कोई व्यक्ति जब इस पृथ्वी से महाप्रयाण कर जाता है तो अपनी यादें ही छोड़कर जाता है, लेकिन कुछ ऐसे बिरले लोग होते हैं जो अपनी यादों की खुशबू से समाज में ऐसी सुगंध भर देते हैं कि उनकी अनुपस्थिति के बाद भी उनकी यादें, उनका काम और उनका योगदान जीवंत बन रहता है। मुंबई के बांगुड़ नगर के रहने वाले स्व. किशोर रामुका एक ऐसी ही शख्सियत थे जिन्होंने मुंबई में रहने वाले राजस्थानी समाज को ही गौरवान्वित नहीं किया बल्कि समाज में ऐसी 22 संस्थाओं को पुष्पित पल्लवित किया कि उनके माध्यम से कई सेवा प्रकल्प मुंबई ही नहीं बल्कि राजस्थान से लेकर सुदूर वनवासी क्षेत्रों में चल रहे हैं। किशोर जी रामुका के निधन के बाद बांगुड़ नगर में उनकी स्मृति में जब मार्गपट्ट का अनावरण किया तो बड़ी संख्या में उनके चाहने वाले, परिवारजन, मित्र व सहयोगी उपस्थित थे।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री राम नाईक ने कहा, मैं 60 वर्ष से सार्वजनिक जीवन और राजनीति में हूँ, मै इस दौरान कई सड़कों व चौराहों के नामकरण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहा, मगर पहली बार इतनी बड़ी संख्या में समाज के हर क्षेत्र के विशिष्टजनों को ऐसे कार्यक्रम में देख रहा हूँ। मुंबई में रहकर भी अपने गाँव की चिंता करना और गाँव को हर सुख-सुविधा देने के लिए जी जान लगा देना, ये काम स्व. किशोर रामुका जैसे लोग ही कर सकते हैं। मैं संघ परिवार की वजह से उनसे जुड़ा था। यह 80 के दशक की राजनीति वह दौर था जब विश्वनाथ प्रताप सिंह स्तीफा दे चुके थे और काँग्रेस के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। उनके नेतृत्व में भाजपा भी साथ थी। वीपी सिंह गोरेगाँव से मृणाल गोरे को टिकट देना चाहते थे, जबकि यहाँ से भाजपा वीरेनशाह को मैदान में उतारना चाहती थी, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। इसी बीच पार्टी ने मुझे उम्मीदवार बना दिया, मेरे पास चुनाव लड़ने का पैसा ही नहीं था। मेरे चुनाव खर्च का सारा प्रबंधन स्व. किशोर रामुका करते थे। वो कहते थे चुनाव के लिए धन की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो, आप बस चुनाव लड़ो। मैं पाँच बार इस क्षेत्र से सांसद रहा, ये स्व. रामुका जी जैसे व्यक्ति का ही पुण्य प्रताप था।
श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने कहा कि उनका नाम तो किशोर रामुका था मगर वो किसी काम को करने का शोर नहीं करते थे। किसी अकिंचन की तरह चुपचाप काम करते थे और जो काम करते थे उसका श्रेय कभी नहीं लेते थे।
इस अवसर पर मुंबई महानगर के संघ चालक श्री सुरेश भगेरिया ने कहा, मेरा स्व. किशोर जी से 50 साल का साथ रहा। वो मेरे पारिवारिक दोस्त थे। उन्होंने गोरेगाँव में आजीवन शाखा चलाई और सुबह शाखा में सबसे पहले पहुँच जाते थे। उन्होंने गोरगाँव शाखा के माध्यम से एक से एक समर्पित कार्यकर्ता दिए। 1990 में मुझे संघ का भाग सहकार्यवाह बनाया गया तो उन्होंने मित्र होते हुए भी मुझे मेरे पद के अनुरूप सम्मान दिया। वे सबकुछ होते हुए भी आजीवन कार्यकर्ता बने रहे। उन्होंने अपने राजस्थान के अपने गाँव के 70 लोगों को मुंबई में बसाया और आज वे कुशलता से अपने घर चला रहे हैं। वे 22 संस्थाओं की नींव के पत्थर थे। सामाजिक व परोपकार के कामों में उन्हें इतनी जल्दबाजी रहती थी कि सबसे आगे रहते थे। उनका मानना था कि जीवन लंबा नहीं है, मगर काम तो बहुत करना है।
विश्व हिंदू परिषद् के कोंकण प्रांत के अध्यक्ष श्री देवकीनंदन जिंदल ने कहा कि मैंने समाज सेवा का मंत्र उनसे ही सीखा। मुझे याद है कि जब गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब बनाने की बात आई तो उन्होंने 50 लाख रुपये इकठ्ठे कर दिए थे।
केशव सृष्टि ग्राम विकास योजना के प्रभारी श्री बिमल केड़िया ने कहा, वे हनुमानजी की तरह हर काम को राम का काम समझकर करते थे। 1998 में हमने जोगेश्वरी में अस्मिता ज्योति के लिए प्लाट लिया तो भवन बनाने के लिए 50 लाख की जरुरत थी। वे हरेराम जी अग्रवाल को लेकर आए। हरेराम जी अग्रवाल जी ने जब पैसे देने की अपनी समस्या बताई और पूछा कि पैसे कैसे दें। उन्होंने कहा, मैं जब पहली बार सासरे गया तो सासरे वालों ने घेर लिया कि आपके लिए रसोई कैसी चलेगी पक्की की कच्ची (पक्की यानी पूड़ी, सब्जी खीर मिठाई आदि और कच्ची यानी दाल रोटी) तो मैने जवाब दिया कि कच्ची या पक्की दोनों चलेगी बसे खिलाने की बात पक्की होना चाहिए। इस तरह रामुका जी ने ये किस्सा सुनाकर हरेरामजी अग्रवाल को संस्था के भवन के लिए बड़ी राशि देने की प्रेरणा दी।
इसी तरह एक और घटना सुनाते हुए बिमल जी ने कहा कि वे एक क्षण का भी समय नष्ट नहीं करते थे। वे हमारे परिवार के लिए एक रिश्ता लेकर आए थे। हमने कहा कि हमारे यहाँ 26 को शादी है इसके बाद इस रिश्ते पर विचार करेंगे। 26 को शादी के दूसरे दिन सवेरे सवेरे रामुका जी मेरे घर आए तो मैं चौंक गया, मैने कहा सुबह-सुबह कैसे, तो उन्होंने कहा कि आपने कहा था कि 26 को शादी हो जाने के बाद इस रिश्ते पर बात करेंगे। आखिरकार वो रिश्ता हुआ और हमारा वो परिवार सुखपूर्वक जीवन जी रहा है।
बिमल जी ने उनकी स्मृति को प्रणाम करते हुए कहा,
काट कण-कण देह जिसकी दुर्ग का निर्माण होता
एक तिल हटने न पाता भूमि में ही प्राण खोता
जय-पराजय कीर्ति यश की छोड़ करके कामनाएँ
रात दिन निश्चल -अटल चुपचाप गढ़ का भार ढोता
शोक में रोता नहीं और हर्ष में हँसता नहीं जो
राष्ट्र की दृढ़ नींव का पाषाण बनना है हमें तो।
राष्ट्र -मन्दिर का पुनर्निर्माण करना हैं हमें तो
स्व. किशोर रामुका के भाई श्री रामचंद्र रामुका ने कहा, सामाजिक जीवन जीते हुए भी उन्होंने पारिवारिक जीवन के लिए भी भरपूर समय दिया। उनकी वजह से ही हमें भी समाज में सम्मान मिला।
जाने माने नैत्र चिकित्सक एवँ वात्सल्य धाम वृंदावन के अध्यक्ष डॉ. श्याम अग्रवाल ने कहा, वे एक जीवंत संस्था थे। वे जिस संस्था से जुड़ जाते थे वो संस्था खड़ी हो जाती थी। मुंबई के मालाड में डीजी खेतान स्कूल के निर्माण की बात आई तो उन्होंने 15 मिनट में 3 करोड़ रुपये एकत्र करवा दिए। दीदी माँ के वात्सल्य धाम के लिए उन्होंने दान एकत्र किया और वासुदेव अग्रवाल जैसे दानदाता को लेकर आए। आज उनकी ही प्रेरणा से वात्सल्य धाम में साल में 6 बार नैत्र शिविर होता है जिसमें अभी तक 10 हजार लोगों की आँखों के निःशुक्ल ऑप्रेशन हो चुके हैं। हर शिविर में 20 लाख रुपये का खर्च आता है। आज श्री जयकुमार गुप्ता, देवकीनंदन जी जिंदल, सुरेश भगेरियाजी जैसे लोग इस शिविर के लिए सहयोग दे रहे हैं।
भरतपुर के अपना घर, जनता की पुकार ऐसी कई संस्थाएँ हैं जो स्व. किशोर जी रामुका के सहयोग से खड़ी हुई। जब गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब का निर्माण चालू हुआ तो वो सुबह पौने चार बजे पहुँच जाते थे। उनके बेटों अनूप और अमित ने पाँच साल तक लगातार उनकी सेवा की।
इस अवसर पर पूर्व मंत्री व क्षेत्र की विधायक श्रीमती विद्या ठाकुर ने कहा कि वेसमाज के सभी लोगों में लोकप्रिय ही नहीं थे बल्कि हर एक के सुख-दुख में सदैव साथ रहते थे।
क्षेत्र के नगर सेवक श्री दीपक ठाकुर ने कहा कि किशोर जी के निधन के बाद हम सब लोग ये सोच रहे थे कि उनकी स्मृति को कैसे जीवित रखा जाए ताकि आने वाली पीढ़ी उनके कामों को, उनके योगदान को जान सके। मैंने महापालिका में बांगुड़ नगर में उनके निवास क्षेत्र की सड़क का नाम उनके नाम से करने का प्रस्ताव रखा और ये प्रस्ताव सहजता से स्वीकार कर लिया गया। ये मेरा सौभाग्य है कि मैं उनके लिए कुछ कर सका।
कार्यक्रम का संचालन श्री सुरेन्द्र विकल ने किया।