आप सभी शिमला रिज की सैर करने जाते है, तो आपको लाला लाजपतराय की प्रतिमा के दर्शन होते है। लाला जी की प्रतिमा के नीचे लिखे पट्ट पर आपको आर्य स्वराज्य सभा द्वारा स्थापित लिखा मिलता हैं। यह आर्य स्वराज्य सभा क्या थी? इसकी स्थापना किसने की थी?
“आर्य स्वराज्य सभा” की स्थापना – क्यों और कार्य”
1947 से पहले लाहौर आर्यसमाज का गढ़ था। आर्यसमाज के अनेक मंदिर, DAV संस्थाएं, पंडित गुरुदत्त भवन, विरजानन्द आश्रम, दयानन्द ब्रह्म विद्यालय, हज़ारों कार्यकर्ता आदि लाहौर में थे। आर्यसमाज के अनेक कार्यकर्ताओं में एक थे पंडित रामगोपाल जी शास्त्री वैद्य। आप पहले डीएवी में शिक्षक, शोध विभाग आदि में कार्यरत थे। आपने भगत सिंह को कभी नेशनल कॉलेज में पढ़ाया भी था। कुशल और सफल चिकित्सक होने के अतिरिक्त श्री पं० रामगोपालजी शास्त्री वैद्य एक आस्थाशील दृढ़ आर्यसमाजी, ऋषि दयानन्द के अटूट भक्त और रक्त की अन्तिम बूंद तक हिन्दुत्व के सजग प्रहरी तथा अडिग राष्ट्रसेवक थे। देश में जब गांधीजी और कांग्रेस के नेतृत्व में इस सदी के दूसरे दशक में- जलियांवाला बाग, अमृतसर हत्याकाण्ड के बाद स्वराज्य का तीव्र आन्दोलन चल रहा था, उस समय गांधीजी ने स्वराज्य प्राप्ति के लक्ष्य के साथ मुसलमानों को खुश करने के लिए खिलाफत का मसला भी जोड़ दिया था, यद्यपि विश्व के समस्त मुसलमानों का -केवल भारत के मुसलमानों का नहीं- खलीफा टर्की में रहता था और उसे पदच्युत टर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा ने ही किया था। भारत की स्वतन्त्रता का इस प्रश्न के साथ दूर का भी सरोकार नहीं था। गांधीजी की इस अदूरदर्शिता का परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस हर कीमत पर मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को अपनाकर भारत की बहुसंख्यक हिन्दु-जाति को पद दलित करने लगी। फलतः मुसलमानों में मजहबी जोश इतना भड़क गया कि उनके द्वारा कोहाट, सहारनपुर, मुलतान, बरेली, शाहजहांपुर इत्यादि उत्तर भारत के नगरों में भयंकर दङ्गे हुए, सैकड़ों हिन्दु मारे गये, लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हुई, हिन्दु अबलाओं पर नृशंस और रोमांचकारी अत्याचार, बलात् धर्मपरिवर्तन, नारी-अपहरण, स्वामी श्रद्धानन्दजी सहित दर्जनों आर्य हिन्दु नेताओं की हत्या इत्यादि अनेक अमानुषिक अत्याचार हुए। मालाबार का मोपला काण्ड तो औरंगजेब के अत्याचारों को भी मात कर गया था। मुसलमान स्वराज्य का अभिप्राय इस्लामी सल्तनत समझने लग गये थे।
1922 में “आर्य स्वराज्य सभा” की स्थापना वैद्य पं० रामगोपाल जी शास्त्री तथा उनके अन्य सहयोगियों ने की थी। आप यद्यपि कट्टर देशभक्त, राष्ट्रप्रेमी स्वराज्य प्राप्ति के लिये अधिक से अधिक त्याग करने में अग्रण्य थे पर उनका यह कथन था कि मुसलमानों के विपरीत हिन्दू ही एक ऐसा सुदृढ़ वर्ग है जो बहुसंख्यक होता हुआ इस भारत भूमि को ही लाखों-करोड़ों वर्षों से अपनी मातृभूमि और पितृभूमि समझता रहा है और अब भी समझता है। उसे दूसरे स्तर का नागरिक बना, उसके अधिकारों को कुचल कर अल्पसंख्यक बना देना सर्वथा असह्य, अमान्य और सतत संघर्ष के बीज का वपन करना है। “आर्य स्वराज्य सभा” ने शुद्धि, नारी-रक्षा, हरिजन-सेवा, अस्पृश्यता-निवारण सर्वजातीय प्रीति-भोज, कुंओं पर से हरिजनों को जल लेने देना इत्यादि उपायों द्वारा लाहौर और पंजाब में प्रशंसनीय कार्य किया। आर्य स्वराज्य सभा की ओर से एक केन्द्रीय आश्रम (रामकृष्ण सेवा आश्रम) लाहौर में रावी मार्ग पर स्थित था, जहां प्रतिदिन यज्ञ, सत्संग, शिक्षण इत्यादि कार्यों के अतिरिक्त हिन्दुत्व रक्षक और हिन्दुत्व प्रवर्धक विविध प्रवृत्तियां निरन्तर चलती रहती थीं।
सभा की ओर से लाला लाजपतराय की प्रतिमा का अनावरण
1929 दिसम्बर में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर कई कांग्रेसी नेताओं के विरोध के बावजूद आर्य स्वराज्य सभा की ओर से लाहौर के गोल बाग में स्थापित ला० लाजपतराय की प्रतिमा का अनावरण केन्द्रीय धारा सभा के अध्यक्ष श्री विट्ठल भाई पटेल (सरदार पटेल के बड़े भाई) द्वारा कराया गया। यह समारोह अत्यन्त सफल और प्रभावी था। विभाजन के बाद यह प्रतिमा लाहौर से शिमला में स्थानांतरित कर दी गई। इसी प्रतिमा के आपको रिज पर दर्शन होते है।
रामगोपाल शास्त्री जी विभाजन के उपरांत लाहौर से करोलबाग दिल्ली में बस गए। आपकी स्मृति में आर्यसमाज करोलबाग में प्रतिवर्ष वैदिक स्मृति व्याख्यान होता हैं।