Monday, July 1, 2024
No menu items!
spot_img
No menu items!
Homeजियो तो ऐसे जियोराष्ट्रपति भवन में शंकराचार्य जी

राष्ट्रपति भवन में शंकराचार्य जी

राष्ट्रपति भवन में शंकराचार्य जी की यह पहली यात्रा थी। राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम शंकराचार्य जी को उचित सम्मान देना चाहते थे। उन्होंने मुझे (मैं राष्ट्रपति जी का ADC था) अपने कार्यालय में बुलाया और मुझसे पारंपरिक प्रोटोकॉल के बारे में पूछा। मैंने उनसे कहा, “मैं राष्ट्रपति भवन के द्वार पर शंकराचार्य जी का स्वागत करूंगा और उन्हें अंदर लाऊंगा।”

कुछ मिनटों के गहन सोच के बाद उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या होगा यदि मैं स्वागत करूं? तो मैंने कहा, “श्रीमान, आप संत के सम्मान को राष्ट्रपति के सम्मान से ऊपर कर देंगे।”

वो मुस्कराए। उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। फिर मैंने ऑफिस के अंदर उन्हें बताया, “सर, मैं उन्हें यहां लाऊंगा। उनकी मृगछाल इस सोफे पर बिछाऊंगा और उनसे बैठने का अनुरोध करूंगा। आप राष्ट्रपति जी अपने सोफे कुर्सी पर बैठे रहेंगे।”

उन्होंने फिर मुझसे दूसरी बार पूछा, “क्या होगा यदि मैं उन्हें अपने सोफे की सीट पर बैठा दूं?”

मैंने फिर कहा, “सर, आप संत को राष्ट्रपति से अधिक सम्मान देंगे।”

वह फिर मुस्कुराए और मुझे कोई आदेश नहीं दिया। तीस मिनट के बाद जब शंकराचार्य जी आने वाले थे तो कुछ सेकंड पहले मुझे घोर आश्चर्य हुआ जब मैंने डॉ अब्दुल कलाम को गेट पर अपने पीछे खड़ा देखा। मैं तुरंत पीछे गया और डॉ. अब्दुल कलाम के पीछे खड़ा हो गया। वह वहां व्यक्तिगत रूप से एक माला और फूलों के साथ शंकराचार्य जी का स्वागत करने के लिए खड़े थे। हमने शंकराचार्य जी का स्वागत किया। राष्ट्रपति भवन के गलियारों से गुजरते हुए हम सीधे कार्यालय में गए।

मैं आगंतुकों के लिए निश्चित सोफे पर शंकराचार्य जी की मृगछाल बिछा रहा था तो जिसकी हमने पहले चर्चा की थी। डॉ अब्दुल कलाम ने मुझे मृगछाल को अपने सोफे की कुर्सी पर बिछाने का निर्देश दिया। इस सरल, विनम्र और महान भाव से मैं स्तब्ध रह गया।

वह राष्ट्रपति कलाम हैं। हमने शंकराचार्य जी को फल और फूलों की टोकरी भेंट की। भेंट के बाद मैंने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं चाहता था कि भारत के राष्ट्रपति की सोफा सीट को संत की आध्यात्मिक शक्ति का आशीर्वाद मिले ताकि जो कोई भी राष्ट्रपति बाद में यहां बैठे, उन्हें भी संतों का आशीर्वाद प्राप्त हो।”

मैंने अपने आध्यात्मिक गुरु कलाम के इन विचारों की प्रशंसा की और कहा “सर, आप न केवल एक महान वैज्ञानिक हैं बल्कि इस वेष में एक संत भी हैं।” हमेशा की तरह उन्होंने अपनी एक सार्थक मुस्कान दी।

(लेखक स्व. एपीजे अब्दुल कलाम के सहयोगी रहे हैं)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार