनऊ की गलियां छोड़ कर। लखनऊ शानदार शहर है। मुंबई , दिल्ली के मुक़ाबले छोटा और आरामदेह। अब नोएडा में भी घर है। पर अधिकतर लखनऊ में ही रहता हूं। नोएडा आता – जाता रहता हूं। जैसे गोरखपुर और गांव आता – जाता रहता हूं। हमारे कई पत्रकार साथी लखनऊ से यहां-वहां गए। पद -प्रलोभन में, अधिक पैसे की मोह में, या बेरोजगारी दूर करने के लिए। ज़्यादातर लोग तबाह हो गए। कोई कई बीमारियों से घिर गए। किसी को लकवा मार गया। किसी को हार्ट प्रॉब्लम और जाने क्या – क्या। कई साथी लोग विदा हो गए। बार – बार शहर बदलना हर पत्रकार को सूट नहीं करता। कभी इस शहर , कभी उस शहर। परिवार बिखर जाता है। बच्चों की पढ़ाई गड़बड़ा जाती है। और मुझे सब से ज़्यादा शांति से रहना अच्छा लगता है। दो पैसा कम मिले , दो रोटी कम मिले , बड़ा पद न मिले कोई बात नहीं। शांति , सुख और नींद ज़्यादा ज़रूरी है।

    परिवार सुखी रहे , परिवार का साथ रहे , यह ज़्यादा महत्वपूर्ण है। पत्रकारिता में क्या है कि आज आप उत्कर्ष पर हैं , कल पता नहीं क्या हो। आज आप स्टार हैं , पचास लोग आगे – पीछे हैं। सत्ता पक्ष , प्रतिपक्ष सब के दुलारे हैं। कल को बेरोजगार हैं। या मुख्य धारा में नहीं हैं तो कोई पूछने और पहचानने वाला नहीं। तो बहुत उतार – चढ़ाव है पत्रकारिता की ज़िंदगी में। हम ने बहुत उतार – चढ़ाव देखे हैं। भुगते हैं बार – बार। एक समय था कि हवाई जहाज या हेलीकाप्टर से चलना होता था। नियमित। पर ऐसा भी हुआ कई बार कि स्कूटर या कार में पेट्रोल के लिए भी पैसे नहीं थे। लेकिन लखनऊ ने मुझे हमेशा संभाल लिया। हर दुःख – सुख में। अभी भी संभाले हुए है। चार दशक होने जा रहे , लखनऊ की बाहों में। लखनऊ की गलियों में। लखनऊ वैसे भी चकाचौंध का शहर नहीं है। व्यर्थ की दौड़भाग नहीं है। सुकून और संतोष का शहर है। सब कुछ तो है लखनऊ में। शहर भी एक आदत होते हैं। लखनऊ अब हमारी आदत में शुमार है। हमारी सांस में शुमार है। यहां अच्छे लोग भी हैं , कमीने लोग भी। हर जगह होते हैं। लेकिन अच्छे लोग ज़्यादा हैं। बहुत ज़्यादा।

    प्रश्न –  आप हिंदी विषय लेकर स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे थेफिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि पढ़ाई पूरी होने से पहले ही पत्रकारिता जगत में आ गए। यह आपका अपना निर्णय था या घर का दबाव कि अब कुछ करो।  

