डॉ. सरस जी: जीवन परिचय और योगदान
जन्म:
शैक्षिक प्रमाणपत्र के आधार पर डॉ. सरस जी का जन्म 10 अप्रैल 1942 ई. (सन् 1999 विक्रमी) को हुआ। वे उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर ब्लॉक के खड़ौवा खुर्द गांव के निवासी थे। उनके पूर्वज नगर क्षेत्र में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित के रूप में भारद्वाज गोत्रीय थे। नगर के राजा उदय प्रताप सिंह के समकालीन, उनके पूर्वज लक्ष्मण दत्त एक फौजी अफसर थे।
पारिवारिक पृष्ठभूमि:
उनके पिता, पं. केदारनाथ उपाध्याय का जन्म ग्राम सीतारामपुर, पत्रालय नगर बाजार, जिला बस्ती में हुआ था। उनकी मां ने कठिनाइयों के बावजूद डॉ. सरस जी की शिक्षा पूरी कराई।
शिक्षा यात्रा:
डॉ. सरस जी की शिक्षा 1947 में नगर के प्राइमरी विद्यालय से शुरू हुई। उन्होंने 1955 में कक्षा 5 पास करने के बाद खैर इंटर कॉलेज, बस्ती में प्रवेश लिया। 12 अक्टूबर 1957 को उनके पिता का असमय निधन हो गया। उस समय वे 16 वर्ष के थे और कक्षा 11 के छात्र थे। घर की सारी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। इसके बावजूद उनकी मां ने बहुत संघर्ष करके उनकी शिक्षा पूरी करवाई। उन्होंने 1958 में श्री गोविंद राम सक्सेरिया इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट, 1962 में किसान डिग्री कॉलेज बस्ती से बी.ए., और 1963 में साकेत डिग्री कॉलेज फैजाबाद से बी.एड. की डिग्री प्राप्त की।
अध्यक्षता और शिक्षा क्षेत्र में योगदान:
डा. सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विषय में एम.ए. किया था। इसके बाद उन्हें साहित्यरत्न (हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग) और साहित्याचार्य (सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी) की उपाधियाँ प्राप्त हुईं।
उनकी पहली नियुक्ति 1 जुलाई 1963 को किसान इंटर कॉलेज, मरहा, कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में हुई। वे 1965 से नगर बाजार विद्यालय के संस्थापक प्रधान अध्यापक बने। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती में प्रधानाचार्य रहे। उन्हें 5 सितंबर 2002 को राष्ट्रपति द्वारा शिक्षक सम्मान से नवाजा गया था।
सेवानिवृत्ति और जीवन के अंतिम दिन:
सेवानिवृत्ति के बाद, डॉ. सरस जी ने अयोध्या के नए घाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर वहां जीवन बिताया। वे भगवत नाम जाप और चर्चा में संलग्न रहे। उनका निधन 30 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुआ।
साहित्यिक योगदान:
डॉ. सरस जी ने बाल साहित्य कला विकास संस्थान की स्थापना की और अखिल भारतीय बाल साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन किया। उन्होंने ‘‘बालसेतु’’ नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया। उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें काव्य, नाटक, कथा, उपन्यास, और यात्रा वृत्तांत शामिल हैं। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियों में शामिल हैं:
- गूंज
- नैसर्गिकी
- विजयश्री
- मधुरिमा
- बलिदान खण्ड काव्य
- बासन्ती
- वृत्तान्त
- अंतर्ध्वनि
- संकुल
- सौरभ
अप्रकाशित कृतियाँ:
- जयभरतखंड काव्य
- चन्द्रगुप्त प्रवन्ध काव्य
- क्षमा प्रतिशोध
- नगर से नागपुर
- बस्ती जनपद के साहित्यकार भाग 3
- विषपान
- छन्द बावनी आदि
कुछ प्रमुख रचनाओं का संक्षिप्त परिचय:
- गूंज (1972): इस काव्यसंग्रह में 82 पृष्ठों पर ग्यारह कविताएँ हैं, जिनमें प्रमुख कविताएँ ‘भारती स्तवन’, ‘नववर्ष’, ‘नव ज्योति जगाओ’, ‘प्रयाणगीत’, ‘वृक्षों के प्रति’ आदि शामिल हैं।
- नैसर्गिकी (1972): इस पुस्तक में ऋतुओं पर आधारित 12 कविताएँ हैं, जैसे ‘वसंत’, ‘ग्रीष्म’, ‘पावस’, ‘शरद’, ‘हेमंत’, ‘शिशिर’ आदि।
- विजयश्री (1972): यह एक लघुनाट्य है जिसमें कविताएँ भी शामिल हैं।
- मधुरिमा (1972): यह गीत और कविताओं का संग्रह है।
- बलिदान (1973): यह एक ऐतिहासिक खण्ड काव्य है, जिसमें सात सर्गों और 81 पृष्ठों में 400 से अधिक छन्द हैं।
साहित्यिक योगदान और यात्रा:
डॉ. सरस जी ने भारतीय साहित्य की विविधता को अनुभव करने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की। उन्होंने नागपुर में हुए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में बस्ती जनपद का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद वे भारत के अनेक स्थानों जैसे कामरूप, गोहाटी, शिलांग, जयपुर, कोलकाता, हरिद्वार, ऋषिकेश, काठमांडू, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, गोवा, मुम्बई, और दिल्ली आदि का भ्रमण कर चुके थे। इन यात्राओं का विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक “नगर से नागपुर” में प्रकाशित किया।
बाल साहित्य और अन्य योगदान:
उन्होंने बाल साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। ‘बाल त्रिशूल’, ‘बालसेतु’, ‘विवेकानंद बाल खण्डकाव्य’, ‘बस्ती जनपद के साहित्यकार भाग 1, 2, 3’ जैसी कृतियाँ उनकी प्रमुख बाल साहित्य से जुड़ी रचनाएँ हैं।
उपसंहार:
डा. सरस जी शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व थे। उनकी रचनाएँ और योगदान शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और समाज के क्षेत्र में हमेशा याद रखे जाएंगे।