उज्जैन का महाकुंभ शुरु हो चुका है। 12 साल पहले हुए पिछले कुंभ में भी मेरा आना हुआ था। मेरे संन्यासी पिताजी ने विशेष शिविर लगाया था। हर बारह साल में होनेवाले पांच या छह कुंभों में भाग लेने का अवसर मिलता रहा है। कल जब मैं दिल्ली में जहाज में बैठा तो वह कुंभयात्रियों से ठसा-ठस भरा हुआ था। कई परिचित मिल गए। पास में बैठी अपरिचित महिलाओं ने बड़ी श्रद्धा और प्रेम से कई चीज़ें खिलाई-पिलाई। पहले दिन लगभग 50 लाख लोग उज्जैन पहुंच गए हैं। महिने भर में पांच करोड़ लोगों के आने की संभावना है।
यहां एक दिन से एक महिने तक टिकनेवाले लोगों के लिए रहने, खाने-पीने, घूमने-फिरने और क्षिप्रा नदी में स्नान करने का जबर्दस्त इंतजाम किया गया है। मध्यप्रदेश की सरकार ने 350 करोड़ रु. खर्च किए हैं। 30 हजार कर्मचारी तैनात हैं। पिछले माह एक कार्यक्रम में मैं उज्जैन आया था तो तैयारियां देखकर मैं दंग रह गया था। पिछले 65-70 साल से मैं उज्जैन-प्रवास करता रहा हूं लेकिन इस बार इस शहर को पहचानना मुश्किल हो रहा था। पता नहीं, सम्राट विक्रमादित्य के जमाने भी यह इतना वैभवशाली था या नहीं। इसका श्रेय मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को जाता है, जिन्होंने पिछले तीन-चार वर्षों में खुद उज्जैन जा-जाकर उसका कायाकल्प कर दिया है।
यहां यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि हिंदुओं के इस धार्मिक आयोजन पर यह धर्म-निरपेक्ष सरकार इतना खर्च क्यों कर रही है? यहां सवाल किसी धर्म-विशेष का नहीं है बल्कि दुनिया के सबसे बड़े मेले का है। यदि ऐसा मेला किसी और धर्म या संप्रदाय का हो तो भी सरकार को इसी तरह का इंतजाम करना पड़ेगा। कुंभ के इस मेले में धर्म-साधना कितनी होगी, कहना मुश्किल है, क्योंकि इस कुंभ के पीछे कई कपोल-कथित मनोहारी कथाएं प्रचलित हैं। हरिद्वार के कुंभ में तो आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद ने पाखंड खंडिनी पताका गाड़कर धार्मिक क्रांति का शंखनाद किया था। इस कुंभ में भी आर्यसमाज और बाबा रामदेव ने अपने शिविर लगाए हैं। इंदौर के प्रसिद्ध समाजसेवी युवा संत भय्यूजी महाराज ने साधु-संतों के पाखंडमय जीवन पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि ये साधु गरीबों की सेवा पर यही अरबों रु. खर्च करने की बात क्यों नहीं सोचते? परलोक के सपने दिखानेवाले ये साधु इहलोक को सुधारने के लिए क्या कर रहे हैं?
मध्यप्रदेश की सरकार ने अपनी ओर से प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है, जिनमें देश के जाने-माने कलाकार आ रहे हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन भी हो रहे हैं, जिनमें कई महत्वपूर्ण विदेशी मेहमानों के आने की संभावना है। यह मालवा का विश्व-उत्सव है। देश और विदेश के करोड़ों लोग मालवा की मीठी बोली, स्वादिष्ट भोजन और आत्मीय व्यवहार से मुग्ध हुए बिना नहीं रहेंगे। मेरी शुभकामनाएं।
साभार -www.vpvaidik.com से