आनंद मोहन इन दिनों चर्चा में हैं…होना भी चाहिए..
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में उन्हें जेल की सजा हुई और अब साढ़े पंद्रह साल की सजा के बाद बिहार सरकार ने उन्हें जेल मैनुअल में बदलाव के बाद रिहा कर दिया है..
आनंद मोहन को मैं शायद ही याद होउंगा..
उनके एक सहयोगी रहे हैं पत्रकार,एक्टिविस्ट आदि-आदि संजय झा..इन दिनों रांची रहतेहैं..साल 1999 की बात है..संजय झा एक तरह से उनका पीआर देख रहे थे..1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में आनंद मोहन की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़कर हार चुके थे…
संजय झा का तेवर उन दिनों बहुतों को पसंद आता था..लिखते भी अच्छा थे..
उन दिनों आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली आनंद दोनों सांसद थे…नंबर भूल रहा हूं..सांसद के नाते एक को शायद दिल्ली काे साउथ एवेन्यू में दो नंबर का फ्लैट अलाट था तो दूसरे को आठ नंबर का..
आठ नंबर वाले की सहन अच्छी खासी थी..उसमें वे झूला लगाकर बैठते थे..संजय झा ने उनके इंटरव्यू के लिए मुझे संपर्क किया..इंटरव्यू के लिए दिन भी तय हो गया..सुबह नौ बजे के करीब दो नंबर वाले फ्लैट पर…
नाश्ते पर इंटरव्यू होना था..
मैं ठहरा बस यात्री तो संभवत: पंद्रह मिनट की देरी से पहुंचा..लेकिन न तो वहां संजय झा थे, जिन्हें वहां रहना था…ना ही आनंद मोहन…
वहां उनके तीन-चार लठैत थे..गुंडे टाइप पर्सनैलिटी के लोग..मैं सोच रहा था कि जिस तरह एक दिन पहले आनंद मोहन और संजय मिले थे, वैसे ही मुलाकात होगी..लेकिन इस बार स्थितियां बदली हुईं थी..
आनंद वहां नहीं थे..और संजय जी का भी पता नहीं..मैं उन्हें तूफानी कहता रहा हूं..आधी बात गोल करने में संजय उस्ताद रहे हैं..
मैं जब दो नंबर साउथ एवेन्यू पहुंचा और आनंद के बाारे में पूछा तो जवाब बहुत रूखा मिला..गुंडे भला किस भाषा में जवाब देते..वैसे वह दौर गुंडों का ही था..राजनीति की छत्रछाया के बाद गुंडों की माया बढ़ गयी थी..
बहुत गंदे तरीके से उन्होंने जवाब दिया…पता नहीं आनंद अंदर थे या नहीं..लेकिन बताया कि उन्हें अचानक बिहार निकलना पड़ा..
उसके बाद मैं अपना सा मुंह लेकर लौट आया..तब ब्यूरो में नया था..इसलिए इस अपमान की जानकारी मैंने अपने तत्कालीन ब्यूरो चीफ शरद द्विवेदी को नहीं दी..अन्यथा वे मर्द किस्म के बॉस थे..आनंद मोहन पर पिल पड़ते या कुछ ऐसा जरूर करते कि आनंद मोहन के लोग हमारे दफ्तर आने के मजबूर हो जाते..
आनंद मोहन से जुलाई की एक चिपचिपी गर्मी में आठ नंबर वाले साउथ एवेन्यू फ्लैट पर भी मिला..शाम का वक्त था..झूला लगा हुआ था..जिस बेटे की शादी हो रही है..वह उन दिनों बहुत छोटा था..वह बार-बार एक सवाल पूछता..पापा आपका जेल में क्या होता था..वे मुस्कुरा-मुस्कुरा टाल रहे थे..
वहां आगंतुकों के लिए कुर्सियां लगी हुई थीं..कुछ प्लास्टिक के टेबल भी थे..मुझे उन्होंने अपने साथ झूले पर बैठा रखा था…
इसी बीच बेटा स्टूल से भहराकर गिर गया था..
आनंद मोहन ने तत्काल प्रतिक्रिया दी…बेटा जेल में मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा था..
तब वे लालू यादव के कट्टर विरोधी थे..उन्होंने उस दिन औपचारिक बातचीत में बताया था कि विधानसभा में अगर कुर्सी होती तो वे ललुआ पर कुर्सी चला देते..
यह संयोग कहें या राजनीति की माया…आज उनका बेटा उसी राष्ट्रीय जनता दल का विधायक है..
आनंद मोहन को अक्टूबर 2007 में जब सभा हुई तो मैं जी न्यूज का शिफ्ट देख रहा था..जी न्यूज के तब के पटना संवाददाता ब्रजेश मिश्र इस घटना को रिपोर्ट कर रहे थे। फांसी की सजा सुनाए जाने के आनंद मोहन के लफंडरी समर्थक हमारे रिपोर्टर से बोल रहे थे, कोर्ट की ईंट से ईंट बजा देंगे..
मैंने ब्रजेश को संदेश भिजवाया कि ऐसे लोगों के सामने से माइक हटा लेना चाहिए.
आनंद मोहन के दूर के एक भाई हैं जितेंद्र सिंह..दिल्ली और पटना के राजनीतिक हलकों में दादा के नाम से जाने जाते हैं…आनंद से उम्र में बड़े हैं..बाद में उन्होंने उस दिन मुझे फोन करके कहा था कि लफंडरों की बातें टीवी पर मत चलाइए…कोर्ट की अवमानना होगी तो हम भी नुकसान में होंगे..चैनल पर भी सवाल उठ सकता है..
एक बार आनंद मोहन से मैंने पूछा था कि लवली आनंद से अपनी दोस्ती और शादी के बारे में बताइए..तब वे मुस्कुराए थे..फिर कहा था…इतनी सुंदर लड़की..और पता चले कि हम पर मरती है तो कैसे छोड़ देता..
उन दिनों बिहार के कोशी अंचल में एक तरह आनंद मोहन की तूती बोलती थी तो दूसरी तरफ पप्पू यादव की..
पप्पू को राजनीतिक और सत्ता का सहयोग था तो आनंद मोहन सत्ता के निशाने पर थे..क्योंकि वे कथित सामाजि न्याय की शक्तियों के लफंडरों की गुंडई का जवाब सीधे देते थे…
साल 2000 में लालू यादव की पार्टी के संसदीय दल में बगावत हुई..भिक्षु धर्मवीर्यो, कुमुद राय समेत पांच-छह नेताओं ने बगावत की..उन दिनों रघुनाथ झा समता पार्टी के सांसद थे और उन्हें तीन मूर्ति लेन का सबसे आखिरी बंगला अलाट था। वहीं रोजाना शाम को ये बागी प्रेस कांफ्रेंस करते थे। हर कांफ्रेंस के बाद सांसदों के पीछे पप्पू यादव नमूदार होते। अपनी बात रखते। उन दिनों वे भी लालू से अलग हो चुके थे…और चलते वक्त एक बात पत्रकारों से जरूर कहते थे, सर मैं अस्पताल में हूं..
दरअसल वे भी तब जेल में बंद थे और इलाज के नाम पर एम्स में दाखिल थे..लेकिन वह दाखिला सिर्फ कागजों पर था, असल में वे घूमते पाए जाते थे…
सत्ता का दुरूपयोग उन दिनों जिस तरह होता था, वह अब वे लोग भी याद नहीं करना चाहते, जो पत्रकारिता और बौद्धिकी की दुनिया में सक्रिय हैं और इसके गवाह रहे हैं..
आनंद मोहन के बारे में तब भी बिहार में कहा जाता था कि जी कृष्णैया की हत्या में तत्कालीन सत्ता ने उन्हें फंसाया…
आनंद मोहन की छवि उन दिनों भी सवर्ण गुंडे के तौर पर बनाई गई..लेकिन जब वे सांसद थे और नाश्ते वाली घटना के पहले मैं जितनी बार उनसे मिलने गया, हर बार कोशी अंचल के ऐसे मुसलमानों की भी भीड़ मिली, जो इलाज कराने दिल्ली आए थे..लेकिन उन्हें कोई साथ नहीं देता था..तब भी आनंद मोहन किसी को रेडक्रास से रक्त दिलाते थे तो किसी को किसी अस्पताल में दाखिला कराने की कोशिश करते थे..
हां, उनके इर्द-गिर्द गुंडों और लफंडरों की बड़ी फौज थी..
उन्होंने जेल में कविताएं लिखीं..उनका विमोचन नामवर सिंह ने किया, जिसमें राम बहादुर राय जी भी साथ थे। तब लवली आनंद लगातार नामवर सिंह और रामबहादुर राय के यहां जाती थीं…
यहां यह बताना है कि 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी भी लड़ी थी..उसका भी हेलिकॉप्टर घूमता था..सूत्र बताते हैं कि तब उन्हें नैतिक समर्थन चंद्रशेखर का था तो आर्थिक समर्थन अर्जुन सिंह और भैरो सिंह शेखावत की पहल से मिला था..
चूंकि मेरी बीट में आनंद मोहन की पार्टी भी आती थी, इसलिए उन पर निगाह रखना मेरा कर्तव्य था…उनके बारे में बहुत जानकारियां हैं..अनुभव भी..
आनंद के बहाने बिहार की बदलती राजनीति पर अलग से कहीं लेख लिखा जाएगा…
फिलहाल इतना ही…
साभार – https://www.facebook.com/umeshchat से