Friday, March 7, 2025
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भारतीय डाक विभाग द्वारा ‘कस्टमाइज्ड डाक टिकट’ और ‘विशेष आवरण’ जारी

राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान’ पर जारी डाक टिकट से इसकी लोकप्रियता का देश-विदेश में होगा और भी विस्तार-चीफ पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

भारतीय डाक विभाग द्वारा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के 25वें वर्ष समारोह पर एक ‘कस्टमाइज्ड डाक टिकट’ और एक विशेष आवरण व विरूपण जारी किया गया। अहमदाबाद स्थित विज्ञान भवन, साइंस सिटी में 2 मार्च 2025 को आयोजित एक समारोह में गुजरात परिमंडल के चीफ पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने गुजरात सरकार में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री (राज्य मंत्री) श्री जगदीश विश्वकर्मा एवं राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे संग इसे जारी किया। इस अवसर पर डॉ. गुलशन राय, चेयरमैन, एनआईएफ इनक्यूबेशन एंड एंटरप्रेन्योरशिप काउंसिल, डॉ. अरविन्द रानाडे, निदेशक, राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान, श्री पीयूष रजक, प्रवर अधीक्षक डाकघर, गांधीनगर मंडल भी मौजूद रहे। इस समारोह में डॉ. जितेंद्र सिंह, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), भारत सरकार ने भी वर्चुअली जुड़कर अपनी शुभकामनाएँ दीं।

गुजरात सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री (राज्य मंत्री) श्री जगदीश विश्वकर्मा ने कहा कि गुजरात राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से नई टेक्नोलॉजी को अपनाते हुए तमाम नवाचार कर रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी जी के नेतृत्व में देश आज नित् नए आयाम रच रहा है। उद्योग जगत को भी इन नवोन्मेष का जमीनी स्तर पर खूब लाभ मिल रहा है। ‘आत्मनिर्भर भारत‘ एवं ‘विकसित भारत’ की संकल्पना के साथ स्किल डेवलेपमेंट, इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस ने तमाम नए रोजगारों को जन्म दिया है। राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के रजत जयंती समारोह पर भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट और विशेष आवरण जारी करके इसकी महत्त्ता को बखूबी प्रतिपादित किया है।

इस डाक टिकट के संबंध में चीफ पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि गुजरात की राजधानी  गांधीनगर में ग्रामभारती,अमरापुर स्थित राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने अपने 25 वर्षों के सफर में सृजनात्मकता और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए नव-प्रवर्तकों को सशक्त बनाने, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा देने और भारत को ज्ञान-केंद्रित समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में  इस उपलक्ष्य में जारी यह ‘कस्टमाइज्ड डाक टिकट’ और ‘विशेष आवरण’, नवाचार को प्रोत्साहित करने, सृजनशीलता के विकास को बढ़ावा देने तथा ‘आत्मनिर्भर भारत‘ एवं ‘विकसित भारत’ के लिए स्थायी व दीर्घकालिक समाधानों का समर्थन करने में इसके दूरदर्शितापूर्ण सफर को रेखांकित करता है।

चीफ पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक टिकट किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति और विरासत के संवाहक होते हैं। समाज में नित् हो रहे विकास को डाक टिकटों के आईने में बखूबी देखा जा सकता है। राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान पर कस्टमाइज्ड डाक टिकट की 5000 शीट मुद्रित की गई हैं, जिसमें कुल 60 हजार डाक टिकटें हैं। विशेष आवरण को इन्हीं डाक टिकटों को लगाकर विरूपित किया गया है। इस डाक टिकट और विरूपण के माध्यम से राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान की लोकप्रियता देश-विदेश में और भी विस्तृत होगी।

राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-भारत की स्थापना 1 मार्च, 2000 को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से की गई ताकि प्रौद्योगिकी संबंधी नवोन्मेष और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान को जमीनी स्तर पर बढ़ावा दिया जा सके। अपनी स्थापना के बाद से यह प्रतिष्ठान जमीनी स्तर के विचारों को प्रभावी समाधानों में रूपांतरित करने में सहायक रहा है।

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के परिसरों में चार वर्षीय शास्त्रीय पाठ्यक्रम

शास्त्री( यूजी)और एक वर्षीय आचार्य(पीजी) पाठ्यक्रम की शुरुआत हो जाएगी। नई शिक्षा नीति-2020 के अंतर्गत शास्त्री स्नातक, शास्त्री प्रतिष्ठा और आचार्य की उपाधियां सेमेस्टर पूरे करने के आधार पर दी जाएंगी। चार वर्षीय शास्त्री में सभी सेमेस्टरों में मेजर-माइनर(वेद,ज्योतिष,व्याकरण,साहित्य,दर्शन,बौद्ध दर्शन,कश्मीर शैव दर्शन,धर्मशास्त्र,अद्वैत वेदांत,पुराणेतिहास,पालि प्राकृत इत्यादि)विषयों के साथ आधुनिक विषय राजनीति विज्ञान,इतिहास,अंग्रेजी,हिन्दी, संगणक आदि के साथ-साथ कौशल विकास विषयों की भी पढ़ाई करनी होगी। विश्वविद्यालय की एन ई पी पाठ्यक्रम निर्धारण समिति की रिपोर्ट और सुझावों को विश्वविद्यालय सहित आदर्श महाविद्यालयों और सभी संबद्ध महाविद्यालयों में लागू कर दिया गया है।
नई व्यवस्था के अनुसार शास्त्री में दो सेमेस्टर पूरे करने वाले छात्रों को सर्टिफिकेट, चार सेमेस्टर पूरे करने पर डिप्लोमा, छह सेमेस्टर पर शास्त्री (स्नातक) की डिग्री दी जाएगी। आठ सेमेस्टर की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को शास्त्री प्रतिष्ठा की उपाधि मिलेगी। दस सेमेस्टर पूरे करने वालों को सीधे आचार्य या स्नातकोत्तर की डिग्री दी जाएगी। इन छात्रों को शोध के लिए अर्ह माना जाएगा। सभी सेमेस्टरों में मुख्य विषय 100 अंकों के होंगे, जिनमें 60 अंक की लिखित परीक्षा और 40 अंक का सतत मूल्यांकन होगा। छात्रों को माइनर कोर्स के साथ ही इंटर डिसिप्लिनरी विषय और कौशल एवं दक्षता विकास, नैतिक मूल्य विषयों की पढ़ाई भी करनी होगी। दक्षता विकास में भाषाएं और कौशल विकास में योग, कंप्यूटर, संगीत, नाट्य कर्मकांड, ज्योतिष, वास्तु आदि विषय होंगे। पाठ्यक्रम में सभी छात्रों के लिए प्रशिक्षुता अनिवार्य है। जिससे छात्रों को रोजगार के लिए उचित माध्यम प्राप्त हो सके।

‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं अनुसंधान की दृष्टि’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी अप्रैल में

भोपाल। ‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं अनुसंधान की दृष्टि’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन शोध पत्रिका ‘समागम’ रजत जयंती वर्ष  के अवसर पर किया जाएगा। इस आशय की जानकारी संपादक प्रोफेसर मनोज कुमार ने दी। यह संगोष्ठी अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में किया जाएगा।
उन्होंने कहना था कि शोध एवं संदर्भ की मासिक पत्रिका ‘समागम’ का प्रकाशन के 25वें वर्ष में प्रवेश कर जाना एक सुखद अनुभूति है. वर्ष 2000 में ‘समागम’ का प्रकाशन आरंभ हुआ था। मीडिया, हिन्दी साहित्य एवं सामाजिक सरोकार पर केन्द्रित ‘समागम’ ने उन विषयों को चुना जिन्हें आमतौर पर स्थान नहीं मिलता है.
‘समागम’  ने विविध विषयों यथा सिनेमा के सौ वर्ष, महिला सशक्तिकरण के सौ वर्ष, चम्पारण आंदोलन के सौ वर्ष, महात्मा गांधी के ड़ेढ सौ वर्ष पूर्ण होने के साथ लोकमाता देवी अहिल्या के 300 वर्ष पर विशेष अंक का प्रकाशन किया गया. मीडिया के विविध विषयों के साथ पत्रकारिता के पुरखा यथा राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी, राहुल बारपुते सहित अनेक पर अंक का प्रकाशन किया गया. सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर भी ‘समागम’  के अंक का प्रकाशन किया गया.

अखिल भारतीय पूर्णकालिक कार्यकर्ता अभ्‍यास वर्ग का शुभारंभ

भोपाल। विद्या भारती के 05 दिवसीय अखिल भारतीय पूर्णकालिक अभ्यास वर्ग के महाकुम्भ में आज विभिन्न प्रदर्शनी का सोमवार को शारदा विहार भोपाल मे उद्घाटन किया गया। उद्घाटन के अवसर पर मुख्य रूप से उपस्थित रहे श्री विश्वास कैलाश सारंग खेल एवं युवा कल्याण, सहकारिता मंत्री मध्यप्रदेश शासन, श्री दूसि रामकृष्ण राव विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष, श्री गोविंदचंद महंत विद्या भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री, श्री यतीन्द्र शर्मा, श्री श्रीराम आरावकर विद्या भारती के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री, श्री निखिलेश महेश्‍वरी विद्या भारती मध्‍यभारत प्रांत के संगठन मंत्री व विद्या भारती के अन्य पदाधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

तीन विशेष प्रदर्शनियाँ – संस्कृति, डिजिटल उपलब्धियाँ और शिशु वाटिका
संस्कृति प्रदर्शनी – लोकमाता अहिल्याबाई होल्‍कर की 300वी जयंती के अवसर पर उनके व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व पर आधारित है। मध्‍यप्रदेश की गौरव वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वी जयंती के अवसर पर उनके शौर्य को दर्शाते हुए प्रदर्शनी है साथ ही मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक, धार्मिक व दार्शनिक धरोहरों की महत्ता को दर्शाती हुई मनमोहक प्रदर्शनी लगाई गई हैं।
डिजिटल उपलब्धियाँ प्रदर्शनी – डिजिटल प्रदर्शनी मे विद्या भारती द्वारा वर्षभर बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु की जाने वाली गतिविधियाँ व अन्‍य सामाजिक सरोकार एवं शैक्षिक कार्यक्रमों की जानकारी इस प्र‍दर्शनी में दी गई है।
शिशु वाटिका प्रदर्शनी –विद्या भारती की शिशु शिक्षा की 12 शैक्षिक व्यवस्थाओं को प्रदर्शित किया गया, जिससे 12 शैक्षिक व्यवस्थाओं के माध्यम से शिशु को खेल-खेल में शिक्षा के माध्‍यम से सर्वांगीण विकास की अवधारणा को प्रदर्शित करती है।

विद्या भारती के कार्यों की सराहना –
प्रदर्शनियों के अवलोकन के पश्चात मंत्री श्री विश्वास कैलाश सारंग ने मीडिया से चर्चा करते हुए विद्या भारती के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि सरस्वती शिशु मंदिर केवल शिक्षा प्रदान करने का कार्य नहीं कर रहे, बल्कि वे संस्कार केंद्र के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने यह भी आशा व्यक्त की कि विद्या भारती का यह अखिल भारतीय पूर्णकालिक कार्यकर्ता प्रशिक्षण वर्ग नई शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाएगा।

प्रचार विभाग
विद्या भारती मध्‍यभारत
संपर्क सूत्र –
डॉ आशीष जोशी 942840000
चंद्रहंस पाठक 9425652963

यूँ शुरू हुआ था विक्रम महोत्सव ! विक्रम भारत का सोया हुआ पराक्रम था !

भारत ग़ुलाम था , और हमें इतिहास में पढ़ाया जा रहा था की हम सदियों से ग़ुलाम रहें हैं कभी शक और हुन् के कभी मुग़ल और कभी अंग्रजों के हम सदियों से लूटे पिटे हारे थके जूँवारी हैं पाँच सौ साल हम पर मुग़लो ने शासन किया और दो सौ साल से अंग्रेज़ हम पर शासन करते आ रहें थे ! यह बात हैं १९४० के आसपास की उज्जयिनी के क्रांतिकारी युवा सूर्यनारायण व्यास ने , जिनका प्रचलित संवत् भी धीरे धीरे लोग भूलते जा रहें थे इतिहास से ऐसे पराक्रमी चरित्र “ विक्रम” के नाम पर उज्जयिनी से एक मासिक पत्रिका “ विक्रम “ का प्रकाशन आरम्भ किया चूँकि उनका अपना प्रिंटिंग प्रेस था जहाँ से वे अपने पूज्य पिता महा महोपाध्याय पंडित नारायण व्यास जी के नाम पर “ नारायण विजय पंचांग “ अपने छोटे भाई के साथ प्रकाशित करते ही थे !
इधर  विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने जा रहें थे और विक्रमादित्य के नाम पर राष्ट्र में कोई हलचल नहीं थी उन्होंने विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर “ विक्रम द्वि सहस्त्राब्दी महोत्सव “ की योजना बनायी और प्रथ्वी राज कपूर को ले कर सारे राष्ट्र में जागृति फैलाने “ विक्रमादित्य “ फ़िल्म का निर्माण शुरू कर दिया सारे देश में उनकी इस योजना का सम्यक् स्वागत हुआ उन्हें सबसे पहले कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी से सहयोग मिला , महाराजा देवास ने योजना सुन कर कहा सारे सूत्र उनके हाथ में रहें तो वे सहयोग देंगे तब तक वीर साँवरकर ने भी अपने पत्र में इस योजना की प्रशंसा कर दी चूँकि पंडित सूर्यनारायण व्यास आज़ादी के पहले ११४ स्टेट के राज्य ज्योतिषी भी थे उनकी इस योजना का सारे देश में सम्यक् स्वागत हुआ और महाराजा ग्वालियर ने उन्हें ग्वालियर बुला भेजा चार दिन घंटों घंटों विचार विमर्श हुआ और अंत में व्यास जी के सुझाव पर उज्जयिनी से ले कर मुंबई तक विक्रम महोत्सव मनाना स्वीकार हुआ ।
व्यास जी विक्रम के नाम पर एक विश्विद्यालय , शहर में एक भी भव्य सभागार नहीं था पहले भी प्रथ्वी राज कपूर आये थे तो महाराज वाडॉ रीगल टाकीज कैलाश टा कीज में पैसा पठान दीवार नाटक खेल समारोह के लिए चन्दा एकत्र किया गया था तो विक्रम के नाम पर एक भव्य सभागार “ विक्रम कीर्ति मंदिर “ बनाने का विचार किया , भविष्यदृष्टा व्यास जी जानते थे दस साल के अंदर हम स्वतंत्र तो हो जायेंगे पर स्वतृंतता उपरांत भी मानसिक ग़ुलामी और सांस्कृतिक दासता से मुक्त नहीं हो पायेंगे , अत: १९२८ से ही उन्होंने उज्जयिनी में अखिल भारतीय कालिदास समारोह मनाना शुरू कर दिया था , भारतीय रंगमंच की इस सांस्कृतिक आधारशिला इस समारोह में भारत और संसार के प्राय: सभी महान लेखक कलाकार राजनेता बुद्धिजीवी चित्रकार संगीतकार गायक अब तक हिस्सा ले चुके हैं आजादी के बाद तक प्रथम राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से लेकर प्राय सभी बड़े राजनेता इस समारोह में आये हैं भारत से पहले सोवियत रूस में पंडित सूर्यनारायण व्यास के प्रयास से डाक टिकट जारी हुआ ।
भारत में भी बाद में उन्हीं के प्रयास से कालिदास पर डाक टिकट जारी हुआ कवि कालिदास नामक फ़ीचर फ़िल्म उन्ही की प्रेरणा से बनी और भारत भूषण निरुपा रॉय को ले कर बनी इस फ़िल्म को उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद जी राष्ट्र पति से टेक्स फ्री करवा कर सारे देश में एक साथ प्रसारित प्रदर्शित की यह फ़िल्म अब भी यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं उनके जीवन की सारी संचित निधि के दान द्वारा आज उज्जयिनी में स्थापित कालिदास अकादेमी उनके सपनों का साकार ज्योतिर्बिंब हैं आज भी प्रति वर्ष मनाये जाने वाला अखिल भारतीय कालिदास समारोह उनका जीवंत समारक हैं ! प्रखर पत्रकार क्रांतिकारी पंडित व्यास ने वर्ष १९४२ में उज्जैन से “ विक्रम”मासिक आरम्भ किया और उसके माध्यम से सारे राष्ट्र के सोये पराक्रम को जगाने का उपक्रम किया विक्रम संवत् के दो हज़ार वर्ष पूर्ण होने पर ११४ राजा महाराजा इक्ट्ठा कर विक्रम महोत्सव मनाना आरंभ किया ।
आज उज्जयिनी में स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर उनके इसी महान अवदान की कीर्ति गाथा हैं अंग्रेज़ इतिहासकार इस बात से परेशान थे की अगर विक्रम एक ऐतिहासिक चरित्र की तरह स्थापित हो जाता हैं तो सिकन्दर महान अलेक्जेंड्रर ग्रेट और जूलियस सीजर के किस्से किस से कहेंगे कौन मानेगा , तब उनके इतिहासकारों ने “ विक्रमादित्य को एक काल्पनिक चरित्र कह कर नकार दिया और एक मिथक और चलाया की विक्रमादित्य एक उपाधि थी जिसे अनेक राजाओं ने धारण किया था ,इन सबका उत्तर देने के लिए इसी समारोह में हिंदी मराठी अग्रेंजी में पंडित सूर्यनारायण व्यास के संपादन में हिंदी मराठी अग्रेंजी में तीन खंड में विक्रम स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन किया गया।  दो हज़ार पृष्ठ के इस महान ग्रंथ में भारत ही नहीं संसार के लगभग सभी महान विद्वान से उन्होंने उज्जयिनी विक्रम और कालिदास पर शोध पूर्ण लेख लिखवाये प्रामाणिक लेख लिखवाए वर्ष दो हज़ार दो में प्रधान मंत्री भवन में पंडित सूर्यनारायण व्यास पर डाकटिकट जारी करते समय अटल विहारी वाजपेयी ने भी कहा था – यह इतिहास का महान तम कार्य था , मैं भी समझता था जो हिंदी में हैं वही मराठी वही अग्रेंजी में हैं लेकिन अद्ध्यन करने के बाद मालूम हुआ यह तीन पृथक पृथक भाषा में लिखे स्वतंत्र ग्रंथ हैं विक्रमादित्य में , अब अंग्रेजों को इस आयोजन में क्रांति की बू भी दिखी क्योंकि ४२ की क्रांति भी आरंभ हो गई थी और इसी समारोह के आयोजक पंडित सूर्यनारायण व्यास अंग्रेजों के ख़िलाफ़ ४२ मीटर बैंड पर गुप्त रेडियो स्टेशन भी अंग्रेजों के ख़िलाफ़ चलाते थे।
इसी दरम्यान मिया जिन्ना को इस आयोजन में हिंदू राजाओं का इकट्ठा होना नहीं पसंद आया उन्होंने लॉर्ड वेवल को भड़काया की इस आयोजन को बंद करवाया जाय , महाराज सिंधिया ने पंडित व्यास को आयोजन धीमा करने को कहा विक्रम स्मृति स्तंभ का काम रुक गया , भारती भवन उज्जयिनी से हरसिध्दि मार्ग इसी आयोजन से मनाया गया था उज्जयिनी के सभी मंदिरों में इस भव्य आयोजन के अवसर पर पुननिर्माण जीर्णोद्धार कार्य आरंभ हो गये थे जिस पर संस्कृत में सूर्यनारायण व्यास ने यह दो पंक्ति रच कर अंकित करवा दी थी विक्रम की प्रमाणिकता ऐतिहासिकता पर पंडित सूर्यनारायण व्यास निरंतर लिख कर अंग्रेज़ इतिहासकारों को मुंहतोड़ उत्तर दे ही रहे थे , विक्रम कीर्ति मंदिर स्थापित कर उन्होंने महाकाल मंदिर में उज्जयिनी की पहली खुदाई से प्राप्त पुरातत्व प्रमाण रखवाये थे ।
वे अपने ही काल में ख़ुद के द्वारा स्थापित सिंधिया शोध प्रतिष्ठान विगत वर्षों में महाकाल में रखवायी सारी प्रतिमाओं का संग्रहालय बना दिया , बाद के काल में उनके सुयोग्य शिष्य डॉ विष्णु श्री धर वाकनकर ने विक्रम के काल की सोने की मुद्रा खोज कर उनकी शोध को प्रमाणिकता ही दी अब उनका लक्ष्य विक्रम को जन जन तक पहुचाना था तो उन्होंने प्रथ्वी राज कपूर को प्रेम अदीब रत्न माला बाबूराव पेंढ़ारकर को ले कर “ विक्रमादित्य “ विजय भट्ट के निर्देशन में बनायी इस फ़िल्म और कवि कालिदास फ़िल्म दोनों फ़िल्म ने रजत जयंती मनायी आज की नई पीढ़ी तो संभवत: कल्पना भी नहीं कर सकती की कैसे सारी उज्जयिनी नगरी दुल्हन की तरह सज धज गई थी अपने निज विक्रम के स्वागत के लिये सारा नगर रंग बिरंगी पताकाओ से सज गया जिस पर पराक्रमी विक्रम का चित्र था ,वही चित्र जो बाद के काल में विक्रम का मुख पृष्ठ और संपादकीय पृष्ठ का चित्र बनता सजता सँवरता रहा ये और विक्रम का जो चित्र विक्रमादित्य फ़िल्म के कवर से ले कर आज प्रचलन में हैं वे सब महान चित्रकार – कनुभाई देसाई और रविशंकर रावल ने व्यासजी से गहन विचार विमर्श कर बनाये थे ।
आज भी मूल चित्र मेरे पास सुरक्षित हैं , नवरत्न के जो चित्र आज प्रचलन में हैं वे भी रविशंकर रावल ने बनाये थे इधर विगत ७५ साल से उसकी प्रति कृति प्रति कृति बजार में इतनी आ गई की लोग नक़ल को ही असल समझ बैठे , सारे देश में घूम घूम कर महान विद्वान लोगो से विक्रम कालिदास उज्जयिनी पर शोध लेख लिखवाये गये जिनमे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन डॉ भगवत शरण उपध्याय वि वा मीराशी वासुदेव शरण अग्रवाल डी सी मजूमदार जैसे असंख्य महान नाम थे ।
मैथिली शरण गुप्त ने अपने हस्त लेख में – दो हज़ार संवत्सर बीते हैं / निज विक्रम बिना हम मरे मरे जीते हैं / नित्य नये शक और हूँन हमारे जीवन रस पीते हैं , होकर भी हुए क्या हम उनके मन चीते हैं ? / भरे हुए हैं हृदय हमारें / हाथ हमारे रिते हैं , जो विक्रम स्मृति ग्रंथ में व्यास जी ने सबसे आगे प्रकाशित की यूँ व्यास जी के अनुरोध पर इस से पूर्व कवि वर रवींद्रनाथ टेगोर उज्जयिनी कविता लिख चुके थे और उज्जयिनी भारती भवन रहते हुए नागार्जुन – कालिदास सच सच बतलाना , अज रोया था या तुम रोये थे लिख चुके थे।
 विक्रम स्मृति ग्रंथ कैसे तैयार हुआ उसके बारे में डॉ. शिव मंगल सिंह सुमन एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते थे उन दिनों वे ग्वालियर में क्वींस विक्टोरिया कालेज में थे और महापंडित राहुल जी आये हुए थे चालीस बरस के सूर्यनारायण व्यास विक्रमादित्य फ़िल्म के सेट से दिल्ली आये और दिल्ली से सड़क मार्ग से ग्वालियर आ कर राहुल जी को पकड़ा -विक्रम पर आपका लेख लिये बग़ैर नहीं जाऊँगा ! डॉ सुमन बड़े गर्व से और चाव से बताते थे -राहुल जी हमारी हॉस्टल के बरामदे में ईक गमझा मुँह पर ओढ़ कर बैठ गये – मैं बोलता हूँ सुमन लिखेगा और आज आप विक्रम पर मेरा लेख ले कर ही जाएँगे व्यास जी ! डॉ सुमन बताते थे वे दो घंटे आँख पर गमछा डाले बोलते रहें मैं लिखता रहा और यूँ – त्रिविक्रम ! लेख तैयार हुआ , सुमन जी बताते थे कैसे व्यास जी सारा खाना पीना छोड़ कर दीवाने की तरह विक्रम महोत्सव और कालिदास समारोह के लिये सारे देश में दौड़ते फिरते थेछ
 विक्रमादित्य फ़िल्म की तो और अजब ग़ज़ब अनूठी कथा हैं – यह जो काल्पनिक गल्प उड़ा दी गई हैं की पृथ्वीराज कपूर मुग़ल ए आज़म के समय बादशाह अकबर के भेस में प्रजा का हाल जान ने सेट से बाहर निकल जाते वास्तव में यह विक्रमादित्य की बात हैं वे उज्जयिनी में विक्रमादित्य के भेस में प्रजा का हाल जानने निकल जाते थे देर रात अभिनय को उन्होंने इतना जीवंत कर दिया था उनका और फ़िल्म का क़िस्सा आगे कभी लिखेंगे लेकिन ख़ुद बादशाह अकबर ने सचमुच के अकबर ने सम्राट विक्रमादित्य की अनेक अच्छी बात उठायी और अनुसरण किया था । मसलन, विक्रमादित्य ने “ विक्रम संवत् “ प्रवर्तन किया था ( जो संवत् २००० आते आते लोग भूल गए थे जिसे इस समारोह से पंडित व्यास ने सारे देश में पुनर्जीवित किया) उसी की तर्ज पर अकबर बादशाह ने “ दिन ए इलाही “ संवत् चलाया यह और बात की यह चला नहीं। विक्रम संवत् आज तक चल रहा है।
 विक्रमादित्य के नवरत्न – कालिदास वराहमिहिर शंकु वैताल भट्ट क्षपणक की तर्ज पर बादशाह अकबर ने भी अपने दरबार में -तानसेन बीरबल टोडर मल नवरत्न रखें यह पूरा विक्रमादित्य फ़िल्म में काम करने के बदले प्रथ्वी राज कपूर ने व्यास जी की मित्रता वश कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था , व्यास जी उनका यह कर्ज उतारा जब प्रथम राष्ट्रपति ने पंडित सूर्य नारायण व्यास को “ पद्मभूषण “ साहित्य शिक्षा संस्कृति में योगदान के लिये प्रदान किया तो वे चाहते थे व्यास जी राज्य सभा में भी आये वाहन बालकृष्ण शर्मा नवीन मैथिली शरण गुप्त पहले ही मौजूद थे , व्यास जी ने इस अनुरोध को यह कह कर बाबू से प्रथ्वी राज कपूर के लिए मौड़ दिया की बाबू ! कला जगत से अब तक आपने किसी को राज्य सभा में सम्मान दिया नहीं हैं और इस तरह पृथ्वीराज कपूर राज्य सभा में विराजित हुए।
इधर कुछ अरसे से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव ने इस विक्रम महोत्सव को पुनर्जीवित कर दिया हैं ,विक्रम स्मृति ग्रंथ को भी पुन: प्रकाशित किया हैं उनके साथ उनके सलाहकार श्री राम तिवारी भारती भवन से बरसों से जुड़े रहें हैं बल्कि पंडित सूर्यनारायण व्यास के देहावसान के केवल आधे घंटे पूर्व उनका अंतिम साक्षात्कार भी दिनमान के लिए उन्होंने ही लिया था।
मुख्यमंत्री मोहन जी मेरे परम प्रिय अनुज वत हैं जब मैं आल इंडिया रेडियो का अतिरिक्त महानिदेशक था वे इस आयोजन की रूप रेखा ले कर मुझसे मिलने दिल्ली आये थे उनकी आँखों में उज्जयिनी के प्रति जो अनुराग मैंने देखा था निसंकोच कह सकता हूँ पंडित सूर्यनारायण व्यास उन्हें पुत्र व त स्नेह ही देते और देते क्यों नहीं नई पीढ़ी को उसके सोये हुए पराक्रम को विक्रम का नाम ही पर्याप्त हैं ।
हम भूल न जाये विक्रम संवत् दो हज़ार का वह भव्य विक्रम महोत्सव विक्रम द्वि सहस्त्राब्दी समारोह इसलिए उसे बार बार याद करना जरूरी हैं इस पहले आयोजन से जुड़े अनेक रोचक तथ्य बेहद दिलचस्प हैं मसलन हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को “ मुहूर्त “ शब्द भी इसी महान आयोजन से पहली बार मिला , आज फ़िल्म इंडस्ट्री की कोई भी फ़िल्म बग़ैर मुहूर्त के शुरू नहीं होती , वस्तुतः मुहूर्त में कोई विश्वास करता नहीं था तब के आसिफ़ या महबूब सा या कमाल अमरोही सभी मुस्लिम थे , जब पंडित सूर्यनारायण व्यास ने विजय भट्ट को “ विक्रमादित्य “ फ़िल्म के निर्माण का काम सौंपा पृथ्वीराज राज कपूर को मुख्य भूमिका नायक विक्रम के अभिनय के लिए मना लिया तो चूँकि व्यास जी अनेक राजा महाराजाओ के गुरु भी थे उन सबको भी विक्रम महोत्सव में मुंबई बुलाया और उज्जयिनी से पंडित ले कर के मुंबई में “ अमृत मुहूर्त” में शुभ मुहूर्त में क्लेप दियाछ
 उस समय तो मुंबई इंडस्ट्री में इस बात की मजाक भी बनायी गई , और बाद में जब “ विक्रमादित्य “ ने स्वर्ण जयंती मना ली तो प्राय: सभी फ़िल्म निर्माता निर्देशक व्यास जी से “ मुहूर्त “ निकलवाने उज्जैन तक आने लगे और यूँ परम्परागत शुरू हुआ शुभ कार्य का मुहूर्त फ़िल्म इंडस्ट्री की भी परम्परा बन गया ! इस भव्य आयोजन से जुड़े कुछ दर्दनाक मर्मनाक पहलू भी हैं मसलन लॉर्ड वेवल जिन्ना के विरोध के कारण राजा महाराजों ने आयोजन से हाथ खेंच लिए जिन्ना ने साँवरकर के आयोजन की प्रशंसा से चिढ़ कर इसे हिंदू आयोजन बता कर विरोध किया जबकि विक्रमादित्य भारत के सोए पराक्रम को जगाने का नाम था , लॉर्ड वेवल ने इसे अंग्रेज़ विरोधी मानकर महाराजा सिंधिया से विरोध जताया तब घनश्याम दास बिरला द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय के लिए भेजे दस लाख रुपये जो उज्जयिनी के आयोजन के लिए ईयर मार्क थे उस से ग्वालियर में मेडिकल कालेज बना लिया गया इतना ही नहीं ग्वालियर से ज़्यादा पैसा मालवा का था ।
सर सेठ हुकुमचंद द्वारा व्यास जी के अनुरोध पर फिर एक बड़ी रकम दी गई जिस से विक्रम विश्वविद्यालय बना पर इस अचानक आए विरोध और अवरोध से पूर्व विक्रम विश्व विद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर विक्रम स्मृति ग्रंथ का काम तो हो गया था  मगर विक्रम स्मृति स्तम्भ का काम रह गया जो आज तक बना नहीं।  उम्मीद ही नहीं विश्वास हैं प्रिय यशस्वी मुख्यमंत्री मोहन यादव जैसे उज्जयिनी का मेडिकल कालेज ले आए “ विक्रम समृति स्तंभ “ भी एक दिन बना ही देंगे !
कवि कालिदास फ़िल्म तो आज भी यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं जिसमे पंडित सूर्यनारायण व्यास के महान योगदान का भारत भूषण के स्वर में उल्लेख किया गया हैं बाद के काल में पद्म भूषण पंडित व्यास के प्रयास से डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस फ़िल्म को सारे देश में टेक्स फ्री कर दिया था और फ़िल्म ने री रिलीज़ ( जो फ़ेशन आज फिर आई हैं ) स्वर्ण जयंती मनायी दूरदर्शन पर भी मैंने प्राय: महाकाल सवारी रक्षा बंधन पर प्रति वर्ष दिखायी !
याद रखें अब यह कहा जाता हैं – मेरी काम भाग मिल्ख्या भाग या हालीवुड में बायोपिक शुरू हुआ ग़लत हैं – कवि कालिदास और विक्रमादित्य पहले बायोपिक ही थे , विक्रमादित्य की कहानी दर्दनाक हैं , १९८० में मैंने स्वयं विजय भट्ट के साथ बैठ इसे देखा था , आज उनके परिजन महेश भट्ट आलिया भट्ट तक को इस फ़िल्म के बारे में कुछ पता नहीं। शशि कपूर के पृथ्वी थियेटर में मैंने स्वयं इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट और दुर्लभ चित्र उनके पास देखे थे आज कुछ भी उपलब्ध नहीं राष्ट्रीय संग्रहालय से भी फ़िल्म के प्रिंट ग़ायब हैं कुछ अंदर के स्रोत बताते हैं की – के आसिफ़ की मुग़ल ए आज़म को पहली ऐतिहासिक फ़िल्म सिद्ध करने के लिए विक्रमादित्य के प्रिंट जला दिए गए अब न कपूर परिवार के पास ही फ़िल्म हैं न भट्ट परिवार के पास न पुणे फ़िल्म इंस्टीट्यूट के पास।
 कुछ लोग मानते हैं आग में जल गई फ़िल्म , मगर अभी उम्मीद की एक किरण दिखी हैं कान फ़िल्म फेस्टिवल में कुछ २५-३० बरस पहले विजय भट्ट की – राम राज्य भरत मिलाप गूँज उठी शहनाई बैजू बावरा के साथ विक्रमादित्य दिखाई गई थी। वहाँ वे प्रिंट सुरक्षित रखते हैं इस उम्मीद से मैंने वहाँ के डाइरेक्टर सी ड्यूपिन से ईमेल पर संपर्क किया हैं यह कोई फ़िल्म नहीं उस महान समारोह के इतिहास का गौरवशाली पृष्ठ है।
नई पीढ़ी संवत् २००० में मनाए इस भव्य तम विक्रम महोत्सव का इतिहास जाने और जाने की आज उसकी स्मृति में खड़े विक्रम विश्विद्यालय विक्रम कीर्ति मंदिर और संसार का महान ग्रंथ उपलब्ध हैं – विक्रम स्मृति ग्रंथ
(लेखक दूरदर्शन में अतिरिक्त महानिदेशक रह चुके हैं और ऐतिहासिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक विषयो पर कई पुस्तकें लिख चुके हैं)

ये क्या हाल हो गया केजरीवाल का

एक चुनावी हार ने अरविंद केजरीवाल को कहां से कहां पहुंचा दिया! यह तमाम एकाधिकारवादी और अपने इलहाम में राजनीति करने वाले नेताओं के लिए सबक है। केजरीवाल ने पार्टी की सारी राजनीति अपने इर्द गिर्द सीमित रखा। तमाम संस्थापक और समझदार नेताओं को पार्टी से बाहर निकाल दिया। अपने करिश्मे पर राजनीति और नतीजा क्या हुआ? जैसे ही करिश्मा कम हुआ और चुनाव हारे वैसे ही अपनी ही पार्टी में स्थिति इतनी कमजोर हो गई कि अपने लिए एक राज्यसभा सीट के लिए मोलभाव करनी पड़ रही है। अरविंद केजरीवाल की ऐसी स्थिति नहीं रह गई कि कोई उनके लिए एक सीट खाली कर दे। इससे पहले दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने अपनी पार्टी की महिला सांसद से सीट खाली करने को कहा था और उन्होंने मना  कर दिया था। तब केजरीवाल किसी और को उनकी कानूनी सेवाओं के बदले राज्यसभा भेजना चाहते थे। लेकिन इस बार तो उनको अपने लिए राज्यसभा चाहिए थी और किसी ने इस्तीफे की पेशकश नहीं की।

जब कहीं से इस्तीफा नहीं हुआ तो अंत में मोलभाव का रास्ता निकाला गया। बताया जा रहा है कि पंजाब के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को राज्य सरकार में मंत्री बनाने का वादा किया गया है। उनको पार्टी लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उतार रही है। अभी उस सीट पर उपचुनाव की घोषणा नहीं हुई है लेकिन पार्टी ने अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया। वे विधानसभा चुनाव जीतेंगे तो मंत्री बनेंगे और उनके इस्तीफे से जो सीट खाली होगी उस पर केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे। वे 2022 में राज्यसभा गए थे। सो, उनकी सीट का कार्यकाल 2028 तक है। सवाल है कि अगर सभी पार्टियों ने अंदरखाने तालमेल कर लिया और संजीव अरोड़ा नहीं जीत सके तो क्या होगा? इसी चिंता में अरोड़ा पहले इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। सोचें, केजरीवाल कितने दयनीय हो गए हैं कि पहले तो किसी राज्यसभा सांसद ने पद नहीं छोड़ा और जिसने राज्य सरकार में मंत्री पद के लिए मोलभाव की वह भी विधानसभा चुनाव जीतने से पहले इस्तीफा देने को तैयार नहीं है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल के प्रतिनिधियों ने पंजाब के कारोबारी अशोक मित्तल से बातचीत की। आजकल केजरीवाल मित्तल को मिले पांच, फिरोजशाह रोड के बंगले में ही रहते हैं।

बताया जा रहा है कि मित्तल सीट खाली करने के लिए तैयार नहीं हुए। उनके राज्यसभा सांसद बनने के पीछे की कई कहानियां प्रचलित हैं लेकिन उनमें जाने की जरुरत नहीं है। आम आदमी पार्टी में उनके ‘महान’ योगदान के देखते हुए लोग सहज ही अंदाजा लगा लेते हैं कि वे कैसे राज्यसभा पहुंचे। यह भी खबर है कि केजरीवाल के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया ने अपने बेटे को अमेरिका में पढ़ाने के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए अनसिक्योर लोन ‘दोस्तों’ से लिया है। उनमें एक ‘दोस्त’ अशोक मित्तल भी हैं, जिन्होंने 90 लाख से ज्यादा रुपए सिसोदिया को दिए हैं। बहरहाल, क्रिकेटर हरभजन सिंह से भी इस्तीफा कराने की बात हुई थी लेकिन वे भी पकड़ में नहीं आए। आम आदमी पार्टी के चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक या किसी और की सीट खाली कराने का प्रयास किया जा सकता था लेकिन केजरीवाल नया स्वाति मालीवाल बनाना नहीं चाहते हैं।

साभार- https://www.nayaindia.com/ से

दरगाह की डेग से चर्च की वाइन तक में दिखती है ‘सेवा’, पर नजर नहीं आता संतों-मंदिरों का परोपकार

हिंदुओं के सारे धार्मिक संगठन बिना लोगों की जाति-धर्म-पंथ-वर्ग देखे परोपकार करते हैं। वह गरीब का पेट भरने के लिए उसके दरवाजे पर आने का इंतजार नहीं करते, या अपनी रसोइयाँ दिखाकर प्रचार नहीं करते। वह इलाज का लालच देकर लोगों का धर्मांतरण नहीं कराते, बेघरों को आश्रय देने के लिए उनका धर्म नहीं जाँचते, शिक्षा के नाम केवल शिक्षा देते हैं, अपना कोई मिशन पूरा नहीं करते।

दरगाह की बड़ी डेग में बनने वाले ‘मीठे राइस’ और चर्च में दी जाने वाली ‘लाल वाइन’ तो सोशल मीडिया पर अक्सर लोगों का ध्यान खींचते हैं लेकिन क्या कभी आपको इन जगहों पर मंदिर में बँटने वाले भंडारों के बारे में सुनने को मिलता है? अगर हाँ, तो क्या आप इन भंडारों के महत्व को समझ पाते हैं या आपके लिए ‘भूखे का पेट’ भरने का मतलब केवल ‘फीड द हंग्री’ को समझने तक ही सीमित है? पूरी बात का मतलब क्या है, ये नीचे आपको पढ़ने पर समझ आता जाएगा।

हाल में मध्यप्रदेश के बागेश्वर धाम में 252 करोड़ रुपए की लागत से 2.37 लाख वर्ग फीट में बनने वाले कैंसर हॉस्पिटल का शिलान्यास हुआ। इसके कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए और यहाँ उन्होंने हमारे धार्मिक स्थलों को लेकर जो कहा वो सुनने के साथ समझने योग्य है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था- “साथियों, आज कल नेताओं का एक दल ऐसा है, जो धर्म का मजाक उड़ाने में और लोगों को तोड़ने में लगा है। वे हिंदुओं की आस्था से नफरत करने वाले लोग हैं। ये हमारी मान्यताओं, संस्कृति और मंदिरों पर हमला करते हैं और हमारे पर्व और परंपराओं को गाली देते हैं…हमारे मंदिर पूजा के केंद्र होने के साथ ही सामाजिक चेतना के भी केंद्र रहे हैं। हमारे ऋषियों ने आयुर्वेद और योग का विज्ञान दिया… दूसरों की सेवा करना और दूसरों के दुख दूर करना ही धर्म है।”

इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नें पंडित धीरेंद्र शास्त्री को ‘मेरा छोटा भाई’ बताते हुए कहा ता- “मेरे छोटे भाई धीरेंद्र शास्त्री लोगों को जागरूक करते रहते हैं। एकता का मंत्र भी देते हैं। अब उन्होंने एक और संकल्प लिया है- इस कैंसर हॉस्पिटल के निर्माण की जिम्मेदारी। यानी अब बागेश्वर धाम में भजन, भोजन और निरोगी जीवन तीनों का आर्शीवाद मिलेगा। इस कार्य के लिए मैं धीरेंद्र शास्त्री का अभिनंदन करता हूँ।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस शुभ अवसर पर पहुँचने से पूरे देश की नजर बागेश्वर धाम में खुले कैंसर अस्पताल पर गई। मीडिया में हर जगह इसकी चर्चा हुई। बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री जिन्हें सोशल मीडिया पर ‘कट्टर धार्मिक नेता’ के तौर पर पेश किया जाता है, उनकी इस पहल को हर समुदाय ने सराहा… लेकिन ऐसा नहीं है कि पंडित धीरेंद्र शास्त्री या किसी हिंदू संस्थान द्वारा समाज की भलाई के लिए सोचा गया कोई पहला कार्य है।

कई दशकों से हिंदू संस्थान लोगों के स्वास्थ, शिक्षा और उनकी बुनियादी जरूरतें पूरा करने की दिशा में काम करते आए हैं, मगर कभी उन्हें वो नाम और सम्मान नहीं मिला जितने के वो हकदार थे। खुद बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री लंबे समय से गरीब परिवार की बेटियों की शादी कराते रहे, लेकिन उनके इस कार्य की चर्चा आज जाकर हो रही है जब वहाँ राष्ट्रपति मुर्मू मौजूद हैं, जिनकी नजर में ये कार्य पुण्य का है, न कि कोई प्रोपगेंडा।

बागेश्वर धाम की तरह तमाम धार्मिक स्थल हैं और पंडित धीरेंद्र शास्त्री जैसे कई संत समाज के लोग, जो समय-समय पर संबल होने पर समाज के लिए ऐसे परोपकारी कदम उठाते आए हैं। उदाहरण तमाम हैं, लेकिन यहाँ चर्चा कुछ चंद की करते हैं…

आपने पटना के महावीर मंदिर के बारे में सुना होगा। 1730 में बना महावीर मंदिर, न जाने कितने सालों से रोजाना 3000-4000 लोगों का पेट भरता है। मंदिर की ओर से राम-रसोई, सीता रसोई चलाई जाती है जो हर श्रद्धालु का पेट भरने के लिए 10-10 तरीके के व्यंजन बनाती है। इसके अलावा इस मंदिर से तीन अस्पतालों के मरीजों के लिए भी तीनों समय का भोजन निशुल्क जाता है।

इसी तरह गोरखनाथ मंदिर। यहाँ के महंत स्वयं यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ हैं। इस मंदिर द्वारा गोरखनाथ चिकित्सालय विभिन्न प्रकार की चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करता है, जिसमें सामान्य OPD (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट), पैथोलॉजी, ब्लड बैंक, डायलिसिस विभाग और विभिन्न विशेषज्ञताओं जैसे हृदय रोग, चर्म रोग, बाल रोग, मानसिक रोग आदि शामिल हैं। यहाँ पर मरीजों को मात्र 30 रुपए की फीस पर इलाज किया जाता है, जो इसे आर्थिक रूप से सुलभ बनाता है।

इसके बाद मुंबई का सिद्धि विनायक मंदिर। इस मंदिर का ट्रस्ट केवल धार्मिक गतिविधियों को नहीं देखता बल्कि सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय है। सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित फ्री कैंसर चिकित्सालय का उद्देश्य उन मरीजों को चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करना है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यहाँ केवल मरीजों को उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं बल्कि यहाँ पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम काम करती है जो नवीनतम तकनीकों और उपचार विधियों का उपयोग करती है। इनका एक डायलिसिस केंद्र भी है उन रोगियों के लिए आवश्यक सेवाएँ प्रदान करता है जिन्हें किडनी संबंधी समस्याओं के कारण नियमित डायलिसिस की आवश्यकता होती है।

धार्मिक संगठन होते हुए सामाजिक कार्यों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान देने वाली संस्थाओं में एक नाम इस्कॉन का भी है। इस्कॉन में न केवल जरूरतमंदों के लिए भोजन वितरण कार्यक्रम चलाया जाता है, बल्कि इस्कॉन द्वारा समय-समय मेडिकल कैंप, आयुर्वेदिक उपचार, स्वास्थ्य जाँच आदि भी कराई जाती है। शिक्षा के क्षेत्र में भी ये संगठन बढ़-चढ़कर भागीदारी दिखाता है। युवाओं को नैतिकता और जीवन के उद्देश्यों के बारे में बताता है।

कोविड काल में भी हिंदू मंदिरों ने आगे आ आकर जरूरतमंदों की सहायता की थी और सरकार का काम आसान करने का पूरा प्रयास किया था।  महावीर मंदिर से मुफ्त में कोविड संक्रमितों के लिए ऑक्सीजन देने का काम शुरू हुआ था। मुंबई के जैन मंदिर ने अपने मंदिर को ही कोविड सेंटर में परिवर्तित करवा दिया था। महाराष्ट्र के संत गजानन मंदिर में 500-500 बेड के आइसोलेशन सेंटर बनाए गए थे। वाराणसी के काशी मंदिर ने मुफ्त में लोगों को दवाएँ वितरित की थीं। इस्कॉन मंदिर ने गर्भवती, बुजु्र्ग और बच्चों के लिए फ्री में खाने घर तक पहुँचाने की व्यवस्था की थी। इंदौर के राधास्वामी सत्संग व्यास को कोविड के समय में दूसरा सबसे बड़ा कोविड सेंटर बनाकर ऱखा गया था।

आर्थिक सहायता की बात करें तो इसमें भी हिंदू मंदिर कभी पीछे नहीं रहे। सोमनाथ मंदिर और गुजरात के अंबाजी मंदिर ने कोविड काल से निपटने के लिए 1-1 करोड़ रुपए सीएम राहत कोष में दिए थे। सिद्धिविनायक मंदिर ने कोरोना काल के वक्त महाराष्ट्र सरकार को 10 करोड़ की मदद की थी। शिरडी साई बाबा मंदिर ने भी मुख्य राहत कोष में 51 करोड़ रुपए देने का निर्णय लिया था। इसी तरह गोरखनाथ पीठ और उससे संबंधित कुछ संस्थाओं और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने ‘पीएम केयर फंड’ एवं ‘मुख्यमंत्री राहत कोष’ में अब तक 51,00000 रुपए का योगदान भी दिया।

इसके अलावा बाहरी देशों में स्थित हिंदू मंदिरों ने भी संकट के काल में न केवल अपने देश के लोगों की सहायता की बल्कि भारत की मदद करने के लिए भी आगे आए। थाईलैंड के बैंकॉक में हिंदू समाज मंदिर ने भारत को कोरोनावायरस की दूसरी लहर से लड़ने में मदद करने के लिए समर्थन जुटाया। जॉर्जिया के ब्लूमिंगडेल में श्री राधेश्याम मंदिर सहित अमेरिका में कई हिंदू मंदिरों ने अहमदाबाद, भारत में एसजीवीपी होलिस्टिक अस्पताल को चिकित्सा सहायता के लिए सीधे धन जुटाया। लंदन में BAPS स्वामीनारायण मंदिर ने भी भारत के लिए 8 लाख 30 हजार डॉलर की की धनराशि जुटाई।

दिलचस्प बात ये हैं कि हिंदू मंदिरों, संगठनों, संस्थाओं ने ये सारे काम बिना किसी गुप्त उद्देश्य के किए। उन्होंने कभी कोई प्रलोभन देकर या अपना प्रचार करके ये नहीं दिखाया कि वो जगत में कल्याण के लिए क्या-क्या कर रहे हैं। बागेश्वर धाम में बना कैंसर अस्पताल बस एक और बड़ा उदाहरण है जो हिंदू संतों के उन प्रयासों को उजागर करता है जिन्हें वामपंथी हमेशा से दबाने की कोशिश करते रहे।

उन्हें हमेशा अगर परोपकार दिखा तो ईसाई मिशनरियों के कार्य में। उन्होंने मदर टेरेसा को ‘मसीह’ बता बताकर प्रमोट किया बिना ये देखे कि जिन्होंने भोपाल त्रासदी का समर्थन किया हो, इमरजेंसी में सुख खोजा हो, जिनकी शुरू की गई संस्था में लड़कियों के शोषण के मामले दर्ज होते रहे, वो- मसीह कैसे हो सकता है।

बड़ी चालाकी से वामपंथियों ने टेरेसा को ‘मदर’ की उपाधि दे दी, लेकिन साध्वी ऋतम्भरा की छवि कट्टर हिंदू से ऊपर नहीं उठने दी। वामपंथियों ने कभी साध्वी ऋतम्भरा जैसी सनातनी महिलाओं के बारे में दुनिया को ये बताना जरूरी नहीं समझा कि वह कैसे- वात्सल्य ग्राम के जरिए अनाथ बच्चों एवं परित्यक्त महिलाओं को आवास, भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का प्रबन्ध करवाती हैं।

वामपंथियों ने आगे बढ़ाया पादरी बिजेंद्र जैसे लोगों का नाम जो खुलेआम लोगों को लालच देकर धर्मांतरित होने के लिए आकर्षित करते हैं और छवि बिगाड़ने की कोशिश की अनिरुद्ध आचार्य महाराज जैसे लोगों की, जो गौरी गोपाल आश्रम में वृद्धों के लिए आश्रम चलाते हैं, रोजाना न जाने कितनों को भोजन कराते हैं।

आज खोजेंगे तो ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएँगे, लेकिन पहले ऐसा संभव नहीं था। पहले हिंदू धर्म की बात करने वाला और प्रचार-प्रसार करने वाला कट्टर धर्मनेता की गिनती में आता था और जाकिर नाइक जैसे लोग समाज में शांति का संदेश देने वाले माने जाते थे।

आज स्थिति बदली है तो मालूम होना चाहिए कि हिंदुओं के सारे धार्मिक संगठन बिना लोगों की जाति-धर्म-पंथ-वर्ग देखे ये परोपकार करते हैं। वह गरीब का पेट भरने के लिए उसके दरवाजे पर आने का इंतजार नहीं करते, या अपनी रसोइयाँ दिखाकर प्रचार नहीं करते। वह इलाज का लालच देकर लोगों का धर्मांतरण नहीं कराते, बेघरों को आश्रय देने के लिए उनका धर्म नहीं जाँचते, शिक्षा के नाम केवल शिक्षा देते हैं, अपना कोई मिशन पूरा नहीं करते।

साभार- https://hindi.opindia.com/ से

समाज की दिशा तय करता है सार्थक सिनेमा: कृष्णा गौर

सेज विश्वविध्यालय में हुआ “ग्वालियर शोर्ट फिल्म फेस्टिवल 2025” के पोस्टर का विमोचन

भोपाल. आज समाज की दिशा एवं दशा को निर्धारित करने के लिए सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण सिनेमा की अत्यंत आवश्यकता है, औऱ यह कार्य युवाओं के द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है, इस दिशा में ग्वालियर शार्ट फ़िल्म फेस्टिवल का मंच देश के युवाओं के लिए एक अच्छा अवसर साबित होगा, जहां वह अपनी रचनात्मकता को एक सार्थक स्वरूप दे सकेंगे। उक्त बातें आज सेज विश्वविध्यालय में “ग्वालियर शोर्ट फिल्म फेस्टिवल 2025” के पोस्टर विमोचन कार्यक्रम में आज म.प्र. शासन माननीय पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री श्रीमती कृष्णा गौर ने कहीं.

इस अवसर सतपुड़ा चल चित्र समिति के अध्यक्ष लाजपत आहूजा और सेज विवि के प्रो वीसी डॉ नीरज उपमन्यु भी उपस्थित रहे। ज्ञात हो की सतपुड़ा चलचित्र समिति और विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में 8-9 मार्च को ग्वालियर में ‘ग्वालियर शार्ट फ़िल्म फेस्टिवल 2025’ का आयोजन किया जा रहा है। इस हेतु प्रदेश भर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में फेस्टिवल के पोस्टर का विमोचन किया जा रहा है। इसी तारतम्य में गुरुवार 27 फरवरी को सेज यूनिवर्सिटी, भोपाल में पोस्टर विमोचन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

इस अवसर पर सतपुडा चलचित्र समिति के अध्यक्ष श्री लाजपत आहूजा ने कहा कि इसमें प्रदेश के फिल्मकारों को अवसर मिलेगा। उनकी श्रेष्ठ फिल्मों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि फेस्टिवल में फ़िल्म विधा से जुड़े विशेषज्ञ फ़िल्म निर्माण में रुचि रखने वालों से संवाद भी करेंगे। इस अवसर पर सेज विवि के प्रो वीसी डॉ नीरज उपमन्यु ने कहा कि ये हमारे विवि के छात्रों के लिए एक अवसर है, विशेषतौर पर फ़िल्म स्टडीज, विसुअल आर्ट के विद्यार्थियों के लिए। उन्होंने माननीय मंत्री जी एवं सतपुड़ा चलचित्र समिति के प्रति आभार व्यक्त किया। वही कार्यक्रम संचालन अभिलाष ठाकुर ने किया।

इन विषयों पर फिल्में आमंत्रित हैं: ग्वालियर फ़िल्म फेस्टिवल में चार कैटेगरी में फिल्में आमंत्रित हैं- शॉर्ट फिल्म, डॉक्यूमेंट्री, कैंपस फिल्म एवं रील्स कैटेगरी। फेस्टिवल के विषय महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, जनजाति समाज, ग्रामीण विकास, सामाजिक सद्भावना, भारतीय संस्कृति, हमारी धरोहर एवं लोकल सक्सेस स्टोरी पर आधारित है। फिल्म की अवधि भी निर्धारित की गई है, जिसमें शॉर्ट फिल्म 15 मिनट, डॉक्यूमेंट्री अधिकतम 25 मिनट और रील्स के लिए 1 मिनट की हो।

मिलेंगे एक लाख के पुरस्कार : फ़िल्म फेस्टिवल में विभिन्न श्रेणी में पुरस्कृत श्रेष्ठ फिल्मों को कुल एक लाख रुपये के पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे। उल्लेखनीय है कि सतपुड़ा चलचित्र समिति भारतीय चित्र साधना से संबद्ध है। भारतीय चित्र साधना 2 वर्षों में एक बार राष्ट्रीय स्तर का फिल्म फेस्टिवल आयोजित करता है। इसी तारतम्य में प्रान्त स्तरीय फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन इस वर्ष ग्वालियर में किया जा रहा है।

श्री सुरेश प्रभुः भारतीय राजनीति का एक सौम्य, शालीन और अंतर्राष्ट्रीय चेहरा

हम जब किसी राजनेता के बारे में सोचते हैं तो एक छवि सामने आती है, टीवी पर बहस करने वाला, सड़क पर गाड़ियों के काफिलों के साथ सायरन बजाती हुई गाड़ियों के कारवाँ में जाने वाला या किसी ऐसे विषय पर कुछ भी बोलने वाला जिसकी उसे न तो समझ है न जानकारी। लेकिन भारतीय राजनीति में सुरेश प्रभु जैसा एक ऐसा राजनेता भी है, जो देस के विकास से जुड़े किसी भी मुद्दे पर एक सार्थक, सटीक व गंभीर विचार रखते हैं। वे देश और दुनिया के कई मंचों पर जाते हैं और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, बुनियादी ढाँचे से लेकर राष्ट्र  के विकास से जुड़े हर मुद्दे पर साधिकार बोलते हैं। उनको सुनना किसी के लिए भी रोमांचक और प्रेरक हो सकता है। सुरेश प्रभु जब किसी मंच से किसी भी विषय पर बोलते हैं तो उनको सुनने वालों में किसी देश के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राजदूत, वहाँ के मंत्री ही नहीं होते बल्कि दुनिया के जाने-माने उद्योगपति, कारोबारी और सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोग भी होते हैं। वो किसी भी मंच पर किसी भी विषय पर बोलें, वे अपने भाषण में गागर में सागर भरते हुए उस विषय को इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं कि उस विषय के जानकार और विशेषज्ञ तक हैरान रह जाते हैं।

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केंद्र में ऊर्जा मंत्री, रेल मंत्री, नागरिक उड्डयन मंच्री औरवाणिज्य मंत्री के रूप में उन्होंने किस तरह बुनियादी ढाँचों में बदलाव कर सशक्त व समर्थ भारत का मार्ग प्रशस्त किया इसके उदाहरण आज देखने को मिल रहे हैं। मीडिया और प्रचार-प्रसार से दूर सुरेश प्रभु आज भी लाखों उद्योगपतियों, व्यापारियों से लेकर इन्नोवेशन करने वाले नए उद्यमियों के साथ ही आम लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री सुरेश प्रभु इतने सहज-सरल हैं कि वे चाहे किसी उद्यगपति से मिलें या किसी जाने-अनजाने आम आदमी से, वे पूरी आत्मीयता और अहोभाव से मिलते हैं। एक बार जिससे मिल लें तो उसे शायद ही भूलते हैं।

श्री सुरेश प्रभु के वक्तव्य और साक्षात्कार दुनिया भर के पत्र-पत्रिकाओँ में निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं, उनका एक यादगार साक्षात्कार जो https://indianinfrastructure.com/ में दो वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था उसे हम अपने पाठकों के लिए हिंदी में प्रकाशित कर रहे हैं। उनके इस साक्षात्कार से पता चलता है कि देश के विकास को लेकर उनकी दृष्टि कितनी व्यापक और तथ्यात्मक है।

“भारत का भविष्य महान और अविश्वसनीय है” लगभग तीन दशकों तक सांसद रहे, सुरेश प्रभु भारत की विकास गाथा का एक अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने नीति परिदृश्य, विशेषकर बुनियादी ढांचा नीति को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सुधार पहलों का श्रेय भी उन्हें जाता है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के रूप में, उन्होंने महत्वपूर्ण कानून, विशेष रूप से विद्युत अधिनियम, 2003 को आगे बढ़ाया। रेल मंत्री के रूप में, उन्होंने विश्वस्तरीय यात्री अनुभव बनाने के उद्देश्य से रेल बुनियादी ढांचे के विकास को तेजी से आगे बढ़ाया। विमानन मंत्रालय में, उन्होंने उड़ान, एमआरओ और राष्ट्रीय एयर कार्गो नीति जैसी महत्वपूर्ण नीतियों के कार्यान्वयन का नेतृत्व किया। इंडियन इन्फ्रास्ट्रक्चर की विशेष वर्षगांठ के अंक के लिए इस फ्री-व्हीलिंग साक्षात्कार में, प्रभु पिछले ढाई दशकों में बुनियादी ढांचा क्षेत्र की यात्रा और अगले 25 वर्षों में होने वाले बदलावों पर नज़र डालते हैं। श्री सुरेश प्रभु से लिए गए साक्षात्कार के प्रमुख अंश।

प्रश्नः पीछे मुड़कर देखें तो आप पिछले 25 वर्षों में भारत में बुनियादी ढांचे के विकास का आकलन कैसे करेंगे और आपको लगता है कि कौन से क्षेत्र ऐसे हैं जहां अच्छा प्रदर्शन नहीं हुआ है?

सुरेश प्रभुः सबसे पहले मैं भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर को 25 साल पूरे करने के लिए बधाई देना चाहूंगा। वास्तव में, प्रकाशन की यात्रा ने एक तरह से पिछले कुछ वर्षों में बुनियादी ढांचे के क्षेत्र की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूं क्योंकि मैं पिछले 27 वर्षों से संसद में हूं और मैंने आपके विकास के साथ-साथ भारत की बुनियादी ढांचे की यात्रा में आपके योगदान को बहुत करीब से देखा है। आपकी पत्रिका ने बुनियादी ढांचा क्षेत्र के समुदाय के साथ विश्वसनीय बातचीत की सुविधा प्रदान की है।

बुनियादी ढांचे में बहुत व्यापक स्पेक्ट्रम शामिल है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सड़क, रेलवे आदि सभी इसके दायरे में आते हैं। यह किसी भी देश के विकास का आधार है। लगभग दो दशक पहले, हमने महसूस किया कि भारत में बुनियादी ढांचे की बहुत बड़ी कमी है जिसे बड़ी मात्रा में भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे के निर्माण से दूर किया जा सकता है, लेकिन हमारे पास इसके लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी है। जनता द्वारा दिए जाने वाले करों का अधिकांश उपयोग वेतन, व्यय और रक्षा जैसे विभिन्न पूर्व-निर्धारित व्ययों के लिए किया जा रहा था। और इस प्रकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी बनाने का विचार आया।

“मेरा मानना है कि निजी क्षेत्र के लिए भागीदारी करने का एक बड़ा अवसर है। और इसके लिए नीति स्थिरता अनिवार्य है। विनियामकों को स्वतंत्र बनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है।”

भारत में, ऐसे अनोखे प्रयोग हुए हैं, जहाँ निजी धन का उपयोग करके सार्वजनिक अवसंरचना का निर्माण किया गया है। लेकिन निजी निवेश प्रतिफल चाहते हैं। सार्वजनिक निवेशों के विपरीत, जहाँ प्रतिफल की गणना सामाजिक लाभों के आधार पर की जाती है, निजी निवेश में शुद्ध वित्तीय प्रतिफल शामिल होता है, जिसमें इक्विटी धारक और प्रमोटर दोनों ही किए गए निवेश के लिए पर्याप्त रूप से पुरस्कृत होना चाहते हैं।

और इस प्रकार एक ओर अंतिम उपयोगकर्ताओं (जो प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष करों का भुगतान कर रहे हैं और सार्वजनिक भलाई की मांग कर रहे हैं) और दूसरी ओर निजी निवेशकों की अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाने की सबसे बड़ी चुनौती सामने आती है। मुझे याद है कि जब हम विद्युत क्षेत्र की इस दुविधा को सुलझाने का प्रयास कर रहे थे (और एक बार फिर, मैं आपको बधाई देना चाहूंगा क्योंकि आप पावर लाइन के प्रकाशक भी हैं, जो इस उद्योग की सर्वाधिक सम्मानित पत्रिकाओं में से एक है), तो हमने विद्युत अधिनियम, 2003 की परिकल्पना की, जिसने निजी निवेश के लिए व्यापक नीतिगत समर्थन प्रदान किया और आज स्थापित क्षमता का आधे से अधिक हिस्सा निजी क्षेत्र से आ रहा है।

विमानन एक और सफलता की कहानी है, जिसमें निजीकरण ने बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद की है। भारत से लगभग एक हज़ार नए विमानों के ऑर्डर दिए गए हैं, और दोनों ही विमान निजी हैं। एक इंडिगो है और दूसरी हाल ही में निजीकृत एयर इंडिया है।

हालांकि, रेलवे क्षेत्र के कई सामाजिक दायित्व हैं – नेटवर्क लाभ के लिए नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था को एक आवश्यक सेवा प्रदान करने के लिए संचालित होता है, जो आपातकाल के दौरान माल और लोगों के परिवहन को सुनिश्चित करता है। जब मैंने रेल मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, तो इस क्षेत्र में कम निवेश सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। निवेश का केवल एक ही स्रोत था, वित्त मंत्रालय द्वारा निधि आवंटन। हमारी योजना नई रेल लाइनें बिछाने, मौजूदा रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण करने और अत्याधुनिक यात्री सुविधाएं विकसित करने की थी। गोदामों, नए टर्मिनलों आदि की स्थापना करके माल परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण को भी प्राथमिकता दी जा रही थी। इन्हें प्राप्त करने के लिए, केवल बजटीय आवंटन पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं था, और हमने अपने स्वयं के संसाधन जुटाने का फैसला किया, जैसे कि जीवन बीमा निगम से 1.5 ट्रिलियन रुपये का ऋण।

इस प्रकार, बुनियादी ढांचे के निर्माण पर पूंजीगत व्यय का समर्थन करने के लिए सार्वजनिक वित्त में सुधार की आवश्यकता है। जिस देश का सार्वजनिक वित्त अच्छी स्थिति में नहीं है, उसका भविष्य अंधकारमय है क्योंकि वहां हमेशा बुनियादी ढांचे की कमी या भारी सार्वजनिक ऋण बोझ की चुनौती रहेगी।

निजी क्षेत्र को शामिल करना एक उचित समाधान की तरह लग सकता है। संभवतः, निजी क्षेत्र बुनियादी ढांचे को बेहतर ढंग से संचालित करेगा, लेकिन कोई यह कैसे सुनिश्चित कर सकता है कि अंतिम उपयोगकर्ता को धोखा न दिया जाए? यहां, स्वतंत्र नियामकों की भूमिका और उनकी कार्यप्रणाली सर्वोपरि हो जाती है।

वास्तव में, यह कुछ ऐसा है जिस पर मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों में हमें ध्यान देने की आवश्यकता होगी। हम स्वतंत्र और प्रबुद्ध नियामक कैसे बना सकते हैं, जो परिचालन दक्षता को प्रोत्साहित करेंगे और सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के हितों के बारे में सोचेंगे। दक्षता महत्वपूर्ण होगी, लेकिन बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित (और पुरस्कृत) करने की भी आवश्यकता होगी।

भविष्य को देखते हुए, अगले दशक में आपको क्या अवसर दिख रहे हैं?

 सुरेश प्रभुः मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि भारत का भविष्य बहुत बढ़िया और अविश्वसनीय है; इसका दोहन करने के लिए बुनियादी ढांचे की अहमियत सबसे ज़्यादा होगी। और बुनियादी ढांचे की संभावनाओं का दोहन करने के लिए निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण है।

मेरा मानना है कि निजी क्षेत्र के लिए भागीदारी करने का एक बड़ा अवसर है। और इसके लिए, जैसा कि मैंने पहले ही उल्लेख किया है, नीति स्थिरता अनिवार्य है। नियामकों को स्वतंत्र बनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। साथ ही, निजी क्षेत्र को मध्यम से दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ आना चाहिए और निवेश को तुरंत वापस पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

इस बीच, बुनियादी ढांचे में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण की बढ़ती भूमिका भविष्य के लिए बड़ी उम्मीदें रखती है। सब कुछ डिजिटल हो रहा है – भविष्य डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण में निहित है, जो न केवल व्यवसायों को लाभ पहुंचाएगा बल्कि अंतिम उपयोगकर्ता अनुभव को भी बेहतर बनाएगा।

आपको क्या लगता है कि सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?

सुरेश प्रभुः सरकार की प्रमुख पहलों में से एक पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान की शुरुआत है। जब मैं वाणिज्य और उद्योग मंत्री था, तो प्रधानमंत्री ने लॉजिस्टिक्स पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मंत्रालय के भीतर एक नया विभाग बनाया था।

“सरकार को उद्यमशीलता को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करना चाहिए। सरकार के भीतर भी अधिक उद्यमशीलता की भावना पैदा करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका सही नीतिगत ढांचा प्रदान करना और नए निवेश को प्रोत्साहित करना और प्रोत्साहित करना है। यह देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए एक गेम चेंजर हो सकता है।”

 बुनियादी ढांचे में प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण की बढ़ती भूमिका भविष्य के लिए बड़ी उम्मीदें रखती है। भविष्य डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण में निहित है, जो न केवल व्यवसायों को लाभ पहुंचाएगा बल्कि अंतिम उपयोगकर्ता अनुभव को भी बेहतर बनाएगा।”

विराट व्यक्तित्व के धनी नानाजी देशमुख

भारतरत्न नानाजी देशमुख (जन्म : 11अक्टूबर 1916, चंडिकादास अमृतराव देशमुख – मृत्यु : 27 फ़रवरी 2010) 

एक भारतीय समाजसेवी थे। वे पूर्व में भारतीय जनसंघ के नेता थे। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उन्हें मोरारजी-मन्त्रिमण्डल में शामिल किया गया परन्तु उन्होंने यह कहकर कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा का कार्य करें, मन्त्री-पद ठुकरा दिया। वे जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। अटलजी के कार्यकाल में ही भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण भी प्रदान किया। 2019 में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया।

नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली नामक छोटे से कस्बे में ब्राह्मण परिवार में हुवा था। नानाजी का लंबा और घटनापूर्ण जीवन अभाव और संघर्षों में बीता। उन्होंने छोटी उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया। मामा ने उनका लालन-पालन किया। बचपन अभावों में बीता। उनके पास शुल्क देने और पुस्तकें खरीदने तक के लिये पैसे नहीं थे किन्तु उनके अन्दर शिक्षा और ज्ञानप्राप्ति की उत्कट अभिलाषा थी। अत: इस कार्य के लिये उन्होने सब्जी बेचकर पैसे जुटाये। वे मन्दिरों में रहे और पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्नीस सौ तीस के दशक में वे आरएसएस में शामिल हो गये। भले ही उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तरप्रदेश ही रहा। उनकी श्रद्धा देखकर आर.एस.एस. सरसंघचालक श्री गुरू जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा। बाद में उन्हें बड़ा दायित्व सौंपा गया और वे उत्तरप्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने।

नानाजी देशमुख लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हुए। तिलक से प्रेरित होकर उन्होंने समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में रुचि ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदि सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे। हेडगेवार ने नानाजी की प्रतिभा को पहचान लिया और आर.एस.एस. की शाखा में आने के लिये प्रेरित किया।

1940 में, डॉ. हेडगेवार जी के निधन के बाद नानाजी ने कई युवकों को महाराष्ट्र की आर.एस.एस. शाखाओं में शामिल होने के लिये प्रेरित किया। नानाजी उन लोगों में थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा में अर्पित करने के लिये आर.एस.एस. को दे दिया। वे प्रचारक के रूप में उत्तरप्रदेश भेजे गये। आगरा में वे पहली बार दीनदयाल उपाध्याय से मिले। बाद में वे गोरखपुर गये और लोगों को संघ की विचारधारा के बारे में बताया। गोरखपुर में अपने प्रवास के दौरान नानाजी देशमुख बड़हलगंज से 9 किलोमीटर पहले स्थित हाटा बाजार गांव में, संघ कार्य के विस्तार के लिए आये। यहां पर यहां के निवासी बाबू जंग बहादुर चंद उर्फ जंगी सन्यासी के यहां रहकर, उनको संघ का स्ववयंसेवक बनाया और इस क्षेत्र की पहली शाखा शुरू की>

उनके इस राष्ट्र सेवा के कार्य में बाबा राघव दास का भी सहयोग मिलता रहा, उस समय श्री जंगी सन्यासी के बंगले पर क्षेत्र के तमाम मनीषी, संत और राष्ट्रसेवक एक जलती धूनी के पास बैठा करते थे। उस धूनी पर बैठने वालों में प्रमुख नानाजी देशमुख, बाबा राघव दास, स्वामी करपात्री जी महाराज और अन्य लोग थे > यह कार्य आसान नहीं था। संघ के पास दैनिक खर्च के लिए भी पैसे नहीं होते थे। नानाजी को धर्मशालाओं में ठहरना पड़ता था और लगातार धर्मशाला बदलना भी पड़ता था, क्योंकि एक धर्मशाला में लगातार तीन दिनों से ज्यादा समय तक ठहरने नहीं दिया जाता था। अन्त में बाबा राघवदास ने उन्हें इस शर्त पर ठहरने दिया कि वे उनके लिये खाना बनाया करेंगे। तीन साल के अन्दर उनकी मेहनत रंग लायी और गोरखपुर के आसपास संघ की ढाई सौ शाखाएँ खुल गयीं। नानाजी ने शिक्षा पर बहुत जोर दिया। उन्होंने पहले सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना गोरखपुर में की।

1947 में, आर.एस.एस. ने राष्ट्रधर्म और पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक और स्वदेश (हिन्दी समाचारपत्र) निकालने का फैसला किया। अटल बिहारी वाजपेयी को सम्पादन, दीन दयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबन्ध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गयी। पैसे के अभाव में पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन संगठन के लिये बेहद मुश्किल कार्य था, लेकिन इससे उनके उत्साह में कमी नहीं आयी और सुदृढ राष्ट्रवादी सामाग्री के कारण इन प्रकाशनों को लोकप्रियता और पहचान मिली। 1948 में गान्धीजी की हत्या के बाद आर.एस.एस. पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जिससे इन प्रकाशन कार्यों पर व्यापक असर पड़ा। फिर भी भूमिगत होकर इनका प्रकाशन कार्य जारी रहा।

जब आर.एस.एस. से प्रतिबन्ध हटा तो राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीय जनसंघ की स्थापना का फैसला हुआ। श्री गुरूजी ने नानाजी को उत्तरप्रदेश में भारतीय जन संघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा। नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तरप्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी। 1957 तक जनसंघ ने उत्तरप्रदेश के सभी जिलों में अपनी इकाइयाँ खड़ी कर लीं। इस दौरान नानाजी ने पूरे उत्तरप्रदेश का दौरा किया जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गयी। जनसंघ के कार्यकर्ताओं पर नानाजी की गहरी पकड़ थी। 1957 में रामपुर उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ता राम प्रकाश सर्राफ ने जब नवाबी दबाव के बावजूद जनसंघ के उम्मीदवार को चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया तो नाना जी ने इसकी प्रशंसा की तथा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया।

उत्तरप्रदेश की बड़ी राजनीतिक हस्ती चन्द्रभानु गुप्त को नानाजी की वजह से तीन बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। एक बार, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता और चंद्रभानु के पसंदीदा उम्मीदवार को हराने के लिए उन्होंने रणनीति बनायी। 1957 में जब गुप्त स्वयं लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे, तो नानाजी ने समाजवादियों के साथ गठबन्धन करके बाबू त्रिलोकी सिंह को बड़ी जीत दिलायी। 1957 में चन्द्रभानु गुप्त को दूसरी बार हार को मुँह देखना पड़ा।

उत्तरप्रदेश में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि, अटल बिहारी वाजपेयी के वक्तृत्व और नानाजी के संगठनात्मक कार्यों के कारण भारतीय जनसंघ महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गया। न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं से बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी नानाजी के सम्बन्ध बहुत अच्छे थे। चन्द्रभानु गुप्त भी, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, नानाजी का दिल से सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फड़नवीस कहा करते थे। डॉ॰ राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे सम्बन्धों ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी। एक बार नानाजी ने डॉ॰ लोहिया को भारतीय जनसंघ कार्यकर्ता सम्मेलन में बुलाया, जहाँ लोहिया जी की मुलाकात दीन दयाल उपाध्याय से हुई। दोनों के जुड़ाव से भारतीय जनसंघ समाजवादियों के करीब आया। दोनों ने मिलकर कांग्रेस के कुशासन का पर्दाफाश किया।

1967 में भारतीय जनसंघ संयुक्त विधायक दल का हिस्सा बन गया और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार में शामिल भी हुआ। नानाजी के चौधरी चरण सिंह और डॉ राम मनोहर लोहिया दोनों से ही अच्छे सम्बन्ध थे, इसलिए गठबन्धन निभाने में उन्होंने अहम भूमिका निभायी। उत्तरप्रदेश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी जी का योगदान अद्भुत रहा।

नानाजी, विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए। दो महीनों तक वे विनोबाजी के साथ रहे। वे उनके आन्दोलन से अत्यधिक प्रभावित हुए। जेपी आन्दोलन में जब जयप्रकाश नारायण पर पुलिस ने लाठियाँ बरसायीं उस समय नानाजी ने जयप्रकाश को सुरक्षित निकाल लिया। इस दुस्साहसी कार्य में नानाजी को चोटें आई और इनका एक हाथ टूट गया। जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई ने नानाजी के साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा की। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति को पूरा समर्थन दिया। जनता पार्टी से संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे। कांग्रेस को सत्ताच्युत कर जनता पार्टी सत्ता में आयी। आपातकाल हटने के बाद चुनाव हुए, जिसमें बलरामपुर लोकसभा सीट से नानाजी सांसद चुने गये। उन्हें पुरस्कार के तौर पर मोरारजी मंत्रिमंडल में बतौर उद्योग मन्त्री शामिल होने का न्यौता भी दिया गया, लेकिन नानाजी ने साफ़ इनकार कर दिया। उनका सुझाव था कि साठ साल से अधिक आयु वाले सांसद राजनीति से दूर रहकर संगठन और समाज कार्य करें।

1980 में साठ साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर आदर्श की स्थापना की। बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगा दिया। वे आश्रमों में रहे और कभी अपना प्रचार नहीं किया। उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और उसमें रहकर समाज-सेवा की। उन्होंने चित्रकूट में चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है और वे इसके पहले कुलाधिपति थे। 1999 में एन० डी० ए० सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या नानाजी के लिये बहुत बड़ी क्षति थी। उन्होंने नई दिल्ली में अकेले दम पर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और स्वयं को देश में रचनात्मक कार्य के लिये समर्पित कर दिया। उन्होंने गरीबी निरोधक व न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाया, जिसके अन्तर्गत कृषि, कुटीर उद्योग, ग्रामीण स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा पर विशेष बल दिया। राजनीति से हटने के बाद उन्होंने संस्थान के अध्यक्ष का पद संभाला और संस्थान की बेहतरी में अपना सारा समय अर्पित कर दिया। उन्होंने संस्थान की ओर से रीडर्स डाइजेस्ट की तरह मंथन नाम की एक पत्रिका निकाली जिसका कई वर्षों तक के० आर० मलकानी ने सम्पादन किया।

नानाजी ने उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े जिलों गोंडा और बीड में बहुत से सामाजिक कार्य किये। उनके द्वारा चलायी गयी परियोजना का उद्देश्य था-“हर हाथ को काम और हर खेत को पानी।”

1989 में वे पहली बार चित्रकूट आये और अन्तिम रूप यहीं बस गये। उन्होंने भगवान श्रीराम की कर्मभूमि चित्रकूट की दुर्दशा देखी। वे मंदाकिनी के तट पर बैठ गये और अपने जीवन काल में चित्रकूट को बदलने का फैसला किया। चूँकि अपने वनवास-काल में राम ने दलित जनों के उत्थान का कार्य यहीं रहकर किया था, अत: इससे प्रेरणा लेकर नानाजी ने चित्रकूट को ही अपने सामाजिक कार्यों का केन्द्र बनाया। उन्होंने सबसे गरीब व्यक्ति की सेवा शुरू की। वे अक्सर कहा करते थे कि उन्हें राजा राम से वनवासी राम अधिक प्रिय लगते हैं अतएव वे अपना बचा हुआ जीवन चित्रकूट में ही बितायेंगे। ये वही स्थान है जहाँ राम ने अपने वनवास के चौदह में से बारह वर्ष गरीबों की सेवा में बिताये थे। उन्होंने अपने अन्तिम क्षण तक इस प्रण का पालन किया। उनका निधन भी चित्रकूट में ही रहते हुए 27 फ़रवरी 2010 को हुआ।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की संकल्पना एकात्म मानववाद को मूर्त रूप देने के लिये नानाजी ने 1972 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। उपाध्याय जी यह दर्शन समाज के प्रति मानव की समग्र दृष्टि पर आधारित है जो भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है।

नानाजी देशमुख ने एकात्म मानववाद के आधार पर ग्रामीण भारत के विकास की रूपरेखा बनायी। शुरुआती प्रयोगों के बाद उत्तरप्रदेश के गोंडा और महाराष्ट्र के बीड जिलों में नानाजी ने गाँवों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, कृषि, आय, अर्जन, संसाधनों के संरक्षण व सामाजिक विवेक के विकास के लिये एकात्म कार्यक्रम की शुरुआत की। पूर्ण परिवर्तन कार्यक्रम का आधार लोक सहयोग और सहकार है।

चित्रकूट परियोजना या आत्मनिर्भरता के लिये अभियान की शुरुआत 26 जनवरी 2005 को चित्रकूट में हुई जो उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। इस परियोजना का उद्देश्य 2005 के अन्त तक इन गाँवों में आत्मनिर्भरता हासिल करना था किन्तु यह परियोजना 2010 में पूरी हो सकी। परियोजना से यह उम्मीद तो जगी है कि चित्रकूट के आसपास कम से कम पाँच सौ गाँवों को तो आत्मनिर्भर बना ही लिया जायेगा। निस्सन्देह यह परियोजना भारत और दुनिया के लिये एक आदर्श बन सकती है।

वर्ष 2019 में नानाजी को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वर्ष 1999 में नानाजी देशमुख को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख और उनके संगठन दीनदयाल शोध संस्थान की प्रशंसा की। इस संस्थान की मदद से सैकड़ों गाँवों को मुकदमा मुक्त विवाद सुलझाने का आदर्श बनाया गया। अब्दुल कलाम ने कहा-“चित्रकूट में मैंने नानाजी देशमुख और उनके साथियों से मुलाकात की। दीन दयाल शोध संस्थान ग्रामीण विकास के प्रारूप को लागू करने वाला अनुपम संस्थान है। यह प्रारूप भारत के लिये सर्वथा उपयुक्त है। विकास कार्यों से अलग दीनदयाल उपाध्याय संस्थान विवाद-मुक्त समाज की स्थापना में भी मदद करता है। मैं समझता हूँ कि चित्रकूट के आसपास अस्सी गाँव मुकदमें बाजी से मुक्त है। इसके अलावा इन गाँवों के लोगों ने सर्वसम्मति से यह फैसला किया है कि किसी भी विवाद का हल करने के लिये वे अदालत नहीं जायेंगे। यह भी तय हुआ है कि सभी विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिये जायेंगे। जैसा नानाजी देशमुख ने हमें बताया कि अगर लोग आपस में ही लड़ते झगड़ते रहेंगे तो विकास के लिये समय कहाँ बचेगा?” कलाम के मुताबिक, विकास के इस अनुपम प्रारूप को सामाजिक संगठनों, न्यायिक संगठनों और सरकार के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैलाया जा सकता है। शोषितों और दलितों के उत्थान के लिये समर्पित नानाजी की प्रशंसा करते हुए कलाम ने कहा कि नानाजी चित्रकूट में जो कर रहे हैं उसे देखकर अन्य लोगों की भी आँखें खुलनी चाहिये।

वर्ष 2019 में नानाजी को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया।

नानाजी देशमुख ने 95 साल की उम्र में चित्रकूट स्थित भारत के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय (जिसकी स्थापना उन्होंने खुद की थी) में रहते हुए अन्तिम साँस ली। वे पिछले कुछ समय से बीमार थे, लेकिन इलाज के लिये दिल्ली जाने से मना कर दिया। नानाजी देश के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना शरीर छात्रों के मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा (इच्छा पत्र) मरने से काफी समय पूर्व 1997 में ही लिखकर दे दिया था, जिसका सम्मान करते हुए उनका शव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली को सौंप दिया गया।