महोदय,
देश भर में सभी बड़ी कम्पनियाँ /विनिर्माता आदि अपने उपभोक्ता उत्पादों पर सारी जानकारी केवल अंग्रेजी में छापते हैं जिसे देश की 95 प्रतिशत जनता ना तो पढ़ सकती है ना समझ सकती है, उपभोक्ताओं पर अंग्रेजी थोपकर उनका शोषण किया जा रहा है।
हम लोग कम्पनियों को शिकायत करते हैं तो उनका कहना है “देश में ऐसा कोई कानून नहीं जो कहे कि #ग्राहक की #भाषा में जानकारी दो, तो हम तो कानून के हिसाब से अंग्रेजी में छापते हैं. जो कानून है वह अंग्रेजी अथवा हिन्दी में लेबल छापने के लिए कहता है, #हिन्दी में छापकर हम अपना खर्चा क्यों बढ़ाएँ? यदि अनिवार्य नियम बन जाए तो हम छापेंगे, पर अभी नहीं छाप सकते. आपको इसलिए आप सरकार को लिखिए, वैसे भारत सरकार में कोई भी नहीं सोचता कि ग्राहक को उसकी अपनी भाषा में जानकारी मिले वर्ना क्या वे अंग्रेजी अनिवार्य करते? फिर भी कोशिश करके देख लो.”
क्या जिनको #अंग्रेजी नहीं आती है उनके कोई उपभोक्ता अधिकार नहीं हैं? क्या अंग्रेजी ना जानने वाली देश की आबादी को अपनी भाषा में अथवा भारत की राजभाषा #हिन्दी में उत्पाद सम्बन्धी कोई जानकारी पाने का हक नहीं? क्या जागो ग्राहक जागो का नारा केवल दिखावा है? आप ही बताएँ खाने के सामान पर लिखाbest before six months या directions of use देश के कितने लोग पढ़ या समझ सकते हैं? पिछले ६७ सालों में हर जगह #अंग्रेजी थोपी गई है और सरकारों ने कभी नहीं चाहा कि जनता को उसके अधिकार मिलें; हमें आशा है आप विरोधियों से डरे बिना जनहित में कठोर निर्णय करेंगे, हमने आपको पूर्ण बहुमत इसीलिए दिया है.
आपसे अनुरोध है सभी खाद्य पदार्थों और दवाओं पर वस्तु का नाम, कीमत, वज़न,उपयोग, निर्माण-अवसान तिथि, निर्माता आदि की जानकारी हिन्दी एवं प्रमुख भारतीय भाषाओं में छापने का अनिवार्य नियम बनाया जाए, कम्पनियाँ तो विरोध करेंगी क्योंकि वे नहीं चाहती हैं कि जनता को/उपभोक्ता को सवाल-जवाब करने का मौका मिले, देश में अंग्रेजी उपभोक्ताओं/ग्राहकों के शोषण का बड़ा हथियार है इसलिए उनके विरोध से सख्ती से निपटा जाए ताकि ग्राहकों को उनके अधिकार मिल सकें, वरना उपभोक्ता कानून केवल दिखावा बने रहेंगे.
कृपया शीघ्र कार्यवाही करते हुए उत्तर भेजने की कृपा करें.
भवनिष्ठ,
तुषार कोठारी
बी, गोपाल कृष्ण भवन, प्लाट -98,
श्रीमद राजचंद्र मार्ग, तिलक रोड, घाटकोपर पूर्व, मुंबई – 400077