Sunday, November 24, 2024
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मतदाता अपने मत की कीमत समझे

लोकतंत्र में वोट की क़ीमत होती है, वोट के प्रति जागरूकता की अहमियत होती है , लेकिन लोकतंत्र में उससे भी ज़्यादा , निष्पक्ष , बेखौफ चुनाव की ज़रूरत होती है। टी. एन. शेषन के बाद वोटों के हालात और निष्पक्षता का सच तो सभी के सामने है । वोटर्स को मतदान केंद्र पर जाकर वोट डालने के लिए जागरूक करना जितना ज़रूरी है उससे भी ज़्यादा ज़रूरी वोटर्स को निष्पक्ष चुनाव में अगर पक्षपात हो तो निर्वाचन आयोग कदम नहीं उठाए तो आंदोलन करना ज़रूरी हो गया है ।

चुनाव की आचार संहिता लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम सभी जानते है । चुनाव में आखिर आम जनता जो खुद की आत्म रक्षा के लिए हथियार के लाइसेंस लेती है उन हथियारों को , बिना किसी युक्ति युक्त कारण , बिना किसी साक्ष्य के ,भेड़ चाल की तरह थाने में जमा कराने का आदेश क्या अक़्ल मंदी भरा है । एक प्रधानमंत्री सरकारी खर्च पर सरकारी हवाई जहाज़ में सरकारी सुरक्षा के साथ , चुनाव प्रचार करते हैं । एक मुख्यमंत्री भी यही सब कुछ करता है तो फिर निष्पक्षता कैसे हो गयी । एक लोकसभा अध्यक्ष के पास कवि सम्मेलन के लिए लोग जाते है और वो आश्वस्त करते हैं कि में ऐसा करवा दूंगा तो चुनाव आचार संहिता में यह सब क्या ठीक है ।

सरकार आम जनता के लिए योजनाएं बनाती है ,भवन बनाती है , सुविधाएं देती है और उन योजनाओं , भवनों का उद्घाटन , लोकार्पण करके जिसने उसे बनाया उसकी नाम पट्टिका लगाती है तो फिर ऐसे विकास कार्यों को उनकी पट्टिकाओं को ढकना क्या लोकतंत्र में अच्छे काम करने वालों की अच्छाई को ढकने जैसा नहीं है ।

एक प्रत्याक्षी , लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त पार्टी में सदस्य है , उसी से टिकिट लेकर विधायक बना है तो फिर क्या वह दल बदल कर दूसरी पार्टी में जाता है ,वोट नहीं डालता है , वाक् आउट करता है , इस्तीफा दे देता है , दूसरी पार्टी में चला जाता है , क्या यह अपराध नहीं है ।

एक राजनितिक पार्टी अपना चुनावी एजेंडा बनाती है । जिन वायदों पर वह चुनाव लड़ती है और सरकार बनाती है और अगर उन वायदों को वोह पूरा नहीं करती है तो फिर क्या यह जनता के साथ धोखा नहीं है । ऐसी सरकार को निर्वाचन आयोग हटाता क्यों नहीं ? अब राज्य सभा के चुनाव में , राष्ट्रपति के चुनाव में , वरीयता की ज़रूरत कहाँ है , एक वोट ,डाला जाए , और जो ज़्यादा वोट लाये उसे जीता हुआ घोषित कर दिया जाए । सियासी पार्टियों की मान्यता के लिए लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव करवाकर , उनके पदाधिकारी , पार्टी के संविधान में , निर्वाचन नियमों के तहत निर्वाचन ज़रूरी है , लेकिन आज की तारीख में बालिग़ हुए किसी भी व्यक्ति को पता नहीं के जिस पार्टी को वह वोट डालते हैं , उस पार्टी में , ब्लॉक स्तर पर , बूथ स्तर पर , जिला स्तर पर , प्रदेश स्तर पर , या फिर राष्ट्रिय स्तर पर कभी चुनाव हुए हों । बस सर्व सम्मति

लोक प्रतिन्धित्व अधिनियम में आचार संहिता का यह मतलब तो नहीं को केंद्र सरकार , उसके कार्मिकों का डी.ए बढ़ाए , बोनस दे और फिर संबंधित राज्य सरकारों को ऐसा नहीं करने दिया जाए । हर राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारी उनके परिवार भी तो होते हैं जो डीए बढ़ाने , बोनस देने से प्रभावित हो सकते हैं और प्रावधान होने पर भी राज्य सरकारों को ऐसा करने से रोकना पक्षपात नहीं तो क्या है ?
वह कहते हैं राज्यों के चुनावों में विपक्ष की सरकार और नेताओं को प्रताड़ित करने के लिए केंद्रीय एजेंसियां जब प्रताड़ित करने , परेशान करने के लिए चुनाव पूर्व छापेमारी ,गिरफ्तारी , तलाशी अभियान , वगेरा वगेरा क्या नेताओं को डरा धमका कर चुनाव प्रभावित करने वाला नहीं है।

भारत में चुनाव के वक़्त , लाखों लोग , ट्रेन में , बसों में सफर करते हैं , अस्पतालों में भर्ती रहते हैं , जेलों में न्यायिक अभिरक्षा में रहते हैं , बीमार अशक्त घरों में रहते हैं , निजी कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हैं ऐसे में उन्हें जागरूक करना , जेल में जब चुनाव लड़ने की इजाज़त है , तो फिर जेल में रह रहे क़ैदी को वोटिंग की इजाज़त क्यों नहीं ? जब धर्म आधारित चुनाव प्रचार प्रतिबंधित है तो फिर प्रत्याक्षी का धार्मिक स्थल पर जाकर चुनाव प्रचार की शुरुआत करना प्रतिबंधित क्यों नहीं ? चुनाव आयोग के पक्षपात के प्रति आम जनता का कर्तव्य क्या रहे ,चुनाव आयोग के विरुद्ध ऐसी प्रमाणिक शिकायत मिलने पर ऐसे अधिकारीयों के खिलाफ क्या कार्यवाही हो यह भी सुनिश्चित होना ज़रूरी है ।

जागो मतदाता , जागो आम जनता , अपने अधिकार जानिये , कर्तव्यों का पालन कर, वोट डालिये , सही व्यक्ति को वोट डालिये, भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ आवाज़ उठाइये , और पक्षपात करने वाले को सज़ा भी दिलवाइये , ,प्रलोभन , झूंठे वायदे , शराब , साड़ियां , योजनाओं के झांसे में लेकर अगर वोट भी ले लें और सत्ता में आजायें , तो जो वायदे किये हैं उन्हें जुमला बनाने वालों को सत्ता से अपदस्त करने का क़ानून भी बनवाइए ! जनता जनार्दन है , लोकतंत्र एक मंदिर है , तो जनता एक पुजारी है , भक्त है , इसलिए जनता ही , इस लोकतंत्र को सुरक्षित रख सकती है ।

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