परिवहन नेटवर्क का विस्तार वृद्धि के लिए पहली जरूरत है और शहरीकरण उसका लगभग निश्चित परिणाम है। इसलिए, अब जबकि भारत वृद्धि के पथ पर अग्रसर है, हमारे यहां शहरीकरण का बढ़ता स्तर और शहरों में जनसंख्या का भारी घनत्व है। जैसा कि अपेक्षित था, वाहनों की संख्या में समग्र व़द्धि के साथ हम देश में सड़क नेटवर्क का तेजी से विस्तार होते भी देख रहे हैं। भारत का सड़क नेटवर्क आज दुनिया के विशालतम सड़क नेटवर्क्स में से एक है। वर्ष 2003-13 की अवधि के दौरान मोटर वाहनों की तदाद यहां 10.5 प्रतिशत की संयोजित वार्षिक वृद्धि दर की रफ्तार से बढ़ी है।
यह व़द्धि जहां पूरी तरह व्यवस्थित और उभरती अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक भी है, वहीं चिंता की बात यह है कि सड़क पर बढ़ते दबाव से निपटने के लिए हमने खुद को तैयार नहीं किया है। हमने समकालीन यातायात नियम बनाने और इन नियमों को अपनाने के बारे में जागरूकता जगाने सहित आधुनिक यातायात प्रबंधन प्रणालियां और पद्धतियां भी नहीं अपनायीं। इसके परिणामस्वरूप देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक है और सड़क यातायात में सुरक्षा चिंता का विषय है और सार्वजनिक स्वास्थ्य का प्रमुख मुद्दा बन चुकी है। देश में हर एक घंटे में 56 सड़क दुर्घटनाएं और उनमें 16 व्यक्तियों की मौत होती हैं।
सड़क यातायात की ‘सुरक्षित प्रणाली’ सुनिश्चित करने के लिए, सड़क अवसंरचना में वृद्धि, वाहनों में सुरक्षा प्रणाली विकसित करना, चालकों और सड़क का उपयोग करने वालों के व्यवहार में परिवर्तन लाना और आपातकालीन सेवाएं और दुर्घटना के बाद की सेवाएं उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है। सड़क सुरक्षा में ये चार-ई शामिल हैं- शिक्षा, प्रवर्तन, अभियांत्रिकी, पर्यावरण और आपातकालीन सेवा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2009 में सड़क सुरक्षा पर अपनी पहली वैश्विक स्थिति रिपोर्ट में सड़क दुर्घटनाओं की दुनियाभर में “सबसे बड़े कातिल” के रूप में पहचान की। रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल दुनियाभर में सड़क हादसों में 1.2 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती है और 50 मिलियन लोग इससे प्रभावित होते है। सड़क हादसों में होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत तक कमी लाने के लक्ष्य के साथ सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई का दशक “(2011-2020)” अंगीकृत किया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की पहचान ऐसे देश के रूप में की है, जो सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामले में सबसे आगे है, जहां अनुमानित तौर पर प्रति मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है और हर चौथे मिनट में सड़क दुर्घटना में एक मौत होती है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार हर साल एक लाख से ज्यादा लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मौत होती है। अकेले 2014 में ही सड़क दुर्घटनाओं में 1.39 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
सरकार ने वर्ष 2010 में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति में अपनायी, जिसमें सड़क सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता जगाने के महत्व और इसके सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों और सड़क सुरक्षा सूचना डाटाबेस बनाने पर बल दिया गया।
सरकार यातायात उल्लंघनों के लिए कड़ी दंडात्मक कार्रवाई और जुर्माने सहित सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक, 2014 का मसौदा भी लेकर आयी और प्रस्तावित कानून में सड़क सुरक्षा का एक प्रमुख संघटक भी बनाया गया। विधेयक, 2014 जनता की टिप्पणियों के लिए अब सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है। यह विधेयक सड़क परिवहन अवसंरचना के आधुनिकीकरण, सड़क पर चलने वाले वाहनों की गुणवत्ता में सुधार और पूरे देश के लिए एकीकृत ड्राइवर लाइसेंसिंग सिस्टम के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण किया गया है।
प्रस्तावित अधिनियम में सभी यात्रियों के लिए हेलमेट और सीट बेल्ट का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है। दुपहिए वाहनों के लिए पिछली सीट पर बैठने वाले यात्रियों के लिए भी हेलमेट, सीट बेल्ट और उच्च दृश्यता वाले कपड़े पहनना जरूरी बना दिया गया है। बच्चों की सुरक्षा को भी ध्यान में रखते हुए बाल सुरक्षा और रोकथाम प्रणालियों के उपयोग को अनिवार्य बनाया गया है। प्रस्तावित बिल में पहले 5 वर्षों के दौरान 2 लाख जीवन बचाने और सड़क परिवहन की सुरक्षा और निपुणता में सुधार करके राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद को चार प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मेक इन इंडिया के तहत इसका उद्देश्य सड़क परिवहन क्षेत्र में अधिक निवेश करके 10 लाख रोजगार सृजन करने का है।
सरकार ने कुछ राजमार्ग खंडों जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग-8 के गुड़गांव/जयपुर खंड पर 2013-14 में, रांची राष्ट्रीय राजमार्ग-33 के रांची-राड़गांव-महुलिया खंड और राष्ट्रीय राजमार्ग-8 के वडोडरा, मुंबई खंड पर 2014-15 में पहले ही सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में बिना पैसे के इलाज के लिए एक पायलट परियोजना शुरू कर रखी है। गोल्डन आवर अर्थात् पहले 48 घंटों के दौरान सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों का जीवन बचाने के लिए तुरंत उचित चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराने की यह एक पहल है। जिसमें खर्च की सीमा 30 हजार रूपये है। इन राजमार्गों के इन खंडों में 24×7 टॉल फ्री नंबर 1033 को भी एक्टिवेट किया गया है। पायलट प्रोजेक्ट के आंकड़ों को सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों के कैसलैस इलाज के लिए पेन-इंडिया योजना को तैयार करने में उपयोग किया जाएगा।
सड़क सुरक्षा जनता की भलाई के लिए है। सड़क सुरक्षा नीति और प्रस्तावित अधिनियम, दोनों में जनता के बीच जागरूकता फैलाने और सड़क यात्रा को सुरक्षित बनाने में जनता की भूमिका के बारे में उसे शिक्षित करने पर जोर दिया गया है।इस बात को ध्यान में रखते हुए विभिन्न हितधारकों को जागरूक बनाने के लिए हर साल जनवरी में ‘सड़क सुरक्षा सप्ताह’ का आयोजन किया जाता है। इस अभियान का उद्देश्य मात्र साधारण नियम लागू करते हुए सुरक्षित सड़क यात्रा की जरूरत उजागर करना है।
सड़क सुरक्षा के तौर-तरीकों और आवश्यकताओं के बारे में विविध प्रकार के कार्यक्रम जैसे वाहन चलाते समय हेल्मेट्स या सीट बेल्ट्स का इस्तेमाल, मेडिकल जांच शिविर, शैक्षिक संस्थानों में ड्राइविंग प्रशिक्षण कार्यशालाओं और प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रमों का आयोजन, विभिन्न समूहों जैसे सड़क पर यात्रा करने वालों, चालकों तथा स्कूली बच्चों, छात्रों और युवाओं के समूहों को लक्षित करते हुए किया जाता है।दूसरी ओर, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर बनाने, यातायात व्यवस्था के उचित प्रबंधन और उत्सर्जन नियमों का सख्ती से पालन कराने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। हर साल जागरूकता जगाने के लिए एक विशिष्ट विषय का चयन किया जाता है। कुछ ऐसे विषयों में ‘’स्थायी आपूर्ति श्रृंखला बनाने के लिए सुरक्षा की संस्कृति की रचना कीजिए’’, ‘’ सुरक्षा महज एक नारा नहीं है, जीवन शैली है’’, ‘’ वॉक फॉर रोड सेफ्टी’’, ‘’स्टे अलाइव, डोंट ड्रिंक एंड ड्राइव’’ और ‘’सड़क सुरक्षा मिशन है, विराम नहीं’’ आदि पहले ही सप्ताह के आयोजन के दौरान प्रदर्शित किए जाते रहे हैं।
27वां सड़क सुरक्षा सप्ताह 11 जनवरी (सोमवार) से 17 जनवरी (रविवार) तक आयोजित किया गया। इस साल के अभियान के दौरान ‘’रोड सेफ्टी- टाइम फॉर एक्शन’’ पर ध्यान केंद्रित किया गया। सड़क सुरक्षा के लिए अभियान सिर्फ तभी सफल हो सकता है, जब सभी हितधारक जैसे परिवहन, बीमा, स्वास्थ्य, विधि व्यवसायियों, राजमार्ग अभियंताओं और वाहनों के निर्माताओं को साथ जोड़ा जाए। बच्चों तथा स्कूल एवं कॉलेज के छात्रों को शुरूआत से ही सड़क उपयोग करने के तरीका सिखाया जाना चाहिए। सड़क सुरक्षा शिक्षा स्कूल पाठ्यक्रम का भाग होना चाहिए ताकि सुरक्षा शुरूआत से ही आदत और जीवन शैली बन सके।
(अचर्ना दत्ता ऑल इंडिया रेडियो की सेवानिवृत्त डीजी (समाचार) हैं।)