रामलखन मौर्य ‘मयूर’ जी का जन्म 19-07-1948 को बस्ती जिले के सदर तहसील के बहादुरपुर ब्लॉक के नगर खास गांव (जो अब नगर बाजार और नगर पंचायत है) में हुआ। उनके पिता का नाम श्री नवीन मौर्य है। उन्होंने हिन्दी और अर्थशास्त्र से एम.ए., बी.एड., साहित्यरत्न और शास्त्री की उपाधि प्राप्त की है। वे लिखने-पढ़ने के अत्यधिक शौकीन रहे हैं और जनता इंटर कॉलेज नगर बाजार में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं।
प्रकाशित कृतियाँ:
उद्गार
शृंगार शतक
1. ‘उद्गार’ काव्य संग्रह का संक्षिप्त परिचय:
‘उद्गार’ में लगभग 60 पृष्ठ हैं। यह विभिन्न प्रसंगों पर लिखी गई कविताओं का संग्रह है। गिरिराज के प्रति लिखा गया उनका एक दृष्टव्य निम्नलिखित है:
गिरिराज
उत्तुंग शिखर दुर्लघ्य सदा तब विजय गीत को गाते हैं। तेरे असीम अंचल में जन सौन्दर्य निरखने जाते हैं।
निर्भर झर झर करते हैं कहीं सरिता कल कल करती बहती। है कहाँ मनोहर दृश्य विस्तृत शुभ छटा जहां नर्तन करती।
है शुभ निसर्ग शाश्वत स्वरूप छवि धाम तुम्हें मेरा वंदन।।
(‘उद्गार’ संग्रह का “गिरिराज” शीर्षक)
अन्य कविताओं में मेरा गाँव, वीरो बढ़े चलो, बसंत, वर्षा की बूंद, सुमन, राष्ट्र शक्ति, बढ़े चलो, कदम-कदम, जलते दीप, बदलो समाज, सहकारिता, नव वर्ष, उषा, सरिता, क्यों पीते हो, सीमा का प्रहरी, प्यारा हिन्दुस्तान, तरु आदि सम्मिलित हैं। इन कविताओं में प्राकृतिक चित्रण उत्कृष्ट रूप से उभरकर आया है। कविताएँ खड़ी बोली में रची गई हैं और उनमें प्रवाह तथा लालित्य का समावेश है।
2. ‘शृंगार शतक’ काव्य संग्रह का संक्षिप्त परिचय:
मयूर जी का दूसरा काव्य-संग्रह “शृंगार शतक” सवैया और मनहरण छंदों में रचा गया है। कहीं-कहीं पर भोजपुरी क्रियाएँ भी मिलती हैं, जिससे भावों में और अधिक सौंदर्य आ गया है।
(छंद संख्या 32)
हम गांव के लोग गरीब हई चली आवे महाजन द्वार हगारे। बड़ी भाग्य हमरो है जागलि बा कइली हम राउर के सत्कारे।
संवरी सजि सारी दशा हमरी मुस्काई जो आप सनेह पधारे। हम धन्य हुए हैं प्रमोद भरे करुणा से भरे प्रभु आप निहारे।।
(छंद संख्या 15 – बसंत पर आधारित)
आयो बना दिगंत सज्यो चहु ओर छटा छटकी छविकारी। शीतल मंद समीर चल्यो मदमाती बनाती लगी मनुहारी।
वनवीरच फुल्यो शीत पुरयो अरुणाई पुपल्लव है दुतिकारी मदमाली नटी सगरी धरती मधुमास प्रमत्त हुए नर नारी।।
मयूर जी आधुनिक युग के उत्कृष्ट सवैया और घनाक्षरी छंदकारों में से एक हैं। उनके छंदों में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ मानवीय संवेदनाएँ झलकती हैं। कवि का अंतर्मन जीवन की गहराइयों में डूबकर छंदों के पुष्प गुच्छ सजाने का निरंतर प्रयास करता है। मंचों पर उन्हें आदर व सम्मान प्राप्त होता है, और आधुनिक छंद परंपरा के विकास में उनका योगदान भविष्य में महत्वपूर्ण रहेगा।
लेखक परिचय:
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)