पर्यटन उद्योग के विकास में राजस्थान का विशिष्ठ स्थान है। आज भी भारत आने वाले विदेशी सैलानी राजस्थान आने की ललक मन में लिये आते हैं। यहां की सम्पूर्ण, सांस्कृतिक परम्परायें, महलों और मन्दिरों की स्थापत्य कला, मूर्तिकला, शौर्य गाथायें समेटे दुर्ग, वन्य जीवन तथा हस्तशिल्प सब मिलकर एक सम्मोहन की सृष्टि करते हैं।
कहने को तो कोटा कई सालों से राजस्थान के पर्यटन मानचित्र पर है परंतु विश्व के सैलानी कोटा के निकट बूंदी की चित्रशाला विश्व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होने से बूंदी देखने आते हैं और चित्तौड़ या जयपुर के रास्ते निकल जाते हैं। बिरले पर्यटक ही कोटा आते हैं। कारण स्पस्ट है कोटा में कोई भी आकर्षण का केंद्र नहीं है। पिछले कुछ सालों में इस दिशा में प्रयास किए गए और उम्मीद जागी है की अब विश्व के सैलानी कोटा की ओर रुख करेंगे और पर्यटन को पंख लगेंगे और विश्व पर्यटन में भी कोटा की नई पहचान बनेगी। कोटा में हवाइसेवा शुरू होने से भी पर्यटन को और भी बढ़ावा मिलेगा। चंबल रिवर फ्रंट और सिटी पार्क विश्व स्तरीय आकर्षण हैं।
चंबल नदी के किनारे हाल ही में विकसित चंबल रिवर फ्रंट पर्यटन का बड़ा आकर्षण हो गया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले एक महीने में ही जर्मनी के 14 सैलानियों का एक दल इसे देखने कोटा आया और लाखों पर्यटकों ने देखा। चंबल नदी के दोनों और करीब तीन-तीन किमी में निर्मित इस फ्रंट में कई देशों सहित राजस्थान के भव्य स्मारकों की प्रताकृतियां, संगीतमय फंवारें, सुंदर घाट और अनेक अन्य आकर्षण अत्यंत मोहक हैं। सैलानियों की सुविधा के लिए गोल्फ वाहन भी उपलब्ध हैं और नदी में नौकायन का अलग आनंद।
कोटा में पर्यटन की दृष्टि से झालावाड़ रोड़ पर सिटी पार्क जिसे ऑक्सिजोन पार्क भी कहा जाता है दूसरा बड़ा आकर्षण बन गया है। विभिन्न प्रजातियों के हज़ारों पेड़-पौधों के प्राकृतिक वातावरण में कृत्रिम झील में नौकायन, अनेक आकर्षक संरचनाएं, फाउंटेन आदि से यह सैलानियों को आकर्षित करने की पूरी शक्ति रखता है। यहां आकर पर्यटक शांति और सकून महसूस करते हैं।
कोटा के कोटड़ी तिराहे के समीप किशोर सागर तालाब के किनारे स्थित सेवन वंडर पार्क दुनियां के सात आश्चर्यों रोम का खेल स्टेडियम कोलेजियम, मिश्र के गीजा का ग्रेट पिरामिड, आगरा का ताजमहल न्यूयार्क के हार्बर टापू पर बनी लिबर्टी एनलाइटिंनिंग द वर्ल्ड मूर्ति, झुकी हुई पीसा की मीनार, क्राइस्ट द रिडीमर एवं एफिल टावर की प्रतिकृति से विकसित एक नायाब पार्क है। इस पार्क में ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ शूटिंग की गई जो खासी लोकप्रिय हुई। कोटा आने वाले सैलानी इस पार्क को देखने जरूर जाते हैं।
किशोर तालाब के मध्य जगमंदिर को देखने के लिए नोकायन् का भी अलग मज़ा है। किशोर सागर की खूबसूरत झील का निर्माण 14 वीं सदी में बूंदी के राजकुमार धीर देव ने कराया था।किशोर सागर का सम्पूर्ण परिक्षेत्र आज “शान-ए-कोटा“ बनगया है। इस परिक्षेत्र में कई धार्मिक स्थल भी आस्था के केंद्र है। बिजली की रौशनी में जगमगाता किशोर सागर का सीन पेरिस से कम नही लगता। इसे कोटा का मेरीन ड्राइव भी कहे तो अतिश्योक्ति नही होगी। तालाब की पाल के दूसरी ओर स्थित छत्र विलास उद्यान शहर के मध्य पुराना खूबसूरत पार्क है जिसने एक टॉय ट्रेन भी चलती है।
पाल पर ही जैसलमेर की सालिम सिंह की अनुकृति के रूप में स्वर्ण महल लुभाता है। इसे समीप की नयापुरा जाने वाली रोड पर स्थित राजाओं का क्षारबाग जिसमें राजाओं की समाधियों पर कलात्मक छतरियां दर्शनीय हैं। इन्हें समीप में स्थित पर्यटन कार्यालय से संपर्क कर देखा जा सकता है। इसी उद्यान में स्थित राजकीय संग्रहालय में हाड़ोती अंचल के पुरावशेष और मूर्तियों को देखा जा सकता है। इनमें बाड़ौली, दरा, अटरू, रामगढ़, विलास, काकोनी, शाहबाद, आगर, औघाड, मन्दरगढ़, बारां और गांगोभी से प्राप्त वैष्णव, शैव, जैन और लोक जीवन से संबंधित 150 से भी अधिक चुनिन्दा मूर्तियों का संग्रह हैं।
कोटा नगर के परकोटे के दरवाजे, प्रस्तर शिल्प और स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। कोटा राज्य के संस्थापक राव माधोसिंह ने ही गढ़ के साथ पहली बार परकोटे का निर्माण कराया जिसका बाद के शासकों ने विस्तार करवाया। परकोटे के साथ जुड़ा गढ़ महल , किशोरपुरा, कैथूनीपोल, सूरजपोल और लाडपुरा दरवाजे आज भी दर्शनीय हैं। हाल में हेरिटेज संरक्षण के अंतर्गत इन्हें संरक्षित कर आकर्षक बनाया गया है। गढ़ में स्थित राव माधो सिंह संग्रहालय शासकों के राजशाही सामानों और महलों मुख्य कक्ष अखाड़े के महल या दरबार हॉल, सिलहखाना एवं उसके बरामदे, अर्जुन महल, छत्र महल, बड़ा महल, भीम महल तथा आनन्द महल दर्शनीय हैं। कोटा आने वालों को इस जरूर देखना चाहिए।
चम्बल के किनारे कोटा में भीतरिया कुण्ड उद्यान, अधरशीला, गोदावरी धाम, चम्बल उद्यान, यातायात एवं जुरासिक पार्क, मोजी बाबा की गुफा आदि पर्यटकों का स्वागत करते नजर आते हैं। चंबल नदी पर बना कोटा बैराज, जवाहर सागर बांध एवं राणा प्रताप सागर बांध और इनके आस-पास का प्राकृतिक दृश्य अत्यन्त मनोरम है तथा नदी के मार्ग में अनेक ऐसे रमणीक स्थल हैं जहाँ पर्यटकों की लाया जा सकता हैं। कोटा से करीब 22 किमी पर गेपरनाथ एवं 24 किलोमीटर पर गरडिया महादेव नामक स्थान पर चम्बल नदी नयनाभिराम दृश्य का सृजन करती है। रावतभाटा में चम्बल के किनारे भैंसरोड़गढ़ का किला ऐसा लगता है जैसे नदी पर तैर रहा हो। यह दृश्य भी अत्यन्त लुभावना है। इस स्थान पर एवं ऐसे ही कुछ अन्य स्थानों का सर्वेक्षण किया जाकर वाटर स्पोर्ट्स पर आधारित गतिविधियां आरम्भ कर पर्यटन विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। कोटा के समीप 10 किलोमीटर पर रंगपुर गांव को छू कर बहती चम्बल नदी के उस पार केशवराय पाटन का प्रसिद्ध मन्दिर चम्बल में अपने प्रतिबिम्ब के साथ आकर्षित करता है।
कोटा बैराज से जवाहर सागर से तक चट्टानों के मध्य गहरी खाई के बीच बहती चम्बल नदी का आनन्द जीप द्वारा तटों पर यात्रा करते हुये अथवा बोट सफारी द्वारा यात्रा कर लिया जा सकता है। चट्टानों पर प्रजननरत ग़िद्ध एवं अन्य पक्षी देखे जा सकते हैं। कन्दराओं में रीछ एवं बघेरे भी दिखाई देते हैं। लंगूरों की अठखेलियां लुभावनी होती हैं। राजस्थान एवं मध्यप्रदेश में जहां नदी वर्षा के उपरान्त बहती है वहां पर मगरमच्छ, ऊदबिलाव, जंगली सुअर, लोमडी, गीदड़, जरख रीछ, सेही, गोह तथा सर्प देखे जा सकते हैं।
कोटा के पाटनपोल क्षेत्र में यूं तो मंदिरों की भरमार है, लेकिन यहां का बड़े मथुराधीश जी मंदिर देशभर में वल्लभ सम्प्रदाय का ऐसा एकमात्र स्थल है, जहां ’अखण्ड भूमंडलाचार्य श्रीमद् बल्लभाचार्य की चरण पादुका सेवित है, इसीलिए इसे की बड़ी गादी के रूप में मान्यता प्राप्त है। मंदिर में वर्तमान पीठाधीश गोस्वामी गोपाल लाल महाराज हैं। मंदिर में गौशाला, बगीचा, कचहरी डोल तिबारी है, तो निज तिबारी और निज मंदिर के साथ ही कीर्तन तिबारी भी है, जिसमें अलग-अलग अनुष्ठान होते हैं। इस बड़ी प्राचीन हवेली में विशाल कमल चौंक किसी बड़े आयोजन में एकत्र जनसमुदाय को भी आसानी से समेट लेता है। सिंहपोल तथा हथियापोल भी दर्शनीय है। सिंहपोल पर जहां शेर बने हैं, वहीं हथियापोल में गज स्थापित हैं। मुख्यद्वार पर तीन सीढिय़ां-राजस, तामस और सात्विक भावों का प्रतीक हैं।
कोटा शहर में डीसीएम मार्ग पर आठवीं शताब्दी का कंसुआ का शिव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में श्याम पाषाण का चतुर्मुख शिवलिंग स्थापित है, जिसकी प्रतिदिन पूजा की जाती है। मंदिर की विशेषता है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के भीतर 20-25 फुट स्थित शिवलिंग पर सीधी पड़ती है। मंदिर के परिक्रमा पथ में बांयी ओर की दीवार पर कुटिला लिपि में लिखा हुआ आठवीं शताब्दी का शिलालेख है, जिससे पता चलता है कि यह शिलालेख शिवगण मौर्य का है और निर्माण का विस्तार से वर्णन किया गया है। परिसर में भैरव की आदमकद प्रतिमा भी मंदिर की विशेषता है। भैरव की मूर्ति पर सिंदूर का चौला चढ़ाया जाता है। परिसर में कई शिवलिंग भी हैं, लेकिन यहां स्थित सहस्त्रमुखी शिवलिंग विशेष है। पुरातत्व की दृष्टि से इस मंदिर का अपना विशिष्ट महत्व है।
राजपरिवार द्वारा पूजनीय चामुण्डा स्वरूपा ईष्ट देवी डाढ़देवी का मंदिर डीसीएम मार्ग से होकर जाता है, जो कोटा शहर से करीब 20 किमी दूरी पर है। महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के समय से ही यहां दशहरा पर्व पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। चैत्र एवं शारदीय नवरा़त्रा के अवसर पर यहां मेले जैसा दृश्य रहता है और हजारों श्रद्धालु भक्ति-भाव से मां देवी के स्वरूप के दर्शन करते हैं। शिखरबंद मंदिर के गर्भगृह में चामुण्डा माता की खड़ी मुद्रा में प्रतिमा अपने आयुधों के साथ एक ऊंची चौकी पर स्थापित है। मंदिर का पूजा गृह एवं परिक्रमा पथ 22 अलंकृत स्तम्भों पर निर्मित है। मंदिर के पार्श्व में माता देवी सहित भैरव की प्रतिमाएं तथा मंदिर के सामने से दांयी ओर सिंह प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के सामने एक जलकुण्ड निर्मित है तथा जलकुण्ड के आगे माता का वाहन सिंह एवं हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का सिंहद्वार आकर्षक लगता है।
