Wednesday, November 13, 2024
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दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का मुहुर्त पूजा सामग्री और पूजा विधि

दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को धन प्रदात्री ‘महालक्ष्मी’ एवं धन के अधिपति ‘कुबेर’ का पूजन किया जाता है।

31 अक्टूबर को दीपावली पर पूजन का उत्तम मुहूर्त स्थिर लग्न वृषभ सायं 6:27 से रात 8:23 बजे तक है।

इस तरह घरों-प्रतिष्ठानों में श्रीसमृद्धि कामना से लक्ष्मी पूजन के लिए सायंकाल 1.57 घंटे का मुहूर्त है।

इसके बाद स्थिर लग्न सिंह मध्य रात्रि 12:53 बजे से भोर 3:09 बजे तक है।

कार्तिक अमावस्या तिथि इस बार 31 अक्टूबर व एक नवंबर दो दिन है।
अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:12 बजे लग रही जो एक नवंबर को शाम 5:13 बजे तक है।
एक नवंबर को सूर्यास्त सायं 5:32 बजे हो रहा।
अमावस्या सूर्यास्त से पूर्व 5:13 बजे खत्म हो रही है।
एक नवंबर को ही सायं 5:13 बजे के बाद प्रतिपदा लग जा रही है।
एक नवंबर को प्रदोष काल व निशीथकाल दोनों में कार्तिक अमावस्या न मिलने से 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है।
लक्ष्मी पूजन के लिए 3 शुभ मुहूर्त (Lakshmi Puja 2024 Time)

प्रदोष काल में पूजा मुहूर्त:- 31 अक्टूबर 2024, शाम 05 बजकर 35 मिनट से रात 08 बजकर 11 मिनट तक.
वृषभ काल पूजा मुहूर्त:- 31 अक्टूबर 2024, शाम 06 बजकर 21 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट तक.
निशिता काल पूजा मुहूर्त:- 31 अक्टूबर 2024, रात 11 बजकर 39 मिनट से देर रात 21 बजकर 31 मिनट तक

निर्णय सिंधुकार के अनुसार ‘पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा अभ्यंगस्नानादौ परा।’ ब्रह्म पुराण में भी कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी-कुबेर आदि का रात्रि में भ्रमण बताया गया है।
हमारे पौराणिक आख्यानों में इस पर्व को लेकर कई तरह की कथाएँ हैं। भारतीय परंपरा में हर पर्व और त्यौहार का संबंध प्रकृति की पूजा, हमारे सुखद जीवन, आयु, स्वास्थ्य, धन, ज्ञान, वैभव व समृद्धि की उत्तरोत्तर प्राप्ति से है। साथ ही मानव जीवन के दो प्रभाग धर्म और मोक्ष की भी प्राप्ति हेतु विभिन्न देवताओं के पूजन का उल्लेख है। आयु के बिना धन, यश, वैभव का कोई उपयोग ही नहीं है।


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सर्वप्रथम आयु वृद्धि एवं आरोग्य प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके पश्चात तेज, बल और पुष्टि की कामना की जाती है। तत्पश्चात धन, ज्ञान व वैभव प्राप्ति की कामना की जाती है। विशेषकर आयु व आरोग्य की वृद्धि के साथ ही अन्य प्रभागों की प्राप्ति हेतु क्रमिक रूप से यह पर्व धन-त्रयोदशी (धन-तेरस), रूप चतुर्दशी (नरक-चौदस), कार्तिक अमावस्या (दीपावली- महालक्ष्मी, कुबेर पूजन), अन्नकूट (गो-पूजन), भाईदूज (यम द्वितीया) के रूप में पाँच दिन तक मनाया जाता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, नया साल और भैयादूज या भाईदूज ये पाँच उत्सव पाँच विभिन्न सांस्कृतिक विचारधाराओं प्रतिनिधित्व करते हैं।

लक्ष्मी जी का स्थायी निवास अपने यहाँ बनाये रखने के लिये दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के लिये दिन के सबसे शुभ मुहूर्त समय को लिया जाता है।

इस साल दिवाली 31 दिसंबर को मनाई जा रही है। देश का राष्ट्रीय पंचांग तैयार करने वाले खगोल विज्ञान केंद्र, कोलकाता ने अपने कैलेंडर में दीपावली 31 अक्टूबर को ही बताई है। देश के अधिकतर हिस्सों में 31 अक्टूबर की रात ही लक्ष्मी पूजा की जाएगी। कुछ लोग 1 नवंबर को ये पर्व मनाएंगे।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, 31 अक्टूबर, यानी गुरूवार को, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्था तिथि दोपहर 2 बजकर 40 मिनट से लग रही है. इसका समापन 01 नवंबर को शाम 5 बजकर 13 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, क्योंकि 31 को सूर्यास्त के पहले ही अमावस्या तिथि शुरू हो रही है, इसलिए दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी. दीपावली के त्योहार पर रात्रि में अमावस्या तिथि होनी चाहिए, जो 1 नवंबर 2024 को शाम के समय में नहीं है.

दीवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस बार लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर 2024 को शाम 5 बजे से लेकर रात के 10 बजकर 30 मिनट तक है।

पूजन के लिए आवश्यक सामग्री :

धूप बत्ती (अगरबत्ती), चंदन , कपूर, केसर , यज्ञोपवीत 5 , कुंकु , चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी , सौभाग्य द्रव्य-मेहंदी, चूड़ी, काजल, पायजेब, बिछुड़ी आदि आभूषण। नाड़ा (लच्छा), रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्त , पुष्पमाला, कमलगट्टे, निया खड़ा (बगैर पिसा हुआ) , सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा (कुश की घांस) , पंच मेवा , गंगाजल , शहद (मधु), शकर , घृत (शुद्ध घी) , दही, दूध, ऋतुफल, (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े और मौसम के फल जो भी उपलब्ध हो), नैवेद्य या मिष्ठान्न (घर की बनी मिठाई), इलायची (छोटी) , लौंग, मौली, इत्र की शीशी , तुलसी पत्र, सिंहासन (चौकी, आसन) , पंच-पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि) , लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति , सरस्वती का चित्र, चाँदी का सिक्का , लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, सफेद कपड़ा (कम से कम आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा) , धान्य (चावल, गेहूँ) , लेखनी (कलम, पेन), बही-खाता, स्याही की दवात, तुला (तराजू) , पुष्प (लाल गुलाब एवं कमल) , एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा, खील-बताशे, तांबे या मिट्टी का कलश और श्रीफल।

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कमलासना की पूजा से वैभव:

गृहस्थ को हमेशा कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। देवीभागवत में कहा गया है कि कमलासना लक्ष्मी की आराधना से इंद्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था। इंद्र ने लक्ष्मी की आराधना ‘ú कमलवासिन्यै नम:’ मंत्र से की थी। यह मंत्र आज भी अचूक है।

दीपावली को अपने घर के ईशानकोण में कमलासन पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजित कर, श्रीयंत्र के साथ यदि उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जाप किया जाए तो चंचला लक्ष्मी स्थिर होती है। बचत आरंभ होती है और पदोन्नति मिलती है। साधक को अपने सिर पर बिल्व पत्र रखकर पंद्रह श्लोकों वाले श्रीसूक्त का जाप भी करना चाहिए।

लक्ष्मी पूजन

लक्ष्मी का लघु पूजन (सही उच्चारण हो सके, इस हेतु संधि-विच्छेद किया है।) महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।

पूजा सामग्री का शुध्दिकरण :

बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

ॐ अ-पवित्र-ह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम्‌ गतोअपि वा ।
य-ह स्मरेत्‌ पुण्डरी-काक्षम्‌ स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि ॥
पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌, पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्‌ ।

आसन का शु्ध्दिकरण :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वम्‌ विष्णु-ना घृता ।
त्वम्‌ च धारय माम्‌ देवि पवित्रम्‌ कुरु च-आसनम्‌ ॥

आचमन कैसे करें:

दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नम-ह स्वाहा,
ॐ नारायणाय नम-ह स्वाहा,
ॐ माधवाय नम-ह स्वाहा ।

अंत में इस मंत्र का उच्चारण कर हाथ धो लें-ॐ गोविन्दाय नम-ह हस्तम्‌ प्रक्षाल-यामि ।

दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
दीप देवि महादेवि शुभम्‌ भवतु मे सदा ।
यावत्‌-पूजा-समाप्ति-हि स्याता-वत्‌ प्रज्वल सु-स्थिरा-हा ॥
(पूजन कर प्रणाम करें)

स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा ।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥

द्-यौ-हौ शांति-हि अन्‌-तरिक्ष-गुम्‌ शान्‌-ति-हि पृथिवी शान्‌-ति-हि-आप-ह ।
शान्‌-ति-हि ओष-धय-ह शान्‌-ति-हि वनस्‌-पतय-ह शान्‌-ति-हि-विश्वे-देवा-हा

शान्‌-ति-हि ब्रह्म शान्‌-ति-हि सर्व(गुम्‌) शान्‌-ति-हि शान्‌-ति-हि एव शान्‌-ति-हि सा
मा शान्‌-ति-हि। यतो यत-ह समिहसे ततो नो अभयम्‌ कुरु ।
शम्‌-न्न-ह कुरु प्रजाभ्यो अभयम्‌ न-ह पशुभ्य-ह। सु-शान्‌-ति-हि-भवतु॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्‌-महा-गण-अधिपतये नमः॥

(नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर रखें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)

संकल्प :
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत, द्रव्य आदि लेकर श्री महालक्ष्मीजी अन्य ज्ञात-अज्ञात देवीदेवताओं के पूजन का संकल्प करें-

हरिॐ तत्सत्‌ अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायाम्‌ मम महालक्ष्मी-प्रीत्यर्थम्‌ यथासंभव द्रव्यै-है यथाशक्ति उपचार द्वारा मम्‌ अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम्‌ च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानाम्‌ पूजनम्‌ च करिष्ये।
( अब जल छोड़ दें।)

श्रीगणेश-अंबिका पूजन

हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं श्रीअंबिका का ध्यान करें।

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