दीपावली के एक दिन पूर्व आने वाली चतुर्दशी को रुप चौदस या रूप चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इसी दिन बजरंग बली हुनमान का जन्म दिवस भी माना गया है। इसे छोटी दीपावली भी कहते है। इस दिन रुप और सौंदर्य प्रदान करने वाले देवता श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है । इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और राक्षस बारासुर द्वारा बंदी बनाई गई सोलह हजार एक सौ कुआँरी कन्याओं को उससे मुक्ति दिलाई थी। नरकासुर के वध के कारण इसे नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
जिस प्रकार महिलाओं के लिए सुहाग पड़वा का स्नान माना जाता है, उसी प्रकार रूप चौदस पर पुरुषों के लिए शुद्घि स्नान माना गया है। वर्षभर ज्ञात, अज्ञात दोषों के निवारणार्थ इस दिन स्नान करने का महत्व शास्त्रों में है।
सूर्योदय के पहले स्नान रूप चौदस को नर्क चौदस भी कहा जाता है। माना जाता है कि सूर्योदय के पहले चंद्र दर्शन के समय में उबटन, सुगंधित तेल से स्नान करना चाहिए। सूर्योदय के बाद जो स्नान करता है, उसे नर्क समान यातना भोगनी पड़ती है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि ऋतु परिवर्तन के कारण त्वचा में आने वाले परिवर्तन से बचने के लिए भी विशेष तरीके से स्नान किया जाता है। माना जाता है कि ग्रीष्म और फिर वर्षा ऋतु के कारण त्वचा में जहाँ नमी बढ़ जाती है। वहीं इसके कारण त्वचा पर अन्य तत्वों की परत भी बन जाती है। इस स्थिति में शीत ऋतु के दौरान त्वचा फटने लगती है। रूप चौदस पर विशेष उबटन के जरिए और गर्मी और वर्षा ऋतु के दौरान बनी परत को हटाने के लिए रूप चौदस पर विशेष उबटन का स्नान उत्तम रहता है। इससे त्वचा फटती नहीं।.