Sunday, April 6, 2025
spot_img
Home Blog Page 3

इरशाद : नेहरू केंद्र लंदन में बिखरा शायरी का रंग

लंदन। भारतीय उच्चायोग और कथा यू के के तत्वावधान में कल एक बेहतरीन मुशायरा नेहरू केंद्र में आयोजित किया गया जिसे सुन कर लगा कि भारत से हज़ारों मील की दूरी पर भारतीय मूल के शायर अपनी शायरी के माध्यम  से अपनी संस्कृति का झंडा बुलंद किए हुए हैं।
फ़हीम अख़्तर की ग़ज़ल “आशिक़ को कहाँ होश के सजदे का हो पाबंद , ये इश्क़ की बरकत है गुनहगार नहीं था “ से मुशायरे का आग़ाज़ हुआ , फिर इश्क़ मोहब्बत के साथ ही रोज़मर्रा की सामाजिक , राजनैतिक सचाइयों को दर्शाती ग़ज़लों और नज़्मों का सिलसिला घंटों जारी रहा ।
आशुतोष कुमार , ज्ञान शर्मा , सरबजीत ढाक , आशीष मिश्रा , माथे तलत सिद्दीकी , शाज ख़ान और मुंबई से पधारे प्रदीप गुप्ता ने रंग जमा दिया . “ऐसा क्या कुछ घट गया है इन दिनों में , आदमी क्यों बंट गए हैं दो ध्रुवों में “ इन पंक्तियों पर प्रदीप गुप्ता ने वाहवाही बटोरी।
लंदन के जाने माने कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने इस मुशायरे को अपने कुशल संचालन से एक नई ऊर्जा प्रदान की . नेहरू केंद्र के निदेशक नरोम जे सिंह , भारतीय उच्चायोग की सांस्कृतिक आतिशे अनुराधा पांडेय, लंबे समय से बर्नेट से काउंसलर और साहित्यकार ज़किया ज़ुबेरी, पूर्व संसद और लेबर नेता वीरेंद्र शर्मा और अनेक गणमान्य प्रवासी भारतीय उपस्थित थे.

Ghibli व एनीमे: जापानी ‘कल्चरल सुपरपावर’ से भारत को सीख

एनीमे ने जापान को एक ‘कल्चरल सुपरपावर’ के रूप में स्थापित किया, इसकी दीवानगी पूरे विश्व में दिख रही है। स्टूडियो घिबली (Studio Ghibli) न केवल जापान की एनीमे इंडस्ट्री का एक प्रमुख स्तंभ है, बल्कि यह जापान की सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर (Soft Power) को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने का एक प्रमुख माध्यम भी है। इसकी शुरुआत 1985 में हायाओ मियाज़ाकी (Hayao Miyazaki) और इसाओ ताकाहाता (Isao Takahata) ने की थी। स्टूडियो ने अपनी गहरी भावनात्मक कहानियों, पर्यावरणीय संदेशों, सांस्कृतिक मूल्यों और असाधारण एनीमेशन के माध्यम से पूरी दुनिया में जापानी संस्कृति और विचारधारा का प्रसार किया।

विचारणीय है की 145 करोड़ की आबादी वाले भारत से ऐसे नए विचार, अभिनव नवाचार और व्यवहार बाहर क्यों नहीं आते हैं? क्या इतनी विपुल आबादी का देश दूसरे देशों की उत्पाद क्रांति का खाद-पानी मात्र ही बनकर रहेगा या अपने स्वत्व के बोध से ऐसे सोशल मीडियाई और डिजिटल नवाचारों का भी उदय भी करेगा जहाँ भारतीय दोयम दर्जे के नागरिक बन अपने संस्कृति, परंपरा और समाज के लिए ट्रोल न किये जाएँ?

Regards

Shivesh Pratap

Technology-Management Consultant, Author, Public Policy Analyst

B.Tech.(EC) & IIM Calcutta Alumnus

Mob: 8750091725 

Read My Articles: Author at SPMRF

Latest Book: मोदी दशक:विकसित भारत की आधारशिला (प्रभात प्रकाशन)

सनी देओल और अरशद वारसी की ‘भैयाजी सुपरहिट’ 10 अप्रैल को प्रदर्शित होगी

एक बार फिर बड़े पर्दे पर धमाल मचाने के लिए तैयार हो जाइए! सनी देओल की जबरदस्त एक्शन-कॉमेडी फिल्म ‘भैयाजी सुपरहिट’ 10 अप्रैल 2025 को दोबारा रिलीज हो रही है। इस बहुप्रतीक्षित री-रिलीज में दर्शकों को फिर से सनी देओल की दमदार परफॉर्मेंस और मसाला एंटरटेनमेंट का मजा मिलेगा।

नीरज पाठक द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक शानदार कलाकारों की टोली के साथ आती है, जिसमें प्रीति जिंटा, अरशद वारसी, अमीषा पटेल, श्रेयस तलपड़े, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा, जयदीप अहलावत, रफ्तार, विजय राज, और मनोज जोशी शामिल हैं। फिल्म में एक्शन, कॉमेडी और ड्रामा का जबरदस्त मिश्रण है, जो हर पीढ़ी के दर्शकों के लिए एक परफेक्ट बॉलीवुड एंटरटेनर साबित होगी।

महेंद्र धारीवाल द्वारा निर्मित और मेट्रो मूवीज प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी इस फिल्म को ओम शांति क्रिएशंस और हनवंत खत्री द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है।

फिल्म के निर्माता महेंद्र धारीवाल ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘भैयाजी सुपरहिट’ की री-रिलीज हमारे उन सभी प्रशंसकों के लिए एक खास तोहफा है, जिन्होंने इस फिल्म को सालों से प्यार और समर्थन दिया है। सनी देओल की दमदार स्क्रीन प्रेजेंस और रोमांचक कहानी दर्शकों के लिए एक बार फिर एक्शन से भरपूर अनुभव लेकर आएगी।”

सनी देओल के जबरदस्त एक्शन सीक्वेंसेस, दमदार डायलॉग्स और मनोरंजक कहानी के साथ, ‘भैयाजी सुपरहिट’ एक बार फिर बॉक्स ऑफिस पर धमाका करने के लिए तैयार है।

Media Contacts:
Pigeon Media- The PR Company
Abhishek Dubey
Mobile : 09699384240
Email : abhi23890@gmail.com

मास्को फैशन वीक के कैटवॉक पर मशहूर भारतीय ब्रांड्स ने अपनी छाप छोड़ी

नई दिल्ली, दिल्ली। वैश्विक फ़ैशन परिदृश्य में अहम भूमिका निभाते हुए, Moscow Fashion Week, डिज़ाइनर्स को अपने कलेक्शन्स दिखाने का मौका देता है, जिससे वैश्विक फ़ैशन समुदाय के सामने बेजोड़ और इनोवेटिव क्रिएशन्स के लिए मंच तैयार होता है, जिसमें इंटरनेशनल फ़ैशन मैग्ज़ीन के एडिटर्स, एक्सपर्ट्स, स्टाइलिस्ट और बहुत सारे दर्शक शामिल होते हैं। इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम में अपने हालिया शोकेस के साथ भारतीय डिज़ाइनर्स ने ज़बरदस्त सफ़लता हासिल की।

Moscow Fashion Week में छह दिनों के दौरान, रूस, इंडोनेशिया, अमेरिका, दक्षिण अफ़्रीका, चीन, स्पेन और अन्य देशों के डिज़ाइनर्स ने अपने बेहतरीन कलेक्शन के साथ कैटवॉक की शोभा बढ़ाई। इस व्यस्त कार्यक्रम में 90 से ज़्यादा बेहतरीन शो शामिल थे, जिसमें 200 से ज़्यादा ब्रांड्स ने कई इनोवेटिव फ़ॉर्मेट्स में अपने क्रिएशन्स को प्रदर्शित करने के लिए Moscow Fashion Week को सही मंच के रूप में चुना।

इस सीज़न में, दो मशहूर भारतीय ब्रांड्स, FDCI presents: CoEK – Khadi India and Samant Chauhan, ने Moscow Fashion Week में अपने कलेक्शन का अनावरण किया। CoEK – Khadi India मटेरियल की क्वालिटी पर खास ज़ोर देता है, जो तेज़ी से उभरते देश में एक अहम पहलू, कर्तव्यनिष्ठ फ़ैशन के लोकाचार को दर्शाता है। बेजोड़ सार से भरपूर इस आकर्षक कलेक्शन ने अपने जीवंत, बहु-स्तरीय डिज़ाइनों से मॉस्को के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कपास, ऊन और रेशम के बेहतरीन फ़्यूशन से बेहतरीन क्रिएशन्स तैयार हुए, जिन्होंने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। शो के अनूठे माहौल में संगीतमय संगत ने और भी समां बांध दिया, जिसने भारत की एक आकर्षक यात्रा की सैर करा दी। 

Samant Chauhan के कलेक्शन ने अपनी बेहतरीन शिल्पकला से मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसमें शानदार मटेरियल, जटिल परतें, नाज़ुक लेस फ़ैब्रिक्स, जड़े हुए कपड़े और रेशम की कढ़ाई शामिल है। “रूस में विविध फ़ैशन प्रभावों के लिए प्रशंसा बढ़ रही है, और हम भारतीय शिल्प कौशल और रूसी सौंदर्यशास्त्र के बीच एक मज़बूत तालमेल देखते हैं। बाज़ार उन ब्रांड्स के लिए रोमांचक अवसर पेश करता है जो पेचीदा बारीकियां, सतत प्रथाओं और सांस्कृतिक कहानी कहने पर ज़ोर देते हैं—ऐसे आदर्श जो हमारे ब्रांड को परिभाषित करते हैं। हमारा मानना है कि भारतीय फ़ैशन रूस में एक अनूठी जगह प्राप्त कर सकता है, जो विरासत को समकालीन शैली के साथ मिलाता है,” Samant Chauhan ने कहा।  

Moscow Fashion Week नवाचार के एक प्रकाश स्तंभ के रूप में सामने आया है, जो उभरते क्षेत्रों की फ़ैशन अर्थव्यवस्थाओं को नई ऊंचाइयों पर ले गया है। ये गौरवपूर्ण वैश्विक मंच न केवल प्रतिभागियों को अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासतों को उजागर करने के लिए एक स्पॉटलाइट प्रदान करता है, बल्कि परंपरा को ट्रेंड सेट करने वाले स्वभाव के साथ मिलाते हुए समकालीन फ़ैशन के मॉडर्न लेंस के ज़रिये उन्हें कलात्मक तरीके से प्रस्तुत करता है।

Moscow Fashion Week में डिज़ाइनर्स हलचल भरे महानगरों की जीवंत ऊर्जा के साथ-साथ प्रकृति की शांत सुंदरता से प्रेरणा लेते हैं। जैसे कि, रूसी ब्रांड White Ocean को ही लें, जिसका आउटरवियर कलेक्शन क्लासिक सिल्हूट को आकर्षक कट्स, स्टेटमेंट शोल्डर और शहरी निवासियों द्वारा पसंद की जाने वाली ज़रूरी लेय ब्रांड के ईथर डाउन जैकेट और बहुमुखी डबल-साइडेड कोट स्टाइल और कार्यक्षमता का प्रतीक हैं, जो अप्रत्याशित मौसम की स्थिति के लिए एकदम सही हैं। Moscow Fashion Week का एक और बेहतरीन प्रदर्शन, Les Noms, प्रकृति के जटिल आकार और मिट्टी के रंगों से प्रेरित है, तथा उन्हें महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए विषम ड्रेप किए हुए ड्रेस, लहराते बॉम्बर्स, व सुंदर किमोनो जैसे बेहतरीन कृतियों में परिवर्तित करता है।

Media Contact Details

डा.रामनरेश सिंह “मंजुल” एक समर्पित कवि

डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ के शोध प्रबंध  “बस्ती के छंदकार” की पांडुलिपि के पृष्ठ 591पर मंजुल का  संदर्भ उपलब्ध है। डा. रामनरेश सिंह “मंजुल”का जन्म 15 दिसम्बर 1940 को बस्ती के गौर ब्लाक के ग्राम-सिद्धौर में हुआ था।उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। जिला मुख्यालय स्थित सक्सेरिया इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट करने के बाद गोरखपुर के सेंट एंड्यूज डिग्री कॉलेज से स्नातक किया।

वर्ष 1961 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. उतीर्ण करने के बाद सहजनवां के कोलाराम मस्करा इंटर कॉलेज में प्रवक्ता बने। अध्यापन कार्य करते हुए ही हिन्दी से परास्नातक की शिक्षा पूरी की। एल.टी.करने के बाद पीएचडी की। अंग्रेजी प्रवक्ता के तौर पर अपना कैरियर शुरू किया। सहजनवां में छह वर्ष अध्यापन के बाद वह गौर के कृषक इंटर कॉलेज में वर्ष 1967 में बतौर प्रवक्ता शिक्षण कार्य करने लगे थे । 1973 में नेशनल इंटर कालेज हर्रैया के प्रधानाचार्य बने। लगातार तीस वर्ष तक सेवा देने के बाद 30 जून 2003 को सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्त होने के बाद साहित्य सृजन में उन्होंने पूर्णकालिक समय देना शुरू कर दिया। रुहेलखंड विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के दौरान ही आधुनिक गीत सम्राट डॉ. शम्भूनाथ सिंह के सानिध्य में ही नवगीत लिखने की प्रेरणा मिली।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मंजुल की कृतियां हिंदी जगत में सराही जा रही है।  वे मंचों पर अपनी रचनाओं से श्रोताओं कमंत्र मुग्ध कर दिया करते थे। वे कहा करते हैं कि साहित्यकार एवं कवि ही समय-समय पर समाज को जगाने का कार्य करते हैं। मंजुल जी कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन को अपना काव्यादर्श मानते थे।

