चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई की सबरंग काव्य संध्या रविवार 6 अक्टूबर 2024 को प्रवासी हेल्थ एवं वेलनेस सेंटर गोरेगांव पूर्व में संपन्न हुई। एक तरफ़ गीत-ग़ज़लों की लय पर लोग झूमते दिखाई पड़े तो दूसरी तरफ़ हास्य व्यंग्य की फुहारों में भीग कर लोगों ने ख़ूब ठहाके भी लगाए। कवि सुभाष काबरा की व्यंग्य रचना ‘झोले’ सुनकर लोगों ने कई बार तालियां बजाईं।
सबरंग काव्य संध्या में शिरकत करने वाले रचनाकार थे- सुमीता केशवा, प्रमिला शर्मा, पारोमिता षडंगी, दमयंती शर्मा, आशु शर्मा, केपी सक्सेना ‘दूसरे’, गुलशन मदान, क़मर हाजीपुरी, आरिफ़ महमूदाबादी, यशपाल सिंह यश और सौरभ दुबे। गायिका रीना गुसाईं ने निदा फ़ाज़ली की ग़ज़ल और आकाश ठाकुर ने राजेश ऋतुपर्ण की ग़ज़ल गुनगुनाई।
शुरुआत में वैलनेस सेंटर की ओर से गिरीश शाह ने स्वास्थ्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कीं। इस काव्य संध्या में प्रतिष्ठित समाजसेवी कृष्ण कुमार झुनझुनवाला, सतीश तुलसकर, विष्णु मुरारका तथा प्रवासी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के कई सम्माननीय श्रोता मौजूद थे।
‘धरोहर’ के अंतर्गत देवमणि पांडेय ने #गोपालदास_नीरज के चुनिंदा मुक्तक पेश किये। लीजिए आप भी नीरज जी के मुक्तकों का लुत्फ़ उठाइए-
(1)
सर्द सूने उदास होंठों पर
तेरी यादों के गीत यूं आए
जैसे आंचल किसी सुनयना का
रास्ते पर बदन से छू जाए
(2)
दर्द जब तेरा पास होता है
अश्क पलकों पर यूं मचलते हैं
जैसे वर्षों से भीगे जंगल में
काफ़िले जुगनुओं के चलते हैं
(3)
ख़ुशी जिस ने खोजी, वो धन ले के लौटा
हँसी जिस ने खोजी, चमन ले के लौटा
मगर प्यार को खोजने जो गया वो
न तन ले के लौटा, न मन ले के लौटा
(4)
हर सुबह शाम की शरारत है
हर ख़ुशी अश्क़ की तिज़ारत है
मुझसे न पूछो अर्थ तुम यूँ जीवन का
ज़िन्दग़ी मौत की इबारत है
(5)
काँपती लौ, ये स्याही, ये धुआँ, ये काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी
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