Thursday, November 28, 2024
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मुसलमानों में शिया सुन्नी विवाद, जातियाँ , मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम देशों का सच

मुस्लिम समुदाय में “जाति” का विचार हिन्दू समाज की जाति व्यवस्था के समान नहीं है। इस्लाम धर्म का मूल सिद्धांत यह है कि सभी लोग अल्लाह के सामने समान हैं, और इस्लाम में किसी व्यक्ति का मूल्य उसके कर्मों और धार्मिकता पर आधारित है, न कि उसकी जाति, नस्ल या परिवार पर। हालांकि, विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों से मुसलमानों में भी कई तरह के समुदाय, समूह, और जातिगत विभाजन देखे जाते हैं।

मुस्लिम समाज के विभाजन के कुछ प्रमुख आधार:

  1. धार्मिक सम्प्रदाय (Sectarianism):
    • सुन्नी (Sunni): मुसलमानों का सबसे बड़ा समूह, जो पैगंबर मुहम्मद के चार खलीफाओं को स्वीकार करता है।
    • शिया (Shia): मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा समूह, जो मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद उनके उत्तराधिकारी हजरत अली और उनके वंशज हैं।
    • सूफी (Sufi): सूफी इस्लाम एक आध्यात्मिक आंदोलन है, जो इस्लाम में एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव और ध्यान पर जोर देता है।
    • अहमदिया (Ahmadiyya): यह समुदाय पैगंबर मुहम्मद के बाद मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मसीहा और महदी मानता है, हालांकि इसे सुन्नी और शिया मुसलमान मुख्यधारा का हिस्सा नहीं मानते।
    • सलफी (Salafi): यह समूह इस्लाम के शुरुआती तीन पीढ़ियों के जीवन शैली और विश्वासों का अनुसरण करने पर जोर देता है।
  2. सांस्कृतिक और जातीय विभाजन (Ethnic and Cultural Divisions):
    • मुसलमान विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से आते हैं, और इनमें कई स्थानीय जातियाँ और उपजातियाँ होती हैं।
    • उदाहरण के लिए:
      • दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश): यहाँ मुसलमानों में अशरफ (उच्च जाति के मुसलमान जैसे सैयद, शेख, पठान, मुगल) और अजलाफ (अन्य जातियाँ) का भेद होता है। इसके अलावा, पिछड़ी जातियाँ और दलित मुस्लिम भी होते हैं।
      • अरब: अरब देशों में कबीलों (tribes) का विभाजन है, जैसे कुरैश, बानी हाशिम, आदि।
      • अफ्रीका: अफ्रीकी मुस्लिम समाजों में भी कई जातीय समूह होते हैं, जैसे कि स्वाहिली, हौसा, और बर्बर।
      • ईरान: यहाँ शिया मुसलमान बहुसंख्यक हैं, और कुर्द, अजरबैजान, बलूच जैसी जातीय समूह भी पाए जाते हैं।
  3. सामाजिक और आर्थिक वर्ग (Social and Economic Class):
    • कई मुस्लिम समाजों में सामाजिक और आर्थिक विभाजन भी देखा जाता है, जैसे कि अमीर और गरीब के बीच का फर्क, या शहर और गांव के निवासियों के बीच का अंतर।
  4. स्थानीय परंपराएं और उपसमूह (Local Traditions and Subgroups):
    • कई मुसलमान अपने क्षेत्रीय और स्थानीय संस्कृति के अनुसार अलग-अलग समुदायों में बँटे होते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में बोहरा, मेमन, और देओबंदी जैसी उपसमुदाय हैं।

शिया और सुन्नी की क्या पहचान है

इस्लाम के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं, जिनकी पहचान उनके धार्मिक विश्वासों और ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इन दोनों सम्प्रदायों के बीच कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक अंतर हैं जो उनकी पहचान को अलग करते हैं।

  1. शिया (Shia):

शिया मुस्लिम इस्लाम के शुरुआती समय से ही हजरत अली और उनके वंशजों को पैगंबर मुहम्मद के असली उत्तराधिकारी मानते हैं। ‘शिया’ शब्द का मतलब है “अली के अनुयायी”। शिया मुसलमानों का मानना है कि इमामत (धार्मिक नेतृत्व) पैगंबर के परिवार में ही रहनी चाहिए, विशेषकर हजरत अली और उनके वंशजों में।

शिया समुदाय की प्रमुख पहचान:

  • इमामत का सिद्धांत: शिया मुसलमान 12 इमामों को मानते हैं, जो उनके अनुसार पैगंबर मुहम्मद के परिवार से चुने गए हैं।
  • हजरत अली और हुसैन की विशेष महत्ता: हजरत अली को पैगंबर मुहम्मद का सच्चा उत्तराधिकारी और उनके बेटे इमाम हुसैन को कर्बला की लड़ाई का शहीद माना जाता है, जिसका बहुत सम्मान है।
  • आशुरा का पर्व: कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के उपलक्ष्य में मुहर्रम के महीने में आशुरा मनाया जाता है, जिसमें शोक और मातम का माहौल होता है।
  • सिरात और पूजा पद्धति में फर्क: शिया मुस्लिमों की नमाज़ पढ़ने की शैली और उनके धार्मिक रीति-रिवाज सुन्नियों से थोड़े अलग हो सकते हैं, जैसे सजदा के लिए मिट्टी की टैबलेट का प्रयोग।
  1. सुन्नी (Sunni):

सुन्नी इस्लाम के अनुयायी मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद उनके चार खलीफाओं (अबू बकर, उमर, उस्मान, अली) में से किसी को भी धार्मिक और राजनीतिक नेता के रूप में मान्यता दी जा सकती है। ‘सुन्नी’ शब्द ‘सुनना’ से आया है, जो पैगंबर मुहम्मद के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधारित है।

सुन्नी समुदाय की प्रमुख पहचान:

  • खिलाफत का सिद्धांत: सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि नेतृत्व (खिलाफत) समुदाय के विचार से चुना जा सकता है और यह पैगंबर के परिवार तक सीमित नहीं होना चाहिए।
  • चार खलीफाओं की मान्यता: अबू बकर, उमर, उस्मान, और अली को इस्लाम का प्रथम चार खलीफा माना जाता है, और सुन्नी इन सबको सम्मान देते हैं।
  • पूजा पद्धति: सुन्नी मुस्लिमों की नमाज़ पढ़ने की शैली थोड़ी अलग होती है, जैसे वे सीधा सजदा करते हैं और मिट्टी की टैबलेट का उपयोग नहीं करते।
  • सुन्नत और हदीस पर जोर: सुन्नी मुसलमानों के लिए हदीस (पैगंबर मुहम्मद की कहावतें) और सुन्नत (उनका जीवन तरीका) बहुत महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य अंतर:

  • नेतृत्व: शिया समुदाय हजरत अली और उनके वंशजों को धार्मिक नेता मानता है, जबकि सुन्नी समुदाय में नेतृत्व किसी योग्य व्यक्ति को चुना जा सकता है।
  • धार्मिक प्रतीक: शियाओं में इमामों का बहुत उच्च स्थान है, विशेषकर इमाम हुसैन, जबकि सुन्नियों में खलीफाओं का सम्मान होता है।
  • आध्यात्मिकता और धार्मिक अनुष्ठान: शिया और सुन्नी मुसलमानों के धार्मिक अनुष्ठान, नमाज़ की शैली और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों में मामूली अंतर होते हैं

अहमदिया मुसलमान कौन हैं देवबंदी कौन हैं

अहमदिया और देवबंदी मुसलमान दो अलग-अलग धार्मिक समूह हैं, जो इस्लाम के विभिन्न दृष्टिकोणों और सिद्धांतों का पालन करते हैं। इन दोनों का संबंध इस्लाम से है, लेकिन उनकी मान्यताओं और धार्मिक शिक्षाओं में महत्वपूर्ण अंतर हैं।

  1. अहमदिया मुसलमान (Ahmadiyya Muslims):

अहमदिया इस्लाम का एक अलग समुदाय है, जिसकी स्थापना 19वीं सदी में मिर्ज़ा गुलाम अहमद (1835-1908) ने भारत के क़ादियान (अब पंजाब, भारत में स्थित) में की थी। अहमदिया समुदाय का मानना है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद इस्लाम के मसीहा (मसीह) और महदी (धार्मिक नेता) हैं, जो इस्लामी दुनिया के उद्धारकर्ता के रूप में आए।

