सर्दियों के आगमन पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली ” गैस का चैंबर” “वायु प्रदूषण का मंडी हाउस” एवं” बीमारियों का घर” बन जाता हैं। दिल्ली और दिल्ली के आसपास का पर्यावरण अत्यधिक जहरीला हो जाता है। वायु सुरक्षित स्तर से 35 गुना अधिक जहरीली हो चुकी है। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 से अधिक है। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रदूषण अत्यधिक जहरीले और मानवीय जीवन के लिए हानिकारक होता जा रहा है। मौसम वैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और वायु गुणवत्ता के विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली से सटे राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाना एवं मौसमी स्थितियों में आमूल – चूल बदलाव भी दिल्ली को गैस के सदन में बदलने के लिए उत्तरदाई है। एक और भारत विकासशील दक्षिण देशों का नेतृत्व कर रहा है, वैश्विक स्तर पर जी-20 का सफल आयोजन कर चुका है ,परम वैभव राष्ट्र के प्राप्ति में सफलतापूर्वक लगा है। जलवायु परिवर्तन पर अपना कुशल नेतृत्व का परिचालन कर रहा है, लेकिन भारत की राजधानी दिल्ली की वायु गुणवत्ता खतरनाक स्थिति में है। वायु प्रदूषण पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है, जबकि द्वितीय पीढ़ी (2G) को भी क्षति पहुंचा रहा है।
वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण अध्ययन की अद्यतन प्रतिवेदन से यह प्राप्त होता है कि वायु प्रदूषण/ हवा के जहर से भारत में चीन की तुलना में पांच गुना बच्चों की असामयिक मृत्यु हो रही है। इसी पर स्वास्थ्य पर नजर रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट अभिकरण विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) के प्रतिवेदन के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण 5 वर्ष से या उससे अधिक उम्र के बच्चों में निमोनिया से मृत्यु हो रही है। चिकित्सकों का मानना है कि छोटे उम्र के बच्चों को अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, इसलिए उनके सांस की गति भी अधिक होती है ।ऐसे में उनके फेफड़ों में प्रदूषण( सूक्ष्म कण )प्रवेश कर जाते हैं और बच्चों को निमोनिया एवं अस्थमा की बीमारी उत्पन्न हो जाती है।
भारत में वायु प्रदूषण से मरने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा है। भारत में प्रति हजार बच्चों का वायु प्रदूषण के कारण 48 बच्चों की मृत्यु हो जाती है ,दक्षिण अफ्रीका में 41 बच्चों की मृत्यु होती है, जबकि ब्राजील में 17 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इस तरह इन देशों में बच्चे वायु प्रदूषण के कारण असमय काल कलवित हो जाते हैं। बच्चों का फेफड़ा विकासशील स्थिति में होता है ,जिससे उनका फेफड़ा वायु प्रदूषण के कारण विकार जनित होता है। फेफड़े कमजोर होने के कारण निमोनिया का संक्रमण होने के ज्यादा अवसर होता है ।मनुष्य वायु प्रदूषण और प्रदूषित पर्यावरण में बाहर जाता है तो उसके मुंह एवं नाक के रास्ते अति सूक्ष्म प्रदूषक फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं जिससे शरीर रोगारूजनित एवं प्रदूषित हो जाता है ।वायु में प्रदूषण का बढ़ता स्तर या पर्यावरण की बदहाली का कारण किसानों के द्वारा पराली जलाना एवं घुमरते हुए धूल के कण है जो स्वास्थ्य के लिए अति नुकसानदायक होता है। शहरीकरण के कारण, कल कारखानों का परिचालन, कूड़े के ढेर का शहरों में जलाने से उत्पन्न प्रदूषण, मृत शरीरों के सड़ने से उत्पन्न प्रदूषण हानिकारक, विषाक्त एवं उत्तम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, जो व्यक्ति में मानसिक असुंतलन , बेचैनी एवं तनाव उत्पन्न करते हैं।
