अपना भरोसा था कि चूहे बिल में घूसेंगे। दिल्ली में 56 इंची छाती वाले नरेंद्र मोदी की सत्ता से कश्मीर घाटी के अलगाववादियों के हौसले पस्त होंगे। मगर उलटे हिम्मत खुली है। अपने को ऐसी कोई पुरानी तस्वीर ध्यान नहीं पड़ती है जिसमें लोग राजधानी श्रीनगर के मैदान में इकट्ठे हो और पाकिस्तानी झंडे व नारे के साथ भारत को खुलेआम गालियां दें। यही नहीं नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगला जाए और उसका सीमा के इस और उस पार दोनों तरफ रेडियो प्रसारण हो! अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी दिल्ली में पहले भी ईलाज करा कर घाटी लौटते रहे हैं। लेकिन इस बार वे लौटे तो जलसा हुआ। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे और तिरंगे की जगह पाकिस्तानी झंडे दिखलाई दिए। गिलानी ने भाषण देते हुए सुनने वालों से कहा- नरेंद्र मोदी के हाथ मुसलमानों के खून से सने हुए हैं। फिर मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद को चेताते हुए कहा यथास्थिति बरकरार रखी तो बरदाश्त नहीं करेंगे। इस जलसे में मसरत आलम की अगले गिलानी याकि उनके उत्तराधिकारी के रूप में वाहवाही हुई। सो लगता है कि बूढ़े गिलानी की जगह उनके उत्तराधिकारी के रूप में पाकिस्तानपरस्त मसरत आलम नेता बन गया है।
मुफ्ती की सरकार का योगदान है कि सौ दिन नहीं हुए और मसरत आलम और आयशा आंद्रबी नाम की दो ऐसी नई शख्सियत पैदा कर दी है जो खुलेआम पाकिस्तान में विलय की बातें कर रहे हैं। जलसे करा रहे हैं। भारत राष्ट्र-राज्य की सार्वभौमता, एकता-अखंडता को चुनौती देते हुए ललकार रहे हैं कि हिम्मत हो तो हमें जेल में डालो। मुफ्ती सरकार से पहले न मसरत आलम का कोई मतलब था और न आय़शा आंद्रबी का नाम सुना था और न ही बूढ़े-बीमार गिलानी के घाटी में पाकिस्तानी झंडों के बीच जलसे होते थे। मतलब उनके लिए जलसे हों, ताकत का प्रदर्शन हो यह दुर्लभ बात थी। लेकिन आज पंडितों की अलग बस्ती की बात हो तो घाटी में बंद का आह्वान होगा और हल्ला गुला होगा। इसी तरह गिलानी दिल्ली से श्रीनगर लौटे तो उनका जहरीला भाषण होगा तो उसका प्रसारण भी होगा। शर्मनाक बात है कि शाम को गिलानी और जलसे का बचाव करते हुए सत्तारूढ़ पीडीपी के प्रवक्ता इस दलील से बचाव करते मिले कि इन बातों को संवेदनशीलता से हैंडल करना चाहिए। लोगों की भावनाएं जाहिर होने देनी चाहिए। यदि इन्होंने कुछ किया है तो कानून अपना काम करेगा। कानून तोड़ा है तो कार्रवाई होगी और कानूनन कोई उल्लंघन नहीं है तो कुछ नहीं हो सकता।
अब कहने को कह सकते हैं कि भारत की एकता-अखंडता और राष्ट्र-राज्य की ताकत को ठेंगा बताते हुए यदि कोई आजादी की, पाकिस्तान में शामिल होने की बात करे तो यह अधिकार लोकतंत्र में उपलब्ध है। मगर संविधान में मिले हक की बात करते हैं लेकिन उस संविधान को मानते नहीं। कश्मीर घाटी की दिक्कत यह है कि भारत राष्ट्र-राज्य ने उसे धारा 370 में अलग दर्जा दिया हुआ है। इस दर्जे ने ही हुर्रियत नेताओं में यह दलील बनवाई है कि वे अपने को अलग बताते हुए आजादी की बात करते हैं। अपनी इच्छा से पाकिस्तान में विलय का नारा लगाते हैं। संदेह नहीं कि इस हिम्मत को पीडीपी के साथ भाजपा के सरकार बनाने से पंख लगे हैं। कश्मीर घाटी के अलगाववादियों को यह देख हैरानी हुई है, और इसी से शायद उनमें हिमाकत बनी है कि भाजपा ने सत्ता के लिए धारा 370 छोड़ दी। भाजपा ने यदि धारा 370 को बतौर मजबूरी मान लिया है तो इससे देश-दुनिया को मैसेज गया है कि अब कोई माई का लाल धारा-370 को नहीं हटा सकता। तभी घाटी के मुस्लिम अलगाववादियों का हौसला बढ़ा है। इनमें यह सोच है कि ये कथित हिंदू राष्ट्रवादी नरेंद्र मोदी-अमित शाह को पानी पिलवा देंगे। गिलानी ने जलसे के अपने भाषण में नरेंद्र मोदी के खून से रंगे हाथों का जो डायलाग बोला है उसके बाद भारत के प्रधानमंत्री का रेडियो प्रसारण सुनने वालों पर क्या असर रहा होगा, इसे बूझा जा सकता है।
समझने वाली बात गिलानी, मसरत आलम, आयशा आंद्रबी, यासीन मलिक एंड पार्टी के बढ़े हुए हौसले की है। संदेह नहीं है कि पीडीपी और उसके मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने घाटी में ऐसा माहौल बनवा दिया है जिसमें अलगाववादी अनिवार्यतः बेखौफ बनते जाएंगे। मुफ्ती सोचते हैं कि अलगाववादियों के प्रति उदार बन उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सकता है। मगर अलगाववादी, चरमपंथी व उग्रवादी को निपटने का दुनिया में एक ही तरीका है और वह सख्ती का है। सख्ती, लगातार सख्ती से ही थका कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इनकी हिम्मत को तो कतई खुलने नहीं देना चाहिए। फिर कश्मीर के इन अलगाववादियों के साथ तो आजाद भारत के तमाम नेताओं ने तमाम प्रयोग कर डाले है और 67 साल का अनुभव है कि इनकी टेढ़ी दुम सीधी नहीं हो सकती। सो नरेंद्र मोदी, केंद्र सरकार मुगालते में न रहे। मुफ्ती की सरकार से सत्यानाश होगा। पाकिस्तानी झंडों का रैला, घटनाएं बढ़ेगी। इसलिए भाजपा को तुंरत सरकार का मोह छोड़ना चाहिए। इस सरकार से भाजपा जम्मू-लद्दाख के हिंदुओं का भला नहीं करेगी उलटे घाटी में फिर खौफनाक अलगाववादी आंदोलन का दौर शुरू होगा। एक मसरत आलम की रिहाई से कैसी हिम्मत बढ़ी है, यह बुधवार के तमाशे से जग-जाहिर हुआ है तो इससे आगे के क्या संकेत है इसे भी समझ लेना चाहिए।
साभार- http://www.nayaindia.com/
कश्मीर में गद्दारों के हौसले क्यों बुलंद हैं
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