अगाल फाउंडेशन की वेबसाइट पर एक मोबाइल नंबर दिया गया है और कहा गया है कि अगर आपको सड़क पर कोई तकलीफ में दिखे, तो इस नंबर पर कॉल करें।
मैं वेबसाइट पर दिया गया नंबर डायल करता हूं और वेंकटेश से झूठ बोलता हूं कि एक बूढ़े व्यक्ति को तुरंत मदद की जरूरत है। वेंकटेश मुझसे पूछते हैं कि मैं कहां से बोल रहा हूं और मैं उन्हें अपनी लोकेशन बता देता हूं। वे मुझे एक अन्य नंबर देते हैं और कहते हैं कि इस नंबर पर अपनी बात बता दें। मैं इस नंबर पर फोन कर पूरी बात दोहरा देता हूं। उस ओर से पूछा जाता है, 'आप अभी कहां हैं? क्या वह व्यक्ति अभी भी वहीं है?" मैं अपने झूठ को जारी रखता हूं। वह बोलता है कि जल्द ही मुझसे संपर्क किया जाएगा। दस मिनिट बाद मेरे पास एक एम्बुलेंस ड्राइवर का फोन आता है, जो मुझे बताता है कि वह शीघ्र ही उस बूढ़े आदमी को लेने के लिए आ रहा है।
इस घटना से यह बात पुख्ता होती है कि मानवता अब भी जिंदा है। वेंकटेश और उनके साथियों जैसे लोग इस आस्था को कायम रखते हैं। मैं सभी को फोन कर झूठी सूचना देने के लिए क्षमा मांगता हूं और बताता हूं कि मैं एक पत्रकार हूं और वेंकटेश पर स्टोरी कर रहा हूं। मेरे साथ दूसरे नंबर पर बात करने वाले आर मुत्थुकृष्णन हेल्पेज इंडिया हेल्पलाइन के सीनियर मैनेजर हैं।
वे बताते हैं, 'वेंकटेश हमारे सबसे विश्वसनीय वॉलंटियर्स में से हैं। चेन्नई में 11 साल पहले हेल्पलाइन स्थापित होने के बाद से उन्होंने अब तक 300-400 लोगों को बचाया है।" मुसीबतजदा बुजुर्गों की सेवा करने वाला हेल्पेज इंडिया सड़कों पर रहने वाले बुजुर्गों को वृद्धाश्रमों में भर्ती कराने के लिए वेंकटेश जैसे लोगों की मदद लेता है।
मुत्थुकृष्णन बताते हैं कि हेल्पलाइन की स्थापना के भी पहले से ही वेंकटेश लोगों की मदद करते आ रहे थे। 'अब हम साथ मिलकर काम करते हैं। हमने उनसे गुजारिश की है कि रात को हमें आने वाले फोन वे रिसीव करें क्योंकि हमारा स्टाफ केवल सुबह 9 से शाम 6 बजे तक काम करता है।
वेंकटेश बिना किसी अपेक्षा के यह काम करते हैं। संस्थान की ओर से उन्हें केवल परिवहन का खर्च दिया जाता है। यदि वेंकटेश स्वयं किसी कारण से मुसीबतजदा व्यक्ति की मदद के लिए नहीं जा सकते, तो वे हमें फोन करते हैं।"
दुआओं का असर
वेंकटेश चेन्नई स्थित तमिलनाडु सचिवालय में रेकॉर्ड क्लर्क के रूप में काम करते हैं। यह 2007 में 42 साल की उम्र में ऑफिस असिस्टेंट के रूप में उन्हें मिली नियुक्ति से एक दर्जा ऊपर है। वे कहते हैं, 'कौन सोच सकता था कि 10वीं फेल आदमी को 42 की उम्र में सरकारी नौकरी मिल जाएगी? यह सब उन लोगों की दुआओं के चलते ही हुआ, जिन्हें मैंने सड़कों से उठाकर बचाया और अंतिम घड़ियों में उनकी सेवा की।"
इसके अलावा वेंकटेश ने अनेक मनोरोगियों को चेन्नई के विभिन्न संरक्षण गृहों में भर्ती कराया है। ऐसे ही एक संरक्षण गृह की ट्रस्टी ई. चारुमति कहती हैं, 'वेंकटेश के पास हिंसक मरीजों से निपटने का हुनर है। पिछले 15 साल में वे कोई 500 मनोरोगियों को विभिन्न संरक्षण गृहों में भर्ती करा चुके होंगे। यही नहीं, उन्होंने कई मनोरोगियों को उनके परिवारों से मिलवा भी दिया है।"
इससे पहले वेंकटेश कई तरह के काम कर चुके हैं। कुरियर डिलेवरी से लेकर निर्माण मजदूरी और यहां तक कि क्लिनिक में कंपाउंडर का काम भी! आज वे अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ एक कमरे के मकान में रहते हैं। उनका बेटा स्विमिंग कोच है और बेटी मास्टर ऑफ सोशल वर्क कर रही है। उनका घर भले ही छोटा हो लेकिन दिल बहुत बड़ा है।
साभार- दैनिक नईदुनिया से