Monday, July 1, 2024
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एक देश एक चुनावः कोई इस रिपोर्ट को पढ़े तो सही

हम भारत के लोग अक्सर चुनाव तनाव में रहते हैं। लोकसभा चुनाव अभी अभी संपन्न हुए हैं। कुछ दिन बाद बिहार, महाराष्ट्र, नई दिल्ली आदि विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। नगरीय क्षेत्रों व पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव भी सामाजिक तनाव पैदा करते हैं। लगातार चुनाव व्यस्तता राष्ट्रीय विकास में बाधक है। चुनावों के दौरान प्रशासनिक तंत्र की अलग व्यस्तता बनी रहती है। चुनावी अचार संहिता के दौरान विकास कार्य भी रुक जाते हैं। अलग अलग चुनावों में अरबों रुपए का व्यय होता है। इसलिए सभी चुनावों को एक साथ कराने का विचार महत्वपूर्ण हो गया है।
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में ही ‘एक देश एक चुनाव‘ का विचार व्यक्त किया था। विषय पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी। समिति ने 47 राजनैतिक दलों से सुझाव प्राप्त किए। 32 दलों ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया। समिति ने 18,626 पृष्ठों वाली रिपोर्ट राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को बीते मार्च में प्रस्तुत की थी। समिति ने चार पूर्व मुख्य न्यायधीशों, उच्च न्यायालय के 12 मुख्य न्यायधीशों, चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों, 8 राज्य चुनाव आयुक्तों जैसे विधि विशेषज्ञों से परामर्श मांगे थे। नागरिकों से 21,558 सुझाव प्राप्त हुए। विधि आयोग ने 2018 में एक प्रारूप रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। अब समिति ने इस प्रसंग से जुड़े सभी मसलों पर व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अग्रिम कार्यवाही के लिए काम शुरू कर दिया है। समिति ने महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। समिति ने लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव किया है। समिति ने एक साथ चुनाव के लिए संविधान में संशोधनों की रूपरेखा भी प्रस्तुत की है। एक साथ चुनाव के लिए नियत तारीख निर्दिष्ट करने का अधिकार देने के लिए समिति ने संविधान के अनुच्छेद 82 में संशोधन का सुझाव दिया है। एक साथ चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए ‘नियत तारीख‘ तय करने की सिफारिश की गई है। नियत तारीख के बाद जहाँ राज्य विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, वे एक साथ चुनाव कराने की सुविधा के लिए संसद के साथ समन्वित कर लेंगे।
समिति ने कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद सिफारिशों को स्वीकार करने और लागू करने पर संभवतः पहला एक साथ चुनाव 2029 में हो सकता है। यदि 2034 के चुनावों को लक्षित किया जाता है तो वर्ष 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद नियत तारीख की पहचान होगी। तब जिन राज्यों में जून 2024 और मई 2029 के मध्य चुनाव होने हैं, उनका कार्यकाल 18वीं लोकसभा के साथ समाप्त हो जाएगा। राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल का प्रभाव नहीं पड़ेगा। संसद या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने की स्थिति में समन्वय बनाए रखने के लिए समिति ने एक साथ चुनाव के अगले चक्र तक शेष कार्यकाल के लिए नए चुनाव कराने की सिफारिश की है। समिति का तर्क है कि त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव एक साथ चुनाव की समग्र समय सीमा को प्रभावित नहीं करता।
संसदीय चुनावों के साथ नगर पालिका और पंचायतों के चुनाव का समन्वय जरूरी है। लोकसभा, विधानसभा और नगरीय पंचायती क्षेत्रों की मतदाता सूची में भी अंतर होते हैं। समिति ने संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन कानून बनाने का परामर्श दिया है। यह कानून स्थानीय निकायों के चुनाव कार्यक्रम को राष्ट्रीय चुनाव समय सीमा के साथ जोड़ेगा। केन्द्रीय चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से सभी स्तरों पर एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र तैयार करने के लिए सक्षम बनाएगा। अभी तक लोकसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करने की जिम्मेदारी केन्द्रीय चुनाव आयोग पर है और स्थानीय निकायों के लिए मतदाता सूची राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की जाती है। समिति ने दोनों की एक ही मतदाता सूची तैयार करने का सुझाव दिया है। कभी कभी मतदाता सूची में नाम न होने और जीवित को मृतक और मृतक को जीवित रूप में मतदाता सूची में दर्ज किया जाता है। इसलिए सूची को प्रामाणिक बनाने का आग्रह है।
सभी संवैधानिक प्रतिनिधि संस्थाओं के चुनाव एक साथ कराने का विचार विशेष राजनैतिक सुधार है। भारत में राजनैतिक सुधार विशेषतया चुनाव सुधार की गति बहुत धीमी है। यह एक प्रशंसनीय राजनैतिक सुधार है। कुछ टिप्पणीकार तर्क देते हैं कि इससे संघवाद को क्षति होगी। यह कहना गलत है। सभी राज्य एक साथ एक चुनाव में राज्यों व केन्द्र के मुद्दे एक साथ उठाएंगे। भारतीय संघ अमेरिकी संघवाद नहीं है। यहाँ राज्य भारत के अभिन्न अंग हैं। संविधान सबको बाँधकर रखता है।
एक साथ चुनाव से नुकसान की बात करने वाले भूल जाते हैं कि 1951-52 में पहली लोकसभा, राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ हुए थे। साथ साथ चुनाव का क्रम 1967 तक चला। 1968 से यह क्रम भंग हो गया। साथ साथ चुनाव से राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों से जुड़ेंगे। क्षेत्रीय दलों की दृष्टि अखिल भारतीय होगी। एक साथ चुनाव के विरोधी अनावश्यक रूप से घबराए हुए हैं। साथ साथ चुनाव से आम जनों में राजनैतिक जागरूकता बढ़ेगी। वे राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय मुद्दे भी देखेंगे। क्षेत्रीय दल स्थानीयता से ऊपर उठेंगे। राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय कठिनाइयों को समझने का प्रयास करेंगे।
अनेक दल 18,626 पृष्ठ की रिपोर्ट को बिना पढ़े ही खारिज कर रहे हैं। कांग्रेस ने कहा कि, ‘‘‘वन नेशन वन इलेक्शन‘ लागू करने से संविधान की बुनियादी संरचना में बदलाव होंगे। यह संघवाद के खिलाफ है।‘‘ टीएमसी ने कहा, ‘‘यह असंवैधानिक है। राज्य के मुद्दों को दबाया जा सकता है।‘‘ एआईएमआईएम ने प्रस्ताव की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं। सीपीआई (एम) ने भी प्रस्ताव की आलोचना की। डीएमके का तर्क है कि वन नेशन वन इलेक्शन कराने के लिए राज्य विधानसभाओं को समय से पहले भंग करने की आवश्यकता होगी। नागा पीपुल्स फ्रंट का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी होगी। इससे संघीय ढांचा कमजोर हो जाएगा। सपा ने कहा कि, ‘‘इससे राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभावी होंगे।‘‘ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि, ‘‘एक साथ चुनाव का विचार संकीर्ण राजनैतिक दृष्टि से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए।‘‘
भाजपा, एनपीपी, एआईएडीएमके, आल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, लोक जनशक्ति पार्टी एक साथ चुनाव का समर्थन कर रहे हैं। दरअसल संविधान निर्माताओं ने सरकारी जवाबदेही को महत्व दिया था। संवैधानिक जवाबदेही का सीधा अर्थ है सदन का सरकार के प्रति विश्वास। इसीलिए कार्यकाल के पहले ही सदन में बहुमत खोते ही सरकारें गिर जाती हैं। एक साथ चुनाव में ऐसी सारी समस्याओं का समाधान है। इसे लागू करने के लिए संविधान अनुच्छेद 82-83, अनुच्छेद 172, अनुच्छेद 324 और 356 में कतिपय संशोधन करने पड़ सकते हैं। कोई भी देश लगातार चुनावी मोड में नहीं रह सकता। चुनावी आरोप, व्यक्तिगत आक्षेप समाज की चेतना को घायल करते हैं। सामाजिक अंतर्संगीत टूटता है। चुनाव तनाव के घाव भर भी नहीं पाते कि कोई न कोई चुनाव आ जाते हैं। साथ साथ चुनाव के लिए पूरा देश तैयार है।


(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष व भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं)

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संघर्ष के दिनों के साथी पुराने मित्र से मिलकर गदगद हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय

रायपुर,> मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से आज उनके रायपुर निवास में जशपुर जिले के श्री अनेर सिंह मिलने आए। इस खास मुलाकात ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय को अपने विधायकी और संघर्ष के दिनों की याद दिला दी। अनेक यात्राएं, श्री अनेर सिंह के दुलदुला निवास में गुजारे दिन, राजदूत की सवारी, 90 के दशक के पुराने किस्से-कहानियां और घर-परिवार की जब बातें हुई, तो मानो सब कुछ मुख्यमंत्री के आंखों के सामने तैरने लगा। जशपुर जिले के ग्राम सिरिमकेला के रहने वाले श्री अनेर सिंह दरअसल पिछले 15-20 सालों से कान की समस्या से ग्रसित है और उन्हें सुनने में कठिनाई होती है। धीरे-धीरे उनकी श्रवण क्षमता कम हो गई। मुख्यमंत्री श्री साय को जब यह बात पता चली, उन्होंने तत्काल श्री अनेर सिंह को रायपुर मिलने बुलाया और स्वयं उन्हें श्रवण यंत्र प्रदान किया।

मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने श्री अनेर सिंह से ढेर सारी बाते की, उनका हालचाल जाना और स्वास्थ्य की जानकारी भी ली। मुख्यमंत्री ने यंत्र लगाने के बाद पूछा आवाज आत हे, सुनात हे। श्री सिंह ने जवाब दिया अब अच्छे से आवाज आ रही है और इसे चलाना भी सीख गया हूं। उन्होंने मुख्यमंत्री को पहले जैसा पाकर अपनी खुशी भी जाहिर की। मुख्यमंत्री ने कहा अपनों से मुलाकात हमेशा सुखद होता है। उन्होंने श्री सिंह से जशपुर आकर मिलने का वादा भी किया।

इस दौरान श्री कृष्ण कुमार राय और समाज कल्याण विभाग के अपर संचालक श्री पंकज वर्मा भी उपस्थित थे।
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डॉक्यूमेंट्री फिल्म “माई मर्करी” ms मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का शुभारंभ

मुंबई। डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिक्शन और एनिमेशन फिल्मों के लिए मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) के 18वें संस्करण में आज डॉक्यूमेंट्री “माई मर्करी” का बड़े पर्दे पर अंतर्राष्ट्रीय प्रीमियर हुआ। जोएल चेसेलेट द्वारा निर्देशित यह फिल्म उनके भाई, जो दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया के तट पर मर्करी द्वीप पर एक अकेला संरक्षणवादी है, यवेस चेसेलेट के जीवन की एक गहरी व्यक्तिगत और चुनौतीपूर्ण यात्रा प्रस्तुत करती है।

दुनिया के शोरगुल और भागदौड़ से बचने की अपने भाई की इच्छा पर प्रकाश डालते हुए, चेसेलेट कहती हैं “एक द्वीप पर रहने के लिए आपको एक खास तरह के व्यक्तित्व की जरूरत होती है।” 104 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री यवेस चेसेलेट की असाधारण दुनिया जहां समुद्री पक्षी और सील ही उनके एकमात्र साथी हैं, और मर्करी द्वीप में संरक्षण के उनके प्रयासों को दिखाती है। लुप्तप्राय प्रजातियों को द्वीप पर पुनः लाने का उनका साहसी मिशन बलिदान, विजय और मनुष्य और प्रकृति के बीच बने गहरे संबंधों की एक आकर्षक कहानी के रूप में सामने आता है। यह फिल्म लुप्तप्राय समुद्री पक्षियों की संख्या में गिरावट और अन्य वन्यजीवों के अस्तित्व पर सील से खतरे पर प्रकाश डालती है।

एमआईएफएफ का 18वां संस्करण 15 से 21 जून 2024 तक मुंबई के पेडर रोड स्थित राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम-फिल्म्स डिवीजन परिसर में आयोजित किया जा रहा है।

चेसेलेट ने “माई मर्करी” को एक पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक फिल्म बताया है जो मानव की जटिल मानसिकता और प्रकृति के साथ हमारे रोमांचक संबंधों की तलाश करती है। उन्होंने कहा, “द्वीप एक सीमित और चुनौतीपूर्ण स्थान है।” उन्होंने सुझाया कि ऐसा वातावरण मानसिक रूप से थका देने वाला हो सकता है। चेसेलेट ने कहा, “फिल्म दिखाए गए सभी घटनाक्रम सच है।” उन्होंने कहा कि गायब फुटेज के स्थान पर केवल कुछ फुटेज को पुनर्निर्मित किया गया हैं।

फिल्म का केंद्रबिंदु मर्करी द्वीप है जो नायक के लिए एक “आत्मिक स्थान” के रूप में दर्शाया गया है, जो उसके प्रयासों से स्वर्ग में बदल गया है। फिल्म का शीर्षक, माई मर्करी, द्वीप के साथ नायक के इस घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है।

चेसेलेट ने पारिस्थितिकी संतुलन में मानव और गैर-मानवीय अंतर्क्रियाओं के बीच जटिल अंतर्संबंध को रेखांकित किया है। उन्होंने बताया, “मानव को संतुलन से अलग करने पर सील की संख्या में वृद्धि और समुद्री पक्षियों की संख्या में कमी आई है,” साथ ही उन्होंने बताया कि अत्यधिक मछली पकड़ने से भी समस्या बढ़ी है। फिल्म पर्यावरण के मुद्दों पर लोगों से सतही राजनीतिक चिंताओं से आगे बढ़ने का आग्रह करती हुई अधिक जागरूकता और कार्रवाई का आह्वान करती है। उन्होंने कहा, “प्राकृतिक दुनिया का वर्णन करने की भावुकता जरूरी नहीं कि रचनात्मक ही हो। सूक्ष्म और स्थूल दोनों अर्थों में जागरूकता महत्वपूर्ण है।”

फिल्म के संवेदनशील विषय को देखते हुए, चेसेलेट ने उद्योग की सनसनीखेज और हर चीज को जबरदस्ती थोपने की प्रवृत्ति को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “चूंकि यह एक मार्मिक विषय है और नायक मेरा अपना भाई है, इसलिए मुझे सावधानी से आगे बढ़ना होगा।”

माई मर्करी के फोटोग्राफी निदेशक लॉयड रॉस ने सील से निपटने के नायक के तरीकों के कारण फिल्म की विवादास्पद प्रकृति को दोहराया। इसके बावजूद, प्रकृति संरक्षण समुदाय ने फिल्म को मजबूत समर्थन दिया है। रॉस ने द्वीप पर फिल्मांकन की समान ले जाने की चुनौतियों का वर्णन करते हुए कहा कि “द्वीप में प्रवेश करना बहुत कठिन है क्योंकि इसका समुद्र तट सामान्य न होकर चट्टानों से भरा हैं।”

माई मर्करी एक विचारोत्तेजक वृत्तचित्र है, जो न केवल महत्वपूर्ण संरक्षण मुद्दों पर प्रकाश डालता है, बल्कि प्रकृति के साथ गहन मानवीय संबंधों पर भी प्रकाश डालता है।

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महाभारत : विदेशों में प्रचार प्रसार ..

भारतीय साहित्य की यह विशेषता रही है कि भारत के बाहर भी उसे भारत के जितना ही मान सम्मान मिला है। संस्कृत के अनेक ग्रन्थों ने विदेशों की यात्राएं की हैं जिनमें से एक है वेदव्यास कृत महाभारत .. महाभारत विदेशों में अनेक प्रकार से लोकप्रिय हुआ। कहीं उसके अंशो का अनुवाद किया गया तो उस पर नाट्य मंचन भी पेश किए गए जिनके कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं –
1..जवाई नरेश जयबम के शासनकाल में उन्हीं के राजकवि पेनूलू ने महाभारत का अनुवाद ‘ बरत युद्ध ( भारत युद्ध ) के नाम से जावा की प्राचीन भाषा में किया साथ ही साथ उस देश में महाभारत के गद्य को रूपांतरित करके नाट्य मंचन भी होने लगा।
2. मलय देश के साहित्य में भी महाभारत को स्थान मिला। उस देश में ‘ हिकायत पांडव लिम’ के नाम से महाभारत का अनुवाद किया गया।
3. संग सत्यवान के नाम से मलय देश में सावित्री सत्यवान की कथा को अनुवादित किया गया जोकि महाभारत के वनपर्व का एक उपाख्यान है।
4.जर्मन विद्वान ‘ होल्ट्ज्मान् ‘ ने महाभारत का अध्ययन करने के पश्चात उस पर एक आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखा जो ‘ द् महाभारत उंड सेन टेल ‘ के नाम से प्रकाशित हुआ।
5.डेनमार्क के डॉ सोयेन ने भी महाभारत का अनेक वर्षों तक अध्ययन करके उस ग्रन्थ में आने वाले नामों की एक बृहद वर्ण अनुक्रमणिका ( index ) तैयार की जिसका प्रकाशन सन् 1925 में हुआ ।
6. मुगलों के शासनकाल में भी महाभारत का जादू कम नहीं हुआ। मुगल सम्राट अकबर ने महाभारत का अनुवाद ‘ रज्मनामा ‘ के नाम से फारसी भाषा में कराया। यह अनुवाद अब्दुल कादिर बदायूनी , नकीब खां द्वारा किया गया।
7. चार्ल्स विल्किन्स ( Charles Wilkins) ने महाभारत का अध्ययन करते हुए श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद अंग्रेजी में किया जो ‘ Dialogues of Kreeshna arjun ‘ के नाम से सन् 1785 में लंदन से प्रकाशित हुआ। बाद में इसी अंग्रेजी अनुवाद के आधार पर गीता फ्रेंच और जर्मन में भी अनुवाद हुआ।
8. दक्षिण पूर्व एशिया के कंबोडिया देश के अंगकोरवाट नामक एक मंदिर में महाभारत से सम्बंधित प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं जिसके पत्थरों को तराश कर उन पर महाभारत के पात्रो को चित्रित किया गया है।
9. चम्पा देश के भूतकालीन राजा प्रकाशधर्म ने अपने समय में एक अभिलेख उत्कीर्ण कराया था जिसमें महाभारत के अनुशासन पर्व के कथानक का अनुगुंजन है।
10. इंडोनेशिया देश में महाभारत के एक पात्र कुंती को वहाँ देवी कुंती के नाम से संबोधित किया जाता है।
महाभारत-संस्कृत श्लोक व हिन्दी अनुवाद। 
महाभारत में से अनावश्यक, असम्भव, असभ्य और काल्पनिक मिलावट को हटा कर आदर्श स्वरूप में प्रकाशित किया है। लगभग 16000 श्लोकों में मूल कथा को संरक्षित रखा है।
मूल्य ₹1300
मंगवाने के लिए 7015591564 पर वट्सएप द्वारा सम्पर्क करें।
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गौहत्या ही राष्ट्र हत्या है

महान् देशभक्त , महान् गोभक्त , महर्षि दयानन्द  सरस्वती भारत के उन सन्तों एवं महर्षियों में अग्रगण्य थे  जिन्होंने वैदिक धर्म के प्रचार एवं गोरक्षा के प्रचार – प्रसार में ही अपना महान् बलिदान दे दिया था। भारत का यह महर्षि उस समय सामाजिक सुधार के कार्यक्षेत्र में अवतीर्ण  हुआ था जब १८५७ में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के स्फुलिंग फूट – फूटकर देश के चारों कोनों में व्याप्त हो रहे थे। सबसे पहले स्वराज्य के मन्त्रदाता इस महर्षि ने संगठित रूप से गोहत्या बंदी की आवाज उठाई थी ।

