Saturday, December 21, 2024
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अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है

2024 का चुनाव मंगलवार, 5 नवंबर 2024 को है। विजेता जनवरी 2025 से शुरू होकर व्हाइट हाउस में चार साल का कार्यकाल पूरा करेगा।  राष्ट्रपति के पास कुछ कानून स्वयं पारित करने की शक्ति है, लेकिन अधिकांशतः उन्हें कानून पारित करने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर काम करना पड़ता है। विश्व मंच पर, अमेरिकी नेता को विदेश में देश का प्रतिनिधित्व करने और विदेश नीति संचालित करने की पर्याप्त स्वतंत्रता है।

दोनों मुख्य पार्टियां राज्य प्राइमरी और कॉकस नामक मतदान की एक श्रृंखला आयोजित करके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को नामित करती हैं, जहां लोग चुनते हैं कि वे आम चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किसको करना चाहते हैं।

रिपब्लिकन पार्टी में, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी बढ़त के साथ अपनी पार्टी का समर्थन हासिल किया। मिल्वौकी, विस्कॉन्सिन में एक पार्टी सम्मेलन में वे आधिकारिक रिपब्लिकन उम्मीदवार बन गए। ट्रम्प ने ओहियो के सीनेटर जेडी वेंस को अपना उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना।

डेमोक्रेट्स की ओर से, राष्ट्रपति जो बिडेन के बाहर होने के बाद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस दौड़ में शामिल हो गईं और कोई अन्य डेमोक्रेट उनके खिलाफ खड़ा नहीं हुआ। उनके साथी मिनेसोटा के गवर्नर टिम वाल्ज़ हैं ।

राष्ट्रपति पद के लिए कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं।

इनमें से एक प्रमुख नाम रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर का था, जो पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे थे, लेकिन उन्होंने अगस्त के अंत में अपना अभियान स्थगित कर दिया और ट्रम्प का समर्थन कर दिया।

डेमोक्रेट्स एक उदार राजनीतिक दल है, जिसका एजेंडा मुख्यतः नागरिक अधिकारों, व्यापक सामाजिक सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों के लिए प्रयास करना है।

रिपब्लिकन अमेरिका में रूढ़िवादी राजनीतिक दल है। इसे GOP या ग्रैंड ओल्ड पार्टी के नाम से भी जाना जाता है, यह पार्टी कम करों, सरकार के आकार को छोटा करने, बंदूक रखने के अधिकार और आव्रजन तथा गर्भपात पर कड़े प्रतिबंधों के पक्ष में है।

विजेता वह व्यक्ति नहीं होता जिसे पूरे देश में सबसे ज़्यादा वोट मिलते हैं। इसके बजाय, दोनों उम्मीदवार 50 राज्यों में होने वाले मुक़ाबलों में जीतने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

प्रत्येक राज्य में एक निश्चित संख्या में तथाकथित निर्वाचक मंडल के वोट होते हैं जो आंशिक रूप से जनसंख्या पर आधारित होते हैं। कुल 538 सीटों पर चुनाव होने हैं, और विजेता वह उम्मीदवार होता है जो 270 या उससे अधिक सीटें जीतता है।

दो राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में विजेता-सभी-लेता है नियम लागू है, इसलिए जो भी उम्मीदवार सबसे अधिक वोट जीतता है, उसे राज्य के सभी निर्वाचक मंडल के वोट दे दिए जाते हैं।

ज़्यादातर राज्य एक या दूसरी पार्टी की तरफ़ ज़्यादा झुके हुए हैं, इसलिए आम तौर पर ध्यान एक दर्जन या उससे ज़्यादा राज्यों पर होता है जहाँ दोनों में से कोई भी जीत सकता है। इन्हें बैटलग्राउंड या स्विंग स्टेट के नाम से जाना जाता है ।

यह संभव है कि कोई उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक वोट जीत ले – जैसा कि 2016 में हिलेरी क्लिंटन ने किया था – लेकिन फिर भी वह निर्वाचक मंडल द्वारा पराजित हो जाए।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है और यह सीधे आम जनता के वोटों से नहीं होती, बल्कि “इलेक्टोरल कॉलेज” नामक प्रणाली के माध्यम से संपन्न होती है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव एक मिश्रित प्रणाली है जिसमें जनता का वोट तो महत्वपूर्ण होता है, लेकिन अंतिम निर्णय इलेक्टोरल कॉलेज के माध्यम से होता है। यह प्रणाली जटिल है, लेकिन अमेरिका की संघीय प्रणाली के अनुसार इसे व्यवस्थित किया गया है ताकि सभी राज्यों को समान महत्व मिले।  आइए इसे सरल तरीके से समझते हैं:

1. चुनाव की तारीख

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हर चार साल में नवंबर के पहले मंगलवार को होता है, अगर वह दिन 1 तारीख न हो। उदाहरण के लिए, चुनाव 3 नवंबर को हो सकता है, लेकिन 1 नवंबर को नहीं।

2. चुनावी प्रक्रिया के चरण

(1) प्राइमरी चुनाव और कॉकस:

राष्ट्रपति चुनाव के पहले, विभिन्न राजनीतिक दल (मुख्यतः डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन) अपने उम्मीदवारों का चयन करने के लिए “प्राइमरी” और “कॉकस” नामक प्रक्रिया का आयोजन करते हैं।

  • प्राइमरी: यह एक तरह का चुनाव होता है जहां वोटर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देते हैं।
  • कॉकस: कुछ राज्यों में लोग इकट्ठा होकर खुली बहस के बाद उम्मीदवार चुनते हैं।

(2) नेशनल कन्वेंशन:

प्राइमरी और कॉकस के बाद, हर पार्टी एक राष्ट्रीय सम्मेलन (National Convention) आयोजित करती है, जहां पार्टी का अंतिम उम्मीदवार तय किया जाता है। उम्मीदवार का चयन पार्टी के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, और उस पार्टी के उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की भी घोषणा की जाती है।

(3) जनरल इलेक्शन (सामान्य चुनाव):

नवंबर में होने वाले इस चुनाव में जनता सीधे मतदान करती है। हालांकि, ये वोट राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को सीधे नहीं मिलते, बल्कि “इलेक्टर्स” (Electors) को मिलते हैं। इन इलेक्टर्स का चयन पहले ही कर लिया जाता है, और ये वही लोग होते हैं जो बाद में राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे।

3. इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली

अमेरिकी चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रणाली इस तरह काम करती है:

  • अमेरिका के 50 राज्यों और वाशिंगटन डी.सी. के कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं।
  • हर राज्य के पास इलेक्टर्स की एक संख्या होती है, जो उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, कैलिफ़ोर्निया के पास सबसे ज्यादा इलेक्टर्स (54) हैं, क्योंकि उसकी जनसंख्या सबसे बड़ी है।
  • चुनाव जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट चाहिए होते हैं, जो कुल इलेक्टर्स की आधी से ज्यादा संख्या है।

कैसे मिलते हैं इलेक्टोरल वोट?

  • जब जनता अपने राज्य में वोट करती है, तो वे उस राज्य के इलेक्टर्स के लिए वोट कर रहे होते हैं। उस राज्य में जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करता है, उसे उस राज्य के सभी इलेक्टर्स के वोट मिल जाते हैं (सिवाय कुछ राज्यों के, जहां वोट विभाजित हो सकते हैं)।
  • उदाहरण के लिए, अगर फ्लोरिडा में किसी उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले, तो उसे फ्लोरिडा के सभी इलेक्टोरल वोट मिलेंगे।

4. इलेक्टोरल वोट की गणना

दिसंबर में, ये चुने हुए इलेक्टर्स मिलते हैं और अपने वोट डालते हैं। फिर, जनवरी में कांग्रेस द्वारा इन वोटों की गिनती की जाती है और आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति के नाम की घोषणा की जाती है।

5. शपथ ग्रहण समारोह

जनवरी के तीसरे सप्ताह में, नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह (Inauguration Ceremony) होता है। इसके बाद, वह आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालते हैं।

6. महत्वपूर्ण बातें:

  • लोकप्रिय वोट और इलेक्टोरल वोट: जरूरी नहीं कि जो उम्मीदवार देशभर में सबसे ज्यादा जनता का वोट (लोकप्रिय वोट) हासिल करे, वही राष्ट्रपति बने। इलेक्टोरल वोट निर्णायक होते हैं। ऐसा कई बार हुआ है कि किसी उम्मीदवार ने लोकप्रिय वोट जीता हो, लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में हार गया हो।
  • Swing States (स्विंग स्टेट्स): कुछ राज्य जैसे फ्लोरिडा, ओहायो, पेनसिल्वेनिया आदि को स्विंग स्टेट कहा जाता है, क्योंकि ये राज्य हर चुनाव में किसी भी पार्टी की तरफ जा सकते हैं। इन राज्यों में किसे जीत मिलेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता है और ये चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं।

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