सिनेमैटोग्राफर्स को हर नई फिल्म को अपनी पहली फिल्म की तरह देखना चाहिए: जॉन सील
गोआ। गोवा में आयोजित 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में “इन-कन्वर्सेशन” सत्र में प्रसिद्ध छायाकार जॉन सील ने सिनेमैटोग्राफी की कला में अपने व्यापक करियर और अंतर्दृष्टि का अनुभव साझा किया। सील ने दृश्य माध्यम से कहानी कहने में प्रकाश की परिवर्तनकारी शक्ति पर चर्चा की और प्रत्येक फिल्म के लिए एक नया दृष्टिकोण बनाने के महत्व पर उल्लेख किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सिनेमैटोग्राफी के लिए कोई फॉर्मूला नहीं है – हर प्रोजेक्ट में अपने अनूठे कथानक, भूगोल और संदर्भ के साथ, नई सोच की आवश्यकता होती है।
सील की फिल्मी यात्रा 1960 के दशक में शुरू हुई, जब ऑस्ट्रेलियाई फिल्म उद्योग उभर रहा था और उन्होंने वृत्तचित्रों से लेकर नाटक तक कई तरह के मीडिया में कार्य किया तथा काम के दौरान कला की बारीकी सीखी। ऑस्ट्रेलियाई प्रसारण निगम (एबीसी) के साथ उनके काम ने उन्हें घोड़ों की दौड़ को कवर करने और टेलीविजन शॉर्ट्स को फिल्माने सहित अपने कौशल को विकसित करने का मौका दिया। उन्होंने कहा कि मैं घोड़ों की दौड़ को कवर करने के तरीके पर एक लंबा व्याख्यान दे सकता हूं।
सील ने कहा कि जैसे-जैसे ऑस्ट्रेलियाई सिनेमा उद्योग फल-फूल रहा था, तो उनके साथियों ने जुनून के साथ फिल्में बनायीं। उन्होंने बताया कि अमरीका की फार्मूलाबद्ध संरचना “वाइड-शॉट – मीडियम-शॉट और क्लोज-अप” के आधार पर काम नहीं किया गया है। इस दृष्टिकोण की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से अमरीका में सराहना की गई, जहां पर फिल्म निर्माताओं ने बजट और समय-सीमा के भीतर काम करने के ऑस्ट्रेलियाई तरीके की सराहना की। सील ने कहा कि सिनेमेटोग्राफी के लिए कोई फॉर्मूला नहीं है। आपको लगता होगा कि हमने एक फिल्म के लिए कोई स्टाइल बनाया होगा – मैं इसकी प्रशंसा कर सकता हूं और सोच सकता हूं कि मैं इसे अगली फिल्म में भी अपना सकता हूं। लेकिन नहीं! हर फिल्म अनोखी होती है। ऑस्ट्रेलिया में, हम ‘क्या होगा अगर’ प्रणाली का अभ्यास करते थे। ‘क्या होगा अगर ऐसा हुआ? क्या होगा अगर इसे यहां होना ही है?’
सील ने अपने विश्वास को साझा करते हुए कहा कि कैमरा प्रोफेशनल को हर प्रोजेक्ट को हमेशा ऐसे देखना चाहिए जैसे कि यह उनकी पहली फिल्म हो। उन्होंने बताया कि कैसे समय के साथ उन्होंने एक कैमरे से कई कैमरों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जिससे अभिनेताओं और तात्कालिक दृश्यों की अधिक गतिशील कवरेज की संख्या बढ़ी। उन्होंने बड़े प्रेम से याद करते हुए कहा कि कैसे एक दृश्य की शूटिंग के दौरान, अभिनेता ने एक टूथपिक गिरा दी जो स्क्रिप्ट में नहीं थी लेकिन खूबसूरती से उसमें सुधार किया गया था। उन्होंने बताया कि तभी मुझे एहसास हुआ कि हमें इसे एक साथ दो कैमरों से शूट करना चाहिए। उन्होंने बताया कि उन दिनों हम हमेशा एक अतिरिक्त कैमरा साथ रखते थे, ताकि अगर शूट किए जा रहे कैमरे में कोई तकनीकी समस्या आती तो हम आपातकालीन स्थिति में काम कर सकें। उन्होंने हंसते हुए कहा कि इसलिए, मैंने बस ‘इमरजेंसी’ चिल्लाया और निर्देशक को आंख मारी। इससे वह समझ गया और इस तरह हमने बाकी सीन को दो कैमरों के सेट अप के साथ शूट किया।
सील ने लाइटिंग कैमरामैन और ऑपरेटर दोनों के होने के महत्व को भी रेखांकित किया, क्योंकि इससे निर्देशक तथा अभिनेताओं के साथ एक करीबी रिश्ता बनता है, जो आकर्षक फिल्म बनाने के लिए आवश्यक होता है। उन्होंने कहा कि “जब मेरे कई दोस्त कैमरा प्रोफेशन में ऊंचे स्तर पर पहुंच गए, तो मैंने लाइटिंग कैमरामैन तथा ऑपरेटर बनना पसंद किया क्योंकि मुझे हमेशा लगा कि मैं निर्देशक के करीब रहता हूं और उसे वह दृश्य दिखाने में मदद करता हूं जो वह चाहता है।”
सील ने अभिनय में अभिनेता के पक्ष को समझने के लिए किए गए अपने प्रयासों को भी साझा किया और बताया कि कैसे कैमरा पर्सन के तकनीकी पहलू उन्हें प्रस्तुति देने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। उन्होंने बताया, मैंने हमेशा पाया है कि जब अभिनेता को सही फोकस या शॉट पाने के लिए फ्लोर पर बने ‘निशानों’ का पालन करना पड़ता है, तो वह यांत्रिक हो जाता है – जिसे आमतौर पर कैमरा क्रू या फोकस खींचने वाले द्वारा चिह्नित किया जाता है। उन्होंने बताया कि यह उनका काम नहीं है, बल्कि कैमरा पर्सन का काम है। इसलिए, उन्होंने कैमरे के लिए निशान बनाना पसंद किया – जहां पर क्रू को पता होगा कि सही फोकस कहां प्राप्त करना है और अभिनेता को इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।
सील ने यह भी बताया कि कैसे उन्होंने क्लैप बोर्ड को बदल दिया जो शोर एवं ध्वनि के कारण अभिनेताओं को परेशान करता था, जहां पर उन्हें तैयार होना था और किरदार में आना होता था। उन्होंने बताया कि
“इसलिए, हमने बिना शोर के स्लाइड-इन बोर्ड लाए जिससे उन्हें तैयार होने और किरदार में आने का समय मिल गया।”
इस सत्र में दर्शकों को फिल्म में डूबाए रखने के उनके दर्शन पर प्रकाश डाला गया। सील ने उन क्षणों को कैप्चर करने की चुनौतियों का वर्णन किया, जो दर्शकों को बांधे रखते हैं, जैसे कि एक तूफानी दृश्य में अभिनेताओं की भावनात्मक तीव्रता को प्रबंधित करने का उदाहरण। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि प्रत्येक फिल्म को एक अनूठी परियोजना के रूप में देखा जाना चाहिए। सील ने कहा कि पिछले कामों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्री-प्रोडक्शन का महत्व और निर्देशक की दृष्टि को समझना उनकी प्रक्रिया में मुख्य बिंदु थे, विशेष रूप से कैमरा लेंस जैसे तकनीकी विकल्पों के संबंध में, जो अभिनेताओं तथा कहानी दोनों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं। सील ने कहा कि “आप प्री-प्रोडक्शन के दौरान जितना अधिक काम करते हैं, फिल्मांकन के दौरान उन्हें कैप्चर करना उतना ही आसान होता है।”
सील की बातचीत से सिनेमैटोग्राफी की कला के प्रति उनके अनुभव एवं प्रतिबद्धता की गहराई का पता चला और यह दर्शाया कि अभिनेताओं तथा दर्शकों के साथ गहरा संबंध बनाए रखते हुए प्रत्येक नई फिल्म के लिए अनुकूलन व नवाचार करना कितना महत्वपूर्ण है।
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कि क्या नए जमाने के डिजिटल कैमरे दिव्यांग लोगों को सिनेमैटोग्राफर बनने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि एक आम सोच है कि दिव्यांग लोग अच्छे सिनेमैटोग्राफर नहीं बन सकते, उन्होंने अपनी धारणा व्यक्त की कि निश्चित रूप से कैमरे किसी भी व्यक्ति को क्रिएटर बनने में मदद कर सकते हैं। सील ने जोर देते हुए कहा कि “यह स्क्रिप्ट है!” और कहा कि शारीरिक दिव्यांगता किसी क्रिएटर को नहीं रोक सकती है।