कैथून मार्ग पर मोतीपुरा गांव के समीप चरण चौकी आज प्रमुख वैष्णव तीर्थ बन गया है। यहां श्रीनाथ जी के चरण पूजे जाते हैं। श्रीनाथ जी के दिव्य विग्रह को 1970 में मोतीपुरा लाया गया। श्रीनाथ जी ने यहां 4 मास निवास किया। चरण चौकी की स्थापना वैष्णव संप्रदाय के नियमों के अनुसार भवन में की गई है, जहां से प्रभु के चरणों के दर्शन होते हैं।
कोटा से 25 किलोमीटर दूर चौमा गांव में गुप्तकालीन चारचौमा शिवालय भगवान शिव को समर्पित है। गुप्तकालीन होने से इस मंदिर को चौथी या पांचवीं सदी का माना जाता है। बाहर से देखने पर मंदिर साधारण शिखरबंद है तथा मंदिर में स्थित चतुर्मुख शिव प्रतिमा श्याम पाषाण से निर्मित है। यह प्रतिमा अत्यन्त ही आकर्षक है तथा इसकी विशेषता चारों मुखों के केशविन्यास में नजर आती है। वेदी से चोटी तक प्रतिमा की ऊंचाई करीब 3 फुट है। कंठ से ऊपर के चारों मुख काले और चमकीले हैं। यहां प्रतिदिन आरती होती है तथा महाशिवरात्रि पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और भगवान शिव के दर्शन कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
कोटा से करीब 55 किमी दूरी पर दरा राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य भी अपना विशिष्ठ स्थान रखते हैं। यहां बघेरा, भेड़िया, सियार, जंगली बिल्ली, लकड़बग्घा, रीछ, चीतल, नीलगाय, सहेली, मोर, मगरमच्छ, घड़ियाल, बन्दर, साम्भर मुख्य वन्यजीव हैं। वर्ष 1982 तक यहां बाघ पाये जाते थे। अब इसे पुनः बाघ संरक्षण क्षेत्र घोषित कर कई बार बाघ चोदे जा चुके हैं। यहाँ पर्यटन विकास की संभावानाएं बढ़ी हैं। दरा में पुरातत्व महत्व का स्थल भीमचौरी और अबली मीनी के महल भी देखे जा सकते हैं। भीमचौरी कभी भव्य शिवमंदिर था, परन्तु आज उसके स्तम्भों के रूप में अवशेष शेष रह गए हैं। यहां से प्राप्त झल्लरी वादक की एक नायाब और सुन्दर प्रतिमा कोटा के छत्रविलास स्थित राजकीय संग्रहालय में सुशोभित है।
राजस्थान के गिने-चुने सूर्य मंदिरों में कोटा से करीब 55 किलोमीटर दूर बूढादीत गांव में बना सूर्य मंदिर पुरातत्व की अमूल्य धरोहर है। पूर्वाभिमुख मंदिर शिखरबंद है। छोटे-छोटे उपशिखरों की श्रृंखला मंदिर की शोभा में चार चांद लगाती है। यह निरंधार शैली में निर्मित है। गर्भगृह के बाहर पूजागृह या सभा मण्डप निर्मित है, जो गर्भगृह से जुड़ा है। करीब 50 फुट ऊंचा मंदिर नवीं शताब्दी का माना जाता है। मूर्तियां अनेक स्थानों पर खंडित होने पर भी उनका आकर्षण बरकरार है। मंदिर की परिधि की दीवारों पर बनी बनी अनेक मूर्तियों के साथ पार्श्व में सात घोड़ों के रथ पर सवार सूर्यदेव की प्रतिमा दर्शनीय है।
पुरातात्विक महत्व के बाड़ोली के मंदिर अपनी स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला की दृष्टि से विशेष महत्व रखते है। बाड़ोली का मंदिर समूह कोटा शहर से रावतभाटा मार्ग पर करीब 45 किमी दूर चित्तोड़गढ़ जिले की सीमा में आता है।
आठवीं से ग्यारवीं शताब्दी के मध्य निर्मित यह मंदिर स्पष्ट करते हैं कि यहां कभी शैव मत का केन्द्र रहा होगा। मंदिर समूह परिसर में कुल 9 मंदिर स्थापित हैं। इनमें एक और आठ संख्या के मंदिर नवीं शताब्दी, 4,5,6 और 7 नम्बर के मंदिर दसवीं शताब्दी तथा मंदिर संख्या 2,3 व 9 दसवीं से ग्यारवीं शताब्दी के प्रारंभ के हैं। समूह में आठ मंदिर दो समूह में तथा एक से तीन मंदिर जलाशय के पास हैं। कोई भी मंदिर जगती पर नहीं बना है और न ही कोई प्रदक्षिणा पथ या घेरा है। तीन छोटे मंदिरों के अतिरिक्त सभी के गर्भग्रह पंचरथ हैं और पीठ में तीन सादी गढ़नें हैं जिनमें वास्तुशास्त्र की दृष्टि से कलश, कपोत व कुंभ निर्मित हैं। कपोत पर चैत्य गवाक्ष उर्त्कीण है। बाड़ोली मंदिर समूह में सबसे महत्वपूर्ण एवं सुरक्षित मंदिर घटेश्वर महादेव का है। मंदिर के गर्भग्रह से जुड़ा अन्तराल अर्थात अर्धमण्डप तथा इसके आगे रंगमण्डप (श्रृंगार चंवरी) बना है। गर्भग्रह में पंचायतन परम्परा में पांच लिंग योनि पर बने हैं। गर्भग्रह के ललाट बिम्ब पर शिव नटराज तथा शाखाओं पर द्वारपाल के उर्त्कीण एवं बाहरी ताखों में त्रिपुरान्तक मूर्ति, नटराज व चामुण्डा की मूर्तियां बनी हैं। गर्भग्रह पंचरथ प्रकार का है।
गर्भग्रह के प्रवेशद्वार के आधार एवं शीर्श पर कलात्मक प्रतिमाएं उर्त्कीण हैं। आधार पर गंगा, यमुना एवं शैव द्वारपाल बनाये गये हैं। अर्धमण्डप भी अत्यन्त कलात्मक है जो छः अलंकृत स्तंभो पर निर्मित है। यह एक खुले मण्डप के रूप में है जिसमें चारों तरफ से आयत बाहर निकले हैं। सभा मण्डप के एक भाग पर अलंकृत तोरण द्वार कला में विशिष्ट महत्व का है। सभा मण्डप के अष्टकोणीय स्तंभो पर घंटियों एवं प्रत्येक दिशा में विभिन्न मुद्रा में एक-एक अप्सरा की मूर्तियां आर्कषक रूप में तराशी गयी हैं। स्तंभों, मकर तोरण एवं अप्सराओं के अंकन की शैली खजुराहों के मंदिर के समान है। मंदिर का स्थापत्य भी कोणार्क एवं खजुराहों मंदिरों के सदृश्य है।
संभवतः भारत में कोटा जिले के कैथून में स्थित विभिषण का अकेला मंदिर है। कोटा से 16किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर तीसरी से पांचवीं शताब्दी के मध्य का बताया जाता है। प्रारंभ में यहां एक छतरी में विभिषण की धड़ से ऊपर तक की भव्य प्रतिमा विराजित थी, जिसे आज भव्य मंदिर का स्वरूप दे दिया गया है। होली के अवसर पर यहां विशेष रूप से मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि सुनार समाज के लोग विभिषण के प्रमुख भक्त हैं और वे यहां नियमित पूजा करते है।
इनके अलावा कोटा में चंद्रेसल मठ, आजमगढ़ गुरुद्वारा, खड़े गणेश जी मंदिर, गणेश उद्यान, अभेड़ा महल, बेलोजिकल पार्क, रंगबाड़ी का हनुमान मंदिर, केसर खां एवं डोकर खां मकबरे और कोटा के आस-पास अनेक दर्शनीय आदि अनेक दर्शनीय स्थल हैं। कोटा का दशहरा मेला देश में विख्यात है। हस्तशिल्प के क्षेत्र में कोटा डोरिया साड़ी, परंपरागत चित्र शैली के चित्र और कांच की कारीगरी के नमूने प्रसिद्ध हैं। कोटा दिल्ली – मुंबई बड़ी रेलवे लाइन का प्रमुख जंक्शन है। यहां रहने के लिए हर बजट के होटल उपलब्ध है। स्थानीय भोजन दाल, बाटी, चूरमा और मसाले की कचोरी प्रसिद्ध है। हर प्रकार का भोजन उपलब्ध है। स्थानीय परिवहन में टैक्सी, कैब और ऑटो रिक्शा की पर्याप्त उपलब्धता है। चंबल में बोट सफारी के लिए किशीरपुरा तालाब की चौपाटी स्थित बुकिंग केंद्र पर संपर्क किया जा सकता है।