हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्र मनाया जाता है। इन नौ दिनों में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की नौ शक्ति रूपों की पूजा (Shardiya Navratri Puja Vidhi) की जाती है। साथ ही नवदुर्गा के निमित्त नौ दिनों तक व्रत-उपवास रखा जाता है।
नवरात्र का इतिहास:
नवरात्र का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और इसे देवी शक्ति की पूजा और स्तुति के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि नवरात्र का त्योहार मुख्यतः देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना से संबंधित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले नवरात्र के नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी और दसवें दिन रावण पर विजय प्राप्त की थी, जिसे दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
इतिहास के अनुसार, नवरात्र की उत्पत्ति देवी-देवताओं के समय से मानी जाती है, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नवरात्र का महत्व:
- धार्मिक महत्व: नवरात्र में शक्ति की देवी की पूजा होती है। लोग इस दौरान उपवास रखते हैं, व्रत करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है।
- आध्यात्मिक महत्व: इस दौरान लोग अपने भीतर की नकारात्मकता और दोषों को दूर करने का प्रयास करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए ध्यान, योग और पूजा करते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्र को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में, गुजरात में गरबा और डांडिया के रूप में, जबकि उत्तर भारत में रामलीला और देवी की स्तुति के रूप में। यह विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को जोड़ने वाला त्योहार है।
वैदिक साहित्य में नवरात्र:
वैदिक साहित्य में नवरात्र को शक्ति उपासना और देवी पूजा से जोड़ा गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में देवी की स्तुति और शक्ति की आराधना के अनेक मंत्र और स्तोत्र मिलते हैं। वेदों में शक्ति को सृजन और संहार की देवी के रूप में देखा गया है। इसके अलावा, मार्कंडेय पुराण में दुर्गा सप्तशती के रूप में देवी के महात्म्य और शक्ति की पूजा का विस्तृत वर्णन है।
- देवी सूक्त (ऋग्वेद): यह वैदिक स्तोत्र देवी शक्ति की महिमा का गुणगान करता है और इसे नवरात्र के समय पढ़ा जाता है।
- दुर्गा सप्तशती: इसे मार्कंडेय पुराण का हिस्सा माना जाता है, और इसमें देवी दुर्गा के महात्म्य और उनके विभिन्न रूपों की आराधना का वर्णन है। नवरात्र के दिनों में यह ग्रंथ विशेष रूप से पढ़ा जाता है।
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