Wednesday, November 27, 2024
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कीट डीम्ड विश्वविद्यालय के खाते में एक और गौरवगाथा

कीट डीम्ड विश्वविद्यालय को संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद (UN ECOSOC) द्वारा प्रतिष्ठित विशेष परामर्शदात्री का दर्जा प्रदान किया गया है। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में विश्वविद्यालय के महत्त्वपूर्ण योगदान को मान्यता देता है। गौरतलब है कि दुनिया भर से 476 आवेदनों में से, कीट डीम्ड विश्वविद्यालय सहित केवल 19 संगठनों को इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए चुना गया। 23 जुलाई, 2024 को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित UN ECOSOC प्रबंधन खंड की बैठक के दौरान इस दर्जे हेतु कीट डीम्ड विश्वविद्यालय को नवाजा गया।

यह मान्यता संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा 2030 और SDG के प्रति कीट की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। विशेष परामर्शदात्री दर्जा प्राप्त करना एक महत्त्वपूर्ण कीर्तिमान है। यह दर्जा वैश्विक

स्तर पर उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों के समूह में स्थान देता है जिन्होंने यह प्रतिष्ठित सम्मान अर्जित किया है।

इसी के साथ एक अन्य विकास में कीट ने UN वालंटियर्स (UNV) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। यह भागीदारी कीट डीम्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए विभिन्न गछ एजेंसियों के साथ जुड़कर ‘राष्ट्रीय

विश्वविद्यालय UN स्वयंसेवक’ के रूप में काम करने का एक उल्लेखनीय अवसर प्रदान करती है, जिन्हें गछ एजेंसियों के भीतर विभिन्न विकास पहलों के लिए तैनात किया जाएगा। ये अवसर कीट छात्रों को अंतर्राष्ट्रीय विकास में मूल्यवान पेशेवर का अनुभव करने का मौका देगा, जिससे वे उचित वेतन के साथ अपने भविष्य के कैरियर पथ को सही आकार

दे सकेंगे। यह पहल पूरे दक्षिण एशिया में किसी भी निजी विश्वविद्यालय के लिए पहली पहल है।

इसी तरह, अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स (ACYPL), ने कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (कीस) और कीट के साथ अपने ऐतिहासिक सहयोग की घोषणा की है। वैश्विक अधिनायक अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स (ACYPL), जो अंतर्राष्ट्रीय समझ और कूटनीति को बढ़ावा देने में एक अहम भूमिका निभाता है। कीस कीट की सहयोगी संस्था है। अमेरिकी विदेश विभाग और कई अन्य भागीदारों के दृढ़ समर्थन के साथ, अमेरिका और दुनिया भर के 129 देशों और क्षेत्रों में 8,900 से अधिक मार्गदर्शक हमारे जीवन परिवर्तनकारी विनिमय कार्यक्रमों में शामिल हुए हैं। अपनी खुशी जाहिर करते हुए कीट और कीस के संस्थापक

डॉ. अच्युत सामंत ने कहा, यह गर्व की बात है कि कीट भारत का एकमात्र व्यावसायिक / तकनीकी विश्वविद्यालय है, जिसने UN ECOSOC विशेष सलाहकार का दर्जा हासिल किया है। साथ ही, भारत में, कीट और ओडिशा में कीस दोनों को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने पर हमें खुशी है। उन्होंने यह भी बताया कि कीस को पहले ही 2015 में UN ECOSOC विशेष सलाहकार का दर्जा दिया जा चुका है और आज तक इस दर्जे पर अपना स्थान बनाए हुए है। उन्होंने यह भी बताया कि कीट दक्षिण एशिया का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसे इंटर्नशिप के लिए छात्रों को जोड़ने के लिए UNV का दर्जा मिला है। उन्होंने कहा कि, ACYPL KIIT के लिए एक बहुत ही प्रतिष्ठित उपलब्धि है, जिससे दुनिया भर से राजनीतिक राजनयिकों और नेताओं को कीट और कीस आने के लिए प्रेरित किया जा सके।

अब डिजाइनर लिफाफे में डाक से राखी भेज सकेंगी बहनें- पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

अहमदाबाद।  रक्षाबंधन पर्व 19 अगस्त को मनाया जायेगा और इसके लिए डाक विभाग ने अभी से तैयारियाँ आरंभ कर दी हैं। उत्तरी गुजरात परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि राखी भेजने के लिए विशेष रुप से निर्मित रंगीन डिजाइनर राखी लिफाफे डाकघरों के माध्यम से उपलब्ध कराये जा रहे हैं। ये विशेष राखी लिफाफे अहमदाबाद में अहमदाबाद जीपीओ, नवरंगपुरा और रेवड़ी बाजार प्रधान डाकघर के अलावा उत्तरी गुजरात के अंतर्गत अहमदाबाद, गांधीनगर, महेसाणा, अरावली, साबरकांठा, बनासकांठा और पाटन जिलों के प्रधान डाकघरों और चयनित उप डाकघरों में बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि ये डिजाइनर राखी लिफाफे 11 सेमी X 22 से.मी. आकार के हैं जिनका मूल्य ₹ 10  मात्र है जो डाक शुल्क के अतिरिक्त है। लिफाफे के बाएं हिस्से के ऊपरी भाग में भारतीय डाक का लोगो और रक्षाबंधन की डिजाइन के साथ अंग्रेजी में राखी लिफाफा और नीचे की  तरफ ‘रक्षाबंधन’ लिखा गया है। पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि रंगीन और डिजाइनर होने की वजह से उन्हें अन्य डाक से अलग करने में समय की बचत और रक्षाबन्धन पर्व के पूर्व वितरण करने में भी सहूलियत  होगी।

अमरीका के सिएटल में सभी भारतीय इस मेले की प्रतीक्षा करते हैं

भारत की पहचान जिन बातों से है अगर विदेशी धरती पर वे सारी चीजें एक ही दिन और एक ही जगह मिल जाएं तो आप सच में आनंदित हो जाएं. सिएटल और उसके आसपास बसे लोगों को सालाना आनंद मेले का इसी लिए इंतज़ार रहता है. यह शनिवार और रविवार रेडमंड शहर के सिटी सेंटर को भारतीयता के रंग में रंग गया.

आपको चूल्हे पर सेंकी गई देसी घी से चुपड़ी ताजी रोटी खानी है तो यहाँ के स्टाल पर वालंटियर आपकी सेवा में मौजूद थे , कोई पैसा नहीं देना हाँ अगर समझ आए तो उनके इस प्रकल्प के लिए कुछ दान दे सकते हैं . भारत के भी बड़े शहरों में फ्लैट सिस्टम होने के कारण अब गाय पालने का स्कोप ख़त्म हो चुका है लेकिन इस मेले में वैदिक कल्चरल सेंटर के गाय फार्म से गाय लायी जाती हैं आप उन्हें दुलार सकते हैं ।

यह मेला भारत की विभिन्न संस्कृतियों का इंद्रधनुष भी है , कन्नड़, तमिल, तेलगू, मलयालम, हिन्दी विविध भाषाओं के लोकगीत, शास्त्रीय नृत्य , बॉलीवुड कुछ यहाँ के गंगा और यमुना मंच पर लगातार दो दिन तक प्रदर्शित किए गए. इस बार इस मंच पर ग्रैमी अवार्ड से नवाज़े गणेश राजगोपालन का वायलिन वादन , सिएटल के अपने भारतीय बैंड दृष्टि की गीत, भजन प्रस्तुति को सैकड़ों श्रोताओं ने बैठ कर सुना.

यही नहीं सिएटल के भारतीय बच्चे प्रतीक्षा करते हैं कि उन्हें भी आनंद मेले में नृत्य और गीत परफॉर्म करने का अवसर मिले . बच्चों की ये प्रस्तुतियों से अन्दाज़ा लगता है कि विदेशी तौर तरीक़े अपनाने के साथ ही अपनी मूल धरती की महक अभी इन प्रवासी परिवारों में पल्लवित हो रही है।

मेले में साड़ी , सूट , भारतीय आभूषण के स्टाल पर भी काफ़ी भीड़ लगी रही। यूँ सिएटल में भारतीय शैली के काफ़ी रेस्टोरेंट खुल चुके हैं लेकिन इस मेले में काफ़ी भारतीय खाने पीने के स्टाल थे लेकिन सात्विक तरीक़े से बनी बंबई चाट के काउंटर पर लंबी क्यू बताती है कि जीभ को रगड़ा पेटिस, पाव भाजी, दबेली, पानी पूरी , दही पूरी , समोसा पाव ने विदेश की धरती पर भी खूब ललचाया.बंगाली स्वीट काउंटर पर असली मिष्टी दोई, संदेश के काउंटर पर भी खूब भीड़ लगी रही।

आनंद मेले की वेबसाईट https://www.anandamela.org/
आनंद मेले का फेसबुक पेज https://www.facebook.com/VCCFestivals
आनंद मेले का ट्वीटर पेज https://twitter.com/VCCAnandaMela

जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद की रोकथाम के लिए योगी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निरंतर जनहित में बड़े एवं ऐतिहासिक निर्णय ले रहे हैं। इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद के विरुद्ध नए विधेयक को पारित करवाकर एक और इतिहास रच दिया है। इसमें अतिशयोक्ति नहीं है कि जब से योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं तभी से वे भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। अपनी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है तथा वह इसी का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन कर रहे हैं।

विगत दीर्घ काल से लव जिहाद के प्रकरण सामने आ रहे हैं। प्रकरणों के अनुसार प्रेम प्रसंग में पड़कर लड़कियां दूसरे धर्म के पुरुषों से विवाह कर लेती हैं। विवाह के कुछ समय पश्चात् इन लड़कियों पर ससुराल पक्ष का धर्म स्वीकार करने का दबाव बढ़ने लगता है। बहुत सी लड़कियां ससुराल पक्ष का धर्म स्वीकार करने पर विवश हो जाती हैं, क्योंकि उनके पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता। जो लड़कियां ऐसा नहीं करतीं, उनका जीवन नारकीय बन जाता है। उन्हें ससुराल में यातना एवं अपमान का सामना करना पड़ता है। अनेक प्रकरणों में पति अथवा ससुराल पक्ष द्वारा लड़कियों को बेच देने के मामले भी प्रकाश में आए हैं। ऐसे प्रकरणों में लड़कियों की हत्याओं के मामले भी प्रकाश में आए हैं। नि:संदेह ऐसे प्रकरण किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।

अब उत्तर प्रदेश में नया कानून बनने से कुछ संतोषजनक होने की आशा जगी है। उत्तर प्रदेश में जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद की रोकथाम के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि सोमवार को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद के विरुद्ध नया विधेयक प्रस्तुत किया, जो मंगलवार को पारित हो गया। इसे उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक-2024 नाम दिया गया है।

इस नए विधेयक के अनुसार नाबालिग लड़की का लव जिहाद के लिए अपहरण करने तथा उसे बेचने पर आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपए तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यदि किसी नाबालिग, दिव्यांग अथवा मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति, महिला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो दोषी को आजीवन कारावास के साथ-साथ एक लाख रुपए का आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है। इसी प्रकार सामूहिक रूप से जबरन धर्म परिवर्तन पर भी आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान है।

ऐसे प्रकरण भी सामने आते रहते हैं कि भारत में धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए विदेशों से भारी मात्रा में धनराशि आती है। योगी सरकार की दूरदर्शिता के कारण अब इस पर भी रोकथाम लग सकेगी। इस विधेयक में विदेशों से धर्म परिवर्तन के लिए आने वाले धन पर भी अंकुश लगाने हेतु कठोर प्रावधान किए गए हैं। विदेशी अथवा अपंजीकृत संस्थाओं से धन प्राप्त करने पर 14 वर्ष तक का कारावास तथा 10 लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यदि कोई धर्म परिवर्तन के लिए किसी व्यक्ति के जीवन अथवा उसकी धन-संपत्ति को भय अथवा हानि में डालता है, उस पर बल प्रयोग करता है, उसे विवाह का झांसा देता है, लालच देकर किसी नाबालिग, महिला या व्यक्ति को बेचता है, तो उसके लिए न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया है।

प्रकरण की गंभीरता के अनुसार इसमें वृद्धि भी की जा सकती है। दोषी को पीड़ित के उपचार एवं पुनर्वास के लिए भी आर्थिक दंड चुकाना होगा। अब जबरन धर्म परिवर्तन के संबंध में कोई भी व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करवा सकता है। इससे पूर्व केवल पीड़ित व्यक्ति, उसके परिवारजन अथवा संबंधी ही प्राथमिकी दर्ज करवा सकते थे।

इस प्रकार योगी सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन रोकने की दिशा में प्रथम पग उठा लिया है। अब इस विधेयक को विधानसभा से पारित होने के पश्चात विधान परिषद भेजा जाएगा। तत्पश्चात इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। उसके पश्चात् इसे राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।

उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व नवंबर 2020 में योगी सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था। इसके पश्चात् फरवरी 2021 में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के दोनों सदनों ने इस विधेयक को पारित कर दिया था। इस प्रकार उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम- 2021 अस्तित्व में आया था। इस विधेयक के अंतर्गत दोषी को एक से 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान था। इस विधेयक के अंतर्गत केवल विवाह के लिए किया गया धर्म परिवर्तन ही अमान्य था। किसी से झूठ बोलकर अथवा उसे धोखा देकर धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया था। यदि कोई स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है तो उसे दो माह पूर्व मजिस्ट्रेट को सूचित करने का प्रावधान था। विधेयक के अनुसार जबरन अथवा धोखे से धर्म परिवर्तन के लिए 15 हजार रुपए आर्थिक दंड के साथ एक से डेढ़ वर्ष के कारावास का प्रावधान था। यदि दलित लड़की का धर्म परिवर्तन होता है तो 25 हजार रुपए के आर्थिक दंड के साथ तीन से 10 वर्ष के कारावास का प्रावधान था।

उल्लेखनीय है कि जबरन धर्मांतरण के दृष्टिगत देश के कई राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन विरोधी कानून लागू हैं। इनमें ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं हरियाणा सम्मिलित हैं। महारष्ट्र में भी जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध विधेयक लाने की बात कही जाती रही है, किंतु इस संबंध में कोई विशेष प्रगति नहीं हो सकी है।

पूर्व के कानून की तुलना में नए कानून को अधिक सशक्त एवं कठोर बनाया है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लव जिहाद के प्रकरण रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। हिन्दुत्ववादी संगठन लम्बे समय से कठोर कानून की मांग करते आ रहे हैं। उनका तर्क है कि कठोर कानून से ही उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित रह सकेंगी। देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो लव जिहाद को ‘मिथ्या’ की संज्ञा देता है। इस वर्ग का कहना है कि देश में ‘लव जिहाद’ नाम की कोई चीज नहीं है। प्रश्न यह भी है कि यदि ऐसा है तो फिर यही वर्ग इस प्रकार के कानूनों की आलोचना क्यों करता है?

वास्तव में यह विधेयक किसी समुदाय या वर्ग विशेष के विरुद्ध नहीं है, अपितु यह केवल जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध है। स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने पर कोई रोक नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर का कहना है- “कानून में जो संशोधन और सुधार हो रहा है उसके पीछे यह मकसद है कि और कड़ाई से नियम लागू हों और इस तरह की चीजें न हो। विपक्ष जो कह रहा है कि यह सिर्फ मुसलमानों के लिए है, यह कानून सभी धर्मों के लोगों के लिए बनाया गया है, सिर्फ एक धर्म के लिए नहीं, वे इसका विरोध सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि मुसलमान उनका गुलाम बना रहे और उन्हें वोट देता रहे, वे सरकार बनाते रहें और मुसलमानों को धोखा देते रहें।”

कुछ लोग कहते हैं कि प्रेम धर्म नहीं देखता है। यदि प्रेम की बात की जाए, तो प्रेम त्याग का दूसरा रूप है। प्रेम की बात करने वाले लोगों को त्याग के नाम पर सांप सूंघ जाता है। यह कैसा प्रेम है, जो केवल लड़की से उसकी धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान छीन लेता है। यदि पुरुष इतना ही प्रेम करने वाला है, तो वह लड़की का धर्म स्वीकार क्यों नहीं करता? यह कैसा एक पक्षीय प्रेम है? प्रेम के नाम पर धोखा, छल और साजिश तो नहीं ?

(लेखक – राजनीतिक विश्लेषक हैं।)



Dr.Sourabh Malviya
Associate Professor
Deptt. of Journalism $ Mass Communication
University of Lucknow- UP
मो. 8750820740

पुरातत्व विभाग में न जाने की कसक अब तक सालती है

कोटा निवासी डॉ.प्रभात कुमार सिंघल राजस्थान के उन सुधि लेखकों में हैं जिन्होंने न केवल प्रदेश वरन देश की कला,संस्कृति, पर्यटन,इतिहास,पुरातत्व जैसे विरल विधा पर भी गहनता से पुस्तकीय रूप में लिखा है उन्होंने स्नातकोत्तर इतिहास में करने के पश्चात राजस्थान विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जन संचार विषय में सनातकोत्तर डिप्लोमा कर राजपूताने में पुलिस प्रशासन (1857-1947) विषय पर इतिहास में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इनकी इतिहास, पुरातत्व, कला, संस्कृति और पर्यटन में विशेष रुचि है।

आरंभ में ये पुरातत्व विभाग में अपनी सेवा देना चाहते थे। इस बारे में इन्होंने राजस्थान पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक और भारतीय पुरातत्व विज्ञान के अधिष्ठाता डॉ.रत्न चंद्र अग्रवाल जी से भी मिल कर प्रयास किया था पर बात नहीं बन पाई और ये जनसंपर्क विभाग में आ गए। पुरातत्व विभाग में जाने का उनका मानस नवीन अनुसंधान करना था। उन्होंने इस विषय और अनुसंधान के प्रति हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्होंने भारतीय इतिहासकारों और पुराविदों की स्तरीय पुस्तकों का संदर्भ युक्त सहित गूढ़ अध्ययन किया और प्राचीन धरोहरों को देखने में अपना समय दिया।

इसी के प्रतिफल स्वरूप इन्होंने अपनी ऐतिहासिक दृष्टि विकसित कर राजस्थान के कई संभागों के अनेक जिलों के इतिहास और उनके पर्यटन महत्व पर काफी कुछ लिखा। उनके इस लेखन से पुरातत्व स्थलों को पार्यटकीय महत्व प्राप्त हुआ और कई उपेक्षित और अनदेखे पुरातत्व स्थल लोगों के सामने आए।

अपनी अनुसंधान वृति को जारी रखते हुए इन्होंने अपने स्तर पर 16 विषयों में गहन शोध किया और सभी पर पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। राजकीय सेवा में रहते हुए भी समय-समय पर देश के अनेक संग्रहालयों का अध्ययन किया और संग्रहालयों पर एक पुस्तक का प्रकाशन भी करवाया। उनकी 6 खंडों में आने वाली ’अद्भुत भारत’ पुस्तक में भारत के प्राचीन भारत,मध्य कालीन भारत, आधुनिक भारत सहित स्वतंत्रता के बाद अब तक के भारत के इतिहास की प्रामाणिक घटनाएं हैं।

विगत दिनों उनकी पुस्तक ’हाड़ोती की पुरातत्व संपदा एक अध्ययन’ का प्रकाशन हुआ। इसमें सर्वाधिक विशेष पहलू यह रहा कि हाड़ोती के चारों जिलों की पुरातत्व धरोहरों के इतिहास, पर्यटन वैभव के साथ उनकी सामाजिक-सांकृतिक विशेषता और वहां के पुरातत्व संग्रहालयों में प्रदर्शित विविध संपदा पर सचित्र जानकारी दी गई है। अभी तक इतिहास, पुरातत्व और पर्यटन पर उनके लिखे गए समस्त आलेख गूगल पर पूरी दुनिया के पाठकों के लिए उपलब्ध हैं।

इतिहास की दृष्टि से इन्होंने यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल भारत की धरोहरों पर हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में सह लेखकों के साथ पुस्तकें लिखी हैं। भारत की विश्व विरासत पुस्तक का जब इन्होंने लोकार्पण कराया तब जिला कलेक्टर उज्जवल राठौर ने पर्यटन लेखक का उपर्णां और मोतियों की माला पहना कर सम्मान किया। झालावाड़ के सामर्थ्य सेवा संस्थान द्वारा ’पर्यटन लेखक’ के राष्ट्रीय सम्मान से इन्हें सम्मानित किया गया। कोटा पुरातत्व और संग्रहालय विभाग ने इन्हें हाड़ोती की पुरातत्व संपदा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने के लिए विश्व संग्रहालय दिवस-2023 पर प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया।

ये बानगी डॉ.सिंघल के इतिहास, पुरातत्व और पर्यटन लेखन के प्रति निष्ठा का ऐसा प्रमाण है जो राजस्थान के सांस्कृतिक जगत में एक विशिष्ठ देन है।
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विश्व हिंदू परिषद् ने कहा, खाना कौन बेच रहा है ये जानने का हक हर व्यक्ति को है

प्रत्येक शरणार्थी हिन्दू को नागरिकता, धर्म यात्राओं की सात्विकता व मन्दिरों को जागरण, धर्म प्रचार व समरसता के केन्द्र बनाने के संकल्प के साथ पूर्ण हुई विहिप की दो दिवसीय प्रबंध समिति बैठक।

जोधपुर, 28 जुलाई 2024 विश्व हिन्दू परिषद की केन्द्रीय प्रबन्ध समिति की दो दिवसीय बैठक जोधपुर के माहेश्वरी भवन में सम्पन्न हुई। रविवार को बैठक की सम्पूर्ण जानकारी के लिए हुई पत्रकार वार्ता को विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने सम्बोधित करते हुए कहा कि बैठक में प्रत्येक विस्थापित हिन्दू को नागरिकता मिले, हिन्दू मान्यताओं व परम्पराओं की सात्विकता व पवित्रता सुनिश्चित करने के साथ, मन्दिरों को जागरण, धर्म प्रचार, सेवा व समरसता के केन्द्र बनाने का संकल्प लिया गया।

