पाखंडी संत आसाराम व उनके परिवार पर नित्य नए आरोप लगते जा रहे हैं। कानून का शिकंजा भी इस परिवार के सदस्यों विशेषकर आसाराम व उसके पुत्र नारायण साईं पर और अधिक कसता जा रहा है। आसाराम जेल की रोटी खा रहा है तो पुत्र नारायण साईं को अपना काला मुंह छुपाकर इधर-उधर पनाह लेनी पड़ रही है। जिस प्रकार आसाराम व उसके पुत्र पर अपने ही भक्तों की बहन-बेटियों के साथ यौन दुराचार करने के मामले दिन-प्रतिदिन खुलते जा रहे हैं उसे देखकर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस परिवार के पाप का घड़ा लबरेज़ हो चुका था। हालांकि हमारे देश में विभिन्न धर्मों के कई धर्मगुरुओं पर इस प्रकार के आरोप पहले भी लग चुके हैं तथा इनमें कई कानून के हत्थे ाी चढ़ चुके हैं। परंतु आसाराम व उनके पूरे परिवार की मिलीभगत से जिस प्रकार दशकों से अध्यात्म के नाम पर अपने ही भक्तजनों के परिवार की कन्याओं का यौन शोषण किया जा रहा था वह अपने-आप में देश का एक पहला उदाहरण है।
जिस समय जोधपुर यौन शोषण प्रकरण में आसाराम के विरुद्ध सबसे पहले मामला दर्ज हुआ था उस समय आसाराम, उनके समर्थक व कुछ राजनैतिक दलों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक साजि़श यहां तक कि कांग्रेस,सोनिया गांधी व राहुल गांधी के इशारे पर की जाने वाली कार्रवाई बताया था। कुछ हिंदुत्ववादियों ने भी इस मुद्दे पर राजनीति करनी चाही थी। वे यह कहते सुनाई देने लगे थे कि हिंदू धर्म व संत समाज को बदनाम करने की एक सोची-समझी साजि़श के तहत आसाराम को बदनाम किया जा रहा है। परंतु जोधपुर यौन शोषण प्रकरण के बाद अब तो और भी कई मामले सामने आ चुके हैं।
इन्हीं में एक मामला गुजरात के सूरत की पुलिस ने दो सगी बहनों की शिकायत के आधार पर दर्ज किया है। इसमें एक बहन ने आसाराम पर 1997 से लेकर 2006 तक उसका शारीरिक शोषण किए जाने का आरोप लगाया है तो दूसरी बहन ने आसाराम के पुत्र नारायण साईं पर यही इल्ज़ाम लगाया है। इन बहनों के अनुसार आसाराम व उनके पुत्र ने उस दौरान उन बहनों के साथ शारीरिक शोषण किया जबकि वे अहमदाबाद के बाहरी क्षेत्र के आश्रम में उनकी शिष्या के रूप में रहा करती थीं। इस मामले की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज होने के बाद ही नारायण साईं को गिर तारी से बचने के लिए भूमिगत होना पड़ा। इन दोनों पिता-पुत्र के दशकों से चले आ रहे इन पापपूर्ण कारनामों से इनका परिवार भी अलग नहीं कहा जा सकता। स्वयं आसाराम की पुत्री ने यह बयान दिया है कि वह दीक्षा के नाम पर कन्याओं को अपने पिता के पास भेजा करती थी।
आसाराम की व्याभिचार के प्रति दीवानगी का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 80 की उम्र पार करने के बावजूद यह श स शक्तिवर्धक दवाईयां तथा अफीम जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करता था। तो दूसरी ओर अपने पुरुष चेलों को जोकि उसके आसपास रहा करते थे उन्हें नपुंसक बनाने जैसी दवाईयां देता था। और तो और इसके आश्रम में कन्याओं का अवैध रूप से गर्भपात कराए जाने का भी पु ता प्रबंध था। अब आसाराम की काली करतूतों के उजागर होने के बाद उससे अपना मोह भंग कर चुके पूर्व भक्तों की ज़ुबानी सुनें तो ऐसा लगता है कि उसका धर्म व अध्यात्म के नाम पर चलने वाला पूरा का पूरा प्रपंच इन दोनों पिता-पुत्र की वासना की हवस पूरी करने का एक माध्यम मात्र था। और यह पाखंडी परिवार अपने उन भक्तों की बहन-बेटियों पर बुरी नज़र डालकर उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था जोकि इन पाखंडियों को केवल गुरु ही नहीं बल्कि देवता व भगवान तुल्य समझा करते थे और जो भक्त अपने मंदिरों में,अपने घरों में, अपने आिफस व ड्राईंग रूम की दीवारों पर यहां तक कि अपने गले के लॉकेट व अपनी अंगूठियों तक में इस महापापी के चित्र लगाए रखते थे।
इसके किसी भक्त ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि रंगीला,रसीला,छबीला व सफेदपोश दिखाई देने वाला उनका यह गुरु, गुरु नहीं बल्कि उनके परिवार की इज़्ज़त पर हमला बोलने वाला एक राक्षसरूपी मानव है। आसाराम पर अपनी गहन व अंधश्रद्धा रखने वाले हज़ारों भक्तों ने उसे धन-दौलत के अलावा तमाम जगहों पर ज़मीन-जायदादें भी दान की है। देश में ज़्यादातर स्थानों पर बने उसके आश्रम या तो दान में मिली हुई ज़मीन पर बने हैं या फिर उसके स्थानीय भक्तों द्वारा स्वयं पैसे जुटाकर ज़मीन खरीदकर बनाए गए हैं।
इन भक्तों की श्रद्धा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज के दौर में जबकि ज़मीनों की कीमतें आसमान छू रही हैं ऐसे में अधिकांशत: मु य मार्गों के किनारे स्थित अपनी मंहगी ज़मीनें इस पाखंडी को दान करने वालों की इसके प्रति कितनी गहन आस्था रही होगी। इन भक्तों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस सफेदपोश ढोंगी व बनावटी लहजे में बोलने वाले आसाराम को यह भक्तजन परमेश्वर तुल्य समझ रहे हैं वह व्यक्ति गुरु के नाम पर इनकी बहन-बेटियों की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करेगा तथा गुरु दक्षिणा के नाम पर इनकी ज़मीन-जायदाद हड़पकर उन्हीें दान में प्राप्त की गई ज़मीनों पर अपने ऐशगाह नुमा कमरे व गुफा आदि बनवाकर उनमें इन्हीं भक्तों की ही बेटियों का शारीरिक शोषण करेगा।
परंतु आसाराम व उसके पुत्र ने अपने भक्तों के साथ इतना बड़ा विश्वासघात व अपराध किया जिसकी पूरे देश में अब तक कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। ज़ाहिर है इन पिता-पुत्र के पाप का घड़ा फूटने के बाद अब स्वाभाविक रूप से इनके भक्तों में गुस्सा फूटना शुरु हो चुका है। पिछले दिनों इसकी शुरुआत आसाराम के गृहराज्य गुजरात के बलसाड़ में पर्दी तालुका के पारिया गांव में स्थित इसके आश्रम से हुई। इस पर लगातार लग रहे यौन उत्पीडऩ के आरोपों से क्षुब्ध व अपमानित महसूस करने वाले इसके सैकड़ों भक्तों ने उक्त आश्रम में आग लगा दी। इन भक्तों में वे लोग भी शामिल थे जिन्होंने आसाराम के इस आश्रम के लिए ज़मीन दान में दी थी। आसाराम के इन पूर्व भक्तों का साफतौर पर यह कहना था कि वे अब अपने किए पर पछता रहे हैं तथा आसाराम व उनके परिवार के प्रति उनकी आस्था उनके काले कारनामों को सुनने के बाद अब समाप्त हो चुकी है। यह लोग अब आश्रम को दान में दी गई अपनी ज़मीनें भी वापस लेना चाहते हैं।
आसाराम के पूर्व भक्तों के दिलों में फूटने वाली इस प्रकार की ज्वाला को बेमानी नहीं कहा जा सकता। मनोवैज्ञानिक रूप से यदि सामाजिक स्तर पर इस बात का जायज़ा लिया जाए तो हम यह देखेंगे कि पिता-पुत्र, पति-पत्नी जैसे रिश्तों में कड़वाहट पैदा होने के बाद प्राय: इन रिश्तों के संबंध व इन रिश्तों के बीच के श्रद्धाभाव तो कभी समाप्त भी हो जाते हैं। परंतु गुरु-शिष्य के रिश्तों में कड़वाहट आती बहुत कम सुनाई देती है। बजाए इसके गुरु-शिष्य संबंध नस्ल दर नस्ल चले आ रहे हों, ऐसा ज़रूर देखा जा सकता है। परंतु किसी कथित गुरु के अपराध का यह चरमोत्कर्ष ही है कि आज उसके वही भक्त उस पाखंडी से अपनी ज़मीनें वापस मांग रहे हैं जिन्होंने उसे अपनी ज़मीन दान दी थी। जो भक्त कल तक उसके जिस आश्रम में बैठकर उसकी डीगें सुना करते थे वही आज उसी आश्रम में तोड़-फोड़ करने व उसमें आग लगाने पर उतारू हो गए हैं। और अपनी इसी पोल पट्टी का ढिंढोरा और न पिटने की गरज़ से ही इस व्याभिचारी कथित संत ने अदालत से मीडिया ट्रायल बंद कराए जाने की गुहार लगाई थी जिसे संभवत: अदालत ने भी इसी कारण खारिज कर दिया ताकि इसकी करतूतों का पूरी तरह कदम ब कदम खुलासा होता रहे और अंध आस्था व अंधविश्वास के मारे इसके भोले-भाले भक्तजनों का इससे पूरी तरह से मोह भंग हो सके।
नि:संदेह आसाराम के भक्तों के साथ बहुत बड़ा छल,धोखा व विश्वासघात इन पिता-पुत्र द्वारा किया गया है। अब भी इसके जो भी अंधभक्त इसके प्रति आस्था रख रहे हों उन्हें भी अपनी आंखें खोल लेनी चाहिए और जिन भक्तों ने इसे अपनी भू संपत्ति दान में दी है उन्हें अपनी संपत्ति वापस ले लेना चाहिए। भविष्य में भी भक्तजनों को अपना कोई गुरु बहुत ही सोच-समझ कर व पूरी सूझ-बूझ के साथ धारण करना चाहिए। अन्यथा सभी धर्मों के धर्मग्रंथ ही अपने अनुयाईयों का मार्गदर्शन करने के लिए पर्याप्त हैं। यदि आसाराम व उसके पुत्र की काली करतूतों से पर्दे हटने के बाद भी सीधे-सादे भक्तों ने अपनी आंखें नहीं खोलीं तो भविष्य में भी ऐसे पापी व पाखंडी कथित संतों को समाज में अपने पैर पसारने के मौके मिलते रहेंगे।
निर्मल रानी
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