Thursday, November 28, 2024
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एक सफल फिल्म बनाने के लिए आपको अपनी झिझक और डर को दूर रखना होगा और एक दूसरे पर पूरा भरोसा रखना होगा: फिलिप नोयस

एक निर्देशक के तौर पर आप उतने ही अच्छे हैं जितनी आपकी स्क्रिप्ट है: नोयस

जाने माने फिल्म निर्माता फिलिप नोयस ने 55वें इफ्फी में ‘हाउ टू सक्सीड इन न्यू हॉलीवुड’ विषय पर मास्टरक्लास को संबोधित किया

एक सर्कस में रिंगमास्टर बनने की चाहत से लेकर हॉलीवुड की चकाचौंध भरी और आकर्षक लेकिन चुनौतीपूर्ण दुनिया में निर्देशक बनने तक के दिग्गज फिल्म निर्माता फिलिप नॉयस का सफर धैर्य और दृढ़ता की एक अति-प्रेरणादायक कहानी है।

प्रसिद्ध फिल्म निर्माता फिलिप नॉयस, जिन्हें इस वर्ष सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा, ने आज गोवा के कला अकादमी में आयोजित 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में “हाउ टू सक्सीड इन न्यू हॉलीवुड” विषय पर मास्टरक्लास दी।

देश भर से आए उत्साही युवा फिल्म निर्माताओं को एक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए नोयस ने नवोदित फिल्म निर्माताओं को कई टिप्स दिए। नोयस ने कहा, “हॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ बाधाओं को पार करना पड़ता है।” “पिछले कुछ वर्षों में मैंने हॉलीवुड में बने रहने के कुछ व्यवसायिक रहस्य सीखे हैं। सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है टीम के सदस्यों का एक दूसरे पर विश्वास।” फिल्म शुरू होने से पहले अपने फिल्म निर्माण दल के प्रत्येक सदस्य पर विश्वास बनाए रखने का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “एक सफल फिल्म बनाने के लिए आपको अपनी झिझक और डर को दूर करना होगा और एक दूसरे पर पूरा विश्वास रखना होगा। अंत में सब कुछ दृढ़ विश्वास और भरोसे पर निर्भर करता है।”

इस दिग्गज फिल्म निर्माता ने कहा, “अगर आपको सही क्रू और सही आइडिया मिल जाए तो आप एक बेहतरीन फिल्म बना सकते हैं।”

ऑस्ट्रेलिया के दूरदर्शी फिल्म निर्माता श्री नोयस फिलिप ने अपनी यात्रा छोटी उम्र से ही शुरू कर दी थी। “अक्सर मैं अपने पड़ोस में हो रहे सर्कस को करीब से देखने के लिए वहां जाता था। उस उम्र में रिंगमास्टर की नौकरी मुझे सबसे ज्यादा आकर्षक लगती थी क्योंकि एक रिंगमास्टर जानवरों से लेकर अपने दल के सदस्यों तक सब पर नियंत्रण रखना जानता था। इसलिए, मैं भी रिंगमास्टर बनना चाहता था।” नोयस ने बताया कि बाद में उन्हें एहसास हुआ की वह दर्शकों की हंसी की आवाज किसी भी चीज से ज्यादा सुनना चाहते थे, जिसने दशकों तक दर्शकों का मनोरंजन करते हुए शो बिजनेस में उनके करियर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।

नॉयस ने बतौर निर्देशक वर्ष 1975 में अपनी शुरुआत की थी, हालांकि, उन्हें बाद में 1978 में अपनी फिल्म न्यूज़फ्रंट के साथ समीक्षक और व्यावसायिक सफलता मिली।

श्री नॉयस ने इस बात पर जोर दिया कि एक लेखक किसी भी फिल्म की रीढ़ होता है। उन्होंने कहा, “एक निर्देशक के तौर पर आप उतने ही अच्छे होते हैं जितनी अच्छी आपकी स्क्रिप्ट होती है।” “आपको अपने लेखक के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। एक सुसंगत और ठोस स्क्रिप्ट आपकी फिल्म को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकती है। निर्देशक और लेखक के बीच का रिश्ता किसी भी फिल्म में एक महत्वपूर्ण कारक होता है।”

फिल्म के बजट के विषय पर बात करते हुए नोयस ने कहा, “आपको अधिक राजस्व कमाने के लिए छोटे बजट में फिल्में बनाना सीखना होगा। अपने संसाधनों को संशोधित करना महत्वपूर्ण है। इसे सुनिश्चित करने का एक तरीका आधुनिक तकनीक का उपयोग करना है ताकि क्रू के बजट और जोखिम को कम किया जा सके।”

प्री-प्रोडक्शन प्रक्रिया, योजना, स्टोरी-बोर्ड सभी फिल्म निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व हैं। श्री नोयस ने संक्षेप में कहा, “एक फिल्म को प्रोडक्शन हाउस, अभिनेताओं और फिल्म निर्माण प्रक्रिया में शामिल अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा मंजूरी मिलने से पहले कई बार बनाना पड़ता है।”

यह सत्र इस महान फिल्म निर्माता की प्रतिभा का प्रमाण था। कहानीयों को बताने की अपनी इस गहन कला पद्धति से उन्होंने पूरे सत्र में कई होनहार फिल्म निर्माताओं को प्रेरित किया।

साहस की एक प्रेरक कहानी: 55वें आईएफएफआई में ‘अमेरिकन वॉरियर’ की चमक

“यह एक फिल्म से कहीं अधिक है – यह मेरी सहनशीलता की कहानी है” – अभिनेता विशी अय्यर

‘अमेरिकन वॉरियर’ जीवन में प्यार और दूसरे मौके की शक्ति को दर्शाता है – अभिनेत्री टेलर ट्रेडवेल

अमेरिकन वॉरियर अमेरिकी-भारतीयों के संघर्षों और आकांक्षाओं को दर्शाती है: निर्माता ऋषाना

55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ने वैश्विक सिनेमाई समुदाय का खुले दिल से स्वागत किया, जिसमें बहुप्रतीक्षित फिल्म अमेरिकन वॉरियर पर प्रकाश डाला गया। गुस्तावो मार्टिन द्वारा निर्देशित, संयुक्त राज्य अमेरिका की यह प्रेरक फिल्म एक भारतीय-अमेरिकी प्रवासी की परिवर्तनकारी यात्रा को दर्शाती है।

“अमेरिकन वॉरियर” जय की प्रेरणादायक कहानी को प्रस्तुत करती है, जो एक पूर्व शौकिया एमएमए फाइटर और पूर्व अपराधी है। एक डकैती को नाकाम करने के बाद, जय प्रायश्चित की राह पर चलता है। उसकी बहादुरी उसे अप्रत्याशित रूप से एक स्थानीय नायक बना देती है, जिससे वह जनता की नजरों में आ जाता है और नई चुनौतियों का सामना करता है। यह फिल्म न केवल रूढ़ियों को तोड़ती है, बल्कि आशा का एक संदेश भी देती है, जो दर्शकों और समुदायों के दिलों को गहराई से छूती है। इसके अलावा, यह मुख्य अभिनेता विशी अय्यर के करिश्मे और दृढ़ निश्चय को भी उजागर करती है, जिन्होंने अपने किरदार में प्रामाणिकता और गहराई का संचार किया है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिल्म के प्रतिनिधियों का परिचय कराया गया, जिसमें मुख्य अभिनेता विशी अय्यर, अभिनेत्री टेलर ट्रेडवेल, और निर्माता क्रिस्टी कूर्स बीस्ले और रशाना शामिल थे। फिल्म को प्रस्तुत करने के अवसर के लिए आभार व्यक्त करते हुए, प्रतिनिधियों ने इसकी कहानी के उद्भव और इसके प्रभाव के बारे में अपने विचार साझा किए। एक आकर्षक ट्रेलर भी प्रदर्शित किया गया, जिसने दर्शकों को कहानी की सच्ची और भावनात्मक गहराई से जोड़ते हुए एक रोमांचक माहौल तैयार किया।

अपनी यात्रा के बारे में बात करते हुए, विशी अय्यर ने फिल्म के पीछे अपनी गहरी व्यक्तिगत प्रेरणा का खुलासा किया, जो उनके अपने जीवन के अनुभवों में निहित है। वित्तीय संकट के दौरान करोड़ों डॉलर का व्यवसाय खोने और बहिष्कार का सामना करने के बाद, अय्यर ने आध्यात्मिकता और आत्म-खोज में शरण ली। भगवद गीता की शिक्षाओं, विशेष रूप से अर्जुन की कहानी से प्रेरणा लेते हुए, उन्होंने दृढ़ता और मुक्ति की एक कहानी की अवधारणा बनाई।

टेलर ट्रेडवेल, जिन्होंने फिल्म में मेलिसा नामक एक अकेली मां की भूमिका निभाई है, ने अपनी भूमिका को बहुत ही सार्थक बताया। उन्होंने कहा, “अमेरिकन वॉरियर प्यार और दूसरे मौकों की शक्ति को दर्शाता है,” उन्होंने फिल्म में एक्शन और भावनात्मक गहराई के बीच संतुलन को उजागर किया। उनके लिए, यह फिल्म केवल शारीरिक लड़ाइयों के बारे में नहीं है, बल्कि आंतरिक संघर्षों के बारे में भी है जो मानवीय दृढ़ता को परिभाषित करते हैं।