इसके प्रमाण के रूप में डॉ फर्रुखसियर ने जो उसी  ईस्वी शताब्दी आरम्भिक दशक में भारत भ्रमण पर आया था , उसने भारत से वापिस जाकर एक पुस्तक लिखी थी| जिसका नाम है- “ दी रिलीजस मूवमेंट इन इण्डिया ” इस पुस्तक में उसने लिखा- “ भारत में एक आग सुलगने लगी है जो पता नहीं किस दिन ज्वालाओं का रूप धारण  कर ले और उसमें अंग्रेजी राज्य जलकर भस्म हो जाये। ” इस आग को सुलगाने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम ही उसने लिखा है। उसने महर्ज़ि के सम्बन्ध में लिखा- ” इस व्यक्त ने १८५७ के संग्राम के बाद एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ” गोकरुणानिधि ” है। उसमें दयानन्द ने एक स्थल पर लिखा है- ” जो सुखकारक पशुओं के गले छुरों से काटकर अपना पेट भरकर संसार की हानि करते हैं क्या संसार में उनसे अधिक कोई विश्वासघाती औरअ अनुपकारी दुःख देने वाले पापी जन होंगे। ” उस महर्षि ने वहां पर फिर लिखा- ” गो आदि। पशुओं के नाश होने से राजा और प्रजा का नाश हो जाता है।
” इस प्रकार १८५७ के स्वातन्त्र्य संग्राम में जहां विदेशी शासन को उतार फैंकने की प्रबल भावना महर्षि ने पैदा की थी , उसी गोरक्षा की भावना के कारण ही १८५७ में गाय की चर्बी लगे कारतूसों को सिपाहियों ने अपने हाथ से छूना भी पसंद न किया था। मंगलपाण्डे ने इसी बगावत के कारण मेजर ह्यूसन को गोली से उडा दिया था। मंगल पाण्डे को भी अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। रानी विक्टोरिया ने जो इस बगावत के बाद घोषणा की थी कि उसमें गोवध रोकने की भी की गई थी। इस गोवध बंदी की घोषणा की महर्षि ने अपनी पुस्तक में की है। राजस्थान के पोलिटिक्ल एजेंट कर्नल ब्रुक्स जब रिटायर्ड होकर इंग्लैण्ड जाने लगे तो उनकी विदाई सभा में भी महर्षि ने कर्नल ब्रुक्स से कहा था- ” हमारी ओर से रानी विक्टोरिया को जाकर यह कह देना कि अंग्रेजी शासन के मस्तक पर लगे गोवध के कलंक से भारतीय बहुत असंतुष्ट हैं।
  ” गोकरुणानिधि पुस्तक लिखते समय महर्षि इतने द्रवित एवं अश्रुपूर्ण आंखों से परमात्मा की ओर अपनी लेखनी उठाकर बोल उठे- “ हे परमेश्वर ! तू क्यों इन पशुओं पर जो कि बिना अपराध मारे जाते हैं दया नहीं करता ? क्या इन पर तेरी प्रीति नहीं है ? क्या इनके लिए तेरी न्यायसभा बंद हो गई है ? क्यों उनकी पीड़ा छुड़ाने पर तू ध्यान नहीं देता ? और उनकी पुकार क्यों नहीं सुनता ?
 इससे प्रतीत होता है कि महर्षि को गोहत्या होने से पर्याप्त आन्तरिक कष्ट था। गोकरुणानिधि पृथक् पुस्तक लिखने के बाद सत्यार्थप्रकाश के दसवें समुल्लास में उन्होंने इस समस्या को फिर उठाया है। गाय के होने वाले लाभों से सबसे सुव्यवस्थित आंकड़े जितने महर्षि ने देकर उस समय भारतीयों का ध्यान आकृष्ट किया था। इसके साथ ही उन्होंने भारत में सबसे पहले गोशाला रिवाड़ी में आपके ही हाथों से स्थापित कर रचनात्मक कार्यक्रम दिया था। जहां महर्षि ने गोवध बंदी की ध्वनि ऊंचे स्वर से गुजारित की वहां साथ ही साथ “ गोकृष्यादि रक्षिणी सभा की भी स्थापना की थी। कृषि करने वाले किसानों के विषय में भी महर्षि ने ऐलान किया- ” राजाओं के राजा किसान आदि परिश्रम करने वाले होते हैं। ” की उन्नति का मार्ग किसानों के खेतों से ही गुजरता है।
 वैसे तो महर्षि प्राणिमात्र की हत्या के विरोधी थे , परन्तु गाय के आर्थिक , नैतिक , सांस्कृतिक रूप के कारण वह गाय को प्रमुखता देते थे। पीछे वेदों के अर्थों का अनर्थ जिन लोगों ने किया और यज्ञों ने गोमांस डालने का विधान वेदों से किया और गोमेध ‘ जैसे यज्ञों में गौओं की हत्या का विधान किया , महर्षि ने वेदों का भाष्य करते समय उन सबका खण्डन किया। वेदों का सच्चा स्वरूप प्रकट किया।
भारतीय स्वाधीनता का शंखनाद करते समय महर्षि ने राजस्थान के क्षत्रिय राजाओं को गोहत्या के प्रश्न पर धिक्कारते हुए कहा था- ” आप कैसे क्षत्रिय हैं ? जब सात समुद्र पार से आकर विदेशी अंग्रेजों ने भारत भूमि पर गोहत्या आरम्भ कर दी फिर आप का यह क्षत्रियापन किस दिन काम आएगा ? तुम क्षत्रिी के रहते हुए भारत माता की छाती पर गाय का खून बहे यह कितने दुःख की बात है। ” गोरक्षा के लिये इतना करते – करते उन्होंने आपने जीवन के चलते – चलते उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया वह भी गोहत्या के ही विरोध में था।
ब्रिटिश पार्लियामेंट के नाम पर गाय जैसी सर्वोपाकारी पशु के लिए एक बहुत ही गंभीर और गोरक्षा की युक्तियों से भरी हुई चिट्ठी लिखकर राजा महाराजाओं से लेकर भारत की निर्धन जनता से स्वयं घूम – घूमकर स्थान – स्थान पर जाकर करोड़ों हस्ताक्षर महर्षि ने करवाए। पार्लियामेंट में उनके द्वारा भेजी गई करोड़ों व्यक्तियों की उस आन्तरिक पुकार की क्या प्रतिक्रिया रही इसके परिणाम महर्षि जान भी न पाए थे कि उन्हें विष दे दिया गया। गोरक्षा की वेदि पर महर्षि का बलिदान हो गया। महर्षि के संसार से विदा होने के बाद फिर होना ही क्या था ? हुआ भी उल्टा ही। सन् १८८३ में अलीगढ़ के मुहम्मदन कॉलेज के प्रिंसिपल मिस्टर बेक थे। उसने मुसलमानों को उभाकर गोहत्या चालू रहे , इसके हस्ताक्षर कराने आरंभ कर दिए। उसने यह काम दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठ कर कराए। उसने गोहत्या बंदी के विरोध में मुस्लिमों को तैयार किया। यह अंग्रेजों की कूटनीति का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
 महर्षि के बाद उनके द्वारा स्थापित शक्तिशाली संगठन आर्यसमाज ने भी गोहत्या बंदी के कार्यक्रम को बराबर चालू रखा। आर्यसमाज का आन्दोलन जिस उग्रता के साथ आगे बढ़ता जा रहा था , सारे देश की सहानुभूति आर्यसमाज को प्राप्त होती जा रही थी। ब्रिटिश सरकार चिन्तित हो उठी , उसने स्थान – स्थान पर हिन्दू – मुस्लिम दंगे करवाकर आर्यसमाज को बदनाम करने की कोशिश की। १८९३ में उत्तर प्रदेश के बलिया में गाय के प्रश्न पर भयंकर दंगा करवाया गया।
अनेकों स्थानों पर गौ के कारण दंगे करवाए जाते रहे। उधर आर्यसमाज के धुआंधार प्रचार से सांस्कृतिक मनोवृत्ति के कारण तिलक , गोखले , मालवीय आदि कांग्रेसी नेता भी गोवध पर रोक चाहते थे।
 तिलक जी ने तो १९१९ में अपने एक भाषण में कहा था कि स्वराज्य मिलते ही ५ मिनट में ही गोहत्या बंद कर देंगे। मालवीय जी तो गोसम्मेलनों में रो ही पड़ते थे। गांधी जी पहले तो गोहत्या के विरोध में थे , गाय के सम्बन्ध में भी उनका दृष्टिकोण गोहत्या बंदी का ही था। किन्तु जैसे वे हले हिन्दी के पक्ष में थे , बाद में हिन्दुस्तानी के पक्ष में हो गये। इसी प्रकार आद में राजनीति के कारण वे गोहत्या के पक्ष में हो गए उन्होंने कलकत्ता में २२ अगस्त १९४७ को कहा था कि अगर गोरक्षा के प्रश्न को आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो उस हालत में दूधन न देने वाले , कम दूध देने वाले गाएं , बूढ़े और बेकार जानवर बिना किसी बात के सोचे मार डालने चाहिएं। इस बेरहम आर्थिक व्यवस्था की भारत में कोई जगह नहीं है।
 गांधी जी का यह भी कहना था कि भारत में मुसलमान भी रहते हैं , उनकी इच्छा के विरुद्ध गोहत्या कैसे बंद की जा सकती है। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ही तो गांधी जी पाकिस्तान निर्माण का समर्थन करते रहे। पाकिस्तान निर्माण करवाकर उसे ५५ करोड़ रुपये भी दे दिए थे।
अब रही बात महात्मा गांधी जी के परम् सहयोगी प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू की बात – सरकार ने गोहत्या बंदी के विषय में जानकारी के लिए सर दातार की अध्यक्षता में एक कमेटी नियुक्त की थी कि लोकसभा में २ अप्रैल , १९५५ को दातार कमेटी की सिफारिशों पर विचार हो रहा था। नेहरू जी ने उसमें अपने विचार बहुत ही क्रोध एवं आवेश में आकर रखते हुए कहा था  want to make it perfectly clear at the outset that the Govt . are entirely oppesed to this bill . I do not agree and I am prepared to resign from the Prime ministership but I will not give into this kind of अर्थात् मैं आरम्भ से ही यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकार इस गोरक्षा विधेयक के सर्वथा विरुद्ध है। मैं सदन को कहूंगा कि इस विधेयक को बिल्कुल रद्द कर दें। यह राज्य सरकारों का विषय है। मैं उनसे भी कहूंगा कि वे इसे बिल्कुल पास न करें। मैं इससे सहमत नहीं हूं। मैं इसके विरुद्ध प्रधानमन्त्री पद से भी त्यागपत्र देने के लिए उद्यत हूँ। मैं गोरक्षा विधेयक के सामने झुडूंगा नहीं।
 ” कांग्रेसी राज में फिर गोहत्या कैसे बंद हो सकती थी। प्रधानमंत्री नेहरू ही इसके मुख्य कारण थे। वेद हमारे मनुष्य जीवन के लिए परम धर्म माने गए हैं।
गायों के लिए वेद का आदेश है- “ माताए रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाम मतस्य नाभिः। ” ( ऋ०८-१०१-१५ )
प्रस्तुत मन्त्र में न केवल उसे माता कहा गया है अपितु उसे पुत्री और बहन भी कहा गया है। अर्थात् जो हमारे भावनात्मक और पवित्र पारिवारिक सम्बन्ध माता , पुत्री और बहन के साथ है वे ही इस गौ के साथ हैं। वैदिक संस्कृति में गोहत्यारों के लिए दण्ड व्यवस्था है। अथर्ववेद १-१६-४ में कहा गया है-
“ यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम्।
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नोऽसीऽचीरहा।। ”
अर्थात् जो हमारे गाय , घोड़े और मनुष्यों का विनाश करता है , उसे हमें सीसे की गोली से मार देना चाहिए। गोहत्यारों के लिए जन तक भारत में यह गोली से उड़ा देने की व्यवस्था रही , तब तक गोडल्या नहीं होती थी। बस , अन्न तो सरकार के एक नियम बना देना चाहिए कि यदि कोई हत्या करता है तो उसे मृत्युदण्ड होना चाहिए। ऋग्वेद १०-८७-१६ में लिखा है योऽघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च।  इसमें गोहत्यारों के सिरों को कुल्हाड़े से काटने का आदेश दिया गया है।
आज देश में लगभग ३६ हजार कत्लखाने हैं। जहां बड़ी सत्रा में सार भर में लाखों पशुओं का कत्ल होता है। देखिये – एक बूचड़खाना हैदराबाद के निकट अलकबीर नाम का है जिसका निर्माण ७५ करोड़ रुपयों की लागत से हुआ है। यह नाम जान बूझकर उसके हिन्दू मालिक एवं एन.आर.आई ने चुना है , क्योंकि उसके इस प्लांट का सारा माल मिडिल ईस्ट मलेशिया के मुस्लिम देशों और ईसाई फिलीपीन को भेजा जाता है। इस कत्लखाने से ७५ करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यहां पर मारी गई गाय – भैंस के हरेक हिस्से का इस्तेमाल होता है। इसकी लैदर – चमड़े की इण्डस्ट्री द्वारा चमड़े के अन्य उत्पादन तथा हड्डियों से खाद तैयार किए जाते हैं। एक बहुत बड़ा कत्लगाह बम्बई के निकट देवनार में भी है। इसमें कत्ल किए गए पशुओं की संख्या २६४१७६८ है। कत्ल किए गए पशुधन का मूल्य १७९४८७९ ००० रुपये है।
ऐसे २३६ हजार से अधिक कत्लखाने व ३००-३०० एकड़ भूमि में फैले इस अलकबीर जैसे २४ से भी अधिक यान्त्रिक कत्लखानों द्वारा होने वाले नुकसान का हिसाब जोड़ा जाये तो देश में एक भी पशु कहां बचेगा ? देखिये चन्द्रगुप्त के समय भारत की जसख्या १९ करोड़ थी , गायों की संख्या ३६ करोड़ थी। अकबर के समय भारत की जनसंख्या २० करोड थी और गौओं की संख्या २८ करोड़ थी। कहां तक गिनें जाएं। गाय तो अब करोड़ों में नहीं , लाखों की संख्या में ही बच रही है। सब जगह छोड़ देने पर मारी – मारी फिरती हैं। कोई भी नहीं पूछता और अधिक क्या लिखें। महर्षि दयानन्द की गोपालन की आज्ञानुसार आज भी सभी गुरुकुलों में गोओं का पालन बड़ी श्रद्धा हो रहा है।
गुरुकुल कुरुक्षेत्र में अनेकों गाय गोशाला में हैं जो मन – मन दूध देने ली हैं। उनकी सेवा में गुरुकुल के आचार्य देवव्रत जी अधिकारी बड़े तन – मन धन से करते हैं। आर्ष गुरुकुल कालवा के आचार्य श्री बलदेव जी ने भी एक बड़ी भारी गोशाला गांव धडौली में चालू की है जिसमें ३ हजार के लगभग गाएं बहुत ही अच्छी हैं। गुरुकुल झज्जर में भी बहुत ही हैं। इस प्रकार सभी गुरुकुलों के साथ गोशालाएं भी होती हैं। हरयाणा में तो सभी गुरुकुलों में गोशालाएं हैं। हरयाणा में जहां प्रत्येक घर में गाय होती थी , आज उनके यहां भी गोपालन का रिवाज छूटता जा रहा है। बैलों वाले ‘ हल ‘ समाप्त होते जा रहे हैं। इसलिए साल भर में दुधारू गाएं एक लाख , नब्बे हजार बछड़ों का मांस डिब्बों में बंद करके अरब आदि मुस्लिम देशों में पैट्रोल मंगवाने के लिए भेजा जा रहा है। गाय का दूध – घी – छाछ तो अब दुर्बलभ होते जा रहे हैं।
 हरयाणा में तो एक छोटा पाकिस्तान बना हुआ है। जहां रात्रि के समय हजारों गायों का कत्ल होता है। इसे ‘ मेवात ‘ कहा जाता है। ट्रकों में भरकर मांस व हड्डियां कानपुर आदि में भेजी जाती हैं। यह सब काम रात्रि के समय खेतों में किया जाता है।
प्राचीनकाल में राजे – महाराजे भी गोपालन करते थे। जनता भी गाय पालती थी। आज सब कुछ समाप्त हो गया है। हिन्दी के कवि कुसुमाकर ने गोपालन के लाभों के बारे में कितना अच्छा लिखा —
चाहते हो भव – व्याधियों से निज मानस का कल – कंज हरा हो ,
दूध – दही की बहे सरिता फिर गान गोपाल का मोद भरा हो।
नन्दिनी नन्दन में विचरे शुचि शक्ति का स्रोत सदा उभरा हो ,
घाम ललाम वही कुसुमाकर गाय को चाट रहा बछड़ा हो।।
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संस्कृति,साहित्य एवं मीडिया फोरम का गठन

कोटा। पत्रकारिता,कला, परंपरा आदि के संवर्धन के लिए लेखन, व्याख्यान,साक्षात्कार, संगोष्ठी, काव्य गोष्ठी, सम्मान आदि कार्यक्रमों के आयोजन के उद्देश्य से “संस्कृति,  साहित्य एवं मीडिया फोरम ” का गठन किया गया है। यह विशुद्ध रूप से सामाजिक सरोकारों पर आधारित होगा।
  संयोजक डॉ.प्रभात कुमार सिंघल ने बताया कि फोरम में मनोचिकित्सक डॉ.एम.एल. अग्रवाल, भारतीय सूचना सेवा के पूर्व  प्रचार निदेशक किशन रत्नानी, जन संपर्क विभाग के पूर्व सहायक निदेशक घनश्याम वर्मा, इतिहासविद फिरोज अहमद, संभागीय अधीक्षक, राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय डॉ.दीपक कुमार श्रीवास्तव, एडवोकेट अख्तर खान ‘अकेला,साहित्यकार जितेंद्र ‘ निर्मोही ‘ ,रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘, विजय जोशी, डॉ. कृष्णा कुमारी, डॉ.संगीता देव, डॉ. शशि जैन, स्नेह लता शर्मा,  पत्रकार सुनील माथुर, के.एल.जैन, हेमंत शर्मा सदस्य होंगे।
उन्होंने बताया कि सेवा काल के दौरान किसी भी विशिष्ट व्यक्ति से चर्चा आदि कार्यक्रमों के किए अनौपचारिक ” मीडिया फोरम” संचालित कर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए थे। अनुभव के आधार पर इस फोरम का गठन किया गया है।
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हैहय राजा ने राजा बाहु को भगाया, ऋषि और्व ने राजा सगर को जन्माया

इच्छाकू राजाओं मे वंशानुक्रम :-

श्री विष्णु पुराण चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो के अनुसार अयोध्या के राजा त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चंद्र थे। उनके पुत्र थे रोहिताश्व , उनके पुत्र हरित ; उनके पुत्र कुञ्कु थे, जिसके विजय और सुदेव नाम के दो पुत्र थे ।  विजय का पुत्र रुरुक था, और  रुरुक का पुत्र वृक था , वृक का पुत्र सुबाहु बाहु या बाहुक था।

श्रीमद् भागवत पुराण से इस क्रम से वंशावली मिलती है —  “हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा  → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुक आदि आदि।”

हैहय वंश के राजाओ पर एक दृष्टि :-

हैहय वंश में बुध, पुरूरवा, नहुष, ययाति, यदु, हैहय, कृतवीर्य, सहस्रार्जुन, कृष्ण और पाण्डव जैसे धर्मवीर, शक्तिशाली, प्रतापी और दानी राजा हुए हैं| हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, सहस्राजित का पौत्र तथा यदु का प्रपौत्र था। पुराणों में हैहय वंश का इतिहास चंद्रदेव की तेईसवी पीढ़ी में उत्पन्न वीतिहोत्र के समय तक पाया जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा की बारहवी पीढ़ी में हैहय का जन्म हुआ। हरिवंश पुराण के अनुसार ग्यारहवी पीढ़ी में हैहय तीन भाई थे जिनमें हैहय सबसे छोटे भाई थे।
पुराणों में इस वंश की पाँच शाखाएँ कही गई हैं —ताल- जंघ, वीतिहोत्र, आवंत्य, तुंडिकेर और जात ।

हैहयों ने शकों के साथ साथ भारत के अनेक देशों के जीता था ।विक्रम संवत् ५५० और ७९० के बीच हैहयों का राज्य चेदि देश और गुजरात में रहा। इस वंश का कार्तवीर्य अर्जुन प्रसिद्ध राजा था , जिसने रावण को हराया था। इसकी राजधानी वर्तमान मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती थी। त्रिपुरी के कलचुरी वंश को हैहय वंश भी कहा जाता है। बाहु नामक सूर्यवंश के राजा और सगर के पिता को हैहयों और तालजंधों ने परास्त कर देश से निष्कासित कर दिया था।
(महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 57.)

अयोध्या के राजा थे बाहु/असित :-

राजा बाहु नाम से मिलती जुलती थोड़ा इतर असित की वंशावली भी मिलती है। असित सूर्यवंश के राजा थे, भरत के पुत्र और राम के पूर्वज थे। सगर के पिता का नाम असित था। वे अत्यंत पराक्रमी थे। हैहय, तालजंघ, शूर और शशबिन्दु नामक राजा उनके शत्रु थे। बाहु इक्ष्वाकु वंश के एक राजा  वृक (भरत) से पैदा हुए थे। सुबाहु ( जैन नाम जीतशत्रु) नामक यही इक्ष्वाकु राजा और उसकी रानी यादवी ( जैन नाम विजया देवी) ने अयोध्या से भागकर और्व ऋषि के आश्रम में शरण ली , जब अयोध्या पर हैहय राजा ने कब्ज़ा कर लिया था।

पिता वृक (भरत) के समय से ही युवराज बाहु (असित) का दबदबा:-

वृक एक चक्रवर्ती सम्राट थे । उसने अपने पुरोहितों की मदद से अश्वमेध यज्ञ कराया। अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी युवराज बाहु निभा रहे थे। उस समय अयोध्या के पड़ोस में मगध में  शक्तिसेन का राज्य था। वह अयोध्या नरेश वृक की अधीनता स्वीकार नही करना चाहता था। उनकी ही प्रेरणा या आदेश से शक्तिसेन की बीरांगना पुत्री युवरानी सुशीला ने यज्ञ का अश्व पकड़ लिया था। युवराज बाहु ने पहले अश्वसेन से अश्व लौटाने के लिए सन्देश वाहक के माध्यम से सन्देश भिजवाया । इसे शक्तिसेन अस्वीकार कर दिया।  युवराज बाहु और शक्तिसेन के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमे अयोध्या का युवराज विजई हुआ। शक्तिसेन शरणागत हुआ।उसे अभय दान मिला।उसने अपनी पुत्री का विवाह युवराज बाहु से करके राजा वृक का अश्व लौटा दिया और यज्ञ पूर्ण हुआ। बाहु की प्रथम पत्नी नंदनी निसंतान थी। उसने भी युवराज बाहु को युवरानी सुशीला से विवाह करने की अनुमति प्रदान किया था।
(ये कथानक रामानंद सागर के “जय गंगा मैया” धारावाहिक के दृश्यों पर आधारित है।)