 प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश अध्यक्ष व संरक्षक के तौर पर हमेशा शिक्षकों के हित का मुद्दा उठाते रहे।  यह गीतो के साथ खड़ी बोली और व्रजभाषा में सवैया और धनाक्षरी छन्दों को लिखने और पढ़ने में बड़ी पटुता रखते हैं। रेडियो स्टेशन से इनकी कविताएँ प्राय: प्रसारित होती रहीं है। मंजरी मौलश्री अंक 10, मार्च 1979 में उनका एक गीत इस प्रकार प्रकाशित हुआ है –

              याद तुम्हारी (गीत)

याद तुम्हारी ऐसी जैसे हिरन छलांग भरे,

अथवा कोई रतन जौहरी कंचन काट धरे ।

याद तुम्हारी ऐसी जैसे सावन मेघ झरे,

अथवा कोई राजहंसिनी मानस में विचरे ।।

बैठा कोई श्रान्त पथिक सा चंदन गाछ तरे,

यक्ष सदृश आकुल अंतर से मेघ दूत उचरे।

साधों की वीना बज जाये तार-तार सिहरे,

वे मौसम की याद तुम्हारी पागल प्राणकरे।

प्रकाशित कृतियाँ :-

‘साहित्य का मर्म तथा धर्म’ (निबंध संग्रह-2006),

‘आदमी कितना अकेला’ (काव्य संग्रह/गीत)।

सम्मान:-

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ की ओर से साहित्य भूषण सम्मान से नवाजा गया है। आयोजित समारोह के दौरान मंजुल को ताम्र पत्र एवं दो लाख रुपये का चेक दिया गया। डा.रामनरेशन सिंह ‘मंजुल’ को 1997 में उत्तर प्रदेश राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।मंजुल को वर्ष 2006 में ललित निबंध व शोध निबन्धों की संग्रह की पुस्तक ‘साहित्य का मर्म व धर्म’ के लिए कई साहित्यिक मंचों पर सम्मानित किया गया था। गीत संग्रह ‘आदमी कितना अकेला’ पर 2014 में बलबीर सिंह पुरस्कार मिला। उन्हें राष्ट्रीय साहित्य साधना सम्मान, इन्दौर, म०प्र०, फरोग ए उर्दू सोसाइटी द्वारा ‘रामचन्द्र शुक्ल सम्मान’, कादम्बिनी साहित्य संस्था द्वारा ‘साहित्य शिरोमणि सम्मान’ भी मिल चुका है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद में हिन्दी व अंग्रेजी के पेपर सेटर के  पर अपनी सेवाएं दी। अवध विश्वविद्यालय भी इनकी सेवाओं को लेता रहता है। पत्र पत्रिकाएं कादंबनी, सरस्वती सुमन, स्वतंत्र भारत, पायनियर, नवगीत आदि में इनकी कविताएं व लेख प्रकाशित होते रहे हैं।

सम्पर्क सूत्र:-

राजघाट हरैया, जनपद-वस्ती, दूरभाष: 05546-233500, मोबाइल: 9415151858

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

( मोबाइल नंबर +91 8630778321;
वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)

संस्कृति और पर्यटन की दृष्टि से सिरमौर है राजस्थान

कोटा  राजस्थान दिवस की पूर्व संध्या पर तालमंडी में संगोष्ठी, काव्यपाठ और क्विज एवं फोटो प्रतियोगिताओं का पुरस्कार वितरण का आयोजन किया गया। राजस्थान संस्कृति, पर्यटन और साहित्य की दृष्टि से देश का सिरमौर राज्य है। संस्कृति की धूम विदेशों तक है और विदेशी पर्यटक राजस्थान को देखने बड़ी संख्या में हर वर्ष आते हैं। संस्कृति और साहित्य से संबंधित क्विज और फोटो प्रतियोगिताओं से विद्यार्थियों में साहित्य और संस्कृति के प्रति जागृति उत्पन्न होती है। ये विचार संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत गांधीनगर और संस्कृति, साहित्य,मीडिया फोरम के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
 मुख्य अथिति कोटा रेल मंडल के वित्त प्रबंधक और साहित्यकार राजकुमार प्रजापत , अध्यक्ष साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही, रामेश्वर शर्मा रामू भैया, डॉ. प्रीति मीणा, एडवोकेट अख्तर खान अकेला ने अपने विचार व्यक्त करते हुए क्विज और फोटो पहचानो प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार वितरित किए।
कार्यक्रम में साहित्यकार डॉ. जेबा फिज़ा, डॉ. अपर्णा पाण्डेय, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. इंदु बाला शर्मा, डॉ. कृष्णा कुमारी, श्यामा शर्मा और रेणु सिंह राधे ने काव्यपाठ कर श्रोताओं को गुदगुदाया।
कला, संस्कृति, पर्यटन संबंधी फोटो पहचानो प्रतियोगिता के विजेताओं विजय प्रकाश महेश्वरी,  विजय शर्मा, रश्मि गर्ग, साबीर खान, राम मोहन कौशिक और वंदना शर्मा को पुरस्कृत किया गया।
राजस्थान दिवस की क्विज प्रतियोगिता में कोटा जिले के डॉ. युगल सिंह, विजय प्रकाश माहेश्वरी, स्मृति शर्मा, सरताज अली रिज़वी ,नितिन प्रजापति,विशाल प्रजापति , आशा मेघवाल,  संस्कृति माली , श्रेया कुमावत , तसनीम, प्रीति मीणा आकांशा पांचाल , निष्ठा जैन , पायल कश्यप , महेश कुमार मालव , साहिल , हरीश मालव   आदित्य शर्मा  हिमांशी सुमन,  नंदनी पोरवाल, निकिता, पूजा पटेल,  कृष्णा वर्मा, ज्योति तंवर, कौशल सेन , अल्शिफा , बुद्धि प्रकाश मेघवाल , हर्षित यादव, आरती कुमारी, चेतन कुमार बैरवा , प्रिंस मीणा एवं झालावाड़ जिले के दीपेश,
अनुष्का शर्मा, जाह्नवी खण्डेलवाल, चंद्रिका राजावत , अंजली जाट और पीयूष राठौर  को प्रशस्ति पत्र एवं साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया।
प्रतियोगिताओं के आयोजक समन्वयक डॉ. अपर्णा पाण्डेय, डॉ. वैदेही गौतम, डॉ. इंदु बाला शर्मा, डॉ. सुशीला जोशी, स्नेहलता शर्मा, रेखा सक्सेना को भी सम्मानित किया गया।
 प्रारंभ में अतिथियों ने मां सरस्वती की तस्वीर के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। समरस संस्थान की कोटा इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार जैन ने अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया।
विभिन्न संस्थाओं की ओर से मुख्य अथिति का सम्मान कर अभिनंदन पत्र भेंट किया गया।
संचालन करते हुए डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने बताया कि क्विज प्रतियोगिता में कोटा संभाग के 5 विद्यालयों और 3 महाविद्यालयों के 503 विद्यार्थियों के साथ – साथ साहित्यकारों में तथा फोटो पहचानो प्रतियोगिता में 100 व्यक्तियों ने भाग लिया। मदर टेरेसा विद्यालय का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। समरस संस्थान की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने सभी का आभार व्यक्त कर बताया यह एक राष्ट्रीय संस्था है जिसके 18 राज्यों और दो देशों में करीब 20 हजार सदस्य हैं । कार्यक्रम में  साहित्यकार, विजेता प्रतियोगी और समन्वयक उपस्थित रहें।
—————

हैरतअंगेज और दहला देने वाली क्राईम थ्रिलर फिल्म ‘कोंड्राल पावम’

कोंड्राअल पावम ( अनुवाद:  हत्या करना पाप है )  तमिल भाषा की क्राइम थ्रिलर फ़िल्म है, जिसे दयाल पद्मनाभन ने लिखा और निर्देशित किया हैऔर इसका निर्माण प्रताप कृष्णा और मनोज कुमार ने इनफैच स्टूडियो के तहत किया है। ओटीटी पर उपलब्ध ये एक ऐसी फिल्म है, जिसे अगर आप देखने बैठ गए तो बीच में एक मिनट के लिए उठ नहीं पाएंगे. इस फिल्म की कहानी ‘दृश्यम’ और ‘महाराज’ से भी खतरनाक है. इसका क्लाइमैक्स देखकर आप ‘दृश्यम’ और ‘महाराज’ जैसी फिल्में भूल जाएंगे.फ़िल्म में वरलक्ष्मी सरथकुमार , संतोष प्रताप , ईश्वरी राव और चार्ले ने अभिनय किया है।  यह फ़िल्म निर्देशक की अपनी कन्नड़ फ़िल्म आ कराला रात्रि (2018) की रीमेक है, जो खुद मोहन हब्बू के कन्नड़ नाटक पर आधारित है, जिसका अनुवाद रूपर्ट ब्रुक केअंग्रेज़ी नाटक लिथुआनिया से किया गया है । [

यह फिल्म निर्देशक की अपनी कन्नड़ फ़िल्म आ कराला रात्रि (2018) की रीमेक है, जो खुद मोहन हब्बू के कन्नड़ नाटक पर आधारित है.
इस फिल्म को आप अब ओटीटी प्लेटफॉर्म प्राइम वीडियो पर घर बैठे देख सकते हैं. फिल्म की कहानी 80 के दशक में सेट की गई है. तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में, एक गरीब परिवार जिसमें वृद्ध माता-पिता करुप्पुसामी (चार्ले) और वल्लियाम्मल (ईश्वरी राव) और उनकी अविवाहित बेटी मल्लिका (वरालक्ष्मी) शामिल हैं. एक बार इन सबकी मुलाकात एक ज्योतिषी से होती है.
ज्योतिषी भविष्यवाणी करता है कि उनकी किस्मत रातोंरात नाटकीय रूप से बदल जाएगी, और यह उन पर निर्भर करता है कि वे इसका सबसे अच्छा या बुरा उपयोग करें. उसी दिन, एक अजनबी, अर्जुनन (संतोष प्रताप), उनके घर आता है और पूछता है कि क्या वह रात भर उनके घर रुक सकता है.
शुरू में अनिच्छुक होने के बावजूद, वे उसे अपने घर में ले लेते हैं र धीरे-धीरे उसके साथ सहज हो जाते हैं. अर्जुन को परिवार की आर्थिक समस्याओं के बारे में पता चलता है. गांव में भयंकर सूखे के कारण परिवार संघर्ष कर रहा है और मल्लिका की शादी नहीं हो पा रही है क्योंकि वे मांगे गए दहेज को देने में असमर्थ हैं.
अर्जुनन उन्हें पैसे और गहनों से भरा एक बक्सा दिखाता है और कहता है कि कड़ी मेहनत करने से उसकी किस्मत बदल गई है, उन्हें विश्वास दिलाता है कि उनकी भी किस्मत बदल सकती है. मल्लिका, अर्जुनन के धन और सुंदरता से मोहित होकर उसे बहकाने की कोशिश करती है, हालांकि, वह उसके व्यवहार के लिए उसे डांटता है.
मल्लिका अर्जुनन को मारने और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए सोना और नकदी चुराने की योजना बनाती है. भले ही माता-पिता हिचकिचाते हैं, लेकिन वे योजना के लिए सहमत हो जाते हैं क्योंकि उन्हें पैसे की जरूरत है. अब इसके आगे क्या होता है, ये जानने के लिए आपको खुद प्राइम वीडियो पर इस फिल्म को देखना होगा.

उत्तर प्रदेश का उत्कर्ष काल

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के 8 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण हो चुका है। इन 8 वर्षों की सफलता और उपलब्धियों को आधार बनाकर भारतीय जनता पार्टी ने मिशन 2027 की तैयारियां भी आरम्भ कर दी हैं। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने 25 से 27 मार्च 2025 तक हर जिले में तीन दिवसीय विकास उत्सव मनाया जिसमें सरकार की उपलब्धियों का विस्तृत रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत किया गया तथा विभिन्न लाभार्थियों से संपर्क कर धरातल को भी परखा गया। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि “प्रदेश वही है,  तंत्र वही है बस सरकार बदलने से बदलाव हुआ है और प्रदेश बीमारू प्रदेश से देश का ग्रोथ इंजन बन रहा है, आज प्रदेश श्रम शक्ति से अर्थ शक्ति बने की ओर अग्रसर है।

भाजपा का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में, सबका साथ सबका विकास की नीति व अपराध पर जीरो टालरेंस की नीति को सफलता के  साथ पूरा किया  जा रहा है। अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करते हुए 222 दुर्दांत अपराधियों का एनकाउंटर किया गया और 930 से अधिक अपराधियों के खिलाफ एरनएसए की कार्यवाही हो चुकी है। मुख्यमंत्री योगी की बुलडोजर बाबा की छवि प्रदेश की जनता को पसंद है। अब तो अन्य राज्यों में भी लोग “मुख्यमंत्री हो तो योगी जैसा” की बात करने लगे हैं। प्रदेश के अपराधियों में भय का वातावरण उत्पन्न हुआ है क्योंकि अपराधी अगर अपराध करके दूसरे राज्यों में भागकर संरक्षण प्राप्त करने का प्रयास करता है तब भी वह बच नहीं पा रहा है । बेहतर होती कानून व्यवस्था के कारण प्रदेश के हर क्षेत्र में सर्वांगीण विकास में योगदान देने के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय निवेशक आकर्षित हो रहे हैं। प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे नहीं होते, जिससे हिंदू व मुसलमान दोनों ही  सुरक्षित महसूस करते हैं। प्रदेश में लव जिहाद व धर्मांतरण जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कानून बनाये गये हैं। प्रदेश में परीक्षाओं में होने वाली नकल को रोकने के लिए भी प्रभावी कानून बनाया गया है जिसका प्रभाव भी दिख रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में सनातन की पुनर्प्रतिष्ठा हो रही है। अयोध्या में प्रभु राम की जन्मस्थली पर दिव्य भव्य मंदिर का उदघाटन संपन्न होने, काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण होने और अब प्रयागराज में महाकुंभ -2025 के सफल आयोजन से सनातन धर्मियों के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता बढ़ी है। आस्था के केन्द्रों के विकास के कारण प्रदेश में तीर्थाटन के लिए आने वालों की संख्या में रिकार्ड वृद्धि हो रही है । अयोध्या, काशी, मथुरा  सहित अन्य सभी धार्मिक स्थलों ने घरेलू पर्यटन के क्षेत्र में प्रदेश को बड़ी बढ़त  दिलाई है। वर्ष 2024 में प्रदेश में 64.90 करोड़ पर्यटकों का आगमन हुआ जिसके अंतर्गत विदेशी पर्यटकों की संख्या में 6.67 लाख थी। प्रदेश में धार्मिक पर्यटन सहित पर्यटन की अन्य संभावनाओं का भी विकास  किया जा रहा है।

एक जिला -एक उत्पाद योजना की ही तरह एक जिला एक पर्यटन स्थल का भी विकास किया जा रहा है। जैसे सीतापुर जिले में नैमिषारण्य, लखनऊ में चंद्रिका देवी मंदिर तथा पुराना हनुमान मंदिर, बाराबंकी में लोधेश्वर महादेव। मीरजापुर जिले में स्थित मां विन्ध्यवासिनी धाम में भी कारिडोर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। अयोध्या व काशी के बाद मथुरा वृंदावन के वृहद स्तर पर विकास की बात मुख्यमंत्री जी सदा करते हैं। इस कार्य को सही रूप से पूर्ण करने के के लिए श्री अयोध्या जी तीर्थ  विकास परिषद,  श्री देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद, उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद, श्री विन्ध्य धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट धाम तीर्थ विकास परिषद एवं नैमिषारण्य धाम तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया है ।

प्रदेश में एक्सप्रेस -वे बन रहे हैं और फिर उसी गति से अंतर्जनपदीय सड़कों का भी निर्माण हो रहा है। 8 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय 46 हजार से बढ़कर 1लाख 24 हजार हो गयी है। अब प्रदेश में आयुध निर्माण भी होने लगा है। महिला, किसान, छात्र,  युवा सभी वर्ग के लोग सरकारी योजनाओं से सीधे लाभान्वित हो रहे हैं। प्रदेश में 8 वर्षे में पौधरोपण अभियान भी व्यापक पैमाने पर चल रहा है जिसके अंतर्गत अब तक 204 करोड़ पौधरोपण हो चुका है जिसका असर यह हुआ है कि 2 लाख एकड़ में हरीतिमा बढ़ी। प्रदेश सरकार सामाजिक सरोकारों में अग्रणी है जिसके अंतर्गत अनाथ परिवारों की सहायता की जा रही है। प्राकृतिक आपदाओं में भी सरकार भरपूर सहायता उपलब्ध करा रही है।

उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बनने की और अग्रसर है जो जीरो पावर्टी स्टेट यानि गरीबी मुक्त प्रदेश होगा। प्रदेश में 15 करोड़ नागरिकों को निशुल्क राशन का वितरण किया जा रहा है।60 लाख माताओं  को प्रधानमंत्री मातृ वंदना सहायता का लाभ मिल रहा है।1करोड़ परिवारों को घरौनी प्रमाणपत्र मिलने से गांवों में जमीन संपत्ति संबंधी विवादों  का निपटारा हो रहा है।

युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध होने के कारण बेरोजगारी की दर मात्र 3 प्रतिशत रह गई है। केंद्र सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने में प्रदेश नंबर बन चुका है, इनमें  प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत  योजना में सबसे अधिक आयुष्मान कार्ड बने हैं, प्रधामनंत्री आवास योजना के सर्वाधिक लाभर्थी उत्तर प्रदेश  से हैं।स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत  देश में सबसे अधिक 2.75 करेड  से अधिक शौचालय बने। कौशल विकास नीति को लागू करने वाला देश का प्रथम राज्य यूपी बना है।खाद्यान्न, दूध, आलू आंवला, आम, गन्ना, चीनी और  इथेनॉल उत्पादन में प्रदेश नंबर वन बन चुका है।400 लाख टन सब्जियों का उत्पादन कर यूपी देश में प्रथम स्थान पर है। एक जिला एक मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत प्रदेश के सभी 80 जिलों में मेडिकल कॉलेज का संचालन किया जा रहा है।

आज प्रदेश में सर्वाधिक एयरपोर्ट हैं । 2017 से पूर्व किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अयोध्या व श्रावस्ती में भी भव्य एयरपोर्ट बन सकता है किंतु अब एयरपोर्ट कार्य कर रहे  है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अब प्रदेश बेहतर कानून व्यवस्था के बल पर सभी क्षेत्रों मे प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। यूपी देश की बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। प्रदेश में गुलामी के प्रतीकों का महिमामंडन नहीं होता अपितु प्रदेश की योजनाओं का नामकरण महापुरुषों के  नाम पर किया जा रहा है।

महाकुंभ 2025 के सफल आयोजन के बाद तो यूपी सरकार की प्रतिष्ठा पुरे विश्व में बढ़ गई है। प्रदेश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की गूंज  सुनाई दे रही है और निस्संदेह इसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका अत्यंत मतवपूर्ण है। योगी जी के नेतृत्व में प्रदेश अभ्युदय काल देख रहा है।

प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं. – 9198571540

रंग क्रांति पर्व “मंजुल भारद्वाज” !

मंजुल भारद्वाज एक दूरदर्शी व्यक्ति हैं जो इस सिद्धांत को रचते हैं कि कला केवल अभिव्यक्ति या ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को उन्मुक्त करती है। मंजुल भारद्वाज एक ऐसा नाम है जो साबित करता है कि रंग चेतना समाज में बदलाव को प्रेरित करती है। उन्हें आधुनिक युग के एक क्रांतिकारी विचारक के रूप में जाना जाता है जिन्होंने कला से सामाजिक क्रांति की नींव रखी l थियेटर ऑफ़ रेलेवंस सिद्धांत से उन्होंने न केवल रंगमंच, बल्कि रंगमंच चेतना का भी एक नया युग निर्मित किया है। रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज ने 12 अगस्त 1992 को थियेटर ऑफ़ रेलेवंस की स्थापना की l
दुनिया में आज चार तरह का थिएटर होता है. एक सत्ता पोषित जो दृष्टि शून्य नाचने गाने वाले जिस्मों की नुमाइश भर होता है. दूसरा प्रोपोगंडा होता है जिसमें नाचने गाने वाले जिस्मों का  उपयोग वामपंथी- दक्षिणपंथी प्रोपोगंडा के लिए होता है. तीसरा बुद्धिजीवी वर्ग का ‘माध्यम’ होने का शगूफा है जो रंगकर्म को सिर्फ़ माध्यम भर समझते हैं . चौथा रंगकर्म है ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत का रंगकर्म जो थिएटर को माध्यमभर नहीं बल्कि मानव मुक्ति का उन्मुक्त दर्शन मानता है. थिएटर मानवता के कल्याण का वो दर्शन है जो किसी सत्ता के अधीन नहीं है. जो हर सत्ता को आईना दिखाता है. चाहे कोई भी सत्ता हो राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक या सांस्कृतिक सत्ता सभी को आईना दिखाता है  ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत का रंगकर्म !
आत्मविद्रोह का अहिंसात्मक, कलात्मक सौन्दर्य है रंगकर्म. सौंदर्य बोध ही इंसानियत है. सौंदर्य बोध सत्य को खोजने,सहेजने,जीने और संवर्धन करने का सूत्र है. सौंदर्य बोध विवेक की लौ में प्रकशित शांति की मशाल है l थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत अनुसार ART A Romance with Truth! ‘कला – सत्य के साथ रोमांस एक अद्भुत यात्रा है!’ कला सत्य की खोज है! क्योंकि सत्य अंतरंग है! कला सत्य का रोमांस है!
1992 से थियेटर ऑफ़ रेलेवंस ने बिना किसी कॉर्पोरेट, राजनीतिक या सरकारी फंडिंग के जमीनी स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक प्रस्तुतियां की है। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत  रंगकर्मी दर्शकों के समर्थन,सहयोग और सहभागिता से जीवित रहते हैं। रंगकर्मी का मूल कर्म रंगकर्म करना है और रंगकर्म से आजीविका चलानी है तो दर्शकों से संवाद करना अनिवार्य है। दर्शक के साथ रंगदृष्टि संवाद ही रंगकर्मी की संजीवनी है। कठिन होता है। कई वर्षों तक फ़ाके खाने पड़ते हैं। समाज की दुत्कार भी सहनी पड़ती है, क्योंकि रंगनुमाइश दर्शकों को रंगकर्म का उद्देश्य मनोरंजन तक सीमित कर भरमाती है। दर्शक भी शुरू में आपसे वही मांग करते हैं, लेकिन आपको उनके इस भ्रम को तोडना होगा। यह भ्रम जब आप तोड़ देते हैं तब दर्शक आपके साथ जुड़कर आपको सच्चे रंगकर्म के लिए प्रोत्साहित करते हैं और वे दर्शक हमेशा आपकी रंगदृष्टि के साथ होते हैं। क्योंकि रंगकर्म ‘मनुष्य को मनुष्य बनाने का कलात्मक कर्म है’ और आपके रंगकर्म से जब दर्शक अपने अंदर बेहतर मनुष्य होने का अहसास करता है तब वो कभी आपको निराश और मोहताज़ नहीं करता। इसलिए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस सिद्धांत में दर्शक रंगकर्म का मूलाधार है, सरकार नहीं। इसलिए थिएटर ऑफ़ रेलेवंस का मानना है कि दर्शक ही रंगमंच के प्रथम और सशक्त रंगकर्मी हैं।
थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने वैचारिक नाटकों का परचम रंगभूमि पर फ़हरा दिया। वैचारिक नाटकों के हाउस फुल का राज़ है ‘दर्शक’ संवाद। जी हाँ भूमंडलीकरण के खरीदने– बेचने वाले झूठे विज्ञापनों के दौर में थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के कलाकारों ने ‘दर्शक’ संवाद कर दर्शकों को रंग नुमाइश और रंगकर्म के भेद को दर्शकों के समक्ष उजागर किया। इस तरह समाज की ‘फ्रोजन स्टेट’ को तोड़ने के लिए दर्शकों के सरोकारों को अपने नाटकों का आधार बनाया। दर्शकों ने भी अपना रचनात्मक प्रतिसाद दिया और चुनौतीपूर्ण समय में ‘वस्तु या ग्राहक’ के रूप को त्याग देश का नागरिक होने की भूमिका को निभाया।
रंगकर्म विद्रोह का सामूहिक कलाकर्म है। दुनिया में विविध रंग हैं, मसलन लाल, पीला, नीला आदि। हर रंग विचारों को सम्प्रेषित करते हैं। रंग यानी विचार। दरअसल रंगकर्म विचारों का कर्म है। विचार राजनैतिक प्रक्रिया है जो व्यवस्था का प्रशासनिक सूत्र है और कला उसका सृजनकर्म है जो मनुष्य को मनुष्य बनाने की प्रकिया है।राजा हरिश्चंद्र नाटक देखकर मोहनदास ने सत्य का मार्ग चुना। रंगकर्म गांधी को सत्य की डगर पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज जी ने आम लोगों के दुखों, समस्याओं, मुद्दों और सवालों को रंगमंच से जनता के सामने लाया। समाज में नाटकों से चेतना ,विचार और विवेक जागृत करते हुए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन ने शोषितों,पीड़ितों में प्रत्यक्ष बदलाव का इतिहास रचा है । रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज जी ने अब तक 50 हजार से अधिक बाल मजदूरों को मजदूरी के बंधन से मुक्त करा चुके हैं। साथ ही उन्होंने पांच हजार से अधिक पीड़ित महिलाओं को हिंसा और यौन शोषण से मुक्ति दिलाकर उन्हें समाज में ईमानदारी से जीने के लिए प्रेरित किया और अपनी कलम से क्रांति को शब्दाबद्ध किया।
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य कार्यशाला में सभी सहभागी अपने अनुभव,विचार और जीवन दर्शन को साझा करते हुए अपने कलात्मक स्वरूप को आत्मसात करते हैं!थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्यदर्शन “कला– कला के लिए” वाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ है और हजारों ‘रंग संकल्पनाओं’ को ‘रोपित कर अभिव्यक्ती का मंच देता है । “थियेटर ऑफ़ रेलेवंस” नाट्यदर्शन ने कार्यशालाओं  में समाज और व्यक्तियों के मानस में ‘सांस्कृतिक चेतना’ जागृत कर नयी दृष्टि प्रदान करके मानस को सांस्कृतिक क्रांति के लिए प्रतिबद्ध किया है। “थियेटर ऑफ़ रेलेवंस” अपनी रंगदृष्टि से, आत्महीनता से उपजे विकारों का उन्मूलन कर, आत्मबल से वैचारिक रूप का निर्माण करता है। कार्यशाला में सबसे पहले सहभागी निर्णय लेते हैं , कार्यशाला के विषय सहभागी तय करते है l व्यक्ति के चारों आयाम शारीरक, मानसिक, भावनिक और अध्यात्मिक ( यहाँ अध्यात्मिक का मतलब खुदसे जुड़ना है ) के समग्र दृष्टि से गढ़ा जाता है l “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने  नाट्य कार्यशालाओं में सहभागियों को मंच, नाटक और जीवन का संबंध, नाट्य लेखन,अभिनय, निर्देशन, समीक्षा, नेपथ्य, रंगशिल्प, रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों पर प्रशिक्षित किया है और कलात्मक क्षमता को दैवीय से वरदान हटाकर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तरफ मोड़ा है।
रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज विगत 33 वर्षों से विद्रोह की आग़ में जलते हुए इंसानियत का चराग़’ जलाने की कलात्मक प्रतिबद्धता से प्रतिबद्ध हैं । अपने वैचारिक कलात्मक नाट्य प्रस्तुतियों से रंगमंच को सार्थक और कलात्मक दिशा दी है. रंगभूमि और रंगपरिदृश्य को बदला है l थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के नाटकों में पात्र नही विचार पात्र बनकर जीता है और विचार तो मनुष्य के मस्तिष्क में अंकुरित होता है, पलता है और फलीभूत होता है.
रंग चेतना का वैश्विक प्रभाव :
मंजुल भारद्वाज के नाटक न केवल भारत में बल्कि यूरोप में भी लोकप्रिय हुए। नाटक “बी 7”, “विश्व द वर्ल्ड” और “ड्रॉप बाय ड्रॉप वॉटर” ने पर्यावरण को बचाने का वैश्विक संदेश दिया। थियेटर ऑफ़ रेलेवंस के नाटक ‘द… अदर वर्ल्ड’  के संदेश इकोलॉजी – ह्यूमनोलॉजी से 72 दिनों तक यूरोप गुंजायमान रहा ! भारतीय रंगमंच  के लिए यह पल अनोखे और कलात्मक रहे ,अमूमन भारतीय रंगमंच पर पाश्चात्य धुंध छाई रहती हैं पर थियेटर ऑफ़ रेलेवंस  रंग दर्शन ने  सर्द यूरोप की बर्फ़ को भारतीय दर्शन, तत्व और कलात्मक ताप से पिघला दिया । 72 दिन (14 सितम्बर से 24 नवम्बर)  भारतीय रंगमंच का  परचम गर्व से लहराता रहा !
थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत के अनुसार हर रंग एक विचार संप्रेषित करता है और विचारों के कर्म को रंगकर्म कहते हैं। 1992 से लगातार थिएटर ऑफ रेलेवेंस रंग दर्शन ने अपनी कलात्मक एवं वैचारिक प्रस्तुतियों से जन चेतना को प्रज्वलित कर विश्व में सांस्कृतिक क्रांति का बिगुल बजा मानवता के लिए स्वयं एवं समाज को समर्पित किया है। इस नाट्य दर्शन के अंतर्गत हुईं कलात्मक प्रसिद्ध नाट्य प्रस्तुतियां :
१. “छेड़छाड़ क्यों ?” – छेड़छाड़ विकृति का विरोध, शरीर से परे इंसान बनकर जीने की प्रक्रिया l
२. “मैं औरत हूं” – अपने होने को खोजने और स्वत्व की बुलंद आवाज l
३. “गर्भ” – मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का संघर्ष l
४. “अनहद नाद unheard sounds of universe” – कला और कलाकारों को उत्पाद और उत्पादीकरण से उन्मुक्त करती आवाज़ l
५. “न्याय के भंवर में भंवरी” – पितृसत्ता और उससे संचालित व्यवस्था पर कड़ा प्रहार l
६. “राजगति” – राजनीतिक दृष्टि और चेतना को जगा, राजनीति शुद्ध, सात्विक और पवित्र नीति को प्रस्थापित करती है  l
७. “लोक – शास्त्र सावित्री” – सावित्रीबाई फुले के विचारों को स्वयं के भीतर जगाने की प्रक्रिया, मनुवादी और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को तोड़ कर समतामूलक समाज का यलगार.l
८. “गोधडी… आपली संस्कृती” – सांस्कृतिक वर्चस्वाद का विरोध कर एक वर्णवाद मुक्त, विविध, नैसर्गिक और मानवीय संस्कृति की हुंकार
९. “The… Other World” – पर्यावरण, मानवता, पृथ्वी को बचाने का संकल्प। निसर्ग के पंचतत्वों को मनुष्य के पंचतत्वों से जोड़ती एक कलात्मक प्रस्तुति।
१०. “ड्रॉप बाय ड्रॉप वॉटर” – नैसर्गिक संसाधनों के निजीकरण का विरोध। पानी मानवीय और नैसर्गिक अधिकार है !
११. “किसानों का संघर्ष” – किसानों की संघर्ष व्यथा, और विकास, पूंजीवाद एवं राजनैतिक सत्यता को दर्शाता l
१२. “Yes My name is Smileyee, I am a girl” – लड़कियों के मौलिक अधिकार और स्वास्थ्य पर भाष्य करता नाटक।
१३. “संवाद एक पहल” – एक सुदृढ़ समाज रचना के लिए पारिवारिक, सामाजिक वाद विवादों को तोड़कर संवाद की पहल और बदलाव।
१४. “सम्राट अशोक” – राजा की बदलाव यात्रा, नरसंहारक से मानवता का पैरोकार होता एक सम्राट।
१५. ” नेहरू : द स्टेट्समैन” – एक राजनीतिज्ञ, राजनैतिक मर्म को समझता व्यक्तित्व और उसकी यात्रा l
१६. “मैं भी रोहित वेमुला” – जातिव्यवस्था के बाहुपाश से उन्मुक्त होती सत्य एवं संविधान की आवाज   l
१७. “स्पंदन” – तरंग यानि तत्वों के रंग को व्यक्ति के भीतर सृजित करती कलात्मक प्रस्तुति l
१८. “विश्व दाय वर्ल्ड” – विश्व द वर्ल्ड युवाओं के स्वप्न और चुनौतियों को उजागर करता है l
१९. “B – 7” – B7 भूमंडलीकरण के नाम पर पृथ्वी और दुनिया का शोषण को मंच पर प्रस्तुत करते हैं खूबसूरत सात पंछी l
२०. दूर से किसी ने आवाज़ दी : सांप्रदायिक आक्रोश को विवेक की आवाज देता है
२१. मेरा बचपन : बाल मजदूरी का विरोध
२२. नपुंसक : नपुंसक अपने ऊपर व्यंग्य करने वाले समाज की नपुंसकता को झकझोरता है l
२३. द्वंद्व : घरेलू हिंसा का प्रतिरोध.
२४.  रेड लाइट : यह नाटक संवेदनाओं और सामाजिक सच्चाइयों का एक दर्पण है l
इस नाटक से समाज की कठोर मानसिकता उजागर होती l
२५.  लाडली : लिंग चयन का विरोध करता नाटक l
२६. धुंद : बाल लैंगिक शोषण का विरोध l
– अश्विनी नांदेडकर
– सायली पावसकर
– कोमल खामकर
( आंतरराष्ट्रीय रंगकर्मी एवं लेखिका )

कृषि क्षेत्र में करवट बदलता भारत

भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। जबकि, कृषि क्षेत्र का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 18 प्रतिशत के आस पास बना हुआ है। इस प्रकार, भारत में यदि गरीबी को जड़ मूल से नष्ट करना है तो कृषि के क्षेत्र में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करना ही होगा। भारत ने हालांकि आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त सफलताएं  अर्जित की हैं और भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है तथा शीघ्र ही अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। साथ ही, भारत आज विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था भी बन गया है। परंतु, इसके आगे की राह अब कठिन है, क्योंकि केवल सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र के बल पर और अधिक तेज गति से आगे नहीं बढ़ा जा सकता है और कृषि क्षेत्र में आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना होगा।

भारत में हालांकि कृषि क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं और भारत आज कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गया है। परंतु, अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। किसानों के पास पूंजी का अभाव रहता था और वे बहुत ऊंची ब्याज दरों पर महाजनों से ऋण लेते थे और उनके जाल में जीवन भर के लिए फंस जाते थे, परंतु, आज इस समस्या को बहुत बड़ी हद्द तक हल किया जा सका है और किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किसान को आसान नियमों के अंतर्गत बैकों से पर्याप्त ऋण की सुविधा उपलब्ध है और इस सुविधा का लाभ आज देश के करोड़ों किसान उठा रहे हैं। दूसरे, इसी संदर्भ में किसान सम्मान निधि योजना भी किसानों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो रही है और इस योजना का लाभ भी करोड़ों किसानों को मिल रहा है। इससे किसानों की कृषि सम्बंधी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के सफलता मिली है।

भारतीय कृषि आज भी मानसून पर निर्भर है। देश के ग्रामीण इलाकों में सिंचाई सुविधाओं का अभाव है। इस समस्या को हल करने के उद्देश्य से भारत सरकार प्रति बूंद अधिक फसल की रणनीति पर काम कर रही है एवं सूक्ष्म सिंचाई पर बल दिया जा रहा है ताकि कृषि के क्षेत्र में पानी के उपयोग को कम किया जा सके तथा जल संरक्षण के साथ सिंचाई की लागत भी कम हो सके।

देश में कृषि जोत हेतु पर्याप्त भूमि का अभाव है और देश में सीमांत एवं छोटे किसानों की संख्या करोड़ों की संख्या में हो गई है। जिससे यह किसान किसी तरह अपना और परिवार का भरण पोषण कर पा रहे हैं इनके लिए कृषि लाभ का माध्यम नहीं रह गया है। इन तरह की समस्याओं के हल हेतु अब केंद्र सरकार विभिन्न उत्पादों के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य में, मुद्रा स्फीति को ध्यान में रखकर, वृद्धि करती रहती है, इससे किसानों को अत्यधिक लाभ हो रहा है। भंडारण सुविधाओं (गोदामों एवं कोल्ड स्टोरेज का निर्माण) में पर्याप्त वृद्धि दर्ज हुई है एवं साथ ही परिवहन सुविधाओं में सुधार के चलते किसान कृषि उत्पादों को लाभ की दर पर बेचने में सफल हो रहे है अन्यथा इन सुविधाओं में कमी के चलते किसान अपने कृषि उत्पादों को बाजार में बहुत सस्ते दामों पर बेचने पर मजबूर हुआ करता था। खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना भारी मात्रा में की जा रही है इससे कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन को बढ़ावा मिल रहा है एवं कृषि उत्पादों की बर्बादी को रोकने में सफलता मिल रही है।

आज भारत में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के उपयोग पर ध्यान दिया जा रहा है ताकि उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता कम हो एवं कृषि उत्पादकता बढ़े। इस संदर्भ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी किसानों की मदद कर रही है इससे किसान कृषि भूमि पर मिट्टी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कृषि उत्पाद कर रहे हैं। राष्ट्रीय कृषि बाजार को स्थापित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि किसान सीधे ही उपभोक्ता को उचित दामों पर अपनी फसल को बेच सके। साथ ही, कृषि फसल बीमा के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि देश में सूखे, अधिक वर्षा, चक्रवात, अतिवृष्टि, अग्नि आदि जैसी प्रकृतिक आपदाओं के चलते प्रभावित हुई फसल के नुक्सान से किसानों को बचाया जा सके। आज करोड़ों की संख्या में किसान फसल बीमा योजना का लाभ उठा रहे हैं।

देश में खेती किसानी का काम पूरे वर्ष भर तो रहता नहीं है अतः किसानों के लिए अतिरिक्त आय के साधन निर्मित करने के उद्देश्य से डेयरी, पशुपालन, मधु मक्खी पालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन आदि कृषि सहायक क्षेत्रों पर भी ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसानों को अतिरिक्त आय की सुविधा मिल सके।

विश्व के विभिन्न देशों ने अपनी आर्थिक प्रगति के प्रारम्भिक चरण में कृषि क्षेत्र का ही सहारा लिया है। औद्योगिक क्रांति तो बहुत बाद में आती है इसके पूर्व कृषि क्षेत्र को विकसित अवस्था में पहुंचाना होता है। भारत में भी आज कृषि क्षेत्र, देश की अर्थव्यवस्था का आधार है, जो न केवल खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि करोड़ों नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर भी निर्मित करता है। साथ ही, औद्योगिक इकाईयों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराता है। वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र की महत्ता आगे आने वाले समय में भी इसी प्रकार बनी रहेगी क्योंकि इस क्षेत्र से पूरी दुनिया के नागरिकों के लिए भोजन, उद्योग के लिए कच्चा माल एवं रोजगार के अवसर कृषि क्षेत्र से ही निकलते रहेंगे। हां, कृषि क्षेत्र में आज हो रही प्रौद्योगिकी में  प्रगति के चलते किसानों को कम भूमि पर, मशीनों का उपयोग करते हुए, कम पानी की आवश्यकता के साथ भी अधिक उत्पादन करना सम्भव हो रहा है। इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ कृषि उत्पाद की लागत कम हो रही है और किसानों के लिए खेती एक उद्योग के रूप में पनपता हुआ दिखाई दे रहा है और अब यह लाभ का व्यवसाय बनता हुआ दिखाई देने लगा है।

केला, आम, अमरूद, पपीता, नींबू जैसे कई ताजे फलों एवं चना, भिंडी जैसी सब्जियों, मिर्च, अदरक जैसे प्रमुख मसालों, जूट जैसी रेशेदार फसलों, बाजरा एवं अरंडी के बीज जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों एवं दूध के उत्पादन में भारत पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। दुनिया के प्रमुख खाद्य पदार्थों यथा गेहूं एवं चावल का भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत वर्तमान में कई सूखे मेवे, कृषि आधारित कपड़े, कच्चे माल, जड़ और कांड फसलों, दालों, मछली पालन, अंडे, नारियल, गन्ना एवं कई सब्जियों का पूरे विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत 80 प्रतिशत से अधिक कृषि उपज फसलों (काफी एवं कपास जैसी नकदी फसलों सहित) के साथ दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया था। साथ ही, भारत सबसे तेज विकास दर के साथ पशुधन एवं मुर्गी मांस के क्षेत्र में दुनिया के पांच सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल हो गया है।

कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था में किसी भी दृष्टि से कृषि क्षेत्र के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता है क्योंकि उद्योग एवं सेवा क्षेत्र का विकास भी कृषि क्षेत्र के विकास पर ही निर्भर करता है। अधिकतम उपभोक्ता तो आज भी ग्रामीण इलाकों में ही निवास कर रहे हैं एवं उद्योग क्षेत्र में निर्मित उत्पादों की मांग भी ग्रामीण इलाकों से ही निकल रही है। अतः देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना ही होगा।

प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com