अहमदिया समुदाय की प्रमुख मान्यताएँ:

  • मिर्ज़ा गुलाम अहमद का मसीह और महदी होना: अहमदिया मुसलमानों का मानना है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद वही मसीह और महदी हैं जिनकी भविष्यवाणी पैगंबर मुहम्मद ने की थी। वह इस्लाम के पुनरुत्थान और शांति के लिए आए थे।
  • अहमदिया समुदाय के दो प्रमुख संप्रदाय:
    • क़ादियानी: वे अहमदिया जो मानते हैं कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद पैगंबर थे।
    • लाहोरी: यह अहमदिया का एक अन्य समूह है, जो मिर्ज़ा गुलाम अहमद को केवल एक धार्मिक नेता और सुधारक मानता है, न कि पैगंबर।
  • खिलाफत (Caliphate): अहमदिया मुसलमान मानते हैं कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद के बाद खिलाफत की एक प्रणाली बनी रहनी चाहिए, और अब भी अहमदिया समुदाय के पास खलीफा हैं जो उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन का नेतृत्व करते हैं।
  • मुख्यधारा इस्लाम से मतभेद: अहमदिया मुसलमानों का यह दावा सुन्नी और शिया दोनों मुस्लिम समुदायों द्वारा अस्वीकार किया जाता है, जो मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद कोई और नबी या मसीहा नहीं आ सकता। इस कारण, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में अहमदिया मुसलमानों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया है।
  1. देवबंदी मुसलमान (Deobandi Muslims):

देवबंदी एक सुन्नी इस्लामी आंदोलन है, जिसकी स्थापना 19वीं सदी में भारत के देवबंद (उत्तर प्रदेश) में हुई थी। यह आंदोलन दारुल उलूम देवबंद नामक एक धार्मिक संस्थान से शुरू हुआ, जो इस्लामिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। देवबंदी आंदोलन का उद्देश्य इस्लाम के सच्चे रूप को संरक्षित करना और इस्लामी कानून (शरिया) को मानने पर जोर देना था।

देवबंदी समुदाय की प्रमुख मान्यताएँ:

  • इस्लामी कानून (शरिया) का पालन: देवबंदी आंदोलन का उद्देश्य मुसलमानों को इस्लामी कानून के अनुसार जीवन जीने के लिए शिक्षित करना है। वे इस्लाम के कट्टरपंथी रूप को मानते हैं और इसे आधुनिकता से प्रभावित होने से बचाने की कोशिश करते हैं।
  • पैगंबर मुहम्मद के अंतिम नबी होने पर विश्वास: देवबंदी मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद इस्लाम के अंतिम नबी थे, और उनके बाद कोई और नबी नहीं आ सकता। इस मामले में, वे अहमदिया समुदाय से पूर्णतः असहमत हैं।
  • सूफी परंपरा से संबंध: देवबंदी इस्लाम में सूफी सिद्धांतों का प्रभाव है, लेकिन यह बहुत नियंत्रित और शुद्धतावादी दृष्टिकोण अपनाते हैं। वे इस्लाम के धार्मिक कर्तव्यों (जैसे नमाज़, रोज़ा) पर ज़ोर देते हैं।
  • राजनीतिक और धार्मिक प्रभाव: देवबंदी आंदोलन का प्रभाव भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान में गहराई से देखा जा सकता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कई धार्मिक मदरसे देवबंदी विचारधारा के आधार पर चलते हैं।

देवबंदी और अन्य सुन्नी संप्रदायों में अंतर:

  • बरेलवी आंदोलन से मतभेद: देवबंदी मुसलमान बरेलवी मुसलमानों से धार्मिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण में भिन्न हैं। बरेलवी आंदोलन पैगंबर मुहम्मद की आध्यात्मिक शक्ति और सूफी संतों के प्रति अधिक श्रद्धा रखता है, जबकि देवबंदी इस्लाम अधिक शुद्ध और पारंपरिक इस्लामी मूल्यों पर ज़ोर देता है।
  • अहमदिया समुदाय मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मसीह और महदी मानता है, जबकि देवबंदी पैगंबर मुहम्मद के बाद किसी और नबी को मान्यता नहीं देते।
  • अहमदिया का विश्वास सुन्नी और शिया दोनों मुख्यधारा से अलग है, और इन्हें कई इस्लामी देशों में गैर-मुस्लिम माना जाता है, जबकि देवबंदी सुन्नी इस्लाम का हिस्सा हैं और इसे एक शुद्ध और परंपरागत इस्लामी आंदोलन के रूप में देखा जाता है।

देवबंदी मुसलमान दो अलग-अलग धार्मिक समूह हैं, जो इस्लाम के विभिन्न दृष्टिकोणों और सिद्धांतों का पालन करते हैं। इन दोनों का संबंध इस्लाम से है, लेकिन उनकी मान्यताओं और धार्मिक शिक्षाओं में महत्वपूर्ण अंतर हैं। आइए इन दोनों समूहों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

मुस्लिम राष्ट्र 

  1. सऊदी अरब और ईरान:

सऊदी अरब (सुन्नी बहुसंख्यक) और ईरान (शिया बहुसंख्यक) के बीच संबंधों में सबसे गहरा विरोध है। यह शिया-सुन्नी विभाजन, क्षेत्रीय प्रभुत्व और धार्मिक नेतृत्व की लड़ाई पर आधारित है।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • धार्मिक विभाजन: सऊदी अरब सुन्नी इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी संस्करण का पालन करता है, जबकि ईरान शिया इस्लाम का प्रमुख केंद्र है। ये दोनों राष्ट्र इस्लामी दुनिया में अपने-अपने धार्मिक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करते हैं।
  • क्षेत्रीय प्रभुत्व: सऊदी अरब और ईरान मध्य पूर्व में सबसे शक्तिशाली मुस्लिम राष्ट्र बनना चाहते हैं। दोनों देश यमन, सीरिया, इराक और लेबनान जैसे देशों में परोक्ष रूप से एक दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं।
    • यमन में संघर्ष: सऊदी अरब यमन में हादी सरकार का समर्थन करता है, जबकि ईरान हूती विद्रोहियों का समर्थन करता है, जो शिया हैं।
    • सीरिया में संघर्ष: सऊदी अरब ने सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का विरोध किया, जबकि ईरान ने असद की सरकार का समर्थन किया।
  • आर्थिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा: दोनों देश तेल के उत्पादन में प्रमुख हैं, और अपने-अपने आर्थिक और सैन्य प्रभाव का विस्तार करना चाहते हैं।
  1. कतर और सऊदी अरब (तथा उसके सहयोगी देश):

कतर और सऊदी अरब के बीच भी तनाव रहा है, खासकर 2017 में, जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, और मिस्र ने कतर पर राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • कतर का मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ समर्थन: सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों का मानना है कि कतर मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे इस्लामी समूहों का समर्थन करता है, जिन्हें वे अपने लिए खतरा मानते हैं।
  • कतर का ईरान से संबंध: कतर और ईरान के बीच भी अच्छे संबंध हैं, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में, जो सऊदी अरब के लिए चिंता का कारण है।
  • अल जज़ीरा: कतर स्थित समाचार चैनल अल जज़ीरा ने कई अरब देशों की आलोचना की है, जिससे कई देश नाराज हुए हैं।
  1. तुर्की और सऊदी अरब (तथा UAE):

हाल के वर्षों में तुर्की और सऊदी अरब, तथा UAE के बीच भी तनाव बढ़ा है।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • क्षेत्रीय नेतृत्व की लड़ाई: तुर्की राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन के नेतृत्व में इस्लामी दुनिया में अपनी राजनीतिक और धार्मिक स्थिति को मजबूत करना चाहता है, जो सऊदी अरब और UAE के लिए खतरा है।
  • मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन: तुर्की मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता है, जबकि सऊदी अरब और UAE इसे एक आतंकवादी संगठन मानते हैं।
  • कट्टरपंथी इस्लाम बनाम उदारवाद: तुर्की का इस्लामिक शासन मॉडल और राजनीतिक दृष्टिकोण सऊदी अरब और UAE के अपेक्षाकृत रूढ़िवादी दृष्टिकोण से अलग है। यह विशेष रूप से अरब वसंत (Arab Spring) के बाद देखा गया, जहां तुर्की ने कई इस्लामी सरकारों का समर्थन किया।
  1. सऊदी अरब और कतर बनाम सीरिया और हिजबुल्लाह:

सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान, सऊदी अरब और कतर ने सीरियाई विपक्ष का समर्थन किया, जबकि सीरिया की बशर अल-असद सरकार को ईरान और लेबनान स्थित हिजबुल्लाह का समर्थन मिला।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • बशर अल-असद का शासन: सऊदी अरब और कतर ने सीरियाई विपक्षी ताकतों को समर्थन दिया, क्योंकि वे बशर अल-असद के शासन को हटाना चाहते थे। असद सरकार को ईरान और हिजबुल्लाह से समर्थन मिला।
  • हिजबुल्लाह का बढ़ता प्रभाव: हिजबुल्लाह, एक शिया संगठन है, जिसे ईरान से समर्थन मिलता है। यह संगठन लेबनान और सीरिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसे सऊदी अरब और कतर खतरे के रूप में देखते हैं।
  1. सऊदी अरब और यमन:

सऊदी अरब और यमन के हूती विद्रोहियों के बीच तनाव 2015 से चल रहा है, जब सऊदी अरब ने यमन में हस्तक्षेप किया।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • हूती विद्रोहियों का ईरान से समर्थन: हूती विद्रोही, जो शिया ज़ैदी समुदाय से हैं, ईरान से समर्थन प्राप्त करते हैं। सऊदी अरब इसे अपने लिए एक बड़ा खतरा मानता है और इसलिए यमन की हादी सरकार का समर्थन करता है।
  • यमन में युद्ध: यमन में चल रहा गृहयुद्ध, सऊदी अरब और ईरान के बीच एक परोक्ष युद्ध (proxy war) के रूप में देखा जाता है, जिसमें सऊदी अरब हूती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहा है।
  1. तुर्की और मिस्र:

तुर्की और मिस्र के बीच भी हाल के वर्षों में तनाव बढ़ा है, खासकर 2013 में मिस्र में अब्देल फतह अल-सिसी द्वारा मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार को हटाने के बाद।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन: तुर्की ने मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार का समर्थन किया था, जबकि सिसी ने इसे हटा दिया और ब्रदरहुड को कुचलने का काम किया। इससे तुर्की और मिस्र के बीच संबंध खराब हो गए।
  • लीबिया में हस्तक्षेप: तुर्की और मिस्र दोनों लीबिया में विरोधी गुटों का समर्थन कर रहे हैं, जो उनके बीच तनाव का एक और कारण है।

अमेज़न के जंगलों में खोए हुए शहरों की रहरस्यमयी दुनिया

अमेज़न ग्रह के अंतिम महान जंगलों में से एक है, लेकिन सदियों से किंवदंतियाँ प्रचलित हैं कि जंगलों के भीतर खोए हुए शहर मौजूद थे। सोने के कथित शहर एल डोराडो की खोज ने कई स्पेनिश खोजकर्ताओं को मानचित्र से दूर ले जाया, और उनमें से कुछ कभी वापस नहीं लौटे। हाल ही में 20वीं सदी में, ब्रिटिश खोजकर्ता पर्सी फॉसेट ने उस चीज़ की खोज की जिसे वे ज़ेड का खोया हुआ शहर मानते थे। वह जंगल में गायब हो गया और 600 साल पहले शुरू हुई एक कहानी में अपना अधूरा अध्याय जोड़ दिया।

अब कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अमेज़न में वास्तव में प्राचीन शहर मौजूद थे। और जबकि घने, दूरदराज के जंगलों में शहरी खंडहरों को ढूंढना बेहद मुश्किल है, एक महत्वपूर्ण तकनीक ने खेल को बदलने में मदद की है। लगभग 650 फीट ऊपर एक हेलिकॉप्टर में बैठे, वैज्ञानिकों ने प्रकाश-आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक (लिडार) का उपयोग करके डिजिटल रूप से वनों की कटाई की और बोलीविया के अमेज़न में लानोस डी मोजोस के आसपास एक विशाल शहरी बस्ती के प्राचीन खंडहरों की पहचान की, जिसे लगभग 600 साल पहले छोड़ दिया गया था। नई छवियां, विस्तार से, सामाजिक रूप से जटिल कैसाराबे संस्कृति (500-1400 ई.) के एक गढ़ को प्रकट करती हैं, जिसमें शहरी केंद्रों में स्मारकीय मंच और पिरामिड वास्तुकला है। उभरे हुए पुल उपनगरीय जैसी बस्तियों के एक तारामंडल को जोड़ते इस सप्ताह नेचर में वर्णित यह स्थल , सबसे उल्लेखनीय खोज है, जो यह बताती है कि अमेज़न वर्षावन का “जंगल” वास्तव में घनी आबादी वाला था, तथा कुछ स्थानों पर काफी शहरीकृत था, जो कि इस क्षेत्र के इतिहास के शुरू होने से कई शताब्दियों पहले था।

जर्मन पुरातत्व संस्थान के सह-लेखक हेइको प्रुमर्स एक पुरानी स्पेनिश कहावत का हवाला देते हैं, जिसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति उतना अंधा नहीं होता जितना कि वह जो देखना नहीं चाहता। “यह एक मिथक है जिसे यूरोपीय लोगों ने बनाया था, जो वास्तव में जंगल और मनुष्यों द्वारा अछूते विशाल क्षेत्रों की बात करते थे,” वे कहते हैं। “इसलिए बहुत से लोग यह नहीं देखना चाहते थे कि यहाँ ऐसे पुरातात्विक स्थल हैं जो अन्वेषण के योग्य हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “मुझे यकीन है कि अगले 10 या 20 वर्षों में हम ऐसे बहुत से शहर देखेंगे, और उनमें से कुछ तो हमारे पेपर में प्रस्तुत शहरों से भी बड़े होंगे।”

फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी माइकल हेकेनबर्गर इस शोध में शामिल नहीं थे, लेकिन वे लगभग दो दशकों से प्री-कोलंबियन अमेज़न में शहरीकरण का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ललनोस डी मोजोस में बस्तियों के तत्व जैसे कि खाई और पुल, और पार्कलैंड, कामकाजी जंगल और मछली फार्म का एक संशोधित परिदृश्य, प्राचीन अमेज़न में कहीं और भी देखा गया है। लेकिन नए शोध से कुछ नया पता चलता है। अमेज़न में शहरीकरण के पिछले उदाहरणों में ब्राज़ीलियाई अमेज़न का ऊपरी ज़िंगू क्षेत्र शामिल है, जहाँ हेकेनबर्गर कुइकुरो राष्ट्र के साथ काम करते हैं। ऐसी बस्तियों को एक साथ जुड़े गांवों के समूह के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

कुछ विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि वे तकनीकी रूप से शहरी नहीं हैं, क्योंकि उनमें स्पष्ट रूप से परिभाषित बड़े केंद्रों का अभाव है, जिसमें मंच के टीले और यू-आकार के मंदिर जैसी स्मारकीय वास्तुकला है। लेकिन वे शहरी केंद्र ललनोस डी मोजोस में पाए जा सकते हैं। हेकेनबर्गर ने कहा, “मेरे दिमाग में यह पूरी तरह से शहरीकृत अमेज़नियन परिदृश्य का सबसे स्पष्ट मामला है।” “यह एक अद्भुत काम है। यह उन उल्लेखनीय चीजों की श्रृंखला को दर्शाता है जो मनुष्य ने अतीत में अपने भूदृश्यों के साथ काम करने तथा बड़ी से बड़ी आबादी के साथ काम करने के लिए की थीं।”

पिछले हाथों से किए गए पुरातात्विक कार्य और अन्य रिमोट-सेंसिंग प्रयासों ने लानो डी मोजोस क्षेत्र के 1,700 वर्ग मील से अधिक क्षेत्र में सैकड़ों अलग-थलग स्थलों का पता लगाया था, जिसमें कैसरबे द्वारा साल भर बसी बस्तियाँ भी शामिल थीं, जो शिकार करते थे, मछली पकड़ते थे और मक्का जैसी मुख्य फ़सलों की खेती करते थे। लगभग 600 मील की पक्की सड़कें और नहरें भी पहचानी गई थीं। लेकिन सुदूर उष्णकटिबंधीय जंगल में उनका मानचित्रण करने की तार्किक चुनौतियों ने बिंदुओं को जोड़ने और यह देखने के प्रयासों में बाधा डाली कि क्या, या कैसे, वे एक दूसरे से संबंधित थे।

सुदूर, जंगली इलाके में घूमना मुश्किल है और हवा से भी अवशेषों को देखना मुश्किल है। प्रुमर्स कहते हैं, “वहां पहुंचने से पहले यह पता लगाना मुश्किल है कि वहां क्या है और जब आप वहां पहुंचते हैं तो आपको जगहों को खोजने और उन्हें पहचानने में दिक्कत होती है।”

इसलिए टीम ने छह अलग-अलग क्षेत्रों का हवाई लाइडार मानचित्रण किया, जिनका आकार लगभग 4 वर्ग मील से लेकर 32 वर्ग मील तक था, ताकि यह देखा जा सके कि लगभग 500 और 1400 ईसवी के बीच बोलीविया की कासारबे संस्कृति का हृदय स्थल क्या था। एक विमान से, एक लाइडार प्रणाली अवरक्त किरणों का एक ग्रिड नीचे फायर करती है, प्रति सेकंड सैकड़ों हजारों, और जब प्रत्येक किरण पृथ्वी की सतह पर किसी चीज से टकराती है तो यह दूरी के माप के साथ वापस आती है। इससे डेटा बिंदुओं का एक विशाल क्लाउड उत्पन्न होता है, जिसे कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर में फीड किया जा सकता है जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें बनाता है, जिसमें वैज्ञानिक डिजिटल रूप से अमेज़न को नष्ट कर सकते हैं

26 स्थलों में दो बड़े शहरी केंद्र, लैंडिवर और कोटोका शामिल थे। वे पहले से ही मौजूद थे, लेकिन नए मानचित्रों ने उनकी पुरातात्विक जटिलता और विशाल आकार (क्रमशः 1.2 और 0.5 वर्ग मील) का विवरण दिया। प्रत्येक बड़ा केंद्र खाई और प्राचीर किलेबंदी के क्रमिक छल्लों से घिरा हुआ है। इन स्थलों में कृत्रिम छतें, मिट्टी के विशाल मंच वाली इमारतें और 70 फीट से अधिक ऊंचे शंक्वाकार पिरामिड हैं। ये सभी प्रभावशाली नागरिक और औपचारिक इमारतें उत्तर-उत्तरपश्चिम की ओर भी उन्मुख हैं, जिसके बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अमेज़ॅन में प्राचीन स्थलों पर कहीं और देखे गए ब्रह्मांड संबंधी विश्व दृश्य को दर्शाता है ।

पेड़ों को हटाकर हवाई दृश्य में दो केंद्र दिखाई दिए, जिनमें से प्रत्येक में क्षेत्रीय बस्तियों का एक बड़ा नेटवर्क था, जो कई पुलों से जुड़ा हुआ था। वे मार्ग केंद्रों से एक पहिये पर लगे स्पोक की तरह निकलते हैं, और कई मील तक फैले हुए हैं। ये उपनगरीय बस्तियों को जोड़ते हैं, जो केंद्रों के करीब छोटी बस्तियों से लेकर अधिक दूर और यहां तक कि छोटी जगहों तक फैले हुए हैं, जिनका उपयोग अस्थायी शिविरों के रूप में किया जा सकता है। इसी तरह, नहरें भी मुख्य केंद्रों से फैली हुई हैं और नदियों और लगुना सैन जोस से जुड़ती हैं, जो जाहिर तौर पर कोटोका को पानी पहुंचाती थीं।

कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविद् क्रिस फिशर, जो इस अध्ययन में शामिल नहीं हैं और मेसोअमेरिका में विशेषज्ञता रखते हैं, कहते हैं, “मूल रूप से उन्होंने अपने ब्रह्मांड विज्ञान के संदर्भ में परिदृश्य को फिर से ढाला, जो मन को झकझोर देने वाला है।” “एकमात्र समस्या यह है कि यह वास्तुकला मिट्टी की ईंट से बनी थी। इसलिए जबकि उस समय यह माया क्षेत्र में किसी भी चीज़ की तरह शानदार दिख रही थी, माया स्मारक इसलिए टिके रहे क्योंकि उनमें चूना पत्थर था, जबकि ये उतने टिकाऊ नहीं थे।”

कासरबे निश्चित रूप से माया के रूप में प्रसिद्ध नहीं हैं। तो वे कौन थे? इस क्षेत्र में एक दशक के पुरातात्विक कार्य से पता चला है कि उनकी संस्कृति विशिष्ट थी, और जिस क्षेत्र में वे रहते थे वह संभवतः नदी के किनारे के जंगलों के साथ सालाना बाढ़ वाला सवाना था – न कि आज के क्षेत्र में पाए जाने वाले लकड़ी के विशाल अखंड स्टैंड।

एंडियन संस्कृतियाँ, जहाँ स्मारकीय मंच, टीले और मंदिर प्रमुख हैं, भौगोलिक दृष्टि से बहुत दूर नहीं हैं। लेकिन प्रुमर्स कहते हैं कि एंडियन लोगों की आमद या उनका प्रभाव इन शहरी क्षेत्रों के निर्माण के लिए जिम्मेदार नहीं है: “एंडीज़ का बहुत अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है, और आपको एंडीज़ में इस प्रकार की कोई साइट नहीं मिलेगी, इसलिए हम कह सकते हैं कि यह एंडीज़ से नहीं आया है। यह विशिष्ट रूप से अमेज़ोनियन है।”

कासरबे और उनकी बस्तियों का क्या हुआ, यह एक रहस्य बना हुआ है, लेकिन साइटों पर तिथि निर्धारण से पता चलता है कि उनका कब्ज़ा 1400 ई. के आसपास समाप्त हो गया था – अमेज़ॅन में यूरोपीय लोगों के आगमन से पहले। प्रुमर्स का मानना है कि व्यापक सूखा इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। विभिन्न साइटों पर उनकी टीम ने जल भंडारण के लिए विशाल जलाशय पाए हैं, जो कि प्रचुर वर्षा के लिए जाने जाने वाले अमेज़ॅन क्षेत्र में तुरंत अपेक्षित नहीं है।

“बेशक, हम नहीं जानते कि ये पीने के पानी की आपूर्ति के लिए थे या मछली या कछुए पालने के लिए, लेकिन यह बहुत दिलचस्प है कि हमारे पास ये हैं,” वे कहते हैं। “हम जानते हैं कि इतिहास में कई बार अमेज़न क्षेत्रों में भयंकर सूखा पड़ा है। ऐसा इस संस्कृति के साथ भी हो सकता है। इसके लिए बस एक या दो साल की फ़सल की बर्बादी की ज़रूरत है, और लोगों को पलायन करना पड़ता है।”

यद्यपि इसका अंत अज्ञात था, लेकिन यहां पनपने वाली संस्कृति इस बात के बढ़ते प्रमाण में योगदान देती है कि अमेज़न वास्तव में दुनिया के महान अछूते जंगल क्षेत्रों में से एक नहीं है – और अपेक्षाकृत आधुनिक समय तक यह एक अखंड जंगल भी नहीं था।

पैलियोक्लाइमेट अध्ययनों से पता चला है कि अमेज़ॅन के अधिकांश जंगल अनुमान से बहुत छोटे हैं, और अमेज़ॅन के बड़े हिस्से, शायद पाँचवें हिस्से में, वास्तव में अमेरिका में यूरोपीय लोगों के आने से पहले खुले सवाना वातावरण थे। ऐसा वातावरण उस प्रकार की भूदृश्य इंजीनियरिंग को सुगम बनाता होगा जो यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि अमेज़ॅन के लोगों द्वारा अभ्यास किया गया था, जिनमें से कई संभवतः उच्च स्तर के सामाजिक-राजनीतिक संगठन के साथ शहरी या उपनगरीय बस्तियों में रहते थे।