धर्म परायण राजा बाहु :-

प्रारम्भ में राजा बाहु धर्म परायण था। वह प्रजा का हित और परोपकार के धर्म को निभाता भी था, परन्तु समय के साथ साथ उसमे भोग विलास की प्रवृत्ति बलवती होती गई। वह अधर्म में लिप्त रहने लगा , इसलिए उसे हैहय , तालजंघ , शक , यवन , कंबोज , पारद और पहलवों ने गद्दी से उतार दिया था । उसी समय में भृगुवंशी ब्राह्मण ने भी क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था ।

हैहय राजा ने अयोध्या के इच्छाकु राजा बाहु को भगाया :-

राजा बाहु के शत्रुओं ने उनका राज्य और उनकी सारी संपत्ति छीन ली। परेशान होकर वह अपनी पत्नियों के साथ घर छोड़कर हिमालय के जंगल में चला गया।
नंदनी और सुशीला दोनों पत्नियां इस समय गर्भवती थीं। राजकीय और धार्मिक कार्यों में नंदनी को प्रथम पत्नी होने के कारण प्रमुखता दी जाती थी। इसे छोटी रानी सहन नही कर पाती थी। छोटी रानी कालिंदी(सुशीला)  एक दासी के बहकावे में आकर  पटरानी के गर्भ रोकने की इच्छा जब यादवी अपनी गर्भावस्था के सातवें महीने में थीं, तब
उन्हें जहर दे दिया, जिसके कारण वह सात साल तक गर्भवती रहीं। जिसके प्रभाव से उसका गर्भ सात वर्ष तक गर्भाशय ही में रहा । इस दीर्घ अवधि में राजा बाहु और नंदनी बहुत ही परेशान रहने लगे थे। अन्त में, बाहु वृद्धवस्था के कारण और्व मुनि के आश्रम के समीप अपना शरीर त्याग स्वर्ग सिधार गए।

आत्मदाह ( सती ) की तैयारी को ऋषि और्व ने रोका :-

बाहु की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने परंपरा के अनुसार उनकी चिता पर आत्मदाह करने का फैसला किया , लेकिन भार्गव वंश के ऋषि और्व को जब यह पता चला तो उन्होंने उन्हें यह बताकर सती होने से रोक दिया कि वह रानी गर्भवती हैं। कुछ महीनों के बाद, उनको एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम और्व ने सगर रखा , जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘जहर वाला’,।
(www.wisdomlib.org (2019-01-28). “ऑर्वा की कहानी” . www.wisdomlib.org . 2022-11-02 को लिया गया .)

उस समय पटरानी ने चिता बनाकर उस पर पति का शव स्थापित कर उसके साथ सती होने का निश्चय किया था। ऋषि और्व, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी चीजों को जानते थे। वे अपने आश्रम से बाहर आए और उसे आत्महत्या करने से मना करते हुए कहा, “अयि साध्वि ! रुको! रुको! तू ऐसे दुस्साहस का उद्योग न कर । इस व्यर्थ दुराग्रह को छोड़ !  यह अधर्म है।तेरे उदर में सम्पूर्ण भूमण्डल का स्वामी, अत्यन्त बली पराक्रमशील, अनेक यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला और एक बहादुर राजकुमार, अपने शत्रुओं का नाश करने वाला,कई राज्यों और विश्व का चक्रवती राजा हैं। वह अनेक यज्ञों की हवन करने वाला होगा, ऐसा दुस्साहस पूर्ण कार्य करने की मत सोचो!”

च्यवन आश्रम पर अदभुत बालक का जन्म :-   

ऐसा कहे जाने पर वह अनुमरण ( सति होने ) के आग्रह से विरत हो गयी ।  ऋषि के आदेशों का पालन करते हुए, उसने अपना इरादा त्याग दिया। अपना आशीर्वाद देते हुए भगवान् और्व रानी को अपने आश्रम पर ले आये । कुछ समय बाद वहाँ एक बहुत तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। वह अपने शरीर में विष के साथ पैदा हुआ । ऋषि द्वारा भविष्यवाणी के अनुसार, सागर का जन्म उसके शरीर में जहर के साथ हुआ। उसके साथ ही उसकी माँ को दिया गया विष भी बाहर निकाल दिया गया; और और्व ने जन्म के समय आवश्यक समारोह करने के बाद, उसे इस कारण से सगर (सा, ‘साथ’ और गर , ‘विष’ से) नामकरण दिया गया।

संस्कार और शिक्षा:-

भगवान् और्व ने उसके जातकर्म आदि संस्कार कर उसका नाम ‘ सगर’ रखा तथा उसका उपनयन संस्कार कराया।
उस पवित्र ऋषि ने अपने वर्ग की रीति के साथ उसका अभिषेक मनाया। और्व ने ही उसे वेद, शस्त्रों का उपयोग सिखाया एवं उसे  भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों विशेष रूप से अग्नि के जिन्हें भार्गव के नाम के पर रखा गया ।

ऋषि और्व ने उसे तालजंघा , यवन , शक , हैहय और बर्बरों के जीवन लेने से रोका । लेकिन उसने उन्हें अपना बाह्य रूप बदलने पर मजबूर कर दिया।  उन्हें विकृत कर दिया – उनमें से कुछ को सिर मुंडाने को कहा, कुछ को मूंछ और दाढ़ी बढ़ाने को कहा, कुछ को अपने बाल खुले रखने को कहा, कुछ को अपना सिर आधा मुंडाने को कहा। बाद में तालजंघों का वध परशुराम जी ने किया था। सगर ने और्व की सलाह के अनुसार अश्वमेध यज्ञ किया।

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

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मुस्लिम आतंकी संगठनों पर कठोर कार्यवाही और कांग्रेस की प्रतिक्रिया

देश में जब जब मुस्लिम आतंकी संगठनों पर कठोर कार्यवाही करने की बात होती है, तब-तब मुस्लिम वोटों पर आश्रित कांग्रेस के नेता अपने कुंठित चेहरे लेकर कुतर्कों के साथ उनके बचाव में खड़े हो जाते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण 2017 में देखने को मिला जब एनआईए ने इस संगठन पर हिंसक आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के साथ-साथ, मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करने का आरोप लगाया था।
एनआईए की रिपोर्ट में पीएफआई पर हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने, युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने, और अन्य कट्टरपंथी संगठनों को वित्तीय पोषण करने का भी आरोप था।  राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
 इन सभी आरोपों के आधार पर गृह मंत्रालय ने 2022 में पीएफआई को प्रतिबंधित कर दिया था। इस प्रतिबंध पर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आरएसएस को भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए। जयराम रमेश का यह बयान साफ तौर पर कांग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति का प्रतीक था।
जयराम रमेश का यह बयान इस बात को भी इंगित करता है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी, जो वायनाड (केरल) से दो बार सांसद बने हैं, वहां जमीनी स्तर पर कांग्रेस का जनाधार बेहद कमजोर है। ऐसा लगता है राहुल गांधी की जीत पीएफआई के सहयोग से ही संभव हुई है, इसलिए कांग्रेस के नेता जैसे जयराम रमेश, पीएफआई जैसे कट्टरपंथी संगठनों का बचाव करने में संकोच नहीं करते।
विगत मंगलवार 11 जून 2024 को मुंबई उच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित पीएफआई के तीन सदस्यों को जमानत देने से इमकर कर दिया। उच्च न्यायालय द्वारा इंकार करने का आधार यह था कि पीएफआई ने “भारत को 2047 तक इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी” और आपराधिक बल का उपयोग करके सरकार को आतंकित करने का प्रयास किया था। मुंबई उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने  यह स्पष्ट कर दिया है कि अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रेस के ये नेता ऐसी हरकतों से बाज नहीं आएंगे ओर साथ ही कांग्रेस के जयराम रमेश जैसे दरबारियों को समुचित जवाब दिया है।
इसके अलावा, पीएफआई के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के कई प्रमाण भी सामने आए हैं। उदाहरणस्वरूप,  1.केरल पुलिस ने  2013 में पीएफआई के कुछ सदस्यों को हथियारों के साथ गिरफ्तार किया था, जिनका उद्देश्य आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना था।
2. सन   2020 में, दिल्ली दंगों के दौरान भी पीएफआई के सदस्यों की सक्रिय भूमिका सामने आई थी। इससे स्पष्ट होता है कि पीएफआई एक गंभीर आतंकी खतरा है, जिसे समय रहते रोका जाना आवश्यक है।
यह समय की मांग है कि देश के सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुट हों और कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्यवाही का समर्थन करें। किन्तु कांग्रेस के नेताओं द्वारा पीएफआई का बचाव करना न केवल उनकी वोट बैंक की राजनीति को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेते।
मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद और कट्टरपंथ को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब यह कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के लिए समर्पित हों और ऐसे संगठनों का समर्थन करने से बचें जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं।
मनमोहन पुरोहित
शिक्षाविद एवम लेखक
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हजारों वृक्ष लगाकर बिरजू जी ने कायम की मिसाल

जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय कैंपस में पांच हजार की तनख्वाह लेने वाले कर्मचारी बिरजू जी द्वारा लगाए गए 2714 पौधे बने वृक्ष और बेमिसाल हरित क्रांति का उदाहरण।
राजस्थान विश्वविद्यालय में एक छोटी सी ₹5 हजार की मासिक तनख्वाह पाने वाले, दीनहीन अवस्था में रहने वाले एक संविदा कर्मी बिरजू जी ने अपनी स्वेच्छा एवं कड़ी मेहनत से छोटे-छोटे लगभग 2714 पौधों को अपने बच्चों की तरह साज सवार कर वृक्ष बनाने का जो अद्भुत कार्य किया है, वह पौधरोपण के नाम पर बरसात के मौसम में एक दो पौधों को हाथ में लेकर अखबारों में सुर्खियां बटोरने वाले एनजीओ व ऐसे ही अन्य लोगों के लिए एक अद्भुत मिसाल है। इस बिरजू को ना अपनी फोटो छपवाने का शौक है न हीं किसी की प्रशंसा या पुरस्कार की अपेक्षा है।
विश्वविद्यालय द्वारा हरियाली और पौधे लगाने का प्रशिक्षण यहां के कुछ कर्मचारियों को दिलवाया गया था, बिरजू भी यह प्रशिक्षण लेने वाला एक संविदा कर्मी था।
इस हरित क्रांति के छिपे हुए समर्पित कर्मठ बिरजू ने सर्वप्रथम विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स बोर्ड के नजदीक सुनसान पड़े 50 बीघा से अधिक क्षेत्र के दो मैदानों को अपने कुछ साथियों के साथ दिन रात कड़ी मेहनत कर साफ किया, वह इन मैदानों व अन्य परिसर के क्षेत्रों में इन पौधों को लगाकर, इन्हें नियमित रूप से पानी, खाद व कीटनाशक दवाइयों का समय पर छिड़काव कर अपने बच्चों की तरह पालना शुरू किया, आज इन 5 हजार पौधों में से 2714 पौधे, वृक्षों के रूप में विकसित हो गए हैं। इनमें तरह तरह के फल भी आने लगे हैं, कितने मेट्रिक टन ऑक्सीजन बिरजू के इस कार्य से विश्वविद्यालय को मिल रही है इसका अंदाज लगाना मुश्किल है।
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कश्मीरी रामायण रामावतारचरित

भक्तिरस से परिपूर्ण कश्मीरी रामायण “रामावतारचरित” का परिमार्जित सचित्र-पेपर-बैक संस्करण अपने नए रूप-कलेवर और व्याख्या के साथ अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।कश्मीरी की इस लोकप्रिय रामायण का हिन्दी में अनुवाद किया है प्रसिद्ध अनुवादक डॉ़ शिबन कृष्ण रैणा ने। कश्मीरी पंडितों के कश्मीर(कश्यप-भूमि) से विस्थापन/निर्वासन ने इस समुदाय की बहुमूल्य साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत/धरोहर को जो क्षति पहुंचायी है, वह सर्वविदित है।
कश्मीरी रामायण ‘रामवतारचरित’ का यह पेपरबैक-संस्करण इस संपदा को अक्षुण्ण रखने का एक विनम्र प्रयास है।कश्मीरियत के रंग में सराबोर यह रामायण हर दृष्टि से पाठनीय है। :रामावतारचरित’ का एक अनुवादित अंश देखिए: “गोरव गंअडमच छि वथ,बोज़ कन दार, छु क्या रोजुऩ, छु बोजुऩ रामावतार। ति बोज़नअ सत्य वोंदस आनंद आसी, यि कथ रठ याद, ईशर व्याद कासी। ति जाऩख पानु दयगत क्या चेह़ हावी, कत्युक ओसुख चे,कोत-कोत वातनावी।” (गुरुओं ने एक सत्पथ तैयार किया है,इसे तू कान लगाकर सुन। यहां कुछ भी नहीं रहेगा, बस, रहेगी रामवतार की कथा। इसे सुनकर हृदय आनंदित हो जाएगा,यह बात तू याद रख।
इसे सुनकर ईश्वर तेरी सारी व्याधियां दूर करेंगे और तू स्वयं जान जाएगा कि प्रभु-कृपा/दैवगति तुझे कहां से कहाँ पहुंचाये गी!) इस रामायण की दो पृष्ठ की सुन्दर प्रस्तावना परम विद्वान डॉ. कर्णसिंह जी ने लिखी है और शुभकामना-सन्देश भारतीय सांस्कृतिक संबंध के पूर्व महानिदेशक और वर्तमान में आयर लैंड में भारत के राजदूत माननीय श्री अखिलेश मिश्रजी ने भेजा है। रामभक्तों और रामकाव्य-अध्येताओं के लिये यह कालजयी रचना अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।

यह सुन्दर रामायण समेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।

DR.S.K.RAINA
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