Wednesday, December 18, 2024
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चित्रनगरी में फिल्मी दुनिया पर सार्थक संवाद

मुंबई। ‘चित्रनगरी संवाद मंच’ सृजन संवाद के अंतर्गत सिनेमा का आधुनिक दौर एवं लघु फिल्मों का हस्तक्षेप पर चर्चा हुई। आमंत्रित वक्ता के रूप में पधारें संजय शुभांकर जी (लेखक, निर्देशक) ने अपने सिनेमा यात्रा के बारे में बताते हुए कहा, लखनऊ में ‘यायावर नाट्य संस्था’ से जुड़ने के बाद रंगमंच पर अभिनय करते हुए लोगों को देखकर मन में ललक उत्त्पन्न होती थी कि एक दिन मुझे भी स्टेज पर पहुंचना है, वे लोग मेरे लिए प्रेरणा स्रोत थे। झाड़ू लगाना, जूठे चाय के कप उठाना, सभी कलाकारों के जाने के बाद सब कुछ समेटकर अंत में निकलना। काम करने का जोश, ईमानदारी और निष्कपटता इन्हीं तत्वों ने यहां तक पहुंचाया है। बाद में ‘भारतेंदु नाट्य अकादमी’ से जुड़कर बहुत कुछ सीखा।
मुंबई आने के बाद बतौर सहायक निर्देशक के रूप में डीडी पर आने वाले धारावाहिक ‘विरासत’ से शुरुआत की। ज़ी टीवी पर आने वाले पहले धारावाहिक में सहायक के रूप में तीन दिन तक काम किया, चौथे दिन चीफ असिस्टेंट बना दिया गया, तो इस तरह से काम की इतनी लगन थी कि अपने आप काम मिलता गया और आगे बढ़ता गया। रंगमंच की जो तकनीक सीखी थी, उसे वैसे ही उठाकर डिजिटल मीडिया पर अप्लाई किया।
एक समय ऐसा भी आया कि’डेली सोप’ से परेशान होकर कई सारे प्रोजेक्ट छोड़ दिया। पूरी दुनिया में सिनेमा की जो शुरुआत हुई, वह शॉर्ट फिल्म से ही हुई। वर्तमान समय में शॉर्ट फिल्म का अच्छा स्कोप है। वर्ल्ड स्तर पर इसका बहुत बड़ा मार्केट है, समय लगता है, पर क्लिक जरूर होता है। अवार्ड एक प्रक्रिया है जो यह दर्शाने का काम करता है कि आपका काम अच्छा है। आज मैं जो कुछ भी हूं रंगमंच के कारण हूं। पत्नी कायनात जी ने हर परिस्थिति में साथ दिया पहली शॉर्ट फिल्म ‘द रेंट’ को उन्होंने ही प्रोड्यूस किया है। कायनात जी का साथ यह सिद्ध करता है कि हर एक सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है।
दूसरे वक्ता के रूप में आमंत्रित आसिफा कायनात जी (गीतकार, लेखिका) ने शॉर्ट फिल्मों के बारे में बताते हुए कहा, शॉर्ट फिल्म मेरा पहला प्यार है। पहले के समय में शॉर्ट फिल्म बनती थी, तो लोगों को लगता था कि इसके पास कोई काम नहीं है। शॉर्ट फ़िल्म बनाने वालों को कोई पूछता ही नहीं था, लेकिन पिछले तीन-चार सालों में शॉर्ट फिल्मों की बाढ़ सी आ गई है। शॉर्ट फिल्मों के लिए बहुत बड़े बजट की आवश्यकता नहीं होती, जिसकी वजह से काफी युवा कलाकार, बड़े-बड़े प्रोड्यूसर, निर्देशक शॉर्ट फिल्म बना रहे हैं। अपने आपको संतुष्ट करने के लिए, अपने काम की भूख मिटाने के लिए शॉर्ट फिल्मों का सहारा लेते हैं। शॉर्ट फिल्मों का ऑस्कर तक में एक सेगमेंट है, जहां पर दुनिया के हर कोने से शॉर्ट फिल्म बनकर आती है, उन फिल्मों को दिखाया जाता है। वर्ल्ड की पांच बड़ी कंट्री में साल भर उन फिल्मों को दिखाया जाता है, इतने सारे फेस्टिवल हो रहे हैं। शॉर्ट फिल्म एक जरिया है, जहाँ आप अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकते हैं। फिल्में, लोगों का फैशन सेंस, स्टाइल, मानसिकता बदलती हैं। बड़ी फिल्में लोगों पर उतना असर नहीं डालती, जितनी शॉर्ट फिल्म लोगों को प्रभावित करती हैं। फिल्म एक ऐसी विधा है, जिसमें दुनिया की हर विधा समाहित है। भारत में अभी अच्छी शॉर्ट फिल्मों की कमी है। रंगमंच के अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने बताया, वे भोपाल की पहली महिला कलाकार हैं, जिसने पैसा लेकर काम करने की परिपाटी शुरू की। स्त्री की मर्यादा में रहकर अपनी शर्तों पर, अपना मुकाम बनाया।
रंगकर्मी एवं लेखक विजय पंडित जी बीच-बीच लघु फिल्मों से संबंधित प्रश्न पूछकर कार्यक्रम को गति प्रदान की।
सबरंग काव्य संध्या के अंतर्गत कवयित्री डॉ. कनकलता तिवारी जी के संचालन में-
आसिफा कायनात शुभांकर,मीनाक्षी शर्मा, निधि शुक्ला, सीमा त्रिवेदी, आभा दवे, प्रज्ञा मिश्रा, रश्मि चौकसे, नवीन चतुर्वेदी, गुलशन मदान, सूर्यजीत मौर्य, हीरालाल यादव, महेश, रवि यादव, सौरभ दुबे, विश्वभानु ने कविताएं पढ़ी।
धरोहर के अंतर्गत सुप्रसिद्ध अभिनेत्री एवं शायरा मीना कुमारी की गज़ल पेश की गायक आकाश ठाकुर ने। श्रोताओं ने जमकर तालियों के साथ उनकी तारीफ की।

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