हेकेनबर्गर ने ब्राजील के ज़िंगू क्षेत्र में दशकों तक काम किया है, जहाँ दर्जनों समुदाय हैं जिन्हें वे “गार्डन सिटीज़” कहते हैं, जहाँ घर, चौक और बाड़ की दीवारें हैं। हालाँकि इन साइटों में बोलिविया में पाए जाने वाले बहुत बड़े स्मारक केंद्र नहीं हैं, लेकिन वे सड़कों, पुलों और नहरों की एक प्रणाली से जुड़े हुए थे, जो सभी खेतों, मछली पालन और अन्य सुविधाओं के एक बड़े इंजीनियर परिदृश्य में स्थित हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह कम घनत्व वाली, शहरी संस्कृति – जो शहरी केंद्र के बिना उपनगरीय समुदायों के समूह की तरह थी – उसी क्षेत्र में पनपी जहाँ फॉसेट अपने लॉस्ट सिटी ऑफ़ ज़ेड की तलाश में गायब हो गए थे।

जंगल में इनका पता लगाना भले ही मुश्किल हो, लेकिन इंसानों द्वारा बनाए गए स्पष्ट रूप से मिट्टी के काम, जिन्हें जियोग्लिफ़ के रूप में जाना जाता है, कई अन्य अमेज़ॅन स्थानों में पाए गए हैं। 2018 में, उपग्रह चित्रों का उपयोग करने वाले वैज्ञानिकों ने बताया कि ब्राज़ील के माटो ग्रोसो राज्य में अमेज़न के जंगल के बड़े क्षेत्र, जिन्हें कभी सबसे कम आबादी वाला माना जाता था, गाँवों और अजीबोगरीब आकार की मिट्टी के कामों से भरे हुए थे। यहाँ तक कि यहाँ, बड़ी नदियों से दूर, कई सैकड़ों गाँवों में 1250 और 1500 ई. के बीच दस लाख लोग रह सकते थे , जो कि अमेज़ॅन बेसिन का केवल 7 प्रतिशत हिस्सा है। हालाँकि, अगर बड़े शहरी केंद्रों ने इन आबादी वाले स्थलों को स्थिर किया है, तो उन्हें अभी तक पहचाना नहीं गया है।

बस्तियों की ऐसी खोज बहुत कठिन परिश्रम का परिणाम थी। यहाँ कभी बड़ी और परिष्कृत आबादी थी, लेकिन सुदूर और घने जंगलों वाले अमेज़न में शहरीकरण के स्थायी सबूत मिलना मुश्किल साबित हुआ है। लेकिन लगता है कि लिडार तकनीक भविष्य की खोजों की गति को तेज़ी से बढ़ाएगी। फिशर कहते हैं, “लिडार पुरातत्व के लिए परिवर्तनकारी रहा है और यह काम इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।”

वे कहते हैं, “ये शोधकर्ता ऐसी पैटर्निंग देखने में सक्षम थे जो ज़मीन से दिखाई नहीं देती, और उस पैटर्न ने दो बहुत बड़ी बस्तियों को स्पष्ट रूप से दिखाया, जो एक बस्ती प्रणाली के भीतर अंतर्निहित थीं, जिसमें सामाजिक जटिलता का एक ऐसा स्तर था जो वास्तव में अमेज़न में बहुत अच्छी तरह से प्रदर्शित नहीं किया गया है।” “यह बिल्कुल आश्चर्यजनक है।”

ऐसा लगता है कि अमेज़न कभी मानव गतिविधियों से भरा हुआ था, लेकिन कई प्राचीन स्थल लगभग 500 वर्षों से लगभग अछूते हैं, जिसे प्रुमर्स एक बड़ा लाभ मानते हैं। वे कहते हैं, “इस क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व बहुत कम है, और इसका मतलब है कि हम वहाँ पूर्व-स्पेनिश संस्कृतियों के अवशेषों को लगभग अछूता पा रहे हैं।”

लेकिन अमेज़न तेज़ी से बदल रहा है। खेती, पशुपालन, ऊर्जा उत्पादन और ऐसे प्रयासों का समर्थन करने वाली सड़कों और बांधों को बढ़ावा देने के लिए जंगलों को खत्म किया जा रहा है। उनमें से कई अछूते क्षेत्र, जिनमें अतीत की संस्कृतियों के छिपे हुए रिकॉर्ड हैं, लंबे समय तक ऐसे नहीं रहेंगे। फिशर, अमेज़न और उससे कहीं आगे के बड़े पैमाने पर लिडार स्कैनिंग की वकालत करते हैं, जिसका उद्देश्य एक अर्थ आर्काइव परियोजना के माध्यम से अतीत के अवशेषों को कैप्चर करना है, इससे पहले कि वे भविष्य में खो जाएँ।

वे कहते हैं, “हमारे पास समय कम होता जा रहा है, क्योंकि हम अमेज़न को खो रहे हैं। और हम ऐसी चीज़ें भी खोने जा रहे हैं जिनके बारे में हमें कभी पता ही नहीं था। मेरे लिए, यह एक वास्तविक त्रासदी है।”

साभार-  https://www.smithsonianmag.com/ से

“अबराज उमर”: मक्का के दिल में बसा शांति और आध्यात्मिकता का एक मिश्रण

रियाध, सऊदी अरब

सिटीस्केप 2024 में अलेसेई होल्डिंग ने अपने रियल एस्टेट क्षेत्र  में अपनी शानदार परियोजना का आगाज़ करते हुए, “अबराज उमर होटल एंड रेजिडेंस बाय एमगैलरी” के शुभारंभ की घोषणा की जो पवित्र काबा से कुछ ही कदमों की दूरी पर स्थित है। यह परियोजना एक उत्कृष्ट स्थान बनाने के अलेसायी होल्डिंग के दृष्टिकोण को दर्शाती है जो आध्यात्मिकता और शिष्टता में सामंजस्य स्थापित करती है, जो तीर्थयात्रियों और निवासियों के लिए समान रूप से एक असाधारण अनुभव प्रदान करती है।

पवित्र शहर के केंद्र में स्थित, पवित्र मस्जिद से मात्र 300 मीटर और काबा से 800 मीटर के भीतर, “अबराज उमर” लगभग 60,000 वर्ग मीटर में फैला है। 200 लक्जरी आवासीय इकाइयों और 280 होटल के कमरों के साथ, इस परियोजना को एक बार में लगभग 2,000 मेहमानों को आराम से होस्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो एक परिष्कृत और शांत वातावरण प्रदान करता है जो आगंतुकों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है।

अलेसायी होल्डिंग के सीईओ इंजीनियर हानी हबाशी ने टिप्पणी करते हुए बताया कि, “हमें एक आध्यात्मिक गंतव्य की पेश करते हुए गर्व है जो तीर्थयात्रियों को एक बेहतर व शानदार निवास प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के माध्यम से अलेसाई होल्डिंग का उद्देश्य विजन 2030 के साथ मक्का की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के साथ आधुनिकता का मिश्रण करना है।

“अबराज उमर” में आवास विकल्प में 80 वर्ग मीटर में फैले एक बेडरूम के अपार्टमेंट से लेकर पवित्र मस्जिद के मनोरम दृश्य पेश करने वाले भव्य पेंटहाउस हैं जो तीन बेडरूम के साथ 250 वर्ग मीटर से शुरू होते हैं। 70% से अधिक इकाइयों में विशेष निजी सहायक कमरे शामिल हैं। यह सुनिश्चित करते हुए कि मेहमान उच्चतम स्तर के आराम और देखभाल का अनुभव करें।

इस परियोजना का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव है जिसमें निर्माण के दौरान लगभग 10,000 नौकरियां पैदा हुई है और परिचालन लॉन्च पर अतिरिक्त 5,000 नौकरियां पैदा करती है। यह कार्यबल लक्जरी होटल संचालन में विश्व स्तरीय मानकों का पालन करते हुए निर्माण, आतिथ्य, रसद और सुविधा प्रबंधन का विस्तार करेगा। जेन्सलर, डार इंजीनियरिंग और एचडीपी सहित वैश्विक डिजाइन नेताओं ने डिजाइन पर सहयोग किया, जिसमें एक्कोर ने “एमगैलरी मक्का” होटल का प्रबंधन किया।

“अबराज उमर” में एसएआर 2 बिलियन से अधिक के निवेश हैं, जिसमें अनुमानित रिटर्न एसएआर 3.8 बिलियन से अधिक है। निर्माण तीन साल के भीतर पूरा होने की उम्मीद है, संचालन 2028 में शुरू होने का लक्ष्य है। अपने विशिष्ट डिजाइन और पवित्र स्थान के साथ, “अबराज उमर” सिर्फ एक परियोजना से अधिक है; यह एक अनूठा अनुभव है जो एक उल्लेखनीय गंतव्य में एलिगेंस, शांति और आध्यात्मिकता को एकजुट करता है।

Media Contact Details
Diab Nassar
GM – Golin Saudi Arabia
Ranya Basaad
Media Relations – Golin Saudi Arabia

भव्य पंथी नृत्य प्रतियोगिता में देश के विभिन्न राज्यों के नर्तक दल भाग लेंगे

रायपुर,/ राज्य स्तरीय पथी नृत्य प्रतियोगिता में छत्तीसगढ़ के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों के पंथी नर्तक दल हिस्सा लेंगे। यह प्रतियोगिता बेमेतरा जिले के विकासखण्ड मुख्यालय नवागढ़ में 19 से 21 दिसंबर तक आयोजित की जाएगी। खाद्य मंत्री श्री दयाल दास बघेल के नेतृत्व में सतनामी समाज प्रमुखों के दल ने मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से उनके निवास कार्यालय में भेंट कर उन्हें प्रतियोगिता में शामिल होने का न्योता दिया। मुख्यमंत्री ने श्री साय ने निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार करते हुए जयंती कार्यक्रम में शिरकत करने का आश्वासन दिया।

मुख्यमंत्री श्री साय को प्रतिनिधिमण्डल ने बताया कि परम पूज्य गुरूघासी दास बाबा जी के 268 वीं जयंती के उपलक्ष्य में आगामी माह दिसंबर मेें जयंती मनाने राज्य स्तरीय पंथी नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। सभी समाज के लोगों से आपसी प्रेम और सौहाद्रपूर्ण वातावरण में इस आयोजन को सफल बनाने का अनुरोध किया गया है। देश के विभिन्न राज्यों के पंथी नर्तक दलों को प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा रहा है। आयोजन में सहयोग देने वाले सभी समाज के लोगों को सम्मानित करने की भी योजना है। इस मौके पर प्रतियोगिता का स्वरूप, एवं आयोजन समिति, सुरक्षा समिति सहित अन्य व्यवस्था की भी जानकारी दी गई। इस अवसर पर पूर्व विधायक श्री रामजी भारती, पूर्व विधायक डॉ. सनम जांगड़े, पद्मश्री श्रीमती उषा बारले सहित समाज के अन्य प्रतिनिधि शामिल थे।

देश-विदेश मेें मशहूर हैं पंथी नृत्य

 
देश-विदेश में मशहूर है छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य। यह छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय का पारंपरिक नृत्य है। इस नृत्य में बाबा गुरूघासीदास जी के संदेशों को गीतों और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। यह वस्तुतः एक धार्मिक और आध्यात्मिक नृत्य है। यह नृत्य सामूहिक अराधना की तरह है। इस नृत्य की विशेषता मांदर की थाप और मंजीरे की झांझ में तेज गति से नर्तक नृत्य प्रस्तुत करते है। तेज गति से र्प्रस्तुत किए जाने वाले इस नृत्य से दर्शक रोमांचित हो उठते हैं। पंथी नृत्य में कई वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल होता है, जैसे मांदर, झांझ, झुमका, मंजीरे, चिकारा, हारमोनियम, और बेन्जो आदि शामिल होता है।

राजनेता का बेटा राजनेता क्यों हो?

परिवारवादी शासन-प्रणाली के पक्षधर कभी-कभी यह तर्क भी देते हैं कि डॉक्टर का बेटा जब डॉक्टर बन सकता है, ऐक्टर का बेटा ऐक्टर बन सकता है, बिजनेसमैन का बेटा बिजनेस संभालता है, तो राजनेता का बेटा या बेटी राजनीति में भाग क्यों न ले?—भाग ले सकते हैं । मगर बात यहाँ पर हो रही है एक ही वंश के ‘भद्रजनों’ का पीढ़ी-दर-पीढ़ी सत्ता पर काबिज होने की ‘जुगत’ से।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि राजनीति में गहराती जा रही इस परिवारवादी प्रवृत्ति को अगर रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे लोकतंत्र की मूल-भावना का अवसान हो जाएगा और एक बार फिर लोकशाही के भीतर ही राजशाही के बीज पनपने शुरू हो जाएंगे।
कल तक परिवारवाद को कोसने वाले नेता भी आज अपने बच्चों को परिवारवाद की ओर उन्मुख कर रहे हैं।सभी पार्टियां ऐसा कर रही हैं। दरअसल,”हमाम में सभी नंगे है”। लोककल्याण की अवधारणा अब परिवार-कल्याण की अवधारणा में बदल रही है। ये अवधारणा संवैधानिक भावना के खिलाफ है, संविधान के विपरीत है। एक पार्टी जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक ही परिवार चलाता रहे, पार्टी की सारी व्यवस्था परिवारों के पास ही रहे, यह व्यवस्था स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी कतई नहीं है।
 दरअसल,भारतीय राजनीति में परिवारवाद एवं वंशवाद का बोलबाला तब तक रहेगा जब तक कि इसका विरोध भीतर से न किया जाए। भारतीय जनता को चाहिए कि वह सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से जागरूक बने जिससे कि वह राजनीतिक दलों के नीतियों को समझते हुए गलत नीतियों का विरोध करे।राजनीतिक दलों के नेता नैतिक रूप से परिवार के सदस्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन कर फैसला करें कि संबंधित सदस्य क्या राजनीति के योग्य है या नहीं? अगर योग्य है तो उसे प्रोत्साहित करें अन्यथा नहीं। परिवार-पोषित राजनेताओं को भी यह समझना चाहिए कि परिवारवाद का लोकतंत्र में तब तक कोई स्थान नहीं हो सकता जब तक कि इसे चलाने वाली आम जनता की निगाहों में उस परिवार की साख शंका के घेरे से परे न हो।भारतीय मतदाता अब उत्तरोत्तर जागरूक होता जा रहा है।
डॉ. शिबन कृष्ण रैणा
+918209074186

पैन कार्ड में अब आएगा क्यूआर कौड

क्यूआर कोड से पैन वेरिफिकेशन आसान हो जाएगा। इसके अलावा, इसकी मदद से टैक्सपेयर्स की जानकारी को जल्दी एक्सेस और वेरीफाई किया जा सकता है।

मोदी सरकार ने पैन कार्ड (PAN Card) को अपग्रेड करने की योजना को मंजूरी दे दी है। इसे PAN 2.0 प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है। इस पहल के तहत, सरकार टैक्सपेयर्स को क्यूआर कोड (QR Code) से लैस नए पैन कार्ड जारी करेगी। ऐसे में आपके मन में कई सवाल उठ रहे होंगे जैसे कि नए अपडेट के बाद पुराना पैन कार्ड काम करेगा या नहीं? क्यूआर कोड वाले पैन कार्ड की क्या खासियत है? इसमें क्या-क्या सुविधा मिलेगी? नया वाला पैन कार्ड कैसे बनेगा? इसके लिए कितना चार्ज लगेगा? आइए एक-एक करके इन सभी सवालों का जवाब जानते है…

QR Code वाले PAN Card की खासियत

PAN 2.0 पहले के तहत, सरकार अब क्यूआर कोड से लैस नए पैन कार्ड जारी करेगी। क्यूआर कोड से पैन वेरिफिकेशन आसान हो जाएगा। इसके अलावा, इसकी मदद से टैक्सपेयर्स की जानकारी को जल्दी एक्सेस और वेरीफाई किया जा सकता है। क्यूआर कोड के कारण यह पूरा प्रोसेस ऑनलाइन हो जाएगा। बता दें कि हाल के वर्षों में आयकर विभाग द्वारा पहले से ही पैन कार्ड पर क्यूआर कोड जोड़ा जा रहा है।

अगर आपका पैन कार्ड पहले से बना हुआ है तो आपको फिर से नया पैन कार्ड बनवाने की कोई जरूरत नहीं है। सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि पैन 2.0 परियोजना शुरू होने के बाद भी व्यक्तियों और व्यवसायों के पास मौजूदा पैन वैध रहेगा और उन्हें अपना पुराना नंबर बदलने की कोई जरूरत नहीं होगी।

हां, नए अपडेट के बाद भी पुराना पैन कार्ड काम करते रहेगा।

कैसे मिलेगा QR Code से लैस नया पैन कार्ड?