    उत्तर –  पत्रकारिता में तो बी ए प्रथम वर्ष में ही आ गए। बीस बरस की उम्र में। अचानक ही आ गए। पत्रकारिता की ज़िंदगी पहले शुरू हो गई। शायद यही प्रारब्ध था। एम ए तो बाद में किया। बस जैसे तैसे किया था। करनी तो पी एच डी भी थी। पिता जी की इच्छा यही थी। वह चाहते थे कि आई ए एस बनूं या अध्यापक बनूं। किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाऊं। अध्यापक की परंपरा थी घर में। मेरे पड़ पितामह और पितामह दोनों ही हेड मास्टर से रिटायर हुए थे। हुआ यह कि तब के दिनों कविता – कहानी लिखने लगा था। हमारे एक मित्र थे जयप्रकाश शाही। हम से चार – पांच साल बड़े थे। हमारे गांव के पास उन का भी गांव था। वह एम ए कर चुके थे। हम बी ए कर रहे थे। शाही जी कविताएं लिखते थे। कवि गोष्ठियों में मिलते थे।  पत्रकार भी थे। एक दिन वह मुझे समझाने लगे कि , ‘लेख भी लिखिए। ‘ मैं ने कहा कि , ‘कविता कहानी ही बहुत है। ‘ वह समझाने लगे कि , ‘ कविता लिख कर कहीं छपिएगा तो कितनी जगह मिलेगी ?’ बित्ता से नाप कर बोले , ‘ इतनी ? ‘ फिर बित्ता थोड़ा और बढ़ा कर बोले , ‘ इतनी ? ‘ मैं ने कहा , ‘ कहानी में तो ज़्यादा जगह मिलती है। ‘ वह बोले , ‘ कहानी या कविता तो फिर रोज – रोज कोई लिख भी नहीं सकता।’  फिर अख़बार का पूरा पेज दिखाते हुए बोले , ‘ लेख तो पूरे पेज का हो सकता है। ‘ वह बोले , ‘ रोज न सही , हफ़्ते में दो – तीन लेख तो लिख ही सकते हैं। ‘ वह बोले , ‘ फिर देखिए अख़बार में कितनी ज़्यादा जगह मिलेगी आप के लिखे को। और अकसर मिलेगी। कविता , कहानी में तो कभी – कभी। वह भी ऊंट के मुंह में जीरा। ‘ मैं टालता रहा पर जय प्रकाश शाही पीछे पड़े रहे। अंतत : लेख लिखने लगा। रिपोर्ट लिखने लगा। राष्ट्रीय पत्रिकाओं में कविताएं , कहानियां तो छपती ही थीं , लेख भी छपने लगे। उन दिनों सारा कम्युनिकेशन चिट्ठियों के भरोसे था। नेट , और सोशल मीडिया तो सपने में भी नहीं थे। लैंड लाइन फ़ोन तो थे पर हमारे जैसों की पहुंच से बहुत दूर। तो मैं अपनी डाक का इंतज़ार शाम तक करने के बजाए सीधे दस बजे सुबह डाकखाने पहुंच जाता था।

    रचनाओं की स्वीकृति , अस्वीकृति , चेक , मनीआर्डर , पत्रिकाएं , अख़बार , जो भी था मिल जाता था। एक दिन अचानक ख़ूब सफ़ेद खद्दर का कुरता पायजामा पहने , सिगरेट फूंकते एक व्यक्ति ने पूछा , ‘ आप दयानंद पांडेय हो ? ‘ मैं ने हामी में सिर हिलाया। तब पूछा , ‘ मुझे जानते हैं  ? ‘ मैं ने न में सिर हिला दिया। उन्हों ने पूछा , ‘ पूर्वी संदेश का नाम सुना है ? ‘ मैं ने कहा , ‘ हां ! ‘ वह बोले , ‘ मुझे ज़की कहते हैं। मोहम्मद ज़की ! ‘ वह भी अपनी डाक देखने आए थे। मैं ने उन्हें हाथ जोड़ कर नमस्कार किया। सिगरेट हाथ में लिए हुए ज़की साहब ने भी नमस्कार किया और बोले , ‘ सारिका में प्रेमचंद पर लेख आप का ही है ? ‘ हाथ जोड़ कर मैं ने हामी भरी। तब टाइम्स आफ इण्डिया की पत्रिका सारिका के अक्टूबर , 1978 के अंक में प्रेमचंद पर एक मेरा लिखा एक दो पेज का रिपोर्ताज छपा था जिस में प्रेमचंद की प्रतिमा के बगल में खड़े मेरी फ़ोटो भी छपी थी। उस फ़ोटो से ही मोहम्मद ज़की ने मुझे पहचाना था। मेरे लिखे के प्रति उन के मन और ज़ुबान पर मेरे लिए प्रशंसा के भाव थे। यह दिसंबर , 1978 की बात है। तब मैं बीस बरस का था। मोहम्मद ज़की पिता की उम्र के। बात करते – करते मोहम्मद ज़की ने अचानक मुझ से पूछा , ‘ मेरे साथ काम करेंगे ? ‘

    ‘ कहां ? ‘

    ‘ पूर्वी संदेश में। ‘

    ‘ लेकिन मैं तो अभी बी ए में हूं। पढ़ रहा हूं। ‘

    ‘ कोई बात नहीं। ‘ ज़की बोले , ‘ पढ़ाई छोड़ने को कहां कह रहा हूं। ‘ वह बोले , ‘ पढ़ाई जारी रखें। ‘ कह कर उन्हों ने अपने साथ रिक्शे पर बैठने को कहा। ‘ मेरे पास साइकिल है। ‘ संकोच में आ कर कहा।

