(19 फरवरी शिवाजी जयंती पर)
महाराष्ट्र के ही नहीं अपितु पूरे भारत के महानायक -वीर छत्रपति शिवा जी महाराज। एक अत्यंत कुशल महान योद्धा और रणनीतिकार थे। वीर माता जीजाबाई के सुपुत्र वीर शिवा जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब महाराष्ट्र ही नहीं अपितु पूरा भारत मुगल आक्रमणकारियों की बर्बरता से आक्रांत हो रहा था। चारों ओर विनाशलीला व युद्ध के बादल मंडराते रहते थे । बर्बर हमलावरों के आगे भारतीय राजाओं की वीरता जवाब दे रही थी । चारों तरफ हाहाकार मचा था। एक के बाद एक भारतीय राजा मुगलों के अधीन हुये जा रहे थे। बिना युद्ध किये वे उनके गुलाम होते जा रहे थे। मंदिरों को लूटा जा रहा था, गायों की हत्या हो रही थी , नारी अस्मिता तार- तार हो चुकी थी।
ऐसे भयानक समय में शिवनेरी किले में माता जीजाबाई ने वीर पुत्र को जन्म दिया । माता जीजाबाई ने बचपन से ही शिवा जी को निर्भीकता और राष्ट्रधर्म का पाठ पढ़ाया। शिवा जी की निर्भयता का उदाहरण उनके बचपन से ही मिलने लगा था। उन्होंने बीजापुर में सुल्तान के आगे सिर नहीं झुकाया। यहीं से उनकी विजय गाथा प्रारम्भ होने लगी । 16 वर्ष की अवस्था तक आते – आते मुगलों के मन में शिवा जी के प्रति भय उत्पन्न होने लग गया था। बीजापुर दरबार से लौटते समय एक बार उन्होनें रास्ते में गायों को हत्या के लिये, लिए जा रहे कसाई के हाथ काट दिए थे।
सन 1642 में रायरेश्वर मंदिर में शिवा जी ने कई नवयुवकों के साथ स्वराज्य की स्थापना करने का निर्णय लिया। सर्वप्रथम तोरण का दुर्ग जीता । उसके बाद उनका एक के बाद एक विजय अभियान चल निकला। 15 जनवरी 1656 को सम्पूर्ण जावली, रायरी सहित आधा दर्जन किलों पर कब्जा किया। सूपा, कल्याण, दाभेल , चोल बंदरगाह पर भी नियंत्रण कर लिया। 30 अप्रैल 1657 की रात्रि को जुन्नरनगर पर विजय प्राप्त की। शिवा जी की सफलताओं से घबराकर तत्कालीन मुगल शासक ने शिवा जी को आश्वस्ति पत्र भेजा था । लेकिन शिवा जी यही नहीं रूके उनका अभियान तेज होता चला गया। बाद में अफजल खां शिवा जी को पकड़ने निकला लेकिन शिवा जी उससे कहीं अधिक चतुर निकले और अफजल खां मारा गया। इसके बाद षिवा जी के यश की र्कीति पूरे भारत में ही नहीं अपितु यूरोप में भी सुनी गयी। विभिन्न पड़ावों ,राजनीति और युद्ध से गुजरते हुए ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन शिवा जी का राज्याभिषेक किया गया। भारतीय इतिहास में पहली मजबूत नौसेना का निर्माण शिवा जी के कार्यकाल में माना गया है। शिवा जी नौसेना में युद्धपोत भी थे तथा भारी संख्या में जहाज भी थे।
शिवा जी भारत के पहले ऐसे शासक थे जिन्होनें स्वराज्य में सुराज की स्थापना की थी। प्रत्येक क्षेत्र में मौलिक क्रांति की। शिवा जी मानवता के सशक्त संरक्षक थे। वे सभी धर्मा का आदर और सम्मान करते थे। लेकिन हिंदुत्व पर आक्रमण कभी सहन नहीं किया। उनके राज्य में गददारी, किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार, धन का अपव्यय आदि पर उनका कड़ा नियंत्रण था। शिवा जी में परिस्थितियों को समझने का चातुर्य था। शिवा जी ने अपने जीवनकाल में भारी यश प्राप्त किया था। इतिहास बताता है कि उन्होनें शून्य से सृष्टि का निर्माण किया। एक छोटी सी जागीर के बल पर बड़े राज्य का मार्ग प्रशस्त किया। शिवा जी ने उत्तर से दक्षिण तक अपनी विजय पताका फहराने में सफलता प्राप्त की थी।
शिवा जी केवल युद्ध में ही निपुण नहीं थे अपितु उन्होनें कुशल शासन तंत्र का भी निर्माण किया। राजस्व ,खेती, उद्योग आदि की उत्तम व्यवस्था की। शिवा जी के शासनकाल में किसी भी प्रकार का तुष्टीकरण नहीं होता था। शिवा जी को एक कुशल शा सक और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई बार शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लिया। उनकी आठ मंत्रियों की मंत्रिपरिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहा जाता था । वह एक समर्पित हिंदू थे अतः धार्मिक सहिष्णु भी थे। वह अच्छे सेनानायक के साथ अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे।
शिवा जी की दूरदृष्टि व्यापक थी। शिवा जी के शासनकाल में अपराधियों को दण्ड अवश्य मिलता था लेकिन अपराध सिद्ध हो जाने पर। शिवा जी का राज्याभिषेक होने के बाद सच्चे अर्थो में स्वराज्य की स्थापना हुई थी। हिंदू समाज में गुलामी और निराशा के भाव के साथ जीने की भावना को शिवा जी ने ही समाप्त किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवा जी के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना तन- मन- धन न्यौछावर कर दिया।
शिवा जी का जीवन वीरतापूर्ण ,अतिभव्य और आदर्श जीवन है। नयी पीढ़ी को शिवा जी की जीवनी पढ़नी चाहिये। इससे उनके जीवन में एक नयी स्फूर्ति और उत्साह का वातावरण पैदा होगा, निराशा का भाव छटेगा एवं हिन्दू धर्म की रक्षा का भी भाव पैदा होगा ।
मृत्युंजय दीक्षित
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