ये हैं आंध्रप्रदेश के सुब्बाराव लिंगमगुंटला, जिन्हें आप आज का ‘अर्जुन’ कह सकते हैं। दरअसल ये शब्दभेदी बाण चलाते हैं। चाहे आंखों पर पट्टी ही क्यों न बंधी हो। तैरती मछली की आंख पर भी निशाना साध सकते हैं। इसमें भी चौंकाने वाली बात यह कि केवल हाथों से ही नहीं बल्कि पैरों से भी। अंतरराष्ट्रीय गुरुकुल सम्मेलन में अपनी विधा का प्रदर्शन करने आए सुब्बाराव हजारों की भीड़ में सबसे जुदा थे। ‘नईदुनिया’ ने इनके हुनर और ख्वाहिशों को जाना।
कॉमर्स में ग्रेजुएट 52 वर्षीय सुब्बाराव ने कहा कि वे गंटुर जिले के अलवपल्ली गांव में पुजारी हैं। पंडिताई ही उनकी रोजी-रोटी का जरिया है। धनुर्विद्या पिता से विरासत में मिली थी, जिसे वे अपने बाद जिंदा रखने के लिए अगली पीड़ी के बच्चों को सीखाना चाहते हैं। इसके लिए वे गुरुकुल स्थापित करना चाहते हैं मगर पैसे की कमी है।
सरकार से सहायता की अपेक्षा
सुब्बाराव कहते हैं कि सरकार अगर सहायता कर दे तो वे प्राचीन गौरवशाली धनुर्विद्या को जीवित रखने का स्वप्न पूरा कर पाएंगे। उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं, जिनमें से छोटी बेटी ने धनुर्विद्या सीख ली है। वह भी उनकी तरह बिना देखे सिर्फ ध्वनि सुनकर लक्ष्य भेद सकती है। इस विधा के बूते उन्हें कई मंचों से सम्मान भी मिल चुका है। तीन साल पहले अमेरिका तक में धनुर्विद्या का प्रदर्शन कर चुके हैं।
साभार- https://naidunia.jagran.com से