विहिप अध्यक्ष ने कहा कि इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को विहिप के 60 वर्ष पूर्ण होंगे। बैठक में निर्णय लिया गया कि ऐसे में देशभर में हजारों स्थानों पर व्यापक जनजागरण कार्यक्रम होंगे। 24 अगस्त से 1 सितंबर के बीच आयोजित होने वाले इन स्थापना दिवस महोत्सव कार्यक्रमों के अन्तर्गत विहिप की 60 वर्षो की उपलब्धियां, वर्तमान में राष्ट्र, धर्म व हिन्दू समाज के समक्ष चुनौतियाँ तथा उनके निराकरण के सम्बन्ध में चर्चाएं, संगोष्ठियाँ व सार्वजनिक कार्यक्रम होंगे। इनके माध्यम से हम विहिप के कार्यों व हिन्दू जीवन मूल्यों को जन जन तक लेकर जाएंगे।

उन्होंने बताया कि राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात व उत्तर प्रदेश सहित सम्पूर्ण देश के अनेक राज्यों में विहिप एवं बजरंग दल कार्यकर्ता हर गाँव गली मोहल्ले में पाक से आये पीड़ित विस्थापित हिन्दुओं को नागरिकता दिलाने में सहयोग कर रहे हैं। इसमें हजारों ऐसे हिन्दुओं की नागरिकता हेतु पंजीयन हो चुका है तथा सैकड़ों को नागरिकता मिली भी है। निर्णय हुआ कि इस प्रक्रिया में और तेजी लाई जाएगी तथा शेष बचे सभी पीड़ितों को भारत की नागरिकता दिलाई जाएगी।

मुसलमानों को अधिकार बताया जाता है कि वह खाने के पहले देखें कि वह खाना हलाल का है या नहीं। खाने में धार्मिक भाव को देखा जा सकता है तो बेचने वाले के बारे में क्यों नहीं?
इस बारे में कानून 2006 में बना था। 2011 में नियम बने थे। इन नियमों में यह निर्देश था कि खाने का सामान बेचने वालों को अपना लाइसेंस दुकान पर लगाना पड़ेगा जिसमें उनका नाम शामिल है। तब केन्द्र में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की सरकार थी।

बहुत सारे ऐसे कानून है जिसमें हर दुकानदार को अपनी दुकान के सामने अपना रजिस्ट्रेशन लगाना पड़ता है। इसमें उसका नाम होता ही है एवं इसके अलावा अन्य काफी जानकारियां होती है, जैसे जीएसटी नंबर, टिन नंबर, शॉप एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट आदि। फिर इस बार ही आपत्ति क्यों?

यह सर्वविदित है कि हिन्दू धर्म स्थलों, तीर्थो तथा धर्मिक यात्राओं के मार्ग में बहुत सारे मुसलमान दुकानदार अपने दुकान का नाम हिन्दू देवी देवताओं के नाम पर रखते है तथा कई जगह तो वे हिन्दू देवी देवताओं के चित्र भी लगाते है। यह सीधे-सीधे अपना मजहब छुपाकर धोखा देने की बात है। कोई इस प्रकार के धोखे को अपना कानूनी अधिकार कैसे बता सकता है? क्या तीर्थ यात्रियों को यात्रा में अपने धर्म के अनुसार धार्मिक सात्विक खाना खाने का अधिकार भी नहीं है?

श्री आलोक कुमार ने यह भी कहा कि निश्चय ही लोकतंत्र में दो आदेश नहीं हो सकते। किसी एक धर्म के मानने वालों के लिए अलग और हिन्दू धर्म के मानने वालो के लिए अलग।
विश्व हिन्दू परिषद इस कानून का समर्थन करती है।

हमें यह मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस आदेश पर रोक लगाई है। इस आज्ञा का सम्मान होना चाहिए। किंतु, हम यह आशा करते हैं कि गुण दोष के आधार पर पूरी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट अपना यह आदेश वापस लेकर याचिका को शीघ्र रद्द करेगी।

विभिन्न जाति मत-पंथ-सम्प्रदायों के मठ मन्दिर देश में सामाजिक जागरण, धर्मप्रचार, सेवा व समरसता के केन्द्र बनें तथा शुद्ध मंत्रोच्चार के साथ धार्मिक रीति-रिवाज से पूजा, अर्चना व पौरोहित्य के कार्य सम्पन हों, इस हेतु विहिप ने देशभर में अर्चक पुरोहितों के प्रशिक्षण की एक व्यापक कार्य योजना बनाई है। इससे न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप अपितु, पश्चिम के देशों में भी मन्दिरों व घरों में विधि विधान से संस्कार व धार्मिक शिक्षा का प्रसार हो सकेगा। विदेशस्थ हिन्दू मन्दिरों में ऐसे पुजारियों की बड़ी मांग है। इस की पूर्ति हेतु इन प्रशिक्षण कार्यक्रम में अंग्रेजी व अन्य भाषाओं के साथ तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में समाज के हर वर्ग के जाति-मत-पंथ-सम्प्रदाय को सहभागी बनाया जाएगा।
इस बैठक में देश भर में विहिप के 47 प्रान्तों सहित विश्व भर के लगभग 300 पदाधिकारियों ने भाग लिया।

बड़े बेआबरू होकर मॉडर्न आर्ट गैलरी से हम निकले

अपनी इस दो कौड़ी की जिंदगी और ईश्वर से मुझे बस एक ही शिकायत है कि उसने मुझे सब सब कुछ दिया, सिर्फ ‘कला’ को समझने की बुद्धि नहीं दी. अब तो लगता है, यह तमन्ना दिल में -लिये ही एक दिन कूच कर जाना होगा. वह दिन दोनों में से किसके लिए ज्यादा शुभ होगा, नहीं कह सकती, मेरे लिए या कला के लिए.

ऐसा नहीं कि इस दिशा में कुछ किया नहीं जा सकता था. बेशक किया जा सकता था जैसे, या तो वह मुझे इस लायक बना देता कि मैं ‘कला’ को समझ सकूं या कला को इस लायक बना देता कि उसे समझा जा सके. लेकिन दोनों में से कुछ भी न हो सका, सिवाय इसके कि कला-वीथियों से आर्ट गैलरियों के सैकड़ों चक्कर लगाने के बावजूद अपना-सा मुंह लिये यहां से कोरी-की-कोरी लौट आयी. यानी मेरी बुद्धि की काली कमली पर कला का रंग नहीं चढ़ पाया.

शायर होती तो कहती, ‘बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले.’ सोचती हूं तो हैरत होती है कि इन कलाकारों ने भी क्याअजीबो-गरीब चीज बनायी है- यह ‘कला’ कि भगवान की बनायी सब चीजों के ऊपर हो गयी. यानी भगवान की बनायी सृष्टि की ज्यादातर चीजें सिर में समा जाती हैं, लेकिन आदमी की बनायी कला सिर के ऊपरसे निकल जाती है. इस शर्मिंदगी, इस’कोफ्त को जिन भोगा, तिन जानियां… आगे क्या कहूं, शायर होती तो कहती… एक बार कला-वीथी गयी थी. चित्रकार अमुक जी भी वहीं बैठे थे. मैंने कमर कस के कला को समझने का बीड़ा उठाया औरभगवान का नाम ले कर कला-दीर्घा में प्रवेश कर गयी… जैसे हनुमान जी, सुरसा के मुंह में प्रवेश कर गये थे… अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश कर गये थे, बिना आगा-पीछा सोचे कि होइहैं सोई जो राम रचि राखा…

संप्रति, कला-वीथी में पहुंची और कलाकार ने जो रचि राखा था, उसे हर एंगिल से, पूरे मनोयोग से समझने की पुरजोर कोशिश में लग गयी. दो-चार चित्रों को देखने के बाद ही कामयाबी कदम चूमती-सी लगी क्योंकि पहला चित्र ही साफ-साफ समझ में आने लगा था. हरे-भरे बैक ग्राउंड में चित्रकार ने पेड़ बनाया था, बस… अच्छा चित्र था, उसे देख कर लगा कि आज तक जो मेरे और कला के बीच बैरन खाई थी, सो पट जायेगी. आज से ही इस पार मैं और उस पार कलावाली बात खत्म, भला हो चित्रकार का, समझ बढ़ी तो आत्मविश्वास बढ़ा. जिज्ञासा बढ़ी, और ज्यादा जानने की. सो अमुक चित्रकार जी के पास पहुंची. आत्मविश्वास से लबालब भरा जाम छलकाते हुए बोली, “अमुक जी, इस चित्र के पेड़ को बनाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?”

“पेड़? पेड़ कहां है?” उन्होंने हैरानी से मुझे देखते हुए पूछा. “क्यों, यह रहा – यह वाला “वह पेड़ नहीं, औरत है,” अमुक जी घुरघुराये. लीजिए, हो गयी छुट्टी, कला के घर को खाला का घर समझ बैठने की नादानी का फलं भोग रही थी. फिर वही कोफ्त, कुढ़नऔर शर्मिंदगी… शायर होती तो कहती, ‘ये न थी हमारी किस्मत…’ शायर नहीं थी, तो चुपचाप खिसियायी-सी खिसक ली. मनमें रंज था कि अपनी कलात्मकता की कलई जो खुली, सो तो खुली ही, एक आदमी-से दिखते चित्रकार का दिल भी दुखाया. इस पाप का प्रायश्चित किसी प्रकार तो करना ही है. अतः मैं जल्दी-जल्दी दूसरे चित्रों को देखने लगी.

दूसरा चित्र देखा. वह भी एक पेड़ ही था. मैंने मन को समझाया, यानी यह भी एक औरत है. उसके बाद तीसरा चित्र एक औरत का ही था. मैं सोच में पड़ गयी. जो पेड़ दिखता था, वह तो औरत थी, अब यह जो औरत दिख रही है, सो कला के हिसाब से क्या हो सकती है? पेड़… अमुक जी से पूछती हूं. इस पेड़ की … नहीं, इस औरत की… नहीं, इस चित्र की- यही ठीक रहेगा…कला-दीर्घावाली बात है. समझ-समझ कर बोलना है. ‘रे मन समझ-समझ पग धरियो?’… प्रश्न भी… प्रेरणावाला ही ठीक रहेगा. तैयार हो कर फिर से पूछने पहुंची, “इस चित्र की प्रेरणा आपको कहां से मिली?”

“कौन से चित्र की?” “वह औरतवाला.””औरत ! वह तो मिल की चिमनी का चित्र है.”
“अरे अमुक जी! क्या कहते हैं”, मैं चिचियायी, “सोच कर देखिए, कहीं आपसे भूल तो नहीं हो रही… देखिए न, ये औरत केलंबे-लंबे बाल.” मेरी दशा ऐसी हो रही थी, जिस पर काफी मात्रा में तरस खाया जा सके. हृदय मानो-रो-रो कर पुकार रहा थॉ कि कलाकार अमुक जी ! भगवान के लिए इसे औरत कहो, औरत, मिल की चिमनी नहीं.बड़ी उम्मीद से कला-वीथी आयी हूं मैं.

अब मेरी साख, मेरी इज्जत, तुम्हारे हाथ है.’मेरी पत राखो गिरधारीओ गोबरधन, मैं आयी शरण तिहारी…’
“देखिए, ये काले लंबे बाल.””वे बाल नहीं, चिमनी से उड़ता हुआ धुआं है… …दरअसल मैंने महानगरीय प्रदूषण की जीती-जागती तसवीर खींचनी चाही है,” उन्होंने मुझे समझाया.

मुझमें साहस जागा, “लेकिन फिर औरत के रूप में क्यों?” “सामाजिक प्रदूषण का चित्र खींचना था न, इसलिए औरत से ज्यादा जीवंत प्रतीक और कहां मिलता?” “औरत को आपने और किस-किस प्रतीक के माध्यम से चित्रित किया है?” “इस चित्र-श्रृंखला में तो प्रदूषण के सारे पक्षों की प्रतीक औरत ही है. देखिए, बेहिसाब धुआं, कालिख फेंकती ट्रक, जलत्ती अंगीठी, दारू की भट्ठी, प्रदूषण उगलती चिमनी आदि सबको मैंने क्रमशः दौड़ती, हंसती, झूमती, झगड़ती, औरतों के माध्यम से ही चित्रित किया है.”

“आपकी इस लाइन में तो सारे पेड़-ही-पेड़ हैं.””जी हां, यानी औरतें-ही-औरतें.””और जितनी औरत उतने यथार्थ.”

“जी हां, आइए देखिए, मैंने चित्रों में, आज के जीवन का यथार्थ किस प्रकार दिखाया है.” वे फिर से एक वृक्ष के चित्र के पास ले गये. वह खूब मजे का मोटे तनेवाला दमदार वृक्ष था. अमुक जी बोले, “ध्यान से देखिए, आप इसमें जीवन का यथार्थ पायेंगे.” मैंने ध्यान से देखा, जीवन का यथार्थ नहीं दिखा, हां, उस चित्र के कोने के एक दुबला सीकिया-सा शुतुरमुर्ग दिखा. वह चोंच में कुछ बबाये था. थोड़ी हिम्मत जुटा कर पूछा, “यही न?””जी हां, कुछ समझीं आप?” अब तक के अनुभव के आधार पर मैं इतना समझी थी कि यह शुतुरमुर्ग और चाहे जो हो, शुतुरमुर्ग हर्गिज नहीं हो सकता.इसलिए ईमानदारी से कहा, “जी हां, समझी, क्या है यह?” “उस औरत का पति,” उनके स्वर में रोष और क्षोभ था. “किस औरत का?”उन्होंने मोटे दमदार तनेवाले वृक्ष की ओर हिकारत से देख कर कहा, “इस औरत का.” “ओह,” मैं जबरदस्त सस्पेंस की चपेट में थी. “और… और वह चोंच में क्या दबाये हैं?” “क्या दबायेगा… नाश्तेदान ले कर दफ्तर जा रहा है, और क्या?”

मेरा सिर कलामंडियां खा रहा था. लग रहा था मैं कला दीर्घा में नहीं, लखनऊ के बड़े इमामबाड़े में हूं. झिझकते- झिझकते पूछा. “एक बात बताइए, आप लोग पेड़ को पेड़ और औरत को औरत की तरह नहीं बना सकते?”

