विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली साम्राज्य था, जिसका शासन 14वीं से 17वीं सदी तक फैला हुआ था। इस साम्राज्य का इतिहास सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ विजयनगर साम्राज्य के इतिहास का विस्तार से विवरण दिया जा रहा है:
पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद भी भारत के राजाओं ने कोई सबक नहीं सीखा और पृथ्वीराज के बाद ,कन्नौज ,गुजरात और फी दक्षिण भारत के राजा १-१ कर के अलाउद्दीन खिलजी के हाथों पराजित होते रहे /उन मूर्खों ने कभी नहीं सोचा की आपस में लड़ने के बजाय अगर वो १ होकर मुकाबला करें तो अपने सबसे बड़े दुश्मन को बहार कर सकते है /दक्षिण भारत के वारंगल के पतन के बाद वहां के बहुत सारे सेनापति और अन्य सेना भी बलात मुस्लिम बना ली गयी
इनमें से दो सेनापति हरिहर और बुक्का राय मुस्लिम बन चुके थे। माधवाचार्य विद्यारान्य ने हरिहर और बुक्का राय को वापस हिन्दू धर्म में दीक्षित करके उनको एक नए साम्राज्य के स्थापना की प्रेरणा दी १३१३ इसवी में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हुई। विजयनगर साम्राज्य महाराजा कृष्णदेव राय के समय अपनी सर्वाधिक उचाईयों पर पहुँच गया १३१३ से लेकर १५६५ ईसवी तक दक्षिण भारत के तमाम मुस्लिम सुल्तानों ने कई बार विजयनगर पर हमला किया परन्तु हर बार उन्हें हार कर भागना पढ़ा हालत ये हो गए दक्षिण में इस्लामिक राज्य के पैर उखाड़ने लगे थे।
तालीकोटा के युद्ध की शुरुवात में विजयनगर की सेनाओं के भीषण प्रहार से जब आदिलशाही और संयुक्त सुल्तानों की सेना बिखर कर भागने लगी तभी रामराया के गोद लिए मुस्लिम सेनापति पुत्रों ने पीछे से से अपने उस बाप पर हमला किया जिसने उन्हें पाला पोसा था। ,हमले में रामराया की मृत्यु होते ही विजय के कगार पर कड़ी विजयनगर साम्रज्य की सेना में भगदड़ मच गयी और संयुक्त सुल्तानों की सेना को जीत हासिल हुई। इसके बाद इस्लामिक सेना ने विजयनगर की राजधानी हम्पी को आग लगा दी और आम नागरिकों की हत्या की औरतों को लूट लिया गया . इस युद्ध के बाद भी बच खुचे विजयनगर के सीनों और इस्लामिक आर्मी के बीच युद्ध चलता रहा जो की तिरुमाला मंदिर पर हमले में वेंकट २ के द्वारा 50 हजार इस्लामिक आर्मी और उनके उजबेक कमान्डर की मौत पर जा कर बंद हुआ ।
स्थापना और प्रारंभिक इतिहास
1. स्थापना (1336 ईस्वी)
- संस्थापक: हरिहर और बुक्का (हरिहर I और बुक्का राय I), जो संगम वंश से थे।
- पृष्ठभूमि: हरिहर और बुक्का पूर्व में काकतीय वंश और होयसल साम्राज्य के सेनापति थे। मुस्लिम आक्रमणों से परेशान होकर, उन्होंने दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
- स्थान: विजयनगर (वर्तमान में हम्पी, कर्नाटक) को राजधानी बनाया।
साम्राज्य का विस्तार
2. प्रमुख शासक
- हरिहर I (1336-1356)
- कार्य: साम्राज्य की नींव को मजबूत किया और आसपास के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
- बुक्का राय I (1356-1377)
- कार्य: मदुरै के सुल्तानate को हराया और तमिलनाडु के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
- कृष्णदेव राय (1509-1529)
- कार्य: विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक माने जाते हैं। उनके शासनकाल में साम्राज्य अपने शिखर पर पहुँचा।
- विजय: ओडिशा, कोंकण, और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। बंगाल, बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों को पराजित किया।
- संस्कृति और कला: कृष्णदेव राय के शासनकाल में साहित्य, कला, और वास्तुकला का अभूतपूर्व विकास हुआ।
सांस्कृतिक और आर्थिक विकास
3. संस्कृति और कला
- वास्तुकला: विजयनगर साम्राज्य की वास्तुकला में द्रविड़ शैली का प्रमुख स्थान था। हम्पी के मंदिर, विशेषकर विट्ठल मंदिर और हज़ारा राम मंदिर, इसकी उत्कृष्टता के उदाहरण हैं।
- साहित्य: तेलुगु, कन्नड़, तमिल, और संस्कृत साहित्य का विकास हुआ। कृष्णदेव राय स्वयं एक महान कवि और साहित्यकार थे।
4. आर्थिक विकास
- व्यापार: विजयनगर साम्राज्य का आर्थिक आधार व्यापार और कृषि पर आधारित था। विदेशी व्यापार के माध्यम से इसने अपने खजाने को समृद्ध किया।
- मुद्रा प्रणाली: सुव्यवस्थित मुद्रा प्रणाली थी, जिसमें सोने, चाँदी और तांबे के सिक्कों का प्रचलन था।
5. पतन के कारण
- तालीकोटा की लड़ाई (1565)
- घटना: विजयनगर साम्राज्य और दक्कन के सुल्तानों के बीच तालीकोटा की लड़ाई लड़ी गई। इसमें विजयनगर की हार हुई।
- परिणाम: साम्राज्य की राजधानी विजयनगर को विध्वंस कर दिया गया, जिससे साम्राज्य कमजोर हो गया।
6. अंतिम शासक और साम्राज्य का पतन
- तिरुमल राय (1565-1572)
- कार्य: तालीकोटा की लड़ाई के बाद उन्होंने तिरुपति में शरण ली और आंध्र प्रदेश के पेनुकोन्डा को नई राजधानी बनाया।
- आखिरी शासक: अंतिम दिनों में विजयनगर साम्राज्य कई छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गया और धीरे-धीरे इसका प्रभाव समाप्त हो गया।