भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) भारत सरकार के स्थायी मूल्य के अभिलेखों का संरक्षक है। 11 मार्च, 1891 को कोलकाता में इंपीरियल रिकॉर्ड विभाग के रूप में स्थापित, यह दक्षिण एशिया के सबसे बड़े अभिलेखीय भंडारों में से एक है। इसमें सार्वजनिक अभिलेखों का विशाल संग्रह है जिसमें फाइलें, खंड, नक्शे, राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत विधेयक, संधियां, दुर्लभ पांडुलिपियां, प्राच्य अभिलेख, निजी कागजात, मानचित्र संबंधी अभिलेख, राजपत्रों और विवरणिका का महत्वपूर्ण संग्रह, जनगणना अभिलेख, विधानसभा और संसद की बहसें, निषिद्ध साहित्य, यात्रा विवरण आदि शामिल हैं।
एनएआई के पास अभिलेखों के संग्रह की कुल संख्या 34 करोड़ पृष्ठ (लगभग) है, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों, विभागों के अभिलेखों के साथ-साथ निजी और प्राच्य अभिलेखों का संग्रह भी शामिल है।
अनुमान है कि 2.25 करोड़ (लगभग) अभिलेखों की शीटें अत्यधिक नाजुक अभिलेख हैं तथा इन अभिलेखों की मरम्मत और पुनर्वास के लिए आवश्यक कार्रवाई एक आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से मिशन मोड में की जा रही है।
आज तक एनएआई ने रिकॉर्ड के लगभग 5,50,58,949 पृष्ठों का डिजिटलीकरण किया है और 28,49,41,031 पृष्ठों का डिजिटलीकरण किया जाना बाकी है।
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के संरक्षण में अभिलेखीय अभिलेखों में सुधार और पुनर्वास के लिए, विश्व भर में अपनाई जाने वाली सभी आवश्यक संरक्षण प्रक्रियाएं, जैसे निवारक, उपचारात्मक और पुनर्स्थापनात्मक संरक्षण, लागू की जा रही हैं।
एनएआई के “स्कूल ऑफ आर्काइवल स्टडीज” में अभिलेखों की मरम्मत और पुनर्वास के लिए अभिलेखागार और अभिलेख प्रबंधन में एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम के अंतर्गत उम्मीदवारों को प्रशिक्षण दिया जाता है। एनएआई द्वारा ‘रिकॉर्ड की सर्विसिंग और पुस्तकों, पांडुलिपियों और अभिलेखागार के संरक्षण’ पर लघु अवधि पाठ्यक्रम भी संचालित किया जाता है। उपरोक्त के अलावा, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने 900 उम्मीदवारों को अभिलेखों के संरक्षण और परिरक्षण पर प्रशिक्षण प्रदान किया है।
यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।