मुंबई में जम्मू कशमीर अध्ययन केंद्र और भोपाल के माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित श्री संत कुमार शर्मा द्वारा धारा 370 पर लिखी पुस्तक ‘आर्टिकल 370-डीसिट ऐंड फ्राडुलेंट कम्युनिकेशन’ के विमोचन और इस पर व्यापक चर्चा का आयोजन किया गया। समारोह में पत्रकार, बुध्दिजीवी, वकील और कानून के छात्र बड़ी संख्या में मौजूद थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे भारत सरकार के अतिरिक्त महाअधिवक्ता श्री अनिल सिंह। इस अवसर पर प्रमुख अधिवक्ता श्री राजीव पांडे, प्रोफेसर बृज किशोर कुठियाला, जम्मू कशमीर अध्ययन केंद्र के श्री सतीश सिन्नरकर, श्रीमती शक्ति मुंशी, प्रोफेसर प्रतिभा नाथानी, बहुगुणा आदि उपस्थित थे।
इस अवसर पर धारा 370 और इसके मिथकों पर विस्तार से चर्चा करते हुए एडवोकेट श्री राजीव पांडे ने कहा कि जम्मू और कश्मीर के विकास में धारा 370 ही सबसे बड़ा रोड़ा है। धारा 370 को कुछ राजनीतिक दल अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए प्रयोग कर रहे हैं और इससे जम्मू कश्मीर के अवाम का नुक्सान हो रहा है।
उन्होंने कहा कि धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। इसी विशेष दर्जें के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बरख़ास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कही भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं।
श्री राजीव पांडे का कहना था कि देश आजाद होने के बाद छोटी-छोटी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल किया गया था. जब जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई तभी पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने वहां आक्रमण कर दिया. कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह ने ही कश्मीर के भारत में विलय का प्रस्ताव रखा था। जम्मू कश्मीर से लेकर भारत की सभी रियासतों का विलय एक ही अनुबंध के तहत हुआ है। उस समय कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करने का वक्त नहीं था. इसी हालात को देखते हुए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप प्रस्तुत किया था, जो बाद में धारा 370 बन गई. जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिले हैं।
इन विशेष अधिकारों में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता, जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होना, जम्मू – कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होना, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का कोई अपमान करे तो ये कानूनन अपराध नहीं माना जाएगा। भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होंगे। भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी। इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता है.
धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीई लागू नहीं है, सीएजी लागू नहीं है। यानी इसकी वजह से भारत का कोई भी कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होता। जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता। धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं। धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है। इसके लिए पाकिस्तानियो को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है।
श्री पांडे ने कहा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के बाद १० अक्तूबर १९५१ को आम्बेडकर ने त्यागपत्र के कारणों को लेकर जो वक्तव्य दिया , उसमें नेहरु की इस उपर लिखित कश्मीर नीति पर ही सवाल उठाये थे।
श्री पांडे ने कहा कि धारा 370 एक अस्थाई प्रावधान था और इसे हटाने के लिए उन्होंने कहा कि कानपुर के तत्कालीन सांसद एसएन बनर्जी, सीपीआई के हीरेंद्र मुखर्जी और डॉ राम मनोहर लोहिया ने 1964 में इस धारा को समाप्त करने का सुझाव दिया था। उनका मानना था कि इस धारा से अलगाववाद पैदा हो रहा है। लद्दाख और जम्मू बड़ा क्षेत्र है लेकिन राज्य पर कश्मीर घाटी के लोग काबिज हैं।
श्री पांडे ने कहा कि कश्मीर घाटी के 50 परिवार पूरा राज्य चला रहे हैं जबकि बाकी उपेक्षित हैं। केंद्र सरकार से जो पैसा जम्मू कश्मीर को मिलता रहरा वो पाँच जिलों में ही खर्च होता है।
इस धारा के तीसरे क्लॉज में है कि संविधान लागू होने के बाद इसे समाप्त कर दिया जाए। यह धारा आपातकालीन अनुबंध है। संविधान लागू करके इसे समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि धारा 370 राजनीति का नहीं बल्कि एक सामाजिक मुद्दा है और जब समाज के लोग जागरुक होंगे, इसके बारे में जानेंगे और इसे हटाने के लिए उठ खड़े होंगे तभी ये प्रावधान हटाया जा सकेगा।
धारा 370 के अलावा भारत के संविधान में 35A की वजह से धारा 370 का दुरूपयोग हो रहा है।
भारत के संविधान में अनुछेद 35 A ( 1954) को भारत की रियासत जम्मू-कश्मीर के विधान के लिखने से पहले ही डाल दिया गया था। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 का सहारा ले कर डाला गया था जब कि अनुच्छेद 370 किसी भी दृष्टि से राष्ट्रपति को संविधान को बदलने का न कर्तव्य देता है न ही अधिकार देता है।
अनुच्छेद-35A की की वजह से ही जम्मू कश्मीर विधान सभा एवं जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में रहने वाले भारत के नागरिकों जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी की श्रेणी में आते हैं और भारत के अन्य नागरिकों के बीच भेदभाव किया जा रहा है। अनुच्छेद 35A शेख अब्दुल्लाह और जवाहर लाल नेहरु के बीच हुए 1952 के दिल्ली एग्रीमेंट का नतीजा है। यानी ये दो व्यक्तियों के बीच आपसी अनुबंध है जिसे कानूनी जामा पहना दिया गया है।
अतिरिक्त महाअधिवक्ता श्री अनिल सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर का और धारा 370 का मसला कानूनी कम और सामाजिक ज्यादा है, इसके लिए समाज को जाग्रत होना होगा।