22 वर्ष के एक युवा डॉक्टर आर. एच. कुलकर्णी को महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर पर स्थित चंदगढ़ गाँव के अस्पताल में नौकरी मिली.
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जुलाई का महीना था. तूफानी रात में तेज बारिश हो रही थी. ऐंसे समय डॉक्टर आर. एच. कुलकर्णी के घर के मुख्यद्वार पर जोर जोर से दस्तक हुई.
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बाहर दो गाड़ियाँ खड़ी थीं जिसमें कंबल ओढ़े और हाथों में बड़े बड़े लठ्ठ लिए सात-आठ आदमी सवार थे.
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थोड़ी देर बाद डॉक्टर कुलकर्णी को एक गाड़ी में धकेल दिया गया और दोनों गाड़ियाँ चल पड़ीं.
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करीब डेढ़ घंटे बाद गाड़ियाँ रुकीं. चारों ओर धुप्प अंधेरा था. लठैतों ने डॉक्टर को गाड़ी से उतारा और एक कच्चे मकान में ले आए जिसके एक कमरे में लालटेन की रौशनी थी और खाट पर एक गर्भवती युवती पड़ी हुई थी जिसके बगल में एक वृद्ध महिला बैठी थी.
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बताया गया कि, डॉक्टर को उस युवती की डिलीवरी कराने के लिए लाया गया है. युवती दर्द भरे स्वर में डॉक्टर से बोली : “डॉक्टर साहब, मैं जीना नहीं चाहती. मेरे पिता एक बड़े जमीदार हैं. लड़की होने के कारण मुझे स्कूल नहीं भेजा गया और घर पर ही एक शिक्षक द्वारा मुझे पढ़ाने की व्यवस्था की गई जो मुझे इस नर्क में धकेलकर भाग गया और गाँव के बाहर इस घर में इस वृद्धा दाई के साथ चुपचाप मुझे रख दिया गया.”
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डॉक्टर कुलकर्णी के प्रयास से युवती ने एक कन्या शिशु को जन्म दिया. लेकिन जन्म लेने बाद वो कन्या रोई नहीं. तो युवती बोली : “बेटी है ना. मरने दो उसे. वरना मेरी ही तरह उसे भी दुर्भाग्यपूर्ण जीवन जीना पड़ेगा.”
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डॉक्टर कुलकर्णी ने उस कन्या को बचाने की भरसक कोशिश की और फाइनली कन्या शिशु रो पड़ी. डाॅक्टर जब कमरे से बाहर आए तो उन्हें उनकी फीस 100 रुपए दी गई. उस जमाने में 100 रुपए एक बड़ी रकम होती थी.
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कुछ समय बाद अपना बैग लेने डॉक्टर कुलकर्णी पुनः उस कमरे में गए तो उन्होंने वो 100 रुपए उस युवती के हाथ पर रख दिए और बोले : “सुख-दुख इंसान के हाथ में नहीं होते, बहन. लेकिन सब कुछ भूलकर तुम अपना और इस नन्ही जान का खयाल रखो. जब सफर करने के काबिल हो जाओ तो पुणे के नर्सिंग कॉलेज पहुँचना. वहाँ आपटे नाम के मेरे एक मित्र हैं, उनसे मिलना और कहना कि डॉक्टर आर. एच. कुलकर्णी ने भेजा है. वे जरूर तुम्हारी सहायता करेंगे. इसे एक भाई की विनती समझो.”
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बाद के वर्षों में डॉक्टर आर. एच. कुलकर्णी को स्त्री-प्रसूती में विशेष प्रावीण्य मिला. बहुत सालों बाद एक बार, डॉक्टर कुलकर्णी एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस अटेंड करने औरंगाबाद गए और वहाँ एक अतिउत्साही और ब्रीलियेन्ट डॉक्टर चंद्रा की स्पीच सुन बेहद प्रभावित हुए.
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इसी कार्यक्रम में किसी ने डाॅक्टर कुलकर्णी को उनका नाम लेकर आवाज दी तो डॉक्टर चंद्रा का ध्यान उधर आकर्षित हुआ और वो तुरंत डॉक्टर कुलकर्णी के करीब पहुँची और उनसे पूछा : “सर, क्या आप कभी चंदगढ़ में भी थे?”
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डॉक्टर कुलकर्णी : “हाँ, था. लेकिन ये बरसों पहले की बात है.”
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डॉक्टर चंद्रा : “तब तो आपको मेरे घर आना होगा, सर.”
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डॉक्टर कुलकर्णी : “डॉक्टर चंद्रा, आज मैं पहली बार तुमसे मिला हूँ. तुम्हारी स्पीच भी मुझे बहुत अच्छी लगी, तुम्हारे ज्ञान और रिसर्च की मैं तारीफ करता हूँ. लेकिन यूँ तुम्हारे घर जाने का क्या मतलब?”
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डॉक्टर चंद्रा : “सर, प्लीज, इस जूनियर डॉक्टर का मान रह जाएगा, आपके आने से.”
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फाइनली, डॉक्टर चंद्रा, डॉक्टर कुलकर्णी को साथ ले, अपने घर पहुँची और आवाज लगाई : “माँ, देखो तो हमारे घर कौन आया है?”
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डॉक्टर चंद्रा की माँ आई और डॉक्टर कुलकर्णी के सम्हालते-सम्हालते उनके पैरों पर गिर पड़ी. डॉक्टर कुलकर्णी घबरा गए और तब पुरानी कहानी याद दिला कर वो बोली : “डॉक्टर साहब, आपके कहने पर मैं पुणे गई और वहाँ स्टाफ नर्स बनी. अपनी बेटी को मैंने खूब पढ़ाया और आपको ही आदर्श मानकर स्त्री विशेषज्ञ डॉक्टर बनाया. यही चंद्रा वो बेटी है जिसने आपके हाथों जीवन पाया था.”
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डॉक्टर आर. एच. कुलकर्णी आश्चर्यचकित हुए लेकिन बहुत खुश हुए और डॉक्टर चंद्रा से बोले : “लेकिन तुमने मुझे कैसे पहचाना?”
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डॉक्टर चंद्रा : “मैंने आपको आपके नाम से पहचाना सर. मैंने अपनी माँ को सदा आपके नाम का ही जाप करते देखा है.”
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भावविभोर हुई चंद्रा की माँ बोली : “डॉक्टर साहब, आपका नाम रामचंद्र है न. तो उसी नाम से लेकर मैंने अपनी बेटी का नाम चंद्रा रखा है. आपने हमें नया जीवन दिया. चंद्रा भी आपको ही आदर्श मान, गरीब महिलाओं का निशुल्क इलाज करती है.”
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(डॉक्टर आर. एच. कुलकर्णी, समाज सेविका, सुप्रसिद्ध लेखिका और इन्फोसिस की चेयरपर्सन श्रीमती सुधा मूर्ति के पिता है ॥
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(साभार – https://x.com/R9Bhau/status/ से )
ये किस्सा प्रमाण है कि असली भारत कहाँ बसता है
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