PAN 2.0 प्रोजेक्ट के तहत, सरकार न सिर्फ पैन कार्ड बल्कि पूरे सिस्टम को ही अपग्रेड करने जा रही है। इसलिए मौजूदा पैन होल्डर्स को सरकारी की तरफ से ही नया पैन कार्ड उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए आपको अप्लाई करने की कोई जरूरत नहीं है।

पैन अपग्रेडेशन के लिए क्या देना होगा कोई चार्ज?

नहीं, पैन अपग्रेडेशन फ्री में होगा। इसके लिए पैन होल्डर्स को किसी भी प्रकार को कोई भुगतान करने की जरूरत नहीं है।

PAN 2.0 क्या है?

पैन 2.0 स्थायी खाता संख्या (Permanent Account Number) सिस्टम को अपग्रेड करने की एक बड़ी पहल है। इसका फोकस टैक्सपेयर्स के लिए एक सहज और डिजिटल अनुभव प्रदान करने पर केंद्रित है। इस पहल के तहत, पैन/टैन से जुड़ी सभी मुख्य और गैर-मुख्य सेवाओं को एकीकृत कर एक पेपरलेस प्लेटफॉर्म तैयार किया जाएगा। पैन 2.0 सिस्टम पैन से जुड़ी सभी सेवाओं के लिए एक केंद्रीयकृत पोर्टल (centralised portal) और यूजर्स डेटा की सुरक्षा के लिए एडवांस साइबर सुरक्षा सुविधाएं प्रदान करेगी।

साभार- https://hindi.business-standard.com/ से

कल्याण सागर का जल जीवन दायिनी

कल्याण सागर तालाब छपिया मंदिर से एक किमी दूर नरेचा गांव के पश्चिम दिशा में स्थित है। यह स्वामी नारायण जी की प्रसादी की एक छतरी है। इस कल्याण सागर के जल में घनश्याम महराज के वचनामृत से मृत शरीर को तैरते छोड़ देने पर जीवन दान मिला था।


प्राचीन समय में राजा नरेचा के राजा सनमान सिंह के पुत्र की शादी थी। राज महल में आनन्द के गीत गाए जा रहे थे। सरोवर के किनारे राजा के आदमी आतिश बाजी और बंदूक की हर्ष फायरिंग कर रहे थे। इस माहौल को देख कर अगल बगल लोग भीड़ लगा कर आनन्द ले रहे थे। यहां पर उसी समय घनश्याम महराज अपने मित्रों के साथ आए हुए थे। एक सिपाही की बंदूक से गलती से गोली छूटते ही दो व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। यह समाचार जब राज महल में गया तो आनन्द की जगह पूरे राज महल में शोक छा गया।

राजा को याद आया कि घनश्याम महराज को सभी लोग भगवान कहते हैं। मैं उनके पास जाकर बिनती करता हूं। वे महाराज जी के पास जाकर दोनों हाथ जोड़ कर बोले, “हे प्रभु! आप सर्व नियंता हैं। इन दोनों की मृत्यु के कारण शोक व्याप्त हो गया है। इन दोनों को जीवन दान दे दें तो अच्छा रहेगा।”

घनश्याम महराज बोले, “एकदम आदमी मृत्यु को नहीं प्राप्त होता है। आप के महल के आगे जो सरोवर है। उसमें दोनों मृतक शरीर को लिटा दें। पानी के स्पर्श से दोनों लोग जीवित हो जाएंगे।”

विश्वास रखकर राजा ने ऐसा ही किया। घनश्याम महाराज पत्थर पर खड़े होकर दोनों का नाम पुकारे, “हे गदाधर! हे

पृथ्वीपाल!आप लोग पानी में क्यों सो रहे हो? पानी से बाहर आओ।” इतना सुनते ही दोनों लोग आलस छोड़ कर उठ खड़े हो गए।

दोनों लोग घनश्याम महराज के पास आकर प्रार्थना करने लगे, “हे भगवान! हम लोग इस सरोवर के जल से आप के धाम को प्राप्त हो गए थे। इतने में आप आदेश दे दिए कि हम इस देह में ही वापस आ गए।”

यह सुनकर सनमान सिंह को यह विश्वास हो गया। बाद में राजा ने घनश्याम और उनके मित्रों को राज महल में स्वागत किया। उन्हें एक अच्छे आसन पर बैठाया गया था। राजा रानी ने मोती के थाल से, चन्दन पुष्प से पूजन किए थे। उन्हें दूध शक्कर और चीउरा इत्यादि खिलाए। घनश्याम महराज की विदाई करते समय रानी ने सुन्दर वचनों से प्रार्थना की, “हे प्रभु! आप काल के भी काल हैं। दीन दयाल हैं। आज आपने हमारी इज्ज़त रख ली। आप हमें परलोक में भी काल, कर्म और माया से रक्षा करना।”

प्रभु ने इस प्रकार अपना आशीर्वाद भी दिया। “इस सरोवर ने दो मानव का कल्याण किया है। इस कारण से यह सरोवर कल्याण सरोवर के नाम से प्रसिद्ध होगा।”

 इस स्थान का स्वामित्व इस समय स्वामी नारायण छपिया के ट्रस्ट के अधीन है। यह बहुत ही उपेक्षित रूप में है। कच्चे घाट जलकुंभी और अन्य जलीय वनस्पतियों  से ढका हुआ है। इसे सरसरी निगाह से देखने पर कोई दिव्यता का रूप नहीं दिखाई देता। विशाल आकर का साइनेज तो देखा जा सकता है। पर इसकी महत्ता जैसा इसे नहीं रखा गया है। मन्दिर प्रशासन को इसके पुनरुद्धार के लिए प्रयास किया जाना चाहिए।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

डॉ आंबेडकर के जातिप्रथा विरोधी विचार को चरितार्थ करने में सहयोगी हो सकती है सनातन हिंदू एकता पदयात्रा

कटेंगे तो बटेंगे हो या जात-पात की करो विदाई हम सब हिन्दू भाई-भाई का नारा। बीते दिनों में यह खूब चर्चा में हैं। पहला नारा राजनीतिक मंच से भारतीय जनता पार्टी की ओर से उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र चुनाव के समय दिया। वहीं दूसरा अभी देश-दुनिया में प्रसिद्ध संत बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपनी सनातन हिंदू एकता पदयात्रा के दौरान दिया। देश भर में लोगों के जहन में यह नारे पहुंच चुके हैं। इन पर खूब राजनीति भी हो रही है।

कई विद्वान इन दोनों के अर्थ निकालकर इन्हें लोगों को तोड़ने के उद्देश्य से बोले गए कह रहे हैं….. लेकिन यह लोग भोपाल में दुनिया के सबसे बड़े इज्तिमा पर कुछ नहीं बोल पाए हैं। ऐसे में यह निर्धारित करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण है कि उन विद्वानों की हिंदुओं को एक करने के विरोध की आखिर मंशा क्या है।

दरअसल यात्राएं निकालना हो या फिर धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से कोई और निर्णय लेना हो, यह कोई गलत बात नहीं है। अपने देश के संविधान में ऐसी बातों को स्थान दिया गया है। संविधान में धर्म का प्रचार-प्रसार करने की भरपूर स्वतंत्रता है। अपने धर्म के लोगों को एक करने की पहल इसमें शामिल मानी जा सकती है। कई लोगों का तो यह तक कहना है कि अगर इस प्रकार की यात्राएं पहले ही निकाल दी गई होतीं तो देश में अब तक बड़ा परिवर्तन आ गया होता। खैर जब जागो तभी सबेरा….

