जयपुर में रामनिवास उद्यान के मध्य स्थित एलबर्टल संग्रहालय बहुत ही समृद्ध , प्राचीन और रोचक संग्रहालय है। संग्रहालय की विशेषता है कि इसमें राजस्थान की संस्कृति तो देखने को मिलती है है ,साथ ही भारत देश के साथ – साथ यूरोपीय, मिस्र, चीनी, ग्रीक और बेबीलोन की सभ्यताओं के साथ – साथ राजा महाराजाओं , राजचिन्हों आदि के बड़े – बड़े चित्र संग्रहालय भवन की बाहर की गैलरियों और हॉल की दीवारों पर बहुत ही आकर्षक रूप से बनाए गए हैं। पहले संग्रहालय में मुख्य प्रवेश का रास्ता इन्हीं गैलरियों से ही कर जाता था, जिसे अब प्रवेश पीछे से पृथक कर दिया गया है।
यह राज्य का सबसे पुराना संग्रहालय है और वर्तमान ने राज्य के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के अधीन राज्य का सबसे बड़ा संग्रहालय है। संग्रहालय में विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों और भारतीय इतिहास के विभिन्न काल-खंडों की बहुत ही रोचक जानकारी का प्रदर्शन चित्रों, मॉडल, झांकियों, मूर्तिकला, चित्रकला आदि विभिन्न प्रकार की सामग्री से मिलती है। संग्रहालय में टूटू नाम की करीब ढाई हजार साल पुरानी मादा ममी प्रदर्शित है। टूटू मिस्र के देवता खेम की पूजा करने वाले पुजारियों के परिवार से थी। टूटू के बारे में अनुमान है कि वह 20 साल की लड़की थी, जो मिस्र के एक शाही परिवार से संबंधित थी। इस महत्वपूर्ण संग्रह के साथ संग्रहालय में करीब 19 हजार से अधिक वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है । संग्रहालय में इतिहास भूगर्भशास्त्र, अर्थशास्त्र, विज्ञान और कला कौशल विषयों पर आधारित सामग्री ब्रिटेन, ईरान, बर्मा, लंका, जापान, तिब्बत, नेपाल आदि स्थानों से एकत्रित कर यहां प्रदर्शित की गई है।
संग्रहालय में विभिन्न मनोरंजक गैलरियों में उन्नीसवीं शताब्दी से प्राचीन काल तक की वस्तुओं का आश्चर्यजनक खजाना देखने को मिलता है। मिस्र की कलात्मक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। 17 वीं शताब्दी का फारसी उद्यान कालीन और कई प्राचीन मूर्तियां संग्रहालय के महत्वपूर्ण प्रदर्शन हैं। यहां गुप्त , कुषाण , दिल्ली सल्तनत , मुगल और ब्रिटिश काल के सिक्के भी देखने को मिलते हैं।
संग्रहालय में प्रवेश करते ही भूतल पर राजस्थान के भील, गाडोलिया लुहार, भोपा , आदि जनजातियों के मॉडल्स की झांकियाँ, संगीत वाद्य यंत्र, राजस्थानी नृत्यों के मॉडल्स, पत्थर की कुराई, सोने के गहनों पर मीनाकारी का काम, हाथी दांत की कुराई, बीकानेरी सुनहरी बर्तन, ऊंट के चमड़े के बर्तनों पर सुनहरी काम, लकड़ी की कुराई, पीतल की कारीगरी का काम, प्राचीन प्रतिमाओं, हथियार व प्राचीन चित्रों का क्रमिक विकास मंत्रमुग्ध कर देते हैं। जापान, श्रीलंका, म्यांमार, हंगरी, जर्मनी, ऑस्ट्रिया आदि से अंतर्राष्ट्रीय कला, मिट्टी के बर्तन, कालीन, आभूषण, संगीत वाद्ययंत्र, हाथी दांत, लकड़ी का काम और पत्थर के काम के नमूने भी देखते ही बनते हैं।
संग्रहालय की ऊपरी दीर्घा में देश के विभिन्न प्रान्तों का कला-कौशल नमूने, प्राचीन लघु चित्र, भू-गर्भ शास्त्र, प्राणि शास्त्र विज्ञान एवं शरीर विज्ञान सम्बन्धी वस्तुएं आकर्षित करती हैं। यहां अद्भुत कारीगरी युक्त फारसी और मुगल कालीन, विभिन्न काल के सिक्के ,ज्वेलरी, क्ले आर्ट, वस्त्र, संगमरमर कला, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, धातु कला, हथियार और कवच जैसी अन्य रोमांचक सामग्री भी दर्शनीय हैं।
संग्रहालय के बारे में बता दें इस इमारत का निर्माण कार्य महाराजा रामसिंह ने प्रारंभ करवाया था और निमार्ण के दौरान ही उनका का निधन हो गया। उनके बाद महाराजा माधो सिंह ने चीफ इंजीनियर सैमुअल स्विंटन जैकब की अगुवाई में अल्बर्ट हॉल का काम पूरा कराया। संग्रहालय भवन की स्थापत्य कला शिल्प भी दर्शनीय है जो इंडो-सरसेनिक ( कई देशों की स्थापत्य कला का मिश्रण) वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है । इस इमारत का उद्घाटन एडवर्ड बेडफोर्ड ने 21 फरवरी 1887 को किया। संग्रहालय को 1887 में जनता के लिए देखने के लिए खोला गया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद 1959 में डॉ. सत्यप्रकाश श्रीवास्तव के निर्देशन में इस संग्रहालय को नया रूप दिया गया था। आज यह संग्रहालय राजस्थान आने वाले सैलानियों को और खास कर बच्चों को खूब लुभाता है। रात्रि में रंगबिरंगी रोशनी में जगमगाते भवन का सम्मोहन जादुई लगता है। संग्रहालय दर्शकों के लिए प्रातः 9.30 से सांय 5.00 बजे तक खुला रहता है।
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा
