Thursday, November 28, 2024
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राष्ट्रीय चिप डिजाइन अवसंरचना के साथ सेमी कंडक्टर के लिए केंद्र सरकार की योजना

चिपपिन (सी-डैक), देश भर में चिप डिजाइनरों के लिए वन-स्टॉप सेंटर, सेमीकंडक्टर उद्योग के अग्रणी सीमेंस ईडीए से विस्तारित समर्थन के साथ तेजी आ रही है

250 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों के 20 हज़ार से ज़्यादा छात्रों को सी2एस प्रोग्राम के अंतर्गत सीमेंस से ईडीए टूल की पहुंच प्राप्त होती है; चिपआईएन केंद्र 5 वर्षों में 85 हज़ार बी.टेक, एम.टेक और पीएचडी छात्रों को लाभान्वित करेगा

डीएलआई योजना और सी2एस कार्यक्रम के अंतर्गत अनुमोदित कंपनियां सी-डैक त्रिवेंद्रम कंप्यूट सुविधा में सीमेंस से वेलोस हार्डवेयर सत्यापन समाधान तक पहुंच प्राप्त करेंगी

128 सीपीयू कोर और 640 मिलियन गेट्स की क्षमता हो, जिससे उन्हें अपनी एसओसी सत्यापन चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिलेगी

सी-डैक में स्थापित चिपपिन सेंटर सबसे बड़ी सुविधाओं में से एक सेमीकंडक्टर डिजाइन वर्कफ़्लोज़ और समाधानों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है। यह देश भर में सेमीकंडक्टर डिज़ाइन समुदाय के लिए राष्ट्रीय चिप डिज़ाइन इन्फ्रास्ट्रक्चर को साथ लाने का प्रयास करता है। यह एक केंद्रीकृत सुविधा है जो पूरे चिप डिजाइन चक्र (5 एनएम या उन्नत नोड तक जा रहा है) के लिए सबसे उन्नत उपकरणों की मेजबानी करती है।

यह भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय की सी2एस (चिप्स टू स्टार्ट-अप) कार्यक्रम और डीएलआई (डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थानों को एससीएल फाउंड्री और पैकेजिंग में डिजाइन निर्माण में व्यापक सेवाएं प्रदान करने के लिए गणना और हार्डवेयर इंफ्रास्ट्रक्चर, आईपी कोर और विशेषज्ञता भी प्रदान करता है।

वर्तमान में 250 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों में अनुमानित 20,000 से ज़्यादा छात्रों और 45 स्टार्ट-अप परियोजनाओं में उद्यमियों के साथ जुड़े, चिपआईएन सेंटर का लक्ष्य बी.टेक, एम.टेक और पीएचडी स्तर पर 85,000 छात्रों को अत्याधुनिक ईडीए (इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन) टूल्स तक पहुंच प्रदान करना है। जिससे आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 5 वर्षों के भीतर सेमीकंडक्टर चिप्स डिजाइन किया जा सके। ईडीए टूल्स तक पहुंच प्राप्त करने वाले संस्थानों की सूची https://c2s.gov.in/EDA_Tool_Support.jsp

शोधकर्ता के बीच सीमेंस से ईडीए उपकरणों की बढ़ती मांग और चिपपिन सेंटर में स्थापित बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के अवसर को ध्यान में रखते हुए। सीमेंस ने अपने ईडीए टूल्स के वर्तमान उपयोग के दायरे को 120 कॉलेजों से 250 से अधिक कॉलेजों तक चिप्स टू स्टार्ट-अप (सी 2 एस) कार्यक्रम और सीमेंस से नवीनतम शक्तिशाली वेलोस™ हार्डवेयर-असिस्टेड सत्यापन समाधान के अंतर्गत डीएलआई योजना के अंतर्गत अनुमोदित कंपनियों तक बढ़ा दिया है।

एसओसी और आईसी डिजाइन चुनौतियों का समाधान करने के लिए वेलोस

सीमेंस के वेलोस में निम्नलिखित मुख्य घटक शामिल हैं – वेलोस स्ट्रैटो हार्डवेयर और ओएस, वेलोस एप्स और वेलोस प्रोटोकॉल सॉल्यूशंस, में 128 सीपीयू कोर की गणना सुविधा और 640 मिलियन गेट्स की क्षमता है। यह जटिल एसओसी (एक चिप्स पर सिस्टम) और अत्यधिक परिष्कृत आईसी (एकीकृत सर्किट) डिजाइनों के डिजाइनरों द्वारा सामना की जाने वाली सत्यापन और सत्यापन चुनौतियों को संबोधित करता है। विवरण https://vegaprocessors.in/hep.php पर देखा जा सकता है

चिपपिन केंद्र भारत के सेमीकंडक्टर विजन को बढ़ावा देगा

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय में समूह समन्वयक (इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी में आर एंड डी) सुश्री सुनीता वर्मा ने कहा की  ,”हम सीमेंस से अधिक संगठनों के लिए ईडीए और डिजाइन समाधानों को और बढ़ाने और विस्तारित करने के संबंध में देश भर के छात्रों, शोधकर्ताओं, संकाय सदस्यों और उद्यमियों से बहुत मांग प्राप्त कर रहे थे। चिपपिन केंद्र में सीमेंस से बढ़ा हुआ समर्थन भारत को सेमीकंडक्टर पावरहाउस में बदलने के दृष्टिकोण को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

“भारत आज महत्वाकांक्षी उद्यमियों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है ताकि वे सेमीकंडक्टर सिस्टम, उपकरणों और भविष्य के उत्पादों को डिजाइन और पुनर्परिभाषित करने में सबसे आगे रहें। सीमेंस को भारत सरकार और एमईआईटीवाई के “चिप्स टू स्टार्ट-अप (सी2एस) प्रोग्राम” में अपनी भागीदारी बढ़ाने पर गर्व है, जो पूरे भारत में 250 शैक्षणिक संस्थानों में अपने अत्याधुनिक ईडीए प्रौद्योगिकी समाधानों की पहुंच का विस्तार करता है। हमारा योगदान भारत की तकनीकी प्रगति को चलाने और राष्ट्र को वैश्विक पावरहाउस बनने की दिशा में प्रेरित करने के लिए इंजीनियरों, शोधकर्ताओं और उद्यमियों की अगली पीढ़ी को सशक्त बनाकर एक मजबूत और आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर ईकोसिस्टम के निर्माण के लिए देश की अटूट प्रतिबद्धता का साक्षी है।

बिमल केड़ियाः एक व्यक्ति जिसका जीवन ही सेवा का विश्वविद्यालय बन गया

मुंबई। मुंबई में ऐसा प्रायः बहुत ही कम देखने को मिलता है कि किसी कामकाजी दिन में अपरान्ह के समय में कोई कार्यक्रम रखा जाए और  मुंबई में विले पार्ले स्थित 916 लोगों की क्षमता वाला हाल खचाखच भर जाए और और स्थिति ये हो जाए कि विशेष आमंत्रित मेहमानों को भी अपनी जगह खोजने के लिए जद्दोजहद करना पड़े और उनको जगह भी नहीं मिल पाए। कई मेहमानों को तो सीढ़ियों पर बैठकर ही संतोष करना पड़े , कार्यक्रम भी मनोरंजन  का न होकर किसी व्यक्ति पर प्रकाशित ग्रंथ के लोकार्पण का होे तो कल्पना की जा सकती है कि मुंबई जैसे शहर में  इस व्यक्ति को चाहने वालों की संख्या क्या होगी।  तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम में हर व्यक्ति पूरे समय सभागृह में बना रहा, कोई भी बिमलजी के व्यक्तित्व पर हो रही चर्चा से वंचित नहीं होना चाहता था। समारोह में जाने माने उद्योगपतियों के साथ ही श्री भागवत परिवार के  शेखर सेन, डॉ चन्द्रप्रकाश द्विवेदी सहित साहित्य, कला व संस्कृति से जुड़े कई विशिष्ट जन उपस्थित थे।

ये सब हुआ सोमवार, 25 नवंबर की अपरान्ह को आयोजित कार्यक्रम  ‘अप्प दीपो भव’ में। इसके केंद्र में थे उत्सव मूर्ति और मुंबई के सेवा के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम विमल जी केड़िया। एक ऐसा धीर गंभीर व्यक्तित्व जिसने अपने जीवन के पूरे 65 वर्ष संघ कार्य में बिता दिए और आज भी किसी युवा से ज्यादा उत्साह और ऊर्जा से लबरेज होकर मुंबई के पास स्थित पालघर जिले के वनवासी गाँवों के वनवासियों की जिंदगी बदलने में लगे हैं।

मुंबई से लेकर देश भर में संघ और सेवा से जुड़ा शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो बिमलजी केड़िया से परिचित नहीं होगा। चेहरे पर स्वाभाविक विनम्रता, और धीर गंभीर व्यक्तित्व के स्वामी

बिमलजी को शायद की कभी किसी ने ऊँची आवाज में बात करते सुना हो मगर उनकी आवाज का दमखम इतना है कि दूर दूर तक पहुँच जाती है। खुद के परिवार , उद्योग और समाज की चिंता करते हुए अपने साथ जुड़े लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं को अपनी समस्या मानकर उसका निदान खोजने वाले बिमलजी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी सोच आसमान से ऊँची और गंभीरता समुद्र की गहराई को नापने वाली। किसी काम को हाथ में लेना है तो इस संकल्प के साथ कि काम कब और कैसे पूरा होगा। मुंबई में संघ के कई भवन, अस्मिता, यशवंत भवन से लेकर केशवसृष्टि जैसा विशाल प्रकल्प बिमल जी के संकल्प और दूरदृष्टि के विलक्षण उदाहरण है।
बिमलजी का पूरा व्यक्तित्व किसी विश्वविद्यालय जैसा है, जिस तरह विश्वविद्यालय में कई विषय पढ़ाए जाते हैं और अलग अलग रुचि वाले विद्यार्थी अपनी पसंद के विषय पढ़ते हैं वैसे ही बिमलजी अकेले कई विषयों में ऐसे शिष्य, कार्यकर्ता और योध्दा तैयार कर चुके हैं कि उनकी गिनती ही संभव नहीं।
जो भी व्यक्ति बिमलजी से जुड़ा है या उनके सान्निध्य में रहा है उसने ये जरुर अनुभव किया होगा कि उनकी छोटी सी डायरी और कुछ पन्ने वे कितने सम्हाल कर रखते हैं। पन्ने भी वो  जो एक तरफ से उपयोग कर लिए गए हैं।
बिमल जी केडिया के अमृत महोत्सवी वर्ष के उपलक्ष्य में उनके आदर्श जीवनी पर हिंदी विवेक द्वारा ‘अप्प दीपो भव’ अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया गया। बिमल जी पर प्रकाशित ग्रंथ अप्प दीपो भव के लोकार्पण में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक माननीय डॉ. मोहन स्वयं उपस्थित हुए । बिमल जी के सामाजिक सारोकारों की चर्चा करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुद्ध व पवित्र है, उसमें कभी मल (मैल) नहीं आ सकता इसलिए वह विमल है। संघ स्वयंसेवक कैसा हो? इसके सर्वोत्तम उदाहरण बिमल केडिया जी हैं। अपने आयु के 65 वर्ष उन्होंने निस्वार्थ भाव से संघ सेवा की है। संघ साधना के बिमल जी साक्षात आदर्श है।  उन्होंने आगे कहा कि संघ भाषण पर नहीं बल्कि जीवन पर खड़ा है। उन्होंने  ज्ञानेश्वरी के अनुसार ।संत ज्ञानेश्वर द्वारा रचित ज्ञानेश्वरी के एक उध्दरण का संदर्भ देते हुए कहा,   ‘ये हृदयींचे ते ह्र्दयीं घातलें’ यही संघ की कार्य पद्धति है, यही बात बिमल जी के संपूर्ण व्यक्तित्व में झलकती है।

डॉ. भागवत ने कहा कि दुनिया भर से लोग मुझे प्रश्न पूछते है कि संघ ऐसा कौन सा प्रशिक्षण देता है जिससे साधारण स्वयंसेवक भी असाधारण कार्य कर जाते हैं। इसका एक ही उत्तर है, हम जन्मभूमि भारतमाता के लिए कार्य करते हैं। वहीं हमारी प्रेरणा है इसलिए संघ कार्य में हमें कोई कष्ट नहीं होता। यह एक साधना है। इस साधना के चार सोपान है। पहला, दृढ़ संकल्प, प्रत्येक स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आने के बाद एक-दो वर्षों में यह मन में गांठ बांध लेता है कि भारतमाता ने जो हमें दिया है वहीं हम लौटा रहे हैं। इसी कृतज्ञ भावना से वह वे काम करते हैं।
बिमल जी केडिया ने अपने 65 वर्षों की संघसेवा में इस अनुशासन का पालन किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुद्ध व पवित्र है, उसमें कभी मल (मैल) नहीं आ सकता इसलिए वह विमल है। मैं स्वयं भी संघ के योग्य बने रहने का सदैव प्रयत्न करता रहता हूं।उन्होंने कहा कि संघ का स्वयं सेवक तो कंदील के अंदर की ज्योति की तरह है काचका रंग जैसा होगा देखने वाले को  उसका प्रकाश भी वैसा ही दिखाई देगा।  संघ स्वयंसेवक भी सदैव स्वयं की जीवनज्योति ऐसा बनाते है कि जैसे निर्मल वे हैं, उसी रूप में वह प्रकट होते हैं। बिमल जी भी वैसे ही है। उनका जीवन भी उनके नाम के अनुसार ही विमल है। संघसेवा करने के दौरान उन्होंने अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखें क्योंकि सेवा कभी भी सहजता से नहीं हो पाती। बिमल जी के कार्य पद्धति से प्रभावित होकर अनेक स्वयंसेवक निर्माण हुए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसे बिमल जी रोज तैयार करती है।

अपने सम्मान से भाव विभोर हुए बिमल जी ने कहा  कि संघ निराकार है इसलिए विविध माध्यमों से संघ कार्य लोगों के सामने लाना पड़ता है। आज वह माध्यम मैं हूं। इसके अलावा मुझमें विशेष कुछ भी नहीं है। ब्रह्मदेश (बर्मा-म्यांमार) में मेरा जन्म हुआ। 1962 में मेरा संघ प्रवेश वहीं हुआ। ढाई वर्ष मैं वहां बाल गट नायक रहा। वहां संघसेवा की जो नींव मजबूत हुई उसके कारण ही यह इमारत सशक्त हो पाई। 1966 में मैं विलेपार्लेकर हो गया। विगत 58 वर्षों से मैं मुम्बई के सांस्कृतिक राजधानी में रहता हूं। उन्होंने कहा कि मुझे जिन कार्यों का श्रेय मिल रहा है , वो सब समाज और संघ की वजह से संभव हो पाए हैं, ये ईश्वरीय कृपा है कि मैं उसमें निमित्त बन गया।

‘उन्होंने अपनी एक याद ताजा करते हुए कहा कि संयोग ऐसा है कि जिस दीनानाथ नाट्यगृह में यह कार्यक्रम हो रहा है। इस स्थान पर पहले मैदान था। यहां संघ शाखा लगती थी और 1970 में मैं इस शाखा का कार्यवाह था। 1938 में डॉ. हेडगेवार जी के कहने पर श्रीगुरुजी ने यह शाखा शुरू की थी। आज भी मैं उस शाखा का स्वयंसेवक हूं। संघ निष्ठा कैसी होती है, इसका साक्षात उदाहरण बिमल जी केडिया ने प्रकट किया।

बिमल जी के साथ बरसों से कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहे मुंबई महानगर के संघ चालक श्री सुरेश भगेरिया ने कहा कि बिमलजी ने कोई ऐसा काम हाथ में नहीं लिया जो पूरा नहीं हो सकता और कभी इस बात की चिंता नहीं की कि जो काम वो हाथ में ले रहे हैं वो पूरा कैसे होगा। उन्होंने छोटे से छोटे से लेकर बड़ा से बड़ा काम समाज के सहयोग से पूरा किया। उन्होंने कार्यकर्ताओँ के रूप में समाज के हर वर्ग से लोगों को जोड़ा और धन की जरुरत के लिए समाज के श्रेष्ठी वर्ग में अपनी विश्वसनीयता कायम की।  आज भी वे पूरे उत्साह और जोश के साथ अपने काम में लगे हैं। समय की पाबंदी और किसी भी बैठक से लेकर किसी कार्यक्रम की रचना क्या होना चाहिए , ऐसा अनुशासन  बिमल जी ने खुद अपने ऊपर तो लागू किया ही दूसरों को भी ये एहसास कराया कि समय की पाबंदी क्या होती है। बिमलजी जब भी किसी नए व्यक्ति से मिलते हैं अपनी छोटी सी डायरी में तत्काल  उसका नाम लिख लेते हैं फिर उस व्यक्ति को संघ से या संघ कार्य से कैसे जोड़ सकते हैं उसकी योजना बनाते हैं।

इस अवसर पर जाने माने टीवी पैनलिस्ट श्री रतन शाररदा ने कहा कि मैंने एक बाल स्वयं सेवक के रूप में बिमलजी के मार्गदर्शन में संघ कार्य शुरु किया और यह कहने में मुझे कतई संकोच नहीं है कि मेरे व्यक्तित्व को गढ़ने में बिमल जी का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने बिमलजी पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री के बारे में भी जानकारी दी कि इसको बनाना तो आसान था मगर मात्र कुछ मिनटों में बिमलजी के व्यक्तित्व को समेटना कितना मुश्किल काम रहा।

केशव सृष्टि की ओर से आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में बिमल केडिया जी एवं उनकी पत्नी उषा केडिया, केशव सृष्टि के अध्यक्ष डॉ. सतीश मोढ सहित अन्य मान्यवर मंच पर उपस्थित थे।

इस दौरान हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित ‘अप्प दीपो भव’ ग्रंथ और बिमल केडिया द्वारा लिखित ‘संघ जीवन की पाठशाला’ पुस्तक का विमोचन पू. सरसंघचालक के करकमलों द्वारा किया गया। दैनिक मुम्बई तरुण भारत की ओर से प्रकाशित विशेष परिशिष्ट ‘अमृतमयी बिमजी’ उपस्थित लोगों को भेंट स्वरूप प्रदान किया गया।

हमारे मंदिर र शिक्षा, चिकित्सा, सेवा, आस्था, प्रेरणा, शक्ति, धर्म प्रचार और समाज प्रबोधन का केंद्र बनें

मुंबई। हमारे मंदिर पहले की तरह समजाभिमुख बनकर शिक्षा, चिकित्सा, सेवा, आस्था, प्रेरणा, शक्ति, धर्म प्रचार और समाज प्रबोधन का केंद्र बने, यह आज की आवश्यकता है। यह वक्तव्य मिलिंद परांडे ने ‘मंदिर राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम के दौरान प्रमुख वक्ता के तौर पर दिया। उन्होंने आगे कहा कि यदि समाज बंट गया या सो गया तो मंदिर पुनः ध्वस्त हो जाएंगे, इसलिए हमें ऐसे सशक्त संगठित जागरूक समाज का निर्माण करना होगा कि भविष्य में भी कोई मंदिरों को तोड़ने का साहस न कर पाए।
उन्होंने कहा कि  हिंदुत्व के जागरण और विमर्श के केंद्र में लाने में मंदिर खासकर रामजन्मभूमि आंदोलन की प्रमुख भूमिका रही है। मंदिर के विविध पहलुओं को मंदिर ग्रंथ में रेखांकित किया गया है। अतः निश्चित रूप से मंदिर ग्रंथ मार्गदर्शक सिद्ध होगा, ऐसा मझे पूर्ण विश्वास है। हिंदी विवेक के इस सराहनीय कार्य के लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूं। आज देश का कोई भी चर्च या मस्जिद सरकारी नियंत्रण में नहीं है किंतु मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से कहा है कि मंदिरों को नियंत्रित कर उसकी व्यवस्था संभालना सरकार का काम नहीं है। बावजूद इसके मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में रख कर मंदिरों की संपत्ति का सरकार दुरुपयोग कर रही है। इसलिए मंदिरों को मुक्त करना हमारा कर्तव्य है। मंदिर की अर्थव्यवस्था, व्यवस्थापन, कार्यप्रणाली, पारदर्शिता, समाज की सहभागिता और मंदिर के सम्बंध में हमारी दृष्टि कैसी होनी चाहिए, ऐसे विविध विषयों से इस ग्रंथ में अवगत कराया गया है।
मुंबई के दादर पूर्व स्थित स्वामी नारायण मंदिर के सभागृह में हिंदी विवेक पत्रिका द्वारा प्रकाशित ‘मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ का विमोचन समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इसी के साथ विहिप के दिनदर्शिका का भी विमोचन किया गया। मंच पर विराजमान विहिप के केंद्रीय संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे जी, मंदिर स्थापत्य व मूर्ति विशेषज्ञ डॉ. गो. ब. देगलूरकर, झा कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. के चेयरमैन व एमडी रामसुंदर झा एवं उनकी धर्म पत्नी मनोरमा झा, विहिप कोंकण प्रांत मंत्री मोहन सालेकर, हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर एवं हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक श्रीमती पल्लवी अनवेकर के करकमलों द्वारा ग्रंथ एवं दिनदर्शिका का विमोचन किया गया।
भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं कवि रजनीकांत द्वारा सुंदर कविता का प्रस्तुतिकरण कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। इसके बाद मंच पर उपस्थित सभी मान्यवरों का परिचय व स्वागत सम्मान किया गया।
हिंदी विवेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर ने अपनी प्रस्तावना में हिंदी विवेक पत्रिका के १५ वर्षों की उल्लेखनीय सफल यात्रा पर संक्षेप में प्रकाश डाला और विशेष तौर पर इस बात पर जोर दिया कि हमने मंदिरों के महत्व को भुला दिया इसलिए हमें गुलाम होना पड़ा। मंदिर राष्ट्र व समाज जागरण के प्रमुख केंद्र रहे है इसलिए हमारी मंदिर की परंपरा को शुरू करने से ही भारत विश्वगुरु की भूमिका में आएगा। लोकरंजन के साथ लोकमंगल करने के उद्देश्य से हिंदी विवेक पत्रिका द्वारा ‘मंदिर: राष्ट्र के ऊर्जा केंद्र’ ग्रंथ को प्रकाशित किया गया है।
इस ग्रंथ को सफल बनाने में हमारे समाज के गणमान्य जनों का अपेक्षित सहयोग मिला है, जिसके लिए हम सदैव उनके आभारी रहेंगे। मंदिर ग्रंथ का विमोचन कार्यक्रम देश के चार स्थानों पर करने की हमने योजना बनाई है। पहला कार्यक्रम आज हो रहा है। दूसरा कार्यक्रम 29 नवम्बर को मध्य प्रदेश के इंदौर में मा. भैया जी जोशी की उपस्थिति में होने जा रहा है। तीसरा कार्यक्रम मुम्बई के प्रसिद्ध संस्था भागवत परिवार द्वारा मुम्बई में ही किया जाएगा और चौथा कार्यक्रम दक्षिण भारत में होगा। इसके साथ ही परिसंवाद के कार्यक्रम भी होंगे जिसमें मंदिर के विविध विषयों पर चर्चा की जाएगी।
इस अवसर पर  हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे ने अपने भाषण में कहा कि  जब समाज खड़ा हो गया तो राम मंदिर बन गया। इसलिए समाज का खड़ा होना आवश्यक है। मंदिर और देवता का सामर्थ्य क्या होता है इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने दो कहानियां सुनाकर श्रोताओं को रोमांचित कर दिया।मुकेश गुप्ता
उपसम्पादक
हिंदी विवेक पत्रिका
मुम्बई।

“क्या तेरे हाथ टूट जाते, जो देख लेती एक बार”

लखनऊ के एक शायर की शायराना वसीयत की बड़ी चर्चा होती है। उन्होंने अपनी मौत के बाद ये वसीयत छोड़ी जो उनके अधूरे कहे गये शेर को पूरा करेगा, वही उनकी मिट्टी को गुसल कराएगा, वही उनके कफ़न दफ़न को अंजाम देगा, शेर क्या था एक सवाल था :-
“क्या तेरे हाथ टूट जाते, जो देख लेती एक बार”
अब यह मिसरा भी अपने आप में बेमिसाल, यानी देखने और हाथ टूटने का आपस में क्या रिश्ता? इस मिसरे पर न आसानी से गिरह लगाई जा सकी और न उनका जनाजा उठ सका। इसी बीच उधर गोमती घाट से वापस गुजरते हुए एक धोबी ने मैय्यत के साथ लगी भीड़ को देखा और वजह पूछी, तो मालूम हुआ कि इस मिसरे में गिरह लगाना है। और आख़िर में उस धोबी ने इज़ाजत मांग कर इस समस्या को हल कर दिया। यह कहकर कि शायर तो नहीं हूं लेकिन सोहबतें उठाई है, उसने कहा :-
“क्या तेरे हाथ टूट जाते, जो देख लेती एक बार
इतना भारी तेरी पीनस का, वो पर्दा तो ना था” *
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पीनस, मियाना या इसका थोड़ा छोटा रूप “डोली-पालकी”

सुनते ही एक बहू की विदाई का दृश्य आँखों में उभर-उभर आता है। इस शब्द में ही एक भावुकता है, एक “एसथेटिक सेंस ऑफ़ रोमांस एन्ड ट्रेजेडी’ है। खुशी और ग़म का एक सम्मिलित भाव। और अपनी संस्कृतियों और जड़ों की एक महक है। “डोली उठना” ही अपने आप में एक घर का उठ कर दूसरे घर में बस जाना है। ‘प्रेम-विरह-मिलन’ के आँसुओं में भीगे इस शब्द को ‘प्रेम-साहित्य’ और ‘विरह-लोकगीतों’ में बहुत ज़्यादा रोमांटिसाइज़ किया गया है। आज भी शादी-विवाह वाले निमंत्रण पत्र में दुल्हन की विदाई की बेला-काल को बताते हुए एक ‘डोली उठने’ का ही चित्र बना होता है और लिखा होता है, “भीगी पलकें”

‘चलो डोली उठाओ कहार’ इस विधा का एक अविस्मरणीय गीत है।

बीते दिनों की बातें हैं। जब सड़कें नहीं थीं, साधन भी नहीं थे और सच बताएं तो लोगों के पास पैसे भी बहुत नहीं थे। तब मुख्यतः शादी-विवाह में यही ‘डोली-पीनस-मियाना-पालकी’ ही दूल्हे-सहबाले को बारात ले जाने और दुल्हन-बहू को लिवा लाने का एक मात्र साधन होता था। दस-बीस कोस तक भूमि इसी से तय की जाती।

इसके लिए बकायदा आठ कहार रहतें। दो आगे, दो पीछे लगते। बाक़ी के चार साथ-साथ चलते और थकने पर कन्धा बदलते रहते। कहार रास्ते में खूब हँसी-ठिठोली और मज़ाक में गाली देते हुए चलते।

इन कहारों के आपसी वार्तालाप का एक समृद्ध साहित्य होता था।

अकसर वे गाते – चिल्लाते हुए चलते :-

‘बोला भैया, बोला बाबू ! और मुरैली हो, हुर्रर्र। …!’

‘अरे दौड़ा-दौड़ा, फलाने की बहिनी को सियार ले गया…’

‘का हो तोहार माई को तो बिगवा लेकर भाग गया था…’

‘अपने महतारी कै दूध पिए हो तो बताना…’

‘जा मर्दे। तू तौ दुध कटहा रहे…’

वास्तव में ये उनके मनोविनोद के साधन थे। डोली लेकर चलना एक अत्यंत श्रमसाध्य कार्य होता था ।हँसी-ठिठोली और गाली-लंठई से उनका मन लगा रहता और वे ऊर्जित-फुर्तीले बने रहते।

उधर रेशमी पर्दों से सजी डोली में कनिया / दुलहनियाँ सहमी-सकुचाई बैठी रहती। नई और अपरिचित दुनिया के कभी डर-संशय तो कभी प्रेम-मनुहार की कल्पना करके हौल-दिल होती रहती। कभी वो चिहुँक जाती तो कभी सतर्क होकर पुनः बैठ जाती।

रास्ते में पड़ने वाले गाँव-गिराँव के छोटे-छोटे बच्चे होल्लरी मचाते दौड़ कर कच्ची सड़क-पगडंडी-चकरोड तक आते। ‘दुल्हिन जात बा’, ‘दुल्हिन जात बा’ कहते हुए कुछ दूर तक डोली के साथ-साथ चलते। ज़्यादा होने पर उन्हीं कहारों में से कोई बच्चों को कभी-कभी मीठी-ठिठोली-झिड़क देता, ‘जा-जा अपने माई का बुलाय लावा, उनको भी लिवा जाऊं’

लड़के भी अचकचा कर खिस्स से हंस देते। इन बातों का कोई बुरा नहीं मानता। कभी-कभी डोली में बैठी दुल्हनियां गुन से गठियाए गए रस्ते के जल-पान में से गुड़-लइया निकाल कर किसी बच्चे के हाथ पर रख देती। एक अपरिचित रिश्ते का फूल खिल जाता और कठिन पगडंडी उसकी खुशबू से महक जाती।

‘तीसरी कसम’ कहानी रेणु जी ने ऐसे ही नहीं लिखा होगा,

‘लाली-लाली डोलिया में

लाली रे दुलहिनिया

पान खाए…!’

हिरामन हंसा. ‘…दुलहिनिया …लाली-लाली डोलिया! दुलहिनिया पान खाती है, दुलहा की पगड़ी में मुंह पोंछती है. ओ दुलहिनिया, तेगछिया गांव के बच्चों को याद रखना. लौटती बेर गुड़ का लड्डू लेती आइयो. लाख बरिस तेरा दुलहा जिए !’ …”

इन कहारों की खुराक भी अच्छी-खासी थी, ये काम ही बहुत मेहनत का होता था तो खानगी होना स्वाभाविक है। हमारे गाँव में तो कई-कई कहानियां प्रचलित है कि भैया फलानी जगह के कहारों का खर्चा उठाना सब के वश की बात नहीं। या फलां कहार 15-20 कोस ज़मीन एक दिन में नाप देते थे।

बूढ़ी दादी-आजी-नानी-बाबा-दादा-फूआ-फुफ्फा से पूछिए कभी ! जिसकी शादी-विवाह सन 80 के आस-पास या उसके पहले हुई होगी वह इसे ज़रूर जानता-पहचानता होगा। हमारी पीढ़ी तो नहीं लेकिन हमारे बाप-दादा की पीढ़ी में से बहुतों ने कभी-न-कभी इसकी सवारी भी ज़रूर की होगी।

वहीं, रास्ते में कहीं चुपके से किसी झरोखे से झांकता हुआ कोई प्रेमी जब अपनी ही गली-कूचे-रस्ते से विदा होती अपनी प्रेमिका को देखता होगा तो उसके दिल में एक हूक सी उठती होगी। वो सोचता होगा कि काश एक बार, बस एक आख़िरी बार किसी बहाने से वो पीनस रुकवाकर मुझसे मिल ले। लेकिन पीनस नहीं रुकती,

इसी बात पर तो उस्ताद ग़ालिब ने कहा होगा,

पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वो मेरे।

कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते ।।

लेकिन अब लोक-लाज के कारण प्रेमिका की कुछ ऐसी मज़बूरी है कि पालकी उठाने वाले कहारों को कंधा भी नही बदलने देती कि इसी बहाने से ही प्रेमी को एक घड़ी देख ले।

चलते-चलते, पीनस गली-कूचे-रस्ते के मोड़ पर पहुँच गई है। प्रेमी घर से बाहर आ जाता है। इस आस में कि शायद एक आख़िरी बार वह मुझे अपनी कनखियों से देख ले। देख ही ले !

एक धचके के साथ पीनस मुड़ कर आँखों से ओझल हो जाती है। प्रेमी मायूस हो जाता है। वह प्रेमिका की एक झलक देखने से भी चूक जाता है।

फिर निराश हुए प्रेमी के दिल से यही बात निकलती होगी,

“क्या तेरे हाथ टूट जाते, जो देख लेती एक बार

इतना भारी तेरी पीनस का, वो पर्दा तो ना था”

(साभार ज्ञापन – * उपरोक्त कहानी डॉ. योगेश प्रवीन की पुस्तक “आपका लखनऊ” से उद्धृत है।

पीनस / मियाना की फ़ोटो हमारे मौसा श्री शिवनायक तिवारी ने उपलब्ध कराई है। उनके घर पर आज भी यह सुरक्षित रूप में रखी है)

साभार- प्रशांत द्विवेदी के फेसबुक वाल से

सिनेमाई उत्कृष्टता और वैश्विक सहयोग संबंधी फिल्म बाजार 2024 का समापन

सिनेमाई नवीनता और अंतरराष्ट्रीय फिल्म सहयोग में उल्लेखनीय भूमिका के प्रदर्शन के साथ गोवा में 55 वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के हिस्से के रूप में फिल्म बाजार 2024 का शानदार समापन हो गया । राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) के आयोजन में कहानी कहने की कला और नई सृजनशील फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए सिने उद्योग के दिग्गजों, उभरते फिल्मकारों और वैश्विक भागीदारों को साथ लाने का यह अद्भूत मंच रहा।

पिछले कुछ वर्षों में, फिल्म बाज़ार दक्षिण एशियाई फिल्मों की कथ्य सामग्री और प्रतिभा को सामने लाने, उनकी मदद करने और प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है। वैश्विक फिल्म उद्योग के सहयोग और विकास का भी यह महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।

आयोजन के दौरान जाने-माने कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबड़ा ने सह-निर्माण बाजार (सीपीएम) परियोजनाओं के अंतर्गत फिल्म बाजार के साथ दो फिल्मों में सहयोग की घोषणा की। पहली, बागी बेचारे (रिलक्टेंट रिबेल्स), एक सीपीएम फीचर फिल्म है जिसके लिए प्रतिभाओं को वे नि:शुल्क कास्ट करेंगे। एक अन्य प्रोजेक्ट में सीपीएम वेब सीरीज ‘चौहान्स बीएनबी बेड एंड बसेरा’ शामिल है, जो बिना किसी लागत के कास्टिंग में छाबड़ा की विशेषज्ञता से भी लाभान्वित होगी। यह सहयोग रचनात्मक प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और उद्योग साझेदारी मजबूत करने की फिल्म बाजार की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

फिल्म बाजार में नई उल्लेखनीय साझेदारियों की भी घोषणा की गई। पटकथा लेखन विकसित करने के लिए फाइनल ड्राफ्ट में सहयोग, एपिसोड की कहानी आगे बढ़ाने के लिए फिल्म इंडिपेंडेंट एपिसोडिक राइटिंग वर्कशॉप के साथ जुड़ाव और दक्षिण पूर्व एशिया ऑडियो विजुअल एसोसिएशन (एसएएवीए) और एशिया टीवी फोरम (एटीएफ) के साथ साझेदारी में कोठियां-फिशर्स ऑफ मेन को सह-निर्माण बाजार परियोजना की घोषणा हुई ।

इनके अलावा, वर्क इन प्रोग्रेस’ (डब्ल्यूआईपी) पुरस्कार निम्नलिखित फिल्मों को प्रदान किए गए:

  • रिधम जानवे की कट्टी री रत्ती : हंटर्स मून को फ़िल्म के संपादन, प्रभाव, और रंग सुधार के लिए 50 घंटे का निशुल्क 4के डीआई प्रसाद लैब्स अवार्ड मिला।
  • त्रिबेनी राय की शेप ऑफ मोमो को न्यूब स्टूडियो द्वारा 6 लाख रुपये का डीआई पैकेज दिया गया।
  • गुड, बैड एंड हंगरी और रेड हिबिस्कस भी स्पेशल मेंशन फिल्में रहीं जिन्हें प्रसाद लैब्स से 50 घंटे के डीआई पर 50 प्रतिशत की छूट मिली।

इस आयोजन की जीवंत और समावेशी भावना के परिचायक के तौर पर शीर्ष तीन विजेता फिल्मों को फिल्म बाज़ार अनुशंसा (एफबीआर) श्रेणी में प्रायोजन और प्रचार के तौर पर 3-3 लाख रुपये के पुरस्कार दिए गए।

इस श्रेणी में निम्नलिखित फिल्में रहीं:

  • विपीन राधाकृष्णन द्वारा निर्देशित अंगम्मल ,
  • पिनाकी जनार्दन द्वारा लिखित और निर्देशित हाउस ऑफ मणिकांता ,
  • रविशंकर कौशिक द्वारा लिखित और निर्देशित फ्लेम्स

पुरस्कार धनराशि के अलावा विजेताओं को कई अन्य लाभ भी मिलेंगे। इसमें 300 क्यूयूबीई सिनेमा थिएटरों में 2 लाख रुपये के ट्रेलर प्रमोशन के साथ-साथ अन्य प्रमोशनल सुविधाएं शामिल हैं, जो फिल्मों को व्यापक स्तर पर दर्शकों तक पहुंचाने में सहायक होंगी।

डेडली डोसा को स्टूडेंट प्रोड्यूसर वर्कशॉप पिच अवार्ड्स का विजेता घोषित किया गया। अनुश्री केलट ने इसकी घोषणा की। पुंजल जैन के लकड़ हारा को उपविजेता का पुरस्कार मिला।

फिल्म बाजार में पहली बार फिल्मकारों की प्रस्तुति उत्कृष्टता के लिए सह-निर्माण बाजार (सीपीएम) फीचर नकद अनुदान श्रेणी आरंभ की गई

  • इस श्रेणी में प्रथम पुरस्कार पायल सेठी द्वारा निर्देशित और थानिकाचलम एसए द्वारा निर्मित कुरिंजी (डिसएपियरिंग फ्लावर) को दिया गया।
  • द्वितीय पुरस्कार संजू सुरेन्द्रन द्वारा निर्देशित और प्रमोद शंकर द्वारा निर्मित फिल्म कोठियां – फिशर्स ऑफ मेन को मिला।
  • इस श्रेणी का तृतीय पुरस्कार प्रांजल दुआ द्वारा निर्देशित और बिच-क्वान ट्रान द्वारा निर्मित ऑल टेन हेड्स ऑफ रावण को प्रदान किया गया।

इसके अलावा, सर्वश्रेष्ठ पिच के लिए सुमित पुरोहित द्वारा निर्देशित और चिप्पी बाबू और अभिषेक शर्मा द्वारा निर्मित बागी बेचारे (रिलक्टेंट रिबेल्स) का विशेष उल्लेख किया गया।

विशेष पहल के तहत, फिल्म बाज़ार में फ्रांसीसी प्रतिनिधियों की भागीदारी बढ़ाने के निरंतर प्रयासों के लिए फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को भी सम्मानित किया गया। आयोजन का समापन वेव्स 2025 के टीज़र के साथ किया गया, जिसमें फिल्म बाज़ार के उत्साहवर्द्धक भविष्य की झलक दिखी।

समारोह को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव और राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के प्रबंध निदेशक श्री पृथुल कुमार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में संयुक्त सचिव-फिल्म्स  सुश्री वृंदा मनोहर देसाई ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर फिल्म बाजार के सलाहकार जेरोम पैलार्ड, प्रसिद्ध अभिनेता अविनाश तिवारी और जाने-माने कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबड़ा भी मौजूद थे।

यह आयोजन कहानी कहने और फिल्म संबंधी नवीन विचार के वैश्विक केंद्र के रूप में अपनी विरासत जारी रखने और फिल्म बाजार 2025 के लिए मंच तैयार करने में सफल रहा। उत्साह से परिपूर्ण अगले साल फिल्म बाजार का आयोजन उल्लेखनीय उपलब्धियों और सिनेमाई सहयोग के प्रति आश्वस्त कराता है।

‘मंजुम्मेल बॉयज़: मित्रता और बहादुरी की सच्ची कहानी

“गुफा मेरी फिल्म की वास्तविक नायक है काश मैं गुफा के अनुभव को स्क्रीन पर महसूस करा पाता:” चिदंबरम, निर्देशक, ‘मंजुम्मेल बॉयज़’

मलयालम फिल्म उद्योग विकसित हुआ है; ओटीटी प्लेटफॉर्म के उदय ने ‘मंजुम्मेल बॉयज़’ जैसी कहानियों को सामने लाने के अवसर प्रदान किए हैं: चिदंबरम

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के भारतीय पैनोरमा खंड में लोकप्रिय मलयालम फिल्म ‘मंजुम्मेल बॉयज’ को प्रदर्शित किया गया। फिल्म के निर्देशक श्री चिदंबरम ने आज गोवा में पत्र सूचना कार्यालय के मीडिया सेंटर में आयोजित 55वें आईएफएफआई के छठे दिन के उद्घाटन सत्र में संवाददाता सम्मेलन में मीडिया से बातचीत की।

फिल्म की कहानी केरल के कोच्चि के पास एक गांव मंजुम्मेल के 11 सदस्यीय मलयाली युवकों की एक टीम से जुड़ी एक सच्ची घटना से प्रेरित है। इस टीम ने तमिलनाडु के कोडईकनाल में स्थित डेविल्स किचन का दौरा किया था, जिसे गुना गुफाओं के रूप में भी जाना जाता है। कमल हासन की फिल्म गुना के फिल्मांकन के बाद इन गुफाओं को प्रसिद्धि मिली। अपनी यात्रा के दौरान, टीम के सदस्यों में से एक गलती से गुफा के भीतर एक गहरे गड्ढे में गिर जाता है। स्थानीय पुलिस और दमकल विभाग के उम्मीद छोड़ने के बाद सिजू डेविड ने अपने दोस्त को इस मुश्किल घड़ी से बचाने का बीड़ा उठाता है और एक साहसिक मिशन पर निकल पड़ता है। यह घटना मित्रता और निस्वार्थता की सशक्त भावना को दर्शाती है और मंजुम्मेल के इन ग्यारह युवकों की वीरता और साहस का प्रमाण है।

श्री चिदंबरम ने बताया कि जिस घटना पर यह फिल्म आधारित है, वह सर्वविदित है। एक दशक पहले एक अलग टीम ने इस पर फिल्म बनाने का प्रयास किया था, लेकिन उस समय उद्योग ऐसी कहानी में निवेश करने के लिए तैयार नहीं था। हालांकि, मलयालम फिल्म उद्योग अब विकसित हुआ है और ओटीटी प्लेटफॉर्म के उदय ने इस तरह की कहानियों पर काम करने के लिए अधिक अवसर प्रदान किए हैं।

फिल्म निर्माण के दौरान की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए, निर्देशक ने कोच्चि के एक गोदाम में गुना गुफा जैसा सैट बनाने की कठिनाइयों के बारे में भी जानकारी दी क्योंकि वास्तविक गुफा में शूटिंग संभव नहीं थी। टीम को गुफा की बनावट और इसकी अनूठी स्थितियों को सजीव बनाने के लिए इसके साहसपूर्ण निर्माण पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने के साथ-साथ दृढ़ निश्चय के साथ काम करना पड़ा।

श्री चिदंबरम ने कहा कि फिल्म की असली नायक गुफा है। उन्होंने कहा कि काश मैं गुफा के अनुभव के अहसास को स्क्रीन पर महसूस करा पाता।

‘द रूस्टर’: 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित एक अनूठे अनुभव से जुड़ी फिल्म

“यह फिल्म अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने और हमें परिभाषित करने वाले छोटे-छोटे पलों को दर्शाती हैं:” मार्क लियोनार्ड विंटर, निर्देशक

‘यह कहानी सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य है क्योंकि यह हमारी साझा कमजोरियों को दर्शाती है:” ह्यूगो वीविंग, मुख्य अभिनेता

“यह फिल्म प्रेम का परिणाम है, और हम इसे भारत में दर्शकों के बीच लोकप्रिय होते देख रोमांचित हैं”: गेराल्डिन हेकेविल, निर्माता

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में ऑस्ट्रेलियाई फिल्म द रूस्टर  की स्क्रीनिंग के साथ सिनेमा का महोत्सव मनाया जा रहा है। इस वर्ष के महोत्सव में ऑस्ट्रेलिया के सिनेमा पर विशेष ध्यान देते हुए द रूस्टर का प्रदर्शन किया गया है। निर्देशक और लेखक मार्क लियोनार्ड विंटर, मुख्य अभिनेता ह्यूगो वीविंग और निर्माता गेराल्डिन हेकेविल और महवीन शाहराकी सहित फिल्म की रचनात्मक टीम ने फिल्म निर्माण के अपने शानदार अनुभव और इसकी कहानी के बारे में अपने विचार साझा किए।

अपनी पहली फीचर फिल्म बना रहे निर्देशक मार्क लियोनार्ड विंटर ने भारतीय दर्शकों के सामने फिल्म की प्रस्तुति को लेकर अपनी उत्सुकता जताई। उन्होंने कहा कि यह एक बहुत ही निजी प्रोजेक्ट था, जिसे हमारे गैराज में एक छोटी, संयुक्त टीम के साथ बनाया था। अब भारत के इतने प्रतिष्ठित समारोह में इसकी प्रस्तुति वास्तव में उनके लिए एक सच्चा सम्मान है।

द रूस्टर में एक युवा पुलिस अधिकारी डैन की कहानी है जो अपने सबसे अच्छे दोस्त स्टीव की मौत के बाद जंगल में चला जाता है। जंगल में उसकी भेंट एक एकांतप्रिय साधु से होती है जिनके माध्यम से उसे स्टीव की रहस्यमयी मौत के बारे में जानकारी मिल सकती है। यह फिल्म कष्ट, नुकसान और अर्थ के लिए संघर्ष जैसे विषयों पर गहराई से मंथन करती है और सरल किंतु सशक्त कहानी वर्णन के माध्यम से अपने पात्रों के भावनात्मक भाव को दर्शाने के प्रयास करती है।

फिल्म के मुख्य अभिनेता ह्यूगो वीविंग ने फिल्म निर्माण के दौरान के अपने अनुभव साझा किए। विंटर के साथ पहले भी काम कर चुके वीविंग ने इस अनुभव को शानदार और बेहद सार्थक बताया। उन्होंने कहा कि यह भूमिका निभाना चुनौतीपूर्ण किंतु सम्मान देने योग्य अनुभव था।

निर्माता गेराल्डिन हेकेविल और महवीन शाहराकी ने भी फिल्म निर्माण प्रक्रिया पर अपने विचार साझा किए। हेकेविल ने विंटर के अभिनेता से निर्देशक बनने के सफर पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि मार्क ने स्क्रिप्ट और निर्देशन पर हमारी उम्मीदों से कही अधिक बेहतर काम किया। इस यात्रा का हिस्सा बनना सौभाग्य की बात थी।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में चर्चा का एक और मुख्य आकर्षण फिल्म का साउंड डिज़ाइन भी रहा। निर्देशक विंटर ने फिल्म की लोकप्रियता में एक मुख्य घटक के रूप में साउंड के अभिनव उपयोग के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि हम चाहते थे कि फिल्म का संगीत मानवीय अनुभव से गहराई से जुड़ा हो, जिसमें भावनाओं को जगाने के लिए सिर्फ़ आवाज़ का इस्तेमाल किया जाए, चाहे वह व्यक्ति की आवाज़ हो या फिर मनमोहक संगीत की। विंटर ने बताया कि मनुष्य की आवाज़ में एक अनुठी क्षमता होती है और हमारे लिए उस अंदरुनी ऊर्जा को बाहर लाना ज़रूरी था।

प्रेस कॉन्फ्रेंस का समापन ऑस्ट्रेलियाई सिनेमा के भविष्य, स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के सामने आने वाली चुनौतियों और फिल्म वितरण में डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती भूमिका पर चर्चा के साथ हुआ। क्रिएटिव टीम ने बदलते तकनीकी परिदृश्य के बावजूद कथा प्रस्तुति के सार को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया।

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में विविध सिनेमाई अभिव्यक्तियों का महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं द रूस्टर स्वतंत्र फिल्म निर्माण की क्षमता और विश्व भर के दर्शकों को जोड़ने वाले सार्वभौमिक विषयों का प्रमाण है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फिल्म निर्माण: 55वें आईएफएफआई में औपचारिक चर्चा में एक नए युग की शुरुआत

“एआई को मानव कल्पना से मेल खाना बाकी है, जो अनिश्चितता, प्रेम और भय से नियंत्रित है”: शेखर कपूर

“एआई एक बुद्धिमान सहायक के रूप में कार्य करते हुए विचार और आत्म-अभिव्यक्ति को बढ़ाता है”: प्रज्ञा मिश्रा

“एआई भविष्य में फिल्म निर्माण में बड़ी भूमिका निभाएगा:” आनंद गांधी

पणजी में भारत के 55वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में कला अकादमी में आज “विल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऑल्टर फिल्म मेकिंग फॉरऐवर?” शीर्षक से एक औपचारिक चर्चा आयोजित की गई। इस प्रतिष्ठित पैनल में भारतीय फिल्म निर्माता और उद्यमी आनंद गांधी, ओपनएआई में सार्वजनिक नीति और भागीदारी की प्रमुख प्रज्ञा मिश्रा शामिल थीं और इसका संचालन प्रसिद्ध फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने किया।

सत्र की शुरुआत शेखर कपूर के उद्घाटन भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने माना कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की समझ समय के साथ धीरे-धीरे विकसित हो रही है। “कोई नहीं जानता कि एआई क्या है, हम अभी भी मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग जैसे विभिन्न एआई शब्दों की खोज करने की प्रक्रिया में हैं।” उन्होंने एआई द्वारा नौकरियों की जगह लेने की संभावनाओं के बारे में चल रही बहस को कुशलता से संभाला और अपनी घरेलू नौकरानी के बारे में एक दिलचस्प व्यक्तिगत अनुभव साझा किया, जो ‘मिस्टर इंडिया’ की कहानी को आगे बढ़ाने के लिए स्क्रिप्ट तैयार करने में सक्षम थी और जिसने उन्हें प्रभावित किया। उन्होंने स्थिति की तुलना ट्रैक्टरों के आगमन से की, जिनके बारे में शुरू में सोचा गया था कि वे किसानों की जगह लेंगे, लेकिन वास्तव में, प्रौद्योगिकी को मानव क्षमता को बढ़ाने के उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे डिजिटल क्रांति में भुगतान के लिए यूपीआई को व्यापक रूप से अपनाया गया है, उन्होंने कहा।

एसओआरए का प्रदर्शन: एआई-संचालित टेक्स्ट-टू-वीडियो मॉडल:

प्रज्ञा मिश्रा ने एसओआरए का प्रदर्शन किया, जो एक एआई-संचालित टेक्स्ट-टू-वीडियो मॉडल है जो उपयोगकर्ताओं को टैक्चुअल प्रोम्ट्स (विशिष्ट शब्द या वाक्य जो मानव जैसी प्रतिक्रिया देने के लिए एआई भाषा मॉडल को प्रदान किए जाते हैं) से वीडियो बनाने की अनुमति देता है। उन्होंने बताया कि सरल निर्देशों के साथ, एसओआरए अत्यधिक यथार्थवादी वीडियो बना सकता है, जो मानवीय अभिव्यक्तियों और सांस्कृतिक बारीकियों के जटिल विवरणों की नकल करता है।

उन्होंने टूल से जुड़े नैतिक विचारों पर भी बात की, उन्होंने कहा कि गलत सूचना, अभद्र भाषा और जातीय भेदभाव जैसे मुद्दों को रोकने के लिए मॉडल में सार्वजनिक हस्तियों के चेहरे प्रतिबंधित हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एआई रचनात्मक क्षमता को उजागर कर सकता है और मानवता के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन सकता है, जिससे वैश्विक स्तर पर रचनाकारों और उपयोगकर्ताओं को लाभ होगा।

एआई का मानकीकरण: रचनाकारों को सशक्त बनाना और वैश्विक प्रदर्शन:

फिल्म निर्माण में एआई की बढ़ती भूमिका के बारे में पूछे जाने पर, आनंद गांधी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एआई जल्द ही फिल्म निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बन जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि एआई न केवल सहायता करेगा बल्कि फिल्म निर्माण में सह-लेखक के रूप में सक्रिय रूप से भाग लेगा।

प्राचीन ग्रंथों को फिर से तैयार करने की एआई की क्षमता के बारे में, प्रज्ञा मिश्रा ने पुष्टि की कि यह पहले से ही हो रहा है, और उन्होंने ऐसे उपकरणों तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने के महत्व पर जोर दिया। एआई रचनाकारों को विचारों को प्रस्तुत करने और यहाँ तक कि सुरक्षित निधि प्राप्त करने में मदद कर सकता है, जिससे निर्देशक अपने काम को वैश्विक मंच पर पेश कर सकते हैं।

बाद में चर्चा के दौरान एआई द्वारा मानवीय रचनात्मकता को दबाने की संभावना के बारे में बातचीत हुई। इस पर शेखर कपूर ने कहा, “एआई को मानवीय कल्पना को पकड़ने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है क्योंकि मानवीय कल्पना अनिश्चितता, प्रेम, भय से नियंत्रित है, लेकिन एआई के लिए, सब कुछ निश्चित है”।

कपूर ने कहा कि, यदि हमारे अंदर सोचना बंद करने और हर काम को एआई को सौंपने की निष्क्रियता है, तो यह जन्मजात और एक मानवीय समस्या है।

प्रज्ञा मिश्रा ने एआई को एक ऐसे उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया जो किसी चीज का स्थान लेने के बजाय रचनात्मक अभिव्यक्ति का समर्थन करता है। उन्होंने कहा, “मैं इसकी कल्पना करती हूं और एआई का उपयोग करके खुद को बेहतर ढंग से व्यक्त कर सकती हूं,” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एआई मानव विचारों को जीवन में लाने में मदद करने के लिए एक बुद्धिमान सहायक के रूप में कार्य करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक ही संकेत के साथ भी, एसओआरए हर बार अद्वितीय परिणाम उत्पन्न करता है, ठीक वैसे ही जैसे मनुष्य, जो प्रत्येक संकेत को अलग-अलग तरीके से समझते हैं।

सत्र का समापन सकारात्मक रूप से हुआ, जिसमें पैनल ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि यद्यपि एआई फिल्म निर्माण को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है, लेकिन यह कभी भी मानव मस्तिष्क की रचनात्मक क्षमता का स्थान नहीं ले सकेगा।

“फिल्म निर्माण का कोई नियम नहीं है,”: केके सेंथिल कुमार, सिनेमैटोग्राफर

“मैं प्रौद्योगिकी के खिलाफ नहीं हूं, मैं अपने काम के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करते हुए अपनी कुशलता बढ़ाना चाहता हूं”: सेंथिल कुमार

“एआई संचालित वीएफएक्स भविष्य है”: सेंथिल कुमार

मगधीरा से लेकर ईगा और बाहुबली से लेकर आरआरआर तक; प्रशंसित छायाकार के.के सेंथिल कुमार लेंस के पीछे का वह व्यक्तिव हैं, जिन्होंने दुनिया भर के फिल्म प्रेमियों के लिए कई मेगा फिल्मों को कुशलतापूर्वक दृश्यमान रूप से आश्चर्यजनक मास्टरपीस में बदल दिया है। इन ब्लॉकबस्टर्स में लुभावने कैमरा मूव, जीवंत रंगों का कुशल उपयोग, कॉन्ट्रास्ट शेडो और बेहतरीन प्रकाश व्यवस्था, भव्य दृश्य कहानी को भावनात्मक जुड़ाव के साथ संतुलित करने के अलावा एक्शन, ड्रामा और कल्पना को सहजता से एकाकार करने की उनकी क्षमता को दर्शाती है। सेंथिल कुमार ने आज गोवा में 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में वीएफएक्स को सिनेमैटोग्राफी के साथ एकीकृत करना ” विषय पर एक मंत्रमुग्ध करने वाले ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में अपने विचार और जीवन-यात्रा के अनुभव साझा किए। सत्र का संचालन प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक शंकर रामकृष्णन ने किया।

सत्र को संबोधित करते हुए सेंथिल ने स्पष्ट रूप से फिल्म निर्माण को एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया बताया। उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माण चुनौतियों से भरा है। अगर आप चुनौतियों का सामना नहीं करना चाहते हैं, तो बेहतर है कि आप फिल्म निर्माण में न आएं। उन्होंने इन चुनौतियों को स्वीकार करने के महत्व पर जोर दिया खासकर वीएफएक्स जैसी उभरती हुई तकनीकों के क्षेत्र में, जिसे वे एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखते हैं जिसने दृश्य कहानी को बढ़ाकर सिनेमैटोग्राफर का काम आसान बना दिया है। उन्होंने कहा कि वीएफएक्स ने सिनेमैटोग्राफर का जीवन आसान बना दिया है और एआई-संचालित वीएफएक्स भविष्य के रूप में उभर रहा है। उन्होंने रचनात्मक सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी की क्षमता पर भी अपने विचार व्यक्त किए।

हालांकि, सेंथिल ने तकनीकी प्रगति को वे किस तरह से देखते हैं, इसपर खुलकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि मैं तकनीक के खिलाफ़ नहीं जाना चाहता। मैं अपने काम के साथ तकनीक को एकीकृत करना चाहता हूं और इसे आगे बढ़ना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि यह दर्शन उनकी सफलता का अभिन्न अंग रहा है, क्योंकि वे लगातार पारंपरिक सिनेमाई तकनीकों को अभिनव वीएफएक्स के साथ मिलाकर इमर्सिव और विज़ुअली डायनेमिक अनुभव पेश करने की कोशिश करते हैं।

अपनी रचनात्मक प्रक्रिया पर विचार करते हुए, सेंथिल ने प्रत्येक कहानी की अनूठी आवश्यकताओं को समझने के महत्व पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि हर कहानी अपने आप में अनूठी होती है। यह महत्वपूर्ण है कि आप दर्शकों को अपनी कहानी कैसे बताते हैं। मैं कहानी और उसकी ज़रूरतों को समझने और उसके अनुसार शूटिंग की योजना बनाने के लिए प्री-प्रोडक्शन चरण के दौरान अधिक समय लेता हूं। उन्होंने अपने काम पर बातचीत करते हुए कहा कि एक सिनेमैटोग्राफर को वीएफएक्स निर्देशक के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि ऐसी छवियाँ बनाई जा सकें जो कथा को आगे बढ़ाएँ और साथ ही दृश्य प्रभावों की तकनीकी मांगों को पूरा करें।

दृश्य प्रभावों को सिनेमाई शिल्प कौशल के साथ एकीकृत करने में अग्रणी के रूप में, सेंथिल ने फिल्म निर्माण में सख्त नियमों का समर्थन न करते हुए कहा कि फिल्म निर्माण में कोई नियम नहीं है। यह एक रचनात्मक विकल्प और व्यक्तिगत निर्णय है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी कहानी कितनी रोचकता और विश्वास के साथ बताते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि हर सफल फिल्म के भीतर एक आकर्षक कहानी होती है।

अपने समापन वार्तालाप में, सेंथिल ने अपने शुरुआती दिनों का एक निजी किस्सा भी साझा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि सिनेमैटोग्राफी की ओर उनका रास्ता कुछ हद तक संयोगवश आया। शुरू में संयोग से स्कूल में एक फिल्म शामिल होने की इच्छा के साथ उन्होंने जल्द ही स्वयं को फिल्म निर्माण के प्रति अपने जुनून और अथक समर्पण के साथ आगे बढ़ाया। सिनेमा में जीवन से बड़ी कहानियां प्रस्तुत करने के लिए रचनात्मक सीमाओं से परे जाने की आवश्यकता पर विचार करते हुए, उन्होंने कहा कि कई बार, हमें कहानी को आकर्षक तरीके से पेश करने के लिए तर्क और नियमों को तोड़ना पड़ता है।

आजकल ‘पुरुषों की नजर’ बदल रही है और ‘परिपूर्ण’ लड़की या महिला की मांग कम हो गई है: कृति सेनन

“ओटीटी प्लेटफॉर्म कई भौगोलिक क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति के माध्यम से हमें वैश्विक पहुंच प्रदान कर रहे हैं:” कृति सेनन

“मेरी दिलचस्पी अब सुपरवुमन और पूरी तरह से नकारात्मक भूमिका निभाने में है”: कृति सेनन

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कृति सेनन ने ‘सशक्तीकरण परिवर्तन: सिनेमा में अग्रणी महिलाएं’ विषय पर बातचीत की

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री कृति सेनन ने आज कहा कि जब आप फिल्म निर्माण और अभिनय के क्षेत्र में कदम रखते हैं, तो स्वभाव से ही अनिश्चित होते हैं। ऐसे में फिल्म निर्माताओं के लिए बेहतर है कि वे बैक-अप करियर विकल्प तैयार रखें।

अभिनेत्री कृति सेनन ने कहा कि उनकी फिल्म ‘मिमी’ उनके अभिनय करियर में अब तक का सबसे साहसिक विकल्प था। उन्होंने कहा कि यह जोखिम तब अच्छा लगा, जब उन्होंने इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (महिला) का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। कृति आज गोवा में कला अकादमी में ‘सशक्तीकरण परिवर्तन: सिनेमा में अग्रणी महिलाएं’ विषय पर पैनल चर्चा में बोल रही थीं। ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र का आयोजन भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, 2024 के दौरान किया गया था।

कृति सेनन ने बताया कि मुझे कई लोगों ने इस फिल्म (मिमी) को न चुनने की सलाह दी थी। उन्हें डर था कि इससे मुझे एक ऐसे अभिनेत्री का लेबल दिया जाएगा, जो आर्ट हाउस फिल्म को पसंद करती है और इससे मेरे पास आने वाले दूसरे प्रोजेक्ट प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि फिर भी मैंने इस फिल्म को मैंने चुना क्योंकि इसकी स्क्रिप्ट ने मेरे दिल को छू लिया। सुश्री सेनन ने कहा कि प्रोजेक्ट चुनते समय यह कारक सबसे अधिक मायने रखता है। उन्होंने भविष्य में सुपरवुमन का किरदार निभाने और कोई भी नकारात्मक भूमिका निभाने की इच्छा भी व्यक्त की।

कृति ने कहा कि वह फिल्म ‘दो पत्ती’ में अपनी भूमिका को बहुस्तरीय तथा सूक्ष्म मानती हैं और उन्होंने घरेलू हिंसा के विषय को भी कुछ ऐसा बताया, जो उनके दिल को छू जाता है। फिल्म “तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया” में अपनी भूमिका के बारे में बात करते हुए अभिनेत्री ने यह भी बताया कि एक बिल्कुल सीधे चेहरे वाली रोबोट की भूमिका निभाना कितना मुश्किल था और उस भूमिका को कितनी अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी।

हाल की फिल्मों में महिलाओं द्वारा निभाई जा रही नकारात्मक भूमिकाओं एवं किरदारों के बारे में टिप्पणी करते हुए सुश्री सेनन ने कहा कि दर्शक नकारात्मक किरदारों को पसंद करते हैं और उनसे अच्छी तरह जुड़ते हैं। उन्होंने कहा कि आजकल ‘पुरुषों की नजर’ में बदलाव आ रहा है तथा ‘परिपूर्ण’ लड़की या महिला की मांग कम हो गई है।

सुश्री कृति ने ओटीटी प्लेटफॉर्म के माध्यम से फिल्म उद्योग में प्रवेश करने वाली नई महिला लेखकों की बहुत प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म सैकड़ों देशों में महिला फिल्म निर्माताओं को बेहतर मंच प्रदान कर रहे हैं।

अभिनेत्री ने अपनी बातचीत के समापन में कहा कि महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए और स्वयं पर मेहनत करनी चाहिए; उन्हें अपना सौ प्रतिशत देना चाहिए, जिज्ञासु बने रहना चाहिए और प्रश्न पूछना चाहिए।