Saturday, April 27, 2024
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अनुच्छेद 370 को हटाने के फ़ैसले पर मुहर लगानी ही थी सुप्रीम कोर्ट को

देश के लिए अनुच्छेद 370 और 35A नासूर की तरह थे। 75 साल से देश उसके दर्द को सह रहा था। इसलिए जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की टीम ने इन दोनों अनुच्छेदों को इतिहास का हिस्सा बनाने का फ़ैसला किया को एक स्वर से देश की समूची जनता ने उस फ़ैसले का स्वागत किया। जो फ़ैसला देश की सर्वोच्च पंचायत यानी संसद में लिया गया और उस पर राष्ट्रपति की मुहर लगी, उस फ़ैसले पर देश की सबसे बड़ी अदालत टिप्पणी कैसे कर सकती थी। इस अतिसंवेदनशील मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने परिपक्व ज्यूडिशियरी की जिम्मेदारी निभाते हुए अनुकूल निर्णय लिया।

सोमवार का दिन इस लिहाज़ से अच्छा दिन था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने के केंद्र सरकार के चार साल पुराने फ़ैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फ़ैसला देते हुए इस सीमावर्ती राज्य में 75 साल से लागू अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने का फ़ैसले को सही बताया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इतना ज़रूर कहा कि जितनी जल्दी संभव हो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाना चाहिए।

यह सही भी है। अब तक कश्मीरी नेता अनुच्छेद 370 और 35A के नाम पर देश को ब्लैकमेल करते थे। मुस्लिम परस्त कांग्रेस की सरकार को हड़का देते थे। नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनकी ब्लैकमेल करने की आदत जस की तस रही। इसीलिए जब जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने की आहट सुनते ही उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ़्ती ने देश को खुली धमकी दे डाली कि राज्य के विशेष दर्जे से ज़रा भी छेड़छाड़ की गई तो देश में आग लग जाएगी।

इन कश्मीरी नेताओं को लगा नरेंद्र मोदी सरकार भी उनकी धमकी से डर जाएगी और कांग्रेस सरकारों की तरह बैक फुट पर आ जाएगी, लेकिन 5 अगस्त 2019 को जब पता चला कि वे तो अपने घर में क़ैद कर लिए गए हैं। पूरी दुनिया से काट दिए गए है। न उनका फोन काम कर रहा है और न ही इंटरनेट तब इन लोगों को अपनी हैसियत का पता चला। उन्हें यह संदेश मिल गया कि देश में अलग मिज़ाज़ की सरकार है। जो इस तरह की बंदर-घुड़कियों से कतई नहीं डरती। उन्हें पता चला कि उनकी धमकी के कारण 75 साल से विशेष दर्जे का सुख भोगने वाला सूबा राज्य का दर्जा भी गंवा बैठा और केंद्र शासित प्रदेश बन गया।

फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से लिए गए केंद्र के फ़ैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है। अनुच्छेद 370 युद्ध जैसी स्थिति में अंतरिम प्रावधान था। इसके टेक्स्ट को देखें तो भी पता चलता है कि यह संविधान का अस्थायी प्रावधान था।” सुप्रीम कोर्ट की यह सटीक टिप्पणी थी। अलबत्ता देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह ज़रूर कहा कि केंद्र सरकार को अगले साल सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए क़दम उठाने चाहिए। राज्य का पूर्ण राज्य का दर्जा जितनी जल्दी बहाल किया जा सकता है, कर देना चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय किशन कौल, बीआर गवई और सूर्यकांत की पांच सदस्यों की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए आदेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फ़ैसले को बिल्कुल वैध माना। दरअसल, अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के ख़िलाफ़ याचिकाकर्ताओं की ओर से यह दलील भी दी थी कि राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र सरकार राज्य की तरफ़ से इतना अहम फ़ैसला नहीं ले सकती है।

इस पर कमेंट करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के पास आंतरिक संप्रभुता का अधिकार नहीं है। देश के राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 हटाने का पूरा अधिकार है। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफ़ारिशें राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं हैं और भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हो सकते हैं। राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 (3) के तहत राष्ट्रपति को 370 को निष्प्रभावी करने का अधिकार है।

संविधान पीठ ने 16 दिनों तक चली जिरह के बाद अदालत ने पिछले पाँच सितंबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में कुल 23 याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिका में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटने के निर्णय को रद्द करने की मांग की गई थी। तर्क दिया गया था कि यह राज्य की जनता की इच्छा के ख़िलाफ़ है। वैसे कश्मीरी नेताओं रो संसद के फ़ैसले को चुनौती नहीं देनी चाहिए थी, क्योंकि घाटी ख़ुशहाली के दौर से गुजर रही है। पिछले 4 साल में 2 करोड़ पर्यटक वहां घूमने गए अनुच्छेद 370 और 35A और 100 से ज़्यादा फिल्मों की शूटिंग हुई।

केंद्र की बीजेपी सरकार ने देश की जनता से किए गए वादे को निभाते हुए जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के दौरान ही 5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त कर के जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया था। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता और भारतीय संविधान की उपयोगिता को राज्य में सीमित कर देता था। संविधान के अनुच्छेद-1 के अलावा, जो कहता है कि भारत राज्यों का संघ है, कोई अन्य अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था। जम्मू कश्मीर का अपना एक अलग संविधान था।

अनुच्छेद 370 में यह भी कहा गया था कि भारतीय संसद के पास केवल विदेश मामलों, रक्षा और संचार के संबंध में राज्य में क़ानून बनाने की शक्तियां हैं। इस अनुच्छेद में इस बात की भी सीमा थी कि इसमें संशोधन कैसे किया जा सकता है। इस अनुच्छेद में कहा गया था कि इस प्रावधान में राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से ही संशोधन कर सकते हैं। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का गठन 1951 में किया गया था। इसमें 75 सदस्य थे। राज्य की संविधान सभा ने जम्मू-कश्मीर के संविधान का मसौदा तैयार किया था। ठीक उसी तरह जैसे भारत की संविधान सभा ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया था।

राज्य के संविधान को अपनाने के बाद नवंबर 1956 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व ख़त्म हो गया था। बहरहाल, 5 अगस्त 2019 को गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में अनुच्छेद 370 और 35A को ख़त्म करने का प्रस्ताव पेश किया। उसी दिन राज्य में कर्फ्यू लगाकर टेलीफोन नेटवर्क और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं। राजनीतिक दलों के नेताओं समेत हज़ारों लोगों को या तो हिरासत में ले लिया गया या गिरफ्तार किया गया या नज़रबंद कर दिया गया।

इसस पहले जून 2018 में, भाजपा ने पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद राज्य छह महीने तक राज्यपाल शासन और फिर राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा। सामान्य परिस्थितियों में इस संशोधन के लिए राष्ट्रपति को राज्य विधानमंडल की सहमति की ज़रूरत होती, लेकिन राष्ट्रपति शासन के कारण विधानमंडल की सहमति संभव नहीं थी। इस आदेश ने राष्ट्रपति और केंद्र सरकार को अनुच्छेद 370 में जिस भी तरीक़े से सही लगे संशोधन करने की ताक़त दे दी।

6 अगस्त 2019 को राष्ट्रपति ने एक और आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कि भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे। इससे जम्मू कश्मीर को मिला विशेष दर्जा ख़त्म हो गया। 9 अगस्त 2019 को, संसद ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाँटने वाला एक क़ानून पारित किया। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा है, लेकिन लद्दाख में नहीं है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद सही मायने में अनुच्छेद 370 और 35A इतिहास बन गए।

इसे भी पढ़ें – देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की दस्तक

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