Wednesday, December 25, 2024
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टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / १०

*बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / २*

(जाने माने इतिहास लेखक व राजनीतिक चिंतक प्रशांत पोळ ने भारत विभाजन के दौर की घटनाओँ पर जबर्दस्त शोध किया है और पाकिस्तान बनने और उसके बाद के घटनाक्रमों पर कई ऐतिहासिक साक्ष्य जुटाएं हैं , उनके इस अभिनव कार्य की दसवीं और ग्यारहवीं कड़ी में प्रस्तुत है बलूचिस्तान के लोगों द्वारा पाकिस्तान द्वारा जबरन कब्जा किए जाने का विरोध और भारत व बलूचिस्तान का ऐतिहासिक भौगोलिक व सांस्कृतिक महत्व )

बलूचिस्तान को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया हैं. विस्तीर्ण भू प्रदेश हैं, जिसमे रेगिस्तान हैं, जंगल हैं, दर्रे हैं, समंदर हैं, बर्फ हैं…! सब कुछ हैं, इस प्रदेश में. पाकिस्तान का आधे से थोड़ा कम हिस्सा याने बलूचिस्तान. लेकिन जनसंख्या के मामले में मात्र बहुत कम. पाकिस्तान का हर पांचवा आदमी बलूचिस्तान से होता हैं.

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राजधानी क्वेट्टा, बेहद खूबसूरत शहर हैं. यह फलों का शहर हैं. शहर के चारों ओर फलों के बगीचे. भरपूर फल, सूखे मेवों से सजे बाजार और शाम की ठंडी हवाएं. किसी समय क्वेट्टा ‘छोटा पेरिस’ कहलाता था. लेकिन आज नाही. आज क्वेट्टा, बमों के धमाकों से पहचाना जाता हैं.

पाकिस्तान को जो ९९० किलोमीटर का सागर किनारा मिला हुआ हैं, वह दो राज्यों के पास हैं – सिंध (२७० किलोमीटर) और बलूचिस्तान (मकरान ७२० किलोमीटर). सिंध के पास कराची जैसा विशाल बंदरगाह हैं, तो बलूचिस्तान के पास, अभी – अभी चीन का बनाया हुआ अत्याधुनिक ग्वादर बंदरगाह हैं.

कराची से ईरान की तरफ यदि हम अरेबियन समुद्र के किनारे से, ओमान की खाड़ी में बढ़ते जाते हैं, तो बलूचिस्तान राज्य के सोनमियानी, ओरमारा, कालमत, पासनी ऐसे बंदरगाह आते हैं. लेकिन ईरान की सीमा के पास, ओमान के सामने बना ग्वादर बंदरगाह भव्यतम हैं. यह बंदरगाह याने बलूचिस्तान की आजादी के रास्ते में खड़ी एक दीवार हैं…! *चूंकि ग्वादर बंदरगाह का विकास चीन ने किया हैं, इसलिए इस बंदरगाह की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी चीन ने ली हैं। अगले चालीस वर्षों का ग्वादर का स्वामित्व (लीज) चीन के पास हैं। इसलिए चीन वहाँ अपनी नौसेना का अड्डा बना रहा हैं।* इसी संदर्भ में दो महीने पहले, पाकिस्तान के नौसेना प्रमुख, अमजद खान नियाजी और चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफ़ू के बीच रक्षा सहयोग पर सहमति बनी हैं। इसका अर्थ स्पष्ट हैं – ग्वादर और उसके आस पास के समुद्री इलाके में चीनी फौजों की संख्या बढ़ने जा रही हैं। बलोचिस्तान के लोगों को यह सब पसंद नहीं हैं। गुलामी की जंजीरे जकड़ती जा रही हैं, ऐसा उन्हे लगता हैं।

*ग्वादर बंदरगाह यह चीन की महत्वाकांक्षी सी पी ई सी (China Pakistan Economic Corridor) परियोजना का हिस्सा हैं। ग्वादर को चीन के शिंजियांग प्रांत से जोड़ने के लिए चीन, २४४२ किलोमीटर का आधुनिक रास्ता, पाकिस्तान में बना रहा हैं। चीन को लगने वाला तेल (पेट्रोलियम पदार्थ) और मछली, चीन ग्वादर से, सड़क मार्ग से, अपने देश तक लेकर जाना चाहता हैं। किन्तु बलोच लोगों के विरोध से, और पाकिस्तानी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार से यह रास्ता पूरा नहीं बन पाया हैं। बलोचिस्तान के नागरिक इस परियोजना का और चीनी नागरिकों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।*

बलूचिस्तान किसी जमाने में विशाल भारत का हिस्सा था. इससे पहले हमने देखा हैं की समूचा बलूचिस्तान, उन दिनों गांधार महाजनपद का हिस्सा था. किन्तु बलूचिस्तान के आज भी भारत से काफी निकट के संबंध हैं, रिश्ते हैं. एक संबंध, हजारो वर्ष पुराने रिश्तों की कड़ीयाँ जोड़ता हैं. *बलूचिस्तान के कलात में जो ब्राहुई भाषा बोली जाती हैं, वह अपने दक्षिण भारत की द्रविडियन भाषा का ही एक प्रकार हैं. तमिल, कन्नड और तेलगु से बहुत कुछ मिलती – जुलती हैं. इस भाषा के अनेक शब्द तामिल, कन्नड भाषाओं से लिए गए हैं.* त्रिचनापल्ली के एक मित्र ने बताया की उसने जब यह ब्राहुई भाषा की यू-ट्यूब चैनल देखी, तो उसे बहुत कुछ समझ में आया. कुछ समान शब्द –
तुम (You) – नी
आंखे (Eye) – कन
थूकना (Spit) – थुप्पू
पुत्र – लड़का (Son) – मखम यार

रोबर्ट कॉलवेल्ड (१८१४ – १८९१) ने इन दोनों भाषाओं की समानता पर बहुत अध्ययन किया हैं. उन्होने यह प्रमाणित किया हैं की ब्राहुई भाषा में तामिल एवं कन्नड के अनेक शब्द हैं. साथ ही दोनों भाषाओं की शैली भी एक जैसी हैं. किन्तु कालांतर से ब्राहुई भाषा, फारसी लिपि में लिखी जाने लगी हैं.

*बलूचिस्तान से भारत का दूसरा रिश्ता पिछले ढाई सौ – पौने तीन सौ वर्ष पुराना हैं.* पानीपत के तीसरे युध्द में अहमद शाह अब्दाली के हाथों पराजित होने के बाद, मराठा सेना के लगभग बीस – पच्चीस हजार सैनिकों और महिलाओं को अब्दाली अपने साथ ले गया. रास्ते में पंजाब में सीख सेनानियों ने कुछ महिलाओं को तो छुड़वा लिया, किन्तु बाकी मराठों को बंदी बनाकर ले कर जाने में वह सफल रहा. अब्दाली का रास्ता बलूचिस्तान होकर जाता था. पानीपत के युध्द में, लूट और खजाना मिलने की आशा में, उसे बलूच सरदारों ने काफी सहयोग दिया था. इस पानीपत के युद्ध में मराठे हारे तो अवश्य, किन्तु उन्होंने इतना जबरदस्त संघर्ष किया, की अब्दाली के हाथ कुछ ज्यादा न लग सका. इसलिए अब्दाली ने खजाने के बदले, सभी बीस – पच्चीस हजार मराठे, गुलाम के रूप में, बलूच सरदारों को दे दिये. वस्तुतः पानीपत के युध्द में अब्दाली की हालत बहुत खराब हो गई थी. वो जीत जरूर गया था, लेकिन उसकी कमर टूट गई थी. (इसीलिए, अब्दाली के बाद, किसी ने भी खैबर के दर्रे से भारत पर आक्रमण की हिम्मत नहीं की). अब्दाली को इन बीस – पच्चीस हजार मराठा कैदियों को ढो कर अफगानिस्तान ले जाना संभव ही नहीं था.

*वे बीस – पच्चीस हजार मराठा सैनिक वही बस गए. पहले बुगती और मर्री समुदाय के नौकर के रूप में रहने वाले मराठा सैनिक, बाद में अपने बलबूते पर उन्ही समुदायों के हिस्सा बन गए.*

*आज लगभग २५ लाख मराठा, बुगती और मर्री समुदाय में हैं. ये सब मुस्लिम हो गए हैं, लेकिन अपने मूलाधार भूले नहीं. ये सब अपने नाम के आगे ‘मराठा’ लिखते हैं. उनके बहुत से रीति रिवाज, विवाह पध्दती, महाराष्ट्र की परंपरा से मिलते जुलते हैं.* उनका एक संगठन हैं – ‘मरहट्टा कौमी इत्तेहाद ऑफ बलोचिस्तान’ (Marhtta Qaumii Ittehad of Balochistan). इस समुदाय के प्रमुख व्यक्ति हैं – वडेरा दीन मुहम्मद मराठा (जमींदार दीन मुहम्मद मराठा). डेरा बुगती और सुई हिन्दू समुदाय, इन वडेरा दीन मुहम्मद साहब को इज्जत और सम्मान देता हैं.

इन सब की स्वाभाविक कड़ी, पाकिस्तान के साथ नहीं जुड़ती हैं. बहुत पहले से बलूचिस्तान अलग था. और इसीलिए आज भी इनको पाकिस्तान के साथ रहना नहीं हैं.

और भी कारण हैं. …

बलूचिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों का भंडार हैं. विशेषतः प्राकृतिक गॅस बड़े पैमाने पर निकलती हैं, जो पाकिस्तान सरकार के आमदनी का बड़ा हिस्सा हैं. लेकिन जहां से यह गॅस निकलता हैं, उस बलूचिस्तान के पास उस आमदनी का अत्यंत नगण्य ऐसा, छोटा सा हिस्सा आता हैं. इस कारण बलूचिस्तान प्रांत में विकास का चित्र कही दिखता नहीं हैं. अभी कुछ वर्षों में ग्वादर बंदरगाह पर जानेवाला जो एक्सप्रेस-वे चीन ने बनाया हैं, उसे छोड़ा दिया जाय, तो बलूचिस्तान में आज भी आधारभूत संरचना (इनफ्रास्ट्रक्चर) की भारी कमी हैं.

*और इसीलिए बलूच लोगों ने, २७ मार्च १९४८ को, जब पाकिस्तान ने उसे बलात अपने कब्जे में लिया, तब से पाकिस्तान के विरोध में विद्रोह का स्वर बुलंद किया हैं.*

टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / ११

*बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / ३*

बलुचोंका पहला संघर्ष १९५५ तक चला. बाद में १९५८ – १९५९ में दूसरी बार बलूच लोगों ने विद्रोह किया. तीसरा संघर्ष साठ के दशक में हुआ. पाकिस्तान के दो टुकड़े होने के बाद चौथा संघर्ष १९७३ – १९७७ के बीच हुआ.

इन सभी संघर्षों में कोई एक व्यक्ति सामने आता था, बलूच लोगों को संगठित करता था और पाकिस्तान सरकार से संघर्ष करता था. यही स्वरूप कमोबेश सभी संघर्षों का रहा. किन्तु इक्कसवी शताब्दी के प्रारंभ में यह चित्र बदला. बलुचों ने अपना एक संगठन बनाया, जो सरकार से लड़ सके. और उसके बाद तो इतिहास बदल गया….

*सन १९७३ – ७४ के पाकिस्तानी सेना और बलूच गुरिल्लों के बीच हुए भीषण संघर्ष ने अनेक समीकरण बदल दिये. इसी संघर्ष के परिणामस्वरूप, बलूच लोगों का आतंकवादी संगठन – ‘बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी’ खड़ा हुआ. वर्तमान में पाकिस्तान, ब्रिटन और अमेरिका ने इस संगठन को ‘आतंकवादी संगठन’ घोषित किया हैं.*

वैसे आधिकारिक रूप से यह संगठन सन २००० में अस्तित्व में आया. किन्तु इसका अनौपचारिक गठन, १९७३ से प्रारंभ हुए बलूचिस्तान के सशस्त्र स्वातंत्र्य युध्द के समय ही हो गया था. ऐसा माना जाता हैं की सोवियत रशिया की जासूसी एजेंसी के दो जासूसों ने, इस संगठन को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसलिए प्रारंभ में बी एल ए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) का झुकाव मार्क्सवाद की ओर था. इनके कुछ अधिकारियों को रशिया ने मॉस्को में प्रशिक्षण भी दिया था. किन्तु कालांतर में इन लड़ाकुओं के दिमाग से साम्यवाद का भूत जाता रहा. मुख्यतः बुगती और मर्री, इन दो प्रमुख समुदायों में से ही बी एल ए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) का नेतृत्व उभरा हैं.

चीन के वन बेल्ट – वन रोड परियोजना प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले, पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने की योजना बनाई. अर्थात इस योजना के पीछे चीन था. आर्थिक रूप से और सामरिक रूप से भी. ग्वादर बंदरगाह चीन को ही विकसित करना था. इसलिए उसने बड़ी संख्या में चीनी मजदूर ग्वादर में भेजे. सन २००४ में बी एल ए ने इन चीनी मजदूरों पर जबरदस्त आक्रमण किया. चीन के दवाब मे, पाकिस्तान को यहाँ पर बीस हजार अतिरिक्त जवान तैनात करने पड़े.

दिनों दिन बी एल ए अस्त्र – शस्त्रों के मामले में शक्तिशाली हो रही थी. अभी भी पाकिस्तान में इस संगठन पर प्रतिबंध नहीं था. *लेकिन १५ दिसंबर २००५ की उस आतंकवादी घटना ने सारे समीकरण बदल दिये. उस दिन जनरल मुशर्रफ, बलूचिस्तान के दौरे पर थे. वह कोहलू एजेंसी इलाके में स्थानीय वनवासियों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे. तभी, भरी सभा में रॉकेट गिरने लगे. मुशर्रफ बाल बाल बचे. अनेक लोगों की मौत हुई. घटना के दो घंटे बाद, क्वेट्टा के प्रेस क्लब में ‘मिराक बलूच’ का फोन आया. उसने कहा की ‘वह बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का प्रवक्ता हैं, और कोहलू में उन्होने ही रॉकेट दागे हैं. ‘*

इस घटना ने पाकिस्तानी सेना को विचलित कर दिया. उन्होने बलूचिस्तान में कड़े कदम उठाए. अनेक बलूचियों को बी एल ए की संबंधता के संदेह पर सीधे मार डाला. अनेकों को कैद में डाला. ७ अप्रैल, २००६ को पाकिस्तान ने बी एल ए पर प्रतिबंध लगाया. इसी को देखकर ब्रिटेन ने १७ जुलाई, २००६ को बी एल ए को प्रतिबंधित किया. हालांकि ब्रिटेन ने बी एल ए के नेता हर्बीयार मर्री को शरणार्थी के रूप में राजनीतिक शरण दी हैं. लेकिन पाकिस्तान के सबसे निकट के मित्र अमेरिका ने काफी विलब के बाद, २ जुलाई २०१९ में बी एल ए पर पाबंदी लगाई.

लेकिन प्रतिबंध के बाद, बी एल ए की हिंसक गतिविधियों में जबरदस्त वृध्दि हुई –
• १४ जून २०१९ को उन्होने कलात के एक स्कूल टीचर को गोली से उड़ा दिया. उसने बलूच राष्ट्रगीत गाने से मना किया, और यही उसके मौत का कारण बना.
• इस घटना के डेढ़ महीने बाद, बी एल ए की लड़ाकुओं ने १७ पाकिस्तानी पुलिस कर्मियों को अगवा कर लिया. यह करते समय एक पुलिस कर्मी को वही मार गिराया. तीन सप्ताह बाद, बी एल ए के लड़ाकुओं ने उन १५ पुलिस कर्मचारियों को मार गिराया और सोलहवे को यह दर्दनाक दास्तां सुनाने छोड़ दिया.
• ऐसी अनेक आतंकवादी घटनाएं हैं, जिसे बी एल ए ने अंजाम दिया हैं.

*विशेषतः बी एल ए के हमले चीनी अधिकारियों, मजदूरों और पाकिस्तानी सेना / पुलिस पर ही होते हैं. बलूच लोगों में पाकिस्तानियों के प्रति इतनी ज्यादा नफरत हैं, की बी एल ए के हमलावरों ने १५ जून २०१३ को बलूचिस्तान के झियारत में स्थित ‘कायदे आझम रेसिडेंसी’ (जिसे ‘झियारत रेसिडेंसी’ भी कहा जाता हैं), को रॉकेट के सहारे तबाह कर दिया.* इस स्थान पर पाकिस्तान के संस्थापक, कायदे – आझम जीना, उनके जीवन के अंतिम क्षणों में रुके थे.

(हालांकि नवाज शरीफ के मुख्यमंत्री रहते, अगले एक वर्ष में ही, इस झियारत रेसिडेंसी को पुनः पहले के स्वरूप में बांधा गया. )

इन बीस वर्षों के प्रवास में बी एल ए में अनेक उतार – चढ़ाव आए. टूट फूट भी हुई. किन्तु फिर भी, आज भी बी एल ए, बलूचिस्तान को स्वतंत्र कराने, हिंसक रूप से संघर्षरत हैं.

बी एल ए के अलावा ‘बलोच लिबरेशन फ्रंट’ भी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत हैं. किसी जमाने में ताकतवर रहा यह लड़ाकू संगठन, डॉ. जुम्मा खान मर्री ने सन १९६४ में बनाया. तब वे दमास्कस (सीरिया) में थे. इसलिए इसका मुख्यालय दमास्कस ही था. बाद में अफगानिस्तान और रशिया की मदद से, बी एल एफ का मुख्यालय अफगानिस्तान बना.

लेकिन बाद में डॉ. जुम्मा खान के साथ पाकिस्तानी अधिकारियों ने सब ठीक से जमा लिया. इसलिए बी एल एफ के अनेक लड़ाकू सैनिक, बी एल ए में शामिल हो गए, और जुम्मा खान को पाकिस्तानी सेना ने भारत के विरोध में बोलने के लिए बाध्य किया.

*अर्थात यह बात जरूर हैं की बलूचिस्तान के लोगों में पाकिस्तान के प्रति समर्पण की भावना न पहले कभी थी, न अब हैं. आज भी बलूच नागरिक विविध माध्यमों से अपने स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रहा हैं.* किन्तु यह अब कठिन हो चला हैं. बलूचिस्तान के एक बड़े भूभाग पर चीन का अप्रत्यक्ष कब्जा हैं. ग्वादर बन्दरगाह तो उनका हैं ही, साथ में चीन – पाकिस्तान का जो आर्थिक कॉरिडोर बन रहा हैं, उसका बहुत बड़ा हिस्सा, बलूचिस्तान से गुजरता हैं. बलूचिस्तानके चौथे बडे शहर, ‘हब’ में चीन १३२० मेगा वॉट का पॉवर प्लांट लगा रहा हैं, जिसकी लागत ९७० मिलियन यू एस डॉलर्स हैं. ग्वादर में भी उसने ३३० मेगा वॉट का पावर प्लांट लगाया हैं. ग्वादर बंदरगाह तक बन रहे एक्सप्रेस वे का पूरा खर्चा चीन उठा रहा हैं. अपने इस निवेश को सुरक्षित रखने के लिए, चीन की पुरजोर कोशिश हैं, की बलूचिस्तान में अलगाववादी तत्वों का खात्मा हो.

इसलिए अभी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता चाहने वालों को केवल पाकिस्तान से नहीं लड़ना हैं. चीन से भी उनको दो – दो हाथ करने पड़ेंगे…!
(क्रमशः)
– प्रशांत पोळ

 

एक निवेदन

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