केंद्रीय बैंक बहुत सावधानी से AI को अपने काम के साथ जोड़ रहे हैं. वो अपने काम को बेहतर बनाने में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की संभावनाओं को स्वीकार करते हुए इससे जुड़े ख़तरों को लेकर भी सतर्क हैं. {Excerpt}
दुनिया भर में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस उल्लेखनीय गति से आगे बढ़ रहा है और ये बहुत से अहम सेक्टरों में दाख़िल हो रहा है. वित्तीय क्षेत्र के साथ इसका एकीकरण तो विशेष रूप से उल्लेखनीय है. इसकी वजह से केंद्रीय बैंक भी इस उभरती हुई तकनीक को धीरे धीरे अपना रहे हैं. वैसे तो शुरुआती संकेत ऐसे थे कि ये संस्थाएं AI को अपनाने को लेकर अनिच्छुक थीं. पर अगर हम बारीक़ी से हालिया गतिविधियों की पड़ताल करें, तो पता चलता है कि AI को बहुत सतर्कता के साथ अपनाया जा रहा है.
केंद्रीय बैंक ये मानते हैं कि, अगर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल किया जाए, तो ये एक क्रांतिकारी औज़ार है. इस वक़्त AI पर केंद्रीय बैंकों का ध्यान निगरानी और रिसर्च पर है, जो ये दिखाता है कि वो सतर्क और व्यवहारिक रवैया अपना रहे हैं, जो तकनीकी आविष्कारों से नज़दीकी से जुड़ा है.
दुनिया भर में केंद्रीय बैंक AI को लागू करने के लिए सक्रियता से प्रयोग कर रहे हैं. वैसे तो केंद्रीय बैंकों को इसका शुरुआती उपयोगकर्ता नहीं कहा जा सकता. लेकिन, जैसे जैसे इसके लाभ स्पष्ट होते जा रहे हैं, वैसे वैसे केंद्रीय बैंक भी उन्हें अपनाते जा रहे हैं. ये किसी भी नई तकनीक के साथ होता ही है. केंद्रीय बैंकों का ये सतर्कता और उम्मीद जगाने वाला रवैया, आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में उनकी अहम भूमिका को ही रेखांकित करता है. क्योंकि उन्हें पता है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की एक भी गड़बड़ी का बहुत व्यापक असर हो सकता है.
केंद्रीय बैंकों का ये सतर्कता और उम्मीद जगाने वाला रवैया, आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में उनकी अहम भूमिका को ही रेखांकित करता है. क्योंकि उन्हें पता है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की एक भी गड़बड़ी का बहुत व्यापक असर हो सकता है.
मिसाल के तौर पर भारत, AI के विकास में लंबी छलांगें लगा रहा है. भारत का रिज़र्व बैंक, AI और मशीन लर्निंग (ML) को मौद्रिक नीति बनाने, रिसर्च और डेटा के प्रबंधन में इस्तेमाल कर रहा है. AI के औज़ार बैंकिंग के आंकड़ों की समझ बेहतर बनाते हैं. वो पारंपरिक तरीक़ों का मशीन लर्निंग से मेल करके बेहतर पूर्वानुमान लगाते हैं और नेचुरल लैंग्वेज प्रॉसेसिंग का इस्तेमाल ऑडिट रिपोर्ट के वर्गीकरण और विनियमन के विश्लेषण के लिए करते हैं. रिज़र्ब बैंक मीडिया के जज़्बात का इस्तेमाल भी करता है ताकि संवाद के असर का मूल्यांकन कर सके और खाद्य वस्तुओं की ऑनलाइन क़ीमत से महंगाई दर का अंदाज़ा लगा सके.
