अस्मिता सूद, कैलिफ़ोर्निया में स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से बायोमेडिकल डेटा साइंस में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें प्रतिष्ठित क्वाड ़फेलोशिप मिली है जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की सरकारों द्वारा समर्थित एक फेलोशिप प्रोग्राम है। इसे इन देशों में वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों की अगली पीढ़ी के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया है। हालांकि सूद ने अंडरग्रेजुएट डिग्री और इंटर्नशिप कंप्यूटर साइंस में की है, लेकिन बाद में उन्होंने हेल्थ केयर तकनीक के क्षेत्र पर फोकस करना शुरू कर दिया। इसके पीछे उनके बचपन से जुड़ी एक मुश्किल घटना है।
उस घटना को याद करते हुए वह कहती हैं, ‘‘शायद मैं तब 11 साल की थी, जब मुझे पेट में बहुत भयंकर दर्द हुआ और वह कई दिनों तक चलता रहा। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है। मुझे पेट में संक्रमण की दवा दी गई, लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ। यह लंबे समय तक चलता रहा और कभी-कभी तो यह इतना भयावह होता था कि मैं अपनी परीक्षा देने के लिए भी अपने बिस्तर से नहीं उठ पाती थी।’’ वह बताती हैं, ‘‘मुझे याद है कि मेरी मां मेरी साइंस की किताब को जोर-जोर से पढ़ती थीं ताकि मैं उसे सुन कर उसे समझ सकू्ं। यह सब कुछ सालों तक जारी रहा, और उसके 8 साल बाद 2020 में हालात बहुत खराब हो गए और मुझे इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। मुझे फिर से पेट में संक्रमण की दवा दी गई लेकिन किसी ने भी आगे जांच कराने की सलाह नहीं दी। वह मेरी मां ही थीं जिन्होंने कहा कि इसकी अल्ट्रासाउंड जांच की ज़रूरत है।’’
अल्ट्रासाउंड करने से पता चला कि सूद को पित्ताशय में 90 पथरियां थीं। वह बताती हैं, ‘‘यह असहनीय था। लंबे समय से संक्रमण के कारण यह मेरी आंतों तक फैल चुका था। डॉक्टरों ने उसे ठीक नहीं बताया। उन्हें शक था कि यह कैंसर हो सकता है।’’
उस समय, उनके गृहनगर में डॉक्टरों के पास उनकी आंतों की जांच करने के लिए केवल एक पीईटी (पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी) स्कैन मशीन उपलब्ध थी, जो विस्तृत त्रिआयामी तस्वीर दिखाती है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण सूद जांच के लिए स्थानीय अस्पताल तक नहीं जा सकीं। वह याद करती हैं, ‘‘हमें स्कैन के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा। किस्मत से, स्कैन से पता चला कि उनकी स्थिति को गाल ब्लैडर निकालने की सर्जरी और दवाओं से काबू किया जा सकता है।’’
यह एक महत्वपूर्ण बिंदु था जहां सूद ने फैसला किया कि वह सॉ़फ्टवेयर विकास पर नहीं बल्कि विशेष रूप से चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगी।
उनका कहना है, ‘‘मैं काफी कुछ और करना चाहती थी, कुछ ऐसा जहां मैं स्वास्थ्यकर्मियों के बेहतर जांच निर्णयों में कंप्यूटर साइंस की अपनी पृष्ठभूमि का इस्तेमाल कर सकूं।’’
सूद अभी मौजूदा समय में पैथोलॉजी इमेज पर काम कर रही हैं और एक सर्च एवं रिट्रीवल डेटाबेस को तैयार कर रही हैं। वह कहती हैं, ‘‘लक्ष्य यह है कि जब कोई नया मरीज़ आता है तो उसकी स्लाइड की तुलना पिछले मरीजों और उनकी स्लाइड के साथ करते हुए उनके निदान से की जा सके। यह पैटर्न का पता लगाने, रोग की ज्यादा सटीक पहचान और रोगियों के लिए बेहतर नतीजों में मदद कर सकता है।’’
उन्होंने मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) जैसी जांच तकनीकों में सुधार पर भी काम किया ताकि रेडियोग्राफर जांच रिपोर्ट का जल्द विश्लेषण सके। एक महत्वपूर्ण सफलता में एमआरआई इमेज का विश्लेषण करने के लिए कंप्यूटर को प्रशिक्षित करना शामिल था।
वह बताती हैं, ‘‘हमने ब्रेन ट्यूमर पर ध्यान केंद्रित कि या है ताकि एमआरआई को देख कर पता लगा सके कि ट्यूमर कहां स्थित और कौनसे उपक्षेत्र हैं।’’ वह इस बात पर जोर देती हैं कि कंप्यूटर मॉडल का उद्देश्य चिकित्सकों की मदद करना है न कि उनकी जगह लेना।
सूद, उन्नत स्वास्थ्य देखभाल को और अधिक सुलभ बनाने के लिए कंप्यूटर विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित का संयोजन कर रही हैं। उन्होंने स्टैनफ़र्ड के वातावरण को बेहद प्रेरणादायक और सहयोगी पाया।
वह कहती हैं, ‘‘मुझे यह पसंद है कि हर कोई अपने शोध को लेकर जुनूनी है और आप किसी से भी मिल सकते हैं, उनसे बात कर सकते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। यह बहुत दिलचस्प है।’’ वह कहती हैं, ‘‘यह अमेरिका में मेरा पहला मौका है और मैं यहां के माहौल का आनंद ले रही हूं। यहां हर कोई उन अद्भुत चीजों के बारे में बात करने के लिए कितना इच्छुक है, जिन पर वे काम कर रहे हैं। यह एक सहयोगात्मक माहौल है और यही मुझे वास्तव में पसंद है।’’
सूद को क्वाड ़फेलोशिप के बारे में अपने एक दोस्त से पता चला और उन्होंने आवेदन करने का निर्णय किया। वह कहती हैं, ‘‘यह देखना प्रेरक लगा कि ़फेलोशिप के जरिए किस तरह से शोध, नीति और औद्योगिक क्षेत्र के लोग एक साथ आ रहे हैं। सभी का साझा लक्ष्य हमारे ज्ञान का लोगों की भलाई को लिए इस्तेमाल है। यही तो मैं अपनी डिग्री के साथ करना चाहती हूं।’’
सूद की योजना पीएच.डी. करने की है जिसका मकसद अपने ज्ञान का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल में सुधार करना है, जहां वह पली-बढ़ी हैं। वह कहती हैं, ‘‘मैं भारत वापस जाना चाहती हूं। मेरा लक्ष्य स्टैनफर्ड में काम और शोध करने वाले इतने सारे लोगों के बीच सर्वश्रेष्ठ से सीखना है।’’ वह कहती हैं, ‘‘मैं उन अत्याधुनिक तकनीकों को उन जगहों तक ले जाना चाहती हूं जहां लोगों की उन तक पहुंच नहीं है। मैं व्यक्तिपरक चिकित्सा के क्षेत्र में भी काम करना चाहती हूं जहां निदान और उपचार उनकी खास ज़रूरतों के अनुरूप हो।’’
स्टीव फ़ॉक्स एक स्वतंत्र लेखक, पूर्व अखबार प्रकाशक और रिपोर्टर हैं। वह वेंचुरा, कैलिफ़ोर्निया में रहते हैं।