Sunday, November 17, 2024
spot_img
Homeजियो तो ऐसे जियोकोई ऐसे ही अनिल सिंघवी नहीं हो जाता

कोई ऐसे ही अनिल सिंघवी नहीं हो जाता

कई बार कोई आयोजन, कोई घटना या कोई व्यक्ति अचानक किसी रोमांच और मधुर स्मृति की तरह आपके दिलो-दिमाग पर छा जाता है। किसी व्यक्ति के ओहदे, उसके प्रभामंडल को लेकर मन में जो काल्पनिक छवि होती है, उससे उलट अगर वह व्यक्ति एकदम सामान्य, देसी और खिलाड़ीपन की भावना के साथ दिल खोलकर बात करे तो ऐसा लगता है सफलता हर किसी के सर पर चढ़कर नहीं बोलती बल्कि सफलता उसे किसी फलदार वृक्ष की तरह और विनम्र बना देती है।

टीवी पर अपनी खास पहचान बना चुके और अपने सहज-सरल व देसी अंदाज़ की वजह से देश के लाखों-करोड़ों दर्शकों और कारोबारियों के बीच एक अलग चेहरा बन चुके नेटवर्क 18 के चैनल सीएनबीसी आवाज़ के एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर और शेअर बाज़ार के उतार-चढ़ावों को अपने खास अंदाज़ में पेश करने वाले श्री अनिल सिंघवी शायद उन बिरले लोगों में होंगे जो टीवी के परदे पर तो अपनी छाप छोड़ते ही हैं॑, अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति को भी एक यादगार, प्रेरक और मौजमस्ती से भरपूर लम्हे में बदल देते हैं।

टीवी पर उनको देखना एक अलग अनुभव है, लेकिन जब चार्टर्ड एकाउंटेट की पढ़ाई कर रहे मुंबई के के 700 से अधिक छात्र-छात्राओं के बीच राजस्थानी विद्यार्थी गृह (आरवीजी) के एक कार्यक्रम में उनके साथ मंच साझा करने और उनको सुनने का मौका मिला तो अपने लिए भी एक ऐसा मौका बन गया मानो बरसों से ऐसे ही किसी ज़िंदादिल आदमी की बातें सुनने की प्यास मन में थी, जो अब जाकर पूरी हुई।

टीवी का एक लोकप्रिय चेहरा जब चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने वाले इन युवा, उत्साही और मुंबई से सैकड़ों किलोमीटर दूर से छोटे-छोटे शहरों और गाँवों से आए इन छात्र-छात्राओं से सहजता, सरलता और मस्ती के साथ रू-ब-रू होकर एक ऐसा वातावरण बना देता है कि वक्ता और श्रोता की धीर-गंभीर दूरी एक याराना संवाद में बदल जाती है तो एहसास होता है कि इस आदमी में कुछ है जिसकी वजह से यह सीएनबीसी की ‘आवाज़’ ही नहीं बल्कि ‘आत्मा’ भी बना हुआ है।

श्री अनिल सिंघवी टीवी पर भले ही लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़कर बोलते होंगे, लेकिन राजस्थान विद्यार्थी गृह (आरवीजी) के इस सभागार में उन्होंने बगैर पढ़े धाराप्रवाह 45 मिनट तक अपनी बात कही और उनकी हर बात पर छात्र-छात्राओँ की तालियाँ गूँजती रही।

उनके स्वागत में उन्हें तुलसी का पौधा दिया गया तो उससे ही अपनी बात शुरु करते हुए उन्होंने कहा मुझे पहली बार किसी मंच पर सम्मान के रूप में तुलसी का पौधा मिला है, और हमारे यही संस्कार हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने के साथ जीवन में ऊँचाई हासिल करने की प्रेरणा देते हैं।

उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए सभी छात्र-छात्राओं से पूछा, कितने लोग जीवन में पैसा कमाना चाहते हैं; जाहिर है अधिकांश छात्र-छात्राओं ने अपने हाथ ऊपर कर दिए। दूसरा सवाल उन्होंने किया कितने लोग अपनी जिंदगी अच्छी तरह से जीना चाहते हैं, यानी जिंदगी में कुछ ऐसा किया जाए कि मजा आ जाए, यानी मजा हमें ही नहीं दूसरों को भी आए। उनके इस छोटे से सवाल ने सभी छात्र-छात्राओं को मानो नींद से जगा दिया।

सभी छात्र-छात्राओं पर अपनी जादुई मौजूदगी के मोह-पाश में लेने के बाद उन्होंने कहा कि जो सीए की पढ़ाई पहली ही बार में पास कर लेता है वो प्रोफेशनल रूप से सफल हो जाता है और प्रोफेशनल जीवन जीता है और …..जो दूसरी बार में सफल हो पाता है वह पूरी ज़िंदगी जीत लेता है, उसे ज़िंदगी जीना आ जाता है, जाहिर है इस पर तालियाँ तो बजना ही थी। ..

अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने की कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि मैं भी आप ही लोगों की तरह एक औसत छात्र था। चित्तौड़ के सरकारी स्कूल में हिंदी माध्यम से पढ़कर मुंबई चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने आया था। मेरी हर एक से बात करने की इच्छा होती थी, लेकिन मन में जाने क्यों हिचक रहती थी। मेरा यहाँ 212 नंबर का कमरा था, उस कमरे के बगल में पैंट्री थी, जहाँ मेरे दूसरे साथी चाय बनाने के लिए आते थे मैं हर एक से बात करने की कोशिश करता था।

श्री अनिल सिंघवी बोले जा रहे थे और सभी छात्र-छात्रा निस्तब्धता के साथ उनके एक-एक शब्द को पीते जा रहे थे। उन्होंने कहा, मैने दसवीं कक्षा में पहली बार पैंट पहनी थी। यहाँ मुंबई में अंग्रेजी का बोलबाला था और मुझे अंग्रेजी में बात करना नहीं आता था; उन्होंने जोर देते हुए कहा और आज भी मैं अच्छी अंग्रेजी में बात नहीं कर सकता। लेकिन मेरा दिमाग तो मारवाड़ी था, मैने अंग्रेजी के उन शब्दों को रट लिया था जो सबसे ज्यादा पढ़ने-सुनने में आते थे, इसके बाद मैं हर वाक्य में उन शब्दों को चिपका देता था। (मैं अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों के सामने अभी भी अंग्रेजी में अँगूठा छाप हूँ और इसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं।) कोई मुझसे अंग्रेजी में बात करता था तो मेरी तो हवा ही निकल जाती थी और हालत ये थी कि अँग्रेजी नहीं बोलने के डर से हिंदी भी नहीं बोल पाता था, लेकिन मैने तय कर लिया कि मैं हिंदी को ही मेरी ताकत बनाउंगा। मैं अपने बच्चों के सामने आज भी उनके जैसी अंग्रेजी नहीं बोल पाता हूँ, लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि मुझे अंग्रेजी भले ही नहीं आती हो, मगर हिंदी बढ़िया आती है, बस इस आत्मविश्वास ने मेरे मन से अंग्रेजी को लेकर सब डर निकाल दिए।

अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा, आज से 13 साल पहले सीएनबीसी आवाज़ शुरु किया गया था तो इसको लेकर ये डर था कि शेअर बाज़ार और कारोबार की खबरें हिंदी में कौन देखेगा। इसके शुरु होने के दो साल तक ये समस्या भी रही कि इसकी रेटिंग ठीक नहीं आ रही थी। मुझे जब सीएनबीसी आवाज़ में खबरें पढ़ने का मौका मिला तो मैं पहले से एक अच्छी भली नौकरी कर रहा था जिसमें मुझे सीएनबीसी में मिलने वाली तनख्वाह से दुगुनी तनख्वाह और तीन गुना बोनस भी मिलता था। मैंने जब अपनी ये शानदार नौकरी छोड़कर सीएनबीसी में आने के बारे में दोस्तों से सलाह-मशविरा किया तो सबने मेरा मजाक उड़ाया और कहा कि एक सीए टीवी चैनल पर क्या करेगा।

