Sunday, November 24, 2024
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ईद और दिवाली हर साल दस दिन पहले क्यों आ जाती है?

हमारे सारे तीज त्यौहार चाँद पर ही आधारित हैं l चाँद का वर्ष 354 दिनों का होता है जबकि सूरज का साल यानि सौर वर्ष 365 दिनों का होता है l दोनों कैलेण्डर में 10-11 दिनों का अंतर है हम मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मानते हैं क्योंकि यह सूर्य के केलेंडर पर आधारित है लेकिन चाँद पर आधारित कैलेण्डर में ईद और दीवाली हर साल 10 दिन पहले आ जाती है जैसे *2012* में दिवाली 13 नवम्बर को, *2013* में 3 नवम्बर को, *2014* में 23 अक्टूबर को आई थी, देखिये सभी में 10-10 दिनों का अंतर है , लेकिन *2015* में यह 11 नवम्बर को आई ।

अर्थात तीन साल बाद फिर अपने पहले वाली स्थिति में आ गई ।ऐसा इसलिए हुआ कि प्रतिवर्ष 10 दिन कम होने से तीन साल बाद चौथे साल में 1 माह जोड़ दिया जाता है इसे *अधिक मास* या *खर मास* कहते हैं और फिर यह क्रम पूर्ववत चलने लगता है l

लेकिन हिजरी केलेंडर में तीन साल बाद एक माह नहीं जोड़ा जाता इसलिए ईद हर साल 10 दिन पहले आ जाती है l जैसे *2012* में 20 अगस्त ,
*2013* में 9 अगस्त, *2014* में 29 जुलाई और *2015* में 19 जुलाई को और *2016* में7 या 8 जुलाई को आयेगी ( चाँद दिखने के अनुसार एकाध दिन का अंतर हो सकता है ) l अगले साल फिर इसमे दस दिन कम हो जायेंगे।

यह कुछ इस तरह हुआ कि जब *हिजरी कैलेण्डर* बना तब हजरत पैगम्बर ने एक बैठक ली और तय किया कि सूर्य के कैलेण्डर की तुलना में वे हर साल इस कैलेण्डर में दस दिन कम करते जायेंगे । ऐसा कुरआन में उल्लेख है । कैलेण्डर की यह व्यवस्था हमारे पूर्वजों द्वारा की गई है और अब तक उसका पालन हो रहा है। हिन्दू हों या मुस्लिम हम धार्मिक त्योहारों में चाँद के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं और अपनी भौतिक जीवन शैली के अनुसार ग्रेगोरियन यानि सूर्य के कैलेण्डर का।
*चाँद और सूरज हमारे एक हैं फिर भी हम लोग अपने बनाये धर्म के नाम पर अपने अपने देवी देवता, पूजा पद्धति , परम्परा , रीति रिवाज , कर्म काण्ड को लेकर आपस में लड़ते रहते हैं।

चाँद के विषय में और कैलेण्डर के विषय में कुछ और महत्वपूर्ण बातें आपको बताना चाहता हूँ ।
1 चाँद का एक दिन सूर्य के पूरे एक दिन ( सूर्योदय से सूर्यास्त ) के बराबर नहीं होता
2 सूर्य के 365 दिन होते हैं और चाँद के सूर्य की तुलना में 354 दिन हाँ ,
3 जब मातृसत्तात्मक व्यवस्था थी तब साल तेरह महीने का होता था . और यह स्त्री के रजस्वला होने की अवधि के अनुसार होता था अर्थात 28 गुणित 13 = 364 दिन
4 यह गणना सूर्य पर ही आधारित थी । 365 वे दिन , रानी अपने लिए एक ‘ पवित्र राजा ‘ का चयन करती थी और उससे सम्बन्ध स्थापित करने के पश्चात् उसकी बलि चढ़ा दी जाती थी ।
5 अगले दिन से फिर एक नया वर्ष प्रारंभ हो जाता था ।
6 चाँद के वर्ष का प्रारंभ बहुत बाद में हुआ । बाद में लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में चाँद की गणना प्रारंभ हुई ।
7 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या एक वर्ष ( सूर्य के 354 दिन ) में मानी गईं ।
8 किन्तु यह केवल कुछ सभ्यताओं के धार्मिक कार्यों में रहा , शेष सभी जगह ग्रेगोरियन केलेंडर अर्थात सूर्य के दिनों की गणना से 365 दिन का वर्ष माना गया ।
9 इसे एडजस्ट करने के लिए ( 365- 354.253 something = 10.345 ) अर्थात यह शेष बचे दस , सवा दस दिन मिलकर तीन साल में 30 दिन हो जाते हैं इसलिए हर तीन साल बाद एक माह जोड़ा गया ।
10 अगर ऐसा न करते तो चाँद और सूर्य के कैलेण्डर बराबर नही चलते . हालाँकि हिजरी कैलेण्डर में ऐसा नहीं किया गया सो वह 354 दिनों का ही रहा .. *सो ईद हर साल 10 दिन कम होती चली जायेगी* . वह हिजरी कैलेण्डर पर आधारित है । यह जानकारी आपको कैसी लगी मुझे व्हाट्स एप पर अवश्य बताएं ।

संपर्क

*शरद कोकास* , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
9425555160 व्हाट्स एप 8871665060

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