बना क्यों नहीं सकते?” उन्होंने गर्व से कहा. “फिर.””फिर हमारे और ऐरे-गैरे कमर्शियल आर्टिस्टों में फर्क क्या
रहा?”
“यानी?””यानी कला के धर्म का, उसके प्रति अपने फर्ज का निर्वाह हम कैसे कर पायेंगे?”

“लेकिन, औरत और वृक्षों के प्रति भी तो आपका कुछ फर्ज बनता है.”

उन्होंने मुझे इस तरह क्रोधित दृष्टि से देखा, जैसे कागभुशुंडी को कौआ बनाने से पहले उनके गुरु लोमश मुनि ने देखा होगा, शायर होती तो कहती… ‘वो कत्ल भी क रते हैं, तो चर्चा नहीं होती… हम आह भी करते हैं, तो…’लेकिन शायर नहीं थी, इसलिए फिर से चुपचाप खिसक ली. आते-आते जरा दूर पर एक चित्र दिखा. वह सोलहों आने औरत ही थी, लेकिन पास जा कर देखा, तो उसके नाक, कान, हौंठ सब गायब.

खुदाया ! क्या रहस्य है, अच्छी-भली औरत, सलीकेदार हाथ-पांव, लेकिन नाक- नकशे गायब. अब अमुक चित्रकार जी के पास जाने की हिम्मत नहीं थी, पास खड़े एक सज्जन से पूछा, “क्यों भाई साहब! इस औरत के आंख, नाक, कान वगैरह क्या हो गये?””कला को समर्पित,” उन्होंने संजीदा आवाज में कहा और दूसरे चित्रों की ओर बढ़ गये. मैं एक बार फिर बेआबरू हो करकूचे से निकल आयी… शायर होती, तो भी कुछ न कहती, बस सिर पीटती.

(साभार- साप्ताहिक धर्मयुग १२ फरवरी, १९८४ के अंक से )

मुजीब खान ने प्रेमचंद की 315 कहानियों का मंचन करके बनाया विश्व रेकॉर्ड

किसी कार्यक्रम में सहभागिता करने वालों की तैयारी अगर अच्छी हो तो कार्यक्रम शानदार तो होता ही है श्रोताओं को भी भरपूर आनंद आता है। रविवार 28 जुलाई 2024 को चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की ओर से मृणाल ताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित प्रेमचंद जयंती में कुछ ऐसा ही सुखद नज़ारा देखने को मिला। सभी वक्ताओं की असरदार सहभागिता ने आयोजन को यादगार बना दिया।

कथाकार सूरज प्रकाश ने प्रेमचंद का एक रोचक परिचय लिखा है। आरंभ में डॉ आर एस रावत ने बढ़िया अंदाज में इसका वाचन किया। परसाई जी की व्यंग्य रचना ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ का पाठ अभिनेता राजकुमार कनौजिया ने किसी मंजे हुए व्यंग्यकार की तरह पेश करके श्रोताओं को ख़ुश कर दिया। युवा रंगकर्मी युक्तार्थ श्रीवास्तव की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। उन्होंने प्रेमचंद की मशहूर कहानी ‘बड़े भाई साहब’ का प्रभावशाली एकल मंचन करके कई बार तालियां बजवाईं। लोग उनके अभिनय से इतने प्रभावित हुए कि अंत में दर्शकों ने खड़े होकर उनका अभिनंदन किया।

सन् 2005 से ‘आदाब प्रेमचंद’ का मंचन करने वाले रंगकर्मी मुजीब ख़ान ने इतने बढ़िया तरीके से प्रेमचंद के लेखन के प्रति अपनी भावनाओं का इज़हार किया कि श्रोतागण अभिभूत हो गए। अब तक प्रेमचंद की 315 कहानियों का मंचन करके विश्व रिकार्ड बनाने वाले रंगकर्मी मुजीब ख़ान ने बताया कि 31 जुलाई से 2 अगस्त तक मुम्बई के मैसूर एसोसिएशन हाल में शाम 5:00 बजे आइडिया नाट्य समूह की ओर से प्रेमचंद की 22 कहानियों का मंचन 22 भाषाओं में किया जा रहा है। इनमें संस्कृत, मराठी, तमिल, तेलगु, कन्नड़, बांग्ला, डोंगरी, बोडो, मणिपुरी, नेपाली आदि भाषाएं शामिल है।

प्रेमचंद की प्रेम कहानी ‘घास वाली’ का पाठ कवियत्री रेखा बब्बल ने मोहक अंदाज़ में किया। उन्होंने हर एक चरित्र की भाव भंगिमा को जिस ख़ूबसूरती के साथ पेश किया उसकी श्रोताओं ने मुक्त कंठ से तारीफ़ की। डॉ मधुबाला शुक्ल के वक्तव्य में हमेशा आत्मीयता और मिठास होती है। इसलिए वे बहुत जल्दी श्रोताओं के साथ अपना रिश्ता जोड़ लेती हैं। इस बार भी प्रेमचंद की प्रेम कहानी ‘फ़ातिहा’ का आकलन उन्होंने बड़े आत्मीय अंदाज़ में पेश किया। उनकी प्रस्तुति को बहुत पसंद किया गया। कहानी पाठ के बाद हुई चर्चा में कवि अनिल गौड़, कवि यशपाल सिंह यश और शायर क़मर हाजीपुरी ने महत्वपूर्ण सहभागिता की। कथाकार मधु अरोड़ा हास्य कवि आश करण अटल शायरा प्रतिमा सिन्हा और रंगकर्मी रूपा मलिक इस अवसर पर विशेष रूप से मौजूद थे।
आगामी रविवार 4 अगस्त 2024 को चित्रनगरी संवाद मंच में बारिश पर आधारित कार्यक्रम “रिमझिम के तराने” पेश किया जाएगा। इसके संचालन की ज़िम्मेदारी शायरा प्रतिमा सिन्हा को सौंपी गई है। जो मित्र बारिश पर कोई काव्य, गीत या लोकगीत पेश करना चाहते हैं कि वे हमसे संपर्क कर सकते हैं।

चित्रनगरी संवाद मंच का फेसबुक पेज https://www.facebook.com/csmanchs

शिर्डी के साईँ बाबा के फर्जीवाड़े की पूरी कहानी

विगत कई वर्षों से हिन्दू मंदिरों में साईं बाबा की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाने लगी है। संभवत ऐसा कोई शहर न होगा जहाँ के पहले से स्थापित मंदिरों में साईं बाबा का प्रवेश न हुआ हो। मेरा दावा है कि साईं बाबा को पूजने वालों ने ऐसा कभी नहीं सोचा की वे साईं की मूर्तियों की पूजा क्यों करते हैं? कुछ ने साईं के चमत्कारों के विषय में टीवी पर देखा होगा। कुछ ने देखा देखी जाना शुरू कर दिया होगा। मगर किसी ने साईं का कभी चरित्र तक नहीं पढ़ा होगा।

साईं बाबा का प्रथम मंदिर महाराष्ट्र प्रदेश के क़स्बा शिर्डी में बनाया गया था। श्री गोविन्दराव रघुनाथ दाभोलकर (१८५९-१९२९ ई•) ने, जिन्हें हेमाडपन्त भी कहा जाता है, मराठी भाषा में साईं बाबा के जीवन पर “श्री सांई सच्चरित” नामक पुस्तक लिखी थी जो रामचन्द्र आत्माराम तर्खड, श्री साईं-लीला कार्यालय, ५ सेंट मार्टिन्स रोड, बान्द्रे द्वारा सन् १९३० में प्रकाशित की गई थी। कालान्तर में श्री शिवराम ठाकुर द्वारा किया हुआ इसका हिन्दी अनुवाद “श्री साईं सच्चरित्र” शीर्षक से श्री साईं बाबा संस्थान, शिर्डी ने सन् १९९९ ईसवी में प्रकाशित किया था। इसी प्रकार विवेक श्री कौशिक विश्वामित्र ने भी एक “श्री साईं सच्चरित्र” लिखा है जिसे पूजा प्रकाशन, सदर बाज़ार, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसी प्रकाशक ने ४-१/४” × ५-१/४” साइज़ की एक पुस्तिका “श्री साईं कृति” (कुल ४६ पृष्ठ) भी प्रकाशित की है। इसके रचनाकार हैं : सुरेन्द्र सक्सेना और अमित सक्सेना।

शिर्डी के साईं बाबा के प्रति अन्धभक्ति से भरी इस पुस्तिका की भूमिका में सुरेन्द्र सक्सैना की ओर से कहा गया है –
“मैं बाबा का एक-निष्ठ भक्त १९६७ से हूं। मैंने पूरे १० साल बाबा की भक्ति ज़रूर की। •• करुणानिधान श्री साईं बाबा ने १९७७ में गुरुवार के दिन प्रातः पौने चार बजे मेरे घर में मुझे दर्शन देकर मुझे अपनी लीलाओं का गुणगान करने की आज्ञा प्रदान की। •• मैं एक बार १९९७ में बीमार हुआ। मेरे हृदय की चारों नाड़ियां लगभग बन्द थीं। इस दौरान बाबा मेरे साथ रहे। बाबा के चमत्कार, उनका आशीर्वाद मेरे ऊपर कैसे रहा, ये मैं फिर कभी लिखूंगा। जनवरी १९९८ में मेरी बाय-पास सर्जरी हुई जो कि बहुत जटिल होने के बाद सफल रही” (श्री साईं कृति, पृष्ठ ९-१०)।

यहां पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि उपरोक्त पुस्तकों में जब साईं बाबा की “कृपा” से अनेक लोगों के दुःख दूर होने का चमत्कारिक वर्णन किया गया है तो फिर १९६७ से साईं बाबा के प्रति अपनी एक-निष्ठ भक्ति का परिचय देने वाले भक्त-लेखक को जनवरी १९९८ में बाय-पास सर्जरी कराने की नौबत क्योंकर आई !! क्यों नहीं घर में दर्शन देने वाले “करुणानिधान” साईं बाबा ने “चमत्कार” करके अपने भक्त के दुःख-रोग दूर कर दिए !!

“श्री साईं कृति” नामक पुस्तिका के ये अन्धभक्त लेखक इसके पाठ की फलश्रुति का लाभ गिनाते हुए लिखते हैं –
“श्री साईं कृति का पाठ जो भक्त प्रतिदिन श्रद्धा व भक्ति से युक्त होकर करेगा या सुनेगा उसके समस्त दाप-ताप-संताप बाबा हर लेंगे। श्री साईं कृति दैहिक एवं मानसिक पीड़ाओं से मुक्ति दिलाकर चिरानन्द की प्राप्ति कराएगी।”

साईं बाबा को हिन्दू देवताओं और गुरु नानक का रूप बताना-इस अन्धभक्ति से भरभूर पुस्तिका के पृष्ठ १७ पर साईं बाबा की स्तुति करते हुए लिखा है :
राम कृष्ण दोनों तुम्हीं हो। शिव हनुमन्त प्रभु तुम्हीं हो।२१।
दत्तात्रेय अवतार तुम्हीं हो।
पीर पैग़म्बर रहमान तुम्हीं हो।२२।
नानक रूप धरि तुम आये।
सच्चा सौदा कर दिखलाए।२३।
साईं चरणन महूं तीरथ सारे।
विस्मित होय गणु नीर बहाए।२४।

यहां पर लेखक द्वय ने जहां साईं बाबा को राम, कृष्ण, शिव, हनुमान् और दत्तात्रेय स्वरूप बताया है वहां गुरु नानकदेव का स्वरूप भी दर्शाया है। इन लेखकों ने अपनी पुस्तिका के पृष्ठ १६ पर छन्द १२ में यह भी लिखा है –
बाबा तुम हो धाम करुणा के।तुम ही हरत दारुण दुःख जग के।।

अब यहां विचारने की बात यह है कि राम-कृष्ण आदि इन महान् विभूतियों का कथित स्वरूप बने साईं बाबा ने जब अपने भक्त-लेखक के दाप-ताप-संताप या दारुण दुःख नहीं हरे और बाय-पास सर्जरी कराने तक की नौबत आ गई तो तुम जैसे सामान्य कोटि के लेखकों की लिखी “श्री साईं कृति” नामक पुस्तिका का पाठ करने वाले के दाप-ताप-संताप को साईं बाबा कैसे हर लेंगे?

साईं बाबा को पूजने वालों को यह भी नहीं मालूम कि वैदिक कर्मफल व्यवस्था के विपरीत साईं बाबा के नाम पर चमत्कार और अन्धविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।

साईं बाबा को उन्हीं के चरित्र लेखक ईश्वर सिद्ध करने का असफल प्रयास इस प्रकार से करते है-
“मैं ही समस्त प्राणियों का प्रभु और घट-घट में व्याप्त हूं। मेरे ही उदर में समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए हैं। मैं ही समस्त ब्रह्माण्ड का नियन्त्रण-कर्ता व संचालक हूं। मैं ही उत्पत्ति, स्थिति और संहार-कर्ता हूं। मेरी भक्ति करने वालों को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। मेरे ध्यान की उपेक्षा करने वाला माया के पाश में फंस जाता है” (श्री साई सच्चरित्र, श्री साईं बाबा संस्थान, शिर्डी, १९९९ ईसवी, अध्याय ३, पृष्ठ १६)।

जबकि इस कथन के विपरीत साईं बाबा के समकालीन लेखक गोविन्दराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाडपन्त) यह भी बताते हैं :
“श्री साईं बाबा की ईश्वर-चिन्तन और भजन में विशेष अभिरुचि थी। वे सदैव ‘अल्लाह मालिक’ पुकारते तथा भक्तों से कीर्त्तन-सप्ताह करवाते थे। •• वे ‘अल्लाह मालिक’ का सदा जिह्वा से उच्चारण किया करते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, पृष्ठ २०, ३१)।

यहां पर प्रश्न यह उपस्थित है कि जब साईं बाबा स्वयं ही उत्पत्ति-स्थिति-संहार के कर्ता-धर्ता थे तो फिर वह “ईश्वर” कौन है जिसके चिन्तन और भजन में उनकी विशेष अभिरुचि थी !! इस प्रकार साईं बाबा ने एक ओर जहां अपने-आपको परमेश्वर बताने का दावा किया है वहां दूसरी ओर अल्लाह को “मालिक” ठहराया है !! अब साईं बाबा के अन्धभक्त बताएं कि इनमें से कौनसी बात सही है !! वस्तुतः साईं बाबा एक सामान्य मनुष्य से अधिक और कुछ नहीं थे।

वेदों की मांसाहार और नशा सम्बन्धी इस निषेधाज्ञा के विपरीत साईं बाबा मांस और नशा दोनों का सेवन करने के आदी थे। जैसा कि लिखा है-
“बाबा दिन भर अपने भक्तों से घिरे रहते और रात्रि में जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में शयन करते थे। इस समय बाबा के पास कुल सामग्री – चिलम, तम्बाकू, एक टमरेल, एक लम्बी कफ़नी, सिर के चारों ओर लपेटने का कपड़ा और एक सटका था, जिसे वे सदा अपने पास रखते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, अध्याय ५, पृष्ठ ३०)।

“यदि किसी ने उनके सामने एक पैसा रक्ख दिया तो वे उसे स्वीकार करके उससे तम्बाकू अथवा तैल आदि ख़रीद लिया करते थे। वे प्रायः बीड़ी या चिलम पिया करते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• १४, पृष्ठ ८९)।

“दक्षिणा में एकत्रित राशि में से बाबा अपने लिए बहुत थोड़ा ख़र्च किया करते थे। जैसे – चिलम पीने की तम्बाकू और धूनी के लिए लकड़ियां मोल लेने के लिए आदि” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• १४, पृष्ठ ९१)।

साईं बाबा के नशा करने की आदत के बाद अब उनके मांस खाने के विषय में लिखा जाता है :
“फ़क़ीरों के साथ वे आमिष और मछली का सेवन भी कर लेते थे। कुत्ते उनके भोजन-पात्र में मुंह डाल कर स्वतन्त्रतापूर्वक खाते थे, परन्तु उन्होंने कभी भी कोई आपत्ति नहीं की” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ७, पृष्ठ ४२)।

“शामा श्री साईं बाबा के अन्तरंग भक्त हैं। •• फिर बाबा ने पुनः शामा से कहा : •• मैं मस्जिद में एक बकरा हलाल करने वाला हूं। उस (हाजी सिद्दीक़ फालके) से पूछो कि उसे क्या रुचिकर होगा : बकरे का मांस, नाध या अण्डकोश” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ११, पृष्ठ ७२-७३)।

“तब बाबा ने शामा से बकरे की बलि के लिए कहा। वे राधाकृष्ण माई के घर जाकर एक चाकू ले आए और उसे बाबा के सामने रक्ख दिया। •• तब बाबा ने काका साहिब से कहा कि मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूंगा। •• जब बकरा वहां लाया जा रहा था, तभी रास्ते में गिर कर मर गया” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• २३, पृष्ठ १३७)।

“मस्जिद के आंगन में ही एक भट्ठी बनाकर उसमें अग्नि प्रज्वलित करके हंडी के ठीक नाप से पानी भर देते थे। हंडी दो प्रकार की थी : एक छोटी और दूसरी बड़ी। एक में सौ और दूसरी में पांच सौ व्यक्तियों का भोजन तैयार हो सकता था। कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांस-मिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे। ••

जब पूर्ण भोजन तैयार हो जाता, तब वे मस्जिद से बर्तन मंगाकर मौलवी से फ़ातिहा पढ़ने को कहते थे। फिर वे म्हालसापति तथा तात्या पाटील के प्रसाद का भाग पृथक् कर शेष भोजन ग़रीब और अनाथ लोगों को खिला कर उन्हें तृप्त करते थे” (श्री साईं सच्चरित्र, अ• ३८, पृष्ठ २३१-२३२)।

इस प्रकार जो नशा और मांसाहार मनुष्य को नरक या रसातल की ओर ले जाने वाला है, साईं बाबा न केवल स्वयं उसका सेवन करते थे बल्कि “द्वारका” नाम वाली मस्जिद में आए अपने मुरीदों को हलाल- मांस से मिश्रित और सूरा फ़ातिहा (क़ुरान १/१-७) की आयतों से भावित वह चावल इत्यादि भोजन खिलाकर उनका धर्म भ्रष्ट करने का पाप भी कमाते थे।

ऐसे दोषी मनुष्य साईं बाबा को श्रीहिन्दू देवी देवताओं के समतुल्य मंदिरों में बैठाना घोर अज्ञानता ही है।

हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी अज्ञानता है। धार्मिक ग्रंथों के स्वाध्याय न करने की उसकी आदत के चलते यह इस अज्ञानता के दलदल में डूबता जाता हैं। वेद, दर्शन, उपनिषद्, गीता, रामायण, महाभारत आदि धर्मग्रंथों की शिक्षाओं की अनदेखी करने का परिणाम यह हैं कि हिन्दुओं के संतानें आज पीर-मजारों की कब्रों पर सर पटकती दिखती हैं अथवा साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की को आराध्य बनाने में जुटी हैं। अत्यंत खेदजनक।

प्रस्तुति डॉ विवेक आर्य, नई दिल्ली

पश्चिम रेलवे का सुरक्षित एवं सुचारू रेल परिचालन के लिए प्रयासरत

मुंबई। कवच एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली है जिसे भारतीय रेल द्वारा अनुसंधान अभिकल्‍प एवं मानक संगठन (RDSO) के माध्यम से स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेनों को निर्दिष्ट गति सीमा के भीतर चलाने में लोको पायलटों की सहायता करता है, तब जब लोको पायलट ऐसा करने में विफल रहता है और खराब मौसम के दौरान ट्रेन को सुरक्षित रूप से चलाने में भी मदद करता है।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, कवच प्रणाली को आरडीएसओ द्वारा ट्रेनों की गति को 200 किमी प्रति घंटे तक बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह तकनीक ट्रेनों को उपयुक्‍त गति से चलाने में सक्षम बनाएगी। यह सिग्नल पासिंग एट डेंजर (SPAD) को रोकने में लोको पायलटों को सहायता करेगी और उन्‍हें निरंतर गति पर नज़र रखने में सक्षम बनाएगी। सिग्नल के पहलू और गति की हर जानकारी को लोको पायलट के कैब में प्रदर्शित किया जाएगा, जो टकराव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करेगा। पश्चिम रेलवे पर, 90 लोको के साथ 789 किमी पर कवच प्रणाली का काम किया जा रहा है। कुल 789 किमी में से 405 किमी के लिए लोको परीक्षण सफलतापूर्वक किए गए हैं और 90 में से 60 लोको को इस तकनीक से लैस किया गया है। पश्चिम रेलवे ने इस वित्त वर्ष 2024-25 में 735 किमी पर इसे कमीशन करने का लक्ष्य रखा है।

आगे की जानकारी देते हुए श्री विनीत ने बताया कि विरार-सूरत-वडोदरा (ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन पर 336 किलोमीटर में से 201 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है, जबकि वडोदरा-अहमदाबाद (ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन पर 96 किलोमीटर की कवच प्रणाली के लोको ट्रायल सफलतापूर्वक पूरे हो चुके हैं। वडोदरा-रतलाम-नागदा (नॉन-ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन पर 303 किलोमीटर में से 108 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। अंतिम परीक्षण के साथ-साथ कमीशनिंग का काम भी प्रगति पर है। इसी तरह, मुंबई सेंट्रल-विरार उपनगरीय (ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन के लिए 54 किलोमीटर का कॉन्‍ट्रैक्‍ट दिया गया है और सर्वेक्षण का काम प्रगति पर है।

स्वदेशी रूप से विकसित कवच तकनीक का उद्देश्य भारतीय रेलवे को ‘ज़ीरो एक्डिेंट’ का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करना है। यह प्रणाली CENELEC मानकों EN50126, 50128, 50129 और 50159 (SIL-4) के अनुरूप है।