Thursday, May 9, 2024
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अब ये प्राकृतिक खेती करने का समय है

देश में विभिन्न जगहों पर सामयिक परिवेश में गोवंशों की मौत का मामला सामने आ रहा है। गोवंशों की मौत के कारण की जांच के लिए पोस्टमार्टम के लिए बिसरा प्रतिवेदन से पता चला है कि अत्यधिक मात्रा में नाइट्रेट और नाइट्राइट जहर से हो रही है ।

सवाल यह है कि इतनी मात्रा में रासायनिक विष गोवंशों को कैसे पहुंच रही है ?

चिकित्सा प्रतिवेदन और बिसरा प्रतिवेदन का शल्य चिकित्सा करने से स्पष्ट हुआ है कि यह विषाक्त पदार्थ चारे के खेत में यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से चारों में संकेंद्रित हुए हैं। खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग और कीटनाशकों का प्रयोग प्रकृति और प्राणी जगत के लिए कितना हानिकारक है? जिन रासायनिक पदार्थों के संक्रमण से मवेशियों की मौत हो रही है, उनसे मानव जाति कैसे सुरक्षित रह सकता है? ऐसे रसायनों के प्रयोग से प्राप्त दूध मानव जाति के लिए कितना नुकसानदायक है? अत्यधिक उत्पादन और अधिक मुनाफा/ फायदा पाने के कारण हमारे खेतों में दशकों से अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग से कृषि परिवेश विषाक्त होता जा रहा है। खेतों में उर्वरकों का प्रयोग विष की तरह है, इसी विष के कारण खाद्य पदार्थ जहरीले और विषाक्त होते जा रहे हैं।

मानव शरीर पर उनके नकारात्मक एवं स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। मानव शरीर में बड़ी मात्रा में कीटनाशक दवाइयां का अंश जहर के रूप में शरीर में प्रवेश कर रहा है जिससे स्वास्थ्य विकार उत्पन्न हो रहे हैं।रासायनिक जहर फल और सब्जियों में ज्यादा मात्रा में पाया जाता है, क्योंकि मानव समुदाय में इनका खपत ज्यादा है। दुधारू पशु इन रसायनिकों को आत्मसात करते हैं जिससे यह हानिकारक रसायन दूध के साथ मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है। 2021 – 2022 में देश भर के प्रयोगशालाओं में खाद्य सामग्री जांच के पश्चात 35 %नमूनों में खतरनाक रसायनों के अंश पाए गए हैं। इस स्थिति से बदलाव के लिए किसानों को मानसिक स्तर पर तैयार किया जाए एवं इसके विषय में जन आंदोलन और जन जागरूकता को प्राथमिकता प्रदान किया जाए।

हरित क्रांति के समय से किसानों और आम जनमानस के मन में बैठा दिया गया है की खेती को लाभकारी बनाना है तो रासायनिक खाद का प्रयोग आवश्यक है ,इसके अतिरिक्त ऐसे भी उत्पादक वर्ग हैं जो रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया है ,और प्राकृतिक खेती के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर किया है; बल्कि उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य वर्धक दूध, फल , सब्जी और खाद्यान्न उपलब्ध करा रहे हैं। रासायनिक कृषि से आसपास का पर्यावरण( जल ,वायु और जमीन )भी प्रदूषित हो रहे हैं। हमारे भारत में बदलते परिवेश में ऐसे भी वर्ग हैं जो अपनी मिट्टी और उपभोक्ता के स्वास्थ्य की चिंता करता है और प्राकृतिक कृषि के द्वारा अपने खेत से मिलने वाली उपज विषमुक्त हो इसके लिए संकल्पित है।

कृषि में फसल के पोषण और कीट नियंत्रण के लिए किसी भी प्रकार का कोई रासायनिक पदार्थ का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस विधि में देसी गाय के गोबर और गोमूत्र आदि का प्रयोग किया जाता है ,और इससे निर्मित जीवामृत जैसे द्रव्यों के प्रयोग से खेत की मिट्टी में करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु कार्य करने लगते हैं और इससे तैयार फसल रोग मुक्त और स्वास्थ्यवर्धक भी होती है ।कोरोना बीमारी ने हमें समझा दिया है की प्रकृति का साश्चर्य ही स्वस्थ जीवन प्रदान कर सकता है ।प्रयोगशालाओं में तैयार बीज खाद और कीटनाशकों द्वारा उपजाएं गए खाद्य पदार्थों का उपयोग जारी रखें तो वह हमारे शरीर को भी चलती – फिरती प्रयोगशाला बना देंगे ।

गंगा समग्र अभियान के राष्ट्रीय संगठन मंत्री आदरणीय रामाशीष जी का एक केस अध्ययन था कि जिन क्षेत्रों के लोग गंगाजल को पीते थे वह कोरोना से मुक्त रहे ,और जिन क्षेत्रों के लोग साधारण जल को पीते थे वो कोरोना से अत्यधिक संक्रमित रहे। प्राकृतिक खेती के द्वारा उपजाएं खाद्य पदार्थों से ही स्वस्थ और सबल भारत का निर्माण संभव है। हमारे देश के ऊर्जावान प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश में किसानों को प्राकृतिक कृषि अपनाने के लिए प्रोत्साहित और सहयोग किया जा रहा है। खेतों में प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ाकर के उत्तम स्वास्थ्य की दिशा में अग्रसर हो सकता है ।इस दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार ने सराहनीय प्रयास किया है और रासायनिक उर्वरक के प्रयोग की दिशा में चार % की कमी का संकल्प किया है। इस दिशा में सकारात्मक प्रयास सरकार ,नागरिक समाज और गैर- सरकारी संगठन( एनजीओ) के द्वारा किया जा सकता है, जिससे अच्छा गुणात्मक परिणाम प्राप्त हो सकेगा।

(लेखक सहायक आचार्य और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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