भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और इस राज्य के प्रशासनिक पुनर्गठन से तिलमिलाए पाकिस्तान ने सप्ताहभर में दुनियाभर के दरवाजे खटखटा डाले। पहली शिकायत अमेरिका से हुई, जिसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान हाल ही में मिलकर और कश्मीर पर मध्यस्थता का शिगूफा छोड़कर लौटे थे। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मॉर्गन ओर्टागस ने साफ शब्दों में कहा कि कश्मीर मुद्दे पर उनके देश की नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
इसके बाद लगी चीन की दौड़। विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी बीजिंग पहुंचे और खासकर लद्दाख तथा ‘वन बेल्ट, वन रोड’ को लेकर चिंतित चीन को और उकसाने की कोशिश की। किन्तु भारतीय विदेशमंत्री एस. जयशंकर का चीन दौरा ज्यादा प्रभावी रहा और उन्होंने एशिया की प्रमुख शक्तियों को भिड़ाने की पाकिस्तानी मंशा पर चीन में बतौर राजदूत अर्जित लंबे अनुभव के बूते ‘पानी फेर दिया’।
पाकिस्तान की ओर से संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को पत्र लिखकर भी मुद्दे को उलझाने की कोशिश की गई। दावा किया गया कि भारत ने जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 1949 के प्रस्ताव का उल्लघंन किया है। इसका जो जवाब मिला वह पाकिस्तान के लिए दिल बैठाने वाला था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने 1972 के युद्ध में भारत के हाथों पाकिस्तान की करारी हार की याद दिलाते हुए ‘शिमला समझौता’ स्मरण कराया।
इस अहम समय में अपने पुराने मित्र के साथ खड़े रूस ने भी अपनी दिशा स्पष्ट करते हुए कहा कि फैसला भारत ने संवैधानिक दायरे में लिया है। यह सब हुआ किन्तु इन सबसे ज्यादा दिल तोड़ने वाली बात पाकिस्तान के लिए तब हुई जब सऊदी अरब और इस्लामिक सहयोग संगठन (आईओसी) से भी उसे कोई सहयोग नहीं मिला।
आज पाकिस्तान के पक्षकार सिवाय पाकिस्तानियों के और कौन हैं?
विश्व राजनीति में भू-राजनीतिक महत्व का यह अति महत्वपूर्ण घटनाक्रम, भारत बनाम पाकिस्तान तोला जा रहा था। यहां पाकिस्तानी तर्कों के हवा में उड़ जाने और भारत के पक्ष में विश्वमत की लहर को देखने के बाद उन लोगों पर सिर्फ हंसा ही जा सकता है, जिन्हें राजग सरकार के पिछले कार्यकाल में प्रधानमंत्री ‘सैर-सपाटे’ पर लगते थे। निश्चित ही 2014 के बाद अब तक के कार्यकाल में भाजपानीत राजग सरकार अहम विषयों पर स्पष्ट नीति रखते हुए सशक्त, समरस, समान भारत का खाका देश और दुनिया के सामने रखने में सफल हुई है।
सर्व समाज के हित का भरोसा भारत के भीतर और आतंकवाद के किसी भी रूप को बर्दाश्त न करने वाली लामबंदी विश्व मंच पर आकार ले रही है। लेकिन भारत और दुनिया को जो बात सुहाए उससे पाकिस्तान परेशान कैसे न हो? आतंकवाद पर चोट हो और पाकिस्तान न कुलबुलाए, यह कैसे हो सकता है? इसलिए अब उसका नया पैंतरा है अफगानिस्तान में फंसे अमेरिका की बांह कश्मीर मुद्दे पर ऐंठना। पाकिस्तान ने अमेरिका को जताया है कि बदली परिस्थितियों में उसे अफगानिस्तान सीमा से हटाकर अपने सैनिक कश्मीर से लगती सीमा पर भेजने पड़ सकते हैं। वैसे उसकी इस चाल का भी पिटना तय है।
इसके दो कारण हैं। पहला यह कि तालिबान ने अफगानिस्तान के प्रश्न को कश्मीर से जोड़ने पर पाक रणनीतिकारों को जमकर लताड़ लगाई है। दूसरा यह कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति किसी को खुद पर हावी होने या भयादोहन करने की हर कोशिश को दोगुने गुस्से से कुचलने के लिए जाने जाते हैं।
राजनीति से लेकर मीडिया और सेकुलर-बुद्धिजीवी जमात तक ऐसे संदिग्ध चेहरे आपको चमकते मिल जाएंगे। पाकिस्तानी प्रवक्ताओं की पंक्तियां भारत में दोहराने वाले, इस्लामी हिंसा पर चुप, मगर सरहद पर ‘अमन की आशा’ की मोमबत्तियां जलाने वाले, और तो और (जैसा कि पूर्व पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने खुद खुलासा किया) बुरहान वानी जैसे आतंकी की मौत के बाद आतंकवाद के मुद्दे पर देश को भ्रमित करने वाले!
दरअसल, पाकिस्तान को आसरा बाकी दुनिया से नहीं, भारत में बचे वंशवादी राजनीति के अंखुओं से है। भारत में पाकिस्तानी टुकड़ों पर पलते, लार टपकाते उन कथित आंदोलनकारी गिरोहों से है, जो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ का नारा बुलंद करते हैं।
दुनिया पाकिस्तान का खेल समझ रही है। सेकुलरिज्म, प्रगतिशीलता और आंदोलनकारिता का कंबल ओढ़कर पड़ोसी के हित पूरे करने वालों का खेल हम भारतीय भी ठीक से समझें तब जाकर पूरी बात बनेगी !
साभार- साप्ताहिक पाञ्चजन्य से