बॉलीवुड के दिग्गज फिल्मकार संजय लीला भंसाली की पहली वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ पिछले कई दिनों से लगातार बज में बनी हुई थी। अब ये 8 एपिसोड वाली सीरीज हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज कर दी गई है। इस वेब सीरीज में मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा, शेखर सुमन, फरदीन खान सहित कई सितारे हैं। भंसाली के दिमाग में पिछले 18 साल से ‘हीरामंडी’ का आइडिया था।
संजय लीला भंसाली की सीरीज को काफी पसंद किया जा रहा है। आज हम आपको हीरामंडी की एक ऐसी तवायफ की कहानी बताने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान की मशहूर एक्ट्रेस थीं। नाम था निग्गो उर्फ नरगिस बेगम। निग्गो ने करीब 100 फिल्मों में काम किया था, जितना वह पर्दे पर चमकी, उतनी ही उनकी पर्सनल लाइफ दर्दनाक रही। आज हम आपको अपने बताने जा रहे हैं लाहौर के सबसे बदनाम रेड लाइट एरिया हीरामंडी में जन्मीं निग्गो की कहानी।
निग्गो उर्फ नरगिस का जन्म लाहौर के रेड लाइट एरिया हीरामंडी में हुआ था। उनकी मां तवायफ हुआ करती थीं, जो परिवार के गुजारे के लिए महफिलें और मुजरा किया करती थीं। निग्गो भी अपने मां के नक्शेकदम पर चलीं। बचपन से ट्रेडिशनल डांस सीखते हुए नरगिस इस कदर माहिर हो चुकी थीं कि हीरामंडी में लगने वाली उनकी महफिलों में उनका मुजरा देखने के लिए भारी भीड़ जमा हुआ करती थी। 40 के दशक में राजशाही खत्म होने को आ गई। ये वो दौर भी था, जब सिनेमा की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन महिलाएं फिल्मों में काम करने से कतराती थीं। ऐसे में जब भी फिल्म के लिए हीरोइन की जरूरत होती थी तो प्रोड्यूसर तवायफों के ठिकाने का रुख करते थे।
कहा जाता है कि निग्गो एक बार हीरामंडी में महफिल सजाए बैठी थीं। हमेशा की तरह उनकी मेहफिल में भीड़ लगी हुई थी। तभी एक पास्तानी प्रोड्यूसर अपनी फिल्म के लिए हीरोइन की तलाश में निकला था। उन्होंने कोठे पर भीड़ लगी देखी तो खुद भी उसका हिस्सा बन गए। आला दर्जे की ट्रेडिशनल डांसर नरगिस के खूबसूरती, डांस और चेहरे के हावभाव देखकर वो प्रोड्यूसर इस कदर इंप्रेस हो गया कि उसने कुछ समय बाद नरगिस को अपनी फिल्म का ऑफर दे दिया। नरगिस भी हीरामंडी से निकलना चाहती थीं, और वह फिल्मों में काम करने के लिए तुरंत तैयार हो गईं।
नरगिस ने साल 1964 की पाकिस्तानी फिल्म इशरत से डेब्यू किया। बेहतरीन डांसर होने के नाते निग्गो को एक के बाद कई फिल्में मिलने लगीं। वह 1968 की शहंशाह-ए-जहांगीर (1968), नई लैला नया मजनूं (1969), अंदालिब (1969), लव इन जंगल (1970), अफसाना (1970), मोहब्बत (1972) जैसी 100 से ज्यादा फिल्मों में नजर आईं। उन्हें ज्यादातर फिल्मों में मुजरे के लिए ही रखा जाता था।
70 के दशक में निग्गो के नाम का पाकिस्तानी सिनेमा में बोलबाला था। इसी दौरान उन्हें प्रोड्यूसर ख्वाजा मजहर की फिल्म कासू में काम मिला। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही उन्हें ख्वाजा मजहर से प्यार हो गया और नरगिस ने ख्वाजा से शादी कर ली। कई लोग उनकी शादी के खिलाफ थे। वजह थी निग्गो का तवायफों के खानदान से ताल्लुक होना, लेकिन ख्वाजा मजहर ने कदम पीछे नहीं खींचे और निग्गो को अपनी बेगम बना लिया। ख्वाजा मजहर से शादी के बाद निग्गो ने हीरामंडी से नाता खत्म कर दिया। निग्गो की शादी के बाद हीरामंडी में रह रहे उनके परिवार की रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो चुका था। शादी के बाद निग्गो ने भी फिल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया।
वहीं जब तवायफ कल्चर जब खत्म होने वाला था तो शाही मोहल्ले में एक रिवाज की शुरुआत की गई कि अगर कोई शख्स शाही मोहल्ले के कोठे की लड़की से शादी करेगा, तो उसे उस लड़की के परिवार वालों को उसकी रकम चुकानी होगी। निग्गो के परिवार का रोजी रोटी का जरिया खत्म हो चुका था और वह चाहते थे कि निग्गो हीरामंडी वापिस आ जाएं। लेकिन जब उन्होंने लौटने से साफ इनकार कर दिया, तो परिवार उनके पति से रिवाज के तहत एक पैसों की मांग करने लगा।
जब निग्गो के परिवार की हर कोशिश के बाद वह सफल नहीं हुए तो मां ने अपनी तबीयत बिगड़ने का नाटक किया और निग्गो को हीरामंडी बुला लिया। जैसे ही वह घर पहुंचीं तो परिवार ने उनके कान भरने शुरू कर दिए। निग्गो जब कई दिनों तक घर नहीं लौटीं तो मजहर ख्वाजा परेशान रहने लगे। वो कुछ दिनों बाद उन्हें लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन परिवार के दबाव में निग्गो ने मजहर के साथ लौटने से साफ इनकार कर दिया। लाख कोशिशों के बाद निग्गो अपने पति के पास नही लौटी। 5 जनवरी 1972 की बात है। मजहर ख्वाजा निग्गो को लेने हीरामंडी पहुंचे, लेकिन इस बार भी निग्गो ने उनके साथ आने से साफ इनकार कर दिया। नरगिस की बेरुखी से देखकर मजहर ख्वाजा ने गुस्से में अपनी जेब से बंदूक निकाली और निग्गो पर चलानी शुरू कर दी। उन्होंने निग्गो पर एक के बाद एक कई गोलियां चलाईं। हादसे में निग्गो ने हीरामंडी के अपने घर में ही दम तोड़ दिया और उनके साथ 2 म्यूजिशियन और अंकल की भी मौत हो गई। वहीं निग्गो की हत्या के जुर्म में मजहर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।