Monday, April 28, 2025
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खंडहर में पड़ी नटराज प्रतिमा को लेकर विवाद

उदयपुर, विदिशा जिले का एक कस्बा। गंजबासौदा तहसील से कुछ ही किलोमीटर दूर है। यह मध्यप्रदेश में प्रसिद्ध है, वहां की पुरातात्विक धरोहर के लिए। भगवान शिव का नीलकंठेश्वर मंदिर, जो परमारकाल में बने मध्यप्रदेश के मंदिरों में से काफी संरक्षित है। यहां बावड़ी, कुएं, तालाब और कई मनमोहक प्रतिमाएं हैं। इन प्रतिमाओं में बराह, नटराज, शिव, गणेश, नंदी आदि प्रतिमाएं शामिल हैं।

रविवार को एक अखबार में विदिशा के फ्रंट पेज पर एक नटराज प्रतिमा के साथ फोटो छपी। इंटेक के साहब ने दावा किया कि वह दुनिया की सबसे बड़ी नटराज प्रतिमा हो सकती है। उनकी यह बात काफी हद तक सही हो सकती है लेकिन उसके साथ उन्होंने कहा कि इसे INTECH ने खोजा है, प्रतिमा खंडहर में पड़ी हुई थी।

उनके इस दावे को स्थानीय लोगों ने गलत बताया है। साथ ही कहा है कि इंटेक ने उदयपुर में सुधार के लिए काम किए हैं, वह भी संदिग्ध हैं। लोगों का कहना है कि वर्षाें से इस प्रतिमा को लोग रावणटोल, रावण बब्बा की मूति व अन्य-अन्य नामों से जानते हैं। ऐसे में इंटेक द्वारा प्रतिमा को खोजने का दावा करना पूर्णत: असत्य है। समाचार पत्रों में उनके लोगों की बात को स्थान दिया गया है। खुद जिस पेपर में साहब का दावा छपा था उसके बाद एक खबर लगी, जिसमें जनता की बात को बताया गया और दावे पर सवाल को स्थान मिला।

क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र दांगी जी ने प्रतिमा को लेकर लिखा कि वह स्वयं इस प्रतिमा को पिछले 50 सालों से देखते आ रहे हैं। उदयपुर से मुरादपुर गांव जाते हुए रास्ते में ही यह प्रतिमा मिल जाती है। ऐसे ही सामाजिक कार्यकर्ता और किसान प्रवीण शर्मा जी ने तो इंटेक के दावे को पूर्णत: झूठा बताया। साथ में इस बात पर भी जोर दिया, उदयपुर की दशा सुधारने में इंटेक की भूमिका ही संदिग्ध है।

मैं स्वयं इसे काफी समय से देखते आ रहा हूं। हमने अपनी उदयपुर हेरिटेज वॉक के दौरान प्रतिमा कितनी ही बार देखी है। वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलगुरू विजय मनोहर तिवारी जी ने उदयपुर को बचाने के लिए प्रदेश सरकार से अपील की है कि वह इंटेक के एकाधिकार को समाप्त करें। उदयपुर को बचाएं। उन्होंने लिखा है कि #INTACH का दावा हास्यास्पद और कार्यप्रणाली संदिग्ध है। नटराज की विशाल प्रतिमा वर्षों से है। किसी खंडहर की खुदाई से नहीं निकली। वह पहाड़ी ढलान पर है। खुद INTACH को 2021 के पहले उदयपुर का पता मालूम नहीं था। सरकार प्रदेश में इनका एकाधिकार खत्म करे। उदयपुर को बचाए।

इस पूरे मामले में अगर अभी लोग समझ न पाते। 50-100 साल बाद पेपर की देश के प्रतिष्ठित अखबार की कटिंग साहब के कार्यालय में बची रहती। इसके बाद लोग ये ही समझते कि नटराज प्रतिमा इंटेक की टीम ने खोजी। जबकि इसकी सच्चाई यह है कि कई सालों से लोगों को उसके बारे में पता है। वे वहां पर जाते हैं। उसे संरक्षित बनाए रखने के लिए आसपास दीवार भी बनी हैं।

सौरभ तामेश्वरी
पत्रकार और स्तंभकार हैं।

राजस्थानी भाषा पुरस्कार से सम्मानित हुए साहित्यकार

कोटा।  नेम प्रकाशन, डेह की ओर से रविवार 20 अप्रैल 2025 को प्रसिद्द कुंजल माता मंदिर परिसर में आयोजित राजस्थानी भाषा पुरस्कार समारोह में साहित्यकारों को राजस्थानी लेखन में विशिष्ट अवदान के लिए पुरस्कार स्वरूप ग्यारह हजार रुपए नकद, शाल, श्रीफल और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया।
समारोह में वरिष्ठ लेखिका डॉ. कृष्णा कुमारी को अस्यौ छै म्हारौ गांव’ कृति के लिए गोपीलाल चैनसुख सेठी राजस्थानी साहित्य पुरस्कार, कथाकार एवं समीक्षक विजय जोशी को ‘भावाँ की रमझोळ’ कृति हेतु वैद्य बंशीधर पारीक वानिकी एवं पर्यावरण पुरस्कार तथा कमला देवी भंवर पृथ्वीराज साहित्य पुरस्कार ‘था सूं मिलता ई’ कृति के लिए मंजू किशोर ‘रश्मि’ को, अमराव देवी पहाड़िया गद्य पुरस्कार ’पाछी बावड़जे मिजाजण’ कृति के लिए जगदीश भारती को, सोहनीं देवी सुरजमल पांड्या व्यंग्य पुरस्कार ‘कड़कोल्या’ कृति के लिए गोरस प्रचंड को,  बलदेवराम छीलरा राजस्थानी साहित्य पुरस्कार ‘हाडी राणी री रणभेरी’ कृति हेतु कवि रूपजी रूप को, रतन कंवर ऊमरदान खिड़िया गद्य पुरस्कार ‘सत रौ बळ’ कृति के लिए चौथमल प्रजापति को, हरिदेवी शेराराम दंतुसलिया गद्य पुरस्कार ‘प्रीत रा परिंदा’ कृति के लिए एवं  बद्रीलाल दिव्य को प्रदान किया गया।
माननीय श्री जागेश्वर गर्ग मुख्य सचेतक राजस्थान सरकार एवं विधायक जालौर, डॉ. मंजू बाघमार राज्य मंत्री सार्वजनिक निर्माण विभाग, महिला एवं बाल विकास, बाल अधिकता विभाग राजस्थान सरकार तथा  औंकार सिंह लखावत राज्य मंत्री एवं अध्यक्ष राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के गरिमामय आतिथ्य में सम्पन्न कार्यक्रम का संचालन गजदान चरण ने किया।

ओड़िशा के राज्यपाल डॉ.हरिबाबू कंभमपति ने ओडिशा होम एंड डेकोर एक्सपो 2025 का दौरा किया

भुवनेश्वर। क्रेडाई ओडिशा का वार्षिक होम एंड डेकोर एक्सपो 2025 स्थानीय जनता मैदान में 20 अप्रैल से चल रहा है जो 29 अप्रैल तक चलेगा।गत मंगलवार को ओडिशा के माननीय राज्यपाल डॉ हरिबाबू कंभमपति ने क्रेडाई के निमंत्रण पर एक्सपो के विभिन्न स्टॉलों का दौरा किया और आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। इसमें अग्रणी बिल्डर्स, बैंक, निर्माण सामग्री निर्माता, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म, इंटीरियर डिजाइनर, टाइल निर्माता और अन्य उद्योग के नेताओं सहित विविध प्रकार के प्रतिभागी एक साथ संलग्न हैं।क्रेडाई ओडिशा के चेयरमैन देवाशंकर  त्रिपाठी ने विकसित ओडिशा के विजन को साकार करने के लिए 2036 तक बेघरवालों के लिए घर दिलाने आदि के विषय में बताया।उन्होंने बताया कि सभी हितधारकों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम

एक्सपो में नामी बिल्डर, वित्तीय संस्थान, निर्माण सामग्री निर्माता, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल फर्म, इंटीरियर डिजाइनर, टाइल और सैनिटरी वेयर ब्रांड आदि। एक्सपो के आयोजन का उद्देश्य महत्वाकांक्षी गृहस्वामियों, रियल एस्टेट निवेशकों, आर्किटेक्ट्स और इंटीरियर डिजाइन पेशेवरों को समान रूप से आकर्षित करना है।प्रत्यक्षदर्शियों का यह मानना है कि उन्हें इस एक्सपो में स्मार्ट होम तकनीक, टिकाऊ निर्माण समाधान और भविष्य के लिए तैयार जीवनशैली उत्पादों में नवीनतम आदि की जानकारी मिली। एक्सपो में आवास, आंतरिक सज्जा और शहरी जीवन में वर्तमान और उभरते रुझानों पर इंटरैक्टिव सत्र, विशेषज्ञ पैनल और उद्योग चर्चाएँ भी चल रही हैं। कटक की विधायक सोफिया फिरदौस ने भी एक्सपो का दौरा किया और आयोजन को ओड़िशा की आमजनता के लिए आवश्यक बताया।

…लेकिन पाकिस्तान अभी भी भारत के लिए मित्र देश है

पाकिस्तान भारत पर चाहे जितने आतंकी हमले करे , लेकिन भारत सरकार ने इसे अभी तक दुश्मन देश नहीं घोषित किया है।
भारत ने आधिकारिक रूप से पाकिस्तान को “दुश्मन देश” (enemy state) घोषित नहीं किया है। हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं, विशेष रूप से 1947, 1965, 1971 और 1999 के युद्धों और आतंकवाद से संबंधित मुद्दों के कारण। लेकिन भारत सरकार ने पाकिस्तान को दुश्मन देश घोषित करने जैसा कोई औपचारिक कदम नहीं उठाया है।

भारत में एक कानूनी शब्द “दुश्मन संपत्ति (Enemy Property)” है, जो भारत सरकार द्वारा 1968 में बनाया गया था। यह उस संपत्ति से संबंधित है जो उन लोगों की थी जो 1962 (चीन युद्ध), 1965 और 1971 (पाकिस्तान युद्ध) के दौरान भारत छोड़कर दुश्मन देश (चीन या पाकिस्तान) चले गए थे। इस कानून के तहत पाकिस्तान को एक “दुश्मन राष्ट्र” की तरह परिभाषित किया गया, परंतु यह सिर्फ संपत्ति के संदर्भ में है, न कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति या युद्ध की दृष्टि से।

संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में “enemy state” शब्द केवल द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में उपयोग हुआ है। ये देश वे थे जो उस समय Axis Powers (जैसे जर्मनी, जापान, इटली) का हिस्सा थे।

भारत ने पाकिस्तान को औपचारिक रूप से “दुश्मन देश” (Enemy State) घोषित नहीं किया है। हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच कई बार तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं—खासकर 1947, 1965, 1971 और 1999 की लड़ाइयों और आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं के कारण—लेकिन भारत ने अब तक पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर दुश्मन देश घोषित नहीं किया है।

“दुश्मन देश” की परिभाषा अंतरराष्ट्रीय कानून में क्या है?

यह केवल उन देशों के लिए है जो WWII के समय Axis Powers (जैसे जर्मनी, जापान, इटली) थे।

भारत में: “एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट” (Enemy Property Act) जो पाकिस्तान या चीन के नागरिकों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों से जुड़ा है।

इजराइल और कुछ अरब देश: कुछ देशों ने इजराइल को दुश्मन देश घोषित किया था (हालांकि अब कई देशों ने रिश्ते सामान्य कर लिए हैं)।

दुश्मन संपत्ति कानून जैसी नीतियों में पाकिस्तान को दुश्मन के रूप में माना गया है, पर यह एक सीमित कानूनी परिप्रेक्ष्य में है।

भारत-पाकिस्तान और “Most Favoured Nation (MFN)” क्या है?

MFN (Most Favoured Nation) का मतलब:

यह एक विश्व व्यापार संगठन (WTO) की संधि के तहत दिया गया दर्जा है।

जब कोई देश किसी को MFN दर्जा देता है, तो वह यह वादा करता है कि वह उस देश को व्यापार में कोई भेदभाव नहीं करेगा।

यानी, जो छूट, टैक्स रियायतें, या आसान व्यापारिक शर्तें एक देश को दी जाती हैं, वही MFN देश को भी दी जाएंगी।

भारत ने 1996 में ही पाकिस्तान को MFN का दर्जा दे दिया था, जब WTO बना था।

नहीं। पाकिस्तान ने भारत को कभी MFN का दर्जा नहीं दिया।

फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान से MFN दर्जा वापस ले लिया।

इसके बाद भारत ने पाकिस्तान से आयात पर 200% तक का कस्टम ड्यूटी भी लगा दी थी।

औपचारिक रूप से “दुश्मन देश” की घोषणा कम ही होती है, लेकिन इतिहास और वर्तमान में कुछ उदाहरण हैं जहाँ देशों ने एक-दूसरे को शत्रुतापूर्ण माना या इस तरह की भाषा का उपयोग किया:

  1. उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया:
    • कोरियाई युद्ध (1950-1953) के बाद से दोनों देश तकनीकी रूप से युद्ध में हैं, क्योंकि केवल युद्धविराम हुआ था, न कि शांति संधि। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया एक-दूसरे को शत्रु मानते हैं, और उनकी सरकारी नीतियाँ और प्रचार में यह स्पष्ट होता है। उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया को “कठपुतली शासन” और अमेरिका के सहयोगी के रूप में शत्रुतापूर्ण माना है।
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका और क्यूबा:
    • शीत युद्ध के दौरान, विशेष रूप से 1960 के दशक में, अमेरिका ने क्यूबा को शत्रुतापूर्ण देश माना, खासकर क्यूबा मिसाइल संकट के बाद। अमेरिका ने क्यूबा पर दशकों तक आर्थिक प्रतिबंध लगाए, और क्यूबा ने अमेरिका को “साम्राज्यवादी दुश्मन” करार दिया। हालाँकि हाल के वर्षों में संबंधों में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन तनाव बना हुआ है।
  3. इजरायल और कुछ अरब देश:
    • इजरायल और कई अरब देशों (जैसे सीरिया, लेबनान) ने ऐतिहासिक रूप से एक-दूसरे को शत्रु माना है, खासकर अरब-इजरायल युद्धों (1948, 1967, 1973) के बाद। सीरिया और इजरायल के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं, और दोनों एक-दूसरे को शत्रुतापूर्ण मानते हैं। हालांकि, हाल के अब्राहम समझौतों के बाद कुछ अरब देशों (जैसे UAE, बहरीन) ने इजरायल के साथ संबंध सामान्य किए हैं।
  4. ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • 1979 की ईरानी क्रांति के बाद, ईरान और अमेरिका के बीच संबंध शत्रुतापूर्ण हो गए। ईरान अमेरिका को “महान शैतान” कहता है, और अमेरिका ने ईरान को “आतंकवाद का प्रायोजक” करार दिया है। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर प्रतिबंध लगाए हैं, और उनकी नीतियाँ शत्रुतापूर्ण हैं।
  5. भारत और पाकिस्तान:
    • हालाँकि भारत ने पाकिस्तान को औपचारिक रूप से “दुश्मन देश” घोषित नहीं किया है, दोनों देशों के बीच 1947 के विभाजन, कश्मीर विवाद और कई युद्धों (1947, 1965, 1971, 1999) के कारण तनाव रहा है। पाकिस्तान ने कई बार भारत को शत्रुतापूर्ण भाषा में संबोधित किया है, और भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया है। दोनों देशों की सैन्य और खुफिया नीतियाँ एक-दूसरे को खतरे के रूप में देखती हैं।
  6. रूस और यूक्रेन:
    • 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे और 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, यूक्रेन ने रूस को स्पष्ट रूप से शत्रु देश माना। रूस भी यूक्रेन को “नाजी शासन” जैसे शब्दों से संबोधित करता है। दोनों देशों के बीच युद्ध चल रहा है, जो शत्रुता का स्पष्ट उदाहरण है।
  7. जापान और उत्तर कोरिया:
    • उत्तर कोरिया ने जापान को ऐतिहासिक और सामरिक कारणों से शत्रुतापूर्ण माना है, विशेष रूप से जापान के कोरियाई प्रायद्वीप पर औपनिवेशिक शासन (1910-1945) के कारण। जापान भी उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों और परमाणु कार्यक्रम को खतरे के रूप में देखता है।