    ‘ साइकिल बाद में आ कर ले लीजिएगा । ‘ कहते हुए मेरा हाथ पकड़ कर रिक्शे पर खींच कर बैठा लिया। सिविल लाइंस में अपने दफ्तर ले गए। और अपनी कुर्सी पर मुझे बैठा दिया। प्रेस के सारे स्टाफ को बुलाया। मेरा परिचय करवाया और बताया कि आज से ‘पूर्वी संदेश’ के संपादक यही हैं। ‘ मैं हकबका गया। इतना ही नहीं इस हफ़्ते छपने वाले पूर्वी संदेश अख़बार की प्रिंट लाइन में बतौर संपादक मेरा नाम भी छपा। आगे भी छपता रहा। ज़की साहब ने मुझे पूरी छूट दे रखी थी कि क्लास ख़त्म होने के बाद दफ़्तर आऊं। शर्त बस यह थी कि अख़बार छपने में देरी न हो। सोमवार की तारीख में छपने वाला अख़बार शुक्रवार की शाम हर हाल छप जाना चाहिए। जैसे भी हो। पंद्रह दिन तक ज़की साहब ने काम सिखाया और समझाया। फिर फ्री हैंड दे दिया। घर में पिता जी नाराज़ थे कि बीच पढ़ाई नौकरी की क्या ज़रूरत है।  ज़की साहब को यह बात बताई तो कहने लगे , ‘ बरखुरदार आप को तो अख़बार में काम मिला है। मैं ने तो बीड़ी बनाते हुए पढ़ाई की है। ‘ सुन कर मैं अकबका गया। क्यों कि ज़की साहब की लाइफ स्टाइल बड़ी एरिस्ट्रोकेटिक थी। नफ़ासत और नज़ाकत भरी।

    अपर मिडिल क्लास वाली लाइफ थी। शानदार बंगला। हरदम कलफ लगे साफ़ शफ्फाक कपड़े। लगता ही नहीं था कि यह आदमी कभी बीड़ी बनाने की मज़दूरी भी किया होगा। ज़की साहब ने चुनाव भी दो बार लड़े और हारे। उस की अलग कहानी है। पर तब के दिनों देश के बड़े – बड़े राजनीतिज्ञों से उन का मिलना – जुलना और दोस्ती थी। कभी मिनिस्टर विदाऊट पोर्टफोलियो कहे जाते थे। हिंदी , अंगरेजी और ऊर्दू पर ज़बरदस्त पकड़। दो घंटे में पूरा अख़बार फाइनल कर देते थे। ”पूर्वी संदेश” के अलावा देश की सभी पत्रिकाओं में भी तब छपता रहता था कुछ न कुछ। निरंतर। लिखने का , छपने का जैसे नशा सा हो गया था। जिस हफ़्ते कुछ कहीं न छपे तो शहर में कहीं निकलने का , किसी से मिलने का मन नहीं होता था। नहीं मिलता था। नहीं जाता था कहीं। छपास की जैसे बीमारी थी तब।

    कुछ महीने बाद दूसरे प्रतिद्वंद्वी अख़बार ”जनस्वर” के मालिक सरदार देवेंद्र सिंह मिल गए। पूछा , ‘ पूर्वी संदेश में कितना मिलता है ? ‘ बताया , ‘ डेढ़ सौ रुपए। ‘ देवेंद्र सिंह बोले , ‘ दो सौ रुपए दूंगा , जनस्वर आ जाइए।’ देवेंद्र सिंह बड़े ट्रांसपोर्टर व्यवसाई थे। जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर से उन की गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर गोरखपुर आते तो देवेंद्र सिंह के घर ही रुकते थे। खैर ”जनस्वर” चला गया। ज़की साहब को बताने गया तो पता चला कि वह दिल्ली गए हैं। उन की पत्नी को बताया तो वह कुछ बोली नहीं। कोई तीन – चार महीने बाद एक कार्यक्रम में ज़की साहब मिल गए। पूछा , ‘ कहां हैं बरखुरदार ? ‘ उन्हें बताया , ‘ जनस्वर में। दो सौ रुपए मिलते हैं। ‘ वह किंचित नाराज हुए नालमेरी पीठ ठोंकते हुए  बोले , ‘ ढाई सौ दूंगा। कल से आ जाइए। ‘ फिर ”पूर्वी संदेश” वापस आ गया। ज़की साहब से बहुत कुछ सीखने को मिलता। 1981 में दिल्ली घूमने गया। घूमने क्या गया हमारे एक चचेरे भाई बैंक का इम्तहान देने जा रहे थे। रेलवे पास था तो उन के साथ हम भी दिल्ली चले गए। वह बैंक इम्तहान की तैयारियों में लग गए। हम अख़बारों और पत्रिकाओं के दफ़्तर घूमने लगे। लोगों से मिलने लगे। ”सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट” पत्रिका तब बस शुरू ही हुई थी। रीडर्स डाइजेस्ट का हिंदी संस्करण था सर्वोत्तम। सर्वोत्तम के संपादक तब अरविंद कुमार थे। कनॉट प्लेस में हिंदुस्तान टाइम्स बिल्डिंग के सामने सूर्यकिरन बिल्डिंग में सर्वोत्तम का आफिस था। ”साप्तहिक हिंदुस्तान” में हिमांशु जोशी ने अरविंद कुमार से भी मिलने की सलाह दी। हिमांशु जी तब तक मुझे कई बार ”साप्तहिक हिंदुस्तान” में छाप चुके थे। तो अरविंद कुमार से मिला। कोई दस मिनट अरविंद जी इधर – उधर की बात पूछते रहे। अचानक बोले , ‘ भइया रे , मेरे साथ काम करोगे ? ‘ मैं हकबका गया। कुछ समझ नहीं पाया। पूछा , ‘ कहां ? ‘ अरविंद जी हंसते हुए बोले , ‘ इसी सर्वोत्तम में। ‘ गूंगे के गुड़ वाली बात हो गई। मैं कुछ बोल नहीं पाया। अरविंद जी बोले , ‘ अपना बायोडाटा लिख कर दे दो। कल तक सारी फ़ार्मेल्टीज पूरी करवा दूंगा। कल से ही ज्वाइन भी कर लो। ‘ मैं ”सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट” में नौकरी करने लगा। मोहम्मद ज़की को चिट्ठी लिख कर यह सूचना भेज दी। वह बहुत खुश हुए। जवाबी चिट्ठी में मेरी तारीफ़ में क्या – क्या नहीं लिख दिया। वह दिल्ली आते तो पहले ही चिट्ठी लिख कर अपने होटल का पता लिख भेजते। मैं मिलता रहा। वह जब भी आते। सर्वोत्तम में अरविंद जी से सरलता ,  सहजता और काम करने की लगन सीखी। अरविंद जी से सीखने और जीने के बेहिसाब क़िस्से हैं। आगे कभी विस्तार से बताऊंगा। दिल्ली से जब ” जनसत्ता ” शुरू हुआ तो ”जनसत्ता” आ गया। पहली टीम में था। प्रभाष जोशी जी से भी बहुत कुछ सीखा। फिर लखनऊ ”स्वतंत्र भारत” में संपादक थे वीरेंद्र सिंह। ”इंडियन एक्सप्रेस”, दिल्ली में राजीव सक्सेना थे। लखनऊ, ”पायनियर” से गए थे। वीरेंद्र सिंह से परिचय करवाया। वीरेंद्र सिंह ”स्वतंत्र भारत” , लखनऊ लाए। फ़रवरी , 1985 की यह बात है। वीरेंद्र सिंह जैसा अध्ययनशील और कड़ियल संपादक मैं ने अभी तक दूसरा नहीं देखा। उन के जैसा जीनियस नहीं देखा। सितंबर, 1991 में ”नवभारत टाइम्स” ले आए राम कृपाल सिंह। राष्ट्रीय समाचार फीचर्स में संपादक बना 1994 में। इस फीचर एजेंसी को मैं ने लांच किया और देश की नंबर वन फीचर एजेंसी बनाया। फिर ”राष्ट्रीय सहारा” आया जुलाई 1996 में। फिर तो लंबा किस्सा है। बहुत से नामी गिरामी संपादक, लेखक और राजनीतिक लोग मेरी ज़िंदगी में बड़ा आधार और संबल रहे हैं। इन सब से आत्मीय संबंध रहे हैं। सब का स्नेहभाजन रहा हूं।

    फिर भी मुझे इतना बताने की कृपया अनुमति दीजिए कि जय प्रकाश शाही, मोहम्मद ज़की , अरविंद कुमार और वीरेंद्र सिंह मेरी पत्रकारीय ज़िंदगी की बुनियाद हैं। बहुत ज़रूरी बुनियाद। यह लोग न होते तो शायद मैं पत्रकारिता में नहीं होता। ऐसे और इस तरह तो नहीं ही होता। ख़ास कर अरविंद कुमार और वीरेंद्र सिंह से बहुत कुछ सीखा। ख़ास तौर पर यह सीखा कि भूखों मर जाएंगे पर पत्रकारिता में कभी दलाली नहीं करेंगे। चाटुकारिता और चमचई नहीं करेंगे। जो आज की तारीख़ में पत्रकारिता में बड़ी अनिवार्यता बन चुका है। जो जितना बड़ा दलाल , उतना बड़ा पत्रकार। जीवन में बहुत कठिनाइयां, अपमान और दुश्वारियां भुगती हैं। बेरोजगारी भुगती है, भूख और परेशानियां देखी हैं। लड़ – लड़ गया हूं। टूट – टूट गया हूं। टूट कर चकनाचूर हो गया हूं पर ग़लत के आगे कभी झुका नहीं। स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया। कोई गलत काम नहीं किया। कभी किसी क़िस्म की दलाली नहीं की। सीना तान कर सर्वदा रहा हूं। रह रहा हूं। रहूंगा। लेखन में भी , पत्रकारिता में भी