यात्रा पर सवाल उठाने वालों पर भी सवाल

मौलाना शाहबुद्दीन रिजवी ने धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन को लेकर निकाल जा रही यात्रा से हिंसा होने और सांप्रदायिक दंगे होने की आशंका जताई है। हालांकि यात्रा में अब तक इस तरह से कोई भी इस तरह की घटना सामने नहीं आई है।

मौलाना शाहबुद्दीन रिजवी : मुस्लिम पक्ष की ओर से जब कुछ अलग घटनाएं की जाती हैं उस समय शांति का संदेश लेकर समाज का शांतिप्रिय मुखौटा धारण कर एक शख्स आता है, रिजवी जी वही हैं। हाल ही में मुस्लिम पक्ष की ओर से उत्तरप्रदेश के संबल का उदाहरण ही ले लीजिए। जामा मस्जिद में सर्वे के लिए गई टीम पर पथराव जब किया गया तो रिजवी साहब की ओर से शांति की अपील की गई। लेकिन उनकी अपील का असर क्या हुआ अभी कहा नहीं जा सकता क्योंकि वहां हुई हिंसा में पुलिस के कर्मचारी-अधिकारी के घायल होने सहित क्षेत्र की स्थिति काफी खराब हुई है। ऐसे में सवाल करने वालों पर ही सवाल खड़ा होता है।

संविधान में धर्म के प्रचार-प्रसार का अधिकार सभी को 

बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री 21 से 29 नवंबर 2024 तक बागेश्वर धाम से ओरछा रामराजा सरकार मंदिर तक सनातन हिंदू एकता पदयात्रा जब निकाल रहे हैं। उसी समय भोपाल के ईंटखेड़ी में दुनिया के सबसे बड़े आलमी तब्लीगी इज्तिमा की तैयारी चल रही हैं। प्रशासन भी इसकी तैयारियों में जुटा हुआ है। चार दिनों तक यहां दुनिया भर से आए मुस्लिम समाज के लोग यहां पर एकजुट होकर अपने धर्म पर चर्चा करेंगे। अल्लाह की इबादत  करेंगे।

इस तरह के आयोजन का सीधा अर्थ मुस्लिम समाज को एकजुट करना रहता है। धर्म के लोगों को एक करने के लिए जब एक स्थान पर इतना भव्य आयोजन हो रहा है। ऐसे में इस तरह की यात्रा पर सवाल उठाने का कोई औचित्य समझ नहीं आता है। वो भी उस समय जब अन्य चीजों के उदाहरण सामने हो और उन पर सभी ने चुप्पी साधी हो।

जानकारी हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक सभी को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान है। जिनमें 25 वें अनुच्छेद में धर्म को मानने, आचरण करने, और प्रचार करने का अधिकार है। ऐसे में सिर्फ यात्रा को लेकर ही सवाल उठाने का कोई औचित्य नहीं।

डाॅ भीमराव आम्बेडकर के मन की बात 

भारतीय संविधान निर्माण के लिए बनाई गई प्रारूप समिति के अध्यक्ष और देश के पहले कानून मंत्री डॉ भीमराव आम्बेडकर जातिप्रथा के विरोधी थे। उस कालखण्ड में जिस तरह के अनुभव उनके जीवन आए उनके बाद से ही वह जातियों में बंटे हिंदुओं को एक करने के प्रबल पक्षकार थे। वर्तमान परिपेक्ष्य में अगर देखें तो हिंदुओं को एकजुट करने के लिए निकाली जाने वाली डॉ अंबेडकर की बात के विचार को चरितार्थ कर सकती है क्योंकि इन यात्राओं में जातियों में बंटे हिंदुओं को एकजुट करने की प्राथमिकता ही बताई जा रही है।

यह यात्राएं चर्चा में

जातियाें में बंटे हिंदुओं को एक करने के लिए देश में कई यात्राएं निकाली जा रही हैं। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बागेश्वर धाम से ओरछा रामराजा सरकार मंदिर तक सनातन हिंदू एकता पदयात्रा निकाल रहे हैं। दीपांकर महाराज ने देश भर में घूमकर भिक्षा मांगी, जिसमें उन्होंने हिंदुओं से एक होने की अपील की। वह समाज में अलग–अलग लोगों के साथ मिले उनसे बातें कीं। विश्व हिंदू परिषद ने इसी माह सामाजिक समरसता यात्रा निकाली इसके माध्यम से भी उन्होंने जातियों में बंटे लोगों को एक करने का आव्हान किया। इस यात्रा में भी तमाम साधु संतों ने सहभागिता की, जिनका सभी ने स्वागत किया।


(लेखक पत्रकार हैं। यह उनके अपने निजी विचार हैं)

पश्चिम रेलवे पर मनाया गया 75वां संविधान दिवस

मुंबई। पश्चिम रेलवे पर 26 नवंबर, 2024 को हमारे राष्ट्र का 75वां संविधान दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। यह दिन उस शुभ अवसर की याद दिलाता है जब 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को अपनाया गया था। पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री अशोक कुमार मिश्र ने चर्चगेट स्थित पश्चिम रेलवे मुख्यालय में रेल अधिकारियों और कर्मचारियों को संविधान की प्रस्तावना का पाठ कराया।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसारसंविधान दिवस को स्टेशनोंप्रशिक्षण संस्थानों और रेलवे स्कूलों सहित पश्चिम रेलवे के सभी मंडलों में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर रेल अधिकारियोंकर्मचारियोंप्रशिक्षुओं और छात्रों द्वारा संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया गया।

भारतीय डाक विभाग ने मनाया ‘संविधान दिवस’

अहमदाबाद।      भारतीय डाक विभाग द्वारा उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के सभी डाकघरों और प्रशासनिक कार्यालयों में 26 नवंबर, 2024 को ‘संविधान दिवस’ मनाया गया। क्षेत्रीय कार्यालय, अहमदाबाद  में पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने संविधान अपनाने की 75वीं वर्षगांठ पर सभी अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ, संविधान की उद्देशिका का पाठ और वाचन किया, जिसे सभी ने दोहराते हुए संविधान में निहित मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की।

 इस अवसर पर पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान ही नहीं, विश्व के लोकतान्त्रिक इतिहास का अद्वितीय दस्तावेज है। हमारे संविधान का प्रत्येक अनुच्छेद हर नागरिक के अधिकारों की गारंटी है और कर्तव्य का पवित्र स्मरण है। श्री यादव ने कहा कि हमारा संविधान समानता के अधिकार और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के साथ प्रगति व समृद्धि का रास्ता दिखाता है। संविधान में निहित भावना को अंगीकार करके ही हम लोगों का कल्याण कर सकते हैं। हमारा संविधान ही हमारा संकल्प है।

 पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, संविधान सभा में  26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया था। संविधान सभा ने 2 साल 11 माह और 17 दिन की कड़ी मेहनत के बाद संविधान को तैयार किया था। इसको अंगीकृत किये जाने के समय, संविधान में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं और इसमें लगभग 145,000 शब्द थे, जिससे यह अब तक का अंगीकृत किया जाने वाला सबसे लंबा राष्ट्रीय संविधान बन गया। कालांतर में सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय ने 19 नवंबर 2015 को एक अधिसूचना में 26 नवंबर को हर साल ‘संविधान दिवस’ के तौर पर मनाने की बात कही।

 इस अवसर पर प्रवर डाक अधीक्षक अहमदाबाद और गांधीनगर पीयूष रजक, वरिष्ठ अधीक्षक रेलवे मेल सर्विस गोविंद शर्मा, आईपीपीबी क्षेत्रीय प्रबंधक कपिल मंत्री, सहायक निदेशक एम. एम. शेख, रितुल गांधी, डाक उपाधीक्षक अहमदाबाद वी एम व्हॉरा, डाक उपाधीक्षक गांधीनगर मंजुला बेन पटेल, डाक अधीक्षक एस आई मंसूरी, एस के वर्मा, एच सी परमार, लेखाधिकारी पंकज स्नेही सहित उत्तर गुजरात परिक्षेत्र के तमाम अधिकारियों-कर्मचारियों ने संविधान दिवस पर शपथ ली।