फिल्म की प्रामाणिकता यथार्थवाद के प्रति इसकी प्रतिबद्धता से और भी बढ़ जाती है। लड़ाई के दृश्यों में प्रामाणिकता लाने के लिए अय्यर ने एक पेशेवर यूएफसी फाइटर के तहत कठोर प्रशिक्षण लिया। विशी अय्यर ने भावनात्मक और शारीरिक दोनों तरह की चुनौतियों का डटकर सामना किया, जो फिल्म के दृढ़ता के संदेश को रेखांकित करता है।

निर्माता रशाना ने फिल्म के प्रवासी अनुभव पर केंद्रित होने पर जोर दिया, जो भारतीय-अमेरिकियों के संघर्षों और आकांक्षाओं को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि यह फिल्म अमेरिकी और भारतीय दर्शकों दोनों के लिए आकर्षक है, क्योंकि इसमें दृढ़ता और आशा जैसे सार्वभौमिक विषयों को दर्शाया गया है। एक अन्य निर्माता, क्रिस्टी कूर्स बीस्ले, ने अमेरिकी जीवन की कठिन सच्चाइयों को प्रदर्शित करने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि फिल्म केवल चमक-धमक से परे जाकर, एक अधिक प्रामाणिक कहानी प्रस्तुत करती है।

प्रोडक्शन टीम ने पारंपरिक कथाओं को बदलने पर गर्व व्यक्त किया, जिसमें महिला किरदारों को केंद्र में लाया गया है। एक महिला को फाइट डॉक्टर के रूप में दिखाने से लेकर, लैंगिक संतुलन को सुनिश्चित करने तक, फिल्म ने उद्योग के मानकों को चुनौती दी है। यह कहानी दर्शकों को महिलाओं के किरदारों के लिए नए संभावनाओं की कल्पना करने के लिए प्रेरित करती है और सिनेमा में उनके सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश करती है।

फिल्म को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, जहां दर्शकों ने इसकी थीम से गहरी जुड़ाव महसूस किया। कॉन्फ्रेंस के दौरान, टीम ने स्क्रीनिंग के दौरान के भावुक क्षणों को साझा किया, जिसमें दर्शकों की प्रतिक्रियाएं शामिल थीं। कई दर्शकों ने अपनी जिंदगी से फिल्म की कहानी को जोड़ते हुए अपने अनुभव साझा किए, जो इसकी गहराई और प्रभावशीलता को दर्शाता है।

टीम के बीच रचनात्मक सहयोग, जिसमें अनुभवी स्टंट कोऑर्डिनेटर्स और एमएमए पेशेवरों का योगदान शामिल था, को फिल्म की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारक बताया गया। “अमेरिकन वॉरियर” एक शक्तिशाली कहानी के रूप में उभरती है, जो परिवर्तन, साहस और सांस्कृतिक पुलों के निर्माण को दर्शाती है। इसकी थीम सभी सीमाओं को पार कर, दर्शकों को आशा और दृढ़ता के सार्वभौमिक संदेश से गहराई से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है।

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र

केंद्र सरकार ने देश भर में लोक कला और संस्कृति के विभिन्न रूपों की रक्षा, संवर्धन और संरक्षण करने तथा विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों के विकास के लिए तंत्र स्थापित करने के लिए सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (जेडसीसी) स्थापित किए हैं। ये सात केंद्र हैं पटियाला (पंजाब), नागपुर (महाराष्ट्र), उदयपुर (राजस्थान), प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), दीमापुर (नागालैंड) और तंजावुर (तमिलनाडु)। देश में इन क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना का उद्देश्य इन क्षेत्रों की विशिष्टता को बनाए रखते हुए पूरे राष्ट्र को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में पिरोना है। इन जेडसीसी की स्थापना के उद्देश्य और लक्ष्य हैं:

संबंधित क्षेत्र में कलाओं के प्रदर्शन और प्रसार को संरक्षित और बढ़ावा देना;
उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता को विकसित करना और बढ़ावा देना;
लोक और आदिवासी कलाओं को प्रोत्साहित करना और लुप्त होती कलाओं का संरक्षण करना;
युवाओं को रचनात्मक सांस्कृतिक संचार में शामिल करना और विभिन्न क्षेत्रों के बीच संबंधों और भारतीय संस्कृति में उनके योगदान पर विशेष जोर देना।

प्रत्येक क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र को उपकरणों और भवनों सहित बुनियादी ढांचे के निर्माण पर लागत के लिए एक कॉर्पस फंड प्रदान किया गया। भारत सरकार ने 7वीं और 10वीं पंचवर्षीय योजना में सभी सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों में से प्रत्येक को 10.00 करोड़ रुपये प्रदान किए। 2014-15 के दौरान, छह (6) क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों अर्थात उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला; दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, तंजावुर; दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर; पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर; उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज और पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता को 10-10 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि प्रदान की गई। उत्तर पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनईजेडसीसी), दीमापुर को निधि वृद्धि के लिए 20.00 करोड़ रुपये प्रदान किए गए, जिससे एनईजेडसीसी, दीमापुर के लिए कुल निधि 30.00 करोड़ रुपये और शेष छह क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों में से प्रत्येक की कुल निधि 20.00 करोड़ रुपये हो गई। इन क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के सभी प्रशासनिक व्यय इस निधि पर अर्जित ब्याज से वहन किए जा रहे हैं। प्रत्येक केंद्र के लिए आवश्यक भूमि उन राज्य सरकारों की ओर से निःशुल्क उपलब्ध कराई गई, जहां क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के मुख्यालय स्थित हैं।

देश में कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ये क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र वर्ष भर नियमित आधार पर विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों एवं कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिसके लिए उन्हें वार्षिक अनुदान सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा, संस्कृति मंत्रालय इन क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव (आरएसएम) का भी आयोजन करता है, जिसमें पूरे भारत से बड़ी संख्या में कलाकार शामिल होते हैं और इन कार्यक्रमों के दौरान अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। नवंबर, 2015 से संस्कृति मंत्रालय ने देश भर में चौदह (14) राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव और चार (04) क्षेत्रीय स्तरीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र आयोजित किए हैं। इसके अतिरिक्त, कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ये क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र हर वर्ष न्यूनतम 42 क्षेत्रीय महोत्सव आयोजित करते हैं।

यह जानकारी आज केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में दी।

अभिलेखों का डिजिटलीकरण और संरक्षण

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) भारत सरकार के स्थायी मूल्य के अभिलेखों का संरक्षक है। 11 मार्च, 1891 को कोलकाता में इंपीरियल रिकॉर्ड विभाग के रूप में स्थापित, यह दक्षिण एशिया के सबसे बड़े अभिलेखीय भंडारों में से एक है। इसमें सार्वजनिक अभिलेखों का विशाल संग्रह है जिसमें फाइलें, खंड, नक्शे, राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत विधेयक, संधियां, दुर्लभ पांडुलिपियां, प्राच्य अभिलेख, निजी कागजात, मानचित्र संबंधी अभिलेख, राजपत्रों और विवरणिका का महत्वपूर्ण संग्रह, जनगणना अभिलेख, विधानसभा और संसद की बहसें, निषिद्ध साहित्य, यात्रा विवरण आदि शामिल हैं।

एनएआई के पास अभिलेखों के संग्रह की कुल संख्या 34 करोड़ पृष्ठ (लगभग) है, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों, विभागों के अभिलेखों के साथ-साथ निजी और प्राच्य अभिलेखों का संग्रह भी शामिल है।

अनुमान है कि 2.25 करोड़ (लगभग) अभिलेखों की शीटें अत्यधिक नाजुक अभिलेख हैं तथा इन अभिलेखों की मरम्मत और पुनर्वास के लिए आवश्यक कार्रवाई एक आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से मिशन मोड में की जा रही है।

आज तक एनएआई ने रिकॉर्ड के लगभग 5,50,58,949 पृष्ठों का डिजिटलीकरण किया है और 28,49,41,031 पृष्ठों का डिजिटलीकरण किया जाना बाकी है।

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के संरक्षण में अभिलेखीय अभिलेखों में सुधार और पुनर्वास के लिए, विश्व भर में अपनाई जाने वाली सभी आवश्यक संरक्षण प्रक्रियाएं, जैसे निवारक, उपचारात्मक और पुनर्स्थापनात्मक संरक्षण, लागू की जा रही हैं।

एनएआई के “स्कूल ऑफ आर्काइवल स्टडीज” में अभिलेखों की मरम्मत और पुनर्वास के लिए अभिलेखागार और अभिलेख प्रबंधन में एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम के अंतर्गत उम्मीदवारों को प्रशिक्षण दिया जाता है। एनएआई द्वारा ‘रिकॉर्ड की सर्विसिंग और पुस्तकों, पांडुलिपियों और अभिलेखागार के संरक्षण’ पर लघु अवधि पाठ्यक्रम भी संचालित किया जाता है। उपरोक्त के अलावा, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने 900 उम्मीदवारों को अभिलेखों के संरक्षण और परिरक्षण पर प्रशिक्षण प्रदान किया है।

यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

कनाडा एवं अमेरिका से भारत में रिवर्स ब्रेन ड्रेन की सम्भावना बढ़ रही है

वैश्विक स्तर पर लगातार कुछ इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित होती दिखाई दे रही हैं, जिससे विशेष रूप से कनाडा एवं अमेरिका से भारत की ओर रिवर्स ब्रेन ड्रेन की सम्भावना बढ़ती जा रही है। कनाडा में खालिस्तानियों द्वारा चलाए जा रहे भारत विरोधी आंदोलन के चलते वहां निवासरत भारतीयों एवं मंदिरों पर लगातार हमले हो रहे हैं एवं भारतीयों एवं मंदिरों पर हो रहे इन हमलों पर लगाम लगाने में कनाडा की वर्तमान सरकार असफल सिद्ध हो रही है एवं इन हमलों को, राजनैतिक कारणों के चलते, रोकने की इच्छा शक्ति का अभाव भी दिखाई दे रहा है। इसके चलते भारत एवं कनाडा के राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक रिश्तों पर अत्यधिक विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। स्थिति तो यहां तक पहुंच गई है कि भारत ने कनाडा में अपने दूतावास में प्रतिनिधियों की संख्या को कम कर दिया है तथा भारत ने कनाडा को निर्देशित किया था कि वह भी भारत में अपने दूतावास में प्रतिनिधियों की संख्या को कम करे। भारत एवं कनाडा के बीच आज कूटनीतिक रिश्ते आज तक के सबसे निचले स्तर पर आ गए हैं। साथ ही, कनाडा में आज सुरक्षा की दृष्टि से भी स्थितियां तेजी से बदल रही हैं तथा इसका कनाडा के आर्थिक विकास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। जिसके चलते भारतीय आज कनाडा में अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और भारत की ओर रूख कर रहे हैं।

दूसरी ओर, अमेरिका में डोनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के पश्चात वहां पर अवैध रूप से रह रहे अन्य देशों के नागरिकों को अमेरिका से निकाले जाने की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं। हालांकि अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों की संख्या लगभग नगण्य सी ही है परंतु ट्रम्प प्रशासन द्वारा अब वीजा, एच1बी सहित, जारी करने वाले नियमों को और अधिक कठोर बनाया जा सकता है। अमेरिका में प्रतिवर्ष जारी किए जाने वाले कुल एच1बी वीजा में से 60 प्रतिशत से अधिक वीजा भारतीय मूल के नागरिकों को जारी किए जाते हैं। यदि इस संख्या में भारी कमी दृष्टिगोचर होती है तो अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों को, उनकी पढ़ाई सम्पन्न करने के पश्चात यदि एच1बी वीजा जारी नहीं होता है तो उन्हें भारत वापिस आने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इस प्रकार अमेरिका से भी भारतीयों का रिवर्स ब्रेन ड्रेन दिखाई पड़ सकता है।

भारत आज पूरे विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है, अतः भारत में तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास के कारण सूचना प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, उच्च तकनीकी क्षेत्रों, वाहन विनिर्माण उद्योग, फार्मा उद्योग, चिप विनिर्माण उद्योग, स्टार्ट अप, आदि क्षेत्रों में भारी मात्रा में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं और भारत को इन क्षेत्रों में उच्च टेलेंट की आवश्यकता भी है। यदि कनाडा एवं अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त एवं उक्त क्षेत्रों में प्रशिक्षित इंजीनीयर्स भारत को प्राप्त होते हैं तो यह स्थिति भारत के लिए बहुत फायदेमंद होने जा रही है।

उक्त कारणों के अतिरिक्त आज अन्य देशों से भारत की ओर रिवर्स ब्रेन ड्रेन इसलिए भी होता दिखाई दे रहा है क्योंकि, भारत में आज मूलभूत सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। किसी भी दृष्टि से भारत का आधारभूत ढांचा आज किसी भी विकसित देश की तुलना में कम नहीं है। साथ ही, भारत में, विकसित देशों की तुलना में, मुद्रा स्फीति की दर कम होने से, सामान्य रहन सहन की लागत तुलनात्मक रूप से भारत में बहुत कम है। अतः भारत में अमेरिका एवं कनाडा की तुलना में शुद्ध बचत दर भी अधिक है। हाल ही के समय में भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में भी पर्याप्त सुधार हुआ है। आज बैंगलोर, मुंबई, हैदराबाद जैसे शहरों में बहुत ही कम लागत पर अमेरिकी अस्पतालों की तुलना में (अमेरका की तुलना में तो 1/10 लागत पर) अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में तो शुद्ध हवा एवं शुद्ध पानी, जो स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने में सहायक होता है, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। वरना, महानगरीय इलाकों में तो आज सांस लेना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। विभिन्न देशों से उच्च शिक्षा प्राप्त एवं टेलेंटेड भारतीय जो भारत वापिस लौटे हैं, उन्होंने अपने नए प्रारम्भ किए गए स्टार्ट अप के कार्यालय दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में स्थापित किए हैं।

भारत में बहुत लम्बे समय से मजबूत लोकतंत्र बना हुआ है एवं केंद्र में एक मजबूत सरकार, उद्योग एवं व्यापार को भारत में प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उद्योग एवं व्यापार के मित्रवत आर्थिक नीतियों को सफलतापूर्वक लागू कर रही है। इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मात्रा में अपार वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। विकसित देशों में नागरिकों की औसत आयु 50 वर्ष से अधिक हो रही है जिससे श्रमिकों की संख्या इन देशों में लगातार कम हो रही है एवं श्रम लागत में भी भारी मात्रा में वृद्धि हुई है जिसके कारण इन देशों में उत्पादन लागत बहुत अधिक बढ़ गई है। हाल ही के समय में चीन भी इस समस्या से ग्रसित पाया जा रहा है।

केवल भारत एवं दक्षिणी अफ्रीकी देशों में ही श्रम लागत तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इसके कारण विश्व की कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में करना चाहते हैं। भारत में उत्पादों का निर्माण कर इन उत्पादों को विश्व के अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है। भारत में आटोमोबाईल उद्योग, मोबाइल उद्योग एवं फार्मा उद्योग इसके जीते जागते प्रमाण हैं। इन्हीं कारणों से आज भारत से कई उत्पादों का निर्यात बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है एवं भारत का विदेशी व्यापार घाटा लगातार कम हो रहा है। विदेशी व्यापार घाटे में सुधार होने के चलते भारत में विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि दृष्टिगोचर है जो हाल ही के समय में 70,000 अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को भी पार कर गया था। हालांकि, इसके बाद से इसमें कुछ गिरावट देखी गई है।

आज विश्व के कई विकसित देशों में सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो गया है एवं इन देशों के नागरिकों में मानसिक असंतोष की भावना लगातार बढ़ रही है एवं इन देशों की आधे से अधिक आबादी आज मानसिक बीमारीयों से ग्रसित है। जबकि इसके ठीक विपरीत भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के संस्कारों के अनुपालन से एवं संयुक्त परिवार की जीवनशैली के चलते भारतीय नागरिक मानसिक बीमारियों से लगभग पूर्णत: मुक्त रहे हैं एवं सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। विकसित देशों के नागरिकों ने भौतिक विकास तो अधिक किया है परंतु मानसिक शांति खोई है। जबकि इस धरा पर जन्म लेने का उद्देश्य ही सुखी जीवन व्यतीत करना है न कि अपने आप को मानसिक बीमारियों से ग्रसित कर देना। इन्हीं कारणों के चलते आज विश्व के कई देशों के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति को अपनाने की ओर लालायित दिखाई दे रहे हैं और वे भारत में बसने के बारे में गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। अतः विकसित देशों से भारत में रिवर्स ब्रेन ड्रेन आने वाले कल की सच्चाई है।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009

मोबाइल क्रमांक – 9987949940

ई-मेल – prahlad.sabnani@gmail.com

अमरीका में विद्यार्थियों के लिए आवास की आसान तलाश

डॉरमेट्री से लेकर अपार्टमेंट तक अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के पास आवास के कई तरह के विकल्प मौजूद होते हैं।

अमेरिका में अपनी पसंद के विश्वविद्यालय में दाखिला पाना हमेशा ही रोमांचक होता है। लेकिन विद्यार्थियों के लिए सुरक्षित आवास की तलाश जैसी व्यवाहारिक चुनौतियों को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। अमेरिका आने वाले विद्यार्थियों के लिए अपनी रिहाइश का बंदोबस्त तनावपूर्ण हो सकता है। साथियों की मदद, सक्रियता के साथ तलाश और संसाधनों की जानकारी के लिए विश्वविद्यालयों के अधिकारियों के संपर्क में रहने से विद्यार्थियों को अमेरिका में अपना समय व्यतीत करने में आसानी हो सकती है।

समुदाय पर विश्वास

कभी-कभी अमेरिका आने वाले विद्यार्थी फेसबुक एवं व्हाट्सएप समूहों, क्रेगलिस्ट और स्थानीय वेबसाइटों के माध्यम से अपने रहने का बंदोबस्त कर सकते हैं। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट विद्यार्थी ध्रुव अग्रवाल के अनुसार, “जगह ढूंढ़ने के बाद भी कई तरह की मुश्किलें आ सकती हैं, मसलन, मालिकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा नंबर, अमेरिका में क्रेडिट स्कोर और किसी अमेरिकी बैंक में खाते की मांग करना। ये चिंताएं तब और बढ़ जाती हैं, जब बिना जगह को देखे बड़ा सिक्योरिटी डिपॉजिट भी जमा करना हो।”

ऐसे मामलों में साथियों का समुदाय बहुत मददगार साबित हो सकता है। अग्रवाल सलाह देते हैं, “उन विद्यार्थियों को ढूंढ़ें जो पहले से ही वहां मौजूद हैं और उनसे प्रासंगिक समूहों में जोड़ने, आवास संबंधी जानाकरियों को आपको फॉर्वर्ड करने और आपके लिए कुछ घरों को जाकर देख कर आने का अनुरोध किया जा सकता है। जब तक आप किसी उस स्थान की जांच न करा लें, तब तक कभी भी सिक्योरिटी डिपॉजिट का भुगतान न करें।”

अग्रवाल और उनके दोस्त हर साल अमेरिका आने वाले विद्यार्थियों के लिए घरों का दौरा करते हैं। वे कहते हैं, “यह एक आम सवाल है। शर्मिंदा महसूस न करें और अगले वर्ष आने वाले विद्यार्थियों के लिए अगर आप मदद करने की स्थिति में हैं, तो यह उपकार करना याद रखें।”

विभिन्न विकल्पों पर विचार

आने वाले विद्यार्थियों को विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। 2017 में एक अंडरग्रेजुएट विद्यार्थी के रूप में अमेरिका आने वाले देबानिक बसु का कहना है, “पहले शैक्षणिक वर्ष में सभी विद्यार्थियों से डॉरमेट्री में रहने की अपेक्षा की जाती है। डॉरमेट्री दोस्त बनाने और समुदाय की भावना के विकास में बहुत कारगर होती है।” वह विद्यार्थियों को कैंपस के बाहर आवास के विकल्पों पर विचार करने की सलाह देते हैं, क्योंकि अक्सर वे किफायती और सहूलियत के मामलों में बेहतर होते हैं। वह बताते हैं, “रेडिट और फेसबुक जैसे सेशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अधिकतर विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट हाउसिंग ग्रुप्स होते हैं। रिहाइश, समुदाय की भावना और अमेरिका आने से पहले अपने लिए आवास की व्यवस्था तलाशने वाले विद्यार्थियों के लिए ये समूह बेहतरीन संसाधन हो सकते हैं।”उ नका कहना है, “मेरी सबसे खास सलाह तो यही है कि मदद मांगने से परहेज मत करिए और दोस्त बनाइए। अंत में यह सिर्फ कॉलेज में शिक्षा हासिल करने तक का मामला नहीं है बल्कि स्मृतियों और अनुभवों को गढ़ने का भी सवाल है।”

तैयारी रखें और सक्रिय रहें

विद्यार्थियों को अमेरिका आने से पहले आवास के बंदोबस्त के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उदाहरण के लिए नेवाडा यूनिवर्सिटी, रेनो (यूएनआर) में ऑफिस ऑफ इंटरनेशनल स्टूडेंट्स एंड स्कॉलर्स (ओआईएसएस) के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को अस्थायी और स्थायी आवासीय विकल्पों के बारे में लिंक दिया जाता है। अक्सर यहां आने वाल विद्यार्थियों से निजी कंपनियां भी संपर्क साधती हैं और उन्हें अच्छी डील देने का वादा करती हैं। हालांकि आवास के नाम पर पैसे गंवाना भी यहां आम समस्या है।

नेवाडा यूनिवर्सिटी, रेनो में ओआईएसएस की एसोसिएट डायरेक्टर एडिलिया रॉस विद्यार्थियों को धोखाधड़ी वाले सौदों के कुछ स्पष्ट संकेतों के बारे में आगाह करती हैं। वह कहती हैं, “विद्यार्थियों को ऐसे किसी भी प्रॉपर्टी मैनेजर से सतर्क रहना चाहिए जो अग्रिम भुगतान की मांग कर रहा हो, आवास की गारंटी दे रहा हो, उन पर किसी भी चीज़ पर हस्ताक्षर करने या किसी चीज़ के प्रतिबद्ध होने के लिए दबाव डाल रहा हो या ऐसी डील पेश कर रहा हो जो देखने में बहुत अच्छी लग रही हो। ” वह बताती हैं, “इंटरनेट पर “यूएनआर ऑफ कैंपस हाउसिंग” सर्च करने पर काफी अच्छे विकल्पों के बारे में जानकारी मिल सकती है।”

ब्रोडी स्क्वेयर मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में ऑल यू केयर टू ईट डाइनिंग हॉल है। यहां विद्यार्थी अपने डाइनिंग प्लान के मुताबिक डाइनिंग हॉल की सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं। (फोटोग्राफ: साभार मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी )

विद्यार्थियों को कॉलेज पैड्स की तरफ से भी एक वेबसाइट मिलेगी- यह एक कंपनी है जिसकी विश्वविद्यालय के अंडरग्रेजुएट और ग्रेजुएट स्टूडेंट गवर्नमेंट के साथ सहभागिता है, जो ऑफ कैंपस हाउसिंग के मामलों में विद्यार्थियों की मदद करती है। वे विद्यार्थियों को रिहाइश, आवास और खाद्य सेवाओं को लेकर अगर कोई मदद चाहिए तो ओआईएसएस से संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। नेवाडा यूनिवर्सिटी रेनो में, अगर विद्यार्थी अनुरोध करते हैं तो यूनिवर्सिटी स्टाफ, खासतौर पर ओआईएसएस उनका संपर्क उनके देश के लोगों से या फिर उनकी तलाश में मददगार व्यवस्था से जुड़े लोगों से करा सकता है।

नेवाडा यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएट विद्यार्थी मोनिका भारती का कहना है कि, शुरुआती दौर के लिए ओआईएसएस बढि़या संसाधन है। उन्होंने अपने विभाग के दूसरे विद्यार्थियों से भी संपर्क किया जिन्होंने कुछ किफायती विकल्पों के बारे में सुझाया। वह बताती हैं, “ऑन कैंपस डॉरमेट्री कैंपस की सुविधाओं और दूसरे विद्यार्थियों से जुड़ने के लिए अवसरों तक पहुंच प्रदान कराती हैं जैसे कि किसी अपार्टमेंट में अधिक आजादी और अपना खाना खुद बनाने की सुविधा का मिलना।” भारती कहती हैं कि, अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को सक्रिय रहने के साथ अपनी पूरी तैयारी रखनी चाहिए। कुछ दूसरी महत्वपूर्ण बातों के बारे में सलाह देते हुए वह बताती हैं, विद्यार्थियों को किराया, सुविधाओं, ऊपरी तौर पर न दिखने वाले खर्च या फीस, लोकेशन-कैंपस से दूरी, ग्रॉसरी स्टोर्स, सार्वजनिक परिवहन, और दूसरी सुविधाएं, एवं सुरक्षा- जैसे आसपास की अपराध दर, वहां की छवि और रिहाइश में सुरक्षा उपायों के बारे में भी गौर करना चाहिए।

विश्वविद्यालय के संसाधनों का इस्तेमाल करें

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी (एमएसयू) जैसे कुछ विश्वविद्यालयों में अंडरग्रेजुएट विद्यार्थियों को पहले दो सालों तक कैंपस में रहना होता है। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में बिजनेस ऑपरेशंस, रेजिडेंस, एजुकेशन और हाउसिंग सर्विसेज़ के एसोसिएट डायरेक्टर क्रिस्टोफर सी. स्टोन सीवालिश के अनुसार, “कैंपस में रहने से यूनिवर्सिटी में मिलने वाली सुविधाओं तक विद्यार्थियों की तेजी के साथ आसान पहुंच बन जाती है।” अंडरग्रेजुएट विद्यार्थियों को प्रवेश लेने और अग्रिम पंजीकरण भुगतान करने के बाद कई सारे ई-मेल पर बहुत-सी महत्वपूर्ण जानकारियां भेजी जाती हैं। एमएसयू में ग्रेजुएट विद्यार्थियों को विभिन्न टाइम लाइंस के तहत प्रवेश दिया जाता है। स्टोन सेवालिश के अनुसार, “कभी-कभी उन्हें अगले शैक्षणिक सत्र में आवास के लिए चुने जाने पर प्रवेश दे दिया जाता है और उन्हें फिलहाल ऑफ कैंपस रिहाइश तलाशनी पड़ती है। लेकिन उन्हें हमारी वेबसाइट पर ताजा जानकारी के लिए जरूर जाते रहना चाहिए, क्योंकि हमारी मौजूदगी में बदलाव आ सकता है।” ग्रेजुएट विद्यार्थियों के साथ आश्रित जीवनसाथी और बच्चे भी हो सकते हैं। उनके लिए ,मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ कैंपस हाउसिंग वेबसाइट चलाती हैं। स्टोन-सीवालिश का कहना है, “एमएसयू में ओआईएसएस अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को लक्ष्य बना कर चल रहे घोटालों के बारे में सूचनाओं को साझा करता है और विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे, विद्यार्थी कानूनी सेवाओं के जरिए अपनी लीज़ की समीक्षा जरूर कराएं।”

पारोमिता पेन नेवाडा यूनिवर्सिटी, रेनो में, ग्लोबल मीडिया स्टडीज़ विषय में एसोसिएट प्रो़फेसर हैं।

कैबिनेट ने एक राष्ट्र, एक सदस्यता (ओएनओएस) को मंजूरी दी

प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2022 को लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में अमृत काल में हमारे देश में अनुसंधान और विकास के महत्व का उल्लेख किया था। इस अवसर पर उन्होंने “जय अनुसंधान” का आह्वान किया था>

एनईपी 2020 ने हमारे देश में उत्कृष्ट शिक्षा और विकास के लिए एक अनिवार्य शर्त के रूप में अनुसंधान की पहचान की है

भारत सरकार द्वारा अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना इस दिशा में एक कदम है

भारत को आत्मनिर्भर बनाने और विकसितभारत@2047 के विज़न के अनुरूप, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना को मंजूरी दी, जिसके तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार के अनुसंधान और विकास संस्थानों द्वारा प्रबंधित सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं को अंतरराष्ट्रीय विद्वानों के उच्च प्रभाव वाले शोध लेखों और जर्नल प्रकाशनों तक देशव्यापी पहुंच की सुविधा मिलेगी

इस पहल से लगभग 1.8 करोड़ छात्रों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और सभी विषयों के वैज्ञानिकों के लिए शीर्ष गुणवत्ता वाली विद्वत्तापूर्ण पत्रिकाओं में उपलब्ध ज्ञान का भंडार खुल जाएगा। टियर 2 और टियर 3 शहरों के छात्र भी इस सुविधा का लाभ उठाने में सक्षम होंगे, जिससे देश में मुख्य और अंतःविषय अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा

एक राष्ट्र, एक सदस्यता में कुल 30 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पत्रिका प्रकाशकों को शामिल किया गया है। इन प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित लगभग 13,000 ई-पत्रिकाएँ अब 6,300 से अधिक सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों और केंद्र सरकार के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में उपलब्ध होंगी

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के स्वायत्त अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र, सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क (इन्फ्लिबनेट) द्वारा समन्वित एक राष्ट्रीय सदस्यता के माध्यम से पत्रिकाओं तक पहुँच प्रदान की जाएगी और यह प्रक्रिया पूरी तरह से डिजिटल होगी

एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में, एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना के लिए 3 कैलेंडर वर्षों, 2025, 2026 और 2027 की अवधि के लिए कुल लगभग 6,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं

एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना वैश्विक अनुसंधान इकोसिस्टम में भारत को स्थापित करने की दिशा में समय पर उठाया गया कदम है, जो सरकारी संस्थानों में सभी छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए शोध कार्य को आसान बनायेगी।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विद्वानों के शोध लेखों और जर्नल प्रकाशन तक देशव्यापी पहुँच प्रदान करने के लिए एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना, एक राष्ट्र, एक सदस्यता को मंजूरी दे दी है। इस योजना को एक सरल, उपयोगकर्ता-अनुकूल और पूरी तरह से डिजिटल प्रक्रिया के माध्यम से संचालित किया जाएगा। यह योजना केंद्र सरकार के सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में “एक राष्ट्र, एक सदस्यता” की सुविधा प्रदान करेगी।

एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में 3 कैलेंडर वर्षों, 2025, 2026 और 2027 के लिए एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना के लिए कुल लगभग 6,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना भारत के युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक पहुँच को अधिकतम करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में पिछले एक दशक में भारत सरकार द्वारा की गई पहलों की सीमा के दायरे और पहुँच का विस्तार करेगा। यह योजना अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने और सरकारी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, शोध संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में अनुसंधान व नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए एएनआरएफ पहल की पूरक होगी।

एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना का लाभ केंद्र या राज्य सरकार के प्रबंधन के तहत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों और केंद्र सरकार के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को एक केंद्रीय एजेंसी, सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क (इन्फ्लिबनेट) द्वारा समन्वित राष्ट्रीय सदस्यता के माध्यम से प्रदान किया जाएगा। सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का एक स्वायत्त अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र है। इस सूची में 6,300 से अधिक संस्थान शामिल हैं, जिसका अर्थ है – लगभग 1.8 करोड़ छात्र, शिक्षक और शोधकर्ता संभावित रूप से एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना का लाभ उठा सकेंगे।

यह विकसितभारत@2047, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एएनआरएफ) के लक्ष्यों के अनुरूप है। यह पहल टियर 2 और टियर 3 शहरों सहित सभी विषयों के छात्रों, शिक्षकों, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के विशाल प्रवासी समुदाय के लिए विद्वत्तापूर्ण पत्रिकाओं तक पहुंच का विस्तार करेगी, जिससे देश में प्रमुख विषयों के साथ-साथ अंतःविषय अनुसंधान को भी बढ़ावा मिलेगा। एएनआरएफ समय-समय पर एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना के उपयोग तथा इन संस्थानों के भारतीय लेखकों के प्रकाशनों की समीक्षा करेगा।

उच्च शिक्षा विभाग के पास “एक राष्ट्र, एक सदस्यता” के नाम से एक एकीकृत पोर्टल होगा, जिसके माध्यम से संस्थान पत्रिकाओं तक पहुँच प्राप्त कर सकेंगे। एएनआरएफ समय-समय पर एक राष्ट्र, एक सदस्यता योजना के उपयोग तथा इन संस्थानों के भारतीय लेखकों के प्रकाशनों की समीक्षा करेगा। डीएचई और अन्य मंत्रालय, जिनके प्रबंधन में उच्च शिक्षा संस्थान और अनुसंधान एवं विकास संस्थान हैं, संस्थानों के छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के बीच एक राष्ट्र, एक सदस्यता की उपलब्धता और पहुँच के तरीके के बारे में सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) अभियान चलाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश में इस सुविधा का बेहतर उपयोग होगा। राज्य सरकारों से भी अनुरोध किया जाएगा कि वे सभी सरकारी संस्थानों के छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं द्वारा इस अनूठी सुविधा का अधिकतम उपयोग करने के लिए अपने स्तर पर अभियान चलाएँ।

पर्यावरण वैज्ञानिक हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी

छत्तीसगढ़ – झारखंड की सीमा पर, झारखंड से मात्र 12 किलोमीटर दूरी पर एक सुंदर सा शहरी गांव है –  जशपुर। यहां का भगवान श्रीराम का ‘सोग्रा – अघोरी मंदिर’ जितना प्रसिद्ध है, उतना ही आशिया का दूसरा बड़ा चर्च, जो कुनकुरी में है, प्रसिद्ध हैं। जशपुर यह साफ, सुथरा, स्वच्छ ऐसा जनजातीय जिला मुख्यालय है। जशपुर के पास से कोतेबिरा ईब नदी बहती है। स्वच्छ, शुद्ध, निर्मल जल से भरपूर..!

कुछ वर्ष पहले जशपुर नगर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का ग्रीष्मकालीन श्रमानुभव शिविर लगा था। इस दौरान शिविरार्थी छात्र-छात्राएं स्नान करने इस नदी पर आए। वहां उन्हें एक दृश्य दिखा, जिसके कारण इन शिविरार्थियों का कौतूहल जागृत हुआ।

नदी के किनारे, ढोल – ढमाके लेकर कुछ जनजातीय ग्रामीण, उत्सव जैसा कुछ कर रहे थे। इनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थी। वह ढोल की थाप के साथ कुछ गीत भी गा रहे थे। जब ये छात्र-छात्राएं पास गएं, तो उन्हें दिखा कि उस जनजातीय समूह में, एक प्रौढ़ सा दिखने वाला व्यक्ति और एक महिला लोटे जैसे पात्र में रखा जल, उस नदी में डाल रहे हैं और नदी की पूजा कर रहे हैं।

आश्चर्य से यह सब क्रिया देखने वाले छात्र-छात्राओं के समूह में छत्तीसगढ़ी बोली जानने वाले छात्र भी थे। उन्होंने उन जनजातिय लोगों से पूछा, “आप यह सब क्या कर रहे हैं?”

नदी की पूजा करने वाले उसे बुजुर्ग व्यक्ति ने बड़े प्रसन्न चेहरे से उत्तर दिया, “मेरे बेटे का विवाह होने जा रहा है। इसलिए, हम नदी मां से अनुमति लेने और क्षमा मांगने आए हैं।”

छात्र समझ नहीं सके। उन्होंने फिर पूछा, “भला आपके घर होने वाले विवाह से नदी का क्या वास्ता? उसकी क्यों अनुमति लेना?”

उस बुजुर्ग व्यक्ति को शायद यह प्रश्न ही ठीक से समझ में नहीं आया। ‘कुछ भी बेतुका प्रश्न आप पूछ रहे हैं’ ऐसा भाव लेकर उसने कहा,
“क्यों नहीं? *हमारे यहां विवाह होने जा रहा है। मंगल प्रसंग है। जात – बिरादरी से अनेक लोग आएंगे। दूर-दूर से आएंगे। पानी के लिए हम सब नदी मां पर ही निर्भर है। इसलिए इस पूरे विवाह प्रसंग मे हम नदी मां का ज्यादा जल प्रयोग करेंगे। तो नदी मां की अनुमति लेनी तो बनती है ना? और ज्यादा जल का प्रयोग होगा इसलिए क्षमा याचना भी। यह हमारी किसी भी मंगल प्रसंग पर निभाने वाली परंपरा का अंग हैं।”*

सुनने वाले छात्र-छात्राएं निःशब्द..!

*नदियों का चाहे जैसा दोहन करने वाले, उन्हें प्रदूषित करने वाले, पानी का अपव्यय करने वाले हम लोग। और आज इक्कीसवीं शताब्दी में भी, विनम्रता पूर्वक, अतिरिक्त जल के लिए नदी मां की अनुमति मांगने वाले यह लोग..!*

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संयोग से दूसरा प्रसंग भी जशपुर के पास का ही हैं। उन दिनों वनवासी कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय अध्यक्ष जगदेवराम जी उरांव थे। वे छत्तीसगढ़ में कार्यकर्ताओं के साथ जीप में किसी प्रवास पर निकले थे।

चलते-चलते काफी समय हो गया था। मार्च महीने के शुरुआती दिन थे। गर्मी बढ़ रही थी। अतः एक छायादार पेड़ के नीचे जीप रोकी गई। जगदेवराम जी और कार्यकर्ता नीचे उतरे। इतने में एक कार्यकर्ता का ध्यान उस पेड़ पर गया। आम का पेड़ था। भारी संख्या में कच्चे आम पेड़ पर लटक रहे थे। एक कार्यकर्ता ने पास में पड़ी लकड़ी से कुछ आम तोड़े, उन्हें साफ किया और खाने के लिए जगदेवराम जी और अन्य कार्यकर्ताओं को दिए।

कार्यकर्ता वो कच्चे आम खाने लगे। किंतु जगदेवराम जी ने उन्हें खाने से मना किया। कार्यकर्ताओं ने कारण पूछा, कि ‘आम के खट्टेपन के कारण तो जगदेवराम जी मना नहीं कर रहे हैं? या वह आम खाते ही नहीं?’

जगदेवराम जी ने बड़े ही सहज भाव से कहा, “आम तो मैं खाता हूं। मुझे अच्छे भी लगते हैं। किंतु अभी नहीं।

“क्यों, अभी क्या हुआ?” कार्यकर्ताओं ने पूछा।

“अभी आखा तीज (अक्षय तृतीया) नहीं हुई है ना। हम लोग आखा तीज से पहले आम नहीं खाते।” जगदेवराम जी का उत्तर।

कार्यकर्ता अचंभित। “आखा तीज का और आम खाने का क्या संबंध?”

*जगदेवराम जी फिर बड़े ही सहज भाव से बोलते हैं, “हम लोग मानते हैं कि आखा तीज से पहले आम में गुठली नहीं बनती। बिना गुठली के आम खाएंगे तो नये आम कहां से बनेंगे?”*

*कार्यकर्ता स्तब्ध..!*

*सहज रूप से भ्रूण हत्या करने वाला, भ्रूण हत्या को कानूनी जामा पहनाने वाला हमारा समाज। और आम में भी यदि गुठली नहीं बनती है तो उस ‘आम के भ्रूण’ को खाने से परहेज करने वाला जनजातीय समाज !*

*‘लोक’ के रक्त में पर्यावरण हैं..!*

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ऐसे अनेक उदाहरण है। अनगिनत हैं। यह जो जनजातीय समुदाय में ‘लोक’ बसता है, पर्यावरण यह उनके जीवन दर्शन का, जीवन शैली का ही हिस्सा हैं। इसलिए ‘पर्यावरण बचाओ’ जैसे नारे इनके समझ में नहीं आ सकते। इनको इसकी आवश्यकता ही नहीं हैं। मात्र मानव ही नहीं, तो सृष्टि के समस्त जीव जंतुओं का निसर्ग पर, प्रकृति पर अधिकार इनको मान्य हैं। इनकी रहन-सहन, इनकी सारी परंपराएं, यह निसर्ग पर, सृष्टि के चक्र पर आधारित है।

यह ‘लोक’ बिखरा हैं। पूरे देश में अनेक जनजातियों में बसता हैं। उनकी भाषा अलग हैं। खानपान अलग हैं। किंतु जीवन शैली में समानता हैं। परंपराओं में समानता है। कारण, यह सब निसर्ग के साथ तादात्म्य पाने वाले जीवन दर्शन को मानते हैं, जो हम सब का मूलाधार हैं। जल – जंगल – जमीन उनके लिए ईश्वर समान हैं।

*यही कारण हैं, कि यह निसर्ग चक्र को बहुत अच्छे से समझते हैं। कई बार हमारा मौसम विभाग, वर्षा का गलत पूर्वानुमान कर बैठता हैं। किंतु यह जो ‘लोक’ में रहने वाला जनजातीय समूह हैं, इन्हें इन सब बातों का सटीक पूर्वानुमान होता हैं।* कौवे अपना घोंसला कहां और कब बनाते हैं, इस पर हमारा ‘लोक’, वर्षा का सटीक अनुमान लगा लेता है। अगर कौवों ने मई माह में बबुल, सावर जैसे कटीले पेड़ों पर घोंसला बनाया, तो वर्षा कम होगी। किंतु यदि आम, करंज जैसे घने पेड़ों पर घोंसला बनाया, तो उस वर्ष बारिश अच्छी होगी यह निश्चित हैं। अगर घोंसला पेड़ पर पश्चिम दिशा में किया हैं, तो बारिश औसत होगी। यदि पेड़ के सबसे उंचे छोर पर घोंसला बनाया हैं, तो अकाल पड़ता हैं।

ऐसे अनेक सटीक अनुमान, ये सामान्य से दिखने वाले लोग लगाते हैं। इसका कारण हैं, इनकी पूरी जीवन शैली यह निसर्ग से एकरूप हैं। पर्यावरण पूरक हैं।

प्रकृति की इनकी जानकारी अद्भुत रहती हैं। प्रख्यात मराठी लेखक, जो वन अधिकारी भी रह चुके हैं, ऐसे मारुति चित्तमपल्ली ने बताया कि, ‘जिस वर्ष बारिश नहीं होती, अकाल पड़ता हैं, उस समय, बारिश होने से पहले ही, गर्भवती शेरनी डायसकोरिया के कंद खाकर गर्भपात कर लेती हैं। वर्षा नहीं, तो जंगल में घास नहीं उगेगी। और घास नहीं, तो स्वाभाविकता, तृणभक्षी प्राणी भी नहीं होंगे। इस परिस्थिति में शेरनी के शावकों को अपना भक्ष्य नहीं मिलेगा। खाने के लिए कुछ नहीं मिलेगा। उनकी भुखमरी होगी। यह सब सोच कर, वर्षा आने से पहले ही, जंगल की शेरनी अपना गर्भ गिरा देती हैं। जंगल, प्रकृति से एकाकार हुए लोग, यह देखकर अकाल की सटीक भविष्यवाणी करते हैं, और अपनी अलग व्यवस्था बना लेते हैं।

*यह सब अद्भुत हैं। विस्मयजनक हैं। प्रकृति के साथ इनकी तद्रुपता, हम सबके कल्पना से भी परे हैं।*

यहां ‘लोक’ का अर्थ मात्र जनजातीय समुदाय के लोग ही नहीं हैं। गांव में रहने वाले, आपके – हमारे शहर में बस्ती बनाकर रहने वाले, सभी लोग इस श्रेणी में आते हैं। इनके जीवन का स्पंदन, प्रकृति के स्पंदन के साथ समकालीन (synchronised) होता हैं। इसलिए इनको ‘पर्यावरण’ या ‘पर्यावरण बचाओ’ ऐसे शब्दों का अर्थ ही समझ में नहीं आता। कारण, पर्यावरण के साथ जीना यह तो इनके रोजमर्रा की जीवन पद्धति का अंग हैं। पर्यावरण इनके रक्त में हैं।

इस ‘लोक’ में रहने वाले अनेकों को मैंने देखा हैं, जो, ‘सस्ते मिल रहे हैं इसलिए’ प्लास्टिक का स्वीकार नहीं करते हैं।

इस लोक में रहने वाले लोग, अपनी मस्ती में जीते हैं। कृत्रिम चीजों से इन्हें तिरस्कार हैं। आज भी अनेक घरों के आंगन को यह गोबर से लिपते हैं। दीवारों पर चुने की पुताई करते हैं। इन्हें यह नहीं मालूम कि तुलसी का पौधा ऑक्सीजन छोड़ता है, जो मनुष्य प्राणी के लिए अंत्यत आवश्यक हैं। इन्हें यह भी नहीं मालूम कि यह औषधि पौधा हैं, और इससे निकलने वाले तेल में अनेक फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जिसमें टैनिन, फ्लेवोनॉयड्स, यूजिनाॅल, कपूर जैसे मानव शरीर के लिए लाभदायक तत्व हैं। इन सब की जानकारी ना होते हुए भी, बड़ी श्रद्धा से, यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाते आए हैं, और घर का पर्यावरण, अनजाने में, शुद्ध कर रहे हैं।

इनकी अनेक परंपराएं, पद्धतियां अनोखी होती है, अनमोल होती है। जैसे, मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले में किसान, अरहर (red gram) के साथ धान (rice) भी उगाते हैं। इसके कारण मिट्टी का कटाव नहीं होता हैं। अगली बार, इन फसलों को बदलकर, महुआ और काले चने की फसल लेते हैं। इसके कारण जमीन की उर्वरकता बनी रहती है, बढ़ती हैं।

मिट्टी के गुणधर्म बनाए रखने की, उर्वरकता बढ़ाने की और मिट्टी का कटाव रोकने की, यह अत्यंत प्रभावी पध्दति हैं, जो पूर्णतः प्राकृतिक हैं। लाभदायक खेती करने का यह टिकाऊ (sustainable) मॉडल हैं। मध्य प्रदेश के क्षेत्रीय कृषि कार्यालय का इस ओर ध्यान गया। इसकी जानकारी लेकर ‘इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च’ (ICAR) ने इस पद्धति को अपने ‘नेशनल एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट’ में शामिल किया। इस परियोजना का उद्देश्य, यूरिया पर निर्भरता कम करना हैं।

यह एक छोटा सा उदाहरण हैं। *ऐसी अनेक पद्धतियां, अनेक प्रक्रियाएं, अनेक परंपराएं आज भी ‘लोक’ में चल रही हैं। टिकाऊ विकास (sustainable development) के यह सब उदाहरण है, जिन्हें बडी मात्रा मे, प्रत्यक्ष धरातल पर उतारना आवश्यक हैं।*

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*इस ‘लोक’ में रहने वाले लोगों के पास परंपरागत ज्ञान का अकूत भंडार हैं। यह लोग प्राकृतिक दवाइयां से लेकर तो सब कुछ जानते हैं।*

प्रख्यात समाजसेवी और लेखक पद्मश्री गिरीश प्रभुणे एक अनुभव सुनाते हैं। उनका घुमंतू लोगों में बहुत काम हैं। सांप – नेवले की लड़ाई करवाने वाले, लड़ाने वाले घुमंतू लोगों ने उन्हें बताया, कि वह जहां जाते हैं, वहां सांप के जहर का उपाय ढूंढ निकालते हैं।

नेवले से लड़ाई करने वाले सांप जहरीले भी होते हैं। जहरीले सांप ज्यादा ताकत से, ज्यादा ऊर्जा से और ज्यादा जोश से नेवले पर आक्रमण करते हैं। इसके कारण सांप – नेवले की लड़ाई में रंग भरता हैं, और देखने वाले दर्शक, दो पैसे ज्यादा डालते हैं।

अब सांप यदि जहरीला हैं, तो सपेरे को कभी ना कभी तो काटेगा ही। नेवले को तो अनेकों बार काटेगा। इस जहरीले काट की दवाई, यह लोग जिस पद्धति से ढूंढते हैं, वह बड़ी रोचक होती हैं।

जिस नई जगह पर यह लोग जाते हैं, वहां पहुंचने पर सांप – नेवले की लड़ाई करवाते हैं। लड़ाई लड़ते हुए सांप, नेवले को काटता हैं। नेवले को खुला छोड़ा रहता हैं। ज्यादा काटने पर नेवला सरपट दौड़ लगाता हैं। उस नेवले के पीछे, इन घुमंतू लोगों के कुत्ते भागते हैं। यह कुत्ते नेवले को ट्रैक करते हैं। और कुत्तों के पीछे यह घुमंतू लोग भागते हैं।

भागते-भागते नेवला झाड़ियां ढूंढता है। ढूंढते ढूंढते वह किसी एक वनस्पति की पत्तियां चबा चबाकर खाता हैं। बस, यही है सांप के जहर पर दवाई..! यह घुमंतू लोग उस पौधे को अच्छे से देख कर रखते हैं। उस गांव में, सांप के जहर की दवाई अब उनकी जानकारी में रहती हैं।

यह सब आश्चर्यजनक है। अद्भुत है। किसी अनजाने जगह पर, नेवला बराबर जहर को काट देने वाली दवाई का पौधा कैसे ढूंढता हैं, या कल्पना से परे हैं। प्रकृति के साथ एकाकार होने का यह प्रभावी उदाहरण हैं।

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आज से कुछ दशकों पहले, कोदो – कुटकी यह गरीबों का, जनजातीय लोगों का अनाज समझा जाता था। शहरी क्षेत्र के लोगों का इस अनाज से, उन दिनों दूर-दूर तक वास्ता नहीं था।

किंतु आज ?

वैज्ञानिक परीक्षणों में यह सिद्ध हुआ कि कोदो में फेनोलिक एसिड नाम का यौगिक होता है, जो पेनक्रियाज में एमाईजेल को बढ़ाकर इंसुलिन के निर्माण को प्रोत्साहित करता हैं। शरीर में इंसुलिन की सही मात्रा शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करती हैं, जिससे डायबिटीज की स्थिति में राहत मिलती हैं। पौधों का ग्लिसमिक इंडेक्स बहुत कम होता हैं। कोदो, फाइबर का भी एक अच्छा स्रोत हैं, जो मधुमेह पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद है।

कोदो – कुटकी यह बाजरा (मिलेट) श्रेणी के अनाज हैं। यह मिलेट के सारे प्रकार, पहले ‘लोक’ का अनाज हुआ करते थे। आज भी हैं। किंतु आज मिलेट खाना यह एक स्टेटस् सिंबल बनता जा रहा हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से, वर्ष 2023 यह अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया गया। ‘लोक खाद्य’ यह अब उच्च वर्ग का अन्न भी बन रहा हैं।

*हमारे पुरखों के पास ज्ञान का अद्भुत भंडार था। गणित, विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, कला के साथ ही शरीर स्वास्थ्य की भी अदभुत जानकारी थी। लोक परंपराओं से यह जानकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती गई। इन लोक परंपराओं के कारण ही ज्ञान का यहां भंडार, कुछ अंशोंमें हम तक पहुंच सका। यह सारा ज्ञान, यह सारी ज्ञान परंपरा, पूर्णतः प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है।*

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लोक परंपराओं ने, लोक संस्कृति ने इस टिकाऊ जीवन शैली को, प्राकृतिक जीवन पद्धति को अभी तक बनाए रखा है। किंतु अब समय बदल रहा हैं। ‘लोक’ के सामने ‘पर्यावरण’ यह प्रश्न चिन्ह बनकर सामने खड़ा हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई हुई हैं। हो रही हैं। प्रकृति के साथ एकाकार होना, एकरूप होना, दिनों दिन कठिन होता जा रहा हैं। जनजातीय समुदाय को जंगलों के सहारे रहना, यह असंभव की श्रेणी में आ रहा हैं। सृष्टि का चक्र भी बिगड़ने लगा हैं।

अर्थात, सरकार ने कुछ अच्छे कानून भी बनाए हैं, जैसे पेसा (PESA – पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज एक्ट) कानून। पेसा कानून का मुख्य उद्देश्य है,  पारंपरिक प्रथाओं के अनुरूप उपयुक्त प्रशासनिक ढांचा विकसित करना। जनजातीय समुदायों की परंपराओं और रीति रिवाजों की रक्षा और संरक्षण करना। जनजातीय आवश्यकताओं के अनुरूप, विशिष्ट शक्तियों के साथ उचित स्तर पर पंचायत को सशक्त बनाना। कुल 10 राज्यों में अनुसूचित जनजातियों का प्राबल्य हैं। इसलिए वहां पेसा कानून उपयुक्त हैं। इनमें से आठ राज्यों ने पेसा कानून लागू किया हैं। किंतु उसका कार्यान्वयन या परिपालन ठीक से नहीं हो पा रहा हैं।

गांव – शहरों में जो ‘लोक’ बसता हैं, उनके सामने तकनीकी के इस बदलते दौर में अपनी परंपराएं बचाने की चुनौती हैं। इन सब का प्रत्यक्ष परिणाम पर्यावरण पर हो रहा है।

किंतु यह बात तय हैं, की प्रमाणिकता से पर्यावरण की रक्षा, यह ‘लोक’ ही कर सकेगा। इसलिए इस ‘लोक’ को सुदृढ़ बनाना, उन्हें बल देना, ताकत देना, उनकी परंपराएं जतन करने में मदद करना, यही समय की आवश्यकता है..!

–  प्रशांत पोळ

_(भाग्यनगर मे आयोजित हो रहे *लोकमंथन – २०२४* के अवसर पर प्रकाशित पुस्तक, *लोकावलोकन* में प्रकाशित लेख)_

“कारकेन” मुक्ति की एक कहानी, अपने अंदर की आवाज को खोजने की एक यात्रा: निर्देशक नेंडिंग लोडर

सिनेमा में एक गैंगस्टर को बदलने की ताकत है: ‘जिगरथंडा डबल एक्स’ के निर्देशक कार्तिक सुब्बाराज

‘बट्टो का बुलबुला’ की कहानी हरियाणा के ग्रामीण जीवन में गहराई से रची बसी है: संपादक सक्षम यादव

तीन फिल्मों, बट्टो का बुलबुला, कारकेन और जिगरथंडा डबल एक्स के कलाकार और क्रू आज गोवा में 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में एक रोचक प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए एकत्र हुए। फिल्म निर्माताओं ने अपनी-अपनी रचनात्मक यात्रा, निर्माण के दौरान सामने आई चुनौतियों और सिनेमा के भविष्य के प्रति अपने दृष्टिकोण के बारे में जानकारी साझा की।

कारकेन – जुनून और मुक्ति की यात्रा
गोआ । यहाँ आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में कारकेन के निर्देशक बेंडिंग लोड ने अपनी फिल्म के बारे में जिज्ञासा से बात की, जो सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत इच्छा के बीच फंसे एक व्यक्ति के आंतरिक संघर्ष पर आधारित है। लोडर ने कहा, “यह मुक्ति की एक कहानी है, यह अपनी अंतरात्मा की आवाज को खोजने की यात्रा के बारे में है।” लोडर ने फिल्म निर्माण में सहयोग के लिए राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) के प्रति आभार व्यक्त किया तथा अरुणाचल प्रदेश में फिल्मांकन की कठिनाई को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “राज्य में असाधारण प्रतिभाएं मौजूद हैं लेकिन उभरते फिल्म निर्माताओं के लिए पर्याप्त मंच का अभाव है। मुझे विश्वास है कि यह फिल्म अगली पीढ़ी के फिल्म निर्माताओं को अपने सपनों का अनुसरण करने और अपनी कहानियां बताने के लिए प्रेरित करेगी।”

सिनेमैटोग्राफर न्यागो ने एक सीमित स्थान में एक ही किरदार के साथ शूटिंग करने का अपना अनुभव साझा किया, यह एक ऐसी चुनौती थी जिसका सामना उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। उन्होंने कहा, “यह एक अनूठा अनुभव था जिसने एक सिनेमैटोग्राफर के रूप में मेरी सीमाओं के दायरे को आगे बढ़ाया।”

जिगरथंडा डबल एक्स – सिनेमा में गैंगस्टर को बदलने की ताकत

जिगरथंडा डबल एक्स के दूरदर्शी निर्देशक कार्तिक सुब्बाराज ने फिल्म के अंतर्निहित विषय : सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करने के लिए सिनेमा की शक्ति के बारे में बात की। सुब्बाराज ने कहा, “सिनेमा समाज को बदलने का एक बेहतरीन साधन है। इसमें एक गैंगस्टर को भी बदलने की शक्ति है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह फिल्म मानव और जानवरों के बीच संबंधों को गहराई से दर्शाती है तथा दोनों के बीच संबंध को जोड़ती है। इसके अतिरिक्त सुब्बाराज ने मुख्यधारा के व्यावसायिक सिनेमा और कला सिनेमा के बीच की रेखाओं को हलका करने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा, “यह फिल्म मुख्यधारा सिनेमा के मनोरंजन को कला सिनेमा की गहराई और अर्थ के साथ जोड़कर इन दोनों दुनियाओं को आपस में जोड़ती है।”

बट्टो का बुलबुला – हरियाणा में ग्रामीण जीवन का उत्सव

बट्टो का बुलबुला के संपादक सक्षम यादव ने पोस्ट-प्रोडक्शन के दौरान आने वाली चुनौतियों खासकर फिल्म के विस्तारित शॉट्स के कारण पर चर्चा की। श्री यादव ने कहा, “सबसे बड़ी चुनौती फिल्म के अंतर्निहित आकर्षण को बनाए रखना था, साथ ही शॉट्स की लंबाई को भी नियंत्रित करना था।”

फिल्म के फोटोग्राफी निर्देशक (डीओपी) आर्यन सिंह ने प्रामाणिकता के प्रति टीम की प्रतिबद्धता के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि यह कहानी हरियाणा के ग्रामीण जीवन में गहराई से निहित है। आर्यन सिंह ने कहा, “हमारा लक्ष्य ग्रामीण जीवन के सार को इस तरह से प्रस्तुत करना था कि वह वास्तविक, अनफिल्टर्ड और कहानी में डूब जाने वाला लगे।”

फिल्मों के बारे में

बट्टो का बुलबुला

रंगीन | 35′ | हरियाणवी | 2024

सारांश

हरियाणा के एक गांव में बुजुर्ग बट्टो अपने बिछड़े हुए दोस्त सुल्तान के साथ अक्सर शराब पीते हुए अपना दिन गुजारता है। अपनी अधिकांश जमीन बेच चुका बट्टो, गाँव छोड़ने के लिए आपनी बाकी बची जमीन भी बेचने की योजना बना रहा है। उसका चालाक दत्तक पुत्र बिट्टू उस पर जमीन के लिए दबाव डालता है, जिससे भावनात्मक उथल-पुथल मच जाती है। बट्टो का दोस्त सुल्तान लगातार सच्चाई की तलाश करता है जिसके कारण तनावपूर्ण टकराव होता है। अंततः बट्टो को सच्ची दोस्ती की ताकत और विश्वासघात के बीच के महत्व का एहसास होता है।

कलाकार और क्रू सदस्य

निर्देशक: अक्षय भारद्वाज

निर्माता: दादा लखमी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स (डीएलसी सुपवा)

छायाकार: अक्षय भारद्वाज

पटकथा लेखक : रजत करिया

संपादक: सक्षम यादव

कास्ट: कृष्ण नाटक

छायाकार: अक्षय भारद्वाज

तमिल अभिनेता शिवकार्तिकेयन खुशबू सुंदर ने कहा, दर्शकों की सीटी और ताली मेरी थेरेपी है

धैर्य, दृढ़ता और ईमानदारी की यात्रा, तमिल अभिनेता ने आईएफएफआई में अपने जीवन के सबक साझा किए
युवाओं से अभिनेता ने कहा कि एक उन्मु क्त पक्षी की तरह उड़ो, लेकिन हमेशा अपने नीड़ में लौट आओ

जब वे खचाखच भरे हॉल में पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत हुआ और गोवा में कला अकादमी का सभागार तालियों और सीटियों की आवाज से गूंज उठा। तमिल सुपरस्टार शिवकार्तिकेयन की मौजूदगी स्क्रीन पर और ऑफ-स्क्रीन दोनों जगह ऐसी ही है।

शिवकार्तिकेयन की साधारण शुरुआत से लेकर तमिल सिनेमा के सबसे चमकते सितारों में से एक बनने तक की यात्रा, धैर्य, जुनून और दृढ़ता की कहानी है। 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में बोलते हुए उन्होंने अभिनेता और राजनीतिज्ञ खुशबू सुंदर के साथ बातचीत की जिसमें उन्होंने अपने जीवन, करियर और प्रेरणाओं के बारे में बताया।

शिवकार्तिकेयन ने कहा, “शुरू से ही सिनेमा हमेशा मेरा जुनून रहा है और मैं हमेशा दर्शकों का मनोरंजन करना चाहता था।” “इसलिए, मैंने टेलीविज़न एंकरिंग से शुरुआत की, जिसने मुझे मनोरंजन के क्षेत्र में अपना करियर बनाने का मौका दिया और इसे मैंने पूरे जुनून के साथ अपनाया।”

एक मिमिक्री कलाकार के रूप में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए शिवकार्तिकेयन ने याद किया, “मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने प्रोफेसरों की नकल करता था। बाद में, जब मैंने उनसे माफ़ी मांगी तो उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और कहा कि इस प्रतिभा को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”

अभिनेता ने बताया किया कि उनके पिता का असामयिक निधन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। “मेरे पिता के निधन के बाद मैं लगभग अवसाद में चला गया था। मेरे काम ने मुझे इस अवसाद से बाहर निकाला और मेरे दर्शकों की सीटियाँ और तालियाँ मेरी थेरेपी बन गईं,” उन्होंने अपने प्रशंसकों के प्यार और समर्थन को इसका श्रेय दिया।

खुशबू सुंदर ने उनके दृढ़ संकल्प और ईमानदारी की प्रशंसा की। इसे उन्होंने उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा बताया। इससे सहमति जताते हुए शिवकार्तिकेयन ने कहा, “मुझे हमेशा से लाखों लोगों के बीच अलग दिखने की इच्छा रही है, जबकि मैं अब भी आम आदमी से जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ। जीवन बाधाओं से भरा है, लेकिन अपने जुनून से उन्हें दूर करने में मदद मिलती है। एक समय ऐसा भी था जब मुझे लगा कि हार मान लेनी चाहिए लेकिन मेरे दर्शकों के प्यार ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।”

मिमिक्री कलाकार से लेकर टेलीविज़न पर मेजबानी करने और आखिरकार तमिल सिनेमा के सबसे मशहूर अभिनेताओं में से एक शिवकार्तिकेयन ने कई भूमिकाएँ निभाई हैं। उन्होंने पार्श्व गायक, गीतकार और निर्माता के रूप में भी प्रशंसा अर्जित की है। अपने करियर विकल्पों के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया, “अपने करियर की शुरुआत में, मैंने अपने सामने आने वाले हर प्रोजेक्ट को स्वीकार किया। लेकिन अब, मुझे लगता है कि कहानियाँ मुझे चुन रही हैं।” उन्होंने डॉक्टर, डॉन और हाल ही में आई अमरन जैसी फ़िल्मों का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने वास्तविक जीवन के युद्ध नायक मुकुंद वरदराजन का किरदार निभाया था जो इस बात का उदाहरण है कि वे हाल ही में किस तरह से सार्थक भूमिकाएँ चुन रहे हैं।

हास्य को एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल करने पर चर्चा करते हुए शिवकार्तिकेयन ने कहा, “टेलीविज़न से सिनेमा में जाना कठिन था। मैंने हास्य को अपने कवच बनाया और यह महसूस किया कि यह दर्शकों को खुशी देता है, चाहे वह छोटे पर्दे पर हो या बड़े पर्दे पर।”

युवा पीढ़ी के लिए, उन्होंने बस इतना ही कहा: “एक उन्मुक्त पक्षी की तरह उड़ो, लेकिन हमेशा अपने नीड़ में लौट आओ। मेरे लिए, मेरा परिवार मेरा नीड़ है और मेरा मानना है कि जड़ों से जुड़े रहना बहुत ज़रूरी है। हमारे माता-पिता हमारे लिए केवल सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं।” यह सत्र एक असाधारण प्रतिभा का मंगलगान था जिनकी कहानी लाखों लोगों के दिलों में गूंजती है। मध्यम वर्गीय परवरिश से लेकर तमिल सिनेमा के शिखर तक शिवकार्तिकेयन की यात्रा जुनून, लचीलापन और सपनों की शक्ति की एक प्रेरक कहानी है।