प्रतिष्ठित पैनलिस्टों में भारतीय मूल के ब्रिटिश पारसी लेखक, नाटककार, पटकथा लेखक फारुख धोंडी, स्पेनिश निर्माता अन्ना सौरा, प्रख्यात अभिनेता तनिष्ठा चटर्जी, प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता वाणी त्रिपाठी टिक्को और अंग्रेजी वृत्तचित्र फिल्म निर्देशक लूसी वॉकर शामिल थे। भारतीय फिल्म निर्देशक और निर्माता बॉबी बेदी ने चर्चाओं का संचालन किया, जिसमें कहानी कहने की विभिन्न बारीकियों पर प्रकाश डाला गया, जो सार्वभौमिक तो हैं, लेकिन क्षेत्र, देश या संस्कृति विशिष्ट भी हो सकती हैं।
बॉबी बेदी ने सत्र की शुरुआत इस कथन के साथ की कि भारत विश्व स्तर पर लोकप्रिय और मजबूत फिल्म निर्माण उद्योग है; लेकिन भारतीय फिल्म निर्माता प्रवासी दर्शकों से परे दर्शकों के बारे में नहीं सोचते हैं और इसलिए, अक्सर अंतरराष्ट्रीय दर्शकों से जुड़ नहीं पाते हैं।
वृत्तचित्र फिल्म निर्माता लूसी वॉकर का मानना है कि “लोगों को उन लोगों और प्राणियों के बारे में फिल्में बनानी चाहिए जिनकी वे परवाह करते हैं।” उन्होंने कहा कि उन्हें दुनिया भर में घूमना पसंद है, लेकिन एक पर्यटक के रूप में नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों पर फिल्में बनाने के लिए। लूसी वॉकर की फिल्म ‘माउंटेन क्वीन: द समिट्स ऑफ लखपा शेरपा’ ने हाल ही में आईएफएफआई सहित फिल्म समारोहों में सराहना बटोरी है।
वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने कहा, “वसुधैव कुटुम्बकम” भारत का मंत्र है। यह हमेशा से कहानीकारों की भूमि रही है और “कथावाचन” हमेशा से हमारी परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि भारत के बाहर से आई कहानियां भी देश में सुनाई जाती हैं। उन्होंने कहा, “आखिरकार यात्रा करने वाली कहानियों में सार्वभौमिकता और सांस्कृतिक जुड़ाव का तत्व होता है।”
फारुख धोंडी ने मानव जाति में कहानी कहने के इतिहास पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, “हर जनजाति, हर संस्कृति की अपनी पौराणिक कथाएं होती हैं। यहीं से कहानी शुरू होती है! पौराणिक कथाएं हमें संस्कृति की नैतिकता के बारे में बताती हैं। कुछ यात्रा करती हैं, जबकि कुछ नहीं करतीं।” उन्होंने कहा कि सभी कहानियां दुनिया भर में दर्शकों से समान रूप से जुड़ती नहीं हैं। उन्होंने बताया कि राज कपूर की भारतीय किसानों और शहरी गरीबों से संबंधित कहानियां सोवियत दर्शकों से जुड़ी थीं और कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और आस-पास के देशों में पुरस्कार जीते, हालांकि उन्हें अमेरिका या यूरोप में उस तरह से समर्थन नहीं मिला। लेकिन दूसरी ओर, सत्यजीत रे की उपन्यास संबंधी कहानियां यूरोप और अमेरिका के दर्शकों से जुड़ सकी थीं।
उन्होंने कहा कि अगले चरण में दुनिया भर में मौजूद आधुनिक वास्तविकता पर आधारित कहानियां आईं और स्लमडॉग मिलियनेयर और सलाम बॉम्बे जैसी फिल्मों ने दुनिया भर के कई लोगों को जोड़ा। मॉनसून वेडिंग जिसमें ‘प्यार सब कुछ जीत लेता है’ (लव कनक्वेर्स ऑल) का सार्वभौमिक संदेश है, पश्चिमी दर्शकों से जुड़ पाई। फारुख धोंडी ने कहा, इसी तरह बैंडिट क्वीन ने भी पश्चिमी दर्शकों को प्रभावित किया, जो एक अलग भाषा और एक अलग संस्कृति में होने के बावजूद अपने अधिकारों के लिए लड़ रही एक महिला की कहानी से पश्चिमी दर्शकों को चकित कर दिया।
प्रसिद्ध स्पेनिश फिल्म निर्माता कार्लोस सौरा की बेटी अन्ना सौरा ने कहा कि इंटरनेट के युग में लोगों के पास दुनिया भर के कंटेंट तक पहुंच है और इसलिए सभी कहानियों के वैश्विक दर्शक हैं। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि “ऐसी कहानियां जो इंसानों के रूप में हमारी हैं, उनका दुनिया भर में जुड़ाव होगा”। उन्होंने कहा कि ये कहानियां दुनिया में कहीं से भी हो सकती हैं। अन्ना सौरा ने कहा कि फिल्म समारोहों और ओटीटी ने वृत्तचित्रों और लघु फिल्मों को भी एक मंच दिया है और इसलिए, सभी के लिए एक बड़ा बाजार खुल गया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि निर्माताओं और फिल्म निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि वे दुनिया भर में परियोजनाओं को बढ़ावा दें। इस संदर्भ में, उन्होंने कहा कि कुछ विषय ऐसे हैं जो पूरी दुनिया में यात्रा कर सकते हैं और समझे जा सकते हैं और भाषा इसके लिए कोई बाधा नहीं है।
मशहूर अभिनेत्री तनिष्ठा चटर्जी ने वैश्विक दर्शकों के लिए कहानियों की अपील पर चर्चा में एक कलाकार का दृष्टिकोण पेश किया। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शक टीवी के प्रति अधिक अनुकूल हैं और सिनेमा उनके लिए गौण है। अभिनेत्री ने बताया कि भारतीय सिनेमा संस्कृति की तरह ही जोरदार और उल्लासपूर्ण है, जबकि पश्चिम में भावनाओं को अधिक सूक्ष्म तरीके से व्यक्त किया जाता है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक बारीकियां भी देश-दर-देश बदलती रहती हैं।
तनिष्ठा चटर्जी ने यह भी कहा कि भावनाएं सार्वभौमिक होती हैं। उन्होंने कहा, “लेकिन जब विषय स्थानीय होता है, तो वह फैलता है।” अभिनेत्री ने कहा कि हमें कुछ ऐसा बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए जो सार्वभौमिक हो, बल्कि स्थानीय कहानियां बताने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने, “संस्कृति और भावनाओं की सार्वभौमिक भाषा हमेशा यात्रा करती है।”
बॉबी बेदी ने अवतार जैसी फिल्मों का जिक्र किया, जिसमें भारत की एक स्थानीय कहानी ने वैश्विक सुपर स्टोरी का रूप ले लिया था। फारुख धोंडी ने याद दिलाया कि अमेरिकी सुपर हीरो फिल्मों के भी वैश्विक दर्शक हैं। इस पर बोलते हुए लूसी वॉकर ने कहा कि सुपरहीरो भी स्थानीय लोग ही होते हैं जो मौके का फायदा उठाते हैं।
चर्चा इस बात पर समाप्त हुई कि सार्वभौमिक भावनात्मक अपील वाली स्थानीय कहानियां दुनिया भर के दर्शकों को जीत लेंगी।