ऐतिहासिक उदाहरण

  • द्वितीय विश्व युद्ध: इस दौरान मित्र राष्ट्रों (Allied Powers) ने जर्मनी, इटली और जापान को “दुश्मन देश” माना। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी “दुश्मन देश” का उल्लेख है, जो WWII के संदर्भ में उन देशों को संदर्भित करता है जो मित्र राष्ट्रों के खिलाफ थे।
  • शीत युद्ध: अमेरिका और सोवियत संघ ने एक-दूसरे को वैचारिक और सैन्य रूप से शत्रु माना, हालांकि औपचारिक “दुश्मन देश” घोषणा नहीं हुई।

मुंबई की इस चौपाल में बह निकलती है साहित्य, संगीत गीत और संस्कृति की धाराएँ

गीत ग़ज़ल साहित्य संगीत चौपाल के केंद्र में सदा रहे हैं।  कोशिश हमेशा यह रहती है कि सभी प्रस्तुत कर्ता अपनी रचनाओं के साथ-साथ ऊंचे दर्जे के साहित्यकारों गीतकारों संगीतकारों को भी याद करते रहें ।वरिष्ठों को निरंतर स्मरण करने की रवायत चौपाल का मूल स्वभाव  है।  दरअसल,  रचनाकार तो अपने काम को करके कालजयी हो जाते हैं  उनकी  रचनाएँ कालजयी  होती है आवृत्तियों से प्रस्तुतियों से। उस दिन भी गीत ग़ज़ल संगीत कविता के बहाने वरिष्ठ रचनाकारों की रचनाओं को पेश किया गया।
  अप्रैल की चौपाल कविता गुप्ता के आंगन में सजी। आगुंतकों की अगवानी करने हमेशा की तरह वे दरवाजे पर उपस्थित थी। ठीक समय पर सुभाष काबरा जी ने संचालन की बागडोर संभाली और नियमित चौपाली मनजीत सिंह कोहली को बुलाने से पहले बताया कि- कोहली साहब  चार सौ गीत लिख चुकें हैं और उनके गीतों को कई बड़े-बड़े गायक आवाज दे चुके हैं। कोहली साहब ने वही गीत सुनाया जो उन्होंने अमिताभ बच्चन साहब की बेटी के विवाह पर लिखा था और जिसे शेखर सेन  ने गाया था ।कई बार सुनने के बाद भी ये मार्मिक गीत आंखें नम कर देता है जो बेटी  अपने ब्याह के पहले  दिन  पिता के सामने गाती है–
कल से यह घर ना रहेगा मेरा घर

युवा कवि प्रशांत बेबार एक दो बार पहले भी अपनी कविताओं का जादू चौपाल में जगा चुके हैं। उस दिन बड़ी खूबसूरत नज़्म पढ़ी –सौ वीं काली रात का जज़्बा
परींदे लौट आएंगे सज़र मजबूत होते ही
अंधेरा भाग जाएगा शहर महफूज़ होते ही
प्रशांत बाल रचनाएं भी लिखते हैं उनकी मीठी सी लोरी को श्रोताओं ने खूब सराहा –
निन्दिश निन्दिश पलकों में

लोकप्रिय कवयित्री शायरा और मंजी हुई मंच संचालिका प्रज्ञा शर्मा ने बहुत ठीक कहा कि— चौपाल की यु एस पी (USP) है यहाँ लोग कानों से नहीं दिल से सुनते हैं।
मैं खुद को बेसब़ब  उलझा रही हूँ
तेरे बारे में सोचे जा रही हूँ
मेरे अंदर कोई सुनता नहीं है
कितनी देर से चिल्ला रही हूँ
राकेश शर्मा मुंबई के जाने-माने कवि व शायर है जितना बढ़िया वे लिखते हैं उससे भी बढ़िया कहने का अंदाज  है–
मैं अक्सर सोचता हूं जिंदगी का क्या किया जाए
गमों को सह भी लूँ हँस कर खुशी का क्या किया जाए
वो मेरा दोस्त होकर भी मेरे दुःख से है बेगाना
उसी से पूछिए उस आदमी का क्या किया जाए

सुभाष काबरा ने छोटी सी व्यंग्य रचना पढ़ी। उनके हर वाक्य पर ठहाके लगने ही थे। रचना का शीर्षक था-
बातें हैं बातों का क्या
कोई बोर न हो सबको बात करने का मौका मिलता रहे
इसलिए पति-पत्नी का रिश्ता बनाया
दोनों की शिकायतें एक जन्म में पूरी ही नहीं होती
इसलिए ही सात जन्म का रिश्ता बनाया

अर्चना जौहरी वर्षों से मंच से कविताएं सुनाती रहीं हैं तथा दूरदर्शन से भी जुड़ीं है।
मैं लिखती हूँ
तो कभी कुछ गुनगुनाती हूँ
अभी मैं जिंदा हूँ  यह बताती हूँ
जो मिला कद्र उसकी है नहीं
ना मिलने का रोना है
अगर रहना है खुद में  तो
खुद की यह आदत छुड़ानी है
जब कोई और चोट खाएंगे
फिर कोई नई ग़ज़ल गुनगुनाएँगे

वरिष्ठ कवि नरोत्तम शर्मा बहुत दिनों के बाद चौपाल में दिखे और उनकी सभी रचनाएँ बड़ी कमाल की रही जिन्हें श्रोताओं ने खूब सराहा–
मैं कभी इसलिए बाजार में नहीं आया
सोचा खरीददार खुद ही ढूँढ लेंगे

महलों के इस नगर में अपना भी बसेरा है
दो ईंट  का चूल्हा है दो बाँस का घर है
बड़े शहरों में जहाँ लोग बड़े रहते हैं
सीढ़ियाँ चलती है लोग खड़े रहते हैं
ठोकर को भूल जाओ कि तुम्हें गिरा दिया
पत्थर को दुआ दो कि तुमको चलना सिखा दिया

विष्णु शर्मा नियमित चौपाली है और हर बार अपनी आवाज के जादू से चौपालियों को रिझाते हैं। उस दिन उन्होंने आदरणीय नीरज जी के लहज़े में एक रचना सुनाई–
बहका मत कर चहका मत कर
बूँद- बूँद सागर से भरा कर
कौन तेरी बात मानेगा
शराबी चुप रहा कर

सुभाष काबरा ने नीरज़, काका हथरसी, तथा बाल कवि बैरागी के लहजे में  एक पैरोडी सुना कर  मनोरंजन ही नहीं किया बल्कि अग्रज   रचना कारों  को याद भी किया। इसी कड़ी में अशोक बिंदल ने  शिवमंगल सिंह सुमन की रचना बड़ी खूबसूरती से पढ़ी–
जिस राही से स्नेह मिला
उस राही को धन्यवाद

दीप्ति मिश्रा ने देश- विदेश के अनेक हिंदी व उर्दू मुशायरों  में अपनी प्रस्तुतियां दी हैं और वे अभिनेत्री भी बहुत अच्छी हैं ।उन्होंने मुनीर नियाज़ी की नज़्म से प्रेरित अपनी एक  नज़्म पढ़ी –
किसी से दूर जाने को
किसी को मनाने को
किसी के पास आने को
किसी को भूल जाने को
मेरा अब मन नहीं करता
पुरानी सेल्फ में रखे हैं जो
बेजान से एल्बम जिनमें
अभी सांस लेते हैं कुछ इश्क के लम्हे
उन्हें देखने को अब मन नहीं करता

अब तक कविताएं गज़लें शेर मुक्तक सुने जा रहे थे। फिर आईं शर्मिष्ठा बासु और राजा सेवक, जिनके सुरीले कंठ से चौपालियों का अनेक बार परिचय हो चुका है। दोनों ने कई गीत पेश किये और समूचा चौपाल का आंगन संगीत सरिता में ऊब- डुब  होने लगा। गौरतलब बात यह भी थी कि गीतों का चुनाव बड़ी ही खूबी से ऐसा किया गया था जिन में उँचे दर्जे का साहित्य हो, काव्य हो, रस हो। आम फिल्मी गाने गायक स्वयं ही चौपाल में नहीं चुनते, यह बात शर्मिष्ठा ने कही भी कि –चौपाल में गाने के लिए उन्हें कुछ विशेष गीतों को चुनना पड़ता है जो सरस तो ही, साथ ही उम्दा लफ्जों का जादू भी जगाते हो। राजा सेवक बिना तैयारी के ही आए थे लेकिन उन्होंने अपनी दमदार गायकी से श्रोताओं को मन जीत लिया। इस तरह चौपाल की वो शाम संगीत के नाम रही।

 
(लेखिका गृहिणी हैं और स्वांतः सुखाय लिखती हैं)

‘मिस राजस्थान’ रही पूनम ऑस्ट्रेलिया में बहुत मिस करती हैं राजस्थान का सौंदर्य

एडिलेड (ऑस्ट्रेलिया)। सौंदर्य को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता, वह तो सीमाओं के पार जाकर भी अपनी रंगत बिखेरता है। सौंदर्य के समाजशास्त्र की इसी सच्चाई को पूनम कुमावत ने बचपन में ही समझ लिया था। इसलिए पूनम जयपुर की गुलाबियत और राजस्थान की रंगीनियों से दूर हमारे हिंदुस्तान से हजारों किलोमीटर दूर अनजान देश ऑस्ट्रेलिया में राजस्थान के सौंदर्य की चमक बिखेर रही हैं। ‘मिस राजस्थान’ रही पूनम कुमावत लगभग दो दशक से ऑस्ट्रेलिया में हैं, मगर राजस्थान को हमेशा दिल में बसाए रखती है और राजस्थान और खासकर जयपुर को बहुत मिस करती हैं।

पूनम खूबसूरत हैं, खूबसूरत रही हैं और खूबसूरत बने रहना चाहती हैं। इसलिए खुश रहती हैं। वह कहती हैं कि खूबसूरती से खुशी का सीधा रिश्ता है। अगर आप खुश नहीं है तो खूबसूरत कभी नहीं हो सकते। एडिलेड शहर में राजनीतिक विशेषज्ञ निरंजन परिहार से जब पूनम मिली, तो राजस्थान को याद करते हुए उनके चेहरे पर जयपुर की गुलाबी चमक जबरदस्त खिल रही थी। उनका कहना है कि राजस्थान मेरे दिल में बसा है और जयपुर जहां जन्मी, पली, बड़ी और पढ़ी, उस गुलाबी शहर की गुलाबी खूबसूरती उनकी आंखों में तैरती रहती है। जयपुर में रविन्द्र मंच पर पूनम ने जब ‘मिस राजस्थान’ का खिताब जीता था, तब उस आयोजन में कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं, और पूनम कुमावत को खुद ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड शहर के जाने माने भारतीयों  में गिनी जाती हैं।

‘मिस राजस्थान’ का खिताब पूनम को 1995 में मिला था, लेकिन 30 साल बाद भी सौंदर्य ने उनका और उन्होंने सौंदर्य का साथ नहीं छोड़ा है। उल्टे उम्र बढ़ने के साथ सौंदर्य और निखर रहा है।  राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार से बात करते हुए पूनम ने कहा कि राजस्थान का सौंदर्य भी अपने आप में बहुत अनोखा है। पूनम कहती हैं कि राजस्थान के रेगिस्तान, पहाड़, और झीलें एक अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य को रचते हैं और यहां की संस्कृति, रीति-रिवाज, और त्यौहार एक सामूहिक रंगीन और जीवंत वातावरण प्रस्तुत करते हैं। सौंदर्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए ‘मिस राजस्थान – 1995’  पूनम कुमावत कहती हैं कि सौंदर्य सिर्फ शरीर का ही नहीं, बल्कि मन का, भावनाओं का, कृतत्व का तथा चरित्र का सौंदर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को गढ़ता है।

जयपुर की पूनम कुमावत ऑस्ट्रेलिया में सौंदर्य सलाहकार के रूप में विख्यात है। वह पहले ऑस्ट्रेलिया में सौंदर्य संवारने का काम करती थी। लेकिन अब वह सामाजिक जीवन संवारने की जुगत में जुटी है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ऑस्ट्रेलिया में रहने के बावजूद पूनम राजस्थान के सौंदर्य को बहुत याद करती है। उनका कहना है कि राजस्थान के प्राकृतिक सौंदर्य की आभा और वहां के लोगों की सादगी एवं सरलता की खूबसूरती की दुनिया में कोई तुलना नहीं है। पूनम कहती हैं कि जयपुर और राजस्थान का सौंदर्य हर किसी को प्रेरित करता है। विदेश में रहने के बावजूद जयपुर की गुलाबी इमारतों, हवेलियों, और किलों की यादों को अपने भीतर  समेटे हुए पूनम वहां की चौड़ी सड़कें, व्यस्त बाजारों और छोटी – बड़ी चौपड़ के रंगीन और जीवंत वातावरण को हर पल याद करती हैं।

 
(चित्र में लेखक  सुश्री पूनम कुमावत के साथ में )

कर्नाटक में 30 साल में 94% बढ़े मुस्लिम, आबादी 39 लाख से 77 लाख पहुँची

कर्नाटक में मुस्लिम आबादी तीन दशक में लगभग दोगुनी हो गई। जबकि इस दौरान कर्नाटक के लिंगायत हिन्दुओं की जनसंख्या में लगभग 10% ही बढ़ोतरी हुई। यह सारे आँकड़े कर्नाटक में करवाए गए जातिगत जनगणना के सर्वे से सामने आए हैं। मुस्लिम कर्नाटक में दलितों के बाद सबसे बड़ा समूह हैं।

डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1984 में कर्नाटक के भीतर जातियों की संख्या पता लगाने के लिए किए गए वेंकटस्वामी कमीशन के सर्वे ने मुस्लिमों की आबादी 39.63 लाख थी और यह प्रदेश की जनसंख्या में 10.97% का हिस्सा रखते थे। इसी सर्वे में सामने आया था कि कर्नाटक में वीराशैव-लिंगायत 61.14 लाख हैं और उनका राज्य की आबादी में 16.92% है।

इसके अलावा वोक्कालिगा समुदाय की आबादी 42.19 लाख बताई गई थी और उनका राज्य की जनसंख्या में हिस्सा तब 11.68% था। 1984 के सर्वे में राज्य की दलित आबादी 57.31 लाख बताई गई थी। दलितों का राज्य की आबादी में हिस्सा लगभग 16% था।

2015 के सर्वे में यह स्थितियाँ पूरी तरह से बदल चुकी हैं। इस सर्वे से सामने आया है कि 1984 से 2015 के बीच कर्नाटक में मुस्लिम आबादी लगभग दोगुनी हो चुकी है। इस सर्वे के अनुसार, 2015 में मुस्लिम आबादी 76.9 लाख थी। यानी इन 30 वर्षों में राज्य में मुस्लिम आबादी 94% बढ़ी है।

इसी बीच लिंगायतों की आबादी मात्र 8.50% बढ़ी जबकि वोक्कालिगा इस दौरान 46% बढ़ पाए। मुस्लिमों की आबादी दोगुनी होने के चलते वह अब OBC के भीतर सबसे बड़ा समूह हैं। उनका आरक्षण भी इस सर्वे में 4% से बढ़ा कर 8% करने की सिफारिश की गई है।

इसी सर्वे के अनुसार, राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 18.08% है, जो 2011 की जनगणना में 12.92% बताई गई थी। सर्वे का यह आँकड़ा 2015 का है। ऐसे में 4 साल में मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी कर्नाटक में 5.16% बढ़ गई।

रिपोर्ट में उनका आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश के पीछे राज्य में OBC की हिस्सेदारी सबसे अधिक होना कारण बताया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 69.60% है, ऐसे में उन्हें जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए।

इस सर्वे OBC आरक्षण 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की गई है। यह सिफारिश अगर मानी जाती हैं, तो राज्य में कुल आरक्षण 85% हो जाएगा। इस 85% में 51% OBC आरक्षण होगा जबकि 24% आरक्षण अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए रहेगा।

पोप जिसके राष्ट्राध्यक्ष थेः 800 लोगों की आबादी वाला देश है वेटिकन सिटी

पोप फ्रांसिस का 21 अप्रैल 2025 को वेटिकन सिटी में 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी मृत्यु का कारण स्ट्रोक और हृदय गति रुकना बताया गया है । उनका पूरा नाम: जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। उनका जन्म 17 दिसंबर 1936, ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में हुआ था। 13 मार्च 2013 को पोप निर्वाचित हुए थे। वे पहले लैटिन अमेरिकी और पहले जेसुइट पोप थे और पहले पोप जिन्होंने “फ्रांसिस” नाम अपनाया।उनका अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि कार्यक्रम शनिवार, 26 अप्रैल 2025 को सेंट पीटर्स स्क्वायर में आयोजित होगा । उन्हें संत मैरी मेजर बेसिलिका, वेटिकन में दफनाया जाएगा।

 

पोप की परंपरा कैसे शुरू हुई?

पोप की परंपरा रोमन कैथोलिक चर्च की स्थापना से जुड़ी है, जो ईसाई धर्म के प्रारंभिक काल में शुरू हुई। कैथोलिक मान्यता के अनुसार, यीशु मसीह ने अपने शिष्य संत पीटर (Saint Peter) को अपनी कलीसिया (चर्च) का आधार बनाया और उन्हें “स्वर्ग के राज्यों की कुंजी” सौंपी (मत्ती 16:18-19)। इससे संत पीटर को रोम का पहला बिशप और प्रथम पोप माना जाता है। समय के साथ, रोम के बिशप का पद सर्वोच्च धार्मिक नेता के रूप में स्थापित हुआ, जिसे “पोप” (लैटिन: papa, अर्थ: पिता) कहा गया। यह परंपरा पहली शताब्दी से शुरू होकर मध्ययुग में और शक्तिशाली हुई, जब पोप ने धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव प्राप्त किया।

  1. पहला पोप कौन था?

कैथोलिक परंपरा के अनुसार, संत पीटर (Saint Peter) पहले पोप थे। वे यीशु मसीह के बारह शिष्यों में से एक थे और रोम के पहले बिशप बने। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, संत पीटर की मृत्यु 64-68 ईस्वी के बीच रोम में सम्राट नीरो के शासनकाल में हुई, और उनकी समाधि पर बाद में सेंट पीटर्स बेसिलिका बनी। हालांकि, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि “पोप” शब्द का प्रयोग बाद की शताब्दियों में शुरू हुआ, लेकिन संत पीटर को परंपरागत रूप से पहला पोप माना जाता है।

पोप का चुनाव कैसे होता है?

पोप का चुनाव एक गुप्त और परंपरागत प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जिसे कॉन्क्लेव (Conclave) कहते हैं। यह प्रक्रिया निम्नलिखित है:

  • योग्य मतदाता: 80 वर्ष से कम उम्र के कार्डिनल्स (वरिष्ठ पादरी) वोट डाल सकते हैं। इनकी संख्या आमतौर पर 120 तक होती है।
  • स्थान: वोटिंग वेटिकन सिटी के सिस्टीन चैपल में होती है, जहाँ कार्डिनल्स बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे रहते हैं।
  • प्रक्रिया:   – कार्डिनल्स गुप्त मतदान करते हैं, जिसमें कागज़ के मत-पत्रों का उपयोग होता है।   – प्रत्येक दिन चार राउंड में वोटिंग होती है।   – किसी उम्मीदवार को पोप बनने के लिए दो-तिहाई बहुमत (लगभग 77 वोट) चाहिए।   – मतदान के बाद, मत-पत्रों को जलाया जाता है। यदि कोई पोप नहीं चुना गया, तो काला धुआँ निकलता है; यदि चुना गया, तो सफेद धुआँ।
  • योग्यता: सैद्धांतिक रूप से, कोई भी पुरुष कैथोलिक पोप बन सकता है, लेकिन व्यवहार में, चुना गया व्यक्ति हमेशा कार्डिनल रहा है।
  • नाम परिवर्तन: नया पोप चुने जाने के बाद एक नया नाम चुनता है, और उसकी घोषणा सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी से की जाती है।

भारत से वर्तमान में चार कार्डिनल्स हैं, जो चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं।

भारत के 4 कार्डिनल्स जो पोप के चुनाव में भाग लेंगे

  1. कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ (Cardinal Filipe Neri Ferrao)
    • पद: गोवा और दमन के आर्चबिशप
    • भूमिका: कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CCBI) और एशियाई बिशप्स सम्मेलन (FABC) के अध्यक्ष
  2. कार्डिनल बेसिलियोस क्लेमिस (Cardinal Baselios Cleemis)
    • पद: सायरो-मलांकरा कैथोलिक चर्च के मेजर आर्चबिशप, तिरुवनंतपुरम
  3. कार्डिनल एंथनी पूला (Cardinal Anthony Poola)
    • पद: हैदराबाद के मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशप
  4. कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवाकड (Cardinal George Jacob Koovakad)
    • पद: वेटिकन के अंतरधार्मिक संवाद कार्यालय के प्रमुख
    • विशेषता: सायरो-मलाबार समुदाय के आर्चबिशप, केरल से

इन चारों कार्डिनल्स की भूमिका अगला पोप चुनने में महत्वपूर्ण होगी, जो वैश्विक कैथोलिक समुदाय के लिए एक नया अध्याय शुरू करेगा।

  • वेटिकन सिटी को आधिकारिक रूप से 11 फरवरी, 1929 में लेटरन संधि (Lateran Treaty) के तहत एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित किया गया। इस संधि के द्वारा इटली ने वेटिकन को एक स्वायत्त राज्य के रूप में मान्यता दी। हालांकि, वेटिकन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व पहली शताब्दी से है, जब संत पीटर की समाधि पर चर्च बनाए गए। वेटिकन रोम के भीतर स्थित है और मध्ययुग में पापल स्टेट्स का हिस्सा था। 19वीं सदी में इटली के एकीकरण के दौरान पापल स्टेट्स का अधिकांश हिस्सा खो गया, और 1929 में वेटिकन को छोटा लेकिन स्वतंत्र राज्य बनाया गया। इसका क्षेत्रफल केवल 44 हेक्टेयर है, और जनसंख्या लगभग 800 है।
  • वेटिकन रोमन कैथोलिक चर्च का केंद्र है और दुनिया के 1.3 अरब कैथोलिकों का आध्यात्मिक मुख्यालय। सेंट पीटर्स बेसिलिका और सिस्टीन चैपल जैसे स्थल तीर्थस्थल हैं।    पोप वेटिकन सिटी के राष्ट्राध्यक्ष हैं, और वेटिकन एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में राजनयिक संबंध रखता है। यह वैश्विक शांति, सामाजिक न्याय, और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर प्रभाव डालता है।   – सांस्कृतिक: वेटिकन में माइकलएंजेलो की कृतियाँ, वेटिकन संग्रहालय, और ऐतिहासिक दस्तावेज़ सांस्कृतिक धरोहर हैं।

 

पोप के निधन या इस्तीफे के बाद, वेटिकन में एक विशेष प्रक्रिया होती है जिसे “कॉन्क्लेव” कहा जाता है। इसमें 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल्स भाग लेते हैं। वे सिस्टिन चैपल में एकत्र होकर गुप्त मतदान करते हैं। जब किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त होता है, तो उसे नया पोप घोषित किया जाता है। इसकी घोषणा “Habemus Papam” (हमें पोप मिला) शब्दों से की जाती है, और सिस्टिन चैपल की चिमनी से सफेद धुआं निकलता है, जो संकेत देता है कि नया पोप चुन लिया गया है।

अब तक लगभग 266 पोप हो चुके हैं। हाल ही में, पोप फ्रांसिस का निधन 21 अप्रैल 2025 को हुआ। वे 2013 से 2025 तक पोप रहे और पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उन्हें सेंट पीटर बेसिलिका के बजाय रोम के सांता मारिया माजोरे में दफनाया जाएगा।

वेटिकन सिटी दुनिया का सबसे छोटा स्वतंत्र राष्ट्र है, जिसकी स्थापना 1929 में लेटरन संधि के तहत हुई थी। यह कैथोलिक चर्च का आध्यात्मिक और प्रशासनिक केंद्र है। यहां सेंट पीटर बेसिलिका, सिस्टिन चैपल और वेटिकन म्यूज़ियम जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल स्थित हैं। वेटिकन सिटी को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

सांस्कृतिक धरोहर: यहाँ सेंट पीटर बेसिलिका, सिस्टीन चैपल और वेटिकन म्यूज़ियम जैसी विश्व प्रसिद्ध कलाकृतियाँ हैं।

राजनीतिक स्वतंत्रता: यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जिसका अपना शासन और प्रशासन है

 

पोप की परंपरा कैसे शुरू हुई?

पोप की परंपरा रोमन कैथोलिक चर्च की स्थापना से जुड़ी है, जो ईसाई धर्म के प्रारंभिक काल में शुरू हुई। कैथोलिक मान्यता के अनुसार, यीशु मसीह ने अपने शिष्य संत पीटर (Saint Peter) को अपनी कलीसिया (चर्च) का आधार बनाया और उन्हें “स्वर्ग के राज्यों की कुंजी” सौंपी (मत्ती 16:18-19)। इससे संत पीटर को रोम का पहला बिशप और प्रथम पोप माना जाता है। समय के साथ, रोम के बिशप का पद सर्वोच्च धार्मिक नेता के रूप में स्थापित हुआ, जिसे “पोप” (लैटिन: papa, अर्थ: पिता) कहा गया। यह परंपरा पहली शताब्दी से शुरू होकर मध्ययुग में और शक्तिशाली हुई, जब पोप ने धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव प्राप्त किया।

  1. पहला पोप कौन था?

कैथोलिक परंपरा के अनुसार, संत पीटर (Saint Peter) पहले पोप थे। वे यीशु मसीह के बारह शिष्यों में से एक थे और रोम के पहले बिशप बने। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, संत पीटर की मृत्यु 64-68 ईस्वी के बीच रोम में सम्राट नीरो के शासनकाल में हुई, और उनकी समाधि पर बाद में सेंट पीटर्स बेसिलिका बनी। हालांकि, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि “पोप” शब्द का प्रयोग बाद की शताब्दियों में शुरू हुआ, लेकिन संत पीटर को परंपरागत रूप से पहला पोप माना जाता है।

  • स्थापना: वेटिकन सिटी को आधिकारिक रूप से 11 फरवरी, 1929 में लेटरन संधि (Lateran Treaty) के तहत एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित किया गया। इस संधि के द्वारा इटली ने वेटिकन को एक स्वायत्त राज्य के रूप में मान्यता दी। हालांकि, वेटिकन का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व पहली शताब्दी से है, जब संत पीटर की समाधि पर चर्च बनाए गए।

 

पोप के निधन या इस्तीफे के बाद, वेटिकन में एक विशेष प्रक्रिया होती है जिसे “कॉन्क्लेव” कहा जाता है। इसमें 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल्स भाग लेते हैं। वे सिस्टिन चैपल में एकत्र होकर गुप्त मतदान करते हैं। जब किसी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त होता है, तो उसे नया पोप घोषित किया जाता है। इसकी घोषणा “Habemus Papam” (हमें पोप मिला) शब्दों से की जाती है, और सिस्टिन चैपल की चिमनी से सफेद धुआं निकलता है, जो संकेत देता है कि नया पोप चुन लिया गया है।

अब तक लगभग 266 पोप हो चुके हैं। हाल ही में, पोप फ्रांसिस का निधन 21 अप्रैल 2025 को हुआ। वे 2013 से 2025 तक पोप रहे और पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उन्हें सेंट पीटर बेसिलिका के बजाय रोम के सांता मारिया माजोरे में दफनाया जाएगा।

वेटिकन सिटी दुनिया का सबसे छोटा स्वतंत्र राष्ट्र है, जिसकी स्थापना 1929 में लेटरन संधि के तहत हुई थी। यह कैथोलिक चर्च का आध्यात्मिक और प्रशासनिक केंद्र है। यहां सेंट पीटर बेसिलिका, सिस्टिन चैपल और वेटिकन म्यूज़ियम जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल स्थित हैं। वेटिकन सिटी को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

यहाँ सेंट पीटर बेसिलिका, सिस्टीन चैपल और वेटिकन म्यूज़ियम जैसी विश्व प्रसिद्ध कलाकृतियाँ हैं।

बगैर कानून की डिग्री के ही सर्वोच्च न्यायालय में जज बन गए थे कैलाशनाथ वाँचू

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणियों के बाद देश में न्यायिक प्रक्रिया पर चर्चाएँ जोर-शोर से चल रही हैं। निशिकांत दुबे इस बीच पीछे हटाने के मूड में नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व CJI के बारे में जिक्र किया है, जिनके पास कानून की कोई डिग्री नहीं थी।

उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर जस्टिस कैलाशनाथ वांचू के विषय में लिखा है। जस्टिस वांचू देश के 10वें CJI थे और उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक बड़ा फैसला भी सरकार के हक़ में दिया था।

कौन थे जस्टिस कैलाशनाथ वांचू?
सुप्रीम कोर्ट के कामकाज और जजों के विषय में जानकारी देने वाली वेबसाIइट सुप्रीम कोर्ट आब्जर्वर के अनुसार, कैलाशनाथ वांचू का जन्म 1903 में मध्य प्रदेश में हुआ था। वह पढ़ाई में कुशाग्र थे और उन्होंने 1924 में तब नौकरशाही के लिए करवाई जाने वाली परीक्षा इंडियन सिविल सर्विसेज (ICS) पास की थी।

जस्टिस वांचू इसके बाद अपनी ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड गए थे। उन्होंने इंग्लैंड में 1926 तक ट्रेनिंग ली थी। उनकी शुरुआती तैनातियाँ कलेक्टर के तौर पर हुई थीं। उन्हें सबसे पहले उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) में तैनाती दी गई थी। 11 वर्षों तक वह इन्हीं पदों पर काम करते रहे थे। उन्हें 1937 में जिला स्तर के जज के तौर पर पहली तैनाती मिली थी।

जस्टिस वांचू जिला जज बनने के लगभग 10 वर्ष बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुँच गए थे। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट बताती है कि जस्टिस वांचू को फरवरी, 1947 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में तैनाती मिली थी। वह इसके बाद 1951 तक इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम करते रहे थे।

जस्टिस वांचू को राजस्थान हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस भी बनाया गया था। उन्हें 1951 में राजस्थान हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बना कर भेजा गया था। यहाँ उन्होंने 1958 तक अपनी सेवाएँ दी थीं। उन्हें इस दौरान और भी कई जगह पर जिम्मेदारियां दी गई थीं।

राजस्थान हाई कोर्ट में 7 वर्ष काम करने के बाद जस्टिस कैलाशनाथ वांचू को सुप्रीम कोर्ट में जज बना दिया। उन्हें यहाँ 12 अप्रैल, 1967 को CJI बनाया गया था। इसके पीछे एक विशेष कारण था। बताया गया कि 1967 में तत्कालीन CJI जस्टिस K सुब्बाराव ने एकाएक इस्तीफ़ा दे दिया।

सुब्बाराव के इस्तीफे के पीछे का कारण उनका राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का फैसला था। हालाँकि, जस्टिस K सुब्बाराव यह चुनाव जाकिर हुसैन से हार गए थे। जस्टिस सुब्बाराव के इस्तीफे के चलते ही जस्टिस कैलाशनाथ वांचू को CJI बनाया गया था।

इसी के साथ वह पहले और अकेले ऐसे CJI बन गए थे, जिसके पास ना वकालत की डिग्री थी और ना ही वह वकील रहे थे। उनकी नियुक्ति का आधार उनका पहले का अनुभव था। वह निचली अदालत में भी जज इस आधार बनाए गए थे कि उनका आपराधिक कानूनों को लेकर ज्ञान अच्छा था। उन्होंने या ज्ञान ICS की ट्रेनिंग के दौरान हासिल किया था।

जस्टिस वांचू 10 महीने CJI के पद पर रहे थे। उनका कार्यकाल फरवरी, 1968 में खत्म हुआ था।

जस्टिस वांचू ने कई महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई की थी। इनमें कई संवैधानिक मामले भी शामिल थे। इन्हीं में से एक मामला गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य का था। इसे भारतीय संविधान और कानूनी इतिहास में महत्वपूर्ण मामला माना जाता था।

1967 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि संसद संविधान में दिए गए मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती। यह सुनवाई जस्टिस सुब्बाराव की बेंच ने की थी। इसी बेंच में जस्टिस वांचू भी शामिल थे। उन्होंने इस फैसले से अपना मतभेद प्रकट किया था। जस्टिस वांचू की राय बाकी बेंच से लगा थी।

उनका मानना था कि संसद संविधान में देश के नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों में बदलाव कर सकती है। उनका यह कदम सरकार का पक्ष लेने वाला माना गया था। उनके इस कदम के कुछ ही दिनों बाद उन्हें CJI बनाया गया था।

जीवन परिचय
जन्म: 25 फरवरी 1903, इलाहाबाद (अब प्रयागराज)

शिक्षा: पंडित पृथ्वी नाथ हाई स्कूल, कानपुर; म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद; और वाधम कॉलेज, ऑक्सफोर्ड

भारतीय सिविल सेवा (ICS): 1924 में चयनित हुए और 1926 में सेवा में शामिल हुए Geni+4TutorialsPoint+4Supreme Court of India+4Supreme Court of India

⚖️ न्यायिक करियर
जिला एवं सत्र न्यायाधीश: 1937 से

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश: 1947 से 1951 तक

राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश: 1951 से 1958 तक

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश: 1958 से 1967 तक

भारत के 10वें मुख्य न्यायाधीश: 12 अप्रैल 1967 से 24 फरवरी 1968 तक

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में 355 निर्णय लिखे और 1,286 पीठों में भाग लिया ।

उनकी नियुक्ति उस समय हुई जब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के. सुब्बा राव ने राष्ट्रपति पद के लिए इस्तीफा दिया ।

उन्होंने राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन को शपथ दिलाई थी ।

हालांकि उनके पास औपचारिक कानून की डिग्री नहीं थी, लेकिन ICS प्रशिक्षण के दौरान उन्हें आपराधिक कानून की शिक्षा ली थी ।

ॐ का वैज्ञानिक महत्व, इसके शरीर पर प्रभाव और ब्रह्माण्ड की चेतना से ॐ का संपर्क

ॐ (ओम) का वैज्ञानिक महत्व और इस पर की गई वैज्ञानिक खोजें मुख्य रूप से इसकी ध्वनि, कंपन, और मानव शरीर व मस्तिष्क पर इसके प्रभावों से संबंधित हैं। भारतीय संस्कृति में ॐ को एक पवित्र ध्वनि और आध्यात्मिक मंत्र माना जाता है, और आधुनिक विज्ञान ने भी इसके प्रभावों को समझने के लिए विभिन्न अध्ययन किए हैं। ॐ की ध्वनि लगभग 432 हर्ट्ज की आवृत्ति पर कंपन करती है, जो प्रकृति और ब्रह्मांड की कई ध्वनियों के साथ संनादति (resonate) है। यह कंपन शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को संतुलित करने में मदद करता है।

ॐ वैदिक परंपरा का पवित्र ध्वनि और प्रतीक है, जिसे हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में महत्व दिया जाता है। वैज्ञानिक रूप से इसके उच्चारण के कई लाभ देखे गए हैं। ॐ तीन ध्वनियों अ, उ, म से बनता है, जो चेतना की जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्थाओं को दर्शाता है।

ॐ का वैज्ञानिक महत्व इस बात से सिद्ध होता है कि इसका उच्चारण केवल आध्यात्मिक अभ्यास नहीं है, बल्कि इसके शरीर, मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव होते हैं। आधुनिक शोध और न्यूरोसाइंटिफिक अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि नियमित रूप से ॐ का जाप करने से तनाव कम होता है, ध्यान में सुधार आता है, और शरीर में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है। इस प्रकार, ॐ के शोध ने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को जोड़ते हुए मानव स्वास्थ्य में इसके अनुपम लाभों की पुष्टि की है।

“ॐ” (ओंकार) भारतीय दर्शन और ध्यान का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के एकत्व का प्रतीक माना जाता है, और इसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, स्थिति और विलय के संकेत के रूप में देखा जाता है। इसके वैज्ञानिक महत्व को समझने के लिए, हमें इसके ध्वनिविज्ञान (acoustics), विद्युत-चुंबकीय तरंगों (electromagnetic waves) और तंत्रिका तंत्र (nervous system) पर प्रभाव को देखना होगा।

“ॐ” ध्वनि की आवृत्ति (frequency) विशेष प्रकार की मानी जाती है। वैज्ञानिकों ने इस ध्वनि की गुणात्मकता का अध्ययन किया है, और पाया है कि “ॐ” की ध्वनि में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है जो शरीर और मस्तिष्क को शांत करती है।

  • ओंकार का उच्चारण एक विशिष्ट तरंग उत्पन्न करता है, जिसे “सिनसॉइडल वेव” कहा जाता है। यह तरंग शरीर के हर कोने में एक गहरी कंपन उत्पन्न करती है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
  • “ॐ” की ध्वनि शरीर में सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए जानी जाती है। इसे कई बार उच्चारित करने से तनाव कम होता है, और शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बेहतर होता है।

विज्ञान में यह माना जाता है कि ध्यान और “ॐ” के उच्चारण से तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब हम “ॐ” का उच्चारण करते हैं, तो यह हमारी मानसिक स्थिति और भावनात्मक संतुलन को प्रभावित करता है।

  • वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पाया गया कि “ॐ” का उच्चारण करने से मस्तिष्क में गामा तरंगों (gamma waves) का उत्पादन होता है। गामा तरंगों का संबंध उच्च मानसिक स्थिति, ध्यान और संज्ञानात्मक कार्यक्षमता से होता है।
  • इसके अलावा, “ॐ” के उच्चारण से शरीर में कोर्टिसोल (जो तनाव हार्मोन है) का स्तर कम होता है, और शरीर में शांतिपूर्ण स्थिति आती है।

कई आधुनिक वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने “ॐ” पर अध्ययन किया है और यह पाया है कि इसके ध्वनि और कंपन का प्रभाव हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है। कुछ महत्वपूर्ण खोजें इस प्रकार हैं:

  • Dr. Masaru Emoto (जापानी वैज्ञानिक) ने पानी पर किए गए अपने प्रयोगों में यह दिखाया कि ध्वनियों और विचारों का पानी की संरचना पर असर पड़ता है। उन्होंने “ॐ” जैसे सकारात्मक ध्वनियों को पानी पर डालने पर पानी के अणुओं की संरचना में बदलाव देखा, जो सकारात्मक और सुंदर रूपों में बदल गए।
  • Neuroscientific Studies: वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है कि “ॐ” का उच्चारण हमारे मस्तिष्क के प्राचीन और गहरे हिस्सों को सक्रिय करता है, जो तंत्रिका तंत्र के भीतर विश्राम और चेतनावस्था के बीच संतुलन बनाए रखते हैं

प्राचीन भारतीय वेदों में यह उल्लेख किया गया है कि ब्रह्मांड की मूल ध्वनि “ॐ” है। आज के विज्ञान में इसे “कॉस्मिक साउंड” या “ब्रह्मांडीय कंपन” के रूप में देखा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड का उत्पत्ति बिंदु (Big Bang) और उसके बाद के विस्तार से उत्पन्न होने वाली तरंगों को “ॐ” से जोड़ा जा सकता है।आज भी वैज्ञानिक यह अध्ययन कर रहे हैं कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा और सृष्टि की गहराई को समझने में “ॐ” की ध्वनि का क्या स्थान हो सकता है। कुछ खगोलज्ञ यह मानते हैं कि ब्रह्मांड में जो गहरी और ध्वनि लहरें हैं, वे “ॐ” के समान हो सकती हैं।

वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया कि ॐ का जाप मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को बढ़ाता है, जो शांति और एकाग्रता से जुड़ी हैं। इससे तनाव कम होता है और ध्यान गहरा होता है। न्यूरोइमेजिंग अध्ययनों से पता चला कि यह मस्तिष्क के प्रिफ्रंटल कॉर्टेक्स और लिम्बिक सिस्टम को सक्रिय करता है, जो भावनात्मक संतुलन और निर्णय क्षमता को बेहतर बनाता है। यह मस्तिष्क के डिफॉल्ट मोड नेटवर्क को भी शांत करता है, जिससे चिंता और अत्यधिक सोच कम होती है।

ॐ का उच्चारण हृदय गति और रक्तचाप को कम करता है, जिससे पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय होता है और विश्राम मिलता है। यह धीमी श्वास को बढ़ावा देता है, जिससे फेफड़ों की क्षमता और ऑक्सीजन स्तर सुधरता है। नियमित जाप से कोर्टिसोल हार्मोन कम होता है, जो चिंता और अवसाद को कम करता है। यह माइंडफुलनेस का एक रूप है, जो मन को वर्तमान में लाता है और एकाग्रता बढ़ाता है।

कुछ अध्ययनों में दावा किया गया कि ॐ की ध्वनि पर्यावरण में सकारात्मक कम्पन पैदा करती है, हालांकि इस पर और शोध चाहिए। जापानी वैज्ञानिक मासारु इमोटो ने कहा कि ॐ पानी के अणुओं में सुंदर क्रिस्टल बनाता है, लेकिन यह दावा विवादास्पद है।

ॐ का जाप मानसिक शांति, तनाव में कमी और न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ाता है। यह शरीर के ऊर्जा केंद्रों को संतुलित करता है। सामूहिक जाप से सामाजिक सामंजस्य बढ़ता है।

ॐ की ध्वनि को संस्कृत में “प्रणव” कहा जाता है, जिसे ब्रह्मांड की मूल ध्वनि माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ॐ के उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि और कंपन मानव शरीर, मस्तिष्क, और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके प्रमुख वैज्ञानिक महत्व निम्नलिखित हैं:

ॐ के उच्चारण से मस्तिष्क में विशिष्ट तरंगें (जैसे अल्फा और थेटा तरंगें) उत्पन्न होती हैं, जो तनाव को कम करती हैं और ध्यान की स्थिति को बढ़ावा देती हैं। यह मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स और लिम्बिक सिस्टम को शांत करता है, जिससे चिंता और तनाव में कमी आती है।

ॐ की ध्वनि वागस नर्व (vagus nerve) को उत्तेजित करती है, जो हृदय गति, रक्तचाप, और पाचन तंत्र को नियंत्रित करती है। इससे हृदय गति धीमी होती है और मानसिक शांति मिलती है।
ॐ का उच्चारण एक नियंत्रित श्वास प्रक्रिया है, जो फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है और रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा को सुधारता है। इससे मस्तिष्क और शरीर की कार्यक्षमता बढ़ती है।[]
नासा ने सूर्य की ध्वनियों को रिकॉर्ड किया, जिनकी आवृत्ति मानव कानों की सुनने की क्षमता (20 Hz से 20,000 Hz) से अधिक थी। जब इन ध्वनियों को संपीड़ित (compressed) कर सुना गया, तो वे ॐ की ध्वनि के समान पाई गईं। यह खोज इस दावे को बल देती है कि ॐ ब्रह्मांड की मूल ध्वनि हो सकती है। हालांकि, इस खोज पर कुछ वैज्ञानिक विवाद भी हैं, क्योंकि यह पूरी तरह से प्रमाणित नहीं है।
 इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी (EEG) अध्ययनों में पाया गया कि ॐ का जाप करने से मस्तिष्क की तरंगें अल्फा और थेटा अवस्था में चली जाती हैं, जो गहरे ध्यान और विश्राम की स्थिति को दर्शाती हैं। यह तनाव, अवसाद, और अनिद्रा जैसी समस्याओं में लाभकारी है।

2018 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि ॐ के नियमित जाप से रक्तचाप और हृदय गति में कमी आती है, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह वागस नर्व की उत्तेजना के कारण होता है।
ॐ का जाप करने से डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर का स्राव बढ़ता है, जो खुशी और मानसिक स्थिरता को बढ़ाते हैं। यह ध्यान और योग के अभ्यास में एकाग्रता को भी बढ़ाता है।

कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया कि ॐ की ध्वनि वातावरण में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करती है, जो नकारात्मक ऊर्जा को कम करती है। यह ध्वनि जल और अन्य माध्यमों में संरचनात्मक परिवर्तन ला सकती है, जैसा कि जापानी वैज्ञानिक मसारु इमोटो के जल प्रयोगों में देखा गया।

ॐ का जाप मस्तिष्क को शांत करता है, जिससे तनाव, चिंता, और अवसाद कम होता है।यह मस्तिष्क की जागरूकता और फोकस को बढ़ाता है, जो विद्यार्थियों और ध्यान करने वालों के लिए लाभकारी है।ऑक्सीजन की बढ़ी हुई आपूर्ति, रक्तचाप में कमी, और हृदय स्वास्थ्य में सुधार जैसे शारीरिक लाभ देखे गए हैं। ॐ का जाप आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाता है और व्यक्ति को ब्रह्मांड के साथ एकता का अनुभव कराता है।

ॐ की ध्वनि का वैज्ञानिक महत्व इसके न्यूरोलॉजिकल, शारीरिक, और मनोवैज्ञानिक प्रभावों में निहित है। नासा की खोज और EEG जैसे अध्ययनों ने इसकी ब्रह्मांडीय और स्वास्थ्यवर्धक प्रकृति को कुछ हद तक समझाया है। ॐ का नियमित जाप तनाव कम करने, एकाग्रता बढ़ाने, और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है। यह प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का एक अनूठा संगम है, जो मानव जीवन को समृद्ध करता है।