कोटा / रियासत काल का काँठल (प्रतापगढ़) मालवा के प्रसिद्ध पठार का वह अत्यंत उर्वरक भू-भाग जो चम्बल,शिवना,जाखम,ऐरा,रेतम और माही नदियों में घिरा हुआ है। काँठल का अर्थ है – ‘‘कंठ प्रदेश या किनारे की धरती’’। प्रतापगढ़ के शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय थे जो मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से थे। इन्हें ‘‘महारावत’’ कहा जाता था।
मुद्रा विशेषज्ञ शैलेंद्र जैन ने बताया कि राणा कुम्भा का छोटा भाई क्षेमकर्ण राणा कुंभा से नाराज हो गया तथा युद्ध टालने के लिए मालवा की ओर निकल गया। उसने अपनी तलवार के बल पर 1473 ईं. में जिस नवीन राज्य की नींव डाली उसे हम ‘‘काँठल’’ कहते हैं। क्षेमकर्ण के बाद उत्तराधिकारी बने महारावत सूरजमल ने 1508 ईं. में देवलिया आज का देवगढ़ बसाया। 1552 ईं. में महारावत विक्रम सिंह (बीका) ने देवलिया को काँठल की राजधानी बनाया। इन्हीं के वंशज महारावत प्रतापसिंह 1673 ईं. में देवलिया के स्वामी बनें। उस समय मेवाड़ में महाराणा राजसिंह का शासन था। महारावत प्रताप सिंह ने 1699 ईं. में ‘‘डोडियार खेड़ा’’ में प्रतापगढ़ कस्बा बसाया। उनके समय में कल्याण कवि ने ‘‘प्रताप प्रशस्ति’’ की रचना की। यहाँ के शासक महारावत उदयसिंह ने सन् 1867 ईं. में प्रतापगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। उदयसिंह ने प्रतापगढ़ के किले में उदयविलास महल बनवाया। 1929 ईं.में महारावत सर रामसिंह जी ने शासन संभाला तथा 23 मार्च 1948 को प्रतापगढ़ रियासत को राजस्थान संघ में विलय कर दिया।
उन्होंने बताया कि महारावत रघुनाथ सिंह का उत्तराधिकार राम सिंह (1929-1940) ने ग्रहण किया। उनके शासन काल में शिक्षा, चिकित्सा, स्थानीय शासन अदि कई क्षेत्रों में काम हुआ। उन्होंने 1936 में अलग 15 रोगी-शैयाओं वाला अलग ‘ज़नाना अस्पताल’ निर्मित किया गया, 1938 में ग्राम पंचायतों का गठन किया गया और नगरपालिका, प्रतापगढ़ में नामांकित सदस्यों के अलावा चुन कर कुछ प्रतिनिधि (निर्वाचित) मेम्बर भी आने लगे. सबसे उल्लेखनीय बात थी – प्रतापगढ़ में १९३८ में हाईकोर्ट की स्थापना. राम सिंह को अंग्रेजों ने ‘सर’ की मानद सनद (उपाधि) भी दी थी।
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लेखक एवम् पत्रकार,कोटा