शहरों में आबादी का अधोगामी होना,गावों से आबादी का पलायन, रोजगार के लिए शहर आना आदि ऐसे ज्वलंत कारण है, जो वायु प्रदूषण को बढ़ाने और वायु गुणवत्ता को न्यून करने का प्रयास करते हैं। गंतव्य तक जाने के लिए पुराने स्कूटर और स्कूटी से जाना, उद्योग – धंधों का बढ़ना, थर्मल विद्युत संयंत्र का अत्यधिक बड़ना प्राकृतिक पर्यावरण का विषम रसायनित होना , जो मनुष्य के स्वास्थ्य पर नकारात्मक और हानिकारक प्रभाव डालते हैं। जिन स्थानों पर वायु प्रदूषण की प्रबलता होती है, उन जगहों पर आंखों में सूजन, छाती में जकड़न और खांसी का होना आम समस्या है। हृदय रोग, एकाएक शर्करा का बढ़ना और दिमाग का असामान्य होना वायु प्रदूषण का प्रबल संकेत है। वायु प्रदूषण ओजोन परत के लिए भी नुकसानदायक है। ओजोन परत वायुमंडल में समताप मंडल की सबसे ऊपरी परत है ।यह समताप मंडल के लिए महत्वपूर्ण गैस है या इसको समताप मंडल का सुरक्षा चलनी भी कहा जाता है। इसका काम सूरज की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को भूमि की सतह पर आने से रोकता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण धुंध और अम्लीय वर्षा होती है। नाइट्रोजन ऑक्साइड पेट्रोल, कोयला और डीजल के जलन से बनता है। इसके कारण फेफड़ों को हानि पहुंचती है और सांस लेने में परेशानी होती है। ऊर्जा प्राप्ति के लिए कोयले को थर्मल पावर प्लांट में जलाया जाता है ,इससे जो हानिकारक गैस निकलती है वह सल्फर डाई ऑक्साइड गैस होती है। धातु को गलाने और लिखने वाले कागज के निर्माण के लिए उत्तरदाई गैस सल्फर डाइऑक्साइड होती है,जिसे वैज्ञानिक शब्दों में “दमघोटू गैस ” कहा जाता है।यह गैस धुंध ( स्मॉग )पैदा करने और अम्लीय वर्षा में बहुत सहायक होती है। सल्फर डाई ऑक्साइड के कारण फेफड़े का कैंसर होता है।
वायु प्रदूषण के स्तर को न्यून करने के लिए स्कूटर, स्कूटी और मोटरसाइकिल की अपेक्षा साइकिल को अधिकाधिक उपयोग करने की आवश्यकता है। अधिक से अधिक पैदल चलने की आवश्यकता है । सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने की आवश्यकता है। पर्यावरण उन्नयन के लिए घरों में लघु बागवानी की जरूरत है, आवश्यकता अनुसार बिजली का उपयोग कीजिए ।अपने बागवानी की सूखी पत्तियों को जलाएं नहीं, बल्कि उसका जैविक खाद बनाए जिससे पर्यावरण प्रदूषण को न्यून किया जा सकता है। पर्यावरण संरक्षण एवं सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार ,स्थानीय सरकार और नागरिक समाज का महत्वपूर्ण और पुनीत जिम्मेदारी है। पर्यावरण संरक्षण के हमारे सर्वोच्च पंचायत अर्थात संसद और संघीय कार्यपालिका को उचित विधि बनाकर पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए; क्योंकि पर्यावरण सतत विकास और प्रत्येक पीढ़ी के लिए शाश्वत संसाधन है।
हमारे भविष्य के बौद्धिक अर्थात देश के बच्चों को अधिक वायु प्रदूषण के समय अपने घरों में रहना चाहिए जिससे उनको वायु प्रदूषण से सुरक्षित किया जा सके ।वायु प्रदूषण की महाआपदा से सुरक्षित मुकाबला करना हम सबकी साझी जिम्मेदारी है।इस पुनीत यज्ञ में सार्थक एवं महत्वपूर्ण भूमिका हमारे लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक सरकारों का है ,क्योंकि सरकार अपने प्रत्येक कार्य के लिए अंततोगत्वा जनता के प्रति उत्तरदाई एवं जवाबदेह होती है। समाज के प्रत्येक अव्यय के सामूहिक जन भागीदारी एवं सामंजस्यपूर्ण समन्वित प्रयास से ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को ” गैस के सदन” से निजात दिलाया जा सकता है ।
हमको अपने भविष्य और आने वाली पीढ़ी को असाध्य रोगों से सुरक्षित रखने के लिए अनियोजित एवं प्राकृतिक संसाधनों के अमर्यादित दोहन से अर्जित विकास का “समकालीन मॉडल” को विवेकपूर्ण, तार्किक और उचित के आधार पर अपनाना होगा। इसके अतिरिक्त घातक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से होने वाले मृदा प्रदूषण को रोककर अपने मृदा की उर्वरा क्षमता को स्वदेशी एवं रसायन मुक्त उर्वरकों का विवेक पूर्ण उपयोग करने से ही वायु गुणवत्ता में उन्नयन किया जा सकता है।
(लेखक स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं