Sunday, April 13, 2025
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ह्रितिक रोशन के आते ही निरमा बाजार से गायब हो गया

एक ग़लती से सबकी पसंद से नापसंद बन गया वाशिंग पाउडर निरमा, डूब गया जमा – जमाया कारोबार आजकल के समय में तो सर्फ के नाम पर कई तरह के पाउडर सामने आ गए हैं, लेकिन एक समय ऐसा था जब सिर्फ निरमा का जादू हर घर में चला करता था। सिर्फ निरमा की धुलाई ही नहीं बल्कि गाना भी काफी मशहूर था।

निरमा के विज्ञापन में एक छोटी सी बच्ची सफेद फ्रॉक पहने दिखती थी, जिसकी तस्वीर निरमा के पैकेट पर भी छपी रहती थी। बता दें कि निरमा वाशिंग पाउडर के फाउंडर करसन भाई पटेल (Karsan Bhai Patel) थे, जिन्होंने देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी (FMCG) कंपनी को भी टक्कर दी थी।करसन भाई पटेल ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। उन्होंने साइकिल पर जाकर प्रोडक्ट बेचने का काम शुरू किया था और 17 हजार करोड़ का कारोबार खड़ा कर दिया परंतु आखिर ऐसा क्या हो गया कि कंपनी की पहचान माना जाने वाला प्रोडक्ट निरमा वाशिंग पाउडर अब कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। अब नए उत्पादों ने वाशिंग पाउडर निरमा की जगह ले ली है। अब यह प्रोडक्ट सिमटकर 6% पर आ गया है, जो कभी बाजार के 60 फीसदी पर कब्जा बनाए रखता था।

करसन भाई पटेल गुजरात के मेहसाणा जिले में एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह अपने जीवन में शुरुआत से ही कुछ करना चाहते थे। जब उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली तो वह अहमदाबाद में लैब टेक्नीशियन की नौकरी करने लगे और बहुत ही जल्द उन्हें गुजरात सरकार के खनन एवं भूविज्ञान विभाग में सरकारी नौकरी भी मिल गई थी परंतु सरकारी नौकरी होने के बावजूद भी उनके मन में कुछ अलग करने का जज्बा था। लेकिन उनके जीवन में भूचाल आ गया।

दरअसल, करसन भाई पटेल की एक छोटी सी बेटी थी, जिसका नाम निरुपमा था। वह निरुपमा को जान से भी ज्यादा चाहते थे। उनकी यह इच्छा थी कि उनकी बेटी एक दिन पूरी दुनिया में नाम कमाए। परंतु उनकी बेटी निरुपमा की अचानक ही एक हादसे में जान चली गई। अचानक से हुए इस हादसे ने करसन भाई पटेल को अंदर से पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया। करसन भाई पटेल को धक्का तो लगा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बिटिया के नाम से ही डिटर्जेंट प्रोडक्‍ट बनाना शुरू कर दिया।

वैसे करसन भाई ने निरमा के नाम से प्रोडक्ट बनाना तो शुरू कर दिया था लेकिन उनके सामने यह सबसे बड़ी चुनौती थी कि बाजार में मौजूद HUL जैसी बड़ी कंपनियों का मुकाबला कैसे करें। लेकिन इसके बावजूद भी करसन भाई पीछे नहीं हटे। उन्होंने नई-नई स्‍ट्रैटजी अपनानी शुरू की। करसन भाई पटेल ने हर पैकेट पर लिखना शुरू किया कि ‘कपड़े साफ नहीं हो तो पैसे वापस।’

बस फिर क्या था, करसन भाई पटेल की यह तरकीब काम कर गई और लोगों ने उनका प्रोडक्ट खरीदना शुरू कर दिया। करसन भाई पटेल के प्रोडक्ट की मांग देखते ही देखते काफी ज्यादा बढ़ गई। जब करसन भाई पटेल ने यह देखा कि उनका कारोबार बढ़ रहा है तो उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर पूरा ध्यान बाजार पर लगा दिया।

करसन भाई पटेल अजब-गजब आइडिया निकालते रहते थे जिससे उनका प्रोडक्ट लोगों तक पहुंचे। करसन भाई पटेल ने तो अपने फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मियों को भी यह कह दिया था कि उनकी पत्नियां दुकानों पर जाकर रोजाना निरमा वाशिंग पाउडर ही मांगे और उनका यह आइडिया काम भी आया।

जब दुकानदारों के पास इस प्रोडक्ट की मांग बढ़ी तो निरमा प्रोडक्ट की बिक्री में भी इजाफा हुआ। सबकी पसंद निरमा… जैसे विज्ञापनों को घर-घर में पसंद किया जाने लगा। निरमा गर्ल ने भी इस प्रोडक्‍ट को काफी फेमस कराया। बता दें कि निरमा की मार्केट हिस्सेदारी साल 2010 में करीब 60% तक पहुंच गई थी।

निरमा की मांग बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ रही थी, जैसे ही निरमा बाजार में आता था वह तुरंत बिक जाता था। धीरे-धीरे निरमा ने दूसरे ब्रांड को भी पछाड़ दिया। साल 2005 तक आते-आते निरमा एक ब्रांड कंपनी बन चुकी थी। इतना ही नहीं बल्कि शेयर बाजार में भी लिस्टेड हो गई थी। कंपनी ने वॉशिंग पाउडर फील्ड में प्रतिस्पर्धा बढ़ती हुई देखी तो अन्य क्षेत्रों में भी निवेश शुरू किया।

सीमेंट कंपनी बनाई, जो देश के पांचवें नंबर पर है। निरमा यूनिवर्सिटी और केमिकल का कारोबार भी शुरू किया। ऐसे में पारंपरिक प्रोडक्ट वाशिंग पाउडर से ध्यान हटता चला गया। प्रोडक्ट में इनोवेशन ना होने के कारण से मार्केट में आने वाले प्रोडक्ट का सामना ना कर पाई।

वही कंपनी से एक गलती विज्ञापन में भी हुई। खासकर महिलाओं को टारगेट कर कंपनी विज्ञापन दिखाती थी परंतु ना जाने क्या कंपनी को सुझा कि इनोवेशन के नाम पर महिला की जगह पुरुष से कपड़े धुलवाने शुरू कर दिए। कभी हेमा मालिनी सहित बॉलीवुड की चार मशहूर अभिनेत्रियों से कंपनी ने विज्ञापन करवाया लेकिन निरमा कंपनी ने इस बार बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन को अपना ब्रांड एंबेसडर बना दिया।

बस गलती यही पर हो गई कि उनका प्रोडक्ट महिलाओं से कनेक्ट ना हो सका और निरमा का बाजार आउट हो गया। कभी डिटर्जेंट पाउडर बाजार के 60 फीसदी पर कब्जा रखने वाला प्रोडक्ट अब सिमटकर 6% पर आ गया है। परंतु निरमा आज भी एक कंपनी के तौर पर मूल्यवान ब्रांड है।

 साभार – Mr Rathore (@Raathore_) / X से 

राष्ट्रीय संग्रहालय में भारतीय बौद्ध विरासत पर दो महत्वपूर्ण डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍मों का विमोचन और विशेष प्रदर्शन

नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय ने नव नालंदा महाविहार (एनएनएम), नालंदा और लाइट ऑफ द बुद्धधर्म फाउंडेशन इंटरनेशनल, इंडिया (एलबीडीएफआई) के सहयोग से 8 अप्रैल 2025 को राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, नई दिल्ली में दो महत्वपूर्ण डॉक्‍यूमेंट्री फिल्मों का विमोचन और प्रदर्शन आयोजित किया।

नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह ने अपने उद्घाटन भाषण में बताया कि उनका विश्वविद्यालय बुद्ध के विचारों और संदेशों के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। ये डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में इसी पहल का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान ‘बुद्ध के पदचिन्हों’ की तीर्थयात्रा कुछ लोकप्रिय स्थलों तक सीमित है, जबकि एक व्यापक बुद्धचरिका (बुद्ध के पदचिन्ह) मौजूद हैं जिसके बारे में दुनिया को जानकारी नहीं है। उनका प्रयास बौद्ध तीर्थयात्रा के दायरे और अवधि को बढ़ाना है।

कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक प्रो. बुद्ध रश्मि मणि ने अध्यक्षीय भाषण दिया। प्रो. मणि ने भारत की बौद्ध विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बौद्ध धर्म के समृद्ध इतिहास और इसकी सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने में इन डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍मों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। प्रो. मणि ने अकादेमिक और सार्वजनिक जागरुकता दोनों के लिए ऐसी पहलों के महत्व पर भी टिप्पणी की।

एलबीडीएफआई की कार्यकारी निदेशक सुश्री वांगमो डिक्सी ने भी इस अवसर पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने इस आयोजन के महत्व पर बल दिया और बताया कि किस तरह यह बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए राष्ट्र के सामूहिक प्रयास में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि इस प्राचीन परंपरा की विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे।

फ़िल्मों के बारे में

नालंदा: समय की यात्रा

डॉक्यूमेंट्री ‘नालंदा: ए जर्नी थ्रू टाइम’ एक अभूतपूर्व फिल्म है जो बौद्ध साहित्य, दर्शन, कला और वास्तुकला के विकास में श्री नालंदा महाविहार (प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय) के अद्वितीय योगदान को दर्शाती है। 5वीं से 13वीं शताब्दी तक नालंदा ने पूरे एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विचारों के वैश्विक आदान-प्रदान का केंद्र था, जिसने चीन, कोरिया, जापान और तिब्बत जैसे देशों में बौद्ध विचार, कला और मूर्तिकला को प्रभावित किया।

इस फिल्म का उद्देश्य बौद्ध परंपराओं और दर्शन को आकार देने में नालंदा द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का दस्तावेजीकरण करना है। इसमें राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक और प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्वविद् डॉ. बीआर मणि के साथ-साथ एनएनएम के पूर्व कुलपति और तिब्बत हाउस, नई दिल्ली के निदेशक आदरणीय गेशे दोरजी दामदुल सहित अन्य विषय विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार शामिल हैं। यह फिल्म पहले 11 मार्च, 2025 को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित बोधिपथ फिल्म फेस्टिवल के पहले संस्करण में दिखाई गई थी।

गुरपा: महाकाश्यप के अंतिम पदचिह्न

गुरपा: महाकाश्यप के अंतिम पदचिह्न थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और भारत के 25 अंतरराष्ट्रीय भिक्षुओं की तीर्थयात्रा का पता लगाते हैं, क्योंकि वे वेलुवन (राजगीर) से गुरपा पर्वत तक महाकाश्यप की अंतिम यात्रा का पता लगाते हैं। यह डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म कहानी को सिनेमाई तकनीकों के साथ जोड़ती है ताकि आईटीसीसी के आदरणीय महासंघ की पवित्र यात्रा और महाकाश्यप की अंतिम यात्रा के गहन महत्व को प्रस्तुत किया जा सके।

यह डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म महाकाश्यप के जीवन के ऐतिहासिक, भविष्यसूचक और आध्यात्मिक पहलुओं तथा बौद्ध धर्म में सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक, गुरपा पर्वत की पवित्रता पर प्रकाश डालता है। यह फिल्म बुद्ध की शिक्षाओं और बुद्धचरिका के बीच संबंध को रेखांकित करती है, जो बुद्ध के यात्रा क्षेत्रों और उनके प्रमुख शिष्यों के क्षेत्रों को शामिल करने वाली भौगोलिक इकाई है।

फिल्‍म के निर्देशक श्री सुरिंदर एम. तलवार एक प्रशंसित भारतीय फिल्म निर्माता हैं,  जिनके पास ऑडियो-विजुअल उद्योग में 40 से अधिक वर्षों तक काम करने का विशिष्‍ट अनुभव है। उन्होंने कई तरह की फिल्मों का निर्देशन किया है, जिनमें शोध-आधारित डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म, लघु फीचर, डॉक्यू-ड्रामा, कॉरपोरेट फिल्में और पुरस्कार विजेता संगीत वीडियो शामिल हैं। उनकी फिल्मों को संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न मंचों पर प्रदर्शित किया गया है। हाल के वर्षों में तलवार ने केवल बौद्ध धर्म और भारतीय बौद्ध विरासत से संबंधित परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है। उनकी फिल्म ‘बौद्ध धर्म: एक आध्यात्मिक यात्रा’ ने भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार जीते हैं।

लाइट ऑफ़ द बुद्ध धम्म फाउंडेशन इंटरनेशनल – इंडिया (एलबीडीएफआई) और नव नालंदा महाविहार (एनएनएम) द्वारा परिकल्पित इस परियोजना का उद्देश्य 70 किलोमीटर के उस मार्ग को पुनर्जीवित करना है, जिस पर महाकाश्यप ने 26 सौ साल पहले गुरपा पर्वत पर अपने अंतिम विश्राम स्थल तक पहुंचने के लिए यात्रा की थी। इस फ़िल्म का उद्देश्य बौद्ध धर्म में महाकाश्यप के योगदान के बारे में जागरुकता बढ़ाना और प्राचीन सेतिया कारिक परंपरा के पुनरुद्धार को बढ़ावा देना है। यह महत्वपूर्ण डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म आगामी संयुक्त राष्ट्र के वेसाक समारोह 2025 में भी दिखाया जाएगा।

नीचे उफनती समुद्री लहरें, ऊपर रेलगाड़ियाँ: नया पम्बन ब्रिज

कल्पना कीजिए कि आप खिड़की के पास रामेश्वरम-तांबरम की नई रेल सेवा में बैठे हैं। नमकीन हवा आपके चेहरे को छू रही हैऔर आप केवल समुद्र का अंतहीन विस्तार देख रहे हैं। जैसे ही लहरें आपको मदहोशी में ले जाने लगती हैंएक आश्चर्यजनक स्टील संरचना दिखाई देती हैजैसा कि आप फिल्मों में देखते हैं। यह नया पम्बन ब्रिज हैऔर यह भारत द्वारा पहले कभी बनाए गए किसी भी पुल से अलग है।

पम्बन जलडमरूमध्य भारतीय मुख्य भूमि को तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप से अलग करता है। यह अब भारत के पहले वर्टिकल-लिफ्ट रेलवे समुद्री पुल के रूप में प्रभावशाली इंजीनियरिंग चमत्कार का घर है। प्रतिष्ठित लेकिन पुराने पड़ चुके 110 साल पुराने पम्बन पुल की जगह लेने वाली यह नई संरचना सिर्फ धातु और बोल्टों से बनी संरचना मात्र नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि इतिहास और प्रगति किस तरह एक साथ प्रवाहित हो सकती है।

वर्टिकल-लिफ़्ट रेलवे सी ब्रिज क्या है?

एक पुल की कल्पना करें जिसका उपयोग ट्रेनें समुद्र पार जाने के लिए करती हैं। कभी-कभी, बड़ी नावों को उसी क्षेत्र से गुज़रना पड़ता है जहाँ पुल है। वर्टिकल-लिफ़्ट रेलवे सी ब्रिज विशेष प्रकार का पुल है जो बीच में से ऊपर उठ सकता है, ठीक वैसे ही जैसे एक लिफ्ट ऊपर जाती है, ताकि नावें सुरक्षित रूप से उसके नीचे जा सकें।

एक बार नाव के गुज़र जाने के बाद, पुल वापस नीचे आ जाता है ताकि ट्रेन अपनी यात्रा जारी रख सके। यह चलता-फिरता पुल है जो ट्रेनों और नावों दोनों को एक-दूसरे के रास्ते में आए बिना अपने रास्ते पर जाने में मदद करता है।

 

विरासत से आधुनिकता तक

मूल पम्बन ब्रिज अपने समय की एक उपलब्धि थी। इसका उद्घाटन 1914 में किया गया था। यह तीर्थयात्रियों और व्यापारियों को रामेश्वरम के पवित्र द्वीप से जोड़ने वाली गौरवशाली जीवन रेखा के रूप में खड़ा था। लेकिन वर्षों से, समय और ज्वार ने इसे खत्म कर दिया। कठोर समुद्री परिस्थितियाँ, तेज़ हवाएँ और नमक से भरी हवा ने इसे अपनी उम्र की सीमाओं से पार तक धकेल दिया।

तभी एक नए, मजबूत और स्मार्ट पुल के विचार ने जन्म लिया।

पुराने पुल से लगभग 27 मीटर उत्तर में अब इसका छोटा, शक्तिशाली समकक्ष खड़ा है, जो समुद्र में 2.07 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस पुल को जो चीज वास्तव में खास बनाती है, वह है इसका 72.5 मीटर लंबा वर्टिकल लिफ्ट स्पैन, जो भारतीय रेलवे के लिए पहली बार है। इसका मतलब है कि जब कोई जहाज गुजरना चाहता है, तो पुल का केंद्रीय भाग 17 मीटर ऊपर उठ सकता है, जिससे जहाज आसानी से गुजर सकते हैं। यह पुल के एक टुकड़े को आसमान में तैरते हुए देखने जैसा है।

हालांकि, इसे बनाना आसान नहीं था।

इंजीनियरों को अशांत जल, मुश्किल हवाओं और समुद्र तल से निपटना पड़ा, जिसने हर गणना का परीक्षण किया। सामग्री को अत्यधिक सावधानी से भेजा गया, वेल्ड किया गया और उठाया गया।

नया पुल न केवल स्मार्ट है, बल्कि टिकाऊ भी है। इसकी नींव 330 से अधिक विशाल पाइल्स से गहरी रखी गई है, फ्रेम स्टेनलेस स्टील सुदृढीकरण से बना है, और नमकीन हवा से बचने के लिए इसे विशेष समुद्री प्रतिरोधी कोटिंग्स के साथ चित्रित किया गया है। पुल को भविष्य को ध्यान में रखकर भी बनाया गया है। यह वर्तमान में रेलवे ट्रैक का समर्थन करता है, लेकिन नींव दो रेलवे ट्रैक के लिए पर्याप्त मजबूत है, जो कल आने वाले समय के लिए तैयार है।

धातु से अधिक

लेकिन यह पुल केवल इंजीनियरिंग के बारे में नहीं है। इस पुल का गहरा सांस्कृतिक महत्व है। रामायण के अनुसार, राम सेतु का निर्माण रामेश्वरम के पास धनुषकोडी से शुरू किया गया था। तीर्थयात्रियों के लिए, यह रामेश्वरम के लिए तेज़ और सुरक्षित यात्रा प्रदान करता है। स्थानीय लोगों के लिए, यह बेहतर कनेक्टिविटी और आर्थिक अवसर का वादा करता है। और शेष भारत के लिए, यह गर्व की याद दिलाता है कि हम क्या हासिल कर सकते हैं।

नए पम्बन ब्रिज की भव्यता के पीछे, चुपचाप काम करने वाली स्मार्ट तकनीक छिपी हुई है। थ्री-कप एनीमोमीटर लगातार हवा की गति पर नज़र रखता है। यदि यह 58 किमी प्रति घंटे से अधिक हो जाती है, तो यह स्वचालित लाल सिग्नल को ट्रिगर करता है, सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ट्रेनों को रोक देता है। इस बीच, समुद्र में नियंत्रण कक्ष में, वायुमंडलीय जल जनरेटर साइट पर मौजूद कर्मचारियों के लिए हवा की नमी को स्वच्छ पेयजल में परिवर्तित करता है। साथ में, ये नवाचार चुपचाप जीवन की रक्षा करते हैं और पुल को चालू रखने वाले लोगों का समर्थन करते हैं।

तो अगली बार जब आप उस ट्रेन में सवार हों, तो समुद्री हवा को अपने साथ एक पल के लिए चिंतन में ले जाने दें। जब आप नए पम्बन ब्रिज को पार करते हैं, तो आप सिर्फ़ पानी के ऊपर नहीं चल रहे होते हैं, आप समय, विरासत और नवाचार से गुज़र रहे होते हैं। लहरों के नीचे एक सदी की कहानियाँ छिपी हैं, और उनके ऊपर भारत के भविष्य का वादा। यह पुल सिर्फ़ इंजीनियरिंग का चमत्कार नहीं है- यह लोगों, संस्कृति और सपनों को जोड़ता है। अपनी खामोश ताकत और सुंदर उभार में, यह हमें याद दिलाता है कि प्रगति सिर्फ़ नए निर्माण के बारे में नहीं है, बल्कि पुराने का सम्मान करना और उसे गर्व के साथ आगे ले जाना भी है।

पद्म पुरस्कार-2026 के लिए 31 जुलाई, 2025 तक किए जा सकेंगे नामांकन

गणतंत्र दिवस, 2026 के अवसर पर घोषित किए जाने वाले पद्म पुरस्‍कार-2026 के लिए ऑनलाइन नामांकन/सिफारिशें 15 मार्च 2025 से शुरू हो गई हैं। पद्म पुरस्‍कारों के नामांकन की अंतिम तारीख 31 जुलाई 2025 है। पद्म पुरस्‍कारों के लिए नामांकन/सिफारिशें राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार पोर्टल https://awards.gov.in पर ऑनलाइन प्राप्‍त की जाएंगी।

पद्म पुरस्‍कार, अर्थात पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मानों में शामिल हैं। वर्ष 1954 में स्‍थापित, इन पुरस्‍कारों की घोषणा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है। इन पुरस्‍कारों के अंतर्गत ‘उत्‍कृष्‍ट कार्य’ के लिए सम्‍मानित किया जाता है। पद्म पुरस्‍कार कला, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा, विज्ञान एवं इंजीनियरी, लोक कार्य, सिविल सेवा, व्यापार एवं उद्योग आदि जैसे सभी क्षेत्रों/विषयों में विशिष्‍ट और असाधारण उपलब्धियों/सेवा के लिए प्रदान किए जाते हैं। जाति, व्यवसाय, पद या लिंग के भेदभाव के बिना सभी व्यक्ति इन पुरस्कारों के लिए पात्र हैं। चिकित्‍सकों और वैज्ञानिकों को छोड़कर अन्‍य सरकारी सेवक, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में काम करने वाले सरकारी सेवक भी शामिल है, पद्म पुरस्‍कारों के पात्र नहीं हैं।

सरकार पद्म पुरस्‍कारों को “पीपल्स पद्म” बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। अत:, सभी नागरिकों से अनुरोध है कि वे नामांकन/सिफारिशें करें। नागरिक स्‍वयं को भी नामित कर सकते हैं। महिलाओं, समाज के कमजोर वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, दिव्यांग व्यक्तियों और समाज के लिए निस्वार्थ सेवा कर रहे लोगों में से ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों की पहचान करने के ठोस प्रयास किए जा सकते हैं जिनकी उत्कृष्टता और उपलब्धियां वास्तव में पहचाने जाने योग्य हैं।

नामांकन/सिफारिशों में पोर्टल पर उपलब्ध प्रारूप में निर्दिष्ट सभी प्रासंगिक विवरण शामिल होने चाहिए, जिसमें वर्णनात्मक रूप में एक उद्धरण (citation) (अधिकतम 800 शब्द) शामिल होना चाहिए, जिसमें अनुशंसित व्यक्ति की संबंधित क्षेत्र/अनुशासन में विशिष्ट और असाधारण उपलब्धियों/सेवा का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया हो।

इस संबंध में विस्‍तृत विवरण गृह मंत्रालय की वेबसाइट (https://mha.gov.in) पर ‘पुरस्‍कार और पदक’ शीर्षक के अंतर्गत और पद्म पुरस्‍कार पोर्टल (https://padmaawards.gov.in) पर उपलब्‍ध हैं। इन पुरस्‍कारों से संबंधित संविधि (statutes) और नियम वेबसाइट पर https://padmaawards.gov.in/AboutAwards.aspx लिंक पर उपलब्‍ध हैं।

भारतीय रेशम का जादू: रेशम उत्पादन से उत्कृष्ट कृति तक

रेशम भारत के इतिहास, परंपरा और कला को जोड़ता है, जो कांचीपुरम और बनारसी जैसी प्रतिष्ठित रेशम साड़ियों में स्पष्ट है।
रेशम रेशम के कीड़ों से बनता है जो शहतूत के पत्ते खाते हैं। रेशम के कीड़े कोकून बनाते हैं, जिसे बाद में रेशम के धागे में बदल दिया जाता है और कपड़े में बुना जाता है।
भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।

रेशम एक ऐसा धागा है जो देश के इतिहास, परंपरा और कला को जोड़ता है। कांचीपुरम साड़ियों के समृद्ध, चमकीले रंगों से लेकर भागलपुर टसर की सहज सुंदरता तक, हर रेशमी साड़ी एक कहानी कहती है। वे शुद्ध शहतूत रेशम से बने होते हैं, जिन्हें कारीगरों द्वारा विशिष्ट कौशल के साथ बुना जाता है। यह शिल्पकला पीढ़ियों से चला आ रहा है। जैसे ही करघा उनके हाथों की लय के साथ गुनगुनाता है, रेशम की साड़ी जीवंत हो जाती है – न केवल कपड़े के रूप में, बल्कि रेशम की कला द्वारा एक साथ सिली गई देश की विविधतापूर्ण और जीवंत आत्मा के प्रतीक के रूप में।

रेशम उत्पादन रेशम के कीड़ों को पालने की प्रक्रिया है, जिससे रेशम बनता है। रेशम के कीड़ों को शहतूत, ओक, अरंडी और अर्जुन के पत्तों पर पाला जाता है। लगभग एक महीने के बाद, वे कोकून बनाते हैं। इन कोकूनों को इकट्ठा करके उबाला जाता है, ताकि रेशम नरम हो जाए। फिर रेशम के धागों को बाहर निकाला जाता है, उन्हें मोड़कर सूत बनाया जाता है और कपड़े में बुना जाता है। इस प्रक्रिया से छोटे रेशम के कीड़े चमकदार रेशम में बदल जाते हैं।

भारत रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया में रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। देश में, शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल राज्यों में होता है, जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है।

शहतूत रेशम रेशम के कीड़ों से आता है जो केवल शहतूत के पत्ते खाते हैं। यह मुलायम, चिकना और चमकदार होता है, जो इसे विशिष्ट साड़ियों और कपड़ों के लिए एकदम सही बनाता है। देश के कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 92 प्रतिशत शहतूत से आता है।  गैर-शहतूत रेशम (जिसे वान्या रेशम भी कहा जाता है) जंगली रेशम के कीड़ों से आता है जो ओक, अरंडी और अर्जुन जैसे पेड़ों की पत्तियों पर भोजन करते हैं। इस रेशम में कम चमक के साथ एक प्राकृतिक, सहज एहसास होता है लेकिन यह मजबूत, स्थाई और पर्यावरण के अनुकूल होता है।

रेशम एक उच्च मूल्य लेकिन कम मात्रा वाला उत्पाद है जो दुनिया के कुल कपड़ा उत्पादन का केवल 0.2 प्रतिशत हिस्सा है। रेशम उत्पादन को आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है। विकासशील देश रोजगार सृजन के लिए इस पर निर्भर हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्र में और विदेशी मुद्रा कमाने के साधन के रूप में भी।

भारत के कच्चे रेशम उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-18 में 31,906 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो गया है।
इस वृद्धि को शहतूत के बागानों के विस्तार से सहयोग मिला है, जो वर्ष 2017-18 में 223,926 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 263,352 हेक्टेयर हो गया है, जिससे शहतूत रेशम उत्पादन वर्ष 2017-18 में 22,066 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 29,892 मीट्रिक टन हो गया है।
कुल कच्चे रेशम का उत्पादन वर्ष 2017-18 में 31,906 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 38,913 मीट्रिक टन हो गया।
रेशम और रेशम वस्तुओं का निर्यात वर्ष 2017-18 में 1,649.48 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 2,027.56 करोड़ रुपये हो गया।
वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईएस) की रिपोर्ट के अनुसार, देश ने वर्ष 2023-24 में 3348 मीट्रिक टन रेशम अपशिष्ट का निर्यात किया।

रेशम अपशिष्ट में उत्पादन प्रक्रिया से बचा हुआ या अपूर्ण रेशम शामिल होता है, जैसे कि टूटे हुए रेशे या कोकून के टुकड़े। हालांकि इसे अपशिष्ट माना जाता है, फिर भी इसे रेशम के धागे या कपड़े जैसे निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है, या यहां तक कि नए रेशम के सामान में भी पुनर्चक्रित किया जा सकता है।

भारत में रेशम उद्योग के विकास में सरकारी योजनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये पहल रेशम उत्पादन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता और संसाधन प्रदान करती हैं:

रेशम समग्र योजना देश भर में रेशम उत्पादन उद्योग को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण पहल है। इसका उद्देश्य गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करके उत्पादन को बढ़ाना और देश में रेशम उत्पादन की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से दलित, गरीब और पिछड़े परिवारों को सशक्त बनाना है।

विश्व की राजनीति में भारत के लिए आपदा में अवसर है

अमेरिका ने अन्य देशों से अमेरिका में होने वाली आयातित उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर विश्व के लगभग समस्त देशों के विरुद्द एक तरह से व्यापार युद्ध छेड़ दिया है। इससे यह आभास हो रहा है आगे आने वाले समय में विभिन्न देशों के बीच सापेक्ष युद्ध न होकर व्यापार युद्ध होने लगेगा। चीन से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर तो अमेरिका ने 145 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है। एक तरह से अमेरिका की ओर से चीन को यह खुली चुनौती है कि अब अपने उत्पादों को अमेरिका में निर्यात कर के बताए। 145 प्रतिशत के आयात कर पर कौन सा देश अमेरिका को अपने उत्पादों का निर्यात कर पाएगा, यह लगभग असम्भव है।

इससे चीन की अर्थव्यस्था छिन्न भिन्न हो सकती है, यदि चीन, अमेरिका के स्थान पर विश्व के अन्य देशों को अपने उत्पादों का निर्यात नहीं बढ़ा पाया। बगैर प्रत्यक्ष युद्ध किए, अमेरिका ने चीन पर एक तरह से विजय ही प्राप्त कर ली है और चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान करने के रास्ते खोल दिए हैं, हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। परंतु, ट्रम्प प्रशासन ने विश्व के 75 देशों पर लागू किए गए टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है। इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर अन्यथा होने वाले विपरीत प्रभाव को बहुत बड़ी हद्द तक कम कर लिए गया है। अमेरिका संभवत चाहता है कि आर्थिक मोर्चे पर चीन पर इतना दबाव बढ़ाया जाए कि चीन की जनता चीन के वर्तमान सत्ताधरियों के विरुद्ध उठ खड़ी हो और चीन एक तरह से टूट जाए। अमेरिका ने लगभग इसी प्रकार का दबाव बनाकर सोवियत रूस को भी तोड़ दिया था।

कुल मिलाकर पूरे विश्व में विभिन्न देशों के बीच अब नए समीकरण बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के समस्त सदस्य देश आपस में मिलकर अब अपनी सुरक्षा स्वयं करना चाहते हैं। अभी तक ये देश अमेरिका के सखा देश होने के चलते अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहते थे। परंतु, वैश्विक स्तर पर बदली हुई परिस्थितियों के बीच इन देशों का अमेरिका पर विश्वास कम हुआ है एवं यह देश आपस में मिलकर अपनी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करना चाहते हैं। आगे आने वाले समय में यूरोपीयन यूनियन के समस्त देश अपने सुरक्षा बजट में भारी भरकम वृद्धि कर सकते हैं। यहां, भारत के लिए अवसर निर्मित हो सकते हैं क्योंकि भारत में हाल ही के समय में सुरक्षा के क्षेत्र में उत्पादों की नई एवं भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता निर्मित हुई है। भारत आज सुरक्षा के क्षेत्र में तेजी से न केवल आत्म निर्भर हो रहा है बल्कि भारी मात्रा में उत्पादों का निर्यात भी करने लगा है। आज सिंगापुर जैसे विकसित देश भी भारत से सुरक्षा उत्पाद खरीदने हेतु करार करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। यदि यूरोपीयन देशों के साथ भारत की पटरी ठीक बैठ जाती है तो सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं मौजूद है। भारत, यूरोपीयन देशों के साथ सामूहिक तौर पर द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने के प्रयास भी कर रहा है।

इसी प्रकार, आगे आने वाले समय में यदि चीन के निर्यात अमेरिका को कम होते हैं तो चीन से विनिर्माण इकाईयों का पलायन तेजी से प्रारम्भ होगा। संभवत इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, टेक्स्टायल क्षेत्र, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, प्रेशस मेटल के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है,  क्योंकि, उक्त समस्त क्षेत्रों से चीन, अमेरिका को भारी मात्रा में निर्यात करता है। अब 145 प्रतिशत के टैरिफ की दर पर चीन में निर्मित उत्पाद अमेरिका में नहीं बिक पाएंगे। अतः भारत के लिए इन समस्त क्षेत्रों में अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही हैं। टेक्स्टायल के क्षेत्र में तो वर्तमान में भारत के पास बहुत भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता भी उपलब्ध है। टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत के पड़ौसी देश ही अधिक प्रतिस्पर्धी बने हुए हैं, जैसे बंगलादेश, पाकिस्तान, चीन, वियतनाम आदि। इस समस्त देशों पर अमेरिका द्वारा लगाई गई टैरिफ की दर, भारत की तुलना में कहीं अधिक है। अतः टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत में निर्मित विभिन्न उत्पाद तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। इसका सीधा सीधा लाभ भारतीय टेक्स्टायल उद्योग द्वारा उठाया जा सकता है।

 इसी प्रकार, मोबाइल फोन का उत्पादन करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से सैमसंग एवं ऐपल नामक कम्पनियां भारत में अपनी उत्पादन क्षमता में भारी भरकम वृद्धि करने के बारे में विचार कर रही हैं। वर्ष 2024 में भारत से 2040 करोड़ अमेरिकी डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात विभिन्न देशों को हुआ हैं, यह वर्ष 2023 में हुए निर्यात की राशि से 44 प्रतिशत अधिक है। और, मोबाइल फोन के निर्यात में हुई इस भारी भरकम वृद्धि में ऐपल एवं सैमसंग कम्पनियों का योगदान सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई उत्पादन प्रोत्साहन योजना का लाभ भी भारत में मोबाइल निर्माता कम्पनियों ने भारी मात्रा में उठाया है। भारत आज स्मार्ट मोबाइल के उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। यदि वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां इसी प्रकार बनी रहती हैं तो शीघ्र ही भारत मोबाइल उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा।

अन्य क्षेत्रों में उत्पादन करने वाली बहुराष्ट्रीय बड़ी बड़ी कम्पनियां भी अपनी विनिर्माण इकाईयों को चीन से स्थानांतरित कर भारत में स्थापित कर सकती हैं। कोविड महामारी के खंडकाल के समय भी यह उम्मीद की जा रही थी और चीन+1 नीति का अनुपालन करने के सम्बंध में कई कम्पनियों ने घोषणा की थी परंतु उस समय पर कई कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को ताईवान, वियतनाम, एवं थाईलैंड, आदि जैसे छोटे छोटे देशों में ले गईं थी और इसका लाभ भारत को बहुत कम मिला था। परंतु, आज परिस्थितियां बहुत बदली हुई हैं। छोटे छोटे देशों में बहुत भारी मात्रा में उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने की बहुत सीमाएं हैं। इन देशों में श्रमबल की उपलब्धता सीमित मात्रा में है। जबकि भारत में इस दौरान आधारिक संरचना एवं मूलभूत सुविधाओं में अतुलनीय सुधार हुआ है और भारत में श्रमबल भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

आज जापान, इजराईल, ताईवान, रूस, जर्मनी, फ्रान्स, आस्ट्रेलिया आदि विकसित देश श्रमबल की कमी से जूझ रहे हैं। कई विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि दर लगभग शून्य के स्तर पर आ गई है। बल्कि, कुछ देशों में तो जनसंख्या में कमी होती हुई दिखाई दे रही है। दूसरे, इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है और इन प्रौढ़ नागरिकों की देखभाल के लिए भी युवा नागरिकों की आवश्यकता है। अब कुछ देशों जैसे जापान, इजराईल, ताईवान आदि ने भारत सरकार से भारतीय नागरिकों के इन देशों में बसाने के बारे में विचार करने को कहा है। इजराईल सरकार ने लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग भारत सरकार से की है, जापान सरकार ने भी लगभग 2 लाख भारतीयों की मांग की है एवं ताईवान सरकार ने भी लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग की है।

भारत आज विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे युवा देश है। अतः भारत आज इस स्थिति में है कि अपने नागरिकों को इन देशों में बसाने के लिए भेज सके। वैसे भी विश्व के कई देशों में आज लगभग 4 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं एवं इन देशों की अर्थव्यवथा में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मजबूत भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। भारतीय नागरिक वैसे भी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हैं एवं इन देशों में शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करते हैं। इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी किसी भी देश पर अपनी ओर से आक्रमण नहीं किया है। भारतीय नागरिक “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना में विश्वास रखते हैं अतः किसी भी देश में वहां के स्थानीय नागरिकों के साथ तुरंत घुलमिल जाते हैं। अतः भारत के लिए विभिन्न देशों को श्रमबल उपलब्ध कराने के क्षेत्र में भी अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है।

कुल मिलाकर भारत सरकार ने भी विभिन्न देशों के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को शीघ्रता के साथ अंतिम रूप देना प्रारम्भ कर दिया है क्योंकि आगे आने वाले समय में विश्व व्यापार संगठन की उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाएगी और आगे आने वाले समय में विदेशी व्यापार के क्षेत्र में दो देशों के बीच आपस में किए गए द्विपक्षीय व्यापार समझौते ही अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे। अतः भारत सरकार को इन देशों से होने वाले द्विपक्षीय समझौतों में भारत के हितों की रक्षा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। बहुत सम्भव है कि भारत का अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौता आगामी 6 माह के अंदर सम्पन्न हो जाए और फिर भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात के लिए एक नया रास्ता खुल जाए।

प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

फिल्म कुर्बानी की वो खनकदार आवाज नाजिया हसनः जब ईश्वर ने अपनी बनाई हुई खूबसूरत पेंटिंग फाड़ दी

1979-80 का एक वाक़िया। मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री ज़ीनत अमान लन्दन में एक सोशल एक्टिविस्ट मुनीज़ा बसीर के घर पर थीं। वहाँ उन्होंने एक गिटार देख कर पूछा कि इसे कौन बजाता है? मुनीज़ा ने अपनी 14 साल की बेटी की तरफ इशारा किया। ज़ीनत ने उस बच्ची से कुछ सुनाने को कहा। बच्ची की आवाज़ में एक नया पैना पन था। एक नई कशिश। ज़ीनत पर उसका जादू सा असर हुआ। उन्हीं दिनों अभिनेता और निर्देशक फ़िरोज़ ख़ान जी ज़ीनत को लेकर एक फ़िल्म बना रहे थे जिसके साउंडट्रैक के लिए उन्हें बिलकुल एक नई तरह की आवाज़ की ज़रूरत थी। इसलिए अगले ही दिन ज़ीनत ने मुनीज़ा को कॉल की और कहा कि मुझे आपकी बेटी की आवाज़ बहुत पसंद आई है और मैं उससे अपनी आने वाली फ़िल्म के साउंडट्रैक के लिए फ़ाइनल करना चाहती हूँ।
थोड़ी बहुत जद्दोजहद के बाद बात तय हो गई, लेकिन उस बच्ची की स्कूल टाइमिंग के कारण रिकॉर्डिंग नहीं हो पा रही थी। लिहाज़ा यह तय हुआ कि स्कूल इंटरवल के बाद कभी हाफ़-डे लेकर रिकॉर्डिंग रख ली जाए। इसलिए एक दिन वह बच्ची स्कूल की यूनिफॉर्म में ही रिकॉर्डिंग स्टूडियो गई। वहाँ पर उसने क़ुर्बानी फ़िल्म के लिए एक गाना रिकॉर्ड किया, जिसके लिरिक्स थे, “आप जैसा कोई मेरी ज़िंदगी में आए, तो बात बन जाए”
उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है।
आप समझ गए होंगे कि यहाँ पर बात हो रही है 15 साल की बच्ची “नाज़िया हसन” की। जिसके इस गाने ने आगे चलकर धूम मचा दिया। इस गाने के लिए उसने मात्र 15 साल की उम्र में ही फ़िल्मफ़ेयर जीता जो कि आज तक एक रिकॉर्ड है।
फ़िल्म ‘क़ुर्बानी’ के इस गीत के म्युज़िक कम्पोज़र थे बिड्डू अपैय्या। उन्होंने इस गीत का आइडिया अमेरिकी गायक लू रॉल्स के लोकप्रिय गीत ‘You’ll Never Find Another Love Like Mine’ से लिया था।
इसके बाद तो जैसे नाज़िया के लिए पूरा आस्मां कम पड़ गया। अपने भाई ज़ोहैब के साथ नाज़िया फ़िल्मों और अल्बम के लिए गाने रिकॉर्ड करने लगी। 1981 में रिलीज़ हुआ उनका अल्बम “डिस्को दीवाने” दुनिया के 14 देशों में टॉप में स्थान बनाया और उसे ‘बेस्ट-सेलिंग एशियन पॉप रिकॉर्ड’ का दर्ज़ा भी मिला। इस अल्बम के रिलीज़ होने के पहले ही दिन अकेले बॉम्बे में ही इसकी एक लाख कॉपियां बिकी थीं। यह पाकिस्तान, भारत, ब्राज़ील, रूस, दक्षिण अफ़्रीका, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, लैटिन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, वेस्टइंडीज और अमेरिका सहित 14 देशों में टॉप टेन चार्ट में पहले नंबर पर रहा। दुनिया भर में इसकी एक करोड़ 40 लाख कॉपियां बिकी थीं, जो उस समय एक रिकॉर्ड था।
कुल मिलाकर नाज़िया और ज़ोहैब की जोड़ी ने साउथ एशिया में आधुनिक संगीत में क्रांति ला दी। इन दोनों को इस क्षेत्र में पॉप संगीत के संस्थापकों में से एक माना जाता है। नाज़िया-ज़ोहैब ने साउथ एशिया में 50 सालों से प्रचलित संगीत परंपरा को बदल डाला। साल 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ से लेकर साल 1980 तक जितने भी प्रयोग हुए थे, नाज़िया हसन की आवाज़ और उसके साथ वाद्य यंत्र बजाने का अनुभव एक ख़ूबसूरत और अनोखा संगीत साबित हुआ।
लेकिन….लेकिन !
दुनिया की तमाम खुबसूरत दास्ताँ के आगे ‘लेकिन’ का पूर्णविराम लग जाता है।
नाज़िया के जादुई गले में साँस भरने वाले फेफड़ों ने बग़ावत कर दिया। सिर्फ़ 35 साल की उमर में नाज़िया फेफड़ों के कैंसर से लड़ती हुई इस दुनिया को अलविदा कह गईं।
“रौशनी ख़त्म हुई उस निगाह के साथ,
मोहब्बत रुख़सत हुई इक आह के साथ”
मशहूर पेंटर वैन गॉग के बारे में सुना था कि जब उन्हें अपनी कोई पेंटिंग बहुत ज़्यादा अच्छी लगने लगती तो वो उसे फाड़ दिया करते थे।
13 अगस्त 2000 को भी यही हुआ। पेंटिंग बनाने वाले को अपनी पेंटिंग शायद ज़्यादा ही भा गई।

वक्फ कानून की आड़ में देश को दंगों की आग में झौंकने के बाज आए सेक्युलर-जिहादी गठजोड़: विहिप

नई दिल्ली।  बंगाल का मुर्शिदाबाद लगातार चौथे दिन दंगों की आग में झुलस रहा है। वक्फ कानून के विरोध में अब संपूर्ण देश को दंगों की आग में जलाने की तैयारी चल रही है। यह आशंका व्यक्त करते हुए विहिप के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र जैन ने स्मरण कराया कि यह कानून वही है जिसको बनाने से पहले लगभग एक करोड़ भारतीयों ने अपनी राय दी थी तथा संसद के दोनों सदनों में 25 घंटे से अधिक की ऐतिहासिक चर्चा हुई थी। इसके बावजूद देश का सेक्यूलर जिहादी गठजोड़ देश को दंगों की आग में झौंकने का कुत्सित प्रयास कर रहा है जिससे उसे बाज आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कानून बनने के बाद इसके विरोध में 18 से अधिक याचिकाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की जा चुकी है। संविधान की दुहाई देने वालों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। ऐसा लगता है देश के संविधान की दुहाई देने वालों को न देश के संविधान की चिंता है ना न्यायपालिका के सम्मान की।
वक्फबोर्ड के नाम पर चल रहे लैंड माफिया और मुस्लिम वोटों पर अपना एकाधिकार मानने वाले सेक्युलर माफिया को चिंता केवल अपने स्वार्थ की है। लैंड माफिया को चिंता है उनके द्वारा हड़पी गई जमीन छिन जाने की, तो सेकुलर माफिया को चिंता है मुस्लिम वोटों पर उनके कथित एकाधिकार के समाप्त होने की।
डॉ जैन ने कहा कि इन दोनों के अपवित्र गठबंधन का वीभत्स स्वरूप 2013 में गुरुग्राम में सामने आया था जब वहाँ के पालम विहार के पार्क की जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित किया था और नमाज के नाम पर जमावड़ा इकट्ठा किया जा रहा था। तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने उनकी हां में हां मिलाई थी जबकि किसी के पास कोई सबूत नहीं था। दिल्ली में अरबों खरबों रुपये मूल्य की 123 सरकारी संपत्तियों पर भी इन्होंने दावा ठोका था जिन्हें तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने बिना सबूत के 2014 में आम चुनाव घोषित होने के दिन ही उन्हे थाली में परोस कर फ्री में दे दिया था।
जागरुक हिंदू समाज, सजग न्यायपालिका और हिंदू संगठनों के अथक प्रयास के कारण ये दोनों षडयंत्र विफल हुए। लेकिन वक्फ कानून में 2013 के संशोधनों के आधार पर संपूर्ण देश में वक्फ के दावों की झड़ी सी लग गई और ऐसा लग रहा था मानो ये पूरे देश को ही वक्फ की संपत्ति घोषित करके कुछ मौलवियों की निजी मलकीयत बना दी जाएगी।
उन्होंने याह भी कहा कि कानून पास होने के बाद उन्हें विरोध करने का तो अधिकार है किन्तु, इसके नाम पर दंगे करने का नहीं। इस अपवित्र गठबंधन ने इसी तरह  देश को बंधक बनाकर भारत का विभाजन करवाया था और शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कानून बनवा लिया था। किन्तु, स्मरण रहे कि अब देश को बंधक बनाना संभव नहीं है। मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग ओवैसी जैसे नेताओं की असलियत को समझता है और देश की जनता राहुल व अखिलेश जैसे सेकुलर माफियाओं को बखूबी जान चुका है। इन लोगों को मालूम है कि कानून की असलियत क्या है और इन लोगों की क्या है। यह पूरे देश को मालूम चल गया है। अब इस गठजोड़ को विरोध के नाम पर दंगों व दंगाइयों से दूर रह कर अपनी इन हरकतों से बाज आना चाहिए।
विनोद बंसल
राष्ट्रीय प्रवक्ता
विश्व हिन्दू परिषद

वैश्विक समरस संस्थान भीलवाड़ा अधिवेशन में कोटा के 8 साहित्य सेवी सम्मानित होंगे

कोटा/  वैश्विक समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत गांधीनगर, गुजरात के 12 अप्रैल को होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन एवं दशाब्दी समारोह में कोटा के आठ साहित्यकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया जाएगा।
संस्थान संस्थापक एवं संचालक डॉ. मुकेश कुमार व्यास ‘स्नेहिल’ ने बताया कि कोटा के डॉ. शशि जैन, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. अपर्णा पाण्डेय, राजेंद्र कुमार जैन, विजय जोशी, महेश पंचोली एवं डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को सम्मानित किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि अन्य सम्मानित होने वाले साहित्यकारों में सन्ध्या रानी चतरा झारखंड,  सुरेन्द्र शर्मा  ‘बशर’ अहमदाबाद,  संतोष शर्मा जी अहमदाबाद ,डॉ.श्यामसिंह जी राजपुरोहित जयपुर , गोविन्द गुरु जी पटवारी धौलपुर, मीना शर्मा जी धौलपुर, सविता धर जी धनबाद झारखण्ड,दसरथ सिंह दबंग भीलवाड़ा , राकेश आनन्दकर अजमेर डॉ.विजयप्रताप सिंह अहमदाबाद , राजेश मित्तल भीलवाड़ा , गौरव भारद्वाज धौलपुर,  ओम उज्ज्वल भीलवाड़ा ,बाल कवि रुद्र प्रताप धौलपुर ,.डॉ.उमासिंह किसलय अहमदाबाद , आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश, अरुण ठाकर जिंदगी जयपुर , मनोहर लाल कुमावत भीलवाड़ा  डॉ. विभा प्रकाश जी लखनऊ , बृजसुन्दर सोनी भीलवाड़ा ,श्रीमती प्रेम सोनी भीलवाड़ा ,श्याम सुन्दर तिवारी मधुप भीलवाड़ा, कवयित्री मधुसिंह महक भीलवाड़ा, श्रीमती शशि ओझा भीलवाड़ा ,श्रीमती कृष्णा माहेश्वरी भीलवाड़ा ,नरेंद्र कुमार वर्मा ‘नरेन’ भीलवाड़ा ,श्रीमती रजनी शर्मा मृदुल धौलपुर .प्रिया शुक्ला धौलपुर , नन्दिनी शर्मा केशरी धौलपुर,  राजेन्द्र पुरोहित जोधपुर , गायत्री सरगम भीलवाड़ा एवं सुनील व्यास पुर, भीलवाड़ा  को सम्मानित किया जाएगा।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
संस्थान मीडिया प्रभारी, कोटा

तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया और 24 तीर्थंकर

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं, जिन्हें विशेष आत्मज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त हुआ और जिन्होंने मोक्ष का मार्ग बताया। तीर्थंकर का अर्थ है “तीर्थ बनाने वाला”, यानी वह आत्मा जिसने संसार सागर से पार होने का मार्ग बनाया और दूसरों को भी मार्ग दिखाया।

तीर्थंकर कैसे बनते हैं?

जैन दर्शन के अनुसार, तीर्थंकर बनने के लिए आत्मा को:

  • अत्यंत पुण्य,
  • महान तपस्या,
  • सात्विक जीवन,
  • और तीर्थंकर नामकर्म का बंध होना आवश्यक होता है।

ये आत्माएँ करोड़ों जन्मों तक तप, संयम, और धर्म का पालन कर तीर्थंकर बनने योग्य बनती हैं।

किसी को तीर्थंकर कैसे घोषित किया जाता है

 जैन धर्म में तीर्थंकर कोई साधारण गुरु या संत नहीं होते — ये ऐसे महापुरुष होते हैं जिन्होंने केवलज्ञान (संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त किया होता है और जो “तीर्थ” अर्थात मोक्षमार्ग की स्थापना करते हैं। तीर्थंकर बनने की प्रक्रिया बहुत विशिष्ट और आध्यात्मिक रूप से गहन होती है।


कोई तीर्थंकर कैसे घोषित होता है?

जैन दर्शन के अनुसार, तीर्थंकर की पहचान और घोषणा का कोई मानवीय या संस्थागत निर्णय नहीं होता, बल्कि यह कर्म सिद्धांत और आत्मिक योग्यता पर आधारित होती है। इसमें मुख्य बातें होती हैं:


1. तीर्थंकर नामकर्म बंध

  • किसी जीव (आत्मा) के पिछले जन्मों के उत्तम पुण्य और तप से उसका तीर्थंकर नामकर्म बंधता है।
  • यह बंध जीवन के अत्यंत पुण्यशील और त्यागमय अवस्था में होता है।
  • यह कर्म तय करता है कि वह आत्मा आगे चलकर तीर्थंकर बनेगी।

2. देवों की पूर्व-घोषणा (पूर्वचिन्ह)

  • जब वह आत्मा मनुष्य योनि में तीर्थंकर बनने के लिए जन्म लेती है, तो इंद्रदेव (सुरेन्द्र) और अन्य देवता उसे पहचानते हैं।
  • जन्म से पहले कल्पवृक्ष, सिंहासन, चक्र, देवदुन्दुभि, और सपनों के रूप में माता को संकेत मिलते हैं (उदाहरण: त्रिशला माता को 16 स्वप्न)।

3. जन्म के समय शुभ लक्षण

  • तीर्थंकरों के जन्म के समय दिव्य घटनाएँ होती हैं:
    • पृथ्वी पर शांति छा जाती है
    • इंद्रदेव जन्माभिषेक कराते हैं
    • आकाशवाणी होती है
    • माता-पिता को दिव्य आनंद की अनुभूति होती है

4. केवलज्ञान की प्राप्ति

  • तीर्थंकर कठिन तपस्या और ध्यान के बाद केवलज्ञान प्राप्त करते हैं — यानी उन्होंने संसार के समस्त पदार्थों और आत्मा को पूरी तरह जान लिया होता है।
  • इसके बाद वे धर्मचक्र प्रवर्तन करते हैं, यानी चार तीर्थ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) की स्थापना करते हैं।

5. तीर्थंकर की भूमिका

  • वे केवल उपदेशक नहीं, मोक्षमार्ग के मार्गदर्शक होते हैं।
  • उनके उपदेशों को श्रुतज्ञान के रूप में अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाता है।
क्रम तीर्थंकर का नाम प्रतीक चिन्ह
1 ऋषभनाथ (आदिनाथ) बैल (बृषभ)
2 अजितनाथ हाथी
3 संभवनाथ घोड़ा
4 अभिनन्दननाथ वानर (बंदर)
5 सुमतिनाथ क्रौंच (पक्षी)
6 पद्मप्रभ कमल
7 सुपार्श्वनाथ स्वस्तिक
8 चन्द्रप्रभ चन्द्रमा
9 पुष्पदन्त (सुविधिनाथ) मगरमच्छ
10 शीतलनाथ कल्पवृक्ष
11 श्रेयांसनाथ गैंडा
12 वासुपूज्य भैंसा
13 विमलनाथ शूक
14 अनंतनाथ बाज (गरुड़)
15 धर्मनाथ वज्र (गदा)
16 शांतिनाथ हिरण
17 कुंथुनाथ बकरी
18 अरहनाथ मछली
19 मल्लिनाथ कलश
20 मुनिसुव्रतनाथ कछुआ
21 नमिनाथ नीला कमल
22 नेमिनाथ शंख
23 पार्श्वनाथ सर्प
24 महावीर स्वामी सिंह (शेर)