ये पत्रकारिता के कौन से खुदा हैं जो कंगना रनौत को बैन करने की धमकी दे रहे हैं? मतलब एक अभिनेत्री ने कुछ पलटकर बोल क्या दिया, मानो आपके फ्रांस के एफिल टॉवर से भी ऊंचे ‘ईगो’ पर किसी ने अमेरिकी स्कड मिसाइल दाग दी हो? रोज रोना रोते हो कि सरकार हमें ये नहीं करने दे रही है? उस चीज़ की कवरेज से बैन कर रही है? सवाल नहीं पूछने दे रही है? हमारा वहां घुसना बैन कर दिया है? ब्ला..ब्ला..ब्ला.. और अब जब अपनी बारी आई तो खुद ही सरकार बन गए!! अपने ही हाथों से पत्रकारिता की इमरजेंसी का ये अध्यादेश साइन कर दिया?
वाकई गजब का दोहरा चरित्र है। अभी हाल ही में वित्त मंत्री ने बिना अपॉइंटमेंट वित्त मंत्रालय में घुसना ‘बैन’ कर दिया तो अखबार के फ्रंट पेज पर खबर छापकर विरोध हो रहा है! रोज हो रहा है। दिन रात हो रहा है। होना भी चाहिए। पर इस बैन का विरोध कहां है? अपने-अपने ईगो के हॉकिन्स प्रेशर कुकर में? या फिर आपसी सम्बन्धों के फर्निश्ड ड्राइंग रूम में? मतलब सरकार के अगुवा आपको इंटरव्यू न दें, आपका सरकारी विज्ञापन रोक दें, मिलने का मौका तक न दें, सब कर दें पर उनके आगे आपकी जुबान नहीं निकलेगी, क्योंकि तब रोटी से लेकर प्रोविडेंट फंड और विज्ञापन से लेकर रिटायरमेंट तक के डर, बिन मौसम वाली बारिश की तिरपाल बनकर तन जाएंगे!!
मगर एक अभिनेत्री ने पलटकर कुछ बोल क्या दिया, पत्रकारिता के स्वघोषित अल्बर्ट आइंस्टीनों की आंख में जैसे खून उतर आया हो। उसे बैन करने निकल पड़े। मने सलमान खान बेइज्जत कर दे तो हाथ जोड़ लेंगे, ऋषि कपूर हाथ छोड़ दे तो जमीन पकड़ लेंगे मगर एक अभिनेत्री ने दो-चार बातें क्या बोल दीं, खुद को अकड़ में चाचा चौधरी की कॉमिक्स का विशालकाय साबू समझ लिया।
आखिर में कंगना की हिम्मत को सलाम, जिसने न केवल माफी मांगने से मना कर दिया है, बल्कि पत्रकारिता के नाम पर अहंकार का टैबलॉयड निकालने वाले इन माफी-पुत्रों को यह कहकर उनकी जमीन दिखा दी है कि प्लीज मुझे बैन करो। अब कर लो बैन। अहंकार के हर सूखे हुए बुरादे को किसी न किसी जलती हुई माचिस से दो-चार होना होता है। इस बुरादे की माचिस यही थी। Well Done कंगना
(टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की फेसबुक वॉल से)