इसी तरह, यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ECB) भी एथेना नाम के AI टूल के ज़रिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल का अगुवा बना है. एथेना, नेचुरल लैंग्वेज प्रॉसेसिंग (NLP) का इस्तेमाल करके ख़बरों के लेख और बैंकों के दस्तावेज़ों का विश्लेषण करता है, चलनों की पहचान करता है और अलग अलग डेटा की तुलना करता है. एथेना से निगरानी करने वाले लगभग पचास लाख दस्तावेज़ों की समीक्षा एक ही निगरानी व्यवस्था से कर पाते हैं, जिसे दस्तावेज़ों के प्रकार का मूल्यांकन करने, विषयों के पायदान के मुताबिक़ डेटा का वर्गीकरण करने, चलन वाले विषयों की पहचान करने, जज़्बात के विश्लेषण करने और जिन संस्थानों की निगरानी की जा रही है उनकी ख़ास शिनाख़्त के मुताबिक़ उन्हें सुझाव देने के लिए ख़ास तौर पर तैयार किया गया है.
इसी तरह, अमेरिका के फेडरल रिज़र्व ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इन्क्यूबेटर कार्यक्रम की शुरुआत की है, ताकि भुगतान और आर्थिक व्यवस्था के दबाव सह पाने के सालान परीक्षण से जुड़े व्यापक डेटा की समीक्षा की जा सके. NLP जैसी छोटी पहलों का इस्तेमाल, संपत्ति के स्थानीय रिकॉर्ड का मूल्यांकन करने के लिए भी किया जा रहा है.
इस वक़्त, केंद्रीय बैंक जिस तरह आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें देखकर ये कहा जा सकता है कि वो AI को रिसर्च के विश्लेषण और कुछ विशेष मामलों में निगरानी के लिए कर रहे हैं, न कि बेहद अहम निर्णय प्रक्रिया में. ये चलन AI को लागू करने के मौजूदा चलन के अनुरूप ही है, जो निर्णय लेने की मुख्य प्रक्रिया में इस तकनीक को लागू करने को लेकर सावधानी वाला रुख़ अपनाने का परिचायक है.
दुनिया भर के केंद्रीय बैंक, सतर्कता के साथ साथ व्यवहारिक तरीक़े से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को अपना रहे हैं और इस तरह वो इसकी कुशलता की संभावनाओं को स्वीकार करने के साथ साथ इससे जुड़े जोखिमों को लेकर सतर्क हैं. AI पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता से केंद्रीय बैंकों के तकनीकी तौर पर नाकाम रहने या फिर सटीक जानकारी न होने की आशंका पैदा होगी, जिससे मौद्रिक नीति के प्रबंधन और असरदार तरीक़े से वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की उनकी क्षमता पर बुरा असर पड़ेगा. इसके अलावा, AI के सिस्टमों की जटिलता से ऐसे नतीजे भी निकल सकते हैं, जिनकी अपेक्षा ही नहीं की गई. फिर इनके ऐसे अनअपेक्षित परिणाम भी सामने आ सकते हैं, जो वित्तीय बाज़ारों और स्थिरता पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं. केंद्रीय बैंकों का ये रुख़ दिखाता है कि वो आविष्कार को खुले दिल से स्वीकार करने को तो तैयार हैं, पर वित्तीय ढांचे के भीतर स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने को लेकर भी प्रतिबद्ध हैं.
यूरोपीय केंद्रीय बैंक इस संतुलित नज़रिए की सबसे बड़ी मिसाल है. उनका AI औज़ार एथेना इंसान की निगरानी क्षमता की जगह लेने के बजाय उसे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होता है.
यूरोपीय केंद्रीय बैंक इस संतुलित नज़रिए की सबसे बड़ी मिसाल है. उनका AI औज़ार एथेना इंसान की निगरानी क्षमता की जगह लेने के बजाय उसे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होता है. ECB का ज़ोर देकर ये कहना है कि वो किसी भी व्यवस्था में ‘इंसान को शामिल रखने’ की अहमियत बनाए रखना चाहता है. सुपरवाइज़रों को आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से तैयार डेटा की व्याख्या करने, उसका मूल्यांकन करने और फीडबैक मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी दी गई है. इससे बार बार सीखने की ऐसी प्रक्रिया को मज़बूती मिलती है, जिसमें मशीन की कुशलना को इंसान के निर्णय कर पाने की क्षमता से जोड़ा गया है.
इसी तरह ब्राज़ील का केंद्रीय बैंक भी AI के मामले में सधी हुई सतर्कता के साथ आगे बढ़ रहा है. ब्राज़ील का केंद्रीय बैंक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की संभावनाओं के दोहरे मिज़ाज को स्वीकार करता है: एक तरफ़ तो इससे कुशलता के मामले में काफ़ी लाभ होंगे और दूसरी तरफ़ इसमें जोखिम भी हैं. विशेष रूप से वित्तीय फ़र्ज़ीवाड़े की आशंका है. AI को लागू करने की बेहद सावधानी भरी प्रक्रिया को अपनाकर ब्राज़ील का केंद्रीय बैंक इसके लाभ लेने के साथ साथ इसके जोखिमों को कम से कमतर करने का प्रयास कर रहा है, जो सावधानी भरी अपेक्षा वाला रुख़ है.
केंद्रीय बैंकिंग की प्रक्रिया में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को लागू करने से नैतिकता की अहम चिंताएं भी पैदा होती हैं, जिनका असर मानव के श्रम, डेटा की निजता और निर्णय प्रक्रिया के पूर्वाग्रह का शिकार होने की आशंकाएं शामिल हैं. पारंपरिक रूप से केंद्रीय बैंकों द्वारा नियमन और जोखिमों का प्रबंधन पेशवेर लोग करते हैं. हालांकि, रेगटेग के आविष्कार- ब्लैकरॉक जैसी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तकनीकी समाधान- ये संकेत देते हैं कि आगे चलकर ये ज़िम्मेदारियां आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस उठा सकता है. इससे रोज़गार के भविष्य और ऐसे व्यापक बदलाव के परिणामों को लेकर नैतिकता वाले सवाल खड़े होते हैं.
डेटा की निजता भी एक अहम चिंता है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के सिस्टम, सीखने के अपने जज़्बे की वजह से प्रशिक्षण के लिए डेटा के व्यापक भंडार का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें अक्सर संवेदनशील जानकारियां होती हैं. इसका एक परेशान करने वाला पहलू ये है कि AI के सिस्टम ऐसे डेटा को दोबारा इस्तेमाल करके सार्वजनिक कर सकते हैं, जिसका पता लगाया जा चुका है या जिसे सुरक्षित माना जा चुका है. इससे अनजाने में केंद्रीय बैंकों के भीतर डेटा के लीक होने की आशंका पैदा होती है, जिससे गोपनीयता पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है. यही नहीं, जेनेरेटिव आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस निजी डेटा का संभावित इस्तेमाल करके एक जोखिम पैदा कर सकता है, बर्ताव के चलन से पहचानों का पता लगा सकता है और इस तरह निजता के अधिकारों में सेंध लगा सकता है.
AI की निर्णय प्रक्रिया में पूर्वाग्रह भी नैतिकता की एक अहम दुविधा खड़ा करता है. केंद्रीय बैंकों का आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाला सिस्टम अगर पूर्वाग्रह वाले आंकड़ों पर प्रशिक्षित किया जाता है, तो इससे ग़लत पूर्वानुमान और नीतिगत फ़ैसले हो सकते हैं.
AI की निर्णय प्रक्रिया में पूर्वाग्रह भी नैतिकता की एक अहम दुविधा खड़ा करता है. केंद्रीय बैंकों का आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाला सिस्टम अगर पूर्वाग्रह वाले आंकड़ों पर प्रशिक्षित किया जाता है, तो इससे ग़लत पूर्वानुमान और नीतिगत फ़ैसले हो सकते हैं. जैसे कि ब्याज दरें तय करना, मौजूदा पूर्वाग्रहों को जारी रखना और फिर इनसे अनुचित परिणाम निकल सकते हैं. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को प्रशिक्षित करने के लिए अगर पूर्वाग्रह वाले डेटा का इस्तेमाल किया जाता है, तो फिर वो ऐसे फ़ैसले ले सकते हैं, जिनसे कमज़ोर तबक़ों के साथ होता आ रहा ऐतिहासिक भेदभाव आगे भी जारी रह सकता है. अगर, प्रशिक्षण वाले डेटा में पहले के पूर्वाग्रह दिखाई देते हैं, जैसे कि अमीर अभ्यर्थियों को तरज़ीह देना या फिर कुछ ख़ास मुहल्लों को क़र्ज़ न देना, तो AI के सिस्टम ऐसे ही पूर्वाग्रह भरे फ़ैसले लेना सीख लेंगे.
नैतिकता के ये सवाल साइबर सुरक्षा तक भी जाते हैं. क्योंकि, इन सिस्टमों के हैक हो जाने का ख़तरा भी होता है. इसके अतिरिक्त पारदर्शिता की चुनौती भी है. क्योंकि, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से लिए गए फ़ैसलों को जनता को समझाना बुनियादी तौर पर मुश्किल हो सकता है. AI को ट्रेनिंग देने के लिए, असली आंकड़ों के बजाय बनावटी डेटा का इस्तेमाल करने से ये मामले और पेचीदा हो जाते हैं, जिससे आर्थिक पूर्वानुमानों के और बिगड़ जाने का अंदेशा पैदा होता है.
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जो केंद्रीय बैंक आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करेंगे, वो उन केंद्रीय बैंकों से बेहतर स्थिति में होंगे जो इनका उपयोग नहीं करेंगे. ये ख़याल न व्यवहारिक है. और न ही सही है कि केंद्रीय बैंकों को अपने काम में तेज़ी से AI का उपयोग शामिल करना चाहिए. ये बात जगज़ाहिर है कि तमाम देशों के आर्थिक परिदृश्य अलग अलग हैं, उनके सांस्कृतिक माहौल जुदा हैं और विनियमन की स्थितियां भी भिन्न भिन्न। हैं. ऐसे में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के उनके समाधान भी निश्चित रूप से अलग ही होंगे.
यहां ये बात समझना ज़रूरी है कि केंद्रीय बैंकों द्वारा AI का उपयोग करने को इन फ़ासलों की रौशनी में बारीक़ी से देखना पड़ेगा. ख़ास ज़रूरतों और हर देश के अपने जोखमों का व्यापक अध्ययन किए बग़ैर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को अपनाने की होड़ में शामिल होने से ऐसी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं, जो पहले कभी देखी सुनी नहीं गईं. इसीलिए, केंद्रीय बैंकों को अपने अपने संदर्भों पर सावधानी से विचार करना चाहिए, दुनिया के बेहतरीन उदाहरणों से सीखने के साथ साथ अपनी ख़ास परिस्थितियों के मुताबिक़ AI को ढालना चाहिए.
भारत में DEPA 2.0 (डेटा एम्पावरमेंट ऐंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर) के तहत एक रहस्यमय प्रयोग कॉन्फिडेंशियल कंप्यूटिंग रूम (CCRs) का है. इस पहल का मक़सद AI के मॉडलों को प्रशिक्षित करने के लिए हार्डवेयर से संरक्षित माहौल में संवेदनशील डेटा का सुरक्षित प्रबंधन करना है, जहां निजता और सुरक्षा बनाए रखी जानी है.
2021 में अपनी शुरुआत के बाद से ही रिज़र्व बैंक की निगरानी में DEPA ने बैंकों और वित्तीय कंपनियों समेत 415 संस्थाओं को इसमें शामिल किया है. CCR का ये पायलट प्रोजेक्ट क़र्ज़ देने वालों, तकनीकी सुविधाएं देने वालों और सॉफ्टवेयर विक्रेताओं के साथ सहयोग करके इसके असरदार होने और केंद्रीय बैंकों द्वारा वित्तीय स्थिरता के प्रबंधन में केंद्रीय भूमिका का मूल्यांकन करने का प्रयास कर रहा है, जिससे AI को अपने काम में शामिल करने जैसे कोई व्यापक बदलाव को बेहद महत्वपूर्ण बन गया है. ऐसे परिवर्तनों को व्यापक अर्थव्यवस्था या देशों की वित्तीय स्थिरता से कोई छेड़छाड़ करने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए. अपने कामों में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करने को लेकर सावधानी से फूंक फूंककर क़दम उठाना ये दिखाता है कि केंद्रीय बैंकों को इन संभावित जोखिमों का बख़ूबी अंदाज़ा है और वो वित्तीय व्यवस्था में एक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को जानते समझते हैं.
केंद्रीय बैंकों के AI का इस्तेमाल करने के जोखिमों की तादाद का अंदाज़ा लगाना निश्चित रूप से एक जटिल मसला है. ऊपर जिन उदाहरणों की चर्चा की गई है, उनसे ये तो साफ है कि नैतिकता की तमाम दुविधाएं खड़ी होती हैं. लेकिन, ये सैद्धांतिक चिंताएं व्यवहारिक दुनिया में क्या असर डालती हैं? केंद्रीय बैंक बहुत से अहम काम करते हैं. मिसाल के तौर पर नीतिगत निर्णय लेने और आर्थिक स्थिति की वास्तविक तस्वीर पेश करने के लिए उनके द्वारा किए जाने वाले व्यापक रिसर्च को ही लें. इस मामले में AI का इस्तेमाल तुलनात्मक रूप से कम विवादास्पद है. सिम्युलेशन के लिए, अलग अलग परिस्थितियों के मॉडल तैयार करने के लिए और कई आर्थिक और वित्तीय स्थितियों को समझने के लिए AI का इस्तेमाल किया जा सकता है.
हालांकि, जब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को ज़्यादा अहम कामों के समाधान और निर्णय लेने वाले के तौर पर देखा जाता है, तो हालात नाटकीय रूप से बदल जाते हैं. केंद्रीय बैंक धन की आपूर्ति और ब्याज दरों को नियंत्रित करते हैं, ताकि महंगाई को नियंत्रित रखा जा सके. मुद्रा को स्थिर रखते हुए टिकाऊ आर्थिक विकास किया जा सके. केंद्रीय बैंक किसी भी देश की मुद्रा जारी रखने और उसके विनियमन का भी विशेषाधिकार रखते हैं, ताकि मौद्रिक व्यवस्था में स्थिरता और विश्वास को बनाए रख सकें. इन मामलों में AI को शामिल करना अधिक विवादास्पद बन जाता है. AI द्वारा स्वायत्त रूप से इन कामों का प्रबंधन करने का विचार तो परेशान करने वाला है. पर, ऐसे फ़ैसलों की जटिलताओं और बारीक़ियों को स्वीकार करना अहम है.
AI द्वारा स्वायत्त रूप से इन कामों का प्रबंधन करने का विचार तो परेशान करने वाला है. पर, ऐसे फ़ैसलों की जटिलताओं और बारीक़ियों को स्वीकार करना अहम है.
सबसे अहम बात ये समझना है कि किन कामों को आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से कुशल बनाया जा सकता है और कहां पर मानवीय निर्णय प्रक्रिया की जगह AI नहीं ले सकता. ये एक ऐसा नाज़ुक संतुलन है, जिसके लिए सोच-समझकर संतुलित तरीक़ा अपनाना चाहिए, ताकि AI मानवीय विद्वता में मददगार बने, न कि उसकी जगह ले. कंप्यूटिंग की अपनी तमाम क्षमताओं के बावजूद, AI के पास मानवीय जटिलताओं, ऐतिहासिक संदर्भों और नैतिकता के उन विचारों को समझने की क़ुव्वत नहीं है, जो इनसे जुड़े फ़ैसले लेने के लिए आवश्यक हैं. इन मामलों में दांव पर बहुत कुछ लगा है- कोई भी ग़लत क़दम उठा तो पूरी अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है. ऐसे में परिचर्चा किसी आविष्कार की कुशलता की नहीं है; ये उन बुनियादी सिद्धांतों का सवाल है, जो हमारी आर्थिक व्यवस्थाओं को चलाते हैं और उनको बिना किसी इंसानी निगरानी और फ़ैसले लेने के अधिकार के एल्गोरिद्म के हवाले करने के संभावित जोखिमों का है.