पवित्री पुनीता पुराणी परेयं ।
प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं ॥
अरूपं अनूपं अनामं अठामं ।
अभीतं अजीतं महां धरम धामं ll

अहमदाबाद। भारतीय डाक विभाग द्वारा गुजरात के बलिदानी संत ‘वीर मेघमाया’ पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने वीर मेघमाया विश्व मेमोरियल फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर के चेयर मैन एवं पूर्व सांसद डॉ. किरीट सोलंकी एवं निदेशक डाक सेवाएं सुश्री मीता बेन संग उक्त डाक टिकट क्षेत्रीय कार्यालय, अहमदाबाद में 31 दिसंबर, 2024 को जारी किया। 5 रूपये का यह डाक टिकट और इसके साथ जारी प्रथम दिवस आवरण और विवरणिका देश भर के डाकघरों में स्थित फिलेटलिक ब्यूरो में बिक्री के लिए उपलब्ध रहेंगे। ई-पोस्ट ऑफिस के माध्यम से इसे ऑनलाइन भी मँगाया जा सकता है।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि भारत की ऐतिहासिक विरासत संतों की कहानियों से समृद्ध है। गुजरात में धोलका के निकट रनोडा गांव के एक दलित बुनकर परिवार में लगभग 1000 वर्ष पूर्व जन्में वीर मेघमाया ने जन कल्याण के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। वे बत्तीस गुण सम्पन्न थे। गुजरात की तत्कालीन राजधानी अन्हिलपुर पाटन में सहस्त्रलिंग सरोवर में पानी लाने के लिए दिया गया उनका स्व बलिदान आज भी त्याग की एक नई मिसाल कायम करता है। इसे मानवाधिकारों की स्थापना और दलित व वंचित वर्गों के उद्धार के महान उद्देश्य से किए गए बलिदान के रूप में याद किया जाता है। ऐसे में डाक विभाग, वीर मेघमाया पर स्मारक डाक टिकट जारी करते हुए प्रसन्नता का अनुभव करता है और दलितों तथा वंचित वर्गों के कल्याण के निमित्त उनके बलिदान को नमन करता है। पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक टिकट अतीत को वर्तमान से जोड़ते हैं। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। हर डाक टिकट के पीछे एक कहानी छुपी हुई है और इस कहानी से आज की युवा पीढ़ी को जोड़ने की जरूरत है।
इस अवसर पर पूर्व सांसद डॉ. किरीट सोलंकी ने कहा कि संत वीर मेघमाया का जीवन जन कल्याण, सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। शाहू महाराज, महात्मा ज्योतिबाफुले, डॉ. अंबेडकर के समय काल से बहुत पहले हजार वर्ष पूर्व वीर मेघमाया ने समाज में छुआछूत ख़त्म करने के लिए पहल की। उन पर डाक टिकट जारी होने से देश-विदेश में उनके बलिदान और जन कल्याण के बारे में जानकारी मिलने के साथ ही नव आशा का संचरण होगा। आधुनिक समय में, दलित वंचित और कमजोर तबके के लोग वीर मेघमाया को श्रद्धाजंलि देने के लिए पाटन स्थित उनकी बलिदान स्थली पर जाते हैं। संत वीर मेघमाया पर डाक टिकट जारी होने से उनकी प्रसिद्धि और भी बढ़ेगी एवं युवा पीढ़ी उनके बलिदान और कार्यों के बारे में जान सकेगी।
डॉ. किरीट सोलंकी ने कहा कि उन्होंने ही सांसद के रूप में पहल करके संत वीर मेघमाया पर डाक टिकट जारी करने का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा था। आज इस स्मारक डाक टिकट के जारी होने से लोगों को प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और डाक विभाग का हार्दिक आभार भी व्यक्त किया।
इस अवसर पर वीर मेघमाया विश्व मेमोरियल फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर के महामंत्री श्री नरेंद्र वोरा, प्रवर डाक अधीक्षक अहमदाबाद श्री विकास पाल्वे, प्रवर डाक अधीक्षक गांधीनगर श्री पियूष रजक, डाक अधीक्षक पाटन श्री एच सी परमार, सहायक निदेशक एम एम शेख, भाविन प्रजापति, योगेंद्र राठौड, सौरभ कुमावत सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।
भोपाल। राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नीरजा माधव (वाराणसी) को मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग की ओर से वर्ष 2023 के लिए राष्ट्रीय मैथिली शरण गुप्त सम्मान प्रदान किया जाएगा। इस सम्मान के तहत उन्हें ₹5,00000 (पांच लाख)की राशि, सम्मान पट्टिका और शाल- श्रीफल प्रदान किया जाएगा। इस सम्मान का अलंकरण समारोह आगामी 26 जनवरी 2025 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर रवीन्द्र भवन भोपाल में आयोजित किया जाना सुनिश्चित हुआ है।
ज्ञातव्य है कि यह पुरस्कार मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा दिया जाने वाला राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार है जो प्रति वर्ष पूरे देश में किसी एक साहित्यकार को दिया जाता है। इसके पूर्व भी डॉ. नीरजा माधव को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण और यशपाल सम्मान, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी सम्मान, डॉक्टर हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान, राष्ट्रीय साहित्य सर्जक सम्मान, तथा सर्वोच्च महिला नागरिक सम्मान “नारी शक्ति पुरस्कार” प्राप्त हो चुके हैं।
उनके उपन्यास और कहानियां विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाए जाते हैं। अभी हाल में ही भारत सरकार द्वारा डॉ. नीरजा माधव को शिक्षा मंत्रालय के लेखक सदस्य के रूप में नामित किया गया है। डॉ नीरजा माधव उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कबीर अकादमी की सदस्य भी नामित की गई हैं।
पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के महान शिक्षाविद राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित स्मृतिशेष माननीय डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘ सरस’ कृत : “बस्ती के छन्दकार” शोध ग्रन्थ के आधार पर बस्ती मंडल ( बस्ती , सिद्धार्थ नगर और सन्तकबीरनगर जिलो) में कई कविकुल परम्परायें मिलती हैं। जिसमें मलौली का चतुर्वेदी कविकुल घराना अपना विशिष्ट स्थान रखता है।
मलौली गाँव उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के घनघटा तालुका में स्थित है । यह धनघटा से 2 किमी तथा संत कबीर नगर जिला मुख्यालय से 28 किमी दूर स्थित है। हैसर धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । इस गांव ने सर्वाधिक 6 – 7 कवियों को जन्म दिया है।
1.राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’
प्रथम कुल पुरुष
पंडित राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ श्रावण कृष्ण 11 संवत् 1822 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में पैदा हुए थे। हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है। यहां हॉस्पिटल और कईअन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी बने हुए हैं। यहां पर नगर पंचायत का कार्यालय भी बन रहा है।
पंडित राम गरीब चतुर्वेदी इस वंश के उत्तरवर्ती ज्ञात छः कवियों के मूल पुरुष रहे। इनके पिता ईश्वर प्रसाद धनघटा के पास मनौली के मूल निवासी थे,जो महसों राज के अन्दर आता था। ये ज्योतिष, संस्कृत और आयुर्वेद के विद्वान थे। सशक्त छंदकार होने के साथ साथ वे कवियों का बहुत आदर और सम्मान करते थे। पंडित राम गरीब जी ‘गंगाजन’ उप नाम अपने लिए प्रयुक्त करते थे। उनके छंदों पर रीति कालीन साहित्य का पूरा प्रभाव परिलक्षित होता है। सवैया और मनहरन उनके प्रिय छंद थे। इनके कुछ छंद इनके वंश परम्परा के कवि ‘ ब्रजेश’ जी के संकलन से ज्ञात हुआ है –
सुन्दर सुचाली ताली रसना रसीली वाली,
द्विजन प्रणाली लाली हेमवान वाली है।
लोचन विशाली मतवाली विरुद वाली,
चेत पर नाली वरदान वाली काली है।
दास अघ घाली खरसाली मुंडमाली,
संघ सोहत वैताली दुखभे की कह ब्याली है।
गंगाजन पाली करूं कृपा मातु हाली,
कार्य साधिए उताली तोहि शपथ कपाली हैं ।।
‘गंगाजन’ काली मां के भक्त थे। उन्होंने काली मां की अर्चना में 105 छंदों वाली ‘काली शतक’ लिखा है जो अप्राप्य है। इनका एक अन्य छंद डा. ‘सरस’ जी ने अपने शोध ग्रन्थ ‘बस्ती के छंदकार’ नामक ग्रन्थ के भाग 1 के 11वें पृष्ठ पर इस प्रकार उद्धृत किया है –
उमड़ी घुमड़ी गरजै बरसै,
गिरि मन्दिर ते झरनाय झरें।
पिक दादुर मोरन सोरन सो,
विरही जन होत न चित्तथिरै।
युत वास कदम्ब के वात चलें,
गंगाजन हिय विच भाव घिरें।
झक केतु के पीरते आली पिया,
बिनु शीश जटा लटकाय फिरें।।
पंडित राम गरीब रईस परम्परा के कवि थे। उनके समकालीन कवि राम लोचन भट्ट आदि बड़ा आदर पाते थे। इलाहाबाद, वाराणसी और विंध्याचल जाने के अलावा बस्ती जिले के महसों राजा के यहां इनका बड़ा आदर था। भवानी बक्श और बल्दी कवि का ‘गंगाजन’ के यहां बड़ा आदर होता था। कार्तिक सुदी दशमी संवत 1913 विक्रमी में 91 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने शरीर का परित्याग किया था। इन्होंने अपने पीछे अब तक ज्ञात छ: कवियों की एक श्रृंखला जोड़ रखी है।
2. रीतिकालीन कवि
श्री बलराम चतुर्वेदी
रीति कालीन परम्परा के सुकवि बलराम चतुर्वेदी श्रावण शुक्ल 5 संवत् 1922 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में बलराम चतुर्वेदी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे।
बलराम चतुर्वेदी श्री रामगरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ के गाँव में पैदा हुए थे। ये राम गरीब चतुर्वेदी ‘गंगाजन’ के प्रपौत्र रहे हैं । इनके पिता का नाम बेनी दयाल चतुर्वेदी था। ये तीन भाई थे – घनश्याम, ईशदत्त और बेनीशंकर इनके छोटे भाई थे। इनके छंदों पर रीति कालीन परम्परा का प्रभाव था। फुटकर छंदों के अतिरिक्त हनुमान शतक इनका बहु चर्चित कृति थी। उन्होंने 111 छंदों में हनुमान जी की स्तुति की है। उनकी भाषा ओजपूर्ण ब्रज भाषा है। छंदों में लालित्य है और काव्य में ओज। सभी छंद भक्ति से परिपूर्ण थे, परन्तु पांडुलिपि गायब हो गई है। कवि बलराम चतुर्वेदी मृत्यु संवत् 1997 विक्रमी को हुई थी।
जीवन में कभी-कभी ऐसी परेशानियां आ जाती हैं कि व्यक्ति बिल्कुल निराश हो जाता है। उसे समझ नहीं आता किआखिर किस तरह से अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाया जाया। ज्योतिष के मुताबिक घर में हनुमान जी की पंचमुखी तस्वीर लगाने से घर पर किसी तरह की विपत्ति नहीं आती है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। उनके स्मरण मात्र से हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी हनुमान के पांचों मुख का अलग-अलग महत्व है। इसमें भगवान के सारे मुख अलग-अलग दिशाओं में होते हैं। पूर्व दिशा की ओर हनुमान जी का वानर मुख है जो दुश्मनों पर विजय दिलाता है। पश्चिम दिशा की तरफ भगवान का गरुड़ मुख है जो जीवन की रुकावटों और परेशानियों को खत्म करते हैं। उत्तर दिशा की ओर वराह मुख होता है जो प्रसिद्धि और शक्ति का कारक माना जाता है। दक्षिण दिशा की तरफ हनुमान जी का नृसिंह मुख जो जीवन से डर को दूर करता है।आकाश की दिशा की ओर भगवान का अश्व मुख है जो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
पंचमुखी हनुमान जी के विग्रह से संबंधित सुकवि बलराम चतुर्वेदी का एक छंद द्रष्टव्य है –
पूरब बिकट मुख मरकट संहारे शत्रु
दक्षिण नरसिंह जानें दानव वपुश को।
पश्चिम गरुण मुख सकल निवारै विष
उत्तर बाराह आनें सर्प दर्प सुख को।
ऊर्ध्व है ग्रीव पर यंत्र मंत्र तन्त्रन को
करत उच्चांट बलराम दीह दुख को।
बूत करतूत सुनि भागे जगदूत भूत
बंदों सो सपूत पवन पूत पंच मुख को।।
3.शृंगार रस के कवि
भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’
भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत 1930 विक्रमी में हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ है ।भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ जी के पिता कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। राम नारायण उच्च स्तर के छंदकार रह चुके हैं। उनका रंग परिषद में बड़ा सम्मान था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे।
भास्कर प्रसाद शृंगार रस के कवि
साहित्य के अनुसार नौ रसों में से एक रस जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है और प्रधान माना जाता है । जब पति-पत्नी या प्रेमी- प्रेमिका के मन में रति नाम का स्थायी भाव जागृत होकर आस्वादन के योग्य हो जाता है, तो इसे शृंगार रस कहते हैं. शृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है. यह नौ रसों में से एक है।
जाको थायी भाव रस,
सो शृंगार सुहोत।
मिलि विभाव अनुभाव पुनि
संचारिन के गोत।
इसमें नायक – नायिका के परस्पर मिलन के कारण होने वाले सुख की परिपुष्टता दिखलाई जाती है । इसका स्थायी भाव रति है । आलंबन विभाव नायक और नायिका हैं । उद्दीपन विभाव सखा, सखी, वन, बाग आदि, विहार, चंद्र- चंदन, भ्रमर, झंकार, हाव भाव, मुसक्यान तथा विनोद आदि हैं । यही एक रस है जिसमें संचारी विभाव, अनुभाव सब भेदों सहित होता है; और इसी कारण इसे रसराज कहते हैं । इसके देवता विष्णु अथवा कृष्ण माने गए हैं और इसका वर्ण श्याम कहा गया है । यह दो प्रकार का होता है- एक संयोग और दूसरा वियोग या विप्रलंभ । नायक नायिका के मिलने को संयोग और उनके विछोह को वियोग कहते हैं ।
शृंगार रस की प्रधानता मुख्यतः रीतिकाल में है। हिंदी साहित्य में कविवर बिहारीलाल जी शृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे। शृंगार रस के लोकप्रिय कवि बिहारी लाल का नाम हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में अधिकांशतः शृंगार रस का प्रयोग किया है । इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपनी कृतियों में गागर में सागर भर दिया है। उनकी लिखी हुई शृंगार रस कविता इस प्रकार है –
तुम बिन हम का हो सजनी,
तुम बिन हम का हो सजनी।
परुष समान पुरुष में तुमने,
भर दी अपनी कोमलता।
बेतरतीब पड़े जीवन में,
लाई तुम सुगढ सँरचना।
छोड्के निज घर बार सजाया,
दूर नया सन्सार हो सजनी।
तुम बिन हम का हो सजनी।
तुम बिन हम का हो सजनी।।
बिहारी का शृंगार रस से परिपूर्ण एक और दोहा दृष्टव्य है –
“बतरस लालच लाल की
मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनु हँसे ,
दैन कहै नटि जाय।”
“कहत, नटत, रीझत, खिझत,
मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं,
नैननु ही सों बात।”
“पतरा ही तिथी पाइये,
वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौई रहे,
आनन-ओप उजास।”
” अंग अंग नग जगमगत
दीपसिखा सी देह।
दिया बुझाय ह्वै रहौ,
बड़ो उजेरो गेह।”
” तंत्रीनाद, कवित्त-रस,
सरस राग, रति-रंग।
अनबूड़े बूड़े तिरे
जे बूड़े सब अंग।”
मलौली धनघटा सन्त कबीर नगर निवासी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी शृंगार रस के बड़े कवि थे। 52 छंदों की शृंगार बावनी इनकी रचना बताई जाती है। यह ब्रज भाषा में लिखा गया है। सभी मनहरन और घनाक्षरी छंद में लिखे गए हैं। एक छंद (डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ कृत ‘बस्ती के छंदकार’ भाग 1, पृष्ठ 13 के अनुसार ) द्रष्टव्य है –
प्यारी सुकुमारी की बड़ाई मै कहां लौ करौ, रति तन कोटिन निकाई परयो हलके।
सुन्दर गुलाब कंज मंजुल सुपांखुरिन
धोए पद कंजन में जात परे झलके।
कंच कुच भार को सम्हारि न सकत अंग चौंकि चौंकि उठति सुरोज कंज दल के।
ऐसी सुकुमारता दिनेश जी कहां लौ कहूं, गड़िजात पांव में बिछौना मखमल के।।
इस छंद में अतिशयोक्ति बिहारी जी की नायिकाओं से भी बढ़कर है। दिनेश जी रईस परम्परा के कवि थे जहां रीतिशास्त्र के भरमीआचार्यों का सम्पर्क बड़ी सुगमता से उपलब्ध हो जाता रहा। यही कारण रहा है कि इनके अधिकांशतः छंद शृंगार की वल्लरी में भौतिक शृंगार की अभिव्यंजना तक सीमित रह सके।
शृंगार बावनी की तरह शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। रतन बावनी (लगभग 1581) केशवदास की सबसे पहली रचना रही है। इसी से मिलता जुलता शृंगार मंजरी को केशव दास ने लिखा था। श्री नागरी देव जी ने श्रृंगार रस का पद इस प्रकार लिखा है –
विहरत विपिन भरत रंग ढुरकी।
हरषि गुलाल उडाइ लाडिली,
सम्पति कुसमाकरकी।
कसुंभी सारी सोधें भीनी,
ऊपर बंदन भुरकी।
चोली नील ललित अञ्चल चल,
झलक उजागर उरकी।
मृदुल सुहास तरल दृग कुंडल,
मुख अलकावलि रुरकी।
श्रीनागरीदासि केलि सुख सनि रही,
मैंन ललक नहिं मुरकी।
4. मलौली के श्रीनारायण चतुर्वेदी
पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के सन्तकबीर नगर के मलौली गाँव में प्रसिद्ध साहित्यिक कुल में भी हुआ था जिसमें अभीतक ज्ञात सात उच्चकोटि के छंदकार अवतरित हुए हैं।इस पं.श्रीनारायणचतुर्वेदी का जन्म कार्तिक कृष्ण 15,संवत् 1938 विक्रमी को दीपावली के दिन हैसर बाजार धनघटा नगरपंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ था ।
श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था। जिनके छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। ये सभी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी ‘दिनेश’ के भाई थे। श्री नारायण बचपन में बड़े प्रतिभाशाली थे। अपने छः भाइयों में श्रीनारायण इतने कुशाग्र थे कि कोई भी भाई इनसे तर्क- वितर्क नहीं कर पाता था। संस्कृत,फारसी, आयुर्वेद और ज्योतिष पर इनका पूर्ण नियंत्रण था। वे महीनों सरयू नदी और गंगा नदी के तट पर कल्पवास किया करते थे।
पदमाकर जी के गंगा लहरी की भांति श्री नारायण जी ने 109 छंदों की सरयू लहरी लिखा था जो दुर्भाग्य बस गायब हो गया। इससे पहले महाकवि सूरदास ने साहित्य लहरी नामक 118 पदों की एक लघु रचना लिखी है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया गया है। इसी प्रकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने प्रेम लहरी, जम्मू के जाने-माने साहित्यकार प्रियतम चंद्र शास्त्री की शृंगार लहरी रचना है। बद्री नारायण प्रेमधन की लालित्य लहरी आदि लहरी रचनाएँ रही हैं। मूलतः लहरियों में धारा प्रवाह या भाव प्रभाव रचनाओं की अभिव्यंजना मिलती है। इसी तरह
भारतेंदु हरिश्चंद्र’ ने भी “सरयूपार की यात्रा” नामक एक यात्रा वृतांत लिखा है है। जिसका रचनाकाल 1871 ईस्वी के आसपास माना जाता है।
रीतिकालीन शृंगार का प्रस्फुटन श्री नारायण चतुर्वेदी रीति शास्त्र के ज्ञाता थे। उन्होंने देव बिहारी और चिन्तामणि के छंदों को कंठस्थ कर लिया था। लोग घण्टों उनके पास बैठ कर श्रृंगार परक रचना का रसास्वादन किया करते थे। उन्हें भाषा ब्रज, छंद मनहरन और सवैया प्रिय था। उनका श्रृंगार रस का एक छंद (डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ कृत ‘बस्ती के छंदकार’ भाग 1, पृष्ठ 13 – 14 के अनुसार ) द्रष्टव्य है –
कंज अरुणाई दृग देखत लजाई खंग
समता न पायी चपलायी में दृगन की।
वानी सरसायी दीन धुनिको लजायी पिक,
समता न पायी वास किन्हीं लाजवन की।
जंघ चिकनाई रम्भा खम्भ हू न पायीनाभि,
भ्रमरी भुलाई मन नीके मुनिजन की।
बुद्धि गुरुवायी श्री नारायण की जाती फंसि
देखि गुरुवायी बाल उरज सूतन की।।
एक अन्य छंद भी द्रष्टव्य है –
बाल छबीली तियान के बीच
सो बैठी प्रकाश करै अलगै।
चंद विकास सो हांसी हरौ
उपमा कुच कंच कलीन लगै।
दृग की सुधराई कटाछन में
श्रीनारायण खंज अली बनगै।
मृदु गोल कपोलन की सुषमा
त्रिवली भ्रमरी ते मनोज जगै।
श्रीनारायण कवि का यह छंद शृंगार की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। ये मलौली के कवि परम्परा के प्रथम चरण के अंतिम कवि थे।
5.शृंगार रस के कवि
पण्डित राम नारायण चतुर्वेदी
पंडित राम नारायण चतुर्वेदी का जन्म बैसाख कृष्ण 12, संवत् 1944 विक्रमी को उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के हैसर बाजार-धनघटा नगर पंचायत के ग्राम सभा मलौली में हुआ था।इनके पिता पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी जी थे। यह बस्ती मण्डल का एक उच्च कोटि का कवि कुल घराना रहा है। पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे – प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं।
पंडित राम नारायण जी का रंग परिषद में भी बड़ा आदर और सम्मान हुआ करता था। घनाक्षरी और सवैया छंदों की दीक्षा उन्हें रंगपाल जी से मिली थी। वे भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे। राम नारायण की शिक्षा घर पर ही हुई थी। इनके चार पुत्र बांके बिहारी, ब्रजबिहारी, वृन्दावन बिहारी और शारदा शरण थे। जिनमें ब्रज बिहारी ‘ब्रजेश’ और शारदा शरण ‘मौलिक’ अच्छे कवि रहे।
पंडित राम नारायण जी अंग्रेजी राज्य में असेसर (फौजदारी मामलों में जज / मजिस्ट्रेट को सलाह देने के लिए चुना गया व्यक्ति) के पद पर कार्य कर रहे थे। एक बार असेसर पद पर कार्य करते हुए उन्होंने ये छंद लिखा था जिस पर जज साहब बहुत खुश हुए थे –
दण्ड विना अपराधी बचें कोऊ,
दोष बड़ों न मनु स्मृति मानी।
दण्ड विना अपराध लहे कोऊ,
सो नृप को बड़ा दोष बखानी।
राम नारायण देत हैं राय,
असेसर हवै निर्भीक है बानी।
न्याय निधान सुजान सुने,
वह केस पुलिस की झूठी कहानी।।
ब्रज भाषा और शृंगार रस:-
कवि राम नारायण जी ब्रज भाषा के शृंगार रस के सिद्धस्थ कवि थे। सुदृढ़ पारिवारिक पृष्ठभूमि और रंगपाल जी का साहश्चर्य से उनमें काव्य कला की प्रतिभा खूब निखरी है। उनका अभीष्ट विषय राधा- कृष्ण के अलौकिक प्रेम को ही अंगीकार किया है। शृंगार की अनुपम छटा उन्मुक्त वातावरण में इस छंद में देखा जा सकता है। एक छंद द्रष्टव्य है –
कौन तू नवेली अलबेली है अकेली बाल,
फिरौ न सहेली संग है मतंग चलिया।
फूले मुख कंज मंजुता में मुख नैन कंज,
मानो सरकंज द्दव विराजे कंज कलिया।
करकंज कुचकंज कंजही चरण अरु
वरन सुकन्ज मंजु भूली कुंज अलियां।
तेरे तनु कंज पुंज मंजुल परागन के,
गंध ते निकुजन की महक उठी गालियां।।
घनाक्षरी का नाद-सौष्ठव:-
सुकवि रामनारायण की एक घनाक्षरी का नाद सौष्ठव इस छंद में देखा जा सकता है-
मंद मुस्काती मदमाती चली जाती कछु,
नूपुर बजाती पग झननि- झननि- झन ।
कर घट उर घट मुख ससीलट मंजु,
पटु का उडावै वायु सनन- सनन- सन।
आये श्याम बोले वाम बावरी तु बाबरी पै,
खोजत तुम्हें हैं हम बनन- बनन- बन।
पटग है झट गिरे घट-खट सीढ़िन पै,
शब्द भयो मंजु अति टनन-टनन- टन।।
वैद्यक शास्त्रज्ञ:-
सुकवि राम नारायण जी कविता के साथ साथ वैद्यक शास्त्र के भी ज्ञाता थे। उनके द्वारा रचित आवले की रसायन पर एक छंद इस प्रकार देखा जा सकता है –
एक प्रस्त आमले की गुठली निकल लीजै,
गूदा को सुखाय ताहि चूरन बनाइए।
वार एक बीस लाइ आमला सरस पुनि,
माटी के पात्र ढालि पुट करवाइए।
अन्त में सुखाद फेरि चुरन बनाई तासु,
सम सित घृत मधु असम मिलाइये।
चहत जवानी जो पै बहुरि बुढ़ापा माँहि,
दूध अनुपात सो रसायन को खाइये।।
ज्योतिष के मर्मज्ञ:-
सुकवि राम नारायण जी को कविता , वैद्यकशास्त्र के साथ साथ ज्योतिष पर भी पूरा कमांड था। उनके द्वारा रचित एक छंद नमूना स्वरूप देखा जा सकता है-
कर्क राशि चन्द्र गुरु लग्न में विराजमान,
रूप है अनूप काम कोटि को लजावती।
तुला के शनि सुख के समय बनवास दीन्हैं
रिपु राहु रावन से रिपुवो नसावाहि।
मकर के भौम नारि विरह कराये भूरि,
बुध शुक्र भाग्य धर्म भाग्य को बढ़ावहीं ।
मेष रवि राज योग रवि के समान तेज,
राम कवि राज जन्म पत्रिका प्रभावहीं।।
ब्रजभाषा की प्रधानता :-
इस परम्परागत कवि से तत्कालीन रईसी परम्परा में काव्य प्रेमी रीतिकालीन शृंगार रस की कविता को सुन-सुन कर आनंद लिया करते थे।कवि रामनारायण भोजपुरी क्षेत्र में जन्म लेने के बावजूद भी ब्रजभाषा में ही कविता किया करते थे। उनका रूप- सौंदर्य और नख-सिख वर्णन परंपरागत हुआ करता था। उन्होंने पर्याप्त छंद लिख रखें थे पर वे उसे संजो नहीं सके। कविवर ब्रजेश जी के अनुसार पंडित रामनारायण जी चैत कृष्ण नवमी सम्बत 2011 विक्रमी को अपना पंचभौतिक शरीर को छोड़े थे ।
बस्ती के छंदकार शोध ग्रन्थ के भाग 1 के पृष्ठ 122 से 126 पर स्मृतिशेष डॉक्टर मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी ने पंडित राम नारायण जी के जीवन वृत्त और कविता कौशल पर विस्तार से चर्चा किया है।
6. ब्रज बिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’
ब्रज बिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’ संवत् 1974 विक्रमी और मृत्यु संवत् 1947 विक्रमी को सन्त कबीर नगर के मलौली गांव में हुआ था। ब्रज बिहारी चतुर्वेदी ‘ब्रजेश’ मलौली का चतुर्वेदी कविकुल परम्परा के कवि पंडित श्रीराम नारायण चतर्वेदी के पुत्र थे।उन्होंने अपने बारे में खुद लिखा है-
सम्बत सन् उन्नीस सौ
अरु चौहत्तर मान।
ज्येष्ठ त्रयोदस कृष्ण शनि
जन्म ब्रजेश सुजान।
चौबे वुल सुपुनीत भू
ग्राम मलौली खास।
रामनरायण सुकवि के
पूर्व किए अभिनाश।।
ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि वाले थे। ये रंगपाल जी के घर हरिहरपुर बराबर आया जाया करते थे। मैथिलीशरण गुप्त तुलसी बिहारी और देव,कलाधर, द्विजेश बद्री प्रसाद पाल, गया प्रसाद शुक्ल सनेही, जगदम्बा प्रसाद हितैषी तथा रीवा के बृजेश कवि से प्रभावित रहें हैं। जमींदारी टूटने से परेशान होते हुए भी वे साहित्य के लिए समय निकल लेते थे। अंधे होते हुए भी वह लिखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे। वे 40 वर्षों तक जिले के छंद परम्परा के विकास में जुड़े रहे।
रचनाएं :-
इन्होंने तीन रचनाएं लिखी थीं।
कवित्त मंजूषा :-
इसमें 1000 छंद होना कहा जाता है। दोहा, सवैया, मनहरन, कुण्डली, रोला तथा मधुरा आदि में रचनाएं लिखी गई हैं।
प्राकृतिक वर्णन, सरयू वर्णन , केवट प्रसंग, व्यंग्य रमोमा, लंका दहन, बबुआ अष्टक आदि प्रसंगों का मनोहारी निरूपण किया गया है। ब्रजेश सतसई दो भाग में लिखी गई है।
ब्रजेश सतसई भाग 1:-
सतसई के प्रथम भाग में श्रृंगार परक, भक्ति परक और नीति परक दोहों की रचना की गई है। श्रृंगार में वियोग परक दोहे मिलते हैं। पौराणिक प्रसंग के दोहे मन को आह्लादित करती हैं।
ब्रजेश सतसई भाग 2 में नीति , वैराग्य और गंगा जी पर भक्ति परक दोहे आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
राम चरितावली :-
इसमें राम चरित मानस की तरह वृहद रूप राम कथा लिखने का प्रयास किया गया है। विविध छंदों में नैनी जेल में बन्द स्वतंत्रता सेनानियों को लक्ष्य करके पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के मुख से राम कथा कहलवाई गई है। कालिदास से प्रेरित रघुवंश के इच्छाकु से लेकर राम जी सम्पूर्ण चरित्र को उजागर किया गया है।भारत महिमा से ग्रन्थ का श्री गणेश किया गया है।
श्रृंगार और नीति के कवि:-
ब्रजेश जी मूलतः श्रृंगार और नीति के कवि थे। ब्रज भाषा के पक्षधर थे। संस्कृत के ज्ञान के शब्दों में लालित्य अपने आप आता गया है। अलंकारों में उत्प्रेक्षा उपमा रूपक संदेह भ्रतिमान अनन्वय तदगुण श्लेष आदि का प्रयोग इनके दोहों में बड़ी उत्कृष्टता के साथ हुआ है। शब्दों की सफाई के साथ भावों का अभिव्यक्ति करण बड़ा ही प्रवाहमय है। शब्दों में विषयबोध के प्रति पर्याप्त शालीनता है।
शोधकर्ता स्मृति शेष डॉ. सरस ने पृष्ठ 170 पर ब्रजेश जी का मूल्यांकन इन शब्दों में किया है –
“ब्रजेश जी का बस्ती मंडल के छंदकारों में अपना एक विशिष्ट स्थान है।विद्वानों के बीच में ब्रजेश जी अपने पांडित्य के लिए सदैव सम्मादृत रहे हैं।— उनकी ब्रजेश मंजूषा और ब्रजेश सतसई हिन्दी की अनूठी निधि है। यह प्रकशित होते ही मंडल की छंद परम्परा को ये गौरव शाली कृतियां महत्व ही नहीं प्रदान करेगी अपितु इस चरण के साहित्यिक गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी।छंद परम्परा के विकास में ब्रजेश जी के कई पीढ़ी की कवियों ने जो गौरव दिया है उसके स्थाई स्तम्भ के रूप में ब्रजेश जी सदैव सम्मादृत रहेंगे।”
लेखक का परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर + 91 9412300183)
पूरा नाम: मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ां। उपनाम: ग़ालिब (जिसका अर्थ है “विजेता”) जन्म: 27 दिसंबर 1797, आगरा (मुग़ल साम्राज्य)
ग़ालिब का जन्म एक प्रतिष्ठित तुर्की परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग था, जो एक सैनिक थे। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। उनके चाचा मिर्ज़ा नसरुल्लाह बेग ने उनकी परवरिश की। लेकिन जब ग़ालिब 9 साल के थे, तो उनके चाचा का भी निधन हो गया। इन मुश्किलों के बावजूद, ग़ालिब की शिक्षा-दीक्षा में कोई कमी नहीं हुई। उन्होंने फ़ारसी, उर्दू और अरबी की पढ़ाई की और छोटी उम्र में ही शायरी लिखना शुरू कर दिया। 13 साल की उम्र में ही ग़ालिब की शादी उमराव बेगम से हो गई। शादी के बाद ग़ालिब आगरा से दिल्ली आ गए और अपनी ज़िंदगी यहीं बिताई। हालांकि, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी बहुत सुखद नहीं रही। ग़ालिब के कोई संतान नहीं थी। उनकी इस पीड़ा का असर उनकी शायरी में भी झलकता है। उन्होंने खुद लिखा:
“पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है,
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।”
ग़ालिब की शायरी का मुख्य विषय प्रेम, दर्द, दर्शन, और इंसानी ज़िंदगी के गहरे अनुभव हैं। उन्होंने उर्दू ग़ज़लों को एक नया आयाम दिया। उनके दौर में ग़ज़लें आमतौर पर प्रेम पर आधारित होती थीं, लेकिन ग़ालिब ने इसमें इंसान के अंदर की गहराई, दुख और अस्तित्व के सवालों को भी शामिल किया।
15 फरवरी 1869 को दिल्ली में ग़ालिब का निधन हुआ।
1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ग़ालिब ने दिल्ली में हुए बदलावों को करीब से देखा। उन्होंने इस दौर को अपने पत्रों में दर्ज किया। उनका एक पत्र इस दर्द को व्यक्त करता है:
“दिल्ली जो एक शहर था आलम में इंतिख़ाब,
हम रहने वाले हैं उसी उजड़ी हुई बस्ती के।”
ग़ालिब ने उर्दू और फ़ारसी में लिखा। उनकी ग़ज़लें और पत्र आज भी बहुत पढ़े और सराहे जाते हैं।
मुख्य रचनाएँ: दीवान-ए-ग़ालिब: यह उनकी उर्दू शायरी का संकलन है। इसमें उनकी ग़ज़लें शामिल हैं। उर्दू मसनवी और क़सीदे
प्रस्तुत है, गालिब के 20 बेहतरीन शेर…
1.
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।
______________________________
2.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
______________________________
3.
इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
______________________________
4.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है।
______________________________
5.
कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नजर नहीं आती।
______________________________
6.
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख्याल अच्छा है।
______________________________
7.
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद,
अब कुछ भी नहीं मुझको मुहब्बत के सिवा याद।
______________________________
8.
कर्ज की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां,
रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।
______________________________
9.
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता।
______________________________
10.
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।
______________________________
11.
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले।
______________________________
12.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले।
______________________________
13.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
______________________________
14.
बाजीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
______________________________
15.
पता नहीं क्या ख्याल है ‘ग़ालिब’,
कि मैं शराब पीकर भी होश में हूं।
______________________________
16.
कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाए है मुझसे,
जफाएं करके अपनी याद शरमा जाए है मुझसे।
______________________________
17.
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।
______________________________
18.
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
______________________________
19.
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
______________________________
20.
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ,
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ।
कोटा 8 जनवरी/ हाड़ौती क्षेत्र भारत में समृद्ध इतिहास का साक्षी है। यदि कर्ता और कृति को जोड़ दिया जाएगा तो इतिहास जानने की गति बढ़ेगी। पुरातत्व अब इतिहास का विषय नहीं यह कई प्रकार की गतिविधियों से जुड़ गया है। यह विचार रविवार को जय मीनेश
भुवनेश्वर। प्रवासी भारतीय दिवस आनेवाले कल से यहां शुरू हो रहा है, भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक संगठन (जीओपीआईओ) ने कीट-कीस के संस्थापक महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युता सामंत को उनके असाधारण शैक्षिक पहल एवं निःस्वार्थ जनसेवा व लोकसेवा के लिए प्रथम पीआईओ उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया है। सच कहा जाय तो यह गौरवशाली सम्मान प्रोफेसर सामंत को शिक्षा और जनजातीय सशक्तिकरण में असाधारण योगदान के लिए प्रदान किया है। यह पुरस्कार कीट डीम् विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर द्वारा आयोजित ‘पीआईओ डायलॉग विथ इंडिया 2025’ सत्र के दौरान प्रदान किया गया। थीम “वैश्विक कनेक्शनों को सशक्त बनाना: उभरते भारत में पीआईओ की भूमिका”, कार्यक्रम ने दुनिया भर के गणमान्य व्यक्तियों और नेताओं को एक साथ लाया।
उल्लेखनीय है कि प्रो सामंता के साथ, मलेशिया के प्रधान मंत्री के ओएसडी शनमुगन मुक्कान और जेएनयू से प्रोफेसर अजय कुमार दुबे भी शामिल हुए। उनके योगदान के लिए भी सम्मानित किया गया। इस आयोजन का एक प्रमुख आकर्षण भारत में हर चार साल के अंतराल पर भारतीय प्रवासियों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव की मेजबानी करने का प्रस्ताव था। इस महोत्सव का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर भारतीय मूल के लोगों (पीआईओ) की समृद्ध विरासत और योगदान का जश्न मनाना और भारत के साथ उनके संबंधों को मजबूत करना है। इस सत्र में कीट डीम्ड विश्वविद्यालय में जीओपीआईओ इंटरनेशनल चेयर के शुभारंभ का भी जश्न मनाया गयाजो अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक ऐतिहासिक पहल है। प्रवासी भारतीयों के संबंध में। यह चेयर अकादमिक अध्ययन की सुविधा प्रदान करेगी और दुनिया भर में पीआईओ के योगदान का दस्तावेजीकरण करेगी।
महान शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपने अभिभाषण में आभार व्यक्त करते हुए कहा, “पीआईओ के एक सत्र की मेजबानी करना कीट-कीस के लिए सम्मान की बात है।कीटआज मात्र 12 छात्रों से बढ़कर 80,000 से अधिक हो गया हैऔर कीसदेश में एक क्रांति बन गया है। मुझे आशा है कि हमारे विशिष्ट अतिथि इस प्रगति को देखकर प्रसन्न होंगे।” जीओपीआईओ इंटरनेशनल के महासचिव रवेन्दिरन अर्जुनन ने कीट की उल्लेखनीय उपलब्धियों की प्रशंसा की: “कीट टाउनशिप तेजी से बढ़ा है।
प्रवासी भारतीय दिवस का जन्म पीआईओ द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध से हुआ था, और आज, राष्ट्र निर्माण में पीआईओ के योगदान को संरक्षित और प्रलेखित किया जाना चाहिए। ओडिशा के ऐतिहासिक महत्व पर विचार करते हुए, अर्जुनन ने टिप्पणी की, “कलिंग था यह अपने व्यापारियों और व्यवसायियों के लिए जाना जाता है जिन्होंने दुनिया भर में यात्रा की। उनके योगदान को अक्सर भुला दिया जाता है, और अब समय आ गया है कि हम उनकी विरासत को संरक्षित करें।”डॉ. जीओपीआईओ इंटरनेशनल के अध्यक्ष पोन्नुसामी मुथैया ने प्रवासी भारतीय दिवस की उत्पत्ति का पता लगाया, और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे सम्मेलन ने प्रवासी भारतीयों को भारत के करीब लाया है। जीओपीआईओ के उपाध्यक्ष विनय दुसोये ने अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक का प्रस्ताव रखते हुए भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। वैश्विक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम के रूप में महोत्सव। “प्रवासी भारतीयों को शामिल करने की प्रक्रिया हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है।
हमें खुद को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में स्थापित करना चाहिए और सांस्कृतिक संरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए।” -डीयू ने भारत के विकास में प्रवासी भारतीयों की भूमिका को रेखांकित किया। प्रो. देबाशीष बंदोपाध्याय, प्रो-वाइस चांसलर ने सांस्कृतिक कार्निवल के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।
सनातन हिंदू संस्कृति का महापर्व है –महाकुम्भ, विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव। सनातन संस्कृति की आस्था का सबसे बड़ा और सर्वोत्तम पर्व महाकुम्भ न केवल भारत अपितु संपूर्ण विश्व में सुविख्यात है। यह एकमात्र ऐसा महापर्व है जिसमें सम्पूर्ण विश्व से श्रद्धालु भक्त कुम्भस्थल पर आकर भारत की समन्वित संस्कृति, विश्व बंधुत्व की सद्भावना और जनसामान्य की अपार आस्था का अनुभव करते हैं। वैभव और वैराग्य के मध्य आस्था के इस महाकुम्भ में सनातन समाज नदी के पावन प्रवाह में अपने समस्त विभेदों, विवादों ओैर मतांतरो को विसर्जित कर देता है। इस मेले में मोक्ष व मुक्ति की कामना के साथ ही तन,मन तथा बुद्धि के सभी दोषों की निवृत्ति के लिए करोड़ों श्रद्धालु अमृत धारा में डुबकी लगाते हैं। महाकुम्भ में योग, ध्यान और मंत्रोच्चार से वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। महाकुम्भ में समस्त अखाड़े प्रतिभाग करते हैं उनमें से प्रत्येक की महिमा, इतिहास व परम्पराएं अदभुत हैं।
महाकुम्भ का इतिहास प्राचीन पौराणिक कथाओं में रचा बसा है। इसकी कथा समुद्र मंथन और देव-दानव संघर्ष से जुड़ी है जिसमें अमृत कलश की प्राप्ति हुई थी। समुद मंथन की कथा के अनुसार राजा बलि के राज्य में शुक्राचार्य के आशीर्वाद एवं सहयोग से असुरों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी और देवतागण उनसे भयभीत रहने लगे थे। भगवान विष्णु के सुझाव पर देवताओं ने असुरों से मित्रता कर ली और समुद्र मंथन किया। क्षीर सागर के मंथन के लिये मन्दराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया।समुद्र मंथन से सर्वप्रथम हलाहल विष निकला जिसका पान करके शिव जी ने समस्त सृष्टि की रक्षा की और नीलकंठ कहलाए । तत्पश्चात क्रमशः चन्द्र, कामधेनु गौ,कल्पवृक्ष,पारिजात, आम्रवृक्ष तथा संतान ये चार दिव्य वृक्ष, कौस्तुभ मणि, उच्चैश्रवा, अश्व और ऐरावत हाथी निकले। इसके पश्चात माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ जिन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया। वारुणी और शंख निकले। अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत घट लेकर निकले।दैत्यों ने उस अमृत घट को छीन लिया और पीने के लिये आपस में ही लड़ने लगे,तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारणकर दैत्यों को रूप सौन्दर्य से आसक्त कर लिया। दैत्यों ने अमृतघट विष्णु रूपी मोहिनी को बांटने के लिये दे दिया। मोहिनी रूपी विष्णु ने देवताओें को अमृत बांटना प्रारम्भ किया, एक असुर को मोहिनी की यह चालाकी समझ आ गयी और उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत प्राप्त कर लिया। जब देवताओं का ध्यान उसकी ओर गया तो उन्होंने भगवान विष्णु को बताया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य की गर्दन धड़ से अलग कर दी, दैत्य के शरीर के यही दो भाग राहु और केतु हैं। देवों को अमृत पान कराकर भगवान विष्णु अन्तर्धान हो गये। इसके पश्चात देवासुर संग्राम छिड़ गया। देवराज इन्द्र की आज्ञा से उनके पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर पलायन कर गए, दैत्य उनका पीछा कर रहे थे इस भागने के क्रम में जिन स्थानों पर अमृत छलककर गिरा उन्हीं स्थानों पर कुम्भ का आयोजन होता है। वे स्थन हैं हरिद्वार, उज्जैन,नासिक और प्रयागराज। अमृत कलश लेकर भागने के दौरान सूर्य,चन्द्र, बृहस्पति तथा शनि ने असुरों से जयंत की रक्षा की थी, यही कारण है कि इन चारों ग्रहों की विशेष स्थिति होने पर ही कुम्भ का आयोजन होता है।देवासुर संग्राम 12 वर्ष चला था जब देवता बालि पर विजय प्राप्त कर सके थे,अतः प्रत्येक बारह वर्ष में कुम्भ का मेला लगता है।
महाकुंभ की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण में स्पष्ट किया गया है। विष्णु पुराण में भी कुम्भ स्नान की प्रशंसा की गई है। कुंभ की अनेक व्याख्याएं की गई हैं। वेदों में भी कुम्भ की महिमा बताई गई है और ज्योतिष तथा योग में भी कुम्भ है। ऋग्वेद में कुम्भ शब्द पांच से अधिक बार, अथर्ववेद में दस बार और यजुर्वेद में अनेक बार आया है। ब्रह्माण्ड की रचना को भी कुम्भ के सदृश ही माना गया है।पृथ्वी भी ऐसी ही आकृति ग्रहण करती है। पृथ्वी का परिक्रमण पथ भी कुम्भकार ही है।कुम्भ का उपयोग घी, अमृत और सोमरस रखने के लिए भी किया जाता था। कुम्भ में ही औषधि संग्रह और निर्माण भी किया जाता था। वेदों में कलश को समुद्रस्थ कहा गया है वहीं अथर्ववेद में पितरों के लिए कुम्भ दान का उल्लेख है।
‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ है ‘घट, कलश, जलपात्र या करवा। भारतीय संस्कृति में ‘कुम्भ’ मंगल का प्रतीक है। यह शोभा ,सौन्दर्य एवं पूर्णत्व का वाचक भी है। सनातन संस्कृति में समस्त धार्मिक एवं मांगलिक कार्य स्वास्तिक चिन्ह से अंकित अक्षत, दुर्वा, आम्र पल्लव से युक्त जल पूर्ण कुम्भ के पूजन से प्रारम्भ होते हैं। कुंभ आदिकाल से हमारी आध्यात्मिक चेतना के रूप में प्रतिष्ठित है।भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों में कुम्भ का सर्वाधिक महत्व है।मनुष्य जीवन की अंतिम यात्रा में भी अस्थि कलश अर्थात् कुम्भ और गंगा का ही योग है।
ग्रह- नक्षत्रों की स्थिति तथा अन्य परम्पराओं के अनुसार कुम्भ के तीन प्रकार होते हैं, अर्ध कुम्भ, कुम्भ तथा महाकुम्भ, इस वर्ष प्रयागराज में हो रहा कुम्भ महाकुम्भ है, जिसमें 12 -12 वर्षों की 12 आवृत्तियां पूर्ण हो रही हैं। यह अवसर प्रत्येक 144 वर्ष के उपरांत आता है इसीलिए इसे महाकुंभ कहा जाता है।
महाकुम्भ और प्रयागराज ये दुर्लभ संयोग है क्योंकि कुम्भ –महाकुम्भ है और प्रयागराज –तीर्थराज हैं। प्राचीन काल में प्रयागराज को बहुत यज्ञ स्थल के नाम से जाना जाता था। ऐसा इसलिये क्योंकि सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था तथा उसके बाद यहां पर अनेक पौराणिक यज्ञ हुए। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम है। महाकुम्भ के अवसर पर यहां पर स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों, सैकड़ों वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है।
प्रयागराज महाकुम्भ -2025 में सम्पूर्ण भारत वर्ष में सनातन धर्म के समस्त मत मतान्तर, समस्त अखाड़े –आश्रम तथा समस्त महान संतों का आगमन हो रहा है, ऐसे ऐसे संत पधार रहे हैं जो सामान्य रूप से दर्शन नहीं देते इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में सनातन धर्म को मानने वाले विदेशी संतों-महंतों तथा उनके शिष्यों का आगमन भी हो रहा है। यह दृश्य अत्यंत अद्भुत होता है जब आम भारतीय जनमानस को उनके भी दर्शन प्राप्त होते हैं।
प्रयागराज महाकुम्भ – 2025 में अनुमानतः 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन संभावित है। मेले की तैयारियां स्वयं प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में की गई हैं । मेले के पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व के अनुरूप ही श्रद्धालुओं का अनुभव रहे इस दृष्टि से महाकुम्भ आयोजन की तैयारियां दो वर्ष पूर्व से आरम्भ कर दी गई थीं। लगभग पचास करोड़ लोगों के आतिथ्य को संभल सकने योग्य अवस्थापना का निर्माण किया गया है। उड्डयन, रेल, सड़क परिवहन ने मिलकर यात्रा सुगम बनाने के लिए अपनी सेवाओं को विस्तार दिया है। प्रयागराज नगर को पौराणिक नगरी की तरह सजाया गया है। महाकुंभ में इस बार केवल सनातन संस्कृति के अलौकिक आध्यात्मिक पहलुओं का दर्शन ही नहीं होगा अपितु विकसित होते भारत का दर्शन भी होगा। महाकुंभ मेले के प्रबंधन में प्रत्येक स्थान आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। अन्य प्रान्तों से आ रहे श्रद्धालुओं को कोई कठिनाई न हो इसके लिए सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। डेढ़ लाख टेंटों वाली टेंट सिटी बनाई गयी है। स्वच्छता के विशेष प्रबंध किये जा रहे हैं। मेला परिसर में एक 100 शैय्या वाला चिकित्सालय भी स्थापित किया गया है।
महाकुम्भ -2025 में गुलामी की मानसिकता के प्रतीक शब्दों और चिह्नों को हटाने का महाअभियान प्रारम्भ हो रहा है जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान कर दिया गया है। अखाड़ों के मेला प्रवेश को अब पेशवाई के स्थान पर अखाड़ा छावनी प्रवेश कहा जाएगा। एक घाट का नाम बदलकर महान क्रांतिकारी शहीद चंद्रशेखर आजाद घाट किया गया है। महाकुंभ -2025 में डिजिटल क्रांति भी देखने को मिलेगी।महाकुंभ -2025 पर्यावरण संरक्षण व सामाजिक समरसता के व्यापक अभियान के लिए भी स्मरणीय बनाया जायेगा। महाकुंभ में ज्योतिष कुम्भ से लेकर स्वास्थ्य के विभिन्न क्षेत्रों के महाकुम्भ का भी आयोजन होने जा रहा है।
मेले की समाप्ति तक निर्धारित मेला क्षेत्र उत्तर प्रदेश के 76 वें जनपद के रूप में मान्य होगा, यह घोषणा मेले के विस्तार और महत्व का प्रमाण है।
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं. – 919857154
मुंबई। कैलेंडर “माई मुंबई 2025” एक अनूठी अवधारणा है जो मुंबई को सड़कों पर रहने वाले बेघर नागरिकों के नजरिए से दर्शाती है। आइडेंटिटी इंस्टीट्यूट की इस पहल में 50 बेघर लोगों को फिजी कैमरे दिए गए और उन्हें अपनी आंखों से मुंबई की तस्वीरें कैद करने का मौका दिया गया। यह खास कैलेंडर कुल 1107 तस्वीरों में से चुनी गई 13 तस्वीरों के आधार पर तैयार किया गया है।
कैलेंडर का विमोचन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने सह्याद्री गेस्ट हाउस में किया। इस कार्यक्रम में आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली, पहचान संस्थान के अध्यक्ष ब्रिजेश आर्य और सुभाष रोकड़े भी उपस्थित थे। श्रमिक नेता अभिजीत राणे, सामाजिक कार्यकर्ता रामकुमार पाल, लंदन स्थित माई वर्ल्ड क्रिएटिव प्रोजेक्ट के पॉल रयान ने विशेष सहयोग प्रदान किया।
मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने बेघर लोगों को न्याय दिलाने के लिए बार-बार प्रयास किया है। इसका एक हिस्सा मुंबई में रैन बसेरों का तेजी से निर्माण है। बेघर नागरिकों की कला को एक मंच प्रदान करने के अलावा, इस पहल ने उनके जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में भी एक कदम आगे बढ़ाया है।
बेघर नागरिकों द्वारा खींची गई सभी तस्वीरों की जांच और चयन करने के लिए नियुक्त पैनल में राज्य नियंत्रण आश्रय समिति के अध्यक्ष उज्वल उके, आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली, वरिष्ठ फोटोग्राफर प्रशांत नाकवे, डॉ रातूला कुंडू, ब्रिजेश आर्य, सार्थक बनर्जीपुरी शामिल थे।