लेकिन, मैने सोचा कि मुझे कुछ नया और चुनौतीपूर्ण करने का मौका मिल रहा है और कोई मौका मिलता है तो फिर ये नहीं देखा जाता कि पैमेंट कितना मिल रहा है; ये देखा जाता है कि मौका कहाँ मिल रहा है। लेकिन मेरे दिमाग में एक ऐसा वायरस घुस गया था कि ज़िंदगी में कुछ करना है। मै जब सीएनबीसी में आया तो इसके पहले तक मैने न तो टीवी का कैमरा देखा था न माईक।

सीएनबीसी में जाने को लेकर मेरे मन में भी ये हिचक थी कि मुझे अच्छी अंग्रेजी नहीं आती थी। इसको लेकर मैने दो बातें सोची-कि एक तो मेरा टीवी का कोई बैकग्राआउंड ही नहीं है फिर भी ये लोग मुझे ले रहे हैं तो कुछ सोच-समझ कर ही ले रहे होंगे, आखिर ये लोग मुझसे तो ज्यादा अकल वाले हैं। जब इनको मेरे टैलेंट पर भरोसा है तो मुझे तो अपने टैलेंट पर भरोसा होना ही चाहिए। दूसरा, मैने मन ही मन सोचा कि अगर ये बेवकूफ निकले तो मैं तो समझदार हूँ, मैं इनको अपने तरीके से हैंडल कर लूँगा, और अगर मैं बेवकूफ निकला तो ये लोग समझदार होंगे ही, मुझे सब सिखा देंगे।

इसी आत्मविश्वास का नतीजा है कि देश भर में 8-10 बिज़नेस चैनलों में 60 प्रतिशत मार्केट शेअर सीएनबीसी आवाज़ का है और सुबह 8 से 10 का जो रेटिंग के हिसाब से सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण टाईम है, शेअर मार्केट के हिसाब से, उसमें सीएनबीसी का शेअर 80-90 प्रतिशत है और सीएनबीसी विगत 13 सालों से इस पर टिका हुआ है।

सीएनबीसी में अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्री अनिल सिंघवी ने कहा कि उदयन मुखर्जी उस समय देश के बिज़नेस चैनलों में एक बड़ा नाम था और हर बिज़नेस चैनल का हर एंकर उनकी नकल करता था और अगर कोई नकल नहीं करता था तो उसे कहा जाता था कि उदयन मुखर्जी जैसे एंकरिंग करते हैं, वैसे करो। मैं खुद उनकी नकल करता था। एक दिन मैने सोचा कि फिल्मी दुनिया में दिलीप कुमार, राज कपूर, अमिताभ बच्चन से लेकर सलमान खान और शाहरुख खान सबने एक से एक हिट फिल्में दी और किसी ने किसी की नकल नहीं की। जिसने नकल की वो मिमिक्री आर्टिस्ट बनकर रह गया। यानी सुपर स्टार वो बने जो अपने दम पर कुछ अलग करते थे। अगर हम किसी की फोटो कॉपी बनेंगे तो फोटो कॉपी ही रह जाएँगे।

मैं रात-दिन यही सोचता रहा कि टीवी पर मुझे अपना खुद का कोई तरीका विकसित करना चाहिए जिसमें मैं ज्यादा आत्मविश्वास और असरदार ढंग से अपने दर्शकों के सामने अपने आपको प्रस्तुत कर सकूँ। अगर मुझमें दम होगा तो दर्शक मुझे ज़रुर स्वीकारेंगे। मजा तो तब है जब मैं कुछ करुँ और दूसरे उसकी नकल करने को मजबूर हो जाए। इसके बाद मैंने खबर देते समय चेहरे हाव-भावों पर ओढ़ी हुई गंभीरता की बजाय सहजता और स्वाभाविकता लाने की कोशिश करते हुए हल्के-फुल्के अंदाज़ में अपनी बात कहना शुरु की। यानी मैने एक्टिंग करना बंद करके ठीक ऐसे ही बात की जैसे एक आम आदमी दूसरे से बात करता है। मेरा ये तरीका सुपरहिट हो गया और आज यही मेरी एक पहचान बन गया है।

श्री सिंघवी बोलते जा रहे थे और सभी छात्र-छात्राएँ पूरी तन्मयता से उनके एक-एक शब्द को पीते जा रहे थे। उन्होंने कहा, फिर भी हमारे सामने चुनौती है, ये चुनौती है श्रेष्ठता पर टिके रहना। हम यह कभी नहीं भूलते कि हमारे मुकाबले दूसरे चैनल भी हैं, भले ही हमारा चैनल 13 साल से नंबर वन है।

अपने काम के प्रति अपने समर्पण और जिम्मेदारी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, शो पर आने के पहले सुबह ठीक 7 बजकर 37 मिनट पर और फिर 9.55 पर मैं अपने आप से पूछता हूँ कि मुझे अपने काम से मजा आया कि नहीं, अगर मुझे मजा आया तो मैं मान लेता हूँ कि मेरे दर्शकों को भी ज़रुर मजा आया होगा। अगर मैं अपने काम से संतुष्ट नहीं हूँ तो मेरे दर्शक भी मुझसे कभी संतुष्ट नहीं होंगे। और मुझे प्रसन्नता है कि दर्शकों ने पिछले 13 सालों से मुझे अपना प्यार दिया है।

मेरे लिए सैलरी का सवाल हमेशा से गौण रहा, सबसे बड़ी बात ये है कि मुझे ये काम करने में मजा आ रहा है। मुझे अपने काम के लिए प्रतिदिन सुबह 5 बजे ऑफिस पहुँचना होता है लेकिन मैं पूरे उत्साह, उमंग और उर्जा से लबरेज होकर ये सोचकर ऑफिस जाता हूँ कि आज का दिन मेरे लिए बहुत ही रोमांचक होने वाला है। स्टाक मार्केट, जो हर क्षण बदलता है, खबरों में हर क्षण चैंज आता है, इसके बावजूद हम अपने अंदाज़ से दर्शकों को बाँधे रखते हैं। उनको भी मजा आता है और हमको भी।

श्री सिंघवी ने कहा कि मैं जब राजस्थानी विद्यार्थी गृह में था तो पढ़ने में आलसी था, आज मैं बमुश्किल 3-4 घंटे ही सो पाता हूँ, लेकिन मुझे कभी थकान महसूस नहीं होती। इसका सीधा कारण है, भूख हो या नींद- ये आपके ऊपर है कि आपको इसकी कितनी ज़रुरत है। ऐसे तो मेरे पास सब-कुछ है और मुझे किसी चीज की ज़रुरत नहीं, लेकिन फिर भी कोई पूछे कि मेरे पास किस चीज की कमी है; तो मैं कहूँगा कि मेरे पास दिन में मात्र 24 घंटे हैं, अगर कुछ और घंटे होते तो मैं और ज्यादा काम करता।

छात्र-छात्राओं को उन्होंने कहा कि आप अपनी नींद में से कुछ घंटे कम करके किसी सकारात्मक काम में लगाएं, अगर आप प्रतिदिन चार घंटे भी बचा लेते हैं तो आप सोचिए आपको जिंदगी में कितना ज्यादा समय मिल गया।

उन्होंने कहा कि मैं कल रात को पुणे में चार्टर्ड एकाउँटेंट के कार्यक्रम में था, वहाँ से रात को ढाई बजे मुंबई पहुँचा और अब आपके बीच आ गया हूँ। यानी आप जिस काम को करना पसंद करते हैं उससे थकान नहीं आती बल्कि हमारी बैट्री चार्ज हो जाती है। अपने शौक को आप अपना प्रोफेशन बना लें तो आप जीवन को मजे के साथ जी सकेंगे। अगर आपको कोई बात पसंद है और आप नहीं कर रहे हैं तो आप अपना नुक्सान ही कर रहे हैं। कड़ी मेहनत के बाद अगर थकान न आए तो मान लो कि आपने अपने मन का काम किया।

उन्होंने कहा कि मैं पर रोज अपने आप से ये सवाल जरुर पूछता हूँ कि मैंने आज कल से ज्यादा अच्छा काम किया कि नहीं। उन्होंने कहा कि आपकी मुस्कराहट आपके व्यक्तित्व को निखार देती है इसलिए गंभीर रहने की बजाय सदैव मुस्कराते रहें।

सीए कर रहे सभी छात्र-छात्राओं से उन्होंने कहा कि सीए बनने से आपके अंदर ऐसा आत्मविश्वास पैदा होता है कि आप जीवन में कोई भी काम कर सकते हैं और किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

श्री अनिल सिंघवी ने कहा कि मैने जब सीए किया तो मेरे सामने ये सवाल था कि आगे क्या करुँ। हमारे सामने प्रायः ये सवाल पैदा हो जाता है कि हम क्या करें और क्या न करें। हम बहुत कंफ्यूज़ हो जाते हैं। हमारा दिल कुछ कहता है, दिमाग कुछ कहता है। इस मामले में मेरा मानना है कि आप पहले कोई एक फैसला लें, चाहे दिमाग से लें या दिल से लें, इसके बाद उस फैसले का विश्लेषण करें। अगली बार जब फिर आपको कोई फैसला लेना हो तो आप ये सोचें कि पिछली बार आप कब और क्यों कंफ्यूज़ हुए थे। आप धीरे-धीरे सही और सटीक फैसले लेने लगेंगे। अगर आप कुछ सोचेंगे तो वो होकर ही रहेगा।

उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी पर हर व्यक्ति अपने आप में स्पेशल है, ये आपको भी नहीं पता कि आपके अंदर कोई खासियत है। हर एक में कोई न कोई खूबी है, आपकी खूबी ही आपकी ताकत बन जाती है। आज मैं भले ही एक सफल एंकर बन गया हूँ, लेकिन मैं आज भी अपने आपको एक छात्र ही मानता हूँ।

इस अवसर पर राजस्थान विद्यार्थी गृह (आरवीजी) के छात्रों के मार्गदर्शक श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने कहा कि अगर हम पैसा कमाकर कितने ही बड़े हो जाएँ, लेकिन अगर हम अपनी जड़ों से कट जाएंगे तो हमारा कद छोटा ही रह जाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि स्वामी रामतीर्थ जब जापान गए तो उन्होंने बोंसाई वृक्षों को देखकर कहा कि ये नारियल के इन छोटे छोटे वृक्षों में फल कैसे आए हुए हैं तो उन्हें बताया गया कि इनकी जड़ों को बार बार काट दिया जाता है ताकि ये लंबाई में नहीं बढ़ पाएं। इस पर स्वामी रामतीर्थ ने कहा जो हमारी संस्कृति की जड़ों से कट जाता है उसका हाल भी यही होता है।

आरवीजी के इस वार्षिक आयोजन में श्री अनिल सिंघवी ने छात्र-छात्राओं को सफलता-असफलता, ज़िंदगी की मस्ती से लेकर संस्कारों, अनुशासन, मर्यादा, कर्त्तव्यनिष्ठा से लेकर अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाने का चिंतन जिस सहज-सरल और मस्ती भरे अंदाज़ में संप्रेषित किया उसका प्रमाण श्रोताओं में बैठे सैकड़ों छात्र-छात्राओं के चेहरों पर पढ़ा जा सकता था।

सबसे बड़ी बात ये थी कि इस सुबह 10 बजे होने वाले इस आयोजन के पहले 700 से अधिक छात्र-छात्राओं ने सुबह 5 बजे अंधेरी में स्थित आरवीजी से जुहू बीच तक मैराथन में भाग लिया था और वहाँ सफाई अभियान में भाग लेकर रस्सी खींच प्रतियोगिता का मजा लिया था।
इस कार्यक्रम ‘आगाज़ 2018’ का आयोजन आरवीजी एजुकेशनल फाउंडेशन के छात्रावास के छात्र-छात्राओं द्वारा किया गया था इसे प्योरायोजित किया है एजे एजुकेशन नेक्स्ट ने।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार