आखिर धैर्य जवाब दे ही गया । पहली आम की खेप तुड़वाई के बाद घर आई। अभी डाल में आम पक नहीं रहे। पाल में पकेंगे या नहीं यह परीक्षण करना है और साल भर के लिये खटाई तथा अमचुर भी बनाया जाना है। संकटा ने काफी बुलवाने के बाद आज एक पेड़ का लगभग आधा आम तोड़ा है जिसमें तुड़वाई का तीन हिस्से में एक हिस्सा अपना लगाकर वह ले गया।
यह भी कह गया है कि अभी आम ठीक से नहीं पकेगा। जब डाल का कोई पका आम गिरे तभी तुड़वाईये तो पाल का भी आम अच्छा पकेगा। इसलिये अभी एक पखवारे का इन्तज़ार कर लिया जाय। मगर वही इन्तजार ही तो नहीं हो पा रहा। कार्बाइड से पक जायेगा मगर वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
जो भी हो डाल के पके का मुकाबला पाल का आम थोड़े ही कर सकता है। एक घटना याद आई। हमारे सेवाकाल में एक बार मोहकमाये मछलियान के सबसे बड़े हाकिम का बनारस दौरा हुआ। वे आम के बड़े शौकीन थे। उनके इस शौक से वाकिफ गाजीपुर के एक स्टाफ ने , जो बनारस ट्रांसफर के लिये प्रयत्नशील था, इस अवसर का लाभ उठाया।
एक बोरिया, लगभग चालीस किलो बनारसी लंगड़ा हाकिम के पेशे खिदमत हुआ और साथ में प्रार्थनापत्र। हाकिम की आंखों में एक खास चमक दिखने लगी। उन्होने अपने अनुचरों को इस नायाब भेंट को लखनऊ तक सहेजने की हिदायत दी और मुझे साथ लेकर औपचारिक निरीक्षण पर चल पड़े।
रास्ते में अचानक बोल पड़े, मिश्रा जरा पता करना कि गाजीपुर वाला जो पका आम लाया है वह डाल का है कि पाल का? वह तो कह रहा था कि सीथे अपने पेड़ से तुड़वाया है। चूंकि आम मुझे भी बहुत पसंद है इसलिये इन पारिभाषिक आम्र शब्दावली से मैं परिचित था। मैंनें कहा सर लौटकर पता करता हूं।
लौटकर गाजीपुर वाले से साहब बहादुर से मिले दायित्व का जिक्र किया तो कातर भाव से उसने बच्चों की पढ़ाई की समस्या बयान की और कहा सर अगर ट्रांसफर न हुआ तो बच्चों का भविष्य बिगड़ जायेगा। साहब के सामने मुंह से अकस्मात निकल गया कि डाल का पका आम है मगर है दरअसल वह पाल का। हां कार्बाइड नहीं पड़ा है। बात बच्चों की थी इसलिये अपनी रिपोर्ट में मैने साहब को डाल के ही पके आम की रिपोर्ट दे दी। मुझपर उनका बड़ा भरोसा और स्नेह था। लखनऊ पहुंचते ही उनका पहला आदेश गाजीपुर वाले का ट्रांसफर था।
वर्षों बीत गए। बात आई गई हो गई। मैं हजरतगंज लखनऊ में ऐसे ही चहलकदमी कर रहा था। अचानक अब भूतपूर्व हो चुके साहब मिल गये। कुशल क्षेम हुआ। जाते जाते उन्होनें एक बिल्कुल ही अनपेक्षित सवाल कर दिया, मिश्रा सच सच बताना गाजीपुर वाले ने डाल का पका आम दिया था या पाल का? मैं अवाक उन्हें देखता रह गया था।… आज वह वाकया सहसा याद आ गया। अब आप ही बताईये कि तब झूठ बोलकर मैंने क्या ठीक नहीं किया था ?
लेखक- डॉ अरविंद मिश्र, जाने माने विज्ञान लेखक है।
साभार-फेसबुक वाल