भारतीय अमेरिकी नासा वैज्ञानिक मधुलिका गुहाठाकुर्ता से जानिए सूर्य पर उनके अध्ययन, पृथ्वी पर उसके असर और अंतरिक्ष के मौसम के निर्धारण पर प्रभावों के बारे में।
मधुलिका गुहाठाकुर्ता नासा में प्रोग्राम साइंटिस्ट है और उन्होंने नासा में 16 साल तक लिविंग विद ए स्टार प्रोग्राम का नेतृत्व किया है।
मधुलिका गुहाठाकुर्ता नासा (नेशनल एयोरनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) मुख्यालय में प्रोग्राम साइंटिस्ट और नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के हेलियोफीजिक्स डिवीजन की नई पहलों के लिए वरिष्ठ सलाहकार हैं। पिछले दो दशकों से गुहाठाकुर्ता ने हेलियोफीजिक्स के विकास को समन्वित विज्ञान विषय बनाने में किए गए प्रयासों का नेतृत्व किया है।
गुहाठाकुर्ता 16 वर्षों तक नासा के लिविंग विद ए स्टार (एलडब्लूएस) प्रोग्राम की लीड प्रोग्राम साइंटिस्ट रही जिसमें सौर विकिरण में बदलाव और पृथ्वी पर उसके असर का अध्ययन किया गया। एलडब्लूएस प्रोग्राम के लीड के नाते गुहाठाकुर्ता ने सोलर डायनमिक्स ऑब्ज़र्वेटरी, जिससे सूर्य को और करीब से देखने में मदद मिली, सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशंस ऑब्जर्वेटरी, जिसने हमें सूर्य की पहली 3 डी तस्वीर दी और हाल ही में सोलर ऑरबिटर मिशन- जो कि नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग मिशन है, जैसे प्रमुख मिशनों के विकास कार्य पर निगाह रखी। इन सभी मिशनों से हमें सौर प्रणाली और सूर्य के उस पर प्रभाव एवं सूर्य के बारे में हमारी समझ को लेकर क्रांतिकारी जानकारियां सामने आईं।
गुहाठाकुर्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय से खगोल भौतिकी विषय में मास्टर्स डिग्री हासिल की है, जबकि डेनेवर यूनिवर्सिटी, कलैराडो से उन्होंने सोलर फिजिक्स में पीएच.डी. की है।
प्रस्तुत हैं उनसे साक्षात्कार के मुख्य अंश:
क्या आप हमें अपने नासा तक पहुंचने की शैक्षिक और पेशेवर यात्रा के बारे में कुछ बताएंगीं?
यह एक लंबी यात्रा थी। भारत में बड़ी होती एक छोटी लड़की के रूप में मैंने चांद पर मानव के कदमों को पड़ते देखा। उन दिनों में मेरे मन में अमेरिका, नासा और यहां तक कि विज्ञान अपने आप में महज अवधारणाएं हुआ करते थे। अब जबकि मैं आपसे बात कर रही हूं, मैं अपने आपको उस संगठन का अभिन्न हिस्सा पाती हूं। और विज्ञान के माध्यम से हम हर दिन कुछ न कुछ नई खोज करते हैं, हम अंतरिक्ष में गए हैं और सूर्य को भी हमने छू लिया है।
जो चीजें कभी स्कूल जाने वाली एक छोटी भारतीय लड़की के लिए बहुत बड़ी और अजेय दिखा करती थीं, वे अब मेरे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। मुझे ऐसा करने का सौभाग्य अपने शानदार और प्रतिभाशाली सहयोगियों के साथ की वजह से मिला- इसमें हर तरह और विभिन्न दृष्टिकोण के लोग हैं।
आपने खगोल भौतिकी के अध्ययन का विकल्प ही क्यों चुना?
बहुत पहले, शायद मेरी दादी के गुजर जाने के बाद मुझे बताया गया कि वह आसमान में एक तारा बन गई हैं, तभी से मैंने रात में आकाश को निहारना शुरू कर दिया। उसके बाद मैं लगातार अपने पिता से पूछा करती थी कि, ‘‘हम कहां से आते हैं?’’ और ‘‘मरने के बाद क्या होता है?’’ मेरे पिता भरसक कोशिश करते थे कि मुंह बंद कराने के बजाए 6 साल की बच्ची को तार्किक तरीके से समझाया जा सके। उन्होंने एक गोला यानी एक वृत्त बनाया और मुझसे पूछा कि, ‘‘क्या तुम मुझे यह बता सकती हो इस गोले की शुरुआत कहां से हो रही है और यह खत्म कहां हो रहा है।?’’ बस यही बात में जहन में अटक गई।
पहेलियां सुलझाना, खेल खेलना, डायनासोर के बारे में पढ़ना, तारामंडलों की यात्रा, रात में आकाश को निहारना- मेरे आसपास की दुनिया ने मुझे वैज्ञानिक बनने के लिए प्रेरित किया। बड़े होने पर मुझे ब्रह्मांड विज्ञान ने भी आकर्षित किया- मुझे विज्ञान को दर्शन और अध्यात्म से जोड़ना बहुत पसंद था।
एलडब्लूएस प्रोग्राम की लीड होने के नाते गुहाठाकुर्ता ने पार्कर सोलर प्रोब के विकास के काम को देखा- यह मिशन था सूर्य को छूने का। पार्कर सोल प्रोब सूर्य के वायुमंडल से गुजरती है, सतह के इतनी करीब कि अब तक कोई विमान इतना करीब नहीं गया, भयंकर गर्मी और विकिरण को झेलते हुए, लोगों को इस तारे के बारे में करीबी अनुभव प्रदान करने के लिए। 12 अगस्त 2018 को प्रक्षेपित इस प्रोब में इसे सूर्य के करीब कक्षा में लाने के लिए सात साल में सात बार पास से गुजरने पर शुक्र ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल किया गया। (फोटोग्राफः साभार नासा)
क्या आप हमें लिविंग विद ए स्टार पहल में अपने काम के बारे में बताएंगीं?
पिछले दो दशकों से, मैंने हेलियोफीजिक्स के विकास को विज्ञान के अभिन्न हिस्से के रूप में मान्य कर दिया है, जिसकी वजह से अपने ब्रह्मांड के बारे में मलभूत खोजों का सीधा लाभ समाज को उपलब्ध होता है। लिविंग विद ए स्टार प्रोग्राम की लीड होने के कारण, मैंने, कई प्रमुख मिशनों की सफलता में योगदान दिया है। इनमें, पृथ्वी की विकिरण परिधि में खतरनाक ऊर्जा कणों से संबंधित वैन एलेन पड़ताल और पार्कर सोलर पड़ताल के माध्यम से सूर्य को छूने जैसे मिशन शामिल हैं।
नवाचार और वैज्ञानिक खोज में तेजी लाने के मकसद से, मैंने पारंपरिक अध्ययन क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिकों को उनके दायरे से बाहर ले जाते हुए उनके लिए फंडिंग व्यवस्था को तैयार करने में मदद दी। हमारे पास अब एलडब्लूएस सिस्टम है जिसे लक्षित शोध और टेक्नोलॉजी प्रोग्राम और अपने लक्ष्य पर केंद्रित वैज्ञानिकों की उस टीम के रूप में जाना जाता है जो प्रतिस्पर्धी तो हैं, लेकिन वैज्ञानिक विचारों और तकनीक की साझेदारी वाले सहयोगी माहौल को प्रोत्साहित करती है।
हेलियोफीजिक्स के क्षेत्र में अगली पीढ़ी का नेतृत्व करने वालों को तैयार करने की दृष्टि से मैंने जैक एडी फेलोशिप प्रोग्राम को बनाने में मदद की, जो होनहार शोधकर्ताओं के पेशेवर विकास का महत्पूर्ण चैनल बनने के साथ कई महिला वैज्ञानिकों के कॅरियर को प्रोत्साहित करने में सफल रहा है।
क्या आपको एक महिला होने के कारण स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग एंड मैथ्स) के अध्ययन को लेकर किसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा?
मैं यह कहने में असहज महसूस कर रही हूं कि एक महिला होने के नाते मेरे साथ भेदभाव किया गया। अपने अधिकतकर जीवन में मैंने इसके बारे में सक्रियता के साथ नहीं सोचा, न ही मेरे पास इस सब के लिए वक्त है। आपके पास यह सब देखने और सोचने के लिए ठहराव होना चाहिए कि यह सब भी हो रहा है। पिछले कई सालों में बहुत-सी चीजें बदली हैं। सिर्फ नासा ही नहीं, बल्कि पूरा देश- अमेरिका ही बदल रहा है। हम उसका प्रतिबिंब नासा में भी देखते है, और यह एक सच्चाई है। मुझे इस बारे में कोई शक नहीं है कि विज्ञान और सभी जगहों पर अनजाने में ही सही लेकिन बहुत से पूर्वाग्रह मौजूद हैं।
लेकिन मेरा मानना है कि, महिलाओं का सहानुभूति पक्ष उन्हें हर चीज़ की बड़ी और गहरी समझ विकसित करने में मदद देता है, चाहे बात किसी वैज्ञानिक उद्यम की हो, या फिर परिवार या दुनिया की हो।
आप उन महिलाओं और पुरुषों को क्या सलाह देना चाहेंगी, जो स्टेम क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाने के इच्छुक हैं?
मैं सोचती हूं कि, स्टेम एक विशिष्ट क्षेत्र है- यहां असंभव रोजाना हकीकत में बदलता रहता है। विज्ञान और गणित में काम करने का आनंद लें। पहेलियों, खेलों, व्यावहारिक गतिविधियों, संग्रहालयों की यात्रा और तारामंडलों के शो का आनंद लें। अपने आसपास की दुनिया में हर चीज़ को लेकर जिज्ञासु रहें। अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें। सबसे मुश्किल काम पहला कदम उठाने का होता है, जब आप अपने आराम के दायरे से बाहर की दुनिया में कदम रखते हैं। छोटे-छोटे कदम उठाएं- अपने को नए माहौल में ढालें, कुछ ऐसा काम करें जिसे करने में आप घबराते हों, दूसरों के नजरिए को समझने की कोशिश करें और यह सुनिश्चित करें कि आप अपने लिए कोई सुरक्षित विकल्प न चुनें।
नतासा मिलास स्वतंत्र लेखिका हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहती हैं।
साभार https://